21 अगस्त 2017

विश्वशान्ति हेतु : शान्ति स्तोत्र

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विश्वशान्ति हेतु : शान्ति स्तोत्र



नश्यन्तु प्रेत कूष्माण्डा नश्यन्तु दूषका नरा: ।
साधकानां शिवाः सन्तु आम्नाय परिपालिनाम ॥
जयन्ति मातरः सर्वा जयन्ति योगिनी गणाः ।
जयन्ति सिद्ध डाकिन्यो जयन्ति गुरु पन्क्तयः ॥

जयन्ति साधकाः सर्वे विशुद्धाः साधकाश्च ये ।
समयाचार संपन्ना जयन्ति पूजका नराः ॥
नन्दन्तु चाणिमासिद्धा नन्दन्तु कुलपालकाः ।
इन्द्राद्या देवता सर्वे तृप्यन्तु वास्तु देवतः ॥

चन्द्रसूर्यादयो देवास्तृप्यन्तु मम भक्तितः ।
नक्षत्राणि ग्रहाः योगाः करणा राशयश्च ये ॥
सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नश्यन्तु पक्षिणः ।
पशवस्तुरगाश्चैव पर्वताः कन्दरा गुहाः ॥

ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्तिम कुर्वन्तु सर्वदा ।
स्तुता मे विदिताः सन्तु सिद्धास्तिष्ठन्तु पूजकाः ॥
ये ये पापधियस्सुदूषणरतामन्निन्दकाः पूजने ।
वेदाचार विमर्द नेष्ट हृदया भ्रष्टाश्च ये साधकाः ॥

दृष्ट्वा चक्रम्पूर्वमन्दहृदया ये कौलिका दूषकास्ते ।
ते यान्तु विनाशमत्र समये श्री भैरवास्याज्ञया ॥
द्वेष्टारः साधकानां च सदैवाम्नाय दूषकाः ।
डाकिनीनां मुखे यान्तु तृप्तास्तत्पिशितै स्तुताः ॥

ये वा शक्तिपरायणाः शिवपरा ये वैष्णवाः साधवः ।
सर्वस्मादखिले सुराधिपमजं सेव्यं सुरै संततम ॥
शक्तिं विष्णुधिया शिवं च सुधियाश्रीकृष्ण बुद्धया च ये ।
सेवन्ते त्रिपुरं त्वभेदमतयो गच्छन्तु मोक्षन्तु ते ॥

शत्रवो नाशमायान्तु मम निन्दाकराश्च ये ।
द्वेष्टारः साधकानां च ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।
तत्परं पठेत स्तोत्रमानंदस्तोत्रमुत्तमम ।
सर्वसिद्धि भवेत्तस्य सर्वलाभो प्रणाश्यति ॥

इस स्तोत्र का पाठ इस भावना के साथ करें कि हमारी पृथ्वी पर  सर्व विध शांति हो.
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------------------- विशेष --------------------- साधना में गुरु की आवश्यकता
Y   मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y   साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y   गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y   रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y   रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y   गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y   स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y   गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
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मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y   मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें, ढिंढोरा ना पीटें, बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y   गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y   आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y   बकवास और प्रलाप न करें.
Y   किसी पर गुस्सा न करें.
Y   यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y   ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y   किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y   जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y   बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y   ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y   इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y   भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें , इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशा, आसन, वस्त्र का महत्व
Y   साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y   आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y   अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y   इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
Y   जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है , जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y   यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y   नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें , लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |

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