28 फ़रवरी 2022

रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल

  रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल 


रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है रूद्र और अक्ष । 

रुद्र = शिव, अक्ष = आँख 

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के आंखों से गिरे हुए आनंद के आंसुओं से रुद्राक्ष के फल की उत्पत्ति हुई थी । 

रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक पाए जाते हैं । 

रुद्राक्ष साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण चीज है लगभग सभी साधनाओं में रुद्राक्ष की माला को स्वीकार किया जाता है एक तरह से आप इसे माला के मामले में ऑल इन वन कह सकते हैं 


अगर आप तंत्र साधनाएं करते हैं या किसी की समस्या का समाधान करते हैं तो आपको रुद्राक्ष की माला अवश्य पहननी चाहिए ।


यह एक तरह की आध्यात्मिक बैटरी है जो आपके मंत्र जाप और साधना के द्वारा चार्ज होती रहती है और वह आपके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा घेरा बनाकर रखती है जो आपकी रक्षा तब भी करती है जब आप साधना से उठ जाते हैं और यह रक्षा मंडल आपके चारों तरफ दिनभर बना रहता है ।

पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे सुलभ और सस्ते होते हैं । जैसे जैसे मुख की संख्या कम होती जाती है उसकी कीमत बढ़ती जाती है । एक मुखी रुद्राक्ष सबसे दुर्लभ और सबसे महंगे रुद्राक्ष है । इसी प्रकार से पांच मुखी रुद्राक्ष के ऊपर मुख वाले रुद्राक्ष की मुख की संख्या के हिसाब से उसकी कीमत बढ़ती जाती है । 21 मुखी रुद्राक्ष भी बेहद दुर्लभ और महंगे होते हैं ।

पांच मुखी रुद्राक्ष सामान्यतः हर जगह उपलब्ध हो जाता है और आम आदमी उसे खरीद भी सकता है पहन भी सकता है । पाँच मुखी रुद्राक्ष के अंदर भी आध्यात्मिक शक्तियों को समाहित करने के गुण होते हैं ।


गृहस्थ व्यक्ति , पुरुष या स्त्री , पांच मुखी रुद्राक्ष की माला धारण कर सकते हैं और अगर एक दाना धारण करना चाहे तो भी धारण कर सकते हैं ।

रुद्राक्ष की माला से बीपी में भी अनुकूलता प्राप्त होती है


रुद्राक्ष पहनने के मामले में सबसे ज्यादा लोग नियमों की चिंता करते हैं ।

मुझे ऐसा लगता है कि जैसे भगवान शिव किसी नियम किसी सीमा के अधीन नहीं है, उसी प्रकार से उनका अंश रुद्राक्ष भी परा स्वतंत्र हैं । उनके लिए किसी प्रकार के नियमों की सीमा का बांधा जाना उचित नहीं है


रुद्राक्ष हर किसी को सूट नहीं करता यह भी एक सच्चाई है और इसका पता आपको रुद्राक्ष की माला पहनने के महीने भर के अंदर चल जाएगा । अगर रुद्राक्ष आपको स्वीकार करता है तो वह आपको अनुकूलता देगा ।

आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा आपको अपने शरीर में ज्यादा चेतना में महसूस होगी......

आप जो भी काम करने जाएंगे उसमें आपको अनुकूलता महसूस होगी ....

ऐसी स्थिति में आप रुद्राक्ष को धारण कर सकते हैं वह आपके लिए अनुकूल है !!!


इसके विपरीत स्थितियाँ होने से आप समझ जाइए कि आपको रुद्राक्ष की माला नहीं पहननी है ।


इसके बाद सबसे ज्यादा संशय की बात होती है कि रुद्राक्ष असली है या नहीं है । आज के युग में 100% शुद्धता की बात करना बेमानी है । ऑनलाइन में कई प्रकार के सर्टिफाइड रुद्राक्ष भी उपलब्ध है । उनमें से भी कई नकली हो सकते हैं, ऐसी स्थिति में मेरे विचार से आप किसी प्रामाणिक गुरु से या आध्यात्मिक संस्थान से रुद्राक्ष प्राप्त करें तो ज्यादा बेहतर होगा ।




तमिलनाडु में कोयंबटूर नामक स्थान पर सद्गुरु के नाम से लोकप्रिय आध्यात्मिक संत जग्गी वासुदेव जी के द्वारा ईशा फाउंडेशन नामक एक संस्था की स्थापना की गई है । जो आदियोगी अर्थात भगवान शिव के गूढ़ रहस्यों को जन जन तक पहुंचाने के लिए निरंतर गतिशील है । उनके द्वारा एक अद्भुत और संभवतः विश्व के सबसे बड़े पारद शिवलिंग की स्थापना भी की गई है । यही नहीं एक विशालकाय आदियोगी भगवान शिव की प्रतिमा का भी निर्माण किया गया है , जिसके प्रारंभ के उत्सव में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी उपस्थित थे ।


ईशा फाउंडेशन के द्वारा कुछ विशेष अवसरों पर निशुल्क प्राण प्रतिष्ठित रुद्राक्ष भी उपलब्ध कराए जाते हैं जैसा कि शिवरात्रि के अवसर पर इस वर्ष किया गया था ।


इसके अलावा रुद्राक्ष की छोटे मनको वाली और बड़े मनको वाली माला जोकि सदगुरुदेव द्वारा प्राण प्रतिष्ठित होती है, वह आप ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं । ज्यादा जानकारी के लिए आप ईशा फाउंडेशन गूगल में सर्च करके देख सकते हैं ।

उनकी वेबसाइट का एड्रेस है . 

https://www.ishalife.com/in/


27 फ़रवरी 2022

दक्षिणामूर्ति शिव

   दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है । यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।





॥ऊं ह्रीं दक्षिणामूर्तये नमः ॥

  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • ब्रह्ममुहूर्त यानि सुबह ४ से ६ के बीच जाप करें.
  • सफेद वस्त्र , आसन , होगा.
  • दिशा इशान( उत्तर और पूर्व के बीच ) की तरफ देखकर करें.
  • भस्म से त्रिपुंड लगाए . 
  • रुद्राक्ष की माला पहने .
  • रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
.

26 फ़रवरी 2022

अघोरेश्वर महादेव की साधना

  



अघोरमंत्र
ॐ नमः शिवाय महादेवाय नीलकंठाय आदि रुद्राय अघोरमंत्राय अघोर रुद्राय अघोर भद्राय सर्वभयहराय मम सर्वकार्यफल प्रदाय हन हनाय ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ टं टं टं टं टं घ्रीं घ्रीं घ्रीं घ्रीं घ्रीं हर हराय सर्व अघोररुपाय त्र्यम्बकाय विरुपाक्षाय ॐ हौं हः हीं हः ग्रं ग्रं ग्रं हां हीं हूं हैं हौं हः क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ नमः शिवाय अघोरप्रलयप्रचंड रुद्राय अपरिमितवीरविक्रमाय अघोररुद्रमंत्राय सर्वग्रह उचचाटनाय सर्वजनवशीकरणाय सर्वतोमुख मां रक्ष रक्ष शीघ्रं हूं फट् स्वाहा ।
ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ हां हीं हूं हैं हौं हः स्वर्गमृत्यु पाताल त्रिभुवन संच्चरित देव ग्रहाणां दानव ग्रहाणां ब्रह्मराक्षस ग्रहाणां सर्ववातग्रहाणां सर्व वेताल ग्रहाणां शाकिनी ग्रहाणां डाकिनी ग्रहाणां सर्व भूत ग्रहाणां कमिनी ग्रहाणां सर्व पिंड ग्रहाणां सर्व दोष ग्रहाणां सर्वपस्मारग्रहाणां हन हन हन भक्षय भक्षय भक्षय विरूपाक्षाय दह दह दह हूं फट् स्वाहा ॥

  • अघोरेश्वर महादेव की साधना है | कोई नियम विधि बंधन नहीं | उन्मुक्त होने का प्रारंभ .....
  • क्रोध और काम दोनों से बचें .
  • यदि शरीर में ज्यादा गर्मी का आभास हो तो रात्रिकाल में एक कप दूध में आधा चम्मच घी डालकर पियें .

25 फ़रवरी 2022

सर्व रोग हर मृत्युंजय मन्त्र

  ||ॐ त्रयम्बकं यजामहे उर्वा रुकमिव स्तुता वरदा प्रचोदयंताम आयु: प्राणं प्रजां पशुं ब्रह्मवर्चसं मह्यं दत्वा व्रजम ब्रह्मलोकं  ||


  • इस मंत्र के उच्चारण करने या श्रवण करने से समस्त बिमारियों में लाभ होता है .
  • शिवरात्रि तक क्षमतानुसार जाप करें.

24 फ़रवरी 2022

साधना सिद्धि विज्ञान : फरवरी 2022 : कामकला काली विशेषांक


 तंत्र साधना के क्षेत्र में सर्वोच्च साधनाओं में से एक भगवती कामकला काली साधना को माना जाता है । इस साधना के महत्व को आप इस बात से समझ सकते हैं कि तंत्र क्षेत्र मे इस साधना के विषय में यह तक कहा जाता है कि अगर अपना पूरा राज्य देना पड़ जाए या स्वयं अपने हाथों से अपना सिर काट कर देना पड़ जाए  और उसके बदले में यदि यह साधना प्राप्त हो जाए तो भी उसे स्वीकार कर लेना चाहिए ..... 


शिवलिंगम महत्व

 शिवलिंगम 


भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।


मिट्टी से बनाए जाने वाले शिवलिंग को पार्थिव शिवलिंग कहा जाता है और सामान्यतः इसका निर्माण करने के कुछ समय के बाद इसे विसर्जित कर दिया जाता है क्योंकि मिट्टी से बना होने के कारण यह जल्दी टूट जाता है । सामान्यतः श्रावण मास में या शिवरात्रि के अवसर पर पार्थिव शिवलिंग के पूजन का विधान रखा जाता है । इसके दौरान भक्त अपनी क्षमता के अनुसार एक सौ आठ, एक हजार आठ जैसी संख्या में शिवलिंग का निर्माण करते हैं । कई बार सामूहिक रूप से भी ऐसे आयोजन किए जाते हैं । पार्थिव शिवलिंग को बनाकर उसका पूजन करने और जल में विसर्जित कर देने से मनोकामना की पूर्ति होती है ऐसा माना जाता है ।


इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,


इसके बारे में कहा गया है कि,


मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः,

मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः

रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥


अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से,

स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से,

मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग के पूजन से

तथा

बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल

रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है।

आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।



शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग जिन्हें बाणलिंग भी कहते हैं । अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं।


यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं ।


शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।

23 फ़रवरी 2022

शिव पूजन मे ध्यान रखने योग्य

  शिव पूजन मे ध्यान रखने योग्य 


भगवान शिव देवताओं में सबसे विशिष्ट देवता होने के कारण महादेव कहलाते हैं । 

वह अद्भुत देवता है !

वे सभी प्रकार के ज्ञान का मूल है । 

भगवान शिव को आदि गुरु माना गया है अर्थात वे संपूर्ण सृष्टि के प्रथम गुरु है । 

वह देवताओं के गुरु हैं तो राक्षसों के भी गुरु है ..... 

इसलिए उनकी साधना कोई भी कर सकता है ।


भगवान शिव की साधना गुरु मानकर अदीक्षित व्यक्ति भी कर सकता है ।


भगवान शिव की साधना में पुरुष या स्त्री होने से किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है ...... क्योंकि वह स्वयं अर्धनारीश्वर अर्थात पुरुष और स्त्री का संयुक्त स्वरूप है ।


भगवान शिव की साधना सबसे सरल है और वे बेहद सरलता से प्रसन्न होने वाले भगवान होने के कारण भोलेनाथ कहलाते हैं । जितनी सरलता और सहजता से आप भगवान शिव का पूजन करेंगे उतनी ही सरलता से आपको अनुकूलता प्राप्त होगी ।

भगवान शिव की पूजा में पूजन सामग्री का बहुत ज्यादा महत्व नहीं है । जितनी भावना से आप पूजन करेंगे उतना ज्यादा आपको फल प्राप्त होगा ।


भगवान शिव के ऊपर जो पूजन सामग्रियां चढ़ती है वह भी उन्हीं के समान विचित्र है । बेलपत्र, धतूरे का फल उन को विशेष रूप से प्रिय है । यह बहुतायत में आसानी से उपलब्ध हो जाता है । इसका प्रयोग आप पूजन में कर सकते हैं ।


भगवान शिव के ऊपर जल या दूध चढ़ाने को अभिषेक कहा जाता है । इससे उनकी कृपा प्राप्त होती है । आप सामान्य जल से अभिषेक कर सकते हैं और दूध उपलब्ध हो तो उसमें पानी मिलाकर या गंगाजल मिलाकर भी अभिषेक कर सकते हैं ।


॥ ॐ नमः शिवाय ॥


इस मंत्र का आप भगवान शिव के पूजन में उपयोग कर सकते हैं । इसी मंत्र का जाप करते हुए बेलपत्र भी चढ़ा सकते हैं और जल या दूध भी चढ़ा सकते हैं ।


भगवान शिव का पूजन करते समय भस्म से तीन लाइन वाला तिलक लगाना चाहिए । जिसे त्रिपुंड कहा जाता है । यह तिलक आप अगरबत्ती की राख से भी लगा सकते हैं या फिर यज्ञ की राख या गोबर के कंडे को जलाकर बनाई हुई राख से भी लगा सकते हैं ।


भगवान शिव के पूजन के समय रुद्राक्ष धारण करने से ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है । आप रुद्राक्ष की माला गले में धारण करके पूजन करें ।


भगवान शिव के मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग सर्वश्रेष्ठ माना गया है । रुद्राक्ष की माला किसी भी प्रकार के दाने की हो सकती है । आप अपनी सुविधानुसार छोटी या बड़ी माला से मंत्र जाप कर सकते हैं ।


भगवान शिव के पूजन के समय महामाया का पूजन भी अनिवार्य रूप से करना चाहिए तभी पूजन को पूर्णता प्राप्त होती है ।


भगवान शिव की साधना हर बंधन से मुक्त है क्योंकि वह स्वयं हर बंधन से मुक्त हैं । 


यहां तक कि वह अकेले ऐसे देवता हैं जो वस्त्र और आभूषण तक से मुक्त है । 


इसलिए उनके पूजन में किसी भी प्रकार के प्रतिबंधों का कोई औचित्य नहीं है ।


22 फ़रवरी 2022

बिल्वपत्रम शिवार्पणम्

  बिल्वपत्र समर्पण मंत्र 

मेरे आराध्य जगतगुरु दक्षिणामूर्ति देवाधिदेव महादेव के पूजन में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है बिल्वपत्र का समर्पण।

बिल्वपत्र या बेलपत्र को समर्पित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले 108 स्तुतियों को आप शिव पूजन के लिए प्रयोग कर सकते हैं ।

 



त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् ।

त्रिजन्म पापसंहारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१॥

 

