20 अगस्त 2020

विघ्नेश्वर गणपति

 





विघ्नेश्वरं सुरगणपूजितंमोदकप्रियं पार्वती सुतम ।
हस्तिमुखं लम्बोदरं नमामि शिवपुत्रम गणेश्वरम ॥

विघ्नों के अधिपतिदेवताओं के भी आराध्यमोदक अर्थात लड्डूओं के प्रेमीजगदम्बा पार्वती के पुत्रहाथी के समान मुख व लम्बे पेट वालेभगवान शिव के प्रिय पुत्र गणेश को मैं प्रणाम करता हूं ।

जनसामान्य में व्यापक लोकप्रियता रखने वाले इस अद्भुत देवता के गूणों की चर्चा करना लगभग असंभव है। वे गणों के अधिपति हैं तो देवताओं के सम्पूर्ण मण्डल में प्रथम पूज्य भी हैं। बुद्धि कौशल तथा चातुर्य को प्रदान करने वाले है तो कार्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने वाले भी हैं। समस्त देव सेना और शिवगणों को पराजित करने वाले हेैं तो दूसरी ओर महाभारत जैसे ग्रंथ के लेखक भी हैं। ऐसे सर्वगुण संपन्न देवता की आराधना न सिर्फ भौतिक जीवन बल्कि आध्यात्मिक जीवन की भी समस्त विध मनोकामनाओं की पूर्ति करने में सक्षम हैं।

भगवान गणेश की आराधना या साधना उनके तीन स्वरूपों में की जाती है। उनके तीनों स्वरूपराजसी तामसी तथा सात्विक स्वरूप साधक की इच्ठा तथा क्षमता के अनुसार कार्यसिद्धि प्रदान करते ही हैं।

भारतीय संस्कृति में जो परंपरा है उसके अनुसार तो प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में गणपति का स्मरण किया ही जाता है। यदि नित्य न किया जाये तो भी गणेश चतुर्थी जैसे अवसरों पर तो गृहस्थों को उनका पूजन व ध्यान करना चाहिए।

व्यापारसेल्समार्केटिंगएडवर्टाइजिंग जैसे क्षेत्रों में जहां वाकपटुता तथा चातुर्य की नितांत आवश्यकता होती हैवहां गणपति साधना तथा ध्यान विशेष लाभप्रद होता है। भगवती लक्ष्मी को चंचला माना गया है। लक्ष्मी के साथ गणपति का पूजन लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान करता है। इसलिए आप व्यापारी बंधुओं के पास ऐसा संयुक्त चित्र लगा हुआ पायेंगे।

आगे की पंक्तियों में भगवान गणपति का एक स्तोत्र प्रस्तुत है। इस स्तोत्र का नित्य पाठ करना लाभप्रद होता है।

गणपति स्तोत्र

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियायलम्बोदराय सकलाय जगद्विताय ।
नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषितायगौरीसुताय गणनाथ नमोस्तुते ॥

भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वरायसर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय ।
विद्याधराय विकटाय च वामनायभक्तप्रसन्न वरदाय नमोनमस्ते ॥

नमस्ते ब्रह्‌मरूपाय विष्णुरूपायते नमःनमस्ते रूद्ररूपाय करि रूपायते नमः ।
विश्वरूपस्य रूपाय नमस्ते ब्रह्‌मचारिणेभक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायकः ॥

लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रियनिर्विनं में कुरू सर्व कार्येषु सर्वदा ।
त्वां विन शत्रु दलनेति च सुंदरेति भक्तप्रियेति शुभदेति फलप्रदेति ॥

विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवंति तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेवि ।
अनया पूजया सांगाय सपरिवाराय श्री गणपतिम समर्पयामि नमः ॥

