- यह साधना अमावस्या से प्रारंभ होकर अगली अमावस्या तक की जाती है.
- यह दिगंबर साधना है.
- एकांत कमरे में साधना होगी.
- स्त्री से संपर्क तो दूर की बात है बात भी नहीं करनी है.
- भोजन कम से कम और खुद पकाकर खाना है.
- यथा संभव मौन रहना है.
- क्रोध,विवाद,प्रलाप, न करे.
- गोबर के कंडे जलाकर उसकी राख बना लें.
- स्नान करने के बाद बिना शरीर पोछे साधना कक्ष में प्रवेश करें.
- अब राख को अपने पूरे शरीर में मल लें.
- जमीन पर बैठकर मंत्र जाप करें.
- माला या यन्त्र की आवश्यकता नहीं है.
- जप की संख्या अपने क्षमता के अनुसार तय करें.
- आँख बंद करके दोनों नेत्रों के बीच वाले स्थान पर ध्यान लगाने का प्रयास करते हुए जाप करें.बहुत जोर नहीं लगाना है आराम से सहज ध्यान लगाना है । ज्यादा जोर लगाएंगे तो सिर और आँखों मे दर्द हो सकता है ।
- जाप के बाद भूमि पर सोयें.
- उठने के बाद स्नान कर सकते हैं.
- यदि एकांत उपलब्ध हो तो पूरे साधना काल में दिगंबर रहें. यदि यह संभव न हो तो काले रंग का वस्त्र पहनें.
- साधना के दौरान तेज बुखार, भयानक दृश्य और आवाजें आ सकती हैं. इसलिए कमजोर मन वाले साधक और बच्चे इस साधना को किसी हालत में न करें.
- गुरु दीक्षा ले चुके साधक ही अपने गुरु से अनुमति लेकर इस साधन को करें.
- जाप से पहले कम से कम १ माला गुरु मन्त्र का जाप अनिवार्य है.
एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
Disclaimer
21 नवंबर 2024
अघोरेश्वर महादेव
11 अगस्त 2024
अघोरमंत्र
अघोरमंत्र
ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ हां हीं हूं हैं हौं हः स्वर्गमृत्यु पाताल त्रिभुवन संच्चरित देव ग्रहाणां दानव ग्रहाणां ब्रह्मराक्षस ग्रहाणां सर्ववातग्रहाणां सर्व वेताल ग्रहाणां शाकिनी ग्रहाणां डाकिनी ग्रहाणां सर्व भूत ग्रहाणां कमिनी ग्रहाणां सर्व पिंड ग्रहाणां सर्व दोष ग्रहाणां सर्वपस्मारग्रहाणां हन हन हन भक्षय भक्षय भक्षय विरूपाक्षाय दह दह दह हूं फट् स्वाहा ॥
- अघोरेश्वर महादेव की साधना है | कोई नियम विधि बंधन नहीं | उन्मुक्त होने का प्रारंभ .....
- क्रोध और काम दोनों से बचें .
- यदि शरीर में ज्यादा गर्मी का आभास हो तो रात्रिकाल में एक कप दूध में आधा चम्मच घी डालकर पियें .
19 जुलाई 2024
भगवान् पशुपतिनाथ की साधना
पशुओं के अधिपति - पशुपति
पाशों के अधिपति - पशुपति
संसार रुपी वन के सर्वविध पशुओं के एकमात्र अधिपति - पशुपति
भगवान् पशुपतिनाथ की साधना एक रहस्यमय साधना है यह साधना साधक को शिवमय बना देती है- स्वयं को पशुवत मानकर भगवान् शिव को अपना अधिपति मानते हुए यह साधना की जाती है |
- इसके रहस्य इस मन्त्र को जपते जपते अपने आप मिलेंगे या फिर कोई सक्षम गुरु आपको प्रदान करेगा |
- कोई समय/दिशा/संख्या/आहार/विहार/विचार का बंधन नहीं है |
11 अक्टूबर 2023
20 जुलाई 2023
रुद्राष्टकम
रुद्राष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।
त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥
कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।
न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।
जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥
रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥
आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं
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19 जुलाई 2023
पाशुपतास्त्र स्तोत्र
पाशुपतास्त्र स्तोत्र
श्रावण मास मे इस स्तोत्र का नियमित पाठ कर सकते है ..
इसका पाठ एक बार से ज्यादा न करें क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जा उत्पन्न करने वाला स्तोत्र है ।
विनियोग :-
हाथ मे पानी लेकर विनियोग पढे और जल जमीन पर छोड़ें ....
ॐ अस्य श्री पाशुपतास्त्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छन्द: श्रीं बीजं हुं शक्ति: श्री पशुपतीनाथ देवता मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य सर्वग्रह बाधा शत्रू बाधा रोग बाधा अनिष्ट बाधा निवारणार्थं मम सर्व कार्य सिद्धर्थे [यहाँ अपनी इच्छा बोलें ] जपे विनियोग: ॥
कर न्यास :-
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
श्ल तर्जनीभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
ईं मध्यमाभ्यां नम: (अंगूठा और मध्यमा यानि बीच वाली उंगली को आपस मे मिलाएं )
प अनामिकाभ्यां नम: (अंगूठा और अनामिका यानि तीसरी उंगली को आपस मे मिलाएं )
शु: कनिष्ठिकाभ्यां नम: (अंगूठा और कनिष्ठिका यानि छोटी उंगली को आपस मे मिलाएं )
हुं फट करतल करपृष्ठाभ्यां नम: (दोनों हाथों को आपस मे रगड़ दें )
हृदयादि न्यास :-
अपने हाथ से संबंधित अंगों को स्पर्श कर लें ।
ॐ हृदयाय नम:
श्ल शिरसे स्वाहा
ईं शिखायै वषट
प कवचाय हुं
शु: नेत्रत्रयाय वौषट
हुं फट अस्त्राय फट
ध्यान
मध्यान्ह अर्कसमप्रभं शशिधरं भीम अट्टहासोज्वलं
त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रू स्फुरन्मूर्धजम
हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुदगरमसिं शक्तिं दधानं विभुं
दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररुपं स्मरेत !!
अर्थ :- जो मध्यान्ह कालीन अर्थात दोपहर के सूर्य के समान कांति से युक्त है , चंद्रमा को धारण किये हुये हैं । जिनका भयंकर अट्टहास अत्यंत प्रचंड है । उनके तीन नेत्र है तथा शरीर मे सर्पों का आभूषण सुशोभित हो रहा है ।
उनके ललाट मे स्थित तीसरे नेत्र से निकलती अग्नि की शिखा से श्मश्रू तथा केश दैदिप्यमान हो रहे है ।
जो अपने कर कमलो मे त्रिशूल , मुदगर , तलवार , तथा शक्ति धारण किये हुये है ऐसे दंष्ट्रा से भयानक चार मुख वाले दिव्य स्वरुपधारी सर्वव्यापक महादेव का मैं दिव्यास्त्र के रूप मे स्मरण करता हूँ ।
अब नीचे दिये हुये स्तोत्र का पाठ करे ..
हर बार फट की आवाज के साथ आप शिवलिंग पर बेलपत्र पुष्प या चावल समर्पित कर सकते हैं ।
यदि किसी सामग्री की व्यवस्था ना हो पाए तो हर बार फट की आवाज के साथ एक ताली बजाएं ।
पाशुपतास्त्र
ॐ नमो भगवते महापाशुपताय अतुलबलवीर्य पराक्रमाय त्रिपंचनयनाय नानारुपाय नाना प्रहरणोद्यताय सर्वांगरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशानवेतालप्रियाय सर्वविघ्न निकृंतनरताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकंपिने असंख्यवक्त्र-भुजपादाय तस्मिन सिद्धाय वेतालवित्रासने शाकिनीक्षोभजनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय सूर्यसोमाग्निनेत्राय विष्णुकवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदंडवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलजिव्हाय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षयकारिणे !
ॐ कृष्णपिंगलाय फट !
ॐ हूंकारास्त्राय फट !
ॐ वज्रहस्ताय फट !
ॐ शक्तये फट !
ॐ दंडाय फट !
ॐ यमाय फट !
ॐ खडगाय फट !
ॐ निऋताय फट !
ॐ वरुणाय फट !
ॐ वज्राय फट !
ॐ पाशाय फट !
ॐ ध्वजाय फट !
ॐ अंकुशाय फट !
ॐ गदायै फट !
ॐ कुबेराय फट !
ॐ त्रिशूलाय फट !
ॐ मुदगराय फट !
ॐ चक्राय फट !
ॐ पद्माय फट !
ॐ नागास्त्राय फट !
ॐ ईशानाय फट !
ॐ खेटकास्त्राय फट !
ॐ मुंडाय फट !
ॐ मुंडास्त्राय फट !
ॐ कंकालास्त्राय फट !
ॐ पिच्छिकास्त्राय फट !
ॐ क्षुरिकास्त्राय फट !
ॐ ब्रह्मास्त्राय फट !
ॐ शक्त्यास्त्राय फट !
ॐ गणास्त्राय फट !
ॐ सिद्धास्त्राय फट !
ॐ पिलिपिच्छास्त्राय फट !
ॐ गंधर्वास्त्राय फट !
ॐ पूर्वास्त्राय फट !
ॐ दक्षिणास्त्राय फट !
ॐ वामास्त्राय फट !
ॐ पश्चिमास्त्राय फट !
ॐ मंत्रास्त्राय फट !
ॐ शाकिनि अस्त्राय फट !
ॐ योगिनी अस्त्राय फट !
ॐ दंडास्त्राय फट !
ॐ महादंडास्त्राय फट !
ॐ नमो अस्त्राय फट !
ॐ शिवास्त्राय फट !
ॐ ईशानास्त्राय फट !
ॐ पुरुषास्त्राय फट !
ॐ अघोरास्त्राय फट !
ॐ सद्योजातास्त्राय फट !
ॐ हृदयास्त्राय फट !
ॐ महास्त्राय फट !
ॐ गरुडास्त्राय फट !
ॐ राक्षसास्त्राय फट !
ॐ दानवास्त्राय फट !
ॐ क्षौं नरसिंहास्त्राय फट !
ॐ त्वष्ट्र अस्त्राय फट !
ॐ सर्वास्त्राय फट !
ॐ न: फट !
ॐ व: फट !
ॐ प: फट !
ॐ फ: फट !
ॐ म: फट !
ॐ श्री: फट !
ॐ पें फट !
ॐ भू: फट !
ॐ भुव: फट !
ॐ स्व: फट !
ॐ मह: फट !
ॐ जन: फट !
ॐ तप: फट !
ॐ सत्यं फट !
ॐ सर्व लोक फट !
ॐ सर्व पाताल फट !
ॐ सर्व तत्त्व फट !
ॐ सर्व प्राण फट !
ॐ सर्व नाडी फट !
ॐ सर्व कारण फट !
ॐ सर्व देव फट !
ॐ ह्रीम फट !
ॐ श्रीं फट !
ॐ ह्रूं फट !
ॐ स्त्रूं फट !
ॐ स्वां फट !
ॐ लां फट !
ॐ वैराग्यस्त्राय फट !
ॐ मायास्त्राय फट !
ॐ कामास्त्राय फट !
ॐ क्षेत्रपालास्त्राय फट !
ॐ हुंकारास्त्राय फट !
ॐ भास्करास्त्राय फट !
ॐ चंद्रास्त्राय फट !
ॐ विघ्नेश्वरास्त्राय फट !
ॐ गौ: गां फट !
ॐ ख्रों ख्रौं फट !
ॐ हौं हों फट !
ॐ भ्रामय भ्रामय फट !
ॐ संतापय संतापय फट !
ॐ छादय छादय फट !
ॐ उन्मूलय उन्मूलय फट !
ॐ त्रासय त्रासय फट !
ॐ संजीवय संजीवय फट !
ॐ विद्रावय विद्रावय फट !
ॐ सर्वदुरितं नाशय नाशय फट !
ॐ श्लीं पशुं हुं फट स्वाहा !
अंत मे एक नींबू काटकर शिवलिंग पर निचोड़ कर अर्पित कर दें ।
दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें ।
17 जुलाई 2023
अघोरेश्वर महादेव की साधना
अघोरमंत्र
ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ हां हीं हूं हैं हौं हः स्वर्गमृत्यु पाताल त्रिभुवन संच्चरित देव ग्रहाणां दानव ग्रहाणां ब्रह्मराक्षस ग्रहाणां सर्ववातग्रहाणां सर्व वेताल ग्रहाणां शाकिनी ग्रहाणां डाकिनी ग्रहाणां सर्व भूत ग्रहाणां कमिनी ग्रहाणां सर्व पिंड ग्रहाणां सर्व दोष ग्रहाणां सर्वपस्मारग्रहाणां हन हन हन भक्षय भक्षय भक्षय विरूपाक्षाय दह दह दह हूं फट् स्वाहा ॥
- अघोरेश्वर महादेव की साधना है | कोई नियम विधि बंधन नहीं | उन्मुक्त होने का प्रारंभ .....
- क्रोध और काम दोनों से बचें .
- यदि शरीर में ज्यादा गर्मी का आभास हो तो रात्रिकाल में एक कप दूध में आधा चम्मच घी डालकर पियें .
28 जून 2023
आदि गुरु भगवान शिव की साधना
आदि गुरु भगवान शिव की साधना
दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है ।
यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इसमे वे गुरु स्वरूप मे ऋषियों को ज्ञानामृत बांटते हुए परिलक्षित हो रहे हैं ।.
इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।
॥ऊं ह्रीं दक्षिणामूर्तये नमः ॥
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
ब्रह्ममुहूर्त यानि सुबह ४ से ६ के बीच जाप करें.
सफेद वस्त्र , आसन , होगा.
