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21 जुलाई 2024

गुरुपुर्णिमा विशेष ब्रह्मांडीय गुरुमंडल साधना

 







गुरुपुर्णिमा विशेष ब्रह्मांडीय गुरुमंडल साधना
( दुर्लभ गुरु अष्टोत्तर शत नामावली सहित )
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यहां पर गुरुपौर्णिमा के पर्व पर करने के लिये मैं ब्रम्हांड के समस्त गुरुमंडल की एक छोटी साधना प्रस्तुत कर रहा हूँ जो की उन लोगों को ध्यान में रखकर बनायी है जो ज्यादा समय तक साधना नहीं कर सकते या जटिल पूजन विधि नहीं कर सकते। यह पूजन किसी एक गुरु परंपरा का नही वरन समस्त गुरुपरंपरा का है इसलिए इसे कोइ भी कर सकता है .. अगर आपके कोइ गुरु नही है तो भी करे .. आपको समस्त गुरुमंडल की कृपा प्राप्त होगी ..
1.       सब पहले आपके सामने गुरुदेव जी का गुरुमंडल अंतर्गत आनेवाले किसीभी योगी या संत का कोई भी चित्र या यंत्र या मूर्ति हो। इनमेसे कुछ भी नही तो आपके रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे .
2.       घी का दीपक या तेल का दीपक या दोनों दीपक जलाये। 
3.       धुप अगरबत्ती जलाये।
4.       बैठने के लिए आसन हो। 
5.       जाप के लिए रुद्राक्ष माला या स्फटिक माला ले
6.       एक आचमनी पात्र जल पात्र रखे।
7.       हल्दी,कुंकुम ,चन्दन,अष्टगंध और अक्षत पुष्प ,नैवेद्य के लिए मिठाई या दूध या कोई भी वस्तु ,फल भी एकत्रित करे। 
8.       अगर यह सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे

सबसे पहले गुरु ,गणेश इन्हे वंदन करे

ॐ गुं गुरुभ्यो नम: 

ॐ श्री गणेशाय नम: 

ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललितायै नम: 

ॐ श्री गुरुमंडलाय नम:

फिर आचमन करे 

ऐं आत्मतत्वाय स्वाहा 

ऐं विद्या तत्वाय स्वाहा 

ऐं शिव तत्वाय स्वाहा 

ऐं सर्व तत्वाय स्वाहा

फिर गुरु स्मरण करे और पुजन के लिये पुष्प अक्षत अर्पण करे

ॐ श्री गुरुभ्यो नम: 


ॐ श्री परम गुरुभ्यो नम: 


ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:

 

अब आसन पर पुष्प अक्षत अर्पण करे

ॐ पृथ्वी देव्यै नमः


चारो तरफ दिशा बंधन हेतु अक्षत फेके और अपनी शिखा पर दाहिना हाथ रखे
फिर दीपक को प्रणाम करे


दीप देवताभ्यो नमः

कलश में जल डाले और उसमे चन्दन या सुगन्धित द्रव्य डाले

कलश देवताभ्यो नमः


अब अपने आप को तिलक करे
गणेश जी के लिये पुष्प अक्षत अर्पण करे

वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटी समप्रभ 

निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा


अब आप हाथ मे जल ,अक्षत ,पुष्प लेकर तिथी वार नक्षत्र आदि का स्मरण कर संकल्प करे की आप आज गुरुपौर्णिमा के पावन पर्व पर अपने सदगुरुदेव एवं संपूर्ण गुरुमंडल की कृपा प्राप्ति हेतु गुरुपूजन संपन्न कर रहे है और उनकी कृपा प्राप्त हो और आपकी आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नती हो और आपकी जो भी समस्या है उसका निवारण हो ..

गुरुस्मरण कर सर्वप्रथम उनका आवाहन करे

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: 

गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:

ध्यान मूलं गुरु: मूर्ति पूजा मूलं गुरो पदं 

मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुकृपा

गुरुकृपा हि केवलं

गुरुकृपा हि केवलं 

गुरुकृपा हि केवलं

गुरुकृपा हि केवलं

 

श्री सदगुरु चरण कमलेभो नम: प्रार्थना पुष्पं समर्पयामि


श्री सदगुरु मम ह्रदये आवाहयामि स्थापयामि नम:
सदगुरुदेव का अब पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करे .. यहाँ पर पंचोपचार पूजन प्रस्तुत किया है ..

