4 जुलाई 2016

पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना

पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना



पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना

|| ॐ ऐ श्रीं क्लीं प्राणात्मन निं सर्व सिद्धि प्रदाय निखिलेश्वरानन्दाय  नमः  ||

  • वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र धारण करें.
  • आसन - सफ़ेद होगा.
  • समय - प्रातः ४ से ६ बजे का समय सबसे अच्छा है, न हो पाए तो कभी भी कर सकते हैं.
  • दिशा - उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए बैठें
  • साधनाकाल में ब्रह्मचारी रहें . 
  • किसी से विवाद, क्रोध, बकवास ना करें .
  • यथासंभव मौन धारण करें 
  • अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने का प्रयास करें .

  • पुरश्चरण - सवा लाख मंत्र जाप का होगा
  • हवन - १२,५०० मंत्रों से
  • हवन सामग्री - दशांग या घी


विधि :-
सामने गुरु चित्र रखें गुरु यन्त्र या श्री यंत्र हो तो वह भी रखें .

हाथ में पानी लेकर बोले की " मै [अपना नाम ] गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए यह प्रयोग कर रहा हूँ , वे प्रसन्न हों और मुझपर कृपा करें साधना के मार्ग पर आगे बढायें ". अब पानी नीचे छोड़ दें.

लाभ :-
  • पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा प्राप्त होगी .
  • जो आपको साधना पथ पर तेजी से आगे बढ़ाएगी.
  • यदि गुरु की प्राप्ति नहीं हुई है तो इस सम्बन्ध में कोई राह निकलेगी 
  • साधनात्मक बल बढेगा .
  • उग्र साधनों में रक्षा कवच की तरह कार्य करेगा .

3 जुलाई 2016

निखिल महात्म्य : गुरूदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी : चित्र संग्रह



Photographs of Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji















































निखिल निर्वाण दिवस : ३ जुलाई : अश्रुपूरित श्रद्धांजलि


-:निखिलम शरणम :-


डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी)

    तन्त्र, मन्त्र, यन्त्र के सिद्धहस्त आचार्य, ज्योतिष के प्रकांड विद्वान, कर्मकांड के पुरोधा, प्राच्य विद्याओं के विश्वविख्यात पुनरुद्धारक,अनगिनत ग्रन्थों के रचयिता तथा पूरे विश्व में फ़ैले हुए करोडों शिष्यों को साधना पथ पर उंगली पकडकर चलाने वाले मेरे परम आदरणीय गुरुवर.....
जिनके लिये सिर्फ़ यही कहा जा सकता है कि....






२ जुन १९९२ 



जब मैने परम पुज्य गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी [परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ] से दीक्षा ली तब से आज तक मै गुरु कृपा से साधना के मार्ग पर गतिशील हूं.


अक्टूबर - १९९३

जब गुरुदेव भिलाई की धरती पर पधारे.....



.....

.....

.....

जब जब मेरे कदम लडखडाये गुरुवर की कृपा सदैव मुझपर बनी रही.जो मेरे जीवन का आधार है.

३ जुलाई १९९८

एक अपूरणीय क्षति का दिन जब मेरे गुरुवर ने अपनी भौतिक देह का त्याग किया .एक ममता भरा वात्सल्यमय साथ जो नही रहा.........



 

और फ़िर.......

गुरु देह की सीमा से परे होते हैं यह एह्सास गुरुवर ने करा दिया और फिर यह बालक निश्चिंत होकर निकल पडा खेल के मैदान में........

2 जुलाई 2016

पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना

पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना




पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना

|| ॐ नं निखिलेश्वराय सिद्धिप्रदाय नं नमः  ||

वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र धारण करें.
आसन - सफ़ेद होगा.
समय - प्रातः ४ से ६ बजे का समय सबसे अच्छा है, न हो पाए तो कभी भी कर सकते हैं.
दिशा - उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए बैठें

पुरश्चरण - सवा लाख मंत्र जाप का होगा
हवन - १२,५०० मंत्रों से
हवन सामग्री - दशांग या घी


विधि :-
सामने गुरु चित्र रखें गुरु यन्त्र या श्री यंत्र हो तो वह भी रखें .

हाथ में पानी लेकर बोले की " मै [अपना नाम ] गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए यह प्रयोग कर रहा हूँ , वे प्रसन्न हों और मुझपर कृपा करें साधना के मार्ग पर आगे बढायें ". अब पानी निचे छोड़ दें.

लाभ :-
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा प्राप्त होगी जो आपको साधना पथ पर तेजी से आगे बढ़ाएगी.

1 जुलाई 2016

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु के लक्षण







 श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु के  लक्षण :-


श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को अपने गुरु का एक अच्छा शिष्य होना चाहिये. अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिये.श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को साधक होना चाहिये. उसे निरंतर साधना करते रहना चाहिये.
श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को कम से कम एक महाविद्या सिद्ध होनी चाहिये.
श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को वाक सिद्धि होनी चाहिये अर्थात उसे आशिर्वाद और श्राप दोनों देने में सक्षम होना चाहिये.
श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को पूजन करना और कराना आना चाहिये.
श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को योग और मुद्राओं का ज्ञान होना चाहिये.
श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को रस सिद्धि होनी चाहिये, अर्थात पारद के संस्कारों का ज्ञान होना चाहिये.
श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को मन्त्र निर्माण की कला आती है. वह आवश्यकतानुसार मंत्रों का निर्माण कर सकता है और पुराने मंत्रों मे आवश्यकतानुसार संशोधन करने में समर्थ होता है.