एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
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23 फ़रवरी 2024
9 जुलाई 2023
सदाशिव कवच का उच्चारण यूट्यूब पर
13 फ़रवरी 2023
महा मृत्युंजय स्तॊत्रं
महामृत्युंजय स्तोत्र
मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र” मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है ।
इसका आप नित्य पाठ कर सकते हैं ।
ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकंठमुमापतिम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १ ॥
नीलकंठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ २ ॥
नीलकंठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रदम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ३ ॥
वामदॆवं महादॆवं लॊकनाथं जगद्गुरुम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ४ ॥
दॆवदॆवं जगन्नाथं दॆवॆशं वृषभध्वजम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ५ ॥
गंगाधरं महादॆवं सर्पाभरणभूषितम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ६ ॥
त्र्यक्षं चतुर्भुजं शांतं जटामुकुटधारणम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ७ ॥
भस्मॊद्धूलितसर्वांगं नागाभरणभूषितम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ८ ॥
अनंतमव्ययं शांतं अक्षमालाधरं हरम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ९ ॥
आनंदं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १० ॥
अर्धनारीश्वरं दॆवं पार्वतीप्राणनायकम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ११ ॥
प्रलयस्थितिकर्तारं आदिकर्तारमीश्वरम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १२ ॥
व्यॊमकॆशं विरूपाक्षं चंद्रार्द्ध कृतशॆखरम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १३ ॥
गंगाधरं शशिधरं शंकरं शूलपाणिनम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १४ ॥
अनाथं परमानंदं कैवल्यपददायिनम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १५ ॥
स्वर्गापवर्ग दातारं सृष्टिस्थित्यांतकारिणम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १६ ॥
कल्पायुर्द्दॆहि मॆ पुण्यं यावदायुररॊगताम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १७ ॥
शिवॆशानां महादॆवं वामदॆवं सदाशिवम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १८ ॥
उत्पत्ति स्थितिसंहार कर्तारमीश्वरं गुरुम् ।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १९ ॥
फलश्रुति
मार्कंडॆय कृतं स्तॊत्रं य: पठॆत् शिवसन्निधौ ।
तस्य मृत्युभयं नास्ति न अग्निचॊरभयं क्वचित् ॥ २० ॥
शतावृतं प्रकर्तव्यं संकटॆ कष्टनाशनम् ।
शुचिर्भूत्वा पठॆत् स्तॊत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥ २१ ॥
मृत्युंजय महादॆव त्राहि मां शरणागतम् ।
जन्ममृत्यु जरारॊगै: पीडितं कर्मबंधनै: ॥ २२ ॥
तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्व च्चित्तॊऽहं सदा मृड ।
इति विज्ञाप्य दॆवॆशं त्र्यंबकाख्यममं जपॆत् ॥ २३ ॥
नम: शिवाय सांबाय हरयॆ परमात्मनॆ ।
प्रणतक्लॆशनाशाय यॊगिनां पतयॆ नम: ॥ २४ ॥
॥ इति श्री मार्कंडॆयपुराणॆ महा मृत्युंजय स्तॊत्रं संपूर्णम् ॥
12 फ़रवरी 2023
पाशुपतास्त्र स्तोत्र
पाशुपतास्त्र स्तोत्र
श्रावण मास मे इस स्तोत्र का नियमित पाठ कर सकते है ..
इसका पाठ एक बार से ज्यादा न करें क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जा उत्पन्न करने वाला स्तोत्र है ।
विनियोग :-
हाथ मे पानी लेकर विनियोग पढे और जल जमीन पर छोड़ें ....
ॐ अस्य श्री पाशुपतास्त्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छन्द: श्रीं बीजं हुं शक्ति: श्री पशुपतीनाथ देवता मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य सर्वग्रह बाधा शत्रू बाधा रोग बाधा अनिष्ट बाधा निवारणार्थं मम सर्व कार्य सिद्धर्थे [यहाँ अपनी इच्छा बोलें ] जपे विनियोग: ॥
कर न्यास :-
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
श्ल तर्जनीभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
ईं मध्यमाभ्यां नम: (अंगूठा और मध्यमा यानि बीच वाली उंगली को आपस मे मिलाएं )
प अनामिकाभ्यां नम: (अंगूठा और अनामिका यानि तीसरी उंगली को आपस मे मिलाएं )
शु: कनिष्ठिकाभ्यां नम: (अंगूठा और कनिष्ठिका यानि छोटी उंगली को आपस मे मिलाएं )
हुं फट करतल करपृष्ठाभ्यां नम: (दोनों हाथों को आपस मे रगड़ दें )
हृदयादि न्यास :-
अपने हाथ से संबंधित अंगों को स्पर्श कर लें ।
ॐ हृदयाय नम:
श्ल शिरसे स्वाहा
ईं शिखायै वषट
प कवचाय हुं
शु: नेत्रत्रयाय वौषट
हुं फट अस्त्राय फट
ध्यान
मध्यान्ह अर्कसमप्रभं शशिधरं भीम अट्टहासोज्वलं
त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रू स्फुरन्मूर्धजम
हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुदगरमसिं शक्तिं दधानं विभुं
दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररुपं स्मरेत !!
अर्थ :- जो मध्यान्ह कालीन अर्थात दोपहर के सूर्य के समान कांति से युक्त है , चंद्रमा को धारण किये हुये हैं । जिनका भयंकर अट्टहास अत्यंत प्रचंड है । उनके तीन नेत्र है तथा शरीर मे सर्पों का आभूषण सुशोभित हो रहा है ।
उनके ललाट मे स्थित तीसरे नेत्र से निकलती अग्नि की शिखा से श्मश्रू तथा केश दैदिप्यमान हो रहे है ।
जो अपने कर कमलो मे त्रिशूल , मुदगर , तलवार , तथा शक्ति धारण किये हुये है ऐसे दंष्ट्रा से भयानक चार मुख वाले दिव्य स्वरुपधारी सर्वव्यापक महादेव का मैं दिव्यास्त्र के रूप मे स्मरण करता हूँ ।
अब नीचे दिये हुये स्तोत्र का पाठ करे ..
हर बार फट की आवाज के साथ आप शिवलिंग पर बेलपत्र पुष्प या चावल समर्पित कर सकते हैं ।
यदि किसी सामग्री की व्यवस्था ना हो पाए तो हर बार फट की आवाज के साथ एक ताली बजाएं ।
पाशुपतास्त्र
ॐ नमो भगवते महापाशुपताय अतुलबलवीर्य पराक्रमाय त्रिपंचनयनाय नानारुपाय नाना प्रहरणोद्यताय सर्वांगरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशानवेतालप्रियाय सर्वविघ्न निकृंतनरताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकंपिने असंख्यवक्त्र-भुजपादाय तस्मिन सिद्धाय वेतालवित्रासने शाकिनीक्षोभजनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय सूर्यसोमाग्निनेत्राय विष्णुकवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदंडवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलजिव्हाय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षयकारिणे !
ॐ कृष्णपिंगलाय फट !
ॐ हूंकारास्त्राय फट !
ॐ वज्रहस्ताय फट !
ॐ शक्तये फट !
ॐ दंडाय फट !
ॐ यमाय फट !
ॐ खडगाय फट !
ॐ निऋताय फट !
ॐ वरुणाय फट !
ॐ वज्राय फट !
ॐ पाशाय फट !
ॐ ध्वजाय फट !
ॐ अंकुशाय फट !
ॐ गदायै फट !
ॐ कुबेराय फट !
ॐ त्रिशूलाय फट !
ॐ मुदगराय फट !
ॐ चक्राय फट !
ॐ पद्माय फट !
ॐ नागास्त्राय फट !
ॐ ईशानाय फट !
ॐ खेटकास्त्राय फट !
ॐ मुंडाय फट !
ॐ मुंडास्त्राय फट !
ॐ कंकालास्त्राय फट !
ॐ पिच्छिकास्त्राय फट !
ॐ क्षुरिकास्त्राय फट !
ॐ ब्रह्मास्त्राय फट !
ॐ शक्त्यास्त्राय फट !
ॐ गणास्त्राय फट !
ॐ सिद्धास्त्राय फट !
ॐ पिलिपिच्छास्त्राय फट !
ॐ गंधर्वास्त्राय फट !
ॐ पूर्वास्त्राय फट !
ॐ दक्षिणास्त्राय फट !
ॐ वामास्त्राय फट !
ॐ पश्चिमास्त्राय फट !
ॐ मंत्रास्त्राय फट !
ॐ शाकिनि अस्त्राय फट !
ॐ योगिनी अस्त्राय फट !
ॐ दंडास्त्राय फट !
ॐ महादंडास्त्राय फट !
ॐ नमो अस्त्राय फट !
ॐ शिवास्त्राय फट !
ॐ ईशानास्त्राय फट !
ॐ पुरुषास्त्राय फट !
ॐ अघोरास्त्राय फट !
ॐ सद्योजातास्त्राय फट !
ॐ हृदयास्त्राय फट !
ॐ महास्त्राय फट !
ॐ गरुडास्त्राय फट !
ॐ राक्षसास्त्राय फट !
ॐ दानवास्त्राय फट !
ॐ क्षौं नरसिंहास्त्राय फट !
ॐ त्वष्ट्र अस्त्राय फट !
ॐ सर्वास्त्राय फट !
ॐ न: फट !
ॐ व: फट !
ॐ प: फट !
ॐ फ: फट !
ॐ म: फट !
ॐ श्री: फट !
ॐ पें फट !
ॐ भू: फट !
ॐ भुव: फट !
ॐ स्व: फट !
ॐ मह: फट !
ॐ जन: फट !
ॐ तप: फट !
ॐ सत्यं फट !
ॐ सर्व लोक फट !
ॐ सर्व पाताल फट !
ॐ सर्व तत्त्व फट !
ॐ सर्व प्राण फट !
ॐ सर्व नाडी फट !
ॐ सर्व कारण फट !
ॐ सर्व देव फट !
ॐ ह्रीम फट !
ॐ श्रीं फट !
ॐ ह्रूं फट !
ॐ स्त्रूं फट !
ॐ स्वां फट !
ॐ लां फट !
ॐ वैराग्यस्त्राय फट !
ॐ मायास्त्राय फट !
ॐ कामास्त्राय फट !
ॐ क्षेत्रपालास्त्राय फट !
ॐ हुंकारास्त्राय फट !
ॐ भास्करास्त्राय फट !
ॐ चंद्रास्त्राय फट !
ॐ विघ्नेश्वरास्त्राय फट !
ॐ गौ: गां फट !
ॐ ख्रों ख्रौं फट !
ॐ हौं हों फट !
ॐ भ्रामय भ्रामय फट !
ॐ संतापय संतापय फट !
ॐ छादय छादय फट !
ॐ उन्मूलय उन्मूलय फट !
ॐ त्रासय त्रासय फट !
ॐ संजीवय संजीवय फट !
ॐ विद्रावय विद्रावय फट !
ॐ सर्वदुरितं नाशय नाशय फट !
ॐ श्लीं पशुं हुं फट स्वाहा !
अंत मे एक नींबू काटकर शिवलिंग पर निचोड़ कर अर्पित कर दें ।
दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें ।
11 फ़रवरी 2023
सर्प सूक्त
यदि आपको अपने घर में बार बार सांप दिखाई देते हो .....
आपकी कुंडली में कालसर्प दोष हो.........
या आप भगवान शिव के गण के रूप में नाग देवता की पूजा करना चाहते हो तो आप इस सर्प सूक्त का प्रयोग कर सकते हैं ।
सर्प सूक्त
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा: शेषनागपुरोगमा: ।।
नमोSस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।। 1।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये च साकेत वासिन:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पा: प्रचरन्ति च।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
समुद्रतीरे च ये सर्पा: ये सर्पा जलवासिन:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।
इसका उच्चारण देखें
10 फ़रवरी 2023
रुद्राष्टकम
रुद्राष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।
त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥
कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।
न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।
जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥
रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥
आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं
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8 फ़रवरी 2023
श्री नीलकंठ स्तोत्र
श्री नीलकंठ स्तोत्र
संकल्प:(विनियोग ):-
ओम अस्य श्री नीलकंठ स्तोत्र-मन्त्रस्य ब्रह्म ऋषि अनुष्टुप छंद :नीलकंठो सदाशिवो देवता ब्रह्म्बीजम पार्वती शक्ति:शिव इति कीलकं मम काय जीव स्वरक्षनार्थे सर्वारिस्ट विनाशानार्थेचतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धिअर्थे भक्ति-मुक्ति सिद्धि अर्थे श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थे च जपे पाठे विनियोग:
स्तोत्र मंत्र :-
।। ओम नमो नीलकंठाय श्वेत शरीराय नमः ।
सर्पालंकृत भूषणाय नमः ।
भुजंग परिकराय नाग यग्नोपवीताय नमः ।
अनेक काल मृत्यु विनाशनाय नमः ।
युगयुगान्त काल प्रलय प्रचंडाय नमः ।
ज्वलंमुखाय नमः ।
दंष्ट्रा कराल घोर रुपाय नमः हुं हुं फट स्वाहा,
ज्वालामुख मंत्र करालाय नमः ।
प्रचंडार्क सह्स्त्रान्शु प्रचंडाय नमः ।
कर्पुरामोद परिमलांग सुगंधिताय नमः ।
इन्द्रनील महानील वज्र वैदूर्यमणि माणिक्य मुकुट भूषणाय नमः ।
श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्रस्य नमः ।
ओम ह्रां स्फुर स्फुर ओम ह्रीं स्फुर स्फुर ओम ह्रूं स्फुर स्फुर अघोर घोरतरस्य नमः ।
रथ रथ तत्र तत्र चट चट कह कह मद मद मदन दहनाय नमः ।
श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्राय नमः ।
ज्वलन मरणभय क्षयं हूं फट स्वाहा ।
अनंत घोर ज्वर मरण भय कुष्ठ व्याधि विनाशनाय नमः ।
डाकिनी शाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय नमः ।
अपर पारभुत वेताल कुष्मांड सर्वग्रह विनाशनाय नमः ।
यन्त्र कोष्ठ करालाय नमः ।
सर्वापद विच्छेदनाय नमः हूं हूं फट स्वाहा ।
आत्म मंत्र सुरक्षणाय नमः ।
ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं नमो भुत डामर ज्वाला वश भूतानां द्वादश भूतानां त्रयोदश भूतानां पंचदश डाकिनीना हन् हन् दह दह नाशय नाशय एकाहिक द्याहिक चतुराहिक पंच्वाहिक व्याप्ताय नमः ।
आपादंत सन्निपात वातादि हिक्का कफादी कास्श्वासादिक दह दह छिन्दि छिन्दि,
श्री महादेव निर्मित स्तम्भन मोहन वश्यआकर्षण उच्चाटन कीलन उद्दासन इति षटकर्म विनाशनाय नमः ।
अनंत वासुकी तक्षक कर्कोटक शंखपाल विजय पद्म महापद्म एलापत्र नाना नागानां कुलकादी विषं छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि प्रवेशय प्रवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा ।।
वातज्वर मरणभय छिन्दि छिन्दि हन् हन्: ,
भुतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर सन्निपातज्वर ,
ग्रहज्वर विषमज्वर कुमारज्वर तापज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर ,
महेशज्वर आवश्यकज्वर कामाग्निविषय ज्वर मरीची- ज्वारादी प्रबल दंडधराय नमः ।
परमेश्वराय नमः ।
आवेशय आवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा ।
चोर मृत्यु ग्रह व्यघ्रासर्पादी विषभय विनाशनाय नमः ।
मोहन मन्त्राणाम , पर विद्या छेदन मन्त्राणाम , ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं कुली लीं लीं हूं क्ष कूं कूं हूं हूं फट स्वाहा,
नमो नीलकंठाय नमः ।
दक्षाध्वरहराय नमः ।
श्री नीलकंठाय नमः , ओम ।।
यह अत्यंत तीक्ष्ण तथा प्रचंड स्तोत्र है , इसलिए पाठ जब शुरू हो उन दिनों में एक कप गाय के दूध में आधा चम्मच गाय के घी को मिलकर रात्री मे सेवन करना चाहिए जिससे शरीर में बढ़ने वाली गर्मी पर काबू रख सके वर्ना गुदामार्ग से खून आने की संभावना हो सकती हैं ।
एक दिन मे इसका एक बार पाठ करें ।. एक दिन मे सामान्य गृहस्थों को ज्यादा से ज्यादा तीन पाठ करने चाहिए ।साधक तथा योगी इससे ज्यादा भी कर सकते हैं ।
इस मंत्र को शिव मंदिर में जाकर शिव जी का पंचोपचार पूजन करके करना श्रेष्ट है , यदि शिव मंदिर मे संभव न हो तो एकांत कक्ष मे या पूजा कक्ष मे भी कर सकते हैं । अपने सामने शिवलिंग या शिवचित्र या महामाया का चित्र या यंत्र रखके करें ।.
यह आप पूरे सावन मास मे कर सकते हैं ।
इसके अलावा भी आप किसी भी दिन इसे कर सकते हैं ।.
शिव कृपा , तंत्र बाधा निवारण , सर्वविध रक्षा प्रदायक तथा रोगनाशन करने वाला स्तोत्र है ।
5 फ़रवरी 2023
शिवषडक्षरस्तोत्र
शिवषडक्षरस्तोत्र
भगवान् शिव के पंचाक्षरी मन्त्र के प्रथम अक्षरों से बना हुआ यह स्तोत्र है . इसे आप अपने शिव पूजन में शामिल कर सकते हैं .
ऊँकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिन:।
कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नम:।।
नमंति ऋषयो देवा नमंत्यप्सरसां गणा:।
नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नम:।।
महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम्।
महापापहरं देवं मकाराय नमो नम:।।
शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकनुग्रहकारकम्।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नम:।।
वाहनं वृषभो यस्य वासुकि: कंठभूषणम्।
वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नम:।।
यत्र यत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर:।
यो गुरु: सर्वदेवानां यकाराय नमो नम:।।
1 जनवरी 2023
नववर्ष 2022 की शुभकामनायें
सभी पाठकों को
कोरोना महामारी ने एक बार फिर से दस्तक देनी शुरू कर दी है । ऐसी स्थिति में महामाया की शक्ति पर विश्वास और गुरु की कृपा से यह वर्ष भी बेहतर ढंग से आगे की ओर बढ़े और सभी के जीवन में सुख समृद्धि और अनुकूलता प्रदान करें ऐसी ही शुभकामनाएं आप सभी को !
नश्यन्तु प्रेत कूष्माण्डा नश्यन्तु दूषका नरा: ।
साधकानां शिवाः सन्तु आम्नाय परिपालिनाम ॥
जयन्ति मातरः सर्वा जयन्ति योगिनी गणाः ।
जयन्ति सिद्ध डाकिन्यो जयन्ति गुरु पन्क्तयः ॥
जयन्ति साधकाः सर्वे विशुद्धाः साधकाश्च ये ।
समयाचार संपन्ना जयन्ति पूजका नराः ॥
नन्दन्तु चाणिमासिद्धा नन्दन्तु कुलपालकाः ।
इन्द्राद्या देवता सर्वे तृप्यन्तु वास्तु देवतः ॥
चन्द्रसूर्यादयो देवास्तृप्यन्तु मम भक्तितः ।
नक्षत्राणि ग्रहाः योगाः करणा राशयश्च ये ॥
सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नश्यन्तु पक्षिणः ।
पशवस्तुरगाश्चैव पर्वताः कन्दरा गुहाः ॥
ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्तिम कुर्वन्तु सर्वदा ।
स्तुता मे विदिताः सन्तु सिद्धास्तिष्ठन्तु पूजकाः ॥
ये ये पापधियस्सुदूषणरतामन्निन्दकाः पूजने ।
वेदाचार विमर्द नेष्ट हृदया भ्रष्टाश्च ये साधकाः ॥
दृष्ट्वा चक्रम्पूर्वमन्दहृदया ये कौलिका दूषकास्ते ।
ते यान्तु विनाशमत्र समये श्री भैरवास्याज्ञया ॥
द्वेष्टारः साधकानां च सदैवाम्नाय दूषकाः ।
डाकिनीनां मुखे यान्तु तृप्तास्तत्पिशितै स्तुताः ॥
ये वा शक्तिपरायणाः शिवपरा ये वैष्णवाः साधवः ।
सर्वस्मादखिले सुराधिपमजं सेव्यं सुरै संततम ॥
शक्तिं विष्णुधिया शिवं च सुधियाश्रीकृष्ण बुद्धया च ये ।
सेवन्ते त्रिपुरं त्वभेदमतयो गच्छन्तु मोक्षन्तु ते ॥
शत्रवो नाशमायान्तु मम निन्दाकराश्च ये ।
द्वेष्टारः साधकानां च ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।
तत्परं पठेत स्तोत्रमानंदस्तोत्रमुत्तमम ।
सर्वसिद्धि भवेत्तस्य सर्वलाभो प्रणाश्यति ॥
इस स्तोत्र का पाठ इस भावना के साथ करें कि हमारी पृथ्वी पर सर्व विध शांति हो.
2 अक्टूबर 2022
26 मई 2022
शनि माला मंत्र
शनि माला मंत्र
शनिबाधा निवारण हेतु आप इसे नित्य पूजन मे शामिल कर सकते है ..
या प्रत्येक शनिवार इसका उचित संख्या मे पाठ करे ..
ॐ नमो भगवते शनैश्चराय मंदगतये सूर्यपुत्राय महाकालाग्निसदृशाय क्रूरदेहाय गृध्रासनाय नीलरुपाय चतुर्भुजाय त्रिनेत्राय नीलांबरधराय नीलमालाविभूषिताय धनुराकारमण्डले प्रतिष्ठिताय काश्यपगोत्रात्मजाय माणिक्यमुक्ताभरणाय छायापुत्राय सकल महारौद्राय सकल जगतभयंकराय पंगुपादाय क्रूररुपाय देवासुरभयंकराय सौरये कृष्णवर्णाय स्थूलरोमाय अधोमुखाय नीलभद्रासनाय नीलवर्णरथारुढाय त्रिशूलधराय सर्वजनभयंकराय मंदाय दं शं नं मं हुं रक्ष रक्ष , मम शत्रून नाशय नाशय , सर्वपीडा नाशय नाशय , विषमस्थ शनैश्चरान सुप्रीणय सुप्रीणय , सर्व ज्वरान शमय शमय , समस्त व्याधीनामोचय मोचय विमोचय विमोचय मां रक्ष रक्ष , समस्त दुष्टग्रहान भक्षय भक्षय , भ्रामय भ्रामय , त्रासय त्रासय , बंधय बंधय , उन्मादय उन्मादय , दीपय दीपय , तापय तापय , सर्व विघ्नान छिंधि छिंधि , डाकिनी शाकिनी भूत वेताल यक्षरगोगंधर्वग्रहान ग्रासय ग्रासय , भक्षय भक्षय , दह दह , पच पच , हन हन , विदारय विदारय , शत्रून नाशय नाशय , सर्वपीडा नाशय नाशय , विषमस्थ शनैश्चरान सुप्रीणय सुप्रीणय , सर्वज्वरान शमय शमय , समस्त व्याधीन विमोचय विमोचय , ॐ शं नं मं ह्रां फं हुं शनैश्चराय नीलाभ्रवर्णाय नीलमेखलाय सौरये नम:
!! इति शनि माला मंत्र !!
10 अप्रैल 2022
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम : राम रक्षा स्तोत्र
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान
श्री राम की जन्मतिथि चैत्र शुक्ल नवमी राम नवमी के अवसर पर आप सभी को हार्दिक
शुभकामनाएं .
भगवान राम सत्व गुण का
सर्वोच्च स्वरूप है । उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में अत्यंत मर्यादित नियंत्रित
और सात्विक जीवन जिया है ।
एक राजकुमार जिसका
राज्याभिषेक होना है उसे अचानक पता चलता है कि उसकी सौतेली मा केकेई उसे वनवास में
भेजने के रूप में पिता के द्वारा प्राप्त एक वचन को पूरा करना चाहती है ।
पिता धर्म संकट में है ।
अगर पत्नी को इनकार करते
हैं तो रघुकुल की मर्यादा भंग होती है जो कहता है कि
"रघुकुल
रीति सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई"
राम एक श्रेष्ठ बल्कि
श्रेष्ठतम राजकुमार है ।
जिसे राज्य सौंपने का अर्थ
संपूर्ण प्रजा का सर्वांगीण विकास और राज्य की हर तरफ से प्रगति है ।
इन दोनों चीजों के बीच में
राजा दशरथ संशय की स्थिति में झूल रहे हैं ।
निर्णय नहीं कर पा रहे हैं
कि क्या करूं ?
और ऐसी स्थिति में राम
बेहद सहजता से वनवास को स्वीकार कर लेते हैं ।
सारी जनता इसके विरोध में
है ।
वे चाहते हैं कि राम
अयोध्या में रहे ।
सिंहासन पर बैठे ।
लेकिन वह तो मर्यादा
पुरुषोत्तम है ......
कुल की मर्यादा और पिता के
वचन का मान तो उन्हें रखना ही है।
इसलिए वे धनुष टांग कर
वल्कल वस्त्र पहन कर निकल पड़ते हैं .....
एक ऐसी यात्रा पर जिसका
कोई लक्ष्य नहीं है ।
क्या करना है ?
कहां जाना है ?
क्यों जाना है ?
इसका कोई उत्तर नहीं
है ....
लेकिन वे निकल पड़ते हैं ।
एक राजकुमारी सीता !
जिसे उसके पिता ने लाड
प्यार से बड़े नाज से पाला है और एक ऐसे राजकुमार को सौंपा है जो एक बहुत बड़े
राज्य का भावी सम्राट है, यह सोच
कर कि मेरी पुत्री सर्व विध सुख और ऐश्वर्य का उपभोग करेगी ।
वह भी निकल पड़ती है.....
राजमहल का ऐश्वर्य
छोड़कर......
पैदल.....
जंगल की पथरीली राहों पर
चलने के लिए.......
कभी आप उस अवस्था को महसूस
करके देखें ।
कभी आप अपने आप को राम और
सीता की जगह रख कर देखें ।
उस समय आपकी क्या मनोदशा
होती ?
और आप कैसा महसूस कर रहे
होते ?
इस बात की कल्पना मात्र से
आपकी आत्मा तक कांप जाएगी ।
लेकिन भगवान राम ने इस
स्थिति को भी पूरी सहजता से स्वीकार किया ।
जो जीवन में आने वाली
स्थितियों को सहजता से स्वीकार कर लेते हैं वह जीवन में ऊंचाइयों को भी प्राप्त
करते हैं और सफलता को भी प्राप्त करते हैं ।
यदि श्री राम अयोध्या में
ही रह जाते..,
तो ......
संभवत वह एक कुशल सम्राट
के रूप में जाने जाते ।
लेकिन वह राजमहल से निकले
.....
कठोर तपस्या के मार्ग से
होकर गुजरे......
अनेक कष्टों का सामना किया
........
अनेक राक्षसों का वध किया
......
पत्नी का वियोग सहा .....
रावण जैसे दुर्धर्ष और
शक्तिशाली योद्धा का वानर सेना के साथ सामना किया ।
अगर आप प्रतीकात्मक रूप से
देखें तो इसका यह भी अर्थ निकलता है कि..,,
सेना चाहे वानरों की ही
क्यों ना हो .....
अगर उसका मार्गदर्शन और
नेतृत्व श्री राम जैसा व्यक्तित्व कर रहा हो तो वह भी रावण जैसे विराट व्यक्तित्व
का संघार करने में सक्षम हो जाती है ।
रावण कोई सामान्य व्यक्ति
नहीं था । रावण भगवान शिव का प्रिय शिष्य था । यही नहीं वह भगवती जगदंबा का भी
शिष्य था । अपनी साधना और तपोबल के माध्यम से उसने ऐसी-ऐसी सिद्धियां प्राप्त कर
रखी थी जिनके माध्यम से सारे ग्रह उसके नियंत्रण में रहते थे एक तरह से उसके बंदी
बने हुए थे ।
उस की लंका सोने की थी
अर्थात ऐश्वर्या और समृद्धि के मामले में भगवान राम जो कि वनवासी थे उसके सामने बिल्कुल
नगण्य से थे ।
वह पुष्पक विमान में चलता
था और भगवान राम पैदल चलते थे । उसके बावजूद भगवान राम अपने दृढ़ निश्चय की वजह से
और अपने प्रबल पौरुष और पराक्रम की वजह से उस दुरूह और कठिन शत्रु को भी पराजित
करके इस बात को सिद्ध कर देते हैं कि अगर इच्छाशक्ति की प्रबलता हो तो उपलब्ध
संसाधनों से भी असंभव लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है ।
राजकुमार राम की राजमहल से
वन तक की यात्रा ने सही अर्थों में उन्हें राजकुमार राम से भगवान राम बना दिया
........
संपूर्ण जगत में वंदनीय
बना दिया.......
यह पुरुष से महापुरुष बनने
की यात्रा का एक जाजवल्यमान प्रमाण है।
ऐसे भगवान श्री राम के
चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम करता हुआ उनका एक बहु प्रचलित स्तोत्र राम रक्षा
स्तोत्र प्रस्तुत है।
अधिकांश राम भक्त स्तोत्र
के बारे में जानते हैं, भगवान
राम ने भी अनेक प्रकार की साधनाएं की थी। उनमें से एक साधना उन्होंने समुद्र तट पर
भगवान शिव के सायुज्य को प्राप्त करने के लिए की थी और वह स्थान आज रामेश्वरम के
नाम से जाना जाता है ।
यह इस बात का प्रमाण है कि
उस काल से ही साधनाएं होती रही हैं । साधनाओ के माध्यम से इष्ट की कृपा प्राप्त
करने का विधान मौजूद रहा है ।
तंत्र साधनाओ मैं कई प्रकार के स्तोत्र का प्रयोग
किया जाता है जिनमें सहस्त्रनाम स्तोत्र अर्थात 1000 नामों का उच्चारण सबसे ज्यादा प्रचलित है । इसके अलावा कवच
का भी प्रयोग होता है , कवच का
अर्थ होता है कोई ऐसी चीज जो आपकी रक्षा करें । हम सामान्यतः अपने शरीर की रक्षा
करना चाहते हैं ऐसी स्थिति में इन रक्षा कवचो में शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा
करने के लिए हम अपने इष्ट से प्रार्थना करते हैं राम रक्षा स्तोत्र भी एक वैसा ही
कवच है जिसके माध्यम से हम भगवान श्रीराम से अपनी रक्षा करने की प्रार्थना करते
हैं आइए इसको देखें ।
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
॥
पहले भगवान गणेश को प्रणाम
करें
॥ श्री गणेशाय नम: ॥
आपके कोई गुरु है तो उनको
प्रणाम करें । अगर उन्होंने कोई मंत्र दिया है तो उस मंत्र का जाप करें । यदि नहीं
दिया है या गुरु नहीं है तो आप निम्नलिखित मंत्र का भी एक बार जाप कर सकते हैं और
सभी गुरुओं को प्रणाम कर सकते हैं ।
॥ ओम गुरु मंडलाय नमः ॥
अपने दाहिने हाथ पर एक
चम्मच पानी लेकर नीचे लिखे हुए विनियोग का उच्चारण करेंगे । पूरा पढ़ लेने के बाद
उस जल को भगवान राम के चरणों में छोड़ देंगे ।
अस्य
श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: । सीता
शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम्
।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे
जपे विनियोग: ॥
अर्थ : इस राम रक्षा
स्तोत्र मंत्रके रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमानजी कीलक है तथा श्रीरामचंद्रजीकी प्रसन्नताके लिए राम
रक्षा स्तोत्रके जपमें विनियोग किया जाता है ।
इसके पश्चात भगवान श्री
राम के सुंदर स्वरूप का ध्यान करेंगे। जिस भगवान की हम पूजा करने वाले हैं उसके
स्वरूप को जिस प्रकार से हम देखना चाहते हैं उस प्रकार की कल्पना करते हुए अपने
मानस पटल पर उस चित्र को देखने का प्रयास करें ऐसा महसूस करें कि आपके ध्यान में
भगवान का वैसा स्वरूप आपको दिखाई दे रहा है ।
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं
धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं
नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता
मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं
दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
अर्थ : जो धनुष-बाण धारण
किए हुए हैं,बद्ध पद्मासन की
मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल से समान स्पर्धा करते हैं,अर्थात कमल के समान सुंदर है और जो बायें ओर स्थित सीताजीके
मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु,(आजानु बाहु का तात्पर्य होता है जिसके हाथ घुटनों तक
पहुंचते हो, जितने अद्भुत महामानव
होते हैं उनके हाथों की लंबाई ज्यादा होती है और वह लगभग उनके घुटनों तक पहुंचते
हुए प्रतीत होते हैं ) मेघ अर्थात बादलों जैसे श्याम रंग के , विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीरामका ध्यान
करता हूँ ।
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य
शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्
॥१॥
अर्थ : श्री रघुनाथजीका
चरित्र सौ कोटि विस्तारवाला हैं । उसका एक-एक अक्षर महापातकों (पापों ) को नष्ट
करनेवाला है ।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं
रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं
जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
अर्थ : नीले कमल के जैसे
श्याम वर्ण वाले, कमल जैसे
सुंदर नेत्र वाले , जटाओं के
मुकुट से सुशोभित, जानकी
तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्रीरामका स्मरण का मैं ध्यान करता हूँ ।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं
नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया
जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
अर्थ : जो अजन्मा एवं
सर्वव्यापक, हाथोंमें खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण
धारण किए राक्षसोंके संहार तथा अपनी लीलाओंसे जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीरामका
स्मरण करता हूँ ।
यहाँ से रक्षा पाठ
प्रारम्भ होता है :-
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ:
पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं
दशरथात्मज: ॥४॥
अर्थ : मैं सर्वकामप्रद और
पापोंको नष्ट करनेवाले राम रक्षा स्तोत्रका पाठ करता हूं । राघव मेरे सिर की और
दशरथ के पुत्र मेरे ललाटकी रक्षा करें ।
कौसल्येयो दृशौ पातु
विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं
सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
अर्थ : कौशल्या नंदन मेरे
नेत्रोंकी, विश्वामित्र के प्रिय
मेरे कानों की, यज्ञ रक्षक मेरे नाक
की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुखकी रक्षा करें ।
जिव्हां विद्यानिधि: पातु
कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु
भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
अर्थ : विद्यानिधि मेरी
जिह्वाकी रक्षा करें, कंठकी
भरत-वंदित, कंधोंकी दिव्यायुध और
भुजाओं की महादेवजीका धनुष तोडनेवाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें ।
करौ सीतपति: पातु हृदयं
जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं
जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
अर्थ : मेरे हाथोंकी सीता
पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की
जमदग्नि ऋषि के पुत्र को (परशुराम) जीतनेवाले, मध्य भाग की खर नामक राक्षस के वधकर्ता और नाभि की जांबवान
के आश्रयदाता रक्षा करें ।
सुग्रीवेश: कटी पातु
सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु
रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
अर्थ : मेरे कमर की सुग्रीव
के स्वामी, हडियों की हनुमान के
प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुकुल के श्रेष्ठ भगवान राम
रक्षा करें ।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे
दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु
रामोSखिलं वपु: ॥९॥
अर्थ : मेरे जानुओं की
सेतु कृत (अर्थात सेतु का निर्माण करके लंका तक पहुंच जाने वाले), जंघाओ की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले और सम्पूर्ण
शरीर की श्रीराम रक्षा करें ।
एतां रामबलोपेतां रक्षां
य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री
विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
अर्थ : शुभ कार्य करनेवाला
जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धाके साथ राम बल से अर्थात उनकी भक्ति और श्रद्धा से
संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं ।
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण:
।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते
रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
अर्थ : जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेशमें
घूमते रहते हैं , वे राम
नामों से सुरक्षित मनुष्यको देख भी नहीं पाते । तात्पर्य यह कि जो भगवान राम का
नाम लेता रहता है उसे राक्षस गण भी परेशान नहीं कर पाते हैं ।
रामेति रामभद्रेति
रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै
भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
अर्थ : राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामोंका स्मरण करनेवाला रामभक्त
पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही
नहीं,
वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनोंको प्राप्त करता है ।
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण
रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य
करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
अर्थ : जो संसार पर विजय
करनेवाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं । अर्थात उसके
सभी प्रकार के कार्य सफल होने लगते हैं ।
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं
स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते
जयमंगलम् ॥१४॥
अर्थ : जो मनुष्य वज्रपंजर
नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता अर्थात उसकी बात
को लोग स्वीकार करने लगते हैं तथा उसे सदैव विजय और मंगलकी ही प्राप्ति होती हैं ।
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने
रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात:
प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
अर्थ : भगवान् शंकरने
स्वप्नमें इस रामरक्षा स्तोत्रका आदेश बुध कौशिक ऋषिको दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागनेपर उसे वैसा ही लिख दिया |
आराम: कल्पवृक्षाणां
विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम:
श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
अर्थ : जो कल्प वृक्षों के
बागके समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियोंको दूर करनेवाले हैं और जो तीनो लोकों
में सुंदर हैं, शोभनीय है वही श्री
राम हमारे प्रभु हैं ।
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ
महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ
चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
अर्थ : जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमलके (पुण्डरीक) समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों के समान वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं
।
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ
ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ
रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
अर्थ : जो फल और कंदका
आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी
,
तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथके पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें
।
शरण्यौ सर्वसत्वानां
श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ
त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
अर्थ : समस्त प्रकार की
सात्विक शक्तियों को शरण देने वाले, समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल
नाश करने में समर्थ मर्यादा पुरूषोतम हमारा रक्षण करें ।
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा
वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा
वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
अर्थ : संघान किए धनुष
धारण किए,
बाण का स्पर्श कर रहे, अर्थात किसी भी विपत्ति का सामना करने के लिए उद्यत , अक्षय बाणो से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी
रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें ।
संनद्ध: कवची खड्गी
चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
अर्थ : हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ
में खडग,
धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित हमारे
आगे-आगे चलते हुए हमारी रक्षा करें ।
रामो दाशरथि: शूरो
लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण:
कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश:
पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय
पराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त:
श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं
संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
अर्थ : भगवानका कथन है कि
श्री राम,
दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ
,
पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुत्तम, वेदान्त्वेद्य, यज्ञेश, पुराण
पुरुषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का नित्य
