पूज्यपाद सद्गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी

-:निखिलम शरणम :-


डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी)

    तन्त्र, मन्त्र, यन्त्र के सिद्धहस्त आचार्य, ज्योतिष के प्रकांड विद्वान, कर्मकांड के पुरोधा, प्राच्य विद्याओं के विश्वविख्यात पुनरुद्धारक,अनगिनत ग्रन्थों के रचयिता तथा पूरे विश्व में फ़ैले हुए करोडों शिष्यों को साधना पथ पर उंगली पकडकर चलाने वाले मेरे परम आदरणीय गुरुवर.....
जिनके लिये सिर्फ़ यही कहा जा सकता है कि....
असित गिरि सममस्याद कज्जलम सिन्धु पात्रे , सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्र मुर्वी |
लिखति यदि  गृहीत्वा शारदा सर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईश पारम न याति ||

अर्थात हे गुरुदेव ...
यदि इस सृष्टि के समस्त पर्वतों को पीसकर उन्हें समस्त समुद्रों के जल में घोलकर स्याही बना दी जाये और सम्पूर्ण वृक्षों को काटकर उनकी लेखनी बना दी जाये और स्वयं साक्षात् शारदा देवी , (जो विद्या की अधिष्टात्री देवी हैं)  अनन्त काल तक आपके गुणों का वर्णन करती रहे ..... 
वह लेखनी घिस जाएगी...... 
वह स्याही कम पड  जाएगी............ 
मगर  आपके गुणों का वर्णन पूर्ण नहीं हो पायेगा........




2 जुन 1992



जब मैने परम पुज्य गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी [परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ] से दीक्षा ली तब से आज तक मै गुरु कृपा से साधना के मार्ग पर गतिशील हूं.


अक्टूबर - 1993

जब गुरुदेव भिलाई की धरती पर पधारे.....

.....
.....

जब जब मेरे कदम लडखडाये गुरुवर की कृपा सदैव मुझपर बनी रही.जो मेरे जीवन का आधार है.

3 जुलाई 1998

एक अपूरणीय क्षति का दिन जब मेरे गुरुवर ने अपनी भौतिक देह का त्याग किया .एक ममता भरा वात्सल्यमय साथ जो नही रहा.........




और फ़िर.......

गुरु देह की सीमा से परे होते हैं यह एह्सास गुरुवर ने करा दिया और फिर यह बालक निश्चिंत होकर निकल पडा खेल के मैदान में........

गुरुदेव के आत्मवचन


















































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    मन्त्र तंत्र यंत्र विज्ञान गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका थी | इसका प्रकाशन उनके निधन के कुछ वर्ष के बाद बंद हो गया | लेकिन कुछ प्रकाशित अंको की पी.डी.ऍफ़. फाइल डाउनलोडेबल फॉर्मेट में उपलब्ध है जिसे आप निम्नलिखित लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं |