- यह साधना अमावस्या से प्रारंभ होकर अगली अमावस्या तक की जाती है.
- यह दिगंबर साधना है.
- एकांत कमरे में साधना होगी.
- स्त्री से संपर्क तो दूर की बात है बात भी नहीं करनी है.
- भोजन कम से कम और खुद पकाकर खाना है.
- यथा संभव मौन रहना है.
- क्रोध,विवाद,प्रलाप, न करे.
- गोबर के कंडे जलाकर उसकी राख बना लें.
- स्नान करने के बाद बिना शरीर पोछे साधना कक्ष में प्रवेश करें.
- अब राख को अपने पूरे शरीर में मल लें.
- जमीन पर बैठकर मंत्र जाप करें.
- माला या यन्त्र की आवश्यकता नहीं है.
- जप की संख्या अपने क्षमता के अनुसार तय करें.
- आँख बंद करके दोनों नेत्रों के बीच वाले स्थान पर ध्यान लगाने का प्रयास करते हुए जाप करें.बहुत जोर नहीं लगाना है आराम से सहज ध्यान लगाना है । ज्यादा जोर लगाएंगे तो सिर और आँखों मे दर्द हो सकता है ।
- जाप के बाद भूमि पर सोयें.
- उठने के बाद स्नान कर सकते हैं.
- यदि एकांत उपलब्ध हो तो पूरे साधना काल में दिगंबर रहें. यदि यह संभव न हो तो काले रंग का वस्त्र पहनें.
- साधना के दौरान तेज बुखार, भयानक दृश्य और आवाजें आ सकती हैं. इसलिए कमजोर मन वाले साधक और बच्चे इस साधना को किसी हालत में न करें.
- गुरु दीक्षा ले चुके साधक ही अपने गुरु से अनुमति लेकर इस साधन को करें.
- जाप से पहले कम से कम १ माला गुरु मन्त्र का जाप अनिवार्य है.
एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
Disclaimer
21 नवंबर 2024
अघोरेश्वर महादेव
30 सितंबर 2024
अभिमंत्रित पारद शिवलिंग
पारद शिवलिंग के विषय मे कहा गया है कि,
11 अगस्त 2024
अघोरमंत्र
अघोरमंत्र
ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ हां हीं हूं हैं हौं हः स्वर्गमृत्यु पाताल त्रिभुवन संच्चरित देव ग्रहाणां दानव ग्रहाणां ब्रह्मराक्षस ग्रहाणां सर्ववातग्रहाणां सर्व वेताल ग्रहाणां शाकिनी ग्रहाणां डाकिनी ग्रहाणां सर्व भूत ग्रहाणां कमिनी ग्रहाणां सर्व पिंड ग्रहाणां सर्व दोष ग्रहाणां सर्वपस्मारग्रहाणां हन हन हन भक्षय भक्षय भक्षय विरूपाक्षाय दह दह दह हूं फट् स्वाहा ॥
- अघोरेश्वर महादेव की साधना है | कोई नियम विधि बंधन नहीं | उन्मुक्त होने का प्रारंभ .....
- क्रोध और काम दोनों से बचें .
- यदि शरीर में ज्यादा गर्मी का आभास हो तो रात्रिकाल में एक कप दूध में आधा चम्मच घी डालकर पियें .
10 अगस्त 2024
तीन मुखी रुद्राक्ष
- तीन मुखी रुद्राक्ष त्रिदेव का प्रतीक है.
- यह त्रिगुणात्मक है |
- उच्च शिक्षा , मस्तिष्क विकास |
- बेरोजगारी हटाता है |
. . .
9 अगस्त 2024
नाग पंचमी विशेष : सर्प सूक्त
नाग पंचमी विशेष : सर्प सूक्त
यदि आपको अपने घर में बार बार सांप दिखाई देते हो .....
आपकी कुंडली में कालसर्प दोष हो.........
या आप भगवान शिव के गण के रूप में नाग देवता की पूजा करना चाहते हो तो आप श्रावण मास में इस सर्प सूक्त का नित्य प्रयोग कर सकते हैं ।
सर्प सूक्त
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा: शेषनागपुरोगमा: ।।
नमोSस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।। 1।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये च साकेत वासिन:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पा: प्रचरन्ति च।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
समुद्रतीरे च ये सर्पा: ये सर्पा जलवासिन:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।
जिनको काल सर्प दोष है वे इसका १०८ बार पाठ नाग पंचमी से प्रारम्भ करके पूर्णिमा तक कर सकते हैं .
इसके अलावा आप अपने आसपास अगर कोई शिव मंदिर हो तो उसकी साफ़ सफाई या पोताई जैसी व्यवस्था करें तो भी लाभदायक है .
3 अगस्त 2024
शिवलिंग महिमा
शिवलिंग महिमा
भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।
मिट्टी से बनाए जाने वाले शिवलिंग को पार्थिव शिवलिंग कहा जाता है और सामान्यतः इसका निर्माण करने के कुछ समय के बाद इसे विसर्जित कर दिया जाता है क्योंकि मिट्टी से बना होने के कारण यह जल्दी टूट जाता है । सामान्यतः श्रावण मास में या शिवरात्रि के अवसर पर पार्थिव शिवलिंग के पूजन का विधान रखा जाता है । इसके दौरान भक्त अपनी क्षमता के अनुसार एक सौ आठ, एक हजार आठ जैसी संख्या में शिवलिंग का निर्माण करते हैं । कई बार सामूहिक रूप से भी ऐसे आयोजन किए जाते हैं । पार्थिव शिवलिंग को बनाकर उसका पूजन करने और जल में विसर्जित कर देने से मनोकामना की पूर्ति होती है ऐसा माना जाता है ।
इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,
इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः,
मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से,
स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से,
मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग के पूजन से
तथा
बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल
रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है।
आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।
शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग जिन्हें बाणलिंग भी कहते हैं । अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं।
यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं ।
शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।
1 अगस्त 2024
भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र
भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र :-
- सवा लाख मन्त्र का एक पुरस्चरण होगा.
- शिवलिंग सामने रखकर साधना करें.
- समस्त प्रकार की मनोकामना पूर्ती के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
- किसी अनुचित अनैतिक इच्छा से न करें गंभीर नुक्सान हो सकता है.
31 जुलाई 2024
महामृत्युंजय स्तोत्र
महामृत्युंजय स्तोत्र
मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र” मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है ।
इसका आप नित्य पाठ कर सकते हैं ।
ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकंठमुमापतिम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १ ॥
नीलकंठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ २ ॥
नीलकंठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रदम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ३ ॥
वामदॆवं महादॆवं लॊकनाथं जगद्गुरुम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ४ ॥
दॆवदॆवं जगन्नाथं दॆवॆशं वृषभध्वजम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ५ ॥
गंगाधरं महादॆवं सर्पाभरणभूषितम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ६ ॥
त्र्यक्षं चतुर्भुजं शांतं जटामुकुटधारणम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ७ ॥
भस्मॊद्धूलितसर्वांगं नागाभरणभूषितम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ८ ॥
अनंतमव्ययं शांतं अक्षमालाधरं हरम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ९ ॥
आनंदं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १० ॥
अर्धनारीश्वरं दॆवं पार्वतीप्राणनायकम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ११ ॥
प्रलयस्थितिकर्तारं आदिकर्तारमीश्वरम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १२ ॥
व्यॊमकॆशं विरूपाक्षं चंद्रार्द्ध कृतशॆखरम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १३ ॥
गंगाधरं शशिधरं शंकरं शूलपाणिनम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १४ ॥
अनाथं परमानंदं कैवल्यपददायिनम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १५ ॥
स्वर्गापवर्ग दातारं सृष्टिस्थित्यांतकारिणम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १६ ॥
कल्पायुर्द्दॆहि मॆ पुण्यं यावदायुररॊगताम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १७ ॥
शिवॆशानां महादॆवं वामदॆवं सदाशिवम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १८ ॥
उत्पत्ति स्थितिसंहार कर्तारमीश्वरं गुरुम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १९ ॥
फलश्रुति
मार्कंडॆय कृतं स्तॊत्रं य: पठॆत् शिवसन्निधौ ।
तस्य मृत्युभयं नास्ति न अग्निचॊरभयं क्वचित् ॥ २० ॥
शतावृतं प्रकर्तव्यं संकटॆ कष्टनाशनम् ।
शुचिर्भूत्वा पठॆत् स्तॊत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥ २१ ॥
मृत्युंजय महादॆव त्राहि मां शरणागतम् ।
जन्ममृत्यु जरारॊगै: पीडितं कर्मबंधनै: ॥ २२ ॥
तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्व च्चित्तॊऽहं सदा मृड ।
इति विज्ञाप्य दॆवॆशं त्र्यंबकाख्यममं जपॆत् ॥ २३ ॥
नम: शिवाय सांबाय हरयॆ परमात्मनॆ ।
प्रणतक्लॆशनाशाय यॊगिनां पतयॆ नम: ॥ २४ ॥
॥ इति श्री मार्कंडॆयपुराणॆ महा मृत्युंजय स्तॊत्रं संपूर्णम् ॥
30 जुलाई 2024
पाशुपतास्त्र स्तोत्र
पाशुपतास्त्र स्तोत्र
श्रावण मास मे इस स्तोत्र का नियमित पाठ कर सकते है ..
इसका पाठ एक बार से ज्यादा न करें क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जा उत्पन्न करने वाला स्तोत्र है ।
विनियोग :-
हाथ मे पानी लेकर विनियोग पढे और जल जमीन पर छोड़ें ....
ॐ अस्य श्री पाशुपतास्त्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छन्द: श्रीं बीजं हुं शक्ति: श्री पशुपतीनाथ देवता मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य सर्वग्रह बाधा शत्रू बाधा रोग बाधा अनिष्ट बाधा निवारणार्थं मम सर्व कार्य सिद्धर्थे [यहाँ अपनी इच्छा बोलें ] जपे विनियोग: ॥
कर न्यास :-
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
श्ल तर्जनीभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
ईं मध्यमाभ्यां नम: (अंगूठा और मध्यमा यानि बीच वाली उंगली को आपस मे मिलाएं )
प अनामिकाभ्यां नम: (अंगूठा और अनामिका यानि तीसरी उंगली को आपस मे मिलाएं )
शु: कनिष्ठिकाभ्यां नम: (अंगूठा और कनिष्ठिका यानि छोटी उंगली को आपस मे मिलाएं )
हुं फट करतल करपृष्ठाभ्यां नम: (दोनों हाथों को आपस मे रगड़ दें )
हृदयादि न्यास :-
अपने हाथ से संबंधित अंगों को स्पर्श कर लें ।
ॐ हृदयाय नम:
श्ल शिरसे स्वाहा
ईं शिखायै वषट
प कवचाय हुं
शु: नेत्रत्रयाय वौषट
हुं फट अस्त्राय फट
ध्यान
मध्यान्ह अर्कसमप्रभं शशिधरं भीम अट्टहासोज्वलं
त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रू स्फुरन्मूर्धजम
हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुदगरमसिं शक्तिं दधानं विभुं
दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररुपं स्मरेत !!
अर्थ :- जो मध्यान्ह कालीन अर्थात दोपहर के सूर्य के समान कांति से युक्त है , चंद्रमा को धारण किये हुये हैं । जिनका भयंकर अट्टहास अत्यंत प्रचंड है । उनके तीन नेत्र है तथा शरीर मे सर्पों का आभूषण सुशोभित हो रहा है ।
उनके ललाट मे स्थित तीसरे नेत्र से निकलती अग्नि की शिखा से श्मश्रू तथा केश दैदिप्यमान हो रहे है ।
जो अपने कर कमलो मे त्रिशूल , मुदगर , तलवार , तथा शक्ति धारण किये हुये है ऐसे दंष्ट्रा से भयानक चार मुख वाले दिव्य स्वरुपधारी सर्वव्यापक महादेव का मैं दिव्यास्त्र के रूप मे स्मरण करता हूँ ।
अब नीचे दिये हुये स्तोत्र का पाठ करे ..
हर बार फट की आवाज के साथ आप शिवलिंग पर बेलपत्र पुष्प या चावल समर्पित कर सकते हैं ।
यदि किसी सामग्री की व्यवस्था ना हो पाए तो हर बार फट की आवाज के साथ एक ताली बजाएं ।
पाशुपतास्त्र
ॐ नमो भगवते महापाशुपताय अतुलबलवीर्य पराक्रमाय त्रिपंचनयनाय नानारुपाय नाना प्रहरणोद्यताय सर्वांगरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशानवेतालप्रियाय सर्वविघ्न निकृंतनरताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकंपिने असंख्यवक्त्र-भुजपादाय तस्मिन सिद्धाय वेतालवित्रासने शाकिनीक्षोभजनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय सूर्यसोमाग्निनेत्राय विष्णुकवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदंडवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलजिव्हाय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षयकारिणे !
ॐ कृष्णपिंगलाय फट !
ॐ हूंकारास्त्राय फट !
ॐ वज्रहस्ताय फट !
ॐ शक्तये फट !
ॐ दंडाय फट !
ॐ यमाय फट !
ॐ खडगाय फट !
ॐ निऋताय फट !
ॐ वरुणाय फट !
ॐ वज्राय फट !
ॐ पाशाय फट !
ॐ ध्वजाय फट !
ॐ अंकुशाय फट !
ॐ गदायै फट !
ॐ कुबेराय फट !
ॐ त्रिशूलाय फट !
ॐ मुदगराय फट !
ॐ चक्राय फट !
ॐ पद्माय फट !
ॐ नागास्त्राय फट !
ॐ ईशानाय फट !
ॐ खेटकास्त्राय फट !
ॐ मुंडाय फट !
ॐ मुंडास्त्राय फट !
ॐ कंकालास्त्राय फट !
ॐ पिच्छिकास्त्राय फट !
ॐ क्षुरिकास्त्राय फट !
ॐ ब्रह्मास्त्राय फट !
ॐ शक्त्यास्त्राय फट !
ॐ गणास्त्राय फट !
ॐ सिद्धास्त्राय फट !
ॐ पिलिपिच्छास्त्राय फट !
ॐ गंधर्वास्त्राय फट !
ॐ पूर्वास्त्राय फट !
ॐ दक्षिणास्त्राय फट !
ॐ वामास्त्राय फट !
ॐ पश्चिमास्त्राय फट !
ॐ मंत्रास्त्राय फट !
ॐ शाकिनि अस्त्राय फट !
ॐ योगिनी अस्त्राय फट !
ॐ दंडास्त्राय फट !
ॐ महादंडास्त्राय फट !
ॐ नमो अस्त्राय फट !
ॐ शिवास्त्राय फट !
ॐ ईशानास्त्राय फट !
ॐ पुरुषास्त्राय फट !
ॐ अघोरास्त्राय फट !
ॐ सद्योजातास्त्राय फट !
ॐ हृदयास्त्राय फट !
ॐ महास्त्राय फट !
ॐ गरुडास्त्राय फट !
ॐ राक्षसास्त्राय फट !
ॐ दानवास्त्राय फट !
ॐ क्षौं नरसिंहास्त्राय फट !
ॐ त्वष्ट्र अस्त्राय फट !
ॐ सर्वास्त्राय फट !
ॐ न: फट !
ॐ व: फट !
ॐ प: फट !
ॐ फ: फट !
ॐ म: फट !
ॐ श्री: फट !
ॐ पें फट !
ॐ भू: फट !
ॐ भुव: फट !
ॐ स्व: फट !
ॐ मह: फट !
ॐ जन: फट !
ॐ तप: फट !
ॐ सत्यं फट !
ॐ सर्व लोक फट !
ॐ सर्व पाताल फट !
ॐ सर्व तत्त्व फट !
ॐ सर्व प्राण फट !
ॐ सर्व नाडी फट !
ॐ सर्व कारण फट !
ॐ सर्व देव फट !
ॐ ह्रीम फट !
ॐ श्रीं फट !
ॐ ह्रूं फट !
ॐ स्त्रूं फट !
ॐ स्वां फट !
ॐ लां फट !
ॐ वैराग्यस्त्राय फट !
ॐ मायास्त्राय फट !
ॐ कामास्त्राय फट !
ॐ क्षेत्रपालास्त्राय फट !
ॐ हुंकारास्त्राय फट !
ॐ भास्करास्त्राय फट !
ॐ चंद्रास्त्राय फट !
ॐ विघ्नेश्वरास्त्राय फट !
ॐ गौ: गां फट !
ॐ ख्रों ख्रौं फट !
ॐ हौं हों फट !
ॐ भ्रामय भ्रामय फट !
ॐ संतापय संतापय फट !
ॐ छादय छादय फट !
ॐ उन्मूलय उन्मूलय फट !
ॐ त्रासय त्रासय फट !
ॐ संजीवय संजीवय फट !
ॐ विद्रावय विद्रावय फट !
ॐ सर्वदुरितं नाशय नाशय फट !
ॐ श्लीं पशुं हुं फट स्वाहा !
अंत मे एक नींबू काटकर शिवलिंग पर निचोड़ कर अर्पित कर दें ।
दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें ।
29 जुलाई 2024
रुद्राष्टकम
रुद्राष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।
त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥
कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।
न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।
जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥
रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥
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