जगद्गुरु भगवान शिव
[1933-1998]
एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
जगद्गुरु भगवान शिव
सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी )
किसी भी जीवित जागृत गुरु के साथ रहना मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है ....
चाहे वह एक क्षण के लिए ही क्यों ना हो !
कुछ मिनट के लिए ही क्यों ना हो !
अगर आप किसी सद्गुरु के साथ रहे हैं, उनके साथ कुछ समय व्यतीत किया है तो उनकी सुगंध आपके जीवन में अवश्य मिलेगी....
यह समझ लीजिए कि आपके अंदर वह ऐसी सुगंध छोड़ देते हैं जो आपके पूरे जीवन भर लोगों को महसूस होती रहेगी....
जीवित गुरु के साथ रहना थोड़ा मुश्किल होता है !
क्योंकि एक तो उनकी परीक्षाएं बड़ी जटिल होती है ....
दूसरे उनके साथ अगर आप रहे तो आपको निरंतर साधनाओं मे लगे रहना पड़ता है । आलस्य और प्रमाद की जगह नहीं होती ।
इसके अलावा तीसरी बात यह कि वे अपने इर्द-गिर्द माया का ऐसा आवरण फैलाते हैं कि अधिकांश शिष्य उसमें फस कर रह जाते हैं ।
बिरले ऐसे होते हैं जो उस माया के आवरण के परे जाकर भी सद्गुरु के ज्ञान को....
उनकी महत्ता को...
उनके दिव्यत्व को थोडा बहुत समझ पाते हैं ।
जो उन्हें समझ लेता है....
जो उन्हें महसूस कर लेता है ....
तो फिर उनकी क्रीडा, उनकी माया सब कुछ अपने आप में समेट लेते हैं ....
और अपने विराट स्वरूप का ज्ञान भी शिष्य को करा देते हैं और फिर ऐसा शिष्य जो स्वयं एक बीज के रूप में होता है.....
वह धीरे धीरे बढ़ता हुआ पौधा बनता है और कालांतर में एक विशाल वटवृक्ष के जैसा बन जाता है ....
जिसकी शरण में........
जिसकी छाया में धूप से संतप्त यात्री शरण लेते हैं ! भोजन कर सकते हैं !
कई प्रकार के पशु पक्षी उसके आश्रय में आकर निवास कर लेते हैं !
जब यह शिष्यत्व बढ़ता जाता है तो वह स्वयं एक कल्पवृक्ष के रूप में विकसित होने लगता है !
गुरु अपने अंदर स्थित कल्पवृक्ष जैसी क्षमताओं को उस शिष्य के अंदर प्रवाहित करना प्रारंभ कर देते हैं !
उसे समर्थ बना देते हैं !
सक्षम बना देते हैं ....
ताकि वह भी उन्हीं के समान दूसरों की कठिनाइयों को हल करने की क्षमता प्राप्त कर सकें ।
जीवन में अद्वितीय सफलताओं को प्राप्त कर सके .....
साधना की उच्चता को प्राप्त कर सकें !
उस महामाया के सानिध्य को प्राप्त कर सकें !
महादेव का सौरभ अपने जीवन में महसूस कर सके !
जब ऐसी स्थिति आती है तो शिष्य निश्चिंत हो जाता है । निश्चिंत होने का मतलब यह नहीं है कि उसके जीवन में सब कुछ ठीक ही होगा.... जीवन में कोई समस्याएं नहीं होंगी....
हाँ ! समस्याएं आएंगी....
चिंताएं भी आएंगी....
लेकिन उनके समाधान का मार्ग भी उसी प्रकार से निकलता चला जाएगा ।
जीवन बड़ी ही सरलता से.....
किसी बहती हुई नदी की तरह.....
छल छल करता हुआ आगे की ओर बढ़ता रहेगा और आप उस आनंद में गुरु के सानिध्य के उस आनंद में अपने आप को आप्लावित करते हुए....
उनकी सुगंध को महसूस करते हुए....
स्वयं सुगंधित होते हुए आगे बढ़ते रहेंगे ।
मेरे सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का सानिध्य और उनके पास बिताए गए कुछ क्षण मेरे जीवन की धरोहर है !
मेरे जीवन का सौभाग्य है !
मेरी सबसे बड़ी पूंजी है !
मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि इस पृथ्वी पर गुरु तत्व से परे कुछ भी नहीं है ।
आपने एक अच्छा गुरु प्राप्त कर लिया !
एक अच्छे गुरु के सानिध्य में चले गए !!
आप एक अच्छे शिष्य बन गए !!!
तो यकीन मानिए इस पृथ्वी पर ऐसा कुछ भी नहीं है.....
जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते !
चाहे धन-संपत्ति हो,
चाहे ईश्वरीय सानिध्य हो !
सब कुछ सहज उपलब्ध हो जाता है -----
पूज्यपाद गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी जिन्हें सन्यस्त रूप में परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के रूप में भी जाना जाता है....
वे वर्ष 1935 में 21 अप्रैल के दिन इस धरा पर अवतरित हुए थे । उन्होने अपने जीवन का एक लंबा कालखंड साधनाओं के विषय में....
तंत्र के विषय में....
गोपनीय ज्ञान को प्राप्त करने और इकट्ठा करने में बिताया था ।
उनका मूल लक्ष्य था कि वे भारत की साधनाओं को भारत की गोपनीय विद्याओं को वापस उनके मूल स्वरूप में पुनः स्थापित करके उनकी प्रतिष्ठा को वापस ला सके ।
इसके लिए उन्होंने बहुत गहन गंभीर प्रयास किए । उनका सबसे पहला प्रयास ज्योतिष विद्या के क्षेत्र था । उन्होंने ज्योतिष पर कई किताबें लिखीं । जिनमें कुंडली बनाने से लेकर भावों को देखकर उसकी गणना के द्वारा सटीक भविष्यफल बताने तक बहुत सारी विधि छोटी-छोटी पुस्तकों के रूप में उन्होंने प्रकाशित की थी । आज भी आप उन पुस्तकों को ध्यान से पढ़ लें ।
साल दो साल का समय दें ...
तो यकीन मानिए कि आप एक अच्छे ज्योतिष बनने की दिशा में अग्रसर हो जाएंगे ।
इसी प्रकार उन्होंने हस्तरेखा पर भी एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा ग्रंथ लिखा है....
वृहद हस्तरेखा शास्त्र....
जिसमें हाथ की लकीरों और उन से बनने वाले विभिन्न प्रकार के योगों के बारे में पूरी व्याख्या दी गई है ।
अगर आप हस्तरेखा के क्षेत्र में रुचि रखते हैं तो आपको डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी की यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए । उसे अगर आप पूरी निष्ठा श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़कर उसके अनुसार विवेचन करने की कोशिश करेंगे तो यकीन मानिए कि आप जल्द ही एक प्रतिष्ठित हस्त रेखा शास्त्री के रूप में अपने आप को स्थापित कर लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने हस्तरेखा शास्त्र के विषय में आगे बढ़ने के लिए हस्त रेखाओं की अधिष्ठात्री देवी जिन्हें "पंचांगुली देवी" कहा जाता है उनके साधना के संपूर्ण विधान को भी अपनी किताब "पंचांगुली साधना" में स्पष्ट किया है ।
यह साधना जटिल है, लेकिन अगर आप उस किताब के अनुसार इस साधना को संपन्न करते हैं तब भी आपको हस्त रेखाओं के ज्ञान में अनुकूलता और प्रभाव प्राप्त हो सकता है ।
एक और विषय जो उन्होंने प्रारंभिक स्तर पर उठाया था ...
वह था हिप्नोटिज्म !
हिप्नोटिज्म का अर्थ होता है सम्मोहन या दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने की कला !
अगर आप देखें तो जीवन में खास तौर से गृहस्थ जीवन में हमारा अधिकांश समय दूसरों को प्रभावित करने में ही बीत जाता है....
हमारी अधिकांश सफलता का श्रेय भी इसी क्षमता को जाता है....