इस स्तोत्र का पाठ कर गणपति को नमन करें ।

कलि काल में साधनाओं के विषय में कहा गया है कि :-

कलौ चण्डी विनायकौ

अर्थात कलियुग में चण्डी तथा गणपति साधनायें ज्यादा फलप्रद होंगी। गणपति साधना को प्रारंभिक तथा अत्यंत लाभप्रद साधनाओं में गिना जाता है। योगिक विचार में मूलाधार चक्र को कुण्डली का प्रारंभ माना जाता है तथा गणपति उसके स्वामी माने जाते हैं। साथ ही शिव शक्ति के पुत्र होने के कारण दोनों की संयुक्त कृपा प्रदान करते हैं।

यदि गणपति साधना करना चाहें तो आप आगे लिखी विधि के अनुसार करें।

गणपति साधना

  • गणपति साधना का यह विवरण सामान्य गृहस्थों के लिए है। इसे किसी भी जातिलिंग,आयु का व्यक्ति कर सकता है।

  • मंत्र का जाप प्रतिदिन निश्चित संख्या या समय तक करना चाहिये ।

  • माला की व्यवस्था हो सके तो माला से तथा अभाव में किसी भी गणनायोग्य वस्तु से गणना  कर सकते हैं ।

  • ऐसा न कर सकें तो एक समयावधि निश्चित समयावधि जैसे पांचदसपंद्रह मिनटआधा या एक घंटा अपनी क्षमता के अनुसार निश्चित कर लें ।

  • इस प्रकार ११११६२१३३या ५१ दिनों तक करें। यदि किसी दिन जाप न कर पायें तो साधना खण्डित मानी जायेगी । अगले दिन से पुनः प्रारंभ करना पडेगा। इसलिये दिनों की संख्या का चुनाव अपनी क्षमता के अनुसार ही करें। महिलायें रजस्वला होने पर जाप छोडकर उस अवधि के बाद पुनः जाप कर सकती हैं। इस अवस्था में साधना खण्डित नही मानी जायेगी।

  • यदि संभव हो तो प्रतिदिन निश्चित समय पर ही बैठने का प्रयास करें ।

  • जप करते समय दीपक जलता रहना चाहिये ।

  • साफ वस्त्र पहनकर स्नानादि करके जाप करें । पूर्व की ओर देखते हुए बैठें। सामने गणपति  का चित्रमूर्ति या यंत्र रखें।

गणपति मंत्र

॥ ऊं गं गणेश्वराय गं नमः ॥

वे साधक जो माता गायत्री के भक्त हैं वे गणेश गायत्री मंत्र का जाप उपरोक्त मंत्र के स्थान पर कर सकते हैं जो उनके लिए ज्यादा लाभप्रद होगा।


गणपति गायत्री मंत्र

॥ ऊं तत्पुरूषाय विद्यहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात ॥

साधना लक्ष्य प्राप्ति की सहायक क्रिया है। पुरूषार्थ के साथ-साथ साधना भी हो तो इष्ट देवता की शक्तियां मार्ग की बाधाओं को दूर करने में सहायक होती हैं। जिससे सफलता की संभावनायें बढ जाती हैं।




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------------------- विशेष ---------------------  साधना में गुरु की आवश्यकता
Y   मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y   साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y   गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y   रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y   रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y   गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y   स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y   गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
Y    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y   मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें, ढिंढोरा ना पीटें, बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y   गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y   आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y   बकवास और प्रलाप न करें.
Y   किसी पर गुस्सा न करें.
Y   यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y   ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y   किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y   जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y   बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y   ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y   इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y   भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें , इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशा, आसन, वस्त्र का महत्व
Y   साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y   आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y   अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y   इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
Y   जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है , जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y   यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y   नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें , लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |

19 अगस्त 2020

वक्रतुंडस्तोत्रम

 



