8 दिसंबर 2007

देवाधिदेव - भगवान शिव

देवाधिदेव - भगवान शिव

भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था गृहप्रवेश से पूर्व पूजन के लिए उन्होने अपने असुर शिष्य प्रकाण्ड विद्वान रावण को आमंत्रित किया था दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका ही दक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंका रावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए ऐसी सहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथ' कहलाते हैं ऐसे भोले भंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने के लिए शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।
भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है।जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहां ठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं,अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं और श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं। उनकी मुद्रा में चिंतन है, तो निर्विकार भाव भी है!आनंद भी है और लास्य भी। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं वे देवों के भी देव होने के कारण ÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण ÷महाकाल' भी हैं वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं देवताओं में प्रथमाराध्य, विनों के कारक निवारणकर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं तो, जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो, ÷कामेश्वर' भी हैं तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः-
असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रे, सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी
लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईश पारम याति॥
अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीसकर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है
भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं।इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं।भगवान शिव क्षिप्रप्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं और अभीप्सित कामना की पूर्ति कर देते हैं। भगवान शिव के पूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कर रहा हूं।इन विधियों से प्रत्येक आयु, लिंग, धर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता है और भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकता है।


भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-
ऊं नमः शिवाय
यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं।अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारह लाख मंत्रों का किया जाता है विविध कामनाओं के लिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।

बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजय शिव मंत्रः-
ऊं हौं ऊं जूं ऊं सः ऊं भूर्भुवः ऊं स्वः ऊं त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ऊं स्वः ऊं भूर्भुवः ऊं सः ऊं जूं ऊं हौं ऊं
भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ है, ऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुका हो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो, परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जाप कर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें, ÷÷मैं(अपना नाम) महामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नाम) के रोग निवारण के निमित्त कर रहा हॅूं, भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें'' इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्र तथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।
शिवलिंग की महिमा
भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है, इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः, मणेः कोटि गुणं बाणो,
बाणात्कोटि गुणं रसः रसात्परतरं लिंगं भूतो भविष्यति
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग तो बना है और ही बन सकता है।
शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।
शिवलिंग पर अभिषेक या धाराः-
भगवान शिव अत्यंत ही सहजता से अपने भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करने के लिए तत्पर रहते है। भक्तों के कष्टों का निवारण करने में वे अद्वितीय हैं। समुद्र मंथन के समय सारे के सारे देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया। उन्होने बडी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ÷नीलकण्ठ' कहलाए। भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय मानी जाने वाली क्रिया है ÷अभिषेक' अभिषेक का शाब्दिक तात्पर्य होता है श्रृंगार करना तथा शिवपूजन के संदर्भ में इसका तात्पर्य होता है किसी पदार्थ से शिवलिंग को पूर्णतः आच्ठादित कर देना। समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढाने की परंपरा प्रारंभ हुयी। जो आज भी चली रही है इससे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों का हित करते हैं इसलिए शिवलिंग पर विविध पदार्थों का अभिषेक किया जाता है।
शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढाता है शिवलिंग पर इस प्रकार द्रवों का अभिषेक ÷धारा' कहलाता है जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है
पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे गोक्षीर युक्त कूपोदकेन कारयेत
अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिये इन दोनों के अभाव में गाय के दूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के लिंग का अभिषेक करना चाहिये
हमारे शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में प्रत्येक पूजन क्रिया को एक विशिष्ठ मंत्र के साथ करने की व्यवस्था है, इससे पूजन का महत्व कई गुना बढ जाता है शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के लिए जिस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है वह हैः-
1 ऊं हृौं हृीं जूं सः पशुपतये नमः
ऊं नमः शंभवाय मयोभवाय नमः शंकराय, मयस्कराय नमः शिवाय शिवतराय च।
इन मंत्रों का सौ बार जाप करके जल चढाना शतधारा तथा एक हजार बार जल चढाना सहस्रधारा कहलाता है जलधारा चढाने के लिए विविध मंत्रों का प्रयोग किया जा सकता है इसके अलावा आप चाहें तो भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का प्रयोग भी कर सकते हेैं पंचाक्षरी मंत्र का तात्पर्य है ÷ ऊं नमः शिवाय ' मंत्र
विविध कार्यों के लिए विविध सामग्रियों या द्रव्यों की धाराओं का शिवलिंग पर अर्पण किया जाता है तंत्र में सकाम अर्थात किसी कामना की पूर्ति की इच्ठा के साथ पूजन के लिए विशेष सामग्रियों का उपयोग करने का प्रावधान रखा गया है इनमें से कुछ का वर्णन आगे प्रस्तुत हैः-
सहस्रधाराः-
जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है
घी की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है
दूध की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए
दूध में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकास होता है
गंगाजल की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है
सरसों के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है
सुगंधित द्रव्यों यथा इत्र, सुगंधित तेल की सहस्रधारा से विविध भोगों की प्राप्ति होती है
इसके अलावा कइ अन्य पदार्थ भी शिवलिंग पर चढाये जाते हैं, जिनमें से कुछ के विषय में निम्नानुसार मान्यतायें हैं:-
सहस्राभिषेकः-
एक हजार कनेर के पुष्प चढाने से रोगमुक्ति होती है
एक हजार धतूरे के पुष्प चढाने से पुत्रप्रदायक माना गया है
एक हजार आक या मदार के पुष्प चढाने से प्रताप या प्रसिद्धि बढती है
एक हजार चमेली के पुष्प चढाने से वाहन सुख प्राप्त होता है
एक हजार अलसी के पुष्प चढाने से विष्णुभक्ति विष्णुकृपा प्राप्त होती है
एक हजार जूही के पुष्प चढाने से समृद्धि प्राप्त होती है
एक हजार सरसों के फूल चढाने से शत्रु की पराजय होती है
लक्षाभिषेकः-
एक लाख बेलपत्र चढाने से कुबेरवत संपत्ति मिलती है
एक लाख कमलपुष्प चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है
एक लाख आक या मदार के पत्ते चढाने से भोग मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है
एक लाख अक्षत या बिना टूटे चावल चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है
एक लाख उडद के दाने चढाने से स्वास्थ्य लाभ होता है
एक लाख दूब चढाने से आयुवृद्धि होती है
एक लाख तुलसीदल चढाने से भोग मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है
एक लाख पीले सरसों के दाने चढाने से शत्रु का विनाश होता है
बेलपत्र
शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढाने का भी विशेष महत्व है। बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हे एक साथ ही चढाया जाता है।अच्छे पत्तों के अभाव में टूटे फूटे पत्र भी ग्रहण योग्य माने गये हैं।इन्हे उलटकर अर्थात चिकने भाग को लिंग की ओर रखकर चढाया जाता है।इसके लिये जिस श्लोक का प्रयोग किया जाता है वह है,
त्रिदलं त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम त्रिधायुधम।
त्रिजन्म पाप संहारकम एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम॥
उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर बेलपत्र को समर्पित करना चाहिए
शिवपूजन में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहियेः-
पूजन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर करें।
माता पार्वती का पूजन अनिवार्य रुप से करना चाहिये अन्यथा पूजन अधूरा रह जायेगा।
रुद्राक्ष की माला हो तो धारण करें।
भस्म से तीन आडी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।
शिवलिंग पर चढाया हुआ प्रसाद ग्रहण नही किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
केवडा तथा चम्पा के फूल चढायें।
पूजन काल में सात्विक आहार विचार तथा व्यवहार रखें।



2 दिसंबर 2007

तोडफोड रहित वास्तु समाधान


तोडफोड रहित वास्तु समाधान


भारतीय भवन निर्माण कला की अद्वितीय परंपरा को सारे विश्व में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है. भारतीय भवन निर्माण कला स्वयं में कला, विज्ञान तथा आध्यात्म का एक ऐसा अभूतपूर्व तथा विलक्षण संगम है जिसके समकक्ष शिल्प कला विश्व के किसी भी भाग में नही पायी जाती. हमारे भवनों में जहां एक ओर रहने की सुविधाजनक व्यवस्थाओं का चिंतन किया गया है वहीं दूसरी ओर गृहस्थ जीवन पर ज्योतिष, तंत्र तथा दैवीय शक्तियों के प्रतीकात्मक तथा व्यावहारिक प्रभाव का लाभदायक प्रभाव प्राप्त करने के निमित्त वास्तु शास्त्र नामक एक पूरा विधान भी गढा गया तथा उसके अनुसार भवनों को ज्यादा उपयोगी तथा गृहस्थ जीवन को पूर्णता प्रदान करने में सहयोगी बनाने का भी प्रयास किया गया.


आज हम पुनः भवन निर्माण के प्राचीन नियमों अर्थात वास्तु को मान्यता दे रहे हैं. कई भव्य भवन जो वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार नही थे बल्कि विख्यात आर्किटेक्टों के निर्देशन में बने थे उनको तोडकर वास्तुशास्त्र के अनुसार बनाने पर वहां रहने वालों को अत्यंत ही सुखद परिणाम प्राप्त हुए. जिसने आज वास्तु को भवन निर्माण के लिए एक अनिवार्यता के रूप में प्रस्तुत कर दिया है. एक ऐसा शास्त्र जो हमारी अन्य पारंपरिक विधाओं की ही तरह अपने महत्व को प्रमाणित करने में समर्थ हो रहा है.


