28 सितंबर 2013

नवरात्रि विशेष : महाविद्या भुवनेश्वरी















॥ ह्रीं ॥





  • भुवनेश्वरी महाविद्या समस्त सृष्टि की माता हैं




  • हमारे जीवन के लिये आवश्यक अमृत तत्व वे हैं.




  • इस मन्त्र का नित्य जाप आपको उर्जावान बनायेगा.




  • जिनका पाचन संबंधी शिकायत है उनको लाभ मिलेगा.


  • प्रातः काल ४ से ६ बजे तक जाप करें.
  • सफ़ेद वस्त्र और आसन होगा.
  • दिशा उत्तर या पूर्व .
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • आचार विचार व्यवहार सात्विक रखें.










  • नवरात्रि विशेष : नवार्ण मंत्रम

    नवार्ण मंत्र 













    ॥ ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चै ॥


    ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।

    ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।

    क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।

    नवार्ण मन्त्र का जाप इन तीनों देवियों की कृपा प्रदान करता है ।


    • वस्त्र आसन  लाल होगा .
    • दिशा कोई भी हो सकती है.
    • स्नान कर के बैठेंगे .
    • रात्रि काल में जाप होगा.
    • रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
    • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
    • बकवास और प्रलाप से बचें.
    • यथासंभव मौन रहें.
    • यथा शक्ति जाप करें.





    23 सितंबर 2013

    सरल पितर शांति विधि

    पितृ पक्ष चल रहा है. सभी लोग विधि विधान से पूजन नहीं कर पते हैं .उनके लिए एक सरल विधि:-
    || ॐ सर्व पित्रेभ्यो नमः ||

    • आपके घर में जो भोजन बना हो उसे एक थाली में सजा ले.
    • उसको पूजा स्थान में अपने सामने रखकर इस मंत्र का १०८  बार जाप करें.
    • हाथ में पानी लेकर कहें " मेरे सभी ज्ञात अज्ञात पितरों की शांति हो " इसके बाद जल जमीन पर छोड़ दे.
    • अब उस थाली के भोजन को किसी गाय को या किसी गरीब भूखे को खिला दें. 


    21 सितंबर 2013

    श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु के लक्षण







     श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु के  लक्षण :-


    श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को अपने गुरु का एक अच्छा शिष्य होना चाहिये. अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिये.श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को साधक होना चाहिये. उसे निरंतर साधना करते रहना चाहिये.
    श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को कम से कम एक महाविद्या सिद्ध होनी चाहिये.
    श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को वाक सिद्धि होनी चाहिये अर्थात उसे आशिर्वाद और श्राप दोनों देने में सक्षम होना चाहिये.
    श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को पूजन करना और कराना आना चाहिये.
    श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को योग और मुद्राओं का ज्ञान होना चाहिये.
    श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को रस सिद्धि होनी चाहिये, अर्थात पारद के संस्कारों का ज्ञान होना चाहिये.
    श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को मन्त्र निर्माण की कला आती है. वह आवश्यकतानुसार मंत्रों का निर्माण कर सकता है और पुराने मंत्रों मे आवश्यकतानुसार संशोधन करने में समर्थ होता है.




    11 सितंबर 2013

    गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी











    गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी












    अघोर  शक्तियों के स्वामी, साक्षात अघोरेश्वर शिव स्वरूप , सिद्धों के भी सिद्ध  मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस  स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत, प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै  साष्टांग प्रणाम करता हूं.













    प्रचंडता  की साक्षात मूर्ति, शिवत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप   मेरे पूज्यपाद गुरुदेव  स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी  के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता  हूं.





    सौन्दर्य  की पूर्णता को साकार करने वाले साक्षात कामेश्वर, पूर्णत्व युक्त, शिव के  प्रतीक, मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय   परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके  चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.




    जो  स्वयं अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, जो अहं ब्रह्मास्मि  के नाद से गुन्जरित हैं, जो गूढ से भी गूढ अर्थात गोपनीय से भी गोपनीय  विद्याओं के ज्ञाता हैं ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो  प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण  स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.


    जो  योग के सभी अंगों के सिद्धहस्त आचार्य हैं, जिनका शरीर योग के जटिलतम  आसनों को भी सहजता से करने में सिद्ध है, जो योग मुद्राओं के विद्वान हैं,  जो साक्षात कृष्ण के समान प्रेममय, योगमय, आह्लादमय, सहज व्यक्तित्व के  स्वामी हैं  ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः  स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं,  उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.


    काल  भी जिससे घबराता है, ऐसे महाकाल और महाकाली युगल के उपासक, साक्षात महाकाल  स्वरूप, अघोरत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप, महाकाली के महासिद्ध साधक मेरे  पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी  निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै  साष्टांग प्रणाम करता हूं.







    गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी


    एक  विराट व्यक्तित्व जिसने अपने अंदर स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डा नारायण  दत्त श्रीमाली जी ] के ज्ञान को संपूर्णता के साथ समाहित किया है.






    दस  महाविद्याओं पर जितना ज्ञान तथा विवेचन गुरुजी ने किया है वह अपने आप में  एक मिसाल है.शरभ तन्त्र से लेकर महाकाल संहिता और कामकलाकाली तन्त्र से  लेकर गुह्यकाली तक तन्त्र का कोइ क्षेत्र गुरुदेव [ Swami Sudarshan Nath  Ji ] की सीमा से परे नहीं है.






    लुप्तप्राय  हो चुके तन्त्र ग्रन्थों से ढूढ कर ज्ञान का अकूत भन्डार अपने शिष्यों के  लिये सहज ही प्रस्तुत करने वाले ऐसे दिव्य साधक के चरणों मे मेरा शत शत नमन  है .




    आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मेरे लिये सर्वसौभाग्य प्रदायक है....


    ज्ञान की इतनी ऊंचाई पर बैठ्कर भी साधकों तथा जिज्ञासुओं के लिये वे सहज ही उपलब्ध हैं. आप यदि साधनात्मक मार्गदर्शन चाहते हैं तो आप भी संपर्क कर सकते हैं.

















    4 सितंबर 2013

    शिव शक्ति मन्त्र





    ॥ ऊं सांब सदाशिवाय नमः ॥

     लाभ - यह शिव तथा शक्ति की कृपा प्रदायक है.

    विधि ---
    1. नवरात्रि में जाप करें.
    2. रात्रि काल में जाप होगा.
    3. रत्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे के बीच का समय रात्रि काल है.
    4. सफ़ेद या लाल रंग का आसन तथा वस्त्र होगा.
    5. दिशा पूर्व तथा उत्तर के बीच [ईशान] की तरफ़ मुंह करके बैठना है.
    6. हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
    7. सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
    8. किसी स्त्री का अपमान न करें.
    9. किसी पर साधन काल में क्रोध न करें.
    10. किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
    11. यथा संभव मौन रखें.
    12. साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें अन्यथा नींद आयेगी.

    2 सितंबर 2013

    अघोर चतुर्दशी : भाद्रपद कृष्ण १४ : ३ सितम्बर




    ॥ ऊं अघोरेश्वराय महाकालाय नमः ॥

    • १,२५,००० मंत्र का जाप .
    • दिगंबर/नग्न  अवस्था में जाप करें
    • अघोरी साधक श्मशान की चिताभस्म का पूरे शारीर पर लेप करके जाप करते हैं. 
    • लेकिन गृहस्थ साधकों के लिए  चिताभस्म निषिद्ध है. वे इसका उपयोग नहीं  करें. यह गम्भीर  नुकसान कर सकता है.
    • गृहस्थ साधक अपने शरीर पर गोबर के कंडे  की राख से त्रिपुंड बनाएं . यदि सम्भव हो तो पूरे शरीर पर लगाएं.
    • जाप के बाद स्नान करने के बाद सामान्य कार्य कर सकते हैं.
    • जाप से प्रबल ऊर्जा उठेगी, किसी पर क्रोधित होकर या स्त्री सम्बन्ध से यह उर्जा विसर्जित हो जायेगी . इसलिए पूरे साधना काल में क्रोध और काम से बचकर रहें.
    • शिव कृपा होगी.
    • रुद्राक्ष पहने तथा रुद्राक्ष की माला से जाप करें.