ॐ गुं गुरुभ्यो नम: गंधं समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: पुष्पम समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: धूपं समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: दीपं समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: नैवेद्यम समर्पयामि


अब गुरु पंक्ति का पूजन करे

ॐ गुरुभ्यो नम:
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम:

अब गुरु अष्टोत्तर शत नामावली से एकेक नाम का उच्चारण करते हुये पुष्प अक्षत अर्पण करते जाये ..

श्री सदगुरु अष्टोत्तरशत नामावली
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1) ॐ सदगुरवे नम:
2) ॐ अज्ञान नाशकाय नम:
3) ॐ अदंभिने नम:
4) ॐ अद्वैतप्रकाशकाय नम:
5) ॐ अनपेक्षाय नम:
06) ॐ अनसूयवे नम:
07) ॐ अनुपमाय नम:
08) ॐ अभयप्रदात्रे नम:
09) ॐ अमानिने नम:
10) ॐ अहिंसामूर्तये नम:
11) ॐ अहैतुकस्दयासिंधवे नम:
12) ॐ अहंकारनाशकाय नम:
13) ॐ अहंकारवर्जिताय नम:
14) ॐ आचार्येंद्राय नम:
15) ॐ आत्मसंतुष्टाय नम:
16) ॐ आनंदमूर्तये नम:
17) ॐ आर्जवयुक्ताय नम:
18) ॐ उचितवाचे नम:
19) ॐ उत्साहिने नम:
20) ॐ उदासीनाय नम:
21) ॐ उपरताय नम:
22) ॐ ऐश्वर्ययुक्ताय नम:
23) ॐ कृतकृत्याय नम:
24) ॐ क्षमावते नम:
25) ॐ गुणातीताय नम:
26) ॐ चारुवाग्विलासाय नम:
27) ॐ चारुहासाय नम:
28) ॐ छिन्नसंशयाय नम:
29) ॐ ज्ञानदात्रे नम:
30) ॐ ज्ञानयज्ञतत्पराय नम:
31) ॐ तत्त्वदर्शिने नम:
32) ॐ तपस्विने नम:
33) ॐ तापहराय नम:
34) ॐ तुल्यनिंदास्तुतये नम:
35) ॐ तुल्यप्रियाप्रियाय नम:
36) ॐ तुल्यमानापमानाय नम:
37) ॐ तेजस्विने नम:
38) ॐ त्यक्तसर्वपरिग्रहाय नम:
39) ॐ त्यागिने नम:
40) ॐ दक्षाय नम:
41) ॐ दांताय नम:
42) ॐ दृढव्रताय नम:
43) ॐ दोषवर्जिताय नम:
44) ॐ द्वंद्वातीताय नम:
45) ॐ धीमते नम:
46) ॐ धीराय नम:
47) ॐ नित्यसंतुष्टाय नम:
48) ॐ निरहंकाराय नम:
49) ॐ निराश्रयाय नम:
50) ॐ निर्भयाय नम:
51) ॐ निर्मदाय नम:
52) ॐ निर्ममाय नम:
53) ॐ निर्मलाय नम:
54) ॐ निर्मोहाय नम:
55) ॐ निर्योगक्षेमाय नम:
56) ॐ निर्लोभाय नम:
57) ॐ निष्कामाय नम:
58) ॐ निष्क्रोधाय नम:
59) ॐ नि:संगाय नम:
60) ॐ परमसुखदाय नम:
61) ॐ पंडिताय नम:
62) ॐ पूर्णाय नम:
63) ॐ प्रमाण प्रवर्तकाय नम:
64) ॐ प्रियभाषिणे नम:
65) ॐ ब्रह्मकर्मसमाधये नम:
66) ॐ ब्रह्मात्मनिष्ठाय नम:
67) ॐ ब्रह्मात्मविदे नम:
68) ॐ भक्ताय नम:
69) ॐ भवरोगहराय नम:
70) ॐ भुक्तिमुक्तिप्रदात्रे नम:
71) ॐ मंगलकर्त्रे नम:
72) ॐ मधुरभाषिणे नम:
73) ॐ महात्मने नम:
74) ॐ महावाक्योपदेशकर्त्रे नम:
75) ॐ मितभाषिणे नम:
76) ॐ मुक्ताय नम:
77) ॐ मौनिने नम:
78) ॐ यतचित्ताय नम:
79) ॐ यतये नम:
80) ॐ यद इच्छा लाभ संतुष्टाय नम:
81) ॐ युक्ताय नम:
82) ॐ रागद्वेषवर्जिताय नम:
83) ॐ विदिताखिलशास्त्राय नम:
84) ॐ विद्याविनयसंपन्नाय नम:
85) ॐ विमत्सराय नम:
86) ॐ विवेकिने नम:
87) ॐ विशालहृदयाय नम:
88) ॐ व्यवसायिने नम:
89) ॐ शरणागतवत्सलाय नम:
90) ॐ शांताय नम:
91) ॐ शुद्धमानसाय नम:
92) ॐ शिष्यप्रियाय नम:
93) ॐ श्रद्धावते नम:
94) ॐ श्रोत्रियाय नम:
95) ॐ सत्यवाचे नम:
96) ॐ सदामुदितवदनाय नम:
97) ॐ समचित्ताय नम:
98) ॐ समाधिकस्वर्जिताय नम:
99) ॐ समाहितचित्ताय नम:
100) ॐ सर्वभूतहिताय नम:
101) ॐ सिद्धाय नम:
102) ॐ सुलभाय नम:
103) ॐ सुशीलाय नम:
104) ॐ सुह्रदये नम:
105) ॐ सूक्ष्मबुद्धये नम:
106) ॐ संकल्पवर्जिताय नम:
107) ॐ संप्रदायविदे नम:
108) ॐ स्वतंत्राय नम:

