एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
Disclaimer
2 अक्टूबर 2024
नवरात्रि हवन की सरल विधि:-
नवरात्रि हवन की सरल विधि:-
नवरात्रि मे आप चाहें तो रोज या फिर आखिरी मे हवन कर सकते हैं ।
यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा विधि विधान नहीं कर सकते हैं ।. जो साधक हैं या कर्मकाँड़ी हैं वे अपने गुरु से प्राप्त विधि विधान या प्रामाणिक ग्रंथों से विधि देखकर सम्पन्न करें ।। मेरी राय मे चंडी प्रकाशन, गीता प्रेस, चौखम्बा प्रकाशन, आदि से प्रकाशित ग्रंथों मे त्रुटियाँ काम रहती हैं ।.
आवश्यक सामग्री :-
1. दशांग या हवन सामग्री , दुकान पर आपको मिल जाएगा .
2. घी ( अच्छा वाला लें , भले कम लें , पूजा वाला घी न लें क्योंकि वह ऐसी चीजों से बनता है जिसे आपको खाने से दुकानदार मना करता है तो ऐसी चीज आप देवी को कैसे अर्पित कर सकते हैं )
3. कपूर आग जलाने के लिए .
4. एक नारियल गोला या सूखा नारियल पूर्णाहुति के लिए ,
5. हवन कुंड या गोल बर्तन ।.
हवनकुंड/ वेदी को साफ करें.
हवनकुंड न हो तो गोल बर्तन मे कर सकते हैं .
फर्श गरम हो जाता है इसलिए नीचे स्टैन्ड या ईंट , रेती रखें उसपर पात्र रखें.
कुंड मे लकड़ी जमा लें और उसके नीचे में कपूर रखकर जला दें.
हवनकुंड की अग्नि प्रज्जवलित हो जाए तो पहले घी की आहुतियां दी जाती हैं.
सात बार अग्नि देवता को आहुति दें और अपने हवन की पूर्णता की प्रार्थना करें
“ ॐ अग्नये स्वाहा “
इन मंत्रों से शुद्ध घी की आहुति दें-
ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये न मम् ।
ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदं इन्द्राय न मम् ।
ॐ अग्नये स्वाहा । इदं अग्नये न मम ।
ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय न मम ।
ॐ भूः स्वाहा ।
उसके बाद हवन सामग्री से हवन करें .
नवग्रह मंत्र :-
ऊँ सूर्याय नमः स्वाहा
ऊँ चंद्रमसे नमः स्वाहा
ऊं भौमाय नमः स्वाहा
ऊँ बुधाय नमः स्वाहा
ऊँ गुरवे नमः स्वाहा
ऊँ शुक्राय नमः स्वाहा
ऊँ शनये नमः स्वाहा
ऊँ राहवे नमः स्वाहा
ऊँ केतवे नमः स्वाहा
गायत्री मंत्र :-
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।
ऊं गणेशाय नम: स्वाहा,
ऊं भैरवाय नम: स्वाहा,
ऊं गुं गुरुभ्यो नम: स्वाहा,
ऊं कुल देवताभ्यो नम: स्वाहा,
ऊं स्थान देवताभ्यो नम: स्वाहा,
ऊं वास्तु देवताभ्यो नम: स्वाहा,
ऊं ग्राम देवताभ्यो नम: स्वाहा,
ॐ सर्वेभ्यो गुरुभ्यो नमः स्वाहा ,
ऊं सरस्वती सहित ब्रह्माय नम: स्वाहा,
ऊं लक्ष्मी सहित विष्णुवे नम: स्वाहा,
ऊं शक्ति सहित शिवाय नम: स्वाहा
माता के नर्वाण मंत्र से 108 बार आहुतियां दे
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै स्वाहा
हवन के बाद नारियल के गोले में कलावा बांध लें. चाकू से उसके ऊपर के भाग को काट लें. उसके मुंह में घी, हवन सामग्री आदि डाल दें.
पूर्ण आहुति मंत्र पढ़ते हुए उसे हवनकुंड की अग्नि में रख दें.
पूर्णाहुति मंत्र-
ऊँ पूर्णमद: पूर्णम् इदम् पूर्णात पूर्णम उदिच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते ।।
इसका अर्थ है :-
वह पराशक्ति या महामाया पूर्ण है , उसके द्वारा उत्पन्न यह जगत भी पूर्ण हूँ , उस पूर्ण स्वरूप से पूर्ण निकालने पर भी वह पूर्ण ही रहता है ।
वही पूर्णता मुझे भी प्राप्त हो और मेरे कार्य , अभीष्ट मे पूर्णता मिले ....
इस मंत्र को कहते हुए पूर्ण आहुति देनी चाहिए.
उसके बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें,
फिर आरती करें.
अंत मे क्षमा प्रार्थना करें.
माताजी को समर्पित दक्षिण किसी गरीब महिला या कन्या को दान मे दें ।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्
यह एक अत्यंत मधुर तथा गीत के रूप मे रचित देवी स्तुति है । इसके पाठ से आपको अत्यंत आनंद और सुखद अनुभूति होगी ।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते,
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकंठ कुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते,
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥
अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥
सहित महाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥
अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालस मानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
करमुरलीरव वीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते
मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जित शैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
कटितट पीत दुकूल विचित्र मयुख तिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैकनुते
कृत सुर तारक सङ्गर तारक सङ्गर तारक सूनुसुते ।
सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥
पद कमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमला निलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥
कनक लसत्कल सिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शची कुच कुम्भतटी परिरम्भ सुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामर वाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥
तव विमलेन्दु कुलं वदनेन्दु मलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥
अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥
सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना
सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना
॥ ॐ क्लीं दुर्गायै नमः ॥
- यह काम बीज से संगुफ़ित दुर्गा मन्त्र है.
- यह सर्वकार्यों में लाभदायक है.
- इसका जाप आप नवरात्रि में चलते फ़िरते भी कर सकते हैं.
- अनुष्ठान के रूप में २१००० जाप करें.
- २१०० मंत्रों से हवन नवमी को करें.
- विशेष लाभ के लिये विजयादशमी को हवन करें.
- सात्विक आहार आचार विचार रखें ।
- हर स्त्री को मातृवत सम्मान दें ।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
नवरात्रि : अखंड ज्योति तथा दुर्गा पूजन की सरल विधि
नवरात्रि : अखंड ज्योति तथा दुर्गा पूजन की सरल विधि
यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा पूजन नहीं जानते ।
जो साधक हैं वे प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर विस्तृत पूजन क्षमतानुसार सम्पन्न करें .
यह पूजन आप देवी के चित्र, मूर्ति या यंत्र के सामने कर सकते हैं ।
यदि आपके पास इनमे से कुछ भी नही तो आप शिवलिंग, रत्न या रुद्राक्ष पर भी पूजन कर सकते हैं ।
अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार घी या तेल का दीपक जलाये। धुप अगरबत्ती जलाये।
अगर अखंड दीपक जलाना चाहते हैं तो बड़ा दीपक और लंबी बत्ती रखें । इसे बुझने से बचाने के लिए काँच की चिमनी का प्रयोग कर सकते हैं । पूजा करते समय आपका मुंह उत्तर या पूर्व की ओर देखता हुआ हो तो बेहतर है । दीपक की लौ को उत्तर या पूर्व की ओर रखें ।
बैठने के लिए लाल या काले कम्बल या मोटे कपडे का आसन हो।
जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग कर सकते हैं।
इसके अलावा आपको निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी :-
एक बड़ा पीतल,तांबा,मिट्टी का कलश,
जल पात्र,
हल्दी, कुंकुम, चन्दन, अष्टगंध,
अक्षत(बिना टूटे चावल),
पुष्प ,
फल,
मिठाई / प्रसाद .
अगर यह सामग्री नहीं है या नहीं ले सकते हैं तो अपने मन में देवी को इन सामग्रियों का समर्पण करने की भावना रखते हुए अर्थात मन से उनको समर्पित करते हुए मानसिक पूजन करे ।
सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं है तो ब्रह्माण्ड के समस्त गुरु मंडल का स्मरण करे या जगद्गुरु भगवान् शिव का ध्यान कर लें ।
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।
श्री गणेश का स्मरण करे
ॐ श्री गणेशाय नमः।
भैरव बाबा का स्मरण करें
ॐ भ्रं भैरवाय नमः।
शिव शक्ति का स्मरण करें
ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः।
चमच से चार बार बाए हाथ से दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए। एक मन्त्र के बाद एक बार पानी पीना है।
ॐ आत्मतत्वाय स्वाहा ।
ॐ विद्या तत्वाय स्वाहा ।
ॐ शिव तत्वाय स्वाहा ।
ॐ सर्व तत्वाय स्वाहा ।
गुरु सभी पूजन का आधार है इसलिए उनके लिए पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे। नमः बोलकर सामग्री को छोड़ते हैं।
ॐ श्री गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः
हम पृथ्वी के ऊपर बैठकर पूजन कर रहे हैं इसलिए उनको प्रणाम करके उनकी अनुमति मांग के पूजन प्रारंभ किया जाता है जिसे पृथ्वी पूजन कहते हैं।
अपने आसन को उठाकर उसके नीचे कुमकुम से एक त्रिकोण बना दें उसे प्रणाम करें और निम्नलिखित मंत्र पढ़े और पुष्प अक्षत अर्पण करे।
ॐ पृथ्वी देव्यै नमः ।
देह न्यास :-
किसी भी पूजन को संपन्न करने से पहले संबंधित देवी या देवता को अपने शरीर में स्थापित होने और रक्षा करने के लिए प्रार्थना की जाती है इसके निमित्त तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे। इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप करते रहे।
ॐ दुँ दुर्गायै नमः ।
कलश स्थापना :-
कलश को अमृत की स्थापना का प्रतीक माना जाता है। हमें जीवित रहने के लिए अमृत तत्व की आवश्यकता होती है। जो भी भोजन हम ग्रहण करते हैं उसका सार या अमृत जिसे आज वैज्ञानिक भाषा में विटामिन और प्रोटीन कहा जाता है वह जब तक हमारा शरीर ग्रहण न कर ले तब तक हम जीवित नहीं रह सकते। कलश की स्थापना करने का भाव यही है कि हम समस्त प्रकार के अमृत तत्व को अपने पास स्थापित करके उसकी कृपा प्राप्त करें और वह अमृत तत्व हमारे जीवन में और हमारे शरीर में स्थापित हो ताकि हम स्वस्थ निरोगी रह सकें।
कलश स्थापना के लिए निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करके मन में उपरोक्त भावना रखकर कलश की स्थापना कर सकते हैं।
ॐ अमृत कलशाय नमः ।
उसपर पुष्प,अक्षत,पानी छिड़के । ऐसी भावना करें कि जितनी पवित्र नदियां हैं उनका अमृततुल्य जल कलश मे समाहित हो रहा है ।
संकल्प :-(यह सिर्फ पहले दिन करना है )
संकल्प का तात्पर्य होता है कि आप महामाया के सामने एक प्रकार से एक एग्रीमेंट कर रहे हैं कि हे माता मैं आपके चरणों में अपने अमुक कार्य के लिए इतने मंत्र जाप का संकल्प लेता हूं और आप मुझे इस कार्य की सफलता का आशीर्वाद दें।
दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प (सिर्फ पहले दिन) करे।
“ मैं (अपना नाम और गोत्र
[गोत्र न मालूम हो तो भारद्वाज गोत्र कह सकते हैं ])
इस नवरात्री पर्व मे
भगवती दुर्गा की कृपा प्राप्त होने हेतु /अपनी समस्या निवारण हेतु /अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु
( यहाँ समस्या या मनोकामना बोलेंगे )
यथा शक्ति (अगर रोज निश्चित संख्या मे नहीं कर सकते तो, अगर आप निश्चित संख्या में करेंगे तो वह संख्या यहाँ बोल सकते हैं जैसे 11 या 21 माला नित्य जाप )
करते हुए आपकी साधना नवरात्रि मे कर रहा हूँ। आप मेरी मनोकामना पूर्ण करें ”
इतना बोलकर जल छोड़े
(यह सिर्फ पहले दिन करना है )
अब गणेशजी का ध्यान करे
वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
फिर भैरव जी का स्मरण करे
तीक्ष्ण दंष्ट्र महाकाय कल्पांत दहनोपम
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि
अब भगवती का ध्यान करे।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते
इसके बाद आप अखंड ज्योति या दीपक जला सकते हैं ।
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
अब भगवती को अपने पूजा स्थल मे आमंत्रित करें :-
ॐ दुँ दुर्गा देव्यै नमः ध्यायामि आवाहयामि स्थापयामि
पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे ऐसी भावना करे की भगवती वहाँ साक्षात् उपस्थित है और आप उन्हें सारे उपचार अर्पण कर रहे है ।
भगवती का स्वागत कर पंचोपचार पूजन करे ,
अगर आपके पास सामग्री नहीं है तो मानसिक रूप से यानि उस वस्तु की भावना करते हुए पूजन करे।
ॐ दुँ दुर्गायै नमः गन्धम् समर्पयामि
(हल्दी कुमकुम चन्दन अष्टगंध अर्पण करे )
ॐ दुँ दुर्गायै नमः पुष्पम समर्पयामि
(फूल चढ़ाएं )
ॐ दुँ दुर्गायै नमः धूपं समर्पयामि
(अगरबत्ती या धुप दिखाएं )
ॐ दुँ दुर्गायै नमः दीपं समर्पयामि
(दीपक दिखाएँ )
ॐ दुँ दुर्गायै नमः नैवेद्यम समर्पयामि
(मिठाई दूध या फल अर्पण करे )
मां दुर्गा के 108 नाम से पूजन करें :-
· आप इनके सामने नमः लगाकर फूल,चावल,कुमकुम,अष्टगंध, हल्दी, सिंदूर जो आप चढ़ाना चाहें चढ़ा सकते हैं ।
· यदि कुछ न हो तो पानी चढ़ा सकते हैं ।
· वह भी न हो तो प्रणाम कर सकते हैं ।
( हर एक नाम मे "-" के बाद उस नाम का अर्थ लिखा हुआ है । आप केवल नाम का उच्चारण करके नमः लगा लेंगे । जैसे सती नमः , साध्वी नमः ..... )
1. सती- जो दक्ष यज्ञ की अग्नि में जल कर भी जीवित हो गई
2. साध्वी- सरल
3. भवप्रीता- भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली
4. भवानी- ब्रह्मांड में निवास करने वाली
5. भवमोचनी- भव अर्थात संसारिक बंधनों से मुक्त करने वाली
6. आर्या- देवी
7. दुर्गा- अपराजेय
8. जया- विजयी
9. आद्य- जो सृष्टि का प्रारंभ है
10. त्रिनेत्र- तीन नेत्रों से युक्त
11. शूलधारिणी- शूल नामक अस्त्र को धारण करने वाली
12. पिनाकधारिणी- शिव का धनुष पिनाक को धारण करने वाली
13. चित्रा- सुरम्य
14. चण्डघण्टा- प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली
15. सुधा- अमृत की देवी
16. मन- मनन-शक्ति की स्वामिनी
17. बुद्धि- सर्वज्ञाता
18. अहंकारा- अभिमान करने वाली
19. चित्तरूपा- वह जो हमारी सोच की स्वामिनी है
20. चिता- मृत्युशय्या
21. चिति- चेतना की स्वामिनी
22. सर्वमन्त्रमयी- सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली
23. सत्ता- सत-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है
24. सत्यानंद स्वरूपिणी- सत्य और आनंद के रूप वाली
25. अनन्ता- जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं
26. भाविनी- सबको उत्पन्न करने वाली
27. भाव्या- भावना एवं ध्यान करने योग्य
28. भव्या-जो भव्यता की स्वामिनी है
29. अभव्या- जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं
30. सदागति- हमेशा गतिशील या सक्रिय
31. शाम्भवी- शंभू की पत्नी
32. देवमाता- देवगण की माता
33. चिन्ता- चिन्ता की स्वामिनी
34. रत्नप्रिया- जो रत्नों को पसंद करती है उनकी की स्वामिनी है
35. सर्वविद्या- सभी प्रकार के ज्ञान की की स्वामिनी है
36. दक्षकन्या- प्रजापति दक्ष की बेटी
37. दक्षयज्ञविनाशिनी- दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली
38. अपर्णा- तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली
39. अनेकवर्णा- अनेक रंगों वाली
40. पाटला- लाल रंग वाली
41. पाटलावती- गुलाब के फूल
42. पट्टाम्बरपरीधाना- रेशमी वस्त्र पहनने वाली
43. कलामंजीरारंजिनी- पायल की ध्वनि से प्रसन्न रहने वाली
44. अमेय- जिसकी कोई सीमा नहीं
45. विक्रमा- असीम पराक्रमी
46. क्रूरा- कठोर
47. सुन्दरी- सुंदर रूप वाली
48. सुरसुन्दरी- अत्यंत सुंदर
49. वनदुर्गा- जंगलों की देवी
50. मातंगी- महाविद्या
51. मातंगमुनिपूजिता- ऋषि मतंगा द्वारा पूजनीय
52. ब्राह्मी- भगवान ब्रह्मा की शक्ति
53. माहेश्वरी- प्रभु शिव की शक्ति
54. इंद्री- इंद्र की शक्ति
55. कौमारी- किशोरी
56. वैष्णवी- भगवान विष्णु की शक्ति
57. चामुण्डा- चंडिका
58. वाराही- वराह पर सवार होने वाली
59. लक्ष्मी- ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी
60. पुरुषाकृति- वह जो पुरुष रूप भी धारण कर ले
61. विमिलौत्त्कार्शिनी- आनन्द प्रदान करने वाली
62. ज्ञाना- ज्ञान की स्वामिनी है
63. क्रिया- हर कार्य की स्वामिनी
64. नित्या- जो हमेशा रहे
65. बुद्धिदा- बुद्धि देने वाली
66. बहुला- विभिन्न रूपों वाली
67. बहुलप्रेमा- सर्व जन प्रिय
68. सर्ववाहनवाहना- सभी वाहन पर विराजमान होने वाली
69. निशुम्भशुम्भहननी- शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली
70. महिषासुरमर्दिनि- महिषासुर का वध करने वाली
71. मधुकैटभहंत्री- मधु व कैटभ का नाश करने वाली
72. चण्डमुण्ड विनाशिनि- चंड और मुंड का नाश करने वाली
73. सर्वासुरविनाशा- सभी राक्षसों का नाश करने वाली
74. सर्वदानवघातिनी- सभी दानवों का नाश करने वाली
75. सर्वशास्त्रमयी- सभी शास्त्रों को अपने अंदर समाहित करने वाली
76. सत्या- जो सत्य के साथ है
77. सर्वास्त्रधारिणी- सभी प्रकार के अस्त्र या हथियारों को धारण करने वाली
78. अनेकशस्त्रहस्ता- कई शस्त्र हाथों मे रखने वाली
79. अनेकास्त्रधारिणी- अनेक अस्त्र या हथियारों को धारण करने वाली
80. कुमारी- जिसका स्वरूप कन्या जैसा है
81. एककन्या- कन्या जैसे स्वरूप वाली
82. कैशोरी- किशोरी जैसे स्वरूप वाली
83. युवती- युवा स्त्री जैसे स्वरूप वाली
84. यति- जो तपस्वीयों मे श्रेष्ठ है
85. अप्रौढा- जो कभी वृद्ध ना हो
86. प्रौढा- जो वृद्ध भी है
87. वृद्धमाता- जो वृद्ध माता जैसे स्वरूप वाली है
88. बलप्रदा- शक्ति देने वाली
89. महोदरी- ब्रह्मांड को संभालने वाली
90. मुक्तकेशी- खुले बाल वाली
91. घोररूपा- भयंकर रूप वाली
92. महाबला- अपार शक्ति वाली
93. अग्निज्वाला- आग की ज्वाला की तरह प्रचंड स्वरूप वाली
94. रौद्रमुखी- विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर स्वरूप वाली
95. कालरात्रि- जो काल रात्री नामक महाशक्ति है
96. तपस्विनी- तपस्या में लगी हुई
97. नारायणी- भगवान नारायण की शक्ति
98. भद्रकाली- काली का भयंकर रूप
99. विष्णुमाया- भगवान विष्णु की माया
100. जलोदरी- जल में निवास करने वाली
101. शिवदूती- भगवान शिव की दूत
102. कराली- प्रचंड स्वरूपिणी
103. अनन्ता- जिसका ओर छोर नहीं है
104. परमेश्वरी- जो परम देवी है
105. कात्यायनी- महाविद्या कात्यायनी
106. सावित्री- देवी सावित्री स्वरूपिणी
107. प्रत्यक्षा- जो प्रत्यक्ष है
108. ब्रह्मवादिनी- ब्रह्मांड मे हर जगह वास करने वाली
अंत में एक आचमनी(चम्मच) जल चढ़ाये और प्रार्थना करें कि महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपा श्री दुर्गा जी मुझ पर कृपालु हों।
इसके बाद रुद्राक्ष माला से नवार्ण मन्त्र या दुर्गा मंत्र का यथाशक्ति या जो संख्या आपने निश्चित की है उतनी संख्या मे जाप करे ।
नवार्ण मंत्र :-
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
(ऐम ह्रीम क्लीम चामुंडायै विच्चे ऐसा उच्चारण होगा )
[Aim Hreem Kleem Chamundaaye vichche ]
सदगुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी) के अनुसार इसके प्रारम्भ में प्रणव अर्थात ॐ लगाने की जरुरत नहीं है ।
दुर्गा मंत्र:-
ॐ ह्रींम दुं दुर्गायै नम:
[Om Hreem doom durgaaye namah ]
रोज एक ही संख्या में जाप करे।
एक माला जाप की संख्या 100 मानी जाती है । माला में 108 दाने होते हैं । शेष 8 मंत्रों को उच्चारण त्रुटि या अन्य गलतियों के निवारण के लिए छोड़ दिया जाता है ।
अपनी क्षमतानुसार 1/3/5/7/11/21/33/51 या 108 माला जाप करे।
जब जाप पूरा हो जाये तो अपने दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करे .
उसके बाद भगवती का थोड़ी देर तक आँखे बंद कर ध्यान करे और वहीँ 5 मिनट बैठे रहें।
अंत मे आसन को प्रणाम करके उठ जाएँ।
आप चाहें तो इसे मेरे यूट्यूब चैनल पर देख और सुनकर उच्चारण कर सकते हैं