ॐ ॐ ॐकाररुपं त्र्यहमिति च परं यत्स्वरुपं तुरियं
त्रैगुण्यातीतनीलं कलयति मनसतेजसिंदूरमूर्तिम !
योगींन्द्रैब्रह्मरंध्रे सकलगुणमयं श्रीहरेंन्द्रेण संगं
गं गं गं गं गणेशं गजमुखमभितो व्यापकं चिंतयंति !!
वं वं वं विघ्नराजं भजति निजभुजे दक्षिणेन्यस्तशुंडं
क्रं क्रं क्रं क्रोधमुद्रादलितरिपुबलं कल्पवृक्षस्य मूले !
दं दं दं दन्तमेकं दधत मुनिमुखं कामधेन्वा निषेव्यं !
धं धं धं धारयंतं धनदमतिधियं सिद्धि बुद्धिद्वितियं !!
तुं तुं तुं तुंगरुपं गगनपथि गतं व्याप्नुवंतं दिगंतान
क्लीं क्लीं क्लींकारनाथं गलित मदमिल्ल लोलमत्तालिमालं !
ह्रीं ह्रीं ह्रींकारपिंगं सकलमुनिवर ध्येयमुंडं च शुंडम !
श्रीं श्रीं श्रीं श्रयंतं निखिलनिधिकुलं नौमि हेरंबबिंबं !
लौं लौं लौं लौकारमाद्यं प्रणवमिव पदं मंत्रमुक्तावलीनां शुद्धं विघ्नेशबीजं शशिकरसदृशं योगिनांध्यानगम्यं !
डं डं डं डामरुपं दलितभवभयं सूर्यकोटिप्रकाशं !
यं यं यं यज्ञनाथं जपति मुनिवरो बाह्यभ्यंतरं च !!
हुं हुं हुं हेमवर्णं श्रूतिगणितगुणं शूर्पकर्णं कृपालुं
ध्येयं सूर्यस्यबिंबं उरसि च विलसत सर्पयज्ञोपवितं !
स्वाहा हुं फट नमों अंतैष्ठ
ठ ठ ठ सहितै: पल्लवै: सेव्यमानं मंत्राणां सप्तकोटि प्रगुणित महिमाधारमीशं प्रपद्ये !!

  1. नित्य पूजन मे उपयोग कर सकते हैं 
  2. मनोकामना पूर्ति के लिए संकल्प लेकर 1008 पाठ करें  । 


आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

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पन्चोपचार गणपतिपूजन

 


एक नन्हा सा गणपति पूजन प्रस्तुत है ।
इसे पन्चोपचार गणपतिपूजन कहते हैं





ऊं गं गणपतये नमः गंधम समर्पयामि --- इत्र आदि चढायें ।

ऊं गं गणपतये नमः पुष्पम समर्पयामि ---  फ़ूल 

ऊं गं गणपतये नमः धूपम समर्पयामि -- अगरबत्ती

ऊं गं गणपतये नमः दीपम समर्पयामि -- दीपक जलायें

ऊं गं गणपतये नमः नैवेद्यम समर्पयामि -- प्रसाद चढायें

इसके बाद आरती कर लें

12 अगस्त 2020

साधना मे रक्षा हेतु हनुमान शाबरमंत्र






साधना मे रक्षा हेतु हनुमान शाबरमंत्र
·       इस शाबर मंत्र को किसी शुभ दिन जैसे ग्रहणहोलीरवि पुष्य योग, गुरु पुष्य योग मे1008 बार जप कर सिद्ध कर ले ।
·       इस मंत्र का जाप आप एकांत/हनुमान मंदिर/अपने घर मे करें |
·       हनुमान जी का विधी विधान से पुजन करके 11 लड्डुओ का भोग लगा कर जप शुरू कर दे । जप समाप्त होने पर हनुमान जी को प्रणाम करे | त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थना कर लें |
·       जब भी आप कोई साधना करे |तो मात्र बार इस मंत्र का जाप करके रक्षा घेरा बनाने से स्वयं हनुमान जी रक्षा करते है ।
·       इस मंत्र का बार जप कर के ताली बजा देने से भी पूर्ण तरह से रक्षाहोती है ।

इस मंत्र को सिद्ध करने के बाद रोज इस मंत्र की 1 माला जाप करने पर इसका तेज बढ़ता जाता है  और टोना जादु साधक पर असर नही करते ।
मंत्र :-
॥ ओम नमो वज्र का कोठा, जिसमे पिंण्ड हमारा पैठा,
ईश्वर कुंजी ब्रम्हा का ताला, मेरे आठो अंग का यति हनुमंत वज्र वीर रखवाला ।


11 अगस्त 2020

महाविद्या धूमावती





  • धूमावती साधना समस्त प्रकार की तन्त्र बाधाओं की रामबाण काट है.
  • यह साधना नवरात्रि में की जा सकती है.
  • दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए काले रंग के वस्त्र पहनकर जाप करें. जाप रात्रि ९ से ४ के बीच करें



जाप के पहले तथा बाद मे गुरु मन्त्र की १ माला जाप करें

॥ ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥

जाप से पहले हाथ में जल लेकर माता से अपनी समस्या के समाधान की प्रार्थना करें.


  • अपने सामने एक सूखा नारियल रखें.
  • उसपर हनुमान जी को चढने वाला सिन्दूर चढायें.
अब रुद्राक्ष की माला से 11 माला निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें


॥  धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥


अंतिम दिन मंत्र जाप से पहले काला धागा तीन बार अपनी कमर मे लपेट कर बांध दें । उस दिन मंत्र जाप पूरा होने के बाद  काले धागे को कैंची से काट्कर सूखे सिंदूर चढे नारियल के साथ रख लें.

आग जलाकर १०८ बार काली मिर्च में सिन्दूर तथा सरसों का तेल मिलाकर निम्न मन्त्र से आहुति देकर हवन करें :-


॥  धूं धूं धूमावती ठः ठः स्वाहा॥


इसके बाद नारियल को तीन बार सिर से पांव तक उतारा कर लें इसके लिए उसे सिर से पाँव तक छुवा लें तथा प्रार्थना करें कि मेरे समस्त बाधाओं का माता धूमावती निवारण करें.

अब इस नारियल को धागे सहित आग में डाल दें. 

हाथ जोडकर समस्त अपराधों के लिये क्षमा मांगें.

अंत में एक पानी वाला नारियल फ़ोडकर उसका पानी हवन में डाल दें, इस नारियल को उस समय या बाद मे किसी सुनसान जगह या नदी तालाब मे डाल दें । इसे खायें नही.

अब नहा लें तथा जगह हो तो जाप वाली जगह पर ही सो जायें.

आग ठंडी होने के बाद अगले दिन राख को नदी या तालाब में विसर्जित करें ... 

किसी विधवा स्त्री को धन या भोजन जो आपकी इच्छा हो वह दान करें .... 

10 अगस्त 2020

बीज मंत्रात्मक हनुमान साधना



॥ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः ॐ ॥

  • यह तान्त्रिक बीज मन्त्र युक्त मन्त्र है. 
  • जाप प्रारंभ करने से पहले अपनी मनोकामना प्रभु के सामने व्यक्त करें.
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • एक समय भोजन करें.
  • बीच में चाहें तो फ़लाहार कर सकते हैं.
  • दक्षिण दिशा में मुख करके वज्रासन या वीरासन में बैठें.
  • रात्रि ९ से ३ के बीच जाप करें.
  • लाल वस्त्र पहनकर लाल आसन पर बैठ कर  जाप करें.
  • गुड तथा चने का भोग लगायें.
  • यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.

  • ११००० जाप करें
  • ११०० मन्त्रों से हवन करें.
  • साधना पूर्ण होने पर एक छोटे बालक को उसकी पसंद का वस्त्र लेकर दें.

9 अगस्त 2020

विश्वशान्ति हेतु : शान्ति स्तोत्र

हम एक विनाशकारी समय से गुजर रहे हैं. ऐसे में यथाशक्ति शांति मन्त्रों का जाप विश्वशांति के लिये करना लाभदायक होगा ।


विश्वशान्ति हेतु : शान्ति स्तोत्र


नश्यन्तु प्रेत कूष्माण्डा नश्यन्तु दूषका नरा: ।
साधकानां शिवाः सन्तु आम्नाय परिपालिनाम ॥
जयन्ति मातरः सर्वा जयन्ति योगिनी गणाः ।
जयन्ति सिद्ध डाकिन्यो जयन्ति गुरु पन्क्तयः ॥

जयन्ति साधकाः सर्वे विशुद्धाः साधकाश्च ये ।
समयाचार संपन्ना जयन्ति पूजका नराः ॥
नन्दन्तु चाणिमासिद्धा नन्दन्तु कुलपालकाः ।
इन्द्राद्या देवता सर्वे तृप्यन्तु वास्तु देवतः ॥

चन्द्रसूर्यादयो देवास्तृप्यन्तु मम भक्तितः ।
नक्षत्राणि ग्रहाः योगाः करणा राशयश्च ये ॥
सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नश्यन्तु पक्षिणः ।
पशवस्तुरगाश्चैव पर्वताः कन्दरा गुहाः ॥

ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्तिम कुर्वन्तु सर्वदा ।
स्तुता मे विदिताः सन्तु सिद्धास्तिष्ठन्तु पूजकाः ॥
ये ये पापधियस्सुदूषणरतामन्निन्दकाः पूजने ।
वेदाचार विमर्द नेष्ट हृदया भ्रष्टाश्च ये साधकाः ॥

दृष्ट्वा चक्रम्पूर्वमन्दहृदया ये कौलिका दूषकास्ते ।
ते यान्तु विनाशमत्र समये श्री भैरवास्याज्ञया ॥
द्वेष्टारः साधकानां च सदैवाम्नाय दूषकाः ।
डाकिनीनां मुखे यान्तु तृप्तास्तत्पिशितै स्तुताः ॥

ये वा शक्तिपरायणाः शिवपरा ये वैष्णवाः साधवः ।
सर्वस्मादखिले सुराधिपमजं सेव्यं सुरै संततम ॥
शक्तिं विष्णुधिया शिवं च सुधियाश्रीकृष्ण बुद्धया च ये ।
सेवन्ते त्रिपुरं त्वभेदमतयो गच्छन्तु मोक्षन्तु ते ॥

शत्रवो नाशमायान्तु मम निन्दाकराश्च ये ।
द्वेष्टारः साधकानां च ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।
तत्परं पठेत स्तोत्रमानंदस्तोत्रमुत्तमम ।
सर्वसिद्धि भवेत्तस्य सर्वलाभो प्रणाश्यति ॥

इस स्तोत्र का पाठ इस भावना के साथ करें कि हमारी पृथ्वी पर शांति हो.



आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

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8 अगस्त 2020

कनकधारा स्तोत्र और समृद्धि










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साधना में गुरु की आवश्यकता
        मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
        साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता हैजिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
        गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
गुरु के बिना साधना
        स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
        जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
        शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
        गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y      मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखेंढिंढोरा ना पीटेंबेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y      गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y      आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y      बकवास और प्रलाप न करें.
Y      किसी पर गुस्सा न करें.
Y      यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y      ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y      किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y      जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y      बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y      ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y      इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म लगातार गर्भपातसन्तान ना होना अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y      भूतप्रेतजिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशाआसनवस्त्र का महत्व
Y      साधना के लिए नदी तटशिवमंदिरदेविमंदिरएकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y      आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y      अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशाआसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y      इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
माला तथा जप संख्या
Y      रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y      रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती अगर अलग से निर्देश न हो तो सभी साधनाओं में रुद्राक्ष माला से मन्त्र जाप कर सकते हैं .
Y      एक साधना के लिए एक माला का उपयोग करें |
Y      सवा लाख मन्त्र जाप का पुरश्चरण होगा |
Y      गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
सामान्य हवन विधि
Y      जाप पूरा होने के बाद किसी गोल बर्तन, हवनकुंड में हवन अवश्य करें | इससे साधनात्मक रूप से काफी लाभ होता है जो आप स्वयं अनुभव करेंगे |
Y      अग्नि जलाने के लिए माचिस का उपयोग कर सकते हैं | इसके साथ घी में डूबी बत्तियां तथा कपूर रखना चाहिए
Y      जलाते समय “ॐ अग्नये नमः” मन्त्र का कम से काम 7 बार जाप करें | जलना प्रारंभ होने पर इसी मन्त्र में स्वाहा लगाकर घी की 7 आहुतियाँ देनी चाहिए |
Y      बाजार में उपलब्ध हवन सामग्री का उपयोग कर सकते हैं |
Y      हवन में 1250 बार या जितना आपने जाप किया है उसका सौवाँ भाग हवन करें | मन्त्र के पीछे “स्वाहा” लगाकर हवन सामग्री को अग्नि में डालें |
भावना का महत्व
Y      जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y      यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y      नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |
Y      देवी या देवता माता पिता तुल्य होते हैं उनके सामने शिशुवत जाप करेंगे तो किसी प्रकार का दोष नहीं लगेगा |

