3 अक्तूबर 2016

भुवनेश्वरी महाविद्या

॥ ह्रीं ॥




  • भुवनेश्वरी महाविद्या समस्त सृष्टि की माता हैं



  • हमारे जीवन के लिये आवश्यक अमृत तत्व वे हैं.
  • इस मन्त्र का नित्य जाप आपको उर्जावान बनायेगा.
  • जिनका पाचन संबंधी शिकायत है उनको लाभ मिलेगा.
  • समस्त प्रकार के रोगियों को बल प्रदान करता है |
  • मृत्युंजय मन्त्र के समान लाभ दायक है  





  • साधना के रूप में जाप के नियम :-
  • प्रातः काल ४ से ६ बजे तक जाप करें तो श्रेष्ट होगा | अन्यथा रात्रि 9 से 4 के बीच |
  • सफ़ेद वस्त्र और आसन होगा.
  • दिशा उत्तर या पूर्व .
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • आचार विचार व्यवहार सात्विक रखें.
  • 1 अक्तूबर 2016

    कामाख्या मन्त्रम

    भगवती कामाख्या मूल शक्ति हैं , जो सभी साधनाओं का मूल हैं ।


    ॥ ऊं ऎं ह्रीं क्लीं कामाख्यायै स्वाहा ॥

    सामान्य निर्देश :-
    साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
    इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
    साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
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    विधि :-
    जाप ..माला से किया जाये तो श्रेष्ट है ना हो तो रुद्राक्ष की माला सभी कार्यों के लिए स्वीकार्य  है |



    जाप के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले), आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह मन्त्र जाप कर रहा/ रही हूँ | मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " | इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |



    दिशा उत्तर/ पूर्व की और देखते हुए बैठें |
    आसन लाल/पीले रंग का रखें|
    जाप रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें|
    यदि अर्धरात्रि जाप करते हुए निकले तो श्रेष्ट है |
    जाप के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें|
    किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें |
    सात्विक आहार/ आचार/ विचार रखें |
    ब्रह्मचर्य का पालन करें |
     

    नवकाली



    तन्त्र साधनाओं में नौ कालियों का विवेचन है वे हैं:-

    1. दक्षिणकाली.
    2. भद्रकाली.
    3. श्मशानकाली.
    4. कालकाली.
    5. गुह्यकाली.
    6. कामकलाकाली.
    7. धनकाली.
    8. सिद्धिकाली.
    9. चण्डकाली.

    महाविद्या महाकाली स्तुति




    शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
                                    महाकाल  प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
    घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
                                    अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

    मेरी अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर विराजमान है, जो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैं, जो चौंषठ कलाओं से युक्त हैं, जो भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैं, ऐसी प्रचंड स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं | 

    उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
                                     रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
    सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
                                   अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
      
    जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैं, अर्थात हर नियम, हर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं , जो श्मशान की अधिष्टात्री देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं , जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |


    क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
                                   केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
    कटि नर कर मेखला धारिणीम,
                                   अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

    अद्भुत सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत उन्नत स्तन मंडलों से सुशोभित हैं, जिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे  सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव अर्चन करता हूं  ||

    खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
                                   युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
    महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
                                   अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥ 
    देव सेना की महानायिका, जो खड्ग चालन में अति निपुण हैं, युद्ध जिनको अत्यंत प्रिय है, असुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध भूमि की अधिष्टात्री हैं , जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का रक्तपान करने को आतुर रहती हैं , ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल रमणी महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |



    मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
                                    प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
    वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
                                    अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥


    जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैं, जिनके मुख पर सदैव अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है , जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं , हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |
    || इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||

    अखंड लक्ष्मी : कनकधारा स्तोत्र















    नवार्ण मंत्र साधना विधि

    नवार्ण मंत्र 













    ॥ ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चै ॥


    ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।

    ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।

    क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।

    नवार्ण मन्त्र का जाप इन तीनों देवियों की कृपा प्रदान करता है ।


    • वस्त्र आसन  लाल होगा .
    • दिशा कोई भी हो सकती है.
    • स्नान कर के बैठेंगे .
    • रात्रि काल में जाप होगा.
    • रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
    • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
    • बकवास और प्रलाप से बचें.
    • यथासंभव मौन रहें.
    • यथा शक्ति जाप करें.