वास्तु के अनुसार बनाये गए घरों से होने वाले लाभों के कारण काफी सारे धनवान लोगों ने अपने भवनों को तोडकर नए सिरे से निर्मित किया मगर ऐसा हर व्यक्ति के लिए संभव नही होता. आज जब बने बनाये मकानों का दौर चल रहा है तब आप उसमें वास्तु के अनुकूल निर्माण की उम्मीद नही कर सकते. ऐसी स्थिति में यक्ष प्रश्न खडा हो जाता है कि क्या किया जाये?


ऐसी परिस्थिति में वास्तु से संबंधित विविध साधनाओं की व्यवस्था है जिनके प्रयोग से आप गृहदोषों का निवारण कर सकते हैं. ये प्रयोग निम्नलिखित हैं :-


वास्तु पुरूष साधना संपन्न करें. अथवा विश्वकर्मा साधना अथवा त्रिपुर सुंदरी साधना संपन्न करें.

यदि आप उपरोक्त साधनाओं से संबंधित मंत्र साधनाओं का स्वयं प्रयोग करें तो सबसे अच्छा होगा, यदि कर पायें तो किसी प्रामाणिक तांत्रिक से यंत्र सिद्ध करवाकर घर में स्थापित करें तो भी लाभदायक होगा.

घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करना भी समस्त दोषों का समाधान करता है. पारा एक द्रवीय धातु है इसे विविध संस्कारों के द्वारा ठोस बनाया जाता है. यह रसविद्या के अंतर्गत आता है कुछ लोग रसायनों का प्रयोग कर भी पारे को ठोस बनाकर शिवलिंग बना रहे हैं इनसे खास लाभ नही प्राप्त होगा. प्रामाणिक पारद शिवलिंग आप अपने विवेकानुसार किसी विश्वसनीय संस्थान से प्राप्त करें. मुझे साधना सिद्धि विज्ञान, भोपाल तथा फयूचर पाइंट दिल्ली के पारद शिवलिंग श्रेष्ठ लगे.

रसोई घर में या जहां आप अन्न रखते हैं वहां प्राणप्रतिष्ठित अन्नपूर्णा यंत्र लाल कपडे में बांधकर लटकायें या रखें.

यदि संभव हो तथा प्राप्त हो सके तो भैरव यंत्र को लाल कपडे में बांधकर अपने घर के प्रवेश द्वार पर बांधें या फिर ऐसी जगह पर रखें कि किसी व्यक्ति के घर में प्रवेश करते ही उसकी नजर सबसे पहले उस यंत्र पर ही पडे. ऐसा करना आपके घर तथा घर के लोगों को बुरी नजर से बचाने में सहायक होगा.


गृहस्थ जीवन का आधार होता है ÷घर'. घर यानी वह स्थान जहां आप रहते हैं. यदि वह आपके अनुकूल हो तो आपके लिए स्वास्थ्य से लेकर समृद्धि तक सब कुछ प्राप्त करने में सहायक होता है.कुछ सावधानियां जो मकान बनाते समय ध्यान मे रखनी चाहिये वे आगे की पंक्तियों में स्पष्ट कर रहा हूं. इनका ध्यान रखने से अधिकतर भूमि दोषों का निवारण हो जाता है :-


यदि नींव खोदते समय हड्डी मिले तो उसे पूरी तरह निकालकर जल मे विसर्जित करें तथा भूमि में गंगाजल आदि डालकर पवित्रीकरण के बाद ही निर्माण प्रारंभ करें.

नींव खोदते समय तांबे से बना सर्प शेषनाग तथा चांदी से बना कछुआ भगवान विष्णु के प्रतीक रूप में डालना चाहिए.

सोना या सोने की मूर्ति यदि नींव में डालें तो श्रेष्ठ होगा, क्योंकि यह समृद्धि को नष्ट करता है. अपवाद स्वरूप अपने गुरू द्वारा प्रदत्त या फिर किसी श्रेष्ठ तांत्रिक द्वारा किसी खास प्रयोजन के लिए दिए गए सोने के उपकरण डाले जा सकते हैं.

मेरी राय में मूर्ति के लिए चांदी का प्रयोग ही श्रेष्ठ है.

मूर्ति के स्थान पर संबंधित देवता का यंत्र सिद्ध करके डालना ज्यादा लाभप्रद होता है.

गृह पूजन में वास्तु पुरूष पूजन के साथ साथ क्षेत्रपाल भैरव पूजन करवाना भी लाभप्रद होता है.

वास्तु पूजन के द्वारा आप का घर ज्यादा शांत तथा अनुकूल बन सकेगा और दैवीय कृपा की प्राप्ति हो सकेगी.