श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूपसे अश्वमेध यज्ञसे भी अधिक फल प्राप्त
होता हैं ।
रामं दूर्वादल श्यामं पद्माक्षं
पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न
ते संसारिणो नर: ॥२५॥
अर्थ : दूर्वादलके समान
श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं
पीतांबरधारी श्रीरामकी उपरोक्त दिव्य नामोंसे स्तुति करने वाला संसारचक्र या
मायाजाल में नहीं पडता ।
रामं लक्ष्मणं पूर्वजं
रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं
गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं
दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं
रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
अर्थ : लक्ष्मण जी के बड़े
भाई ,
सीताजी के पति, सुंदर, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा
के सागर ,
गुण-निधान , विप्र प्रिय , धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथके
पुत्र,
श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रघुकुल के तिलक अर्थात गौरव , राघव, रावण
को नष्ट करने वाले भगवान् राम की मैं वंदना करता हूं।
रामाय रामभद्राय
रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया:
पतये नम: ॥२७॥
अर्थ : राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, नाथ
या स्वामी एवं सीताजीके पति की मैं वंदना करता हूं।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम
राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम
राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम
राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम
राम ॥२८॥
अर्थ : हे रघुनन्दन
श्रीराम ! हे भरतके अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा
स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा
गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा
नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं
प्रपद्ये ॥२९॥
अर्थ : मैं एकाग्र मनसे
श्रीरामचंद्रजीके चरणोंका स्मरण और वाणीसे गुणगान करता हूं, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धाके साथ भगवान् रामचन्द्रके
चरणोंको प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणोंकी शरण लेता हूं |
माता रामो मत्पिता
रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा
रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो
दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न
जाने ॥३०॥
अर्थ : श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं ।इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे
सर्वस्व हैं, उनके सिवा मैं इस
संसार में किसी दुसरेको नहीं जानता ।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य
वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं
वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
अर्थ : जिनके दाईं और
लक्ष्मणजी, बाईं और जानकीजी और
सामने हनुमान जी विराजमान हैं, मैं
उन्ही रघुनाथजीकी वंदना करता हूं ।
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं
राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं
श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
अर्थ : मैं सम्पूर्ण
लोकोंमें सुन्दर तथा रणक्रीडामें धीर अर्थात डटे रहने वाले , कमल जैसे नेत्र वाले , रघुवंश नायक, करुणाकी मूर्ति और सभी प्राणियों पर करुणा करने वाले
करुणाके भण्डार रुपी श्रीरामकी शरणमें हूं।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
अर्थ : जिनकी गति मनके
समान और वेग वायुके समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूतकी शरण लेता हूं ।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं
मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे
वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
अर्थ : मैं कवितामयी डाली
पर बैठकर,
मधुर अक्षरोंवाले ‘राम-राम’ के
मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयलकी वंदना करता हूं ।
आपदामपहर्तारं दातारं
सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो
भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
अर्थ : मैं इस संसारके
प्रिय एवं सुन्दर , उन
भगवान् रामको बार-बार नमन करता हूं, जो सभी आपदाओंको दूर करनेवाले तथा सुख-सम्पति प्रदान
करनेवाले हैं ।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं
सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां
रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
अर्थ : ‘राम-राम’ का
जप करनेसे मनुष्यके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं । वह समस्त सुख-सम्पति तथा
ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं । राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं ।
रामो राजमणि: सदा विजयते
रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू
रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं
रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे
भो राम मामुद्धर ॥३७॥
अर्थ : राजाओं में मणि के
समान श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजयको प्राप्त करते हैं । सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश
करनेवाले श्रीरामको मैं नमस्कार करता हूं । श्री राम के समान अन्य कोई आश्रयदाता
नहीं । मैं उन शरणागत वत्सलका दास हूं। मैं सदैव श्रीराममें ही लीन रहूं । हे
श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें ।
राम रामेति रामेति रमे
रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम
वरानने ॥३८॥
अर्थ : (शिव पार्वती से
बोले –)
हे सुमुखी ! राम- नाम सहस्त्रनाम के समान हैं । वह मनोरम है
। मैं सदा राम का स्तवन करता हूं और राम-नाम में ही रमण करता हूं ।
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं
श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
इस प्रकार बुधकौशिकद्वारा
रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है ।
॥ श्री
सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
एक बार गुरु का ध्यान
करेंगे गुरु मंत्र का एक बार जाप करेंगे और किसी भी प्रकार की गलती के लिए दोनों
कान पकड़कर क्षमा प्रार्थना कर लेंगे ।
अंत में भगवान शिव को
प्रणाम करते हुए कहेंगे ।
शिव शासनतः !
शिव शासनतः !!
शिव शासनतः !!!
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सस्नेह नमस्कार,
आप सभी के स्नेह तथा आशीर्वाद के लिए धन्यवाद ।
मंत्र के उच्चारण को
स्पष्ट करने के लिए
मंत्र उच्चारण Mantra Pronunciation
के नाम से
पॉडकास्ट
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और यूट्यूब चेनल
https://www.youtube.com/channel/UCpQmfDpTFYokh8smhreq3Sg
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