!! इति श्री सदगुरु अष्टोत्तरशत नामावली !!

अब एक आचमनी जल लेकर निम्न मंत्र पढकर अर्पण करे

अनेन श्री गुरु अष्टोत्तर शत नामावली द्वारा पूजनेन श्री गुरुदेव सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयतां न मम ..

जिन्हे गुरुमंडल का पूजन न करना हो वे सिधे पूजन के अंत मे जाकर अर्घ्य प्रदान करे और मंत्र जाप करे ..
जिंन्हे गुरुमंडल का पूजन करना हो वे आगे का पूजन continue रखे ..
वैसे सभी साधकों से निवेदन है वे यह पूजन अवश्य करे इस पूजन से समस्त गुरुओं का पूजन हो जाता है और गुरुपुर्णिमा के अवसर पर इस पूजन को करने से सभी गुरुओं की कृपा प्राप्त होती है ..

अब पहले हाथ मे पुष्प लेकर समस्त गुरुमंडल का ध्यान करे

नारायण समारंभा शंकराचार्य मध्यमाम
अस्मदाचार्य पर्यंतां वंदे गुरुपरंपराम !!
श्रीनाथादि गुरुत्रयं गणपतिं पीठत्रयं भैरवं
सिद्धौघ बटुकत्रयं पदयुगं दूतीक्रमं मंडलं !!
वीरांद्वष्ट चतुष्कषष्ठीनवकं वीरावलीपंचकं
श्रीमन्मालिनी मंत्रराजसहितं वंदे गुरोर्मंडलं !!

गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: !!

अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: !!

अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: !!

वंदे गुरुपदद्वंदवांग्मनस गोचरं
रक्त शुक्ल प्रभामिश्रमतर्क्यं मह : !!

नमोस्तु गुरवे तस्मै स्वेष्ट देविस्वरुपिणे
यस्य वाकममृतं हंति विषं संसारसंज्ञकम !!

समस्त गुरुमंडल आवाहयामि मम पूजा स्थाने स्थापयामि नम:

समस्त गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: पंचोपचार पूजनं समर्पयामि

श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: गंध समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: पुष्प समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: धूपं समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: दीपं समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: नैवेद्यं समर्पयामि

अब गुरुमंडल का पूजन शुरु करे ..
गुरुमंडल अंतर्गत एकेक गुरु का नाम लेकर पूजयामि कहकर पुष्पअक्षत अर्पण करे और तर्पयामि कहकर एक आचमनी जल अर्पण करे ..

सबसे पहले श्री व्यास जी स्मरण करे

वेदव्यासं श्यामरुपं सत्यसंघं परायणम
शांतेंद्रियं जित्क्रोधं सशिष्यं प्रणमाम्यहम् !!

व्यास पंचकं

ॐ श्री व्यासाय नम: ! वेदव्यासं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!
ॐ वैशंपायनाय नम: ! वैशंपायनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!

ॐ सुमंताय नम: ! सुमंतं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!

ॐ जैमिनये नम: ! जैमिनिं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!

ॐ पैलाय नम: ! पैलं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

!! इति व्यासपंचकं पूजनम !!

अब श्री शंकराचार्य जी का स्मरण करे

सर्वशास्त्रार्थतत्वज्ञम परमानंदविग्रहं
ब्रम्हण्यं शंकराचार्यं प्रणमामि विवेकिनम
परात्परतरं शांतं योगींद्रं योगसेविनं
शांतेंद्रियं जितक्रोधं सशिष्यं प्रणमाम्यहम् !!

शंकराचार्य पंचकं

ॐ शंकराचार्याय नम: ! शंकराचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विश्वरुपाचार्याय नम:! विश्वरुपाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पद्मपादाचार्याय नम:! पद्मपादाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गौडपादाचार्याय नम: ! गौडपादाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ हस्तामलकाचार्याय नम: ! हस्तमलकाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ त्रोटकाचार्याय नम: ! त्रोटकाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

!! इति शंकराचार्यं पूजनं !!

दिगंबरं कुमारं च विधिमानससनंदनं !
सनकं परंवैराग्यं मुनिमावाहयाम्यहम !!

ॐ सनकाय नम: सनकं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनंदनाय नम: सनंदनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनतनाय नम: सनंदनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनत्कुमाराय नम: सनत्कुमारम आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनत्सुजाताय नम: सनत्सुजातं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

!! इति सनकादि पूजनं !!

ॐ दत्तात्रेयाय नम: दत्तात्रेयं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ जीवन्मुक्ताय नम: जीवन्मुक्तं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विधातृतनयाय नम: विधातृतनयं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नारदाय नम: नारदं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वामदेवाय नम: वामदेवं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कपिलाय नम: कपिलं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ब्रम्हानंद परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वंदातितं गगनसदृश्यम एकमस्यादि लक्ष्यं
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधिसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि

ॐ स्वगुरवे नम :
स्वगुरु ( अपने गुरु का नाम यहां पर ले )
स्वगुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ परम गुरवे नम:
परमगुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ परात्पर गुरवे नम:
परात्पर गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ परमेष्ठी गुरवे नम:
परमेष्ठी गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पर गुरवे नम:
पर गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सदाशिवाय नम:
सदाशिव आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ ईश्वराय नम:
ईश्वर आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विष्णवे नम:
विष्णु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ ब्रम्हाचार्याय नम:
ब्रम्हाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नकुलाचार्याय नम:
नकुलाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गौरिशाचार्याय नम:
गौरीशाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ अर्चिषाचार्याय नम:
अर्चिषाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ मैत्रेयाचार्याय नम:
मैत्रेयाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कपिलाचार्याय नम:
कपिलाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सिद्धशांतनाचार्याय नम:
सिद्धशांतनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ अगस्ताचार्याय नम:
अगस्ताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पिंगाक्षाचार्याय नम:
पिंगाक्षाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ मनुगणाचार्याय नम:
मनुगणाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पुष्पदंताचार्याय नम:
पुष्पदंताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ शांतनाचार्याय नम:
शांतनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विद्याचार्याय नम:
विद्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पंचधाचार्याय नम:
पंचधाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ व्रताचार्याय नम:
व्रताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ दुर्वासाचार्याय नम:
दुर्वासाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कौंडिन्याचार्याय नम:
कौंडिन्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कौशिकाचार्याय नम:
कौशिकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ भैरवाष्टकाचार्याय नम:
भैरवाष्टकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ एकाक्षराचार्याय नम:
एकाक्षराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विश्वनाथाचार्याय नम:
विश्वनाथाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सोमेश्वराचार्याय नम:
सोमेश्वराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वसिष्ठाचार्याय नम:
वसिष्ठाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वाल्मिक्याचार्याय नम:
वाल्मिक्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ अत्र्याचार्याय नम:
अत्र्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गर्गाचार्याय नम:
गर्गाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पराशराचार्याय नम:
पराशराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वेदव्यासाचार्याय नम:
वेदव्यासाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ शुक्राचार्याय नम:
शुक्राचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गौडपादाचार्याय नम:
गौडपादाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गोविंदपादाचार्याय नम:
गोविंदपादाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ शंकराचार्याय नम:
शंकराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ ऱामानंदाचार्याय नम:
रामानंदाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ रामानुजाचार्याय नम:
रामानुजाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ हयग्रीवाचार्याय नम:
हयग्रीवाचार्याय आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सच्चिदानंदाचार्याय नम:
सच्चिदानंदाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ दामोदराचार्याय नम:
दामोदराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वैष्णवाचार्याय नम:
वैष्णवाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सुश्रुताचार्याय नम:
सुश्रुताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ चरकाचार्याय नम:
चरकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वाग्भटाचार्याय नम:
वाग्भटाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नागार्जुनाचार्याय नम:
नागार्जुनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नित्यनाथाचार्याय नम:
नित्यनाथाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ धंन्वंतराचार्याय नम:
धंन्वंतराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ द्राविणाचार्याय नम:
द्राविणाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विवर्णाचार्याय नम:
विवर्णाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

तद्वामत: समस्तविद्यासंप्रदायप्रवर्तकाचार्येभ्यो नम:
समस्तविद्यासंप्रदायप्रवर्तकाचार्यान आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम':

अब एक आचमनी जल अर्पण करे
अनेन पूजनेन स्वगुरु सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयतां मम !!

अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे ..

ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्

ॐ परमहंसाय विद्महे महातत्त्वाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात्

ॐ गुरुदेवाय विद्महे परमब्रम्हाय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्

अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे

जिन्होने किसी गुरु से गुरु दिक्षा ना ली हो वे " ऐं " इस एकाक्षर गुरु मंत्र बीज मंत्र का जाप करे ..

" ऐं " यह बीज ब्रह्माण्ड के सभी गुरुमंडल का बीज मंत्र है .. इस एकाक्षर मंत्र का यथाशक्ती स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला से जाप करे ..

और निम्न गुरु मंत्र का भी यथाशक्ती जाप करे .. यह ब्रम्हाण्ड के शक्तिशाली गुरुपरंपरा का गुरुमंत्र है .. इसका नित्य जाप करने से सभी गुरुमंडल के गुरुओं की कृपा प्राप्त होती है ..

ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:

अब जप गुरुदेव को अर्पण करे

ॐ गुह्याति गुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत कृतं जपं
सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!

अब एक आचमनी जल अर्पण करे

अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयंताम !!

 

18 जुलाई 2024

सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी )

    


सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी )

किसी भी जीवित जागृत गुरु के साथ रहना मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है .... 

चाहे वह एक क्षण के लिए ही क्यों ना हो ! 

कुछ मिनट के लिए ही क्यों ना हो !

अगर आप किसी सद्गुरु के साथ रहे हैंउनके साथ कुछ समय व्यतीत किया है तो उनकी सुगंध आपके जीवन में अवश्य मिलेगी.... 

यह समझ लीजिए कि आपके अंदर वह ऐसी सुगंध छोड़ देते हैं जो आपके पूरे जीवन भर लोगों को महसूस होती रहेगी.... 

जीवित गुरु के साथ रहना थोड़ा मुश्किल होता है !

क्योंकि एक तो उनकी परीक्षाएं बड़ी जटिल होती है .... 

दूसरे उनके साथ अगर आप रहे तो आपको निरंतर साधनाओं मे लगे रहना पड़ता है । आलस्य और प्रमाद की जगह नहीं होती । 

इसके अलावा तीसरी बात यह कि वे अपने इर्द-गिर्द माया का ऐसा आवरण फैलाते हैं कि अधिकांश शिष्य उसमें फस कर रह जाते हैं । 

बिरले ऐसे होते हैं जो उस माया के आवरण के परे जाकर भी सद्गुरु के ज्ञान को.... 

उनकी महत्ता को... 

उनके दिव्यत्व को थोडा बहुत समझ पाते हैं । 

जो उन्हें समझ लेता है.... 

जो उन्हें महसूस कर लेता है .... 

तो फिर उनकी क्रीडाउनकी माया सब कुछ अपने आप में समेट लेते हैं .... 

और अपने विराट स्वरूप का ज्ञान भी शिष्य को करा देते हैं और फिर ऐसा शिष्य जो स्वयं एक बीज के रूप में होता है..... 

वह धीरे धीरे बढ़ता हुआ पौधा बनता है और कालांतर में एक विशाल वटवृक्ष के जैसा बन जाता है .... 

जिसकी शरण में........ 

जिसकी छाया में धूप से संतप्त यात्री शरण लेते हैं ! भोजन कर सकते हैं !

कई प्रकार के पशु पक्षी उसके आश्रय में आकर निवास कर लेते हैं !

जब यह शिष्यत्व बढ़ता जाता है तो वह स्वयं एक कल्पवृक्ष के रूप में विकसित होने लगता है !

गुरु अपने अंदर स्थित कल्पवृक्ष जैसी क्षमताओं को उस शिष्य के अंदर प्रवाहित करना प्रारंभ कर देते हैं !

उसे समर्थ बना देते हैं !

सक्षम बना देते हैं .... 

ताकि वह भी उन्हीं के समान दूसरों की कठिनाइयों को हल करने की क्षमता प्राप्त कर सकें । 

जीवन में अद्वितीय सफलताओं को प्राप्त कर सके ..... 

साधना की उच्चता को प्राप्त कर सकें !

उस महामाया के सानिध्य को प्राप्त कर सकें !

महादेव का सौरभ अपने जीवन में महसूस कर सके !

जब ऐसी स्थिति आती है तो शिष्य निश्चिंत हो जाता है । निश्चिंत होने का मतलब यह नहीं है कि उसके जीवन में सब कुछ ठीक ही होगा.... जीवन में कोई समस्याएं नहीं होंगी.... 

हाँ ! समस्याएं आएंगी....

चिंताएं भी आएंगी.... 

लेकिन उनके समाधान का मार्ग भी उसी प्रकार से निकलता चला जाएगा । 

जीवन बड़ी ही सरलता से..... 

किसी बहती हुई नदी की तरह..... 

छल छल करता हुआ आगे की ओर बढ़ता रहेगा और आप उस आनंद में गुरु के सानिध्य के उस आनंद में अपने आप को आप्लावित करते हुए.... 

उनकी सुगंध को महसूस करते हुए.... 

स्वयं सुगंधित होते हुए आगे बढ़ते रहेंगे । 

मेरे सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का सानिध्य और उनके पास बिताए गए कुछ क्षण मेरे जीवन की धरोहर है !

मेरे जीवन का सौभाग्य है !

मेरी सबसे बड़ी पूंजी है !

मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि इस पृथ्वी पर गुरु तत्व से परे कुछ भी नहीं है । 

आपने एक अच्छा गुरु प्राप्त कर लिया !

एक अच्छे गुरु के सानिध्य में चले गए !!

आप एक अच्छे शिष्य बन गए !!!

तो यकीन मानिए इस पृथ्वी पर ऐसा कुछ भी नहीं है..... 

जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते !

चाहे धन-संपत्ति हो

चाहे ईश्वरीय सानिध्य हो !

सब कुछ सहज उपलब्ध हो जाता है -----

पूज्यपाद गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी जिन्हें सन्यस्त रूप में परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के रूप में भी जाना जाता है.... 

वे वर्ष 1935 में 21 अप्रैल के दिन इस धरा पर अवतरित हुए थे । उन्होने अपने जीवन का एक लंबा कालखंड साधनाओं के विषय में.... 

तंत्र के विषय में.... 

गोपनीय ज्ञान को प्राप्त करने और इकट्ठा करने में बिताया था । 

उनका मूल लक्ष्य था कि वे भारत की साधनाओं को भारत की गोपनीय विद्याओं को वापस उनके मूल स्वरूप में पुनः स्थापित करके उनकी प्रतिष्ठा को वापस ला सके । 

इसके लिए उन्होंने बहुत गहन गंभीर प्रयास किए । उनका सबसे पहला प्रयास ज्योतिष विद्या के क्षेत्र था । उन्होंने ज्योतिष पर कई किताबें लिखीं । जिनमें कुंडली बनाने से लेकर भावों को देखकर उसकी गणना के द्वारा सटीक भविष्यफल बताने तक बहुत सारी विधि छोटी-छोटी पुस्तकों के रूप में उन्होंने प्रकाशित की थी । आज भी आप उन पुस्तकों को ध्यान से पढ़ लें । 

साल दो साल का समय दें ... 

तो यकीन मानिए कि आप एक अच्छे ज्योतिष बनने की दिशा में अग्रसर हो जाएंगे । 

इसी प्रकार उन्होंने हस्तरेखा पर भी एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा ग्रंथ लिखा है.... 

वृहद हस्तरेखा शास्त्र.... 

जिसमें हाथ की लकीरों और उन से बनने वाले विभिन्न प्रकार के योगों के बारे में पूरी व्याख्या दी गई है । 

अगर आप हस्तरेखा के क्षेत्र में रुचि रखते हैं तो आपको डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी की यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए । उसे अगर आप पूरी निष्ठा श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़कर उसके अनुसार विवेचन करने की कोशिश करेंगे तो यकीन मानिए कि आप जल्द ही एक प्रतिष्ठित हस्त रेखा शास्त्री के रूप में अपने आप को स्थापित कर लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने हस्तरेखा शास्त्र के विषय में आगे बढ़ने के लिए हस्त रेखाओं की अधिष्ठात्री देवी जिन्हें "पंचांगुली देवीकहा जाता है उनके साधना के संपूर्ण विधान को भी अपनी किताब "पंचांगुली साधनामें स्पष्ट किया है । 

यह साधना जटिल हैलेकिन अगर आप उस किताब के अनुसार इस साधना को संपन्न करते हैं तब भी आपको हस्त रेखाओं के ज्ञान में अनुकूलता और प्रभाव प्राप्त हो सकता है । 

एक और विषय जो उन्होंने प्रारंभिक स्तर पर उठाया था ... 

वह था हिप्नोटिज्म !

हिप्नोटिज्म का अर्थ होता है सम्मोहन या दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने की कला !

अगर आप देखें तो जीवन में खास तौर से गृहस्थ जीवन में हमारा अधिकांश समय दूसरों को प्रभावित करने में ही बीत जाता है.... 

हमारी अधिकांश सफलता का श्रेय भी इसी क्षमता को जाता है.... 

मान लीजिए कि आप एक दुकानदार हैआपका सामान तभी बिकेगा जब आप अपने ग्राहक को समझा पाए कि आपका सामान बढ़िया है और उसके लायक है । जब आप अपने सामान को और  उसकी विशेषताओं को इस प्रकार से प्रस्तुत करें कि वह व्यक्ति उसके प्रति आकर्षित हो जाए आपके प्रति आकर्षित हो जाए तब आपका सामान आराम से बिक जाएगा । 

विज्ञापन इसका एक उदाहरण है । उसमे ऐसे चेहरों का इस्तेमाल होता है जिनसे लोग पहले ही सम्मोहित होते हैं और उनके सम्मोहन के प्रभाव से कई फालतू के सामान जो शरीर के लिए हानिकारक हैं ... जैसे सॉफ्ट ड्रिंक..... वे भी बड़ी मात्रा मे बिक जाते हैं । 

इसी प्रकार से समाज में भी जब आप किसी समूह में या अपने विभाग में या अपने कार्यस्थल पर चर्चा करते हैं... 

या बातें करते हैं... 

या व्यवहार करते हैं... 

तो आपकी लोकप्रियता इस बात पर निर्भर होती है कि लोग आपसे कितने ज्यादा प्रभावित हैं ... 

या यूं कहिए कि लोग आपसे कितने ज्यादा सम्मोहित है.... 

यह सम्मोहन ही आपको सफलता प्रदान करता है । 

सम्मोहन का क्षेत्र बहुत व्यापक है !

अगर आप कोई इंटरव्यू देने जाते हैं तो इंटरव्यू की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप सामने बैठे हुए व्यक्ति को कितना प्रभावित कर पाते हैं ..... 

अगर वह आपसे प्रभावित है तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह आपका सिलेक्शन कर लेगा ..... 

लेकिन वह अगर आप से प्रभावित नहीं हुआ तो इस बात की संभावना है कि आप की योग्यताओं के साथ भी वह आपको रिजेक्ट कर सकता है.... 

अगर आप अध्यापन के क्षेत्र में है तो आप के विद्यार्थी आपकी बातों को मन से स्वीकार तभी करेंगे जब .... 

आपके बोलने की क्षमता में.... 

आपके विषय को प्रस्तुत करने की क्षमता में सम्मोहन होगा ... 

कई बार आप इसे देखते होंगे कि कुछ अध्यापक जब पढ़ाते हैं तो बच्चे पूरी शांति से बैठ कर उनको सुनते हैं .... 

चाहे वह कितने ही उल्टी बुद्धि के बच्चे क्यों ना हो । उनको उस अध्यापक के साथ पढ़ने में मजा आता है । यह उसके अंदर विकसित सम्मोहन की क्षमता है । इसी क्षमता को विकसित करने का अभ्यास ही हिप्नोटिज्म या सम्मोहन कहलाता है । 

इस विषय पर भी उन्होंने एक बहुत ही शानदार किताब लिखी है जिसका नाम है 

"प्रैक्टिकल हिप्नोटिज्म"

इसमें कई ऐसी विधियां दी हुई है जिसके आधार पर.... 

जिन के अभ्यास से... 

आप अपने आप को सम्मोहक स्वरूप प्रदान कर सकते हैं । 

आप यदि मंत्र के विषय में जानना चाहते हैं तो मुझे ऐसा लगता है कि डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के द्वारा लिखी गई किताब "मंत्र रहस्यआपके लिए  एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा काम कर सकती है । उसमें मंत्रों के शास्त्रीय रहस्य को बड़े ही सरल ढंग से खोला गया है और लगभग सभी देवी देवताओं के मंत्र उसमें दिए हुए हैं । 

उनकी एक और किताब है तांत्रिक रहस्य जिसमें उन्होंने कुछ महाविद्या साधनाओं के विषय में भी विस्तार से प्रकाश डाला है । उनकी विधियां भी दी हुई है..... 

 

प्रेम 

अधिकांश गुरु प्रेम के विषय में चर्चा करने से बचते हैं लेकिन अगर आप देखें तो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे सुंदर अगर कोई चीज है तो वह है प्रेम ... 

एक माँ का अपने बच्चे के प्रति जो प्रेम होता है वह उसे विकसित होने बड़ा होने और सक्षम बनने में मदद करता है !

प्रकृति का जो प्रेम है वह हमें समय पर बारिश धूप सब कुछ प्रदान करता है !

पृथ्वी का प्रेम है जो हमें फसलों के रूप में पौधों के रूप में जीवन प्रदान करता है !

यह संपूर्ण सृष्टि उसी प्रेम के सानिध्य में पल रही है और बड़ी हो रही है .... 

लेकिन अधिकांश लोग प्रेम के विषय में चर्चा नहीं करना चाहते । 

वैसे प्रेम और लव में बहुत फर्क है..... 

हम अक्सर प्रेम को लव के साथ कंपेयर करने लग जाते हैं । लव एक पाश्चात्य शब्द है जो कि भौतिकता वादी है । उसके अंतर्गत सिर्फ शरीर और शरीर से सुख प्राप्त करने की क्रियाओं को ही लव माना जाता है लेकिन अगर आप देखें तो उनसे भी परे प्रेम का एक अद्भुत विराट और व्यापक संसार है.... जिसके प्रतीक हैं भगवान कृष्ण !

जिनके प्रेम की महक एक युग युग के बीत जाने के बाद भी आज तक हमारे बीच में मौजूद है !

उसका स्वरूप अलग अलग है लेकिन भगवान कृष्ण के प्रेम की जो मिठास है वह आज भी इस धरती पर महसूस की जा सकती है !

आज भी अगर आप भगवान कृष्ण के चित्र को देखेंगे तो आपके चेहरे पर एक मंद मुस्कान स्वतः बिखर जाएगी !

आपके हृदय में एक हल्की सी खुशी की लहर जरूर उठेगी.... 

यह उनकी प्रेम की विराटता का प्रतीक है !!!

प्रेम जैसे महत्वपूर्ण और रहस्यमय अछूते विषय पर

भी गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमली जी ने लिखा है.... 

प्रेम पर उनकी किताब का नाम है 

"फिर दूर कहीं पायल खनकी"

आप इस किताब को पढ़ेंगे तो आपको आश्चर्य होगा कि तंत्र साधना ओं के क्षेत्र में.... 

ज्योतिष के क्षेत्र में..... 

सम्मोहन के क्षेत्र में.... 

योग के क्षेत्र में.... 

आयुर्वेद के क्षेत्र में.... 

अद्भुत क्षमताएं रखने वाला एक विराट व्यक्तित्व प्रेम के विषय में कितनी सरलता सहजता और व्यापकता के साथ व्याख्या प्रस्तुत कर रहा है..... 

वास्तव में अगर आप प्रेम को समझना चाहते हैं तो आपको यह किताब पढ़नी चाहिए.... 

 

कुल मिलाकर मैं कहूंगा कि गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी एक अद्भुत व्यक्तित्व थे जिन्होंने जीवन के सभी आयामों को स्पर्श किया था । 

उनके जीवन में भी कई प्रकार की घटनाएं घटी !

कई ऐसे प्रसंग आए जो कि गृहस्थ जीवन में और सामाजिक जीवन में भी परेशानी देने वाले थे .... 

लेकिन उन्होंने उन सब को सहजता से स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहने का कार्य किया । 

मुझे ऐसा लगता है कि आज इस संपूर्ण विश्व में उनके शिष्यों की संख्या.... 

उनको मानने वालों की संख्या.... 

उनका सम्मान करने वालों की संख्या..... 

कई करोड़ होगी.... 

और यह संख्या बढ़ती रहेगी..... 

क्योंकि वह ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व है कि उनके जाने के वर्षों बाद भी उनका माधुर्य उनकी सुगंध इस धरती पर बिखरी हुई है .... 

आज भी वे शिष्यों को सपने मे या सूक्ष्म रूप मे दर्शन देते हैं .... उनको दीक्षाएं प्रदान करते हैं ...... मंत्र प्रदान करते हैं...... उनको साधना के पथ पर आगे बढ़ाते हैं । 

वर्ष 1998 में जुलाई के दिन ही उन्होंने अपनी पार्थिव देह को त्याग दिया था.... 

मैं आगामी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अपने गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित करता हुआ .... 

उनके चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम करता हुआ अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं.... 

कि हे गुरुदेव 

आपकी कृपा... 

आप का सानिध्य.... 

आपका आशीर्वाद .... 

धूल को फूल बना देने की क्षमता रखता है !

रंक को राजा बना देने की क्षमता रखता है !

आप वास्तव में अद्भुत हैं !!!