6 अगस्त 2020

प्रेम प्रदायक श्री कृष्ण



॥ क्लीं कृष्णाय नमः ॥

  1. सवा लाख जाप.
  2. पूर्ण गृहस्थ सुख की प्राप्ति के लिये.
  3. समय तथा दिशा का बंधन नही.

5 अगस्त 2020

जय श्री राम


पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा

श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।



॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥

पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।
108 बार जाप करें |
सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |
ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।
अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।
 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।.

4 अगस्त 2020

अष्ट काली मन्त्र



॥  ऊं अष्टकाल्यै क्रीं श्रीं ह्रीं क्रीं सिद्धिं मे देहि दापय नमः ॥


  1. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जाप करें.
  2. दिगम्बर अवस्था में जाप करें या काले रंग का आसन वस्त्र रखें.
  3. रुद्राक्ष या काली हकीक माला से जाप करें.
  4. पुरश्चरण १,२५,००० मन्त्रों का होगा.
  5. रात्रिकाल में जाप करें.
  6. जप के बाद १२५०० मन्त्र में स्वाहा लगाकर सामान्य हवन सामग्री या कालीमिर्च से हवन  करें.

3 अगस्त 2020

रोग नाशक महाकाली मन्त्रं


॥ ॐ ह्रीं क्रीं मे स्वाहा ॥


  • यह सर्वविध रोगों के प्रशमन में सहायक होता है.
  • इसका प्रभाव भी महामृत्युंजय मंत्र के समान प्रचंड है .
  • यथा शक्ति जाप करें.

2 अगस्त 2020

शिव शक्ति मंत्र

शिव भक्तों के लिए विशेष



॥ ऊं सांब सदाशिवाय नमः ॥

यह मन्त्र सतत [ चलते फ़िरते] जाप करें.


यह शिव तथा शक्ति की कृपा प्रदायक है.

1 अगस्त 2020

अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले




शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
                                महाकाल  प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
                                अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

मेरी अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर विराजमान हैजो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैंजो चौंषठ कलाओं से युक्त हैंजो भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैंऐसी प्रचंड स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं |


उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
                                 रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
                               अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैंअर्थात हर नियमहर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं जो श्मशान की अधिष्टात्री देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |



क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
                               केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
कटि नर कर मेखला धारिणीम,
                               अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

अद्भुत सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत उन्नत स्तन मंडलों से सुशोभित हैंजिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे  सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव अर्चन करता हूं  ||


खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
                               युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
                               अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
देव सेना की महानायिकाजो खड्ग चालन में अति निपुण हैंयुद्ध जिनको अत्यंत प्रिय हैअसुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध भूमि की अधिष्टात्री हैं जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का रक्तपान करने को आतुर रहती हैं ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल रमणी महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |

मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
                                प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
                                अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥


जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैंजिनके मुख पर सदैव अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |

|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||