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20 सितंबर 2024

गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र

 गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र

यह स्तोत्र सर्वविध संकटों से मुक्ति की कामना के साथ भगवान की स्तुति में पढ़ा जा सकता है ।
पितृपक्ष में नित्य आप इस स्तोत्र को अपने पूर्वजों की शांति तथा मुक्ति के लिए पढ़ सकते हैं ।
सामान्यतः इसका पाठ सूर्योदय से पूर्व किया जाना श्रेष्ठ माना जाता है लेकिन आप चाहे तो इसे वीडियो देखकर बाद भी पढ़ सकते हैं ।
यदि आपको संस्कृत पढ़ने में दिक्कत हो तो आप उसका हिंदी अनुवाद भी पढ़ सकते हैं । वैसे संस्कृत का पाठ अगर आप दो-चार बार कर लेंगे तो आपको संस्कृत का पाठ भी आसान लगने लगेगा । इसके लिए आप प्रतिलिपि एफ एम पर जाकर मेरे चेनल मंत्र उच्चारण से इसका उच्चारण सुन सकते हैं ।. 
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र की एक श्रेष्ठ विद्वान द्वारा हिंदी में लिखी हुई प्रतिकृति भी है जिसे अगले भाग में प्रकाशित करूंगा आप चाहे तो उसका पाठ भी कर सकते हैं यह सभी लगभग समान फलदाई है ।

श्री शुक उवाच –
श्री शुकदेव जी ने कहा

एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि ।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम ॥१॥

बुद्धि के द्वारा पिछले अध्याय में वर्णित रीति से निश्चय करके तथा मन को हृदय देश में स्थिर करके वह गजराज अपने पूर्व जन्म में सीखकर कण्ठस्थ किये हुए सर्वश्रेष्ठ एवं बार बार दोहराने योग्य निम्नलिखित स्तोत्र का मन ही मन पाठ करने लगा ॥१॥

गजेन्द्र उवाच
गजराज ने कहा –

ऊं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम ।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥१॥

जिनकी चेतना को पाकर ये जड शरीर और मन आदि भी चेतन की भांति व्यवहार करने लगते हैं, ‘ओम’ शब्द के द्वारा लक्षित तथा सम्पूर्ण शरीर में प्रकृति एवं पुरुष रूप से प्रविष्ट हुए उन सर्व समर्थ परमेश्वर को मन ही मन प्रणाम है ॥२॥

यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं ।
योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम ॥३॥

वह, जिनके सहारे यह विश्व टिका है, जिनसे यह निकला है , जिन्होने इसकी रचना की है और जो स्वयं ही इसके रूप में प्रकट हैं – फिर भी जो इस दृश्य जगत से एवं इसकी कारणभूता प्रकृति से सर्वथा परे (विलक्षण ) एवं श्रेष्ठ हैं – उन स्वयंभू अर्थात अपने आप – बिना किसी कारण के – बने हुए भगवान की मैं शरण लेता हूं ॥३॥

यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं क्वचिद्विभातं क्व च तत्तिरोहितम ।
अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षते स आत्म मूलोsवत् मां परात्परः ॥४॥


वे प्रभु अपने संकल्प शक्ति के द्वारा अपने ही स्वरूप में रचे हुए हैं । सृष्टिकाल में प्रकट और प्रलयकाल में अप्रकट रहने वाले तथा इस शास्त्र प्रसिद्ध कार्य कारण रूप जगत को जो अकुण्ठित दृष्टि होने के कारण साक्षी रूप से देखते रहते हैं अर्थात उनसे लिप्त नही होते, वे चक्षु आदि प्रकाशकों के भी परम प्रकाशक अर्थात जो नेत्रों को देखने की शक्ति प्रदान करते हैं ऐसे प्रभु मेरी रक्षा करें ॥४॥

कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशो लोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु ।
तमस्तदाsसीद गहनं गभीरं यस्तस्य पारेsभिविराजते विभुः ॥५॥


(जहां s लिखा है वहाँ मात्रा को थोड़ा लंबा खींचकर उच्चरित करना है दाsसीद का उच्चारण होगा दाआसीद )
प्रलयकाल मे समय के प्रवाह से सम्पूर्ण लोकों के एवं ब्रह्मादि लोकपालों के पंचभूत में प्रवेश कर जाने पर तथा पंचभूतों से लेकर महत्वपर्यंत सम्पूर्ण कारणों के उनकी परमकरुणारूप प्रकृति में लीन हो जाने पर उस समय दुर्ज्ञेय तथा अपार अंधकाररूप प्रकृति ही बच रही थी। उस अंधकार मे भी उससे परे अपने परम धाम में जो सर्वव्यापक भगवान सर्वत्र प्रकाशित रहते हैं ऐसे मेरे प्रभु मेरी रक्षा करें ॥५॥

न यस्य देवा ऋषयः पदं विदुर्जन्तुः पुनः कोsर्हति गन्तुमीरितुम ।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतोदुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ॥६॥

नाटक मे भिन्न भिन्न रूपों में नाट्य करने वाले अभिनेता के वास्तविक स्वरूप को जिस प्रकार साधारण दर्शक नही जान पाते , उसी प्रकार सत्त्व प्रधान देवता तथा ऋषि भी उन दिव्य प्रभु के स्वरूप को नही जानते , फिर दूसरा साधारण जीव कैसे उसे जान अथवा वर्णन कर सकता है – वे दुर्लभ चरित्र वाले प्रभु मेरी रक्षा करें ॥६॥

दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलम विमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः ।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने भूतत्मभूता सुहृदः स मे गतिः ॥७॥

वे प्रभु जो आसक्ति से सर्वदा छूटे हुए , सम्पूर्ण प्राणियों में आत्मबुद्धि रखने वाले , सबके अकारण हितकारी है । अत्यंत सरल स्वभाव वाले मुनिगण जिनके परम मंगलमय स्वरूप का साक्षात्कार करने की इच्छा से वन में रह कर अखण्ड ब्रह्मचार्य आदि अलौकिक व्रतों का पालन करते हैं , वे प्रभु ही मेरी गति हैं ॥७॥

न विद्यते यस्य न जन्म कर्म वा न नाम रूपे गुणदोष एव वा ।
तथापि लोकाप्ययाम्भवाय यः स्वमायया तान्युलाकमृच्छति ॥८॥

जो जन्म मृत्यु से परे हैं । जिनका हमारी तरह कर्मवश ना तो जन्म होता है और न जिनके द्वारा अहंकार प्रेरित कर्म ही होते हैं, जिनके निर्गुण स्वरूप का न तो कोई नाम है न रूप ही, फिर भी समयानुसार जगत की सृष्टि एवं प्रलय (संहार) के लिये स्वेच्छा से जन्म आदि को स्वीकार करते हैं ॥८॥

तस्मै नमः परेशाय ब्राह्मणेsनन्तशक्तये ।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्य कर्मणे ॥९॥

उन असीमित शक्ति से संपन्न परब्रह्म परमेश्वर को नमस्कार है । जो आकाररहित भी हैं और अनेको आकारवाले भी हैं ऐसे अद्भुत उन भगवान को नमस्कार है ॥९॥

नम: आत्म प्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने ।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ॥१०॥

जिनके कृपा कटाक्ष से आत्मा प्रकाश प्राप्त होता है और जो सबके साक्षी हैं ऐसे परमात्मा को नमस्कार है । उन प्रभु को जो मन, वाणी एवं चित्तवृत्तियों से भी सर्वथा परे हैं, उनको मेरा नमस्कार है ॥१०॥

सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता ।
नमः केवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ॥११॥

विवेकी पुरुष के द्वारा जो सात्विक आचार विचार और वह संयुक्त है और वैसा ही आचरण करके उस परम मोक्ष सुख की अनुभूति को प्राप्त कर पाता है उसी अनुभूति के साक्षात रूप उस प्रभु को नमस्कार है ॥११॥

नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुण धर्मिणे ।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ॥१२॥

सत्त्वगुण को स्वीकार करके शान्त , रजोगुण को स्वीकार करके घोर एवं तमोगुण को स्वीकार करके मूढ से प्रतीत होने वाले, तीनों अवस्थाओं में किसी भी प्रकार के भेद से रहित, सदा समभाव से स्थित ज्ञान के पूंजीभूत स्वरूप प्रभु को नमस्कार है ॥१२॥

क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे ।
पुरुषायात्ममूलय मूलप्रकृतये नमः ॥१३॥

क्षेत्र अर्थात इस संपूर्ण ब्रह्मांड में स्थित चराचर विंडो के स्वामी और उनकी गतिविधियों को साक्षी रूप से देखते रहने वाले मूल पुरुष स्वरूप और मूल प्रकृति स्वरूप प्रभु को मैं नमस्कार करता हूं ॥१३॥

सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे ।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासय ते नमः ॥१४॥

सम्पूर्ण इन्द्रियों एवं उनके विषयों के ज्ञाता, समस्त प्रतीतियों के कारण रूप, सम्पूर्ण जड-प्रपंच एवं सम्पूर्ण विषयों में विराजमान रहने वाले और अपना आभास देने वाले आपको नमस्कार है ॥१४॥

नमो नमस्ते खिल कारणाय निष्कारणायद्भुत कारणाय ।
सर्वागमान्मायमहार्णवाय नमोपवर्गाय परायणाय ॥१५॥

वे प्रभु जो सबके कारण हैं किंतु स्वयं कारण रहित हैं । जो कारण होने पर भी परिणाम रहित होने के कारण, अन्य कारणों से विलक्षण हैं इसलिए आपको बारम्बार नमस्कार है । सम्पूर्ण आगमों, आम्नायो के परम तात्पर्य भगवान को नमस्कार है ॥१५॥ ॥

गुणारणिच्छन्न चिदूष्मपाय तत्क्षोभविस्फूर्जित मान्साय ।
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ॥१६॥

जो त्रिगुणरूप काष्ठों में छिपे हुए ज्ञानरूप अग्नि हैं, उक्त गुणों में हलचल होने पर जिनके मन में सृष्टि रचने की बाह्य वृत्ति जागृत हो उठती है तथा आत्म तत्त्व की भावना के द्वारा ज्ञानी महात्माओं में जो स्वयं प्रकाशित हो रहे हैं उन प्रभु को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१।६॥

मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोsलयाय ।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते ॥१७॥

मुझ जैसे शरणागत पशुतुल्य (अविद्याग्रस्त) जीव जो विभिन्न पाशों या बंधनों मे फंसे हुए हैं उन्हे सदा के लिये पूर्णरूप से काट देने वाले अत्याधिक दयालू नित्यमुक्त प्रभु को नमस्कार है । अपने अंश से संपूर्ण जीवों के मन में अन्तर्यामी रूप से प्रकट रहने वाले भगवन आप को नमस्कार है ॥१७॥

आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तैर्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय ।

मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभावितायज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय ॥१८॥

शरीर, पुत्र, मित्र, घर, संपंत्ती एवं कुटुंबियों के मोह मे फंसे लोगों के द्वारा कठिनता से प्राप्त होने वाले तथा इन प्रपंचों से मुक्त पुरुषों के द्वारा अपने हृदय में निरन्तर चिन्तित ज्ञानस्वरूप , सर्वसमर्थ भगवान को नमस्कार है ॥१८॥

यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति ।
किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं करोतु मेदभ्रदयो विमोक्षणम ॥१९॥

जिन्हे धर्म, काम भोग, धन तथा मोक्ष की कामना से भजने वाले लोग अपनी मनचाही गति पा लेते हैं अपितु जो उन्हे अन्य प्रकार के भोग एवं अविनाशी देह भी देते हैं वे अतिशय दयालु प्रभु मुझे इस विपत्ती से सदा के लिये उबार लें ॥१९॥

एकान्तिनो यस्य न कंचनार्थ वांछन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः ।
अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलं गायन्त आनन्न्द समुद्रमग्नाः ॥२०॥