मान लीजिए कि आप एक दुकानदार है, आपका सामान तभी बिकेगा जब आप अपने ग्राहक को समझा पाए कि आपका सामान बढ़िया है और उसके लायक है । जब आप अपने सामान को और उसकी विशेषताओं को इस प्रकार से प्रस्तुत करें कि वह व्यक्ति उसके प्रति आकर्षित हो जाए आपके प्रति आकर्षित हो जाए तब आपका सामान आराम से बिक जाएगा ।
विज्ञापन इसका एक उदाहरण है । उसमे ऐसे चेहरों का इस्तेमाल होता है जिनसे लोग पहले ही सम्मोहित होते हैं और उनके सम्मोहन के प्रभाव से कई फालतू के सामान जो शरीर के लिए हानिकारक हैं ... जैसे सॉफ्ट ड्रिंक..... वे भी बड़ी मात्रा मे बिक जाते हैं ।
इसी प्रकार से समाज में भी जब आप किसी समूह में या अपने विभाग में या अपने कार्यस्थल पर चर्चा करते हैं...
या बातें करते हैं...
या व्यवहार करते हैं...
तो आपकी लोकप्रियता इस बात पर निर्भर होती है कि लोग आपसे कितने ज्यादा प्रभावित हैं ...
या यूं कहिए कि लोग आपसे कितने ज्यादा सम्मोहित है....
यह सम्मोहन ही आपको सफलता प्रदान करता है ।
सम्मोहन का क्षेत्र बहुत व्यापक है !
अगर आप कोई इंटरव्यू देने जाते हैं तो इंटरव्यू की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप सामने बैठे हुए व्यक्ति को कितना प्रभावित कर पाते हैं .....
अगर वह आपसे प्रभावित है तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह आपका सिलेक्शन कर लेगा .....
लेकिन वह अगर आप से प्रभावित नहीं हुआ तो इस बात की संभावना है कि आप की योग्यताओं के साथ भी वह आपको रिजेक्ट कर सकता है....
अगर आप अध्यापन के क्षेत्र में है तो आप के विद्यार्थी आपकी बातों को मन से स्वीकार तभी करेंगे जब ....
आपके बोलने की क्षमता में....
आपके विषय को प्रस्तुत करने की क्षमता में सम्मोहन होगा ...
कई बार आप इसे देखते होंगे कि कुछ अध्यापक जब पढ़ाते हैं तो बच्चे पूरी शांति से बैठ कर उनको सुनते हैं ....
चाहे वह कितने ही उल्टी बुद्धि के बच्चे क्यों ना हो । उनको उस अध्यापक के साथ पढ़ने में मजा आता है । यह उसके अंदर विकसित सम्मोहन की क्षमता है । इसी क्षमता को विकसित करने का अभ्यास ही हिप्नोटिज्म या सम्मोहन कहलाता है ।
इस विषय पर भी उन्होंने एक बहुत ही शानदार किताब लिखी है जिसका नाम है
"प्रैक्टिकल हिप्नोटिज्म"
इसमें कई ऐसी विधियां दी हुई है जिसके आधार पर....
जिन के अभ्यास से...
आप अपने आप को सम्मोहक स्वरूप प्रदान कर सकते हैं ।
आप यदि मंत्र के विषय में जानना चाहते हैं तो मुझे ऐसा लगता है कि डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के द्वारा लिखी गई किताब "मंत्र रहस्य" आपके लिए एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा काम कर सकती है । उसमें मंत्रों के शास्त्रीय रहस्य को बड़े ही सरल ढंग से खोला गया है और लगभग सभी देवी देवताओं के मंत्र उसमें दिए हुए हैं ।
उनकी एक और किताब है तांत्रिक रहस्य जिसमें उन्होंने कुछ महाविद्या साधनाओं के विषय में भी विस्तार से प्रकाश डाला है । उनकी विधियां भी दी हुई है.....
प्रेम
अधिकांश गुरु प्रेम के विषय में चर्चा करने से बचते हैं , लेकिन अगर आप देखें तो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे सुंदर अगर कोई चीज है तो वह है प्रेम ...
एक माँ का अपने बच्चे के प्रति जो प्रेम होता है वह उसे विकसित होने बड़ा होने और सक्षम बनने में मदद करता है !
प्रकृति का जो प्रेम है वह हमें समय पर बारिश धूप सब कुछ प्रदान करता है !
