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13 जुलाई 2023

तांत्रोक्त गुरु पूजन

     

तांत्रोक्त गुरु पूजन

तंत्रोक्त गुरु पूजन की विधि प्रस्तुत है । 

जिसके माध्यम से आप अपने सदगुरुदेव का पूजन कर सकते हैं क्योंकि मेरे गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ( डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ) हैं इसलिए गुरुदेव जी के स्थान पर में उनका नाम ले रहा हूं आप अपने गुरु का नाम उनकी जगह पर ले सकते हैं ।  

इस पूजन के लिए स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें । लकड़ी की चौकी या बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर पंचामृत या जल से स्नान कराके गुरु चित्र यंत्र या शिवलिंग जो भी आपके पास उपलब्ध हो उसे रख लें । अब पूजन प्रारंभ करें। 

 

पवित्रीकरण

किसी भी कार्य को करने के पहले हम अपने आप को साफ सुथरा करते हैं ठीक वैसे ही पूजन करने से पहले भी अपने आप को पवित्र किया जाता है इसे पवित्रीकरण कहते हैं इसमें अपने ऊपर बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से  छिड़कें  या फूल या चम्मच जो भी आप इस्तेमाल करना चाहते हो उसके द्वारा अपने ऊपर थोड़ा  सा जल छिड़क लें । 

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।

आचमन 

आंतरिक शुद्धि के लिए निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें -

ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।

ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।

ॐ विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।

 

सूर्य पूजन

भगवान सूर्य इस सृष्टि के संचालन करता है और उन्हीं के माध्यम से हम सभी का जीवन गतिशील होता है इसलिए उनकी पूजा अनिवार्य है । 

कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें -

ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।

हिरण्येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।

ॐ पश्येन शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं ।जीवेम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात ।।

 

ध्यान

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: । 

गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम: ॥ 

ध्यान मूलं गुरु: मूर्ति पूजा मूलं गुरो पदं । 

मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुकृपा ॥ 

 आवाहन 

ॐ स्वरुप निरूपण हेतवे श्री निखिलेश्वरानन्दाय गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।

ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री सच्चिदानंद परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।

ॐ स्वात्माराम पिंजर विलीन तेजसे श्री ब्रह्मणे पारमेष्ठि गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।

षट चक्र स्थापन --

गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें -

श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री सदाशिवानन्दनाथ चिच्छक्त्यम्बा स्वाधिष्ठान चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री ईश्वरानन्दनाथ आनंद शक्त्यम्बा मणिपुर चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री विष्णुदेवानन्दनाथ ज्ञान शक्त्यम्बा विशुद्ध चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री ब्रह्मदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः ।

ॐ श्री उन्मनाकाशानन्दनाथ – जलं समर्पयामि ।

ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – गंगाजल स्नानं समर्पयामि ।

ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि ।

ॐ श्री शक्त्याकाशानन्दनाथ – चन्दनं समर्पयामि ।

ॐ श्री ध्वन्याकाशानन्दनाथ – कुंकुमं समर्पयामि ।

ॐ श्री ध्वनिमात्रकाशानन्दनाथ – केशरं समर्पयामि ।

ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि ।

ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतं समर्पयामि ।

ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारम समर्पयामि ।

दीपम 

सिद्ध शक्तियों को दीप दिखाएँ 

 

श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि ।

श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि ।

श्री करालाम्बिका सिद्ध दीपं समर्पयामि ।

श्री त्रिबाणाम्बा सिद्ध ज्ञान दीपं समर्पयामि ।

श्री भीमाम्बा सिद्ध ह्रदय दीपं समर्पयामि ।

श्री कराल्याम्बा सिद्ध सिद्ध दीपं समर्पयामि ।

श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि ।

श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि ।

 

नीराजन --

पात्र में जल, कुंकुम, अक्षत और पुष्प लेकर गुरु चरणों मे समर्पित करें -

श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री सूर्यमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री अग्निमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री ज्ञानमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री ब्रह्ममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

पञ्च पंचिका 

अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर , दोनों हाथों को भिक्षापात्र के समान जोड़कर, निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें -

श्री विद्या लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री एकाकार लक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री महालक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री त्रिशक्तिलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री सर्वसाम्राज्यलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री विद्या कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री परज्योति कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री परिनिष्कल शाम्भवी कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अजपा कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री मातृका कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री विद्या कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि । 

श्री त्वरिता कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री पारिजातेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री त्रिपुटा कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री पञ्च बाणेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री विद्या कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अमृत पीठेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री सुधांशु कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अमृतेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अन्नपूर्णा कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री विद्या रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री सिद्धलक्ष्मी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री मातंगेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री भुवनेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री वाराही रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

 

श्री मन्मालिनी मंत्र 

अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके । इसके द्वारा सभी अक्षरों अर्थात स्वर व्यंजनों का पूजन हो जाता है जिससे मंत्र बनते हैं :- 

 

ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं ल्रृं एं ऐँ ओं औं अं अः ।

कं खं गं घं ङं ।

चं छं जं झं ञं ।

टं ठं डं ढं णं ।

तं थं दं धं नं ।

पं फं बं भं मं ।

यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं हंसः सोऽहं गुरुदेवाय नमः ।

गुरु मंत्र जाप 

इसके बाद गुरु मंत्र का यथा शक्ति जाप करें ।  

प्रार्थना --

लोकवीरं महापूज्यं सर्वरक्षाकरं विभुम् ।

शिष्य हृदयानन्दं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।

त्रिपूज्यं विश्व वन्द्यं च विष्णुशम्भो प्रियं सुतं ।

क्षिप्र प्रसाद निरतं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।

मत्त मातंग गमनं कारुण्यामृत पूजितं ।

सर्व विघ्न हरं देवं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।

अस्मत् कुलेश्वरं देवं सर्व सौभाग्यदायकं ।

अस्मादिष्ट प्रदातारं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।

यस्य धन्वन्तरिर्माता पिता रुद्रोऽभिषक् तमः ।

तं शास्तारमहं वंदे महावैद्यं दयानिधिं ।।

 

समर्पण --

सम्पूर्ण पूजन गुरु के चरणों मे समर्पित करें :-

देवनाथ गुरौ स्वामिन देशिक स्वात्म नायक: । 

त्राहि त्राहि कृपा सिंधों , पूजा पूर्णताम कुरु ....

अनया पूजया श्री गुरु प्रीयंताम तदसद श्री सद्गुरु चरणार्पणमस्तु ॥ 

इतना कहकर गुरु चरणों मे जल छोड़ें । 

शांति 

 

तीन बार जल छिडके...    

ॐ शान्तिः । शान्तिः ।। शान्तिः ।।।


आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

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11 जुलाई 2023

निखिल धाम [ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी को समर्पित मंदिर ]

  

निखिल धाम

[ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी को समर्पित मंदिर ]




परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [ डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] का यह दिव्य मंदिर है.

इसका निर्माण परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [Dr. Narayan dutta Shrimali Ji ] के प्रिय शिष्य स्वामी सुदर्शननाथ जी तथा डा साधना सिंह जी ने करवाया है.



यह [ Nikhildham ] भोपाल [ मध्यप्रदेश ] से लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर के पास लगभग ५ एकड के क्षेत्र में बना हुआ है.

यहां पर  महाविद्याओं के अद्भुत तेजस्वितायुक्त विशिष्ठ मन्दिर बनाये गये हैं.













9 जुलाई 2023

गुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली जी की आवाज मे अकाल मृत्यु निवारक मंत्र ।

  गुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली जी की आवाज मे अकाल मृत्यु निवारक मंत्र ।

इस मंत्र को निरंतर सुनते रहने से अकाल मृत्यु तथा रोग निवारण मे लाभदायक है ।



3 जुलाई 2023

पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना

  






पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना


|| ॐ निं निखिलेश्वराये निं नमः  ||
  • वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र धारण करें.
  • आसन - सफ़ेद होगा.
  • समय - प्रातः ४ से ६ बजे का समय सबसे अच्छा है, न हो पाए तो कभी भी कर सकते हैं.
  • दिशा - उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए बैठें.
  • पुरश्चरण - सवा लाख मंत्र जाप का होगा.यदि इतना न कर सकते हों तो यथाशक्ति करें.
  • हवन - १२,५०० मंत्रों से मंत्र के पीछे स्वाहा लगाकर हवन करेंगे

  • हवन सामग्री - दशांग या घी.

विधि :- 
सामने गुरु चित्र रखें गुरु यन्त्र या श्री यंत्र हो तो वह भी रखें .

संकल्प :- 
हाथ में पानी लेकर बोले की " मै [अपना नाम ] गुरुदेव परमहंस स्वामी
निखिलेश्वरानंदजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए यह मंत्र जाप  कर रहा हूँ , वे प्रसन्न हों और मुझपर कृपा करें साधना के मार्ग पर आगे बढायें ". अब पानी निचे छोड़ दें.
लाभ :-
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा प्राप्त होगी जो आपको साधना पथ पर तेजी से आगे बढ़ाएगी. 

गुलाब या अष्टगंध की खुशबु आना गुरुदेव के आगमन का प्रमाण है.

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सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी )

  


सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी )

किसी भी जीवित जागृत गुरु के साथ रहना मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है .... 

चाहे वह एक क्षण के लिए ही क्यों ना हो ! 

कुछ मिनट के लिए ही क्यों ना हो !

अगर आप किसी सद्गुरु के साथ रहे हैंउनके साथ कुछ समय व्यतीत किया है तो उनकी सुगंध आपके जीवन में अवश्य मिलेगी.... 

यह समझ लीजिए कि आपके अंदर वह ऐसी सुगंध छोड़ देते हैं जो आपके पूरे जीवन भर लोगों को महसूस होती रहेगी.... 

 

जीवित गुरु के साथ रहना थोड़ा मुश्किल होता है !

क्योंकि एक तो उनकी परीक्षाएं बड़ी जटिल होती है .... 

दूसरे उनके साथ अगर आप रहे तो आपको निरंतर साधनाओं मे लगे रहना पड़ता है । आलस्य और प्रमाद की जगह नहीं होती । 

 

इसके अलावा तीसरी बात यह कि वे अपने इर्द-गिर्द माया का ऐसा आवरण फैलाते हैं कि अधिकांश शिष्य उसमें फस कर रह जाते हैं । 

बिरले ऐसे होते हैं जो उस माया के आवरण के परे जाकर भी सद्गुरु के ज्ञान को.... 

उनकी महत्ता को... 

उनके दिव्यत्व को थोडा बहुत समझ पाते हैं । 

जो उन्हें समझ लेता है.... 

जो उन्हें महसूस कर लेता है .... 

तो फिर उनकी क्रीडाउनकी माया सब कुछ अपने आप में समेट लेते हैं .... 

और अपने विराट स्वरूप का ज्ञान भी शिष्य को करा देते हैं और फिर ऐसा शिष्य जो स्वयं एक बीज के रूप में होता है..... 

वह धीरे धीरे बढ़ता हुआ पौधा बनता है और कालांतर में एक विशाल वटवृक्ष के जैसा बन जाता है .... 

जिसकी शरण में........ 

जिसकी छाया में धूप से संतप्त यात्री शरण लेते हैं ! भोजन कर सकते हैं !

कई प्रकार के पशु पक्षी उसके आश्रय में आकर निवास कर लेते हैं !

जब यह शिष्यत्व बढ़ता जाता है तो वह स्वयं एक कल्पवृक्ष के रूप में विकसित होने लगता है !

गुरु अपने अंदर स्थित कल्पवृक्ष जैसी क्षमताओं को उस शिष्य के अंदर प्रवाहित करना प्रारंभ कर देते हैं !

उसे समर्थ बना देते हैं !

सक्षम बना देते हैं .... 

ताकि वह भी उन्हीं के समान दूसरों की कठिनाइयों को हल करने की क्षमता प्राप्त कर सकें । 

जीवन में अद्वितीय सफलताओं को प्राप्त कर सके ..... 

साधना की उच्चता को प्राप्त कर सकें !

उस महामाया के सानिध्य को प्राप्त कर सकें !

महादेव का सौरभ अपने जीवन में महसूस कर सके !

जब ऐसी स्थिति आती है तो शिष्य निश्चिंत हो जाता है । निश्चिंत होने का मतलब यह नहीं है कि उसके जीवन में सब कुछ ठीक ही होगा.... जीवन में कोई समस्याएं नहीं होंगी.... 

हाँ ! समस्याएं आएंगी....

चिंताएं भी आएंगी.... 

लेकिन उनके समाधान का मार्ग भी उसी प्रकार से निकलता चला जाएगा । 

जीवन बड़ी ही सरलता से..... 

किसी बहती हुई नदी की तरह..... 

छल छल करता हुआ आगे की ओर बढ़ता रहेगा और आप उस आनंद में गुरु के सानिध्य के उस आनंद में अपने आप को आप्लावित करते हुए.... 

उनकी सुगंध को महसूस करते हुए.... 

स्वयं सुगंधित होते हुए आगे बढ़ते रहेंगे । 

 

मेरे सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का सानिध्य और उनके पास बिताए गए कुछ क्षण मेरे जीवन की धरोहर है !

मेरे जीवन का सौभाग्य है !

मेरी सबसे बड़ी पूंजी है !

आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि इस पृथ्वी पर गुरु तत्व से परे कुछ भी नहीं है । 

आपने एक अच्छा गुरु प्राप्त कर लिया !

एक अच्छे गुरु के सानिध्य में चले गए !!

आप एक अच्छे शिष्य बन गए !!!

तो यकीन मानिए इस पृथ्वी पर ऐसा कुछ भी नहीं है..... 

जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते !

चाहे धन-संपत्ति हो

चाहे ईश्वरीय सानिध्य हो !

सब कुछ सहज उपलब्ध हो जाता है -----

 

पूज्यपाद गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी जिन्हें सन्यस्त रूप में परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के रूप में भी जाना जाता है.... 

वे वर्ष 1935 में 21 अप्रैल के दिन इस धरा पर अवतरित हुए थे । उन्होने अपने जीवन का एक लंबा कालखंड साधनाओं के विषय में.... 

तंत्र के विषय में.... 

गोपनीय ज्ञान को प्राप्त करने और इकट्ठा करने में बिताया था । 

उनका मूल लक्ष्य था कि वे भारत की साधनाओं को भारत की गोपनीय विद्याओं को वापस उनके मूल स्वरूप में पुनः स्थापित करके उनकी प्रतिष्ठा को वापस ला सके । 

इसके लिए उन्होंने बहुत गहन गंभीर प्रयास किए । उनका सबसे पहला प्रयास ज्योतिष विद्या के क्षेत्र था । उन्होंने ज्योतिष पर कई किताबें लिखीं । जिनमें कुंडली बनाने से लेकर भावों को देखकर उसकी गणना के द्वारा सटीक भविष्यफल बताने तक बहुत सारी विधि छोटी-छोटी पुस्तकों के रूप में उन्होंने प्रकाशित की थी । आज भी आप उन पुस्तकों को ध्यान से पढ़ लें । 

साल दो साल का समय दें ... 

तो यकीन मानिए कि आप एक अच्छे ज्योतिष बनने की दिशा में अग्रसर हो जाएंगे । 

 

इसी प्रकार उन्होंने हस्तरेखा पर भी एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा ग्रंथ लिखा है.... 

वृहद हस्तरेखा शास्त्र.... 

जिसमें हाथ की लकीरों और उन से बनने वाले विभिन्न प्रकार के योगों के बारे में पूरी व्याख्या दी गई है । 

अगर आप हस्तरेखा के क्षेत्र में रुचि रखते हैं तो आपको डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी की यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए । उसे अगर आप पूरी निष्ठा श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़कर उसके अनुसार विवेचन करने की कोशिश करेंगे तो यकीन मानिए कि आप जल्द ही एक प्रतिष्ठित हस्त रेखा शास्त्री के रूप में अपने आप को स्थापित कर लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने हस्तरेखा शास्त्र के विषय में आगे बढ़ने के लिए हस्त रेखाओं की अधिष्ठात्री देवी जिन्हें "पंचांगुली देवीकहा जाता है उनके साधना के संपूर्ण विधान को भी अपनी किताब "पंचांगुली साधनामें स्पष्ट किया है । 

यह साधना जटिल हैलेकिन अगर आप उस किताब के अनुसार इस साधना को संपन्न करते हैं तब भी आपको हस्त रेखाओं के ज्ञान में अनुकूलता और प्रभाव प्राप्त हो सकता है । 

 

एक और विषय जो उन्होंने प्रारंभिक स्तर पर उठाया था ... 

वह था हिप्नोटिज्म !

हिप्नोटिज्म का अर्थ होता है सम्मोहन या दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने की कला !

अगर आप देखें तो जीवन में खास तौर से गृहस्थ जीवन में हमारा अधिकांश समय दूसरों को प्रभावित करने में ही बीत जाता है.... 

हमारी अधिकांश सफलता का श्रेय भी इसी क्षमता को जाता है.... 

मान लीजिए कि आप एक दुकानदार हैआपका सामान तभी बिकेगा जब आप अपने ग्राहक को समझा पाए कि आपका सामान बढ़िया है और उसके लायक है । जब आप अपने सामान को और  उसकी विशेषताओं को इस प्रकार से प्रस्तुत करें कि वह व्यक्ति उसके प्रति आकर्षित हो जाए आपके प्रति आकर्षित हो जाए तब आपका सामान आराम से बिक जाएगा । 

विज्ञापन इसका एक उदाहरण है । उसमे ऐसे चेहरों का इस्तेमाल होता है जिनसे लोग पहले ही सम्मोहित होते हैं और उनके सम्मोहन के प्रभाव से कई फालतू के सामान जो शरीर के लिए हानिकारक हैं ... जैसे सॉफ्ट ड्रिंक..... वे भी बड़ी मात्रा मे बिक जाते हैं । 

इसी प्रकार से समाज में भी जब आप किसी समूह में या अपने विभाग में या अपने कार्यस्थल पर चर्चा करते हैं... 

या बातें करते हैं... 

या व्यवहार करते हैं... 

तो आपकी लोकप्रियता इस बात पर निर्भर होती है कि लोग आपसे कितने ज्यादा प्रभावित हैं ... 

या यूं कहिए कि लोग आपसे कितने ज्यादा सम्मोहित है.... 

यह सम्मोहन ही आपको सफलता प्रदान करता है । 

 

सम्मोहन का क्षेत्र बहुत व्यापक है !

अगर आप कोई इंटरव्यू देने जाते हैं तो इंटरव्यू की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप सामने बैठे हुए व्यक्ति को कितना प्रभावित कर पाते हैं ..... 

अगर वह आपसे प्रभावित है तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह आपका सिलेक्शन कर लेगा ..... 

लेकिन वह अगर आप से प्रभावित नहीं हुआ तो इस बात की संभावना है कि आप की योग्यताओं के साथ भी वह आपको रिजेक्ट कर सकता है.... 

 

अगर आप अध्यापन के क्षेत्र में है तो आप के विद्यार्थी आपकी बातों को मन से स्वीकार तभी करेंगे जब .... 

आपके बोलने की क्षमता में.... 

आपके विषय को प्रस्तुत करने की क्षमता में सम्मोहन होगा ... 

कई बार आप इसे देखते होंगे कि कुछ अध्यापक जब पढ़ाते हैं तो बच्चे पूरी शांति से बैठ कर उनको सुनते हैं .... 

चाहे वह कितने ही उल्टी बुद्धि के बच्चे क्यों ना हो । उनको उस अध्यापक के साथ पढ़ने में मजा आता है । यह उसके अंदर विकसित सम्मोहन की क्षमता है । इसी क्षमता को विकसित करने का अभ्यास ही हिप्नोटिज्म या सम्मोहन कहलाता है । 

इस विषय पर भी उन्होंने एक बहुत ही शानदार किताब लिखी है जिसका नाम है 

"प्रैक्टिकल हिप्नोटिज्म"

इसमें कई ऐसी विधियां दी हुई है जिसके आधार पर.... 

जिन के अभ्यास से... 

आप अपने आप को सम्मोहक स्वरूप प्रदान कर सकते हैं । 

 

आप यदि मंत्र के विषय में जानना चाहते हैं तो मुझे ऐसा लगता है कि डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के द्वारा लिखी गई किताब "मंत्र रहस्यआपके लिए  एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा काम कर सकती है । उसमें मंत्रों के शास्त्रीय रहस्य को बड़े ही सरल ढंग से खोला गया है और लगभग सभी देवी देवताओं के मंत्र उसमें दिए हुए हैं । 

 

उनकी एक और किताब है तांत्रिक रहस्य जिसमें उन्होंने कुछ महाविद्या साधनाओं के विषय में भी विस्तार से प्रकाश डाला है । उनकी विधियां भी दी हुई है..... 

 

प्रेम 

अधिकांश गुरु प्रेम के विषय में चर्चा करने से बचते हैं लेकिन अगर आप देखें तो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे सुंदर अगर कोई चीज है तो वह है प्रेम ... 

एक माँ का अपने बच्चे के प्रति जो प्रेम होता है वह उसे विकसित होने बड़ा होने और सक्षम बनने में मदद करता है !

प्रकृति का जो प्रेम है वह हमें समय पर बारिश धूप सब कुछ प्रदान करता है !

पृथ्वी का प्रेम है जो हमें फसलों के रूप में पौधों के रूप में जीवन प्रदान करता है !

यह संपूर्ण सृष्टि उसी प्रेम के सानिध्य में पल रही है और बड़ी हो रही है .... 

 

लेकिन अधिकांश लोग प्रेम के विषय में चर्चा नहीं करना चाहते । 

वैसे प्रेम और लव में बहुत फर्क है..... 

हम अक्सर प्रेम को लव के साथ कंपेयर करने लग जाते हैं । लव एक पाश्चात्य शब्द है जो कि भौतिकता वादी है । उसके अंतर्गत सिर्फ शरीर और शरीर से सुख प्राप्त करने की क्रियाओं को ही लव माना जाता है लेकिन अगर आप देखें तो उनसे भी परे प्रेम का एक अद्भुत विराट और व्यापक संसार है.... जिसके प्रतीक हैं भगवान कृष्ण !

जिनके प्रेम की महक एक युग युग के बीत जाने के बाद भी आज तक हमारे बीच में मौजूद है !

उसका स्वरूप अलग अलग है लेकिन भगवान कृष्ण के प्रेम की जो मिठास है वह आज भी इस धरती पर महसूस की जा सकती है !

आज भी अगर आप भगवान कृष्ण के चित्र को देखेंगे तो आपके चेहरे पर एक मंद मुस्कान स्वतः बिखर जाएगी !

आपके हृदय में एक हल्की सी खुशी की लहर जरूर उठेगी.... 

यह उनकी प्रेम की विराटता का प्रतीक है !!!

 

प्रेम जैसे महत्वपूर्ण और रहस्यमय अछूते विषय पर

भी गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमली जी ने लिखा है.... 

प्रेम पर उनकी किताब का नाम है 

"फिर दूर कहीं पायल खनकी"

 

आप इस किताब को पढ़ेंगे तो आपको आश्चर्य होगा कि तंत्र साधना ओं के क्षेत्र में.... 

ज्योतिष के क्षेत्र में..... 

सम्मोहन के क्षेत्र में.... 

योग के क्षेत्र में.... 

आयुर्वेद के क्षेत्र में.... 

अद्भुत क्षमताएं रखने वाला एक विराट व्यक्तित्व प्रेम के विषय में कितनी सरलता सहजता और व्यापकता के साथ व्याख्या प्रस्तुत कर रहा है..... 

वास्तव में अगर आप प्रेम को समझना चाहते हैं तो आपको यह किताब पढ़नी चाहिए.... 

 

कुल मिलाकर मैं कहूंगा कि गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी एक अद्भुत व्यक्तित्व थे जिन्होंने जीवन के सभी आयामों को स्पर्श किया था । 

उनके जीवन में भी कई प्रकार की घटनाएं घटी !

कई ऐसे प्रसंग आए जो कि गृहस्थ जीवन में और सामाजिक जीवन में भी परेशानी देने वाले थे .... 

लेकिन उन्होंने उन सब को सहजता से स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहने का कार्य किया । 

मुझे ऐसा लगता है कि आज इस संपूर्ण विश्व में उनके शिष्यों की संख्या.... 

उनको मानने वालों की संख्या.... 

उनका सम्मान करने वालों की संख्या..... 

कई करोड़ होगी.... 

और यह संख्या बढ़ती रहेगी..... 

क्योंकि वह ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व है कि उनके जाने के वर्षों बाद भी उनका माधुर्य उनकी सुगंध इस धरती पर बिखरी हुई है .... 

आज भी वे शिष्यों को सपने मे या सूक्ष्म रूप मे दर्शन देते हैं .... 

उनको साधना के पथ पर आगे बढ़ाते हैं । 

आज उनकी मृत्यु को 24 साल हो गए हैं !

वर्ष 1998 में जुलाई के दिन ही उन्होंने अपनी पार्थिव देह को त्याग दिया था.... 

 

मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अपने गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित करता हुआ .... 

उनके चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम करता हुआ अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं.... 

कि हे गुरुदेव 

आपकी कृपा... 

आप का सानिध्य.... 

आपका आशीर्वाद .... 

धूल को फूल बना देने की क्षमता रखता है !

रंक को राजा बना देने की क्षमता रखता है !

 

आप वास्तव में अद्भुत हैं !!!