जिनके अनन्य भक्त -जो वस्तुतः एकमात्र उन भगवान के ही शरण है-धर्म , अर्थ आदि किसी भी पदार्थ को नही चाह्ते, अपितु उन्ही के परम मंगलमय एवं अत्यन्त विलक्षण चरित्रों का गान करते हुए आनन्द के समुद्र में गोते लगाते रहते हैं ॥२०॥

तमक्षरं ब्रह्म परं परेशमव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम ।
अतीन्द्रियं सूक्षममिवातिदूरमनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे ॥२१॥

उन अविनाशी, सर्वव्यापक, सर्वश्रेष्ठ, ब्रह्मादि के भी नियामक, अभक्तों के लिये प्रकट होने पर भी भक्तियोग द्वारा प्राप्त करने योग्य, अत्यन्त निकट होने पर भी माया के आवरण के कारण अत्यन्त दूर प्रतीत होने वाले , इन्द्रियों के द्वारा अगम्य तथा अत्यन्त दुर्विज्ञेय, अन्तरहित किंतु सबके आदिकारण एवं सब ओर से परिपूर्ण उन भगवान की मैं स्तुति करता हूँ ॥२१॥

यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः ।
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः ॥२२॥

इस प्रकृति में दिखाई देने वाले ब्रह्मादि समस्त देवता, चारों वेद तथा संपूर्ण चराचर जीव नाम और आकृति भेद से जिनके अत्यन्त क्षुद्र अंश के द्वारा रचे गये हैं ॥२२॥

यथार्चिषोग्नेः सवितुर्गभस्तयो निर्यान्ति संयान्त्यसकृत स्वरोचिषः ।
तथा यतोयं गुणसंप्रवाहोबुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः ॥२३॥

जिस प्रकार प्रज्ज्वलित अग्नि से लपटें तथा सूर्य से किरणें बार बार निकलती है और पुनः अपने कारण मे लीन हो जाती है उसी प्रकार बुद्धि, मन, इन्द्रियाँ और नाना योनियों के शरीर – यह गुणमय प्रपंच उसी परमात्मा से प्रकट होता है और पुनः उन्ही में लीन हो जाता है ॥२३॥

स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंग न स्त्री न षण्डो न पुमान न जन्तुः ।
नायं गुणः कर्म न सन्न चासन निषेधशेषो जयतादशेषः ॥२४॥

वे भगवान न तो देवता हैं न असुर, न मनुष्य हैं न तिर्यक (मनुष्य से नीची – पशु , पक्षी आदि किसी) योनि के प्राणी है । न वे स्त्री हैं न पुरुष और न नपुंसक ही हैं । न वे ऐसे कोई जीव हैं, जिनका इन तीनों ही श्रेणियों में समावेश हो सके । न वे गुण हैं न कर्म, न कार्य हैं न तो कारण ही । सबका निषेध हो जाने पर जो कुछ बच रहता है, वही उनका स्वरूप है और वे ही सब कुछ है । ॥२४॥

जिजीविषे नाहमिहामुया किमन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या ।
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम ॥२५॥

मैं इस ग्राह के चंगुल से छूट कर जीवित नही रहना चाहता; क्योंकि भीतर और बाहर – सब ओर से अज्ञान से ढके हुए इस हाथी के शरीर से मुझे क्या लेना है । मैं तो आत्मा के प्रकाश को ढक देने वाले उस अज्ञान की निवृत्ति चाहता हूँ, जिसका कालक्रम से अपने आप नाश नही होता , अपितु भगवान की दया से अथवा ज्ञान के उदय से होता है ॥२५॥

सोsहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम ।
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोस्मि परं पदम ॥२६॥

इस प्रकार मोक्ष का अभिलाषी मैं विश्व के रचियता, स्वयं विश्व के रूप में प्रकट तथा विश्व से सर्वथा परे, विश्व को खिलौना बनाकर खेलने वाले, विश्व में आत्मरूप से व्याप्त , अजन्मा, सर्वव्यापक एवं प्राप्त्य वस्तुओं में सर्वश्रेष्ठ श्री भगवान को प्रणाम करता हुआ उनकी शरण में हूँ ॥२६॥

योगरन्धित कर्माणो हृदि योगविभाविते ।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोsस्म्यहम ॥२७॥

जिन्होने भगवद्भक्ति रूप योग के द्वारा कर्मों को जला डाला है, वे योगी लोग उसी योग के द्वारा शुद्ध किये हुए अपने हृदय कमल में जिन्हे प्रकट हुआ देखते हैं उन योगेश्वर भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२७॥

नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेगशक्तित्रयायाखिलधीगुणाय ।
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तयेकदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने ॥२८॥

जिनकी त्रिगुणात्मक (सत्त्व-रज-तमरूप ) शक्तियों का रागरूप वेग असह्य है, जो सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयरूप में प्रतीत हो रहे हैं, अर्थात जिनकी इन्द्रियाँ विषयों के भोग में ही रची पची रहती हैं-ऐसे लोगों को जिस प्रभु का मार्ग भी मिलना असंभव है, उन शरणागतरक्षक एवं अपारशक्तिशाली आपको बार बार नमस्कार है ॥२८॥

नायं वेद स्वमात्मानं यच्छ्क्त्याहंधिया हतम ।
तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोsस्म्यहम ॥२९॥

जिनकी अविद्या नामक शक्ति के कार्यरूप अहंकार से ढंके हुए अपने स्वरूप को यह जीव जान नही पाता, उन अपार महिमा वाले भगवान की मैं शरण मे आया हूँ ॥२९॥

श्री शुकदेव उवाच –

श्री शुकदेवजी ने कहा –

एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं ब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः ।
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वाततत्राखिलामर्मयो हरिराविरासीत ॥३०॥

इस प्रकार से भगवान के भेदरहित निराकार स्वरूप का वर्णन करने वाले उस गजराज के समीप ब्रह्मा आदि कोई भी देवता नही आये, क्योंकि वे भिन्न भिन्न प्रकार के विशिष्ट विग्रहों को ही अपना स्वरूप मानते हैं, तब सक्षात श्री हरि- जो सबके आत्मा होने के कारण सर्वदेवस्वरूप हैं-वहाँ प्रकट हो गये ॥३०॥

तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासः स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भि : ।
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमान श्चक्रायुधोsभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः ॥३१॥

उपर्युक्त गजराज को उस प्रकार दुःखी देख कर तथा उसके द्वारा पढी हुई सुंदर स्तुति को सुन कर सुदर्शनचक्रधारी जगदाधार भगवान इच्छानुरूप वेग वाले गरुड जी की पीठ पर सवार होकर स्तवन करते हुए देवताओं के साथ तत्काल उस स्थान पर पहुँच गये जहाँ वह हाथी था ।

सोsन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो दृष्ट्वा गरुत्मति हरि ख उपात्तचक्रम ।

उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छा न्नारायण्खिलगुरो भगवान नम्स्ते ॥३२॥

सरोवर के भीतर महाबली ग्राह के द्वारा पकडे जाकर दुःखी हुए उस हाथी ने आकाश में गरुड की पीठ पर सवार चक्र उठाये हुए भगवान श्री हरि को देखकर अपनी सूँड को -जिसमें उसने (पूजा के लिये) कमल का एक फूल ले रक्खा था-ऊपर उठाया और बडी ही कठिनाई से “सर्वपूज्य भगवान नारायण आपको प्रणाम है” यह वाक्य कहा ॥३२॥

तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार ।
ग्राहाद विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं सम्पश्यतां हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम ॥३३॥

उसे पीडित देख कर अजन्मा श्री हरि एकाएक गरुड को छोडकर नीचे झील पर उतर आये । वे दया से प्रेरित हो ग्राहसहित उस गजराज को तत्काल झील से बाहर निकाल लाये और देवताओं के देखते देखते चक्र से मुँह चीर कर उसके चंगुल से हाथी को उबार लिया ॥३३॥




सरल पितृ पूजन

 पितृ पक्ष चल रहा है. सभी लोग विधि विधान से पूजन नहीं कर पते हैं .उनके लिए एक सरल विधि:-

|| ॐ सर्व पित्रेभ्यो नमः ||

  • आपके घर में जो भोजन बना हो उसे एक थाली में सजा ले.
  • उसको पूजा स्थान में अपने सामने रखकर इस मंत्र का १०८  बार जाप करें.
  • हाथ में पानी लेकर कहें " मेरे सभी ज्ञात अज्ञात पितरों की शांति हो " इसके बाद जल जमीन पर छोड़ दे.
  • अब उस थाली के भोजन को किसी गाय को या किसी गरीब भूखे को खिला दें. 


अभूतपूर्व पितृ दोष शांति प्रयोग, सदगुरुदेव डॉ Narayan Dutt Shrimali Ji

 

पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा

    पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा




श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।

॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥


पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।

108 बार जाप करें |

सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |

ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।

अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।

 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।

पितृ स्तोत्र (गरुड पुराण)

 पितृ स्तोत्र (गरुड पुराण)

अमूर्त्तानां च मूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम !

इंद्रादीनां च नेतारो दक्षमारी चयोस्तथा !!

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान नमस्यामि कामदान !

मन्वादीनां मुनींद्राणां सूर्य्यांचंद्रमसो तथा !!

तान नमस्यामि अहं सर्व्वान पितरश्च अर्णवेषु ये !

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वायु अग्नि नभ तथा !!

द्यावा पृथ्वीव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलि: !

देवर्षिणां ग्रहाणां च सर्वलोकनमस्कृतान !!

अभयस्य सदा दातृन नमस्येहं कृतांजलि:

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ! !

स्वयंभुवे नमस्यामि ब्रम्हणे योग चक्षुषे !

सोमाधारान पितृगणान योगमूर्तिधरांस्तथा !!

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम !

अग्निरुपां तथैव अन्यान नमस्यामि पितृं अहं !!

अग्निसोममयं विश्वं यत एदतशेषत:

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्य्याग्निमूर्तय:!!

जगत्स्वरुपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिण:

तेभ्यो अखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानसा: !

नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदंतु स्वधाभुज: !!

आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

 

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अगर आपको संस्कृत में उच्चारण करने में दिक्कत हो तो आप इसका भावार्थ हिंदी में भी उच्चरित कर सकते हैं जो कि निम्नानुसार है


जो अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।


इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नायक हैं, सभी कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।


मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी प्रणाम करता हूँ।


नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो प्रमुख हैं, उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।


देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता, पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।


प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा प्रणाम करता हूँ।


सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।


चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। 

सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।


जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। 

समस्त पितरो को मैं बारम्बार नमस्कार करता हुआ उनकी कृपा का आकांक्षी हूं । 

वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों। वह मुझ पर कृपालु हो और मेरे समस्त दोषों का प्रशमन करते हुए मुझे सर्व विध  अनुकूलता प्रदान करें .... 



विधि :-

एक थाली में भोजन तैयार करके रख ले तथा स्तोत्र का यथाशक्ति (1,3,7,9,11) पाठ करके किसी गाय को या किसी गरीब व्यक्ति को खिला दे । 


25 सितंबर 2023

पितृ स्तोत्र Pitar Stotra

पितृ स्तोत्र (गरुड पुराण)

पितृ स्तोत्र (गरुड पुराण)

अमूर्त्तानां च मूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम !

इंद्रादीनां च नेतारो दक्षमारी चयोस्तथा !!

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान नमस्यामि कामदान !

मन्वादीनां मुनींद्राणां सूर्य्यांचंद्रमसो तथा !!

तान नमस्यामि अहं सर्व्वान पितरश्च अर्णवेषु ये !

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वायु अग्नि नभ तथा !!

द्यावा पृथ्वीव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलि: !

देवर्षिणां ग्रहाणां च सर्वलोकनमस्कृतान !!

अभयस्य सदा दातृन नमस्येहं कृतांजलि:

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ! !

स्वयंभुवे नमस्यामि ब्रम्हणे योग चक्षुषे !

सोमाधारान पितृगणान योगमूर्तिधरांस्तथा !!

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम !

अग्निरुपां तथैव अन्यान नमस्यामि पितृं अहं !!

अग्निसोममयं विश्वं यत एदतशेषत:

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्य्याग्निमूर्तय:!!

जगत्स्वरुपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिण:

तेभ्यो अखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानसा: !

नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदंतु स्वधाभुज: !!

आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

 

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अगर आपको संस्कृत में उच्चारण करने में दिक्कत हो तो आप इसका भावार्थ हिंदी में भी उच्चरित कर सकते हैं जो कि निम्नानुसार है


जो अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।


इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नायक हैं, सभी कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।


मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी प्रणाम करता हूँ।


नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो प्रमुख हैं, उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।


देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता, पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।


प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा प्रणाम करता हूँ।


सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।


चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। 

सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।


जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। 

समस्त पितरो को मैं बारम्बार नमस्कार करता हुआ उनकी कृपा का आकांक्षी हूं । 

वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों। वह मुझ पर कृपालु हो और मेरे समस्त दोषों का प्रशमन करते हुए मुझे सर्व विध  अनुकूलता प्रदान करें .... 



विधि :-

एक थाली में भोजन तैयार करके रख ले तथा स्तोत्र का यथाशक्ति (1,3,7,9,11) पाठ करके किसी गाय को या किसी गरीब व्यक्ति को खिला दे । 


पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा : सरल उपाय

  पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा




श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।

॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥


पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।

108 बार जाप करें |

सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |

ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।

अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।

 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।

पितृ पक्ष

  पितृ पक्ष






पितृ पक्ष में सभी लोग विधि विधान से पूजन नहीं कर पाते हैं । जो पितर पूजन करना चाहते हैं ,उनके लिए एक सरल विधि प्रस्तुत है जिसे आप आसानी से कर सकते है :-


|| ॐ सर्व पित्रेभ्यो नमः ||

Om sarva pitarebhyo namah 

 

भाव रखें कि - "मैं अपने सभी (ज्ञात और अज्ञात ) पूर्वजों को नमस्कार करता हूं तथा उनसे शांति की प्रार्थना करता हूं ।" 




आपके घर में जो भोजन बना हो उसे एक थाली में सजा लें .... 

उसको पूजा स्थान में अपने सामने रखकर इस मंत्र का १०८  बार जाप करें.


हाथ में पानी लेकर कहें " मेरे सभी ज्ञात अज्ञात पितरों की शांति हो " इसके बाद जल जमीन पर छोड़ दे.

अब उस थाली के भोजन को किसी गाय को या किसी गरीब भूखे को खिला दें. 

मन मे प्रार्थना करें कि " मेरे पूर्वजों को शांति प्राप्त हो ! 

 


9 सितंबर 2022

पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा

   पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा




श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।

॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥


पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।

108 बार जाप करें |

सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |

ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।

अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।

 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र

8 सितंबर 2022

पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां

 पितृ पक्ष 

अपने मृत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का पक्ष है श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष । पितृ पक्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को कहा जाता है । इस वर्ष 10 सितंबर 2022 से पितृ पक्ष आरंभ है । इसका समापन 25 सितंबर 2022 को सर्वपितृ अमावस्‍या से होगा । 

पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है, यानि अगर पंचमी तिथि को मृत्यु हुई है तो पंचमी को श्राद्ध करते हैं । अगर तिथि ज्ञात न हो तो अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है । इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है और इसे सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या कहते हैं [आश्विन अमावस्या]


पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां-


पूर्णिमा श्राद्ध - 10 सितंबर 2022 

प्रतिपदा श्राद्ध - 11 सितंबर 2022

द्वितीया श्राद्ध - 12 सितंबर 2022

तृतीया श्राद्ध - 13 सितंबर 2022

चतुर्थी श्राद्ध - 14 सितंबर 2022

पंचमी श्राद्ध - 15 सितंबर 2022

षष्ठी श्राद्ध - 16 सितंबर 2022

सप्तमी श्राद्ध - 17 सितंबर 2022

अष्टमी श्राद्ध - 18 सितंबर 2022

नवमी श्राद्ध - 19 सितंबर 2022  

दशमी श्राद्ध - 20 सितंबर 2022

एकादशी श्राद्ध - 21 सितंबर 2022

द्वादशी श्राद्ध - 22 सितंबर 2022

त्रयोदशी श्राद्ध - 23 सितंबर 2022

चतुर्दशी श्राद्ध - 24 सितंबर 2022

अमावस्या श्राद्ध - 25 सितंबर 2022

पितृ स्तोत्र Pitar Stotra

25 सितंबर 2021

पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा

  पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा




श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।

॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥


पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।

108 बार जाप करें |

सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |

ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।

अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।

 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।

19 सितंबर 2021

पितृ स्तोत्र (गरुड पुराण)

  पितृ स्तोत्र (गरुड पुराण)

अमूर्त्तानां च मूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम !

इंद्रादीनां च नेतारो दक्षमारी चयोस्तथा !!

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान नमस्यामि कामदान !

मन्वादीनां मुनींद्राणां सूर्य्यांचंद्रमसो तथा !!

तान नमस्यामि अहं सर्व्वान पितरश्च अर्णवेषु ये !

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वायु अग्नि नभ तथा !!

द्यावा पृथ्वीव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलि: !

देवर्षिणां ग्रहाणां च सर्वलोकनमस्कृतान !!

अभयस्य सदा दातृन नमस्येहं कृतांजलि:

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ! !

स्वयंभुवे नमस्यामि ब्रम्हणे योग चक्षुषे !

सोमाधारान पितृगणान योगमूर्तिधरांस्तथा !!

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम !

अग्निरुपां तथैव अन्यान नमस्यामि पितृं अहं !!

अग्निसोममयं विश्वं यत एदतशेषत:

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्य्याग्निमूर्तय:!!

जगत्स्वरुपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिण:

तेभ्यो अखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानसा: !

नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदंतु स्वधाभुज: !!

आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

 

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अगर आपको संस्कृत में उच्चारण करने में दिक्कत हो तो आप इसका भावार्थ हिंदी में भी उच्चरित कर सकते हैं जो कि निम्नानुसार है


जो अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।


इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नायक हैं, सभी कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।


मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी प्रणाम करता हूँ।


नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो प्रमुख हैं, उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।


देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता, पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।


प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा प्रणाम करता हूँ।


सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।


चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। 

सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।


जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। 

समस्त पितरो को मैं बारम्बार नमस्कार करता हुआ उनकी कृपा का आकांक्षी हूं । 

वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों। वह मुझ पर कृपालु हो और मेरे समस्त दोषों का प्रशमन करते हुए मुझे सर्व विध  अनुकूलता प्रदान करें .... 



विधि :-

एक थाली में भोजन तैयार करके रख ले तथा स्तोत्र का यथाशक्ति (1,3,7,9,11) पाठ करके किसी गाय को या किसी गरीब व्यक्ति को खिला दे । 


18 सितंबर 2021

पितृ पक्ष

  पितृ पक्ष






पितृ पक्ष में सभी लोग विधि विधान से पूजन नहीं कर पाते हैं । जो पितर पूजन करना चाहते हैं ,उनके लिए एक सरल विधि प्रस्तुत है जिसे आप आसानी से कर सकते है :-


|| ॐ सर्व पित्रेभ्यो नमः ||

Om sarva pitarebhyo namah 

 

भाव रखें कि - "मैं अपने सभी (ज्ञात और अज्ञात ) पूर्वजों को नमस्कार करता हूं तथा उनसे शांति की प्रार्थना करता हूं ।" 




आपके घर में जो भोजन बना हो उसे एक थाली में सजा लें .... 

उसको पूजा स्थान में अपने सामने रखकर इस मंत्र का १०८  बार जाप करें.


हाथ में पानी लेकर कहें " मेरे सभी ज्ञात अज्ञात पितरों की शांति हो " इसके बाद जल जमीन पर छोड़ दे.

अब उस थाली के भोजन को किसी गाय को या किसी गरीब भूखे को खिला दें. 

मन मे प्रार्थना करें कि " मेरे पूर्वजों को शांति प्राप्त हो ! 

 


15 सितंबर 2020

पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा

 पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा




श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।

॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥


पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।

108 बार जाप करें |

सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |

ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।

अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।

 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।