पृथ्वी का प्रेम है जो हमें फसलों के रूप में पौधों के रूप में जीवन प्रदान करता है !
यह संपूर्ण सृष्टि उसी प्रेम के सानिध्य में पल रही है और बड़ी हो रही है ....
लेकिन अधिकांश लोग प्रेम के विषय में चर्चा नहीं करना चाहते ।
वैसे प्रेम और लव में बहुत फर्क है.....
हम अक्सर प्रेम को लव के साथ कंपेयर करने लग जाते हैं । लव एक पाश्चात्य शब्द है जो कि भौतिकता वादी है । उसके अंतर्गत सिर्फ शरीर और शरीर से सुख प्राप्त करने की क्रियाओं को ही लव माना जाता है लेकिन अगर आप देखें तो उनसे भी परे प्रेम का एक अद्भुत विराट और व्यापक संसार है.... जिसके प्रतीक हैं भगवान कृष्ण !
जिनके प्रेम की महक एक युग युग के बीत जाने के बाद भी आज तक हमारे बीच में मौजूद है !
उसका स्वरूप अलग अलग है लेकिन भगवान कृष्ण के प्रेम की जो मिठास है वह आज भी इस धरती पर महसूस की जा सकती है !
आज भी अगर आप भगवान कृष्ण के चित्र को देखेंगे तो आपके चेहरे पर एक मंद मुस्कान स्वतः बिखर जाएगी !
आपके हृदय में एक हल्की सी खुशी की लहर जरूर उठेगी....
यह उनकी प्रेम की विराटता का प्रतीक है !!!
प्रेम जैसे महत्वपूर्ण और रहस्यमय अछूते विषय पर
भी गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमली जी ने लिखा है....
प्रेम पर उनकी किताब का नाम है
"फिर दूर कहीं पायल खनकी"
आप इस किताब को पढ़ेंगे तो आपको आश्चर्य होगा कि तंत्र साधना ओं के क्षेत्र में....
ज्योतिष के क्षेत्र में.....
सम्मोहन के क्षेत्र में....
योग के क्षेत्र में....
आयुर्वेद के क्षेत्र में....
अद्भुत क्षमताएं रखने वाला एक विराट व्यक्तित्व प्रेम के विषय में कितनी सरलता सहजता और व्यापकता के साथ व्याख्या प्रस्तुत कर रहा है.....
वास्तव में अगर आप प्रेम को समझना चाहते हैं तो आपको यह किताब पढ़नी चाहिए....
कुल मिलाकर मैं कहूंगा कि गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी एक अद्भुत व्यक्तित्व थे जिन्होंने जीवन के सभी आयामों को स्पर्श किया था ।
उनके जीवन में भी कई प्रकार की घटनाएं घटी !
कई ऐसे प्रसंग आए जो कि गृहस्थ जीवन में और सामाजिक जीवन में भी परेशानी देने वाले थे ....
लेकिन उन्होंने उन सब को सहजता से स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहने का कार्य किया ।
मुझे ऐसा लगता है कि आज इस संपूर्ण विश्व में उनके शिष्यों की संख्या....
उनको मानने वालों की संख्या....
उनका सम्मान करने वालों की संख्या.....
कई करोड़ होगी....
और यह संख्या बढ़ती रहेगी.....
क्योंकि वह ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व है कि उनके जाने के वर्षों बाद भी उनका माधुर्य उनकी सुगंध इस धरती पर बिखरी हुई है ....
आज भी वे शिष्यों को सपने मे या सूक्ष्म रूप मे दर्शन देते हैं .... उनको दीक्षाएं प्रदान करते हैं ...... मंत्र प्रदान करते हैं...... उनको साधना के पथ पर आगे बढ़ाते हैं ।
वर्ष 1998 में 3 जुलाई के दिन ही उन्होंने अपनी पार्थिव देह को त्याग दिया था....
मैं आगामी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अपने गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित करता हुआ ....
उनके चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम करता हुआ अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं....
कि हे गुरुदेव
आपकी कृपा...
आप का सानिध्य....
आपका आशीर्वाद ....
धूल को फूल बना देने की क्षमता रखता है !
रंक को राजा बना देने की क्षमता रखता है !
आप वास्तव में अद्भुत हैं !!!