त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः ।

तव पूजां करिष्यामि बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२॥


सर्व त्रैलोक्य कर्तारं सर्व त्रैलोक्य पालनम् ।

सर्व त्रैलोक्य हर्तारं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥३॥


नागाधिराज वलयं नाग हारेण भूषितम् ।

नाग कुण्डल संयुक्तं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥४॥


अक्षमालाधरं रुद्रं पार्वती प्रिय वल्लभम् ।

चन्द्रशेखरमीशानं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥५॥


त्रिलोचनं दशभुजं दुर्गा देहार्ध धारिणम् ।

विभूत्यभ्यर्चितं देवं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥६॥


त्रिशूल धारिणं देवं नागाभरण सुन्दरम् ।

चन्द्रशेखरमीशानं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥७॥


गङ्गाधर अम्बिकानाथं फणि कुण्डल मण्डितम् ।

कालकालं गिरीशं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥८॥


शुद्ध स्फटिक सङ्काशं शितिकण्ठं कृपानिधिम् ।

सर्वेश्वरं सदा शान्तं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥९॥


सच्चिदानन्दरूपं च परानन्दमयं शिवम् ।

वागीश्वरं चिदाकाशं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१०॥


शिपिविष्टं सहस्राक्षं दुंदुभ्यश्च निषंगीणम ।

हिरण्यबाहुं सेनान्यं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥११॥


अरुणं वामनं तारं वास्तव्यं चैव वास्तवम् ।

ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१२॥



हरिकेशं सनन्दीशं उच्चैर्घोषं सनातनम् ।

अघोर रूपकं कर्मम बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१३॥


पूर्वजावरजं याम्यं सूक्ष्मं तस्कर नायकम् ।

नीलकण्ठं जघन्यं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१४॥


सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं च वरूधिनम् I

महासेनं महावीरं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१५॥


कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यञ्च महारथम् ।

तौर्यातौर्यं च देव्यं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१६॥


दशकर्णं ललाटाक्षं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम् ।

अशेष पाप संहारं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१७॥


नीलकण्ठं जगद्वन्द्यं दीनानाथं महेश्वरम् ।

महापाप हरं शंभूम बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१८॥


चूडामणी कृतविभुं वलयीकृत वासुकिम् ।

कैलास निलयम भीमं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१९॥


कर्पूर कुन्द धवलं नरकार्णव तारकम् ।

करुणामृत सिन्धुं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२०॥


महादेवं महात्मानं भुजङ्गाधिप कङ्कणम् ।

महापाप हरं देवं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२१॥


भूतेशं खण्डपरशुं वामदेवं पिनाकिनम् ।

वामे शक्तिधरं श्रेष्ठं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२२॥ 


कालेक्षणं विरूपाक्षं श्रीकण्ठं भक्तवत्सलम् ।

नीललोहित खट्वाङ्गं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२३॥


कैलासवासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरान्तकम् ।

वृषाङ्कं वृषभारूढं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२४॥


सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धूलित विग्रहम् ।

मृत्युञ्जयं लोकनाथं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२५॥


दारिद्र्य दुःख हरणं रविचन्द्रानलेक्षणम् ।

मृगपाणिं चन्द्रमौलिम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२६॥


सर्वलोकमयाकारं सर्वलोकैक साक्षिणम् ।

निर्मलं निर्गुणाकारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२७॥


सर्व तत्त्वात्मकं साम्बं सर्वतत्त्वविदूरकम् ।

सर्व तत्त्व स्वरूपं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२८॥


सर्व लोक गुरुं स्थाणुं सर्वलोक वरप्रदम् ।

सर्व लोकैक नेत्रं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ २९॥


मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गं परात्मकम् ।

कमला प्रिय पूज्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३०॥


तेजोमयं महाभीमं उमेशं भस्मलेपनम् ।

भव रोग विनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३१॥


स्वर्गापवर्ग फलदं रघुनाथ वरप्रदम् ।

नगराज सुताकान्तं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३२॥


मञ्जीरपाद युगलं शुभ लक्षण लक्षितम् ।

फणिराज विराजं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३३॥


निरामयं निराधारं निस्सङ्गं निष्प्रपञ्चकम् ।

तेजोरूपं महारौद्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३४॥


सर्व लोकैक पितरं सर्व लोकैक मातरम् ।

सर्व लोकैक नाथं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३५॥


चित्राम्बरं निराभासं वृषभेश्वर वाहनम् ।

नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३६॥


रत्नकञ्चुक रत्नेशं रत्नकुण्डल मण्डितम् ।

नवरत्नकिरीटं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३७॥


दिव्य रत्नाङ्गुली स्वर्णं कण्ठाभरण भूषितम् ।

नानारत्न मणिमयं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३८॥


रत्नाङ्गुलीय विलसत कर शाखा नखप्रभम् ।

भक्त मानस गेहं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥ ३९॥


वामाङ्ग भाग विलसद अंबिका वीक्षणप्रियम् ।

पुण्डरीकनिभाक्षं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४०॥


सम्पूर्ण कामदं सौख्यं भक्तेष्ट फलकारणम् ।

सौभाग्यदं हितकरं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४१॥


नानाशास्त्र गुणोपेतं स्फुरन्मङ्गल विग्रहम् ।

विद्या विभेद रहितं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४२॥


अप्रमेय गुणाधारं वेदकृद्रूप विग्रहम् ।

धर्माधर्म प्रवृत्तं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४३॥


गौरी विलास सदनं जीव जीवपितामहम् ।

कल्पान्त भैरवं शुभ्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४४॥


सुखदं सुख नाशं च दुःखदं दुःखनाशनम् ।

दुःखावतारं भद्रं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४५॥


सुखरूपं रूपनाशं सर्वधर्मफलप्रदम् ।

अतीन्द्रियं महामायं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४६॥


सर्वपक्षि मृगाकारं सर्वपक्षि मृगाधिपम् ।

सर्वपक्षि मृगाधारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४७॥


जीवाध्यक्षं जीववन्द्यं जीवजीवनरक्षकम् ।

जीवकृज्जीवहरणं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४८॥


विश्वात्मानं विश्ववन्द्यं वज्रात्मा वज्रहस्तकम् ।

वज्रेशं वज्रभूषं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४९॥


गणाधिपं गणाध्यक्षं प्रलयानलनाशकम् ।

जितेन्द्रियं वीरभद्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५०॥


त्र्यम्बकं मृडं शूरं अरिषड्वर्गनाशनम् ।

दिगम्बरं क्षोभनाशं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५१॥


कुन्देन्दु शङ्ख धवलं भगनेत्रभिदुज्ज्वलम् ।

कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५२॥


कम्बुग्रीवं कम्बुकण्ठं धैर्यदं धैर्यवर्धकम् ।

शार्दूल चर्मवसनं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५३॥


जगदुत्पत्ति हेतुं च जगत्प्रलय कारणम् ।

पूर्णानन्द स्वरूपं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५४॥


सर्गकेशं महत्तेजं पुण्यश्रवणकीर्तनम् ।

ब्रह्माण्डनायकं तारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५५॥


मन्दार मूल निलयं मन्दार कुसुम प्रियम् ।

बृन्दारक प्रियतरं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥५६॥


महेन्द्रियं महाबाहुं विश्वासपरिपूरकम् ।

सुलभासुलभं लभ्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५७॥


बीजाधारं बीजरूपं निर्बीजं बीजवृद्धिदम् ।

परेशं बीजनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५८॥


युगाकारं युगाधीशं युगकृद्युगनाशनम् ।

परेशं बीज नाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५९॥


धूर्जटिं पिङ्गलजटं जटामण्डलमण्डितम् ।

कर्पूरगौरं गौरीशं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६०॥


सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुङ्गवम् ।

योगदं योगिनां सिंहं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६१॥


उत्तमानुत्तमं तत्त्वं अन्धकासुरसूदनम् ।

भक्त कल्पद्रुमस्तोमं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६२॥


विचित्र माल्य वसनं दिव्य चन्दन चर्चितम् ।

विष्णु ब्रह्मादि वन्द्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६३॥


कुमारं पितरं देवं स्थितचन्द्रकलानिधिम् ।

ब्रह्म शत्रुं जगन्मित्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६४॥


लावण्य मधुराकारं करुणारस वारिधिम् ।

भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६५॥


जटाधरं पावकाक्षं वृक्षेशं भूमिनायकम् ।

कामदं सर्वदागम्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६६॥


शिवं शान्तं उमानाथं महाध्यानपरायणम् ।

ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६७॥


वासुक्युरगहारं च लोकानुग्रह कारणम् ।

ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६८॥


शशाङ्क धारिणं भर्गं सर्वलोकैक शङ्करम् I

शुद्धं च शाश्वतं नित्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६९॥


शरणागत दीनार्त परित्राण परायणम् ।

गम्भीरं च वषट्कारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७०॥


भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानसम् I

करणं कारणं जिष्णुं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७१॥


क्षेत्रज्ञं क्षेत्रपालञ्च परार्धैकप्रयोजनम् ।

व्योमकेशं भीमवेषं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७२॥


भवज्ञं करुणोपेतं चोरिष्टं यमनाशनम् ।

हिरण्यगर्भं हेमाङ्गं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७३॥


दक्षं चामुण्ड जनकं मोक्षदं मोक्षनायकम् ।

हिरण्यदं हेमरूपं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७४॥


महाश्मशान निलयं प्रच्छन्नस्फटिकप्रभम् ।

वेदास्यं वेदरूपं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७५॥


स्थिरं धर्मं उमानाथं ब्रह्मण्यं चाश्रयं विभुम् I

जगन्निवासं प्रमथम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७६॥


रुद्राक्ष मालाभरणं रुद्राक्ष प्रिय वत्सलम् ।

रुद्राक्ष भक्त संस्तोभम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७७॥


फणीन्द्र विलसत्कण्ठं भुजङ्गाभरण प्रियम् I

दक्षाध्वर विनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७८॥


नागेन्द्र विलसत्कर्णं महीन्द्रवलयावृतम् ।

मुनिवन्द्यं मुनिश्रेष्ठम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७९॥


मृगेन्द्र चर्म वसनं मुनीनामेक जीवनम् ।

सर्वदेवादि पूज्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८०॥


निधनेशं धनाधीशं अपमृत्यु विनाशनम् ।

लिङ्गमूर्तिम लिङ्गात्मं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८१॥


भक्त कल्याणदं व्यस्तं वेदवेदान्त संस्तुतम् ।

कल्पकृत्कल्पनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८२॥


घोरपातक दावाग्निं जन्मकर्म विवर्जितम् ।

कपाल माला भरणं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८३॥


मातङ्ग चर्म वसनं विरदम पवित्र धारकम् ।

विष्णुक्रान्तम अनन्तं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८४॥


यज्ञ कर्म फलाध्यक्षं यज्ञ विघ्न विनाशकम् ।

यज्ञेशं यज्ञभोक्तारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८५॥


कालाधीशं त्रिकालज्ञं दुष्ट निग्रह कारकम् ।

योगि मानस पूज्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८६॥


महोन्नत महाकायं महोदर महाभुजम् ।

महावक्त्रं महावृद्धं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८७॥


सुनेत्रं सुललाटं च सर्वभीम पराक्रमम् ।

महेश्वरं शिवतरं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् II८८॥


समस्त जगदाधारं समस्त गुण सागरम् ।

सत्यं सत्यगुणोपेतं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ८९॥


माघ कृष्ण चतुर्दश्यां पूजार्थं च जगद्गुरोः ।

दुर्लभं सर्वदेवानां बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९०॥


तत्रापि दुर्लभं मन्येत् नभोमासेन्दुवासरे ।

प्रदोष काले पूजायां बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९१॥


तडागम धननिक्षेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम् ।

कोटिकन्यामहादानं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९२॥


दर्शनं बिल्व वृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।

अघोर पाप संहारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् II९३॥


तुलसी बिल्व निर्गुण्डी जम्बीरामलकं तथा ।

पञ्चबिल्वमिति ख्यातं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९४॥


अखण्ड बिल्वपत्रैश्च पूजयेन्नन्दिकेश्वरम् ।

मुच्यते सर्वपापेभ्यः बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९५॥


सालङ्कृता शतावृत्ता कन्याकोटिसहस्रकम् ।

साम्राज्य पृथ्वीदानं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९६॥


अश्व कोटि दानानि अश्वमेधसहस्रकम् ।

सवत्सधेनु दानानि बिल्वपत्रम शिवार्पणम् II९७॥


चतुर्वेद सहस्राणि भारतादिपुराणकम् ।

साम्राज्य पृथ्वीदानं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९८॥


सर्वरत्नमयं मेरुं काञ्चनं दिव्यवस्त्रकम् ।

तुलाभागं शतावर्तं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९९॥


अष्टोत्तरशतं बिल्वं योऽर्चयेल्लिङ्गमस्तके ।

अथर्वोक्तं वदेद्यस्तु बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१००॥


काशीक्षेत्र निवासं च कालभैरव दर्शनम् ।

अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१०१॥


अष्टोत्तर शतश्लोकैः स्तोत्राद्यैः पूजयेद्यथा ।

त्रिसन्ध्यं मोक्षमाप्नोति बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०२॥


दन्तिकोटि सहस्राणां भूः हिरण्य सहस्रकम्

सर्वक्रतुमयं पुण्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम्   ॥१०३॥


पुत्र पौत्रादिकं भोगं भुक्त्वा चात्र यथेप्सितम् ।

अन्ते च शिव सायुज्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०४॥


विप्र कोटि सहस्राणां वित्तदानाच्च यत्फलम् ।

तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०५॥


त्वन्नामकीर्तनं तत्त्वं तव पादाम्बु यः पिबेत्

जीवन्मुक्तो भवेन्नित्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०६॥


अनेक दान फलदं अनन्त सुकृतादिकम् ।

तीर्थयात्राखिलं पुण्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०७॥


त्वं मां पालय सर्वत्र पदध्यान कृतं तव ।

भवनं शाङ्करं नित्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०८॥


क्षणे क्षणे कृतम पापम स्मरणेन विनश्यती ।  

पुस्तकम धारयेद देहि आरोग्यम दुख नाशनम ॥





आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं