30 सितंबर 2019

शत्रु स्तंभिनी : बगलामुखी साधना


शत्रु बाधा तथा कानूनी विवादों में बुरी तरह फ़स जाने पर जब कोइ मार्ग ना दिखाइ दे तब बगलामुखी साधना करना लाभप्रद माना गया है ।

मन्त्रम:-

॥ऊं ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदम स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्लीं फ़ट स्वाहा ॥

29 सितंबर 2019

धूमावती साधना : समस्त प्रकार की तन्त्र बाधाओं की रामबाण काट





  • धूमावती साधना समस्त प्रकार की तन्त्र बाधाओं की रामबाण काट है.
  • यह साधना होली की रात्रि में की जा सकती है.
  • दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए काले रंग के वस्त्र पहनकर जाप करें. जाप रात्रि ९ से ४ के बीच करें



जाप के पहले तथा बाद मे गुरु मन्त्र की १ माला जाप करें

॥ ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥

जाप से पहले हाथ में जल लेकर माता से अपनी समस्या के समाधान की प्रार्थना करें.

अपने सामने एक सूखा नारियल रखें.
उसपर हनुमान जी को चढने वाला सिन्दूर चढायें.
काले रंग का धागा अपनी कमर पर तीन लपेट लगाकर बान्धें. 

अब रुद्राक्ष की माला से १०८ माला निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें


॥  धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥


जाप के बाद  काले धागे को कैंची से काट्कर सूखे सिंदूर चढे नारियल के साथ रख लें.

आग जलाकर १०८ बार काली मिर्च में सिन्दूर तथा सरसों का तेल मिलाकर निम्न मन्त्र से आहुति देकर हवन करें :-


॥  धूं धूं धूमावती ठः ठः स्वाहा॥


इसके बाद नारियल पर धागे को लपेट दें. इसे अब तीन बार सिर से पांव तक तथा पांव से सिर तक छुवा लें तथा प्रार्थना करें कि मेरे समस्त बाधाओं का माता धूमावती निवारण करें.
अब इस नारियल को धागे सहित आग में डाल दें. हाथ जोडकर समस्त अपराधों के लिये क्षमा मांगें.

अंत में एक पानी वाला नारियल फ़ोडकर उसका पानी हवन में डाल दें, इस नारियल को बाहर फ़ेंक दें इसे खायें नही.

अब नहा लें तथा जगह हो तो जाप वाली जगह पर ही सो जायें.

आग ठंडि होने के बाद अगले दिन राख को नदी या तालाब में विसर्जित करें

28 सितंबर 2019

विद्या प्रदायिनी तारा महाविद्या साधना




तंत्र में दस महाविद्याओं को शक्ति के दस प्रधान स्वरूपों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया हैये दस महाविद्यायें हैं
कालीताराषोडशीछिन्नमस्ताबगलामुखीत्रिपुरभैरवीमातंगीधूमावतीभुवनेश्वरी तथा कमला.
इनको दो कुलों में बांटा गया हैपहला काली कुल तथा दूसरा श्री कुल
काली कुल की प्रमुख महाविद्या है तारा
इस साधना से जहां एक ओर आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है वहीं ज्ञान तथा विद्या का विकास भी होता हैइस महाविद्या के साधकों में जहां महर्षि विश्वामित्र जैसे प्राचीन साधक रहे हैं वहीं वामा खेपा जैसे साधक वर्तमान युग में बंगाल प्रांत में हो चुके हैंविश्वप्रसिद्ध तांत्रिक तथा लेखक गोपीनाथ कविराज के आदरणीय गुरूदेव स्वामी विशुद्धानंद जी तारा साधक थेइस साधना के बल पर उन्होने अपनी नाभि से कमल की उत्पत्ति करके दिखाया था.
तिब्बत को साधनाओं का गढ माना जाता हैतिब्बती लामाओं या गुरूओं के पास साधनाओं की अतिविशिष्ठ तथा दुर्लभ विधियां आज भी मौजूद हैंतिब्बती साधनाओं के सर्वश्रेष्ठ होने के पीछे भी उनकी आराध्या देवी मणिपद्मा का ही आशीर्वाद हैमणिपद्मा तारा का ही तिब्बती नाम हैइसी साधना के बल पर वे असामान्य तथा असंभव लगने वाली क्रियाओं को भी करने में सफल हो पाते हैंतारा महाविद्या साधना सवसे कठोर साधनाओं में से एक हैइस साधना में किसी प्रकार की नियमों में शिथिलता स्वीकार्य नही होतीइस विद्या के तीन रूप माने गये हैं :-

1.       नील सरस्वती.
2.     एक जटा.
3.     उग्रतारा.
नील सरस्वती तारा साधना

तारा के नील सरस्वती स्वरूप की साधना विद्या प्राप्ति तथा ज्ञान की पूर्णता के लिये सर्वश्रेष्ठ हैइस साधना की पूर्णता साधक को जहां ज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय बनाती है वहीं साधक को स्वयं में कवित्व शक्ति भी प्रदान कर देती हैअर्थात वह कविता या लेखन की क्षमता भी प्राप्त कर लेता है.

नील सरस्वती साधना की एक गोपनीय विधि मुझे स्वामी आदित्यानंदजी से प्राप्त हुयी थी जो कि अत्यंत ही प्रभावशाली हैइस साधना से निश्चित रूप से मानसिक क्षमता का विकास होता ही हैयदि इसे नियमित रूप से किया जाये तो विद्यार्थियों के लिये अत्यंत लाभप्रद होता है.

नील सरस्वती बीज मंत्रः-

॥ ऐं ॥

यह बीज मंत्र छोटा है इसलिये करने में आसान होता हैजिस प्रकार एक छोटा सा बीज अपने आप में संपूर्ण वृक्ष समेटे हुये होता है ठीक उसी प्रकार यह छोटा सा बीज मंत्र तारा के पूरे स्वरूप को समेटे हुए है.
साधना विधिः-
1.       इस मंत्र का जाप अमावस्या से प्रारंभ करके पूर्णिमा तक या नवरात्रि में करना सर्वश्रेष्ठ होता हैअपनी सामर्थ्य के अनुसार १०८ बार कम से कम तथा अधिकतम तीन घंटे तक नित्य करें.
2.     कांसे की थाली में केसर से उपरोक्त बीजमंत्र को लिखेंअब इस मंत्र के चारों ओर चार चावल के आटे से बने दीपक घी से जलाकर रखेंचारों दीयों की लौ ऐं बीज की तरफ होनी चाहियेकुंकुम या केसर से चारों दीपकों तथा बीज मंत्र को घेरते हुये एक गोला थाली के अंदर बना लेंयह लिखा हुआ साधना के आखिरी दिन तक काम आयेगादीपक रोज नया बनाकर लगाना होगा.
3.     सर्वप्रथम हाथ जोडकर ध्यान करें :-
नील वर्णाम त्रिनयनाम ब्रह्‌म शक्ति समन्विताम
कवित्व बुद्धि प्रदायिनीम नील सरस्वतीं प्रणमाम्यहम.
4.    हाथ मे जल लेकर संकल्प करें कि मां आपको बुद्धि प्रदान करें.
5.     ऐं बीज को देखते हुये जाप करेंपूरा जाप हो जाने के बाद त्रुटियों के लिये क्षमा मांगें.
6.     साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें.
7.      कम से कम बातचीत करेंकिसी पर क्रोध न करें.
8.     किसी स्त्री का अपमान न करें.
9.     वस्त्र सफेद रंग के धारण करें.

बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की यह तांत्रिक साधना हैपूरे विश्वास तथा श्रद्धा से करने पर तारा निश्चित रूप से अभीष्ठ सिद्धि प्रदान करती है.



27 सितंबर 2019

दुर्गा मन्त्र


॥ ॐ क्लीं दुर्गायै नमः ॥

  • यह काम बीज से संगुफ़ित दुर्गा मन्त्र है.

  • यह सर्वकार्यों में लाभदायक है.
  • इसका जाप आप नवरत्रि में चलते फ़िरते भी कर सकते हैं.
  • अनुष्ठान के रूप में २१००० जाप करें.
  • २१०० मंत्रों से हवन नवमी को करें.
  • विशेष लाभ के लिये विजयादशमी को हवन करें.

26 सितंबर 2019

नवार्ण महामंत्र



नवार्ण महामंत्र 

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महादुर्गे नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके नवचंडी महामाये महामोहे महायोगे निद्रे जये मधुकैटभ विद्राविणि महिषासुर मर्दिनी धूम्रलोचन संहंत्री चंड मुंड विनाशिनी रक्त बीजान्तके निशुम्भ ध्वंसिनी शुम्भ दर्पघ्नी देवि अष्टादश बाहुके कपाल खट्वांग शूल खड्ग खेटक धारिणी छिन्न मस्तक धारिणी रुधिर मांस भोजिनी समस्त भूत प्रेतादी योग ध्वंसिनी ब्रह्मेंद्रादी स्तुते देवि माम रक्ष रक्ष मम शत्रून नाशय ह्रीं फट ह्वुं फट ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ||
  1. नवरात्री में १००८ पाठ करके सिद्ध कर लें |
  2. उसके बाद रक्षा सहित विभिन्न प्रयोगों में उपयोग कर सकते हैं |

25 सितंबर 2019

साधनाओं की शुरुआत कैसे करें ?

कई बार ऐसा होता है कि हम किसी कारण वश गुरु बना नही पाते या गुरु प्राप्त नही हो पाते । कई बार हम गुरुघंटालों से भरे इस युग मे वास्तविक गुरु को पहचानने मे असमर्थ हो जाते हैं ।
ऐसे मे हमें क्या करना चाहिये ? 
बिना गुरु के तो साधनायें नही करनी चाहिये ? 
ऐसे हज़ारों प्रश्न हमारे सामने नाचने लगते हैं........ 

इसके लिये कुछ सहज उपाय है  :-


  • आप जिस देवी या देवता को इष्ट मानते हैं उसे ही गुरु मानकर उसका मन्त्र जाप प्रारंभ कर दें । उदाहरण के लिये यदि गणपति आपके ईष्ट हैं तो आप उन्हे गुरु मानकर " ऊं गं गणपतये नमः " मन्त्र का जाप करना प्रारम्भ कर लें ।
  • भगवान् शिव को गुरु मान लें | शिवरात्री से या किसी भी सोमवार से या गुरु पूर्णिमा से " हरि ॐ नमः शिवाय " मन्त्र का जाप करना प्रारम्भ कर लें | कम से कम एक साल तक चलते फिरते हर अवस्था में इस मन्त्र का जाप करते रहें | उसके बाद भगवान् शिव से अनुमति लेकर जिस देवी/देवता का मन्त्र जाप करना चाहते हों कर सकते हैं |


  • महामाया भगवती महाकाली को गुरु मान लें | कृष्ण जन्माष्टमी, नवरात्रि, शिवरात्री, होली ,या किसी भी अमावस्या से या गुरु पूर्णिमा से " क्रीं कालिकायै नमः " मन्त्र का जाप करना प्रारम्भ कर लें | कम से कम एक साल तक चलते फिरते हर अवस्था में इस मन्त्र का जाप करते रहें | उसके बाद भगवती महाकाली से अनुमति लेकर जिस देवी/देवता का मन्त्र जाप करना चाहते हों कर सकते हैं |



  • लेकिन निम्नलिखित साधनायें अपवाद हैं जिनको साक्षात गुरु की अनुमति तथा निर्देशानुसार ही करना चाहिये:-
    1. छिन्नमस्ता साधना ।
    2. शरभेश्वर साधना ।
    3. अघोर साधनाएं ।
    4. श्मशान साधना ।
    5. वाममार्गी साधनाएँ.
    6. भूत/प्रेत/वेताल/जिन्न/पिशाचिनी जैसी साधनाएँ.
      ये साधनायें उग्र होती हैं और साधक को कई बार परेशानियों का सामना करना पड्ता है ।  इन साधनाओं को किया हुआ गुरु इन परिस्थितियों में उस शक्ति को संतुलित कर लेता है अन्यथा कई बार साधक को पागलपन या मानसिक विचलन हो जाता है. और इस प्रकार का विचलन ठीक नहीं हो पाता. इसलिए बिना गुरु के ये साधनाएँ नहीं की जातीं . 

    इसी प्रकार मानसिक रूप से कमजोर पुरुषों /स्त्रियों/बच्चों को भी उग्र साधनाएँ गुरु के पास रहकर ही करनी चाहिए.

    24 सितंबर 2019

    रोग नाशक महाकाली मन्त्रं


    ॥ ॐ ह्रीं क्रीं मे स्वाहा ॥


    • यह सर्वविध रोगों के प्रशमन में सहायक होता है.
    • इसका प्रभाव भी महामृत्युंजय मंत्र के समान प्रचंड है .
    • यथा शक्ति जाप करें.

    गीताप्रेस : अध्यात्मिक ग्रन्थ प्रकाशक

    गीताप्रेस : अध्यात्मिक ग्रन्थ प्रकाशक
    गीता प्रेस भारत के प्रमुख अध्यात्मिक प्रकाशनों में से एक है | यहाँ से कल्याण नमक पत्रिका निकलती है | विस्तृत जानकारी के लिए गीता प्रेस की वेब साईट :-




    गीताप्रेस द्वारा मुख्य रूपसे हिन्दी तथा संस्कृतभाषामें गीताप्रेसका साहित्य प्रकाशित होता हैकिन्तु अहिन्दीभाषी लोगोंकी असुविधाको देखते हुए अब तमिलतेलुगुमराठीकन्नड़बँगला,गुजराती तथा ओड़िआ आदि प्रान्तीय भाषाओंमें भी पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं और इस योजनासे लोगोंको लाभ भी हुआ है। अंग्रेजी भाषामें भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। अब न केवल भारतमें अपितु विदेशोंमें भी यहाँका प्रकाशन बड़े मनोयोग एवं श्रद्धासे पढ़ा जाता है। प्रवासी भारतीय भी यहाँका साहित्य पढ़नेके लिये उत्कण्ठित रहते हैं । 

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    23 सितंबर 2019

    अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले




    शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
                                    महाकाल  प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
    घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
                                    अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

    मेरी अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर विराजमान हैजो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैंजो चौंषठ कलाओं से युक्त हैंजो भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैंऐसी प्रचंड स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं |


    उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
                                     रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
    सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
                                   अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
    जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैंअर्थात हर नियमहर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं जो श्मशान की अधिष्टात्री देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |



    क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
                                   केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
    कटि नर कर मेखला धारिणीम,
                                   अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

    अद्भुत सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत उन्नत स्तन मंडलों से सुशोभित हैंजिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे  सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव अर्चन करता हूं  ||


    खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
                                   युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
    महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
                                   अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
    देव सेना की महानायिकाजो खड्ग चालन में अति निपुण हैंयुद्ध जिनको अत्यंत प्रिय हैअसुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध भूमि की अधिष्टात्री हैं जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का रक्तपान करने को आतुर रहती हैं ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल रमणी महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |

    मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
                                    प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
    वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
                                    अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥


    जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैंजिनके मुख पर सदैव अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |

    || इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||

    22 सितंबर 2019

    साम्ब सदाशिवाय नम:


    भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र :-  

    ॥ ओम साम्ब सदाशिवाय नम: ॥ 

    1. सवा लाख मन्त्र का एक पुरस्चरण होगा.
    2. शिवलिंग सामने रखकर साधना करें.
    3. समस्त प्रकार की मनोकामना पूर्ती के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
    4. किसी अनुचित अनैतिक इच्छा से न करें गंभीर  नुक्सान हो सकता है. 
    5.  

    महाभगवती कामकलाकाली स्तोत्र साधना

    महाभगवती कामकलाकाली स्तोत्र साधना
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    श्री गणेशाय नमः ।
    ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः |
    ॐ महाकाल भैरवाय नमः |
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    महाकाल उवाच ।
    अथ वक्ष्ये महेशानि देव्याः स्तोत्रमनुत्तमम् ।
    यस्य स्मरणमात्रेण विघ्ना यान्ति पराङ्मुखाः ॥ १॥
    विजेतुं प्रतस्थे यदा कालकस्या- सुरान् रावणो मुञ्जमालिप्रवर्हान् ।
    तदा कामकालीं स तुष्टाव वाग्भिर्जिगीषुर्मृधे बाहुवीर्य्येण सर्वान् ॥ २॥
    महावर्त्तभीमासृगब्ध्युत्थवीची- परिक्षालिता श्रान्तकन्थश्मशाने ।
    चितिप्रज्वलद्वह्निकीलाजटाले शिवाकारशावासने सन्निषण्णाम् ॥ ३॥
    महाभैरवीयोगिनीडाकिनीभिः करालाभिरापादलम्बत्कचाभिः ।
    भ्रमन्तीभिरापीय मद्यामिषास्रान्यजस्रं समं सञ्चरन्तीं हसन्तीम् ॥ ४॥
    महाकल्पकालान्तकादम्बिनी- त्विट्परिस्पर्द्धिदेहद्युतिं घोरनादाम् ।
    स्फुरद्द्वादशादित्यकालाग्निरुद्र- ज्वलद्विद्युदोघप्रभादुर्निरीक्ष्याम् ॥ ५॥
    लसन्नीलपाषाणनिर्माणवेदि- प्रभश्रोणिबिम्बां चलत्पीवरोरुम् ।
    समुत्तुङ्गपीनायतोरोजकुम्भां कटिग्रन्थितद्वीपिकृत्त्युत्तरीयाम् ॥ ६॥
    स्रवद्रक्तवल्गन्नृमुण्डावनद्धा- सृगाबद्धनक्षत्रमालैकहाराम् ।
    मृतब्रह्मकुल्योपक्लृप्ताङ्गभूषां महाट्टाट्टहासैर्जगत् त्रासयन्तीम् ॥ ७॥
    निपीताननान्तामितोद्धृत्तरक्तो- च्छलद्धारया स्नापितोरोजयुग्माम् ।
    महादीर्घदंष्ट्रायुगन्यञ्चदञ्च- ल्ललल्लेलिहानोग्रजिह्वाग्रभागाम् ॥ ८॥
    चलत्पादपद्मद्वयालम्बिमुक्त- प्रकम्पालिसुस्निग्धसम्भुग्नकेशाम् ।
    पदन्याससम्भारभीताहिराजा- ननोद्गच्छदात्मस्तुतिव्यस्तकर्णाम् ॥ ९॥
    महाभीषणां घोरविंशार्द्धवक्त्रै- स्तथासप्तविंशान्वितैर्लोचनैश्च ।
    पुरोदक्षवामे द्विनेत्रोज्ज्वलाभ्यां तथान्यानने त्रित्रिनेत्राभिरामाम् ॥ १०॥
    लसद्वीपिहर्य्यक्षफेरुप्लवङ्ग- क्रमेलर्क्षतार्क्षद्विपग्राहवाहैः ।
    मुखैरीदृशाकारितैर्भ्राजमानां महापिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ॥ ११॥
    भुजैः सप्तविंशाङ्कितैर्वामभागे युतां दक्षिणे चापि तावद्भिरेव ।
    क्रमाद्रत्नमालां कपालं च शुष्कं ततश्चर्मपाशं सुदीर्घं दधानाम् ॥ १२॥
    ततः शक्तिखट्वाङ्गमुण्डं भुशुण्डीं धनुश्चक्रघण्टाशिशुप्रेतशैलान् ।
    ततो नारकङ्कालबभ्रूरगोन्माद- वंशीं तथा मुद्गरं वह्निकुण्डम् ॥ १३॥
    अधो डम्मरुं पारिघं भिन्दिपालं तथा मौशलं पट्टिशं प्राशमेवम् ।
    शतघ्नीं शिवापोतकं चाथ दक्षे महारत्नमालां तथा कर्त्तुखड्गौ ॥ १४॥
    चलत्तर्ज्जनीमङ्कुशं दण्डमुग्रं लसद्रत्नकुम्भं त्रिशूलं तथैव ।
    शरान् पाशुपत्यांस्तथा पञ्च कुन्तं पुनः पारिजातं छुरीं तोमरं च ॥ १५॥
    प्रसूनस्रजं डिण्डिमं गृध्रराजं ततः कोरकं मांसखण्डं श्रुवं च ।
    फलं बीजपूराह्वयं चैव सूचीं तथा पर्शुमेवं गदां यष्टिमुग्राम् ॥ १६॥
    ततो वज्रमुष्टिं कुणप्पं सुघोरं तथा लालनं धारयन्तीं भुजैस्तैः ।
    जवापुष्परोचिष्फणीन्द्रोपक्लृप्त- क्वणन्नूपुरद्वन्द्वसक्ताङ्घ्रिपद्माम् ॥ १७॥
    महापीतकुम्भीनसावद्धनद्ध स्फुरत्सर्वहस्तोज्ज्वलत्कङ्कणां च ।
    महापाटलद्योतिदर्वीकरेन्द्रा- वसक्ताङ्गदव्यूहसंशोभमानाम् ॥ १८॥
    महाधूसरत्त्विड्भुजङ्गेन्द्रक्लृप्त- स्फुरच्चारुकाटेयसूत्राभिरामाम् ।
    चलत्पाण्डुराहीन्द्रयज्ञोपवीत- त्विडुद्भासिवक्षःस्थलोद्यत्कपाटाम् ॥ १९॥
    पिषङ्गोरगेन्द्रावनद्धावशोभा- महामोहबीजाङ्गसंशोभिदेहाम् ।
    महाचित्रिताशीविषेन्द्रोपक्लृप्त- स्फुरच्चारुताटङ्कविद्योतिकर्णाम् ॥ २०॥
    वलक्षाहिराजावनद्धोर