दिशा इशान( उत्तर और पूर्व के बीच ) की तरफ देखकर करें.
भस्म से त्रिपुंड लगाए .
रुद्राक्ष की माला पहने .
रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
.
25 मई 2023
पंचमुखी रुद्राक्ष से बनाएँ रक्षा कवच
- भस्म से माथे पर तीन लाइन वाला तिलक त्रिपुंड बनायें.
- हाथ में पानी लेकर भगवान शिव से रक्षा की प्रार्थना करें , जल छोड़ दें.
- एक माला गुरुमंत्र की करें . अगर गुरु न बनाया हो तो भगवान् शिव को गुरु मानकर "ॐ नमः शिवाय" मन्त्र का जाप कर लें.
- यदि अपने लिए पाठ नहीं कर रहे हैं तो # वाले जगह पर उसका नाम लें जिसके लिए पाठ कर रहे हैं |
- रोगमुक्ति, बधामुक्ति, मनोकामना के लिए ११ पाठ ११ दिनों तक करें . अनुकूलता प्राप्त होगी.
- रक्षा कवच बनाने के लिए एक पंचमुखी रुद्राक्ष ले लें. उसको दूध,दही,घी,शक्कर,शहद,से स्नान करा लें |अब इसे गंगाजल से स्नान कराकर बेलपत्र चढ़ाएं | ५१ पाठ शिवरात्रि/होली/अष्टमी/अमावस्या/नवरात्री/दीपावली/दशहरा/ग्रहण कि रात्रि करें पाठ के बाद इसे धारण कर लें |
17 मई 2023
अष्टकाली मंत्र
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जाप करें.
- दिगम्बर अवस्था में जाप करें या काले रंग का आसन वस्त्र रखें.
- रुद्राक्ष या काली हकीक माला से जाप करें.
- पुरश्चरण १,२५,००० मन्त्रों का होगा.
- रात्रिकाल में जाप करें.जप काल मे किसी स्त्री का अपमान न करें
- दशमी के दिन काली मिर्च/ तिल/दशांग/घी/ चमेली के तेल से दशांश हवन करें |
- हवन होने के बाद किसी बालिका को यथाशक्ति दान दें |
7 मई 2023
कामाख्या शक्ति पीठ का दुर्लभ प्रसाद
असम के कामाख्या शक्तीपीठ को तंत्र साधनाओं का मूल माना जाता है । ऐसा माना जाता है की यहाँ देवी का योनि भाग गिरा था और इसे योनि पीठ या मातृ पीठ की मान्यता है ।
यहाँ का प्रमुख पर्व है अंबुवाची मेला जब प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।
चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं।
https://www.amarujala.com/spirituality/religion/kamakhya-mandir-ambubachi-mela
यदि आपको इस वस्त्र का एक धागा भी मिल जाये तो उसके निम्न लाभ माने जाते हैं :-
इसे ताबीज मे भरकर पहन लें तंत्र बाधा यानि किए कराये का असर नहीं होगा।
यह सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
इसे धरण करने से आकर्षण बढ़ता है।
आपसी प्रेम मे वृद्धि तथा गृह क्लेश मे कमी आती है ।
इसे साथ रखकर किसी भी कार्य या यात्रा मे जाएँ तो सफलता की संभावना बढ़ जाएगी ।
दुकान के गल्ले मे लाल कपड़े मे बांध कर रखें तो व्यापार मे अनुकूलता मिलेगी ।
19 मार्च 2023
अघोरमंत्र
अघोरमंत्र
ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ हां हीं हूं हैं हौं हः स्वर्गमृत्यु पाताल त्रिभुवन संच्चरित देव ग्रहाणां दानव ग्रहाणां ब्रह्मराक्षस ग्रहाणां सर्ववातग्रहाणां सर्व वेताल ग्रहाणां शाकिनी ग्रहाणां डाकिनी ग्रहाणां सर्व भूत ग्रहाणां कमिनी ग्रहाणां सर्व पिंड ग्रहाणां सर्व दोष ग्रहाणां सर्वपस्मारग्रहाणां हन हन हन भक्षय भक्षय भक्षय विरूपाक्षाय दह दह दह हूं फट् स्वाहा ॥
- अघोरेश्वर महादेव की साधना है | कोई नियम विधि बंधन नहीं | उन्मुक्त होने का प्रारंभ .....
- क्रोध और काम दोनों से बचें .
- यदि शरीर में ज्यादा गर्मी का आभास हो तो रात्रिकाल में एक कप दूध में आधा चम्मच घी डालकर पियें .
16 मार्च 2022
महाभगवती कामकलाकाली स्तोत्र साधना
महाभगवती कामकलाकाली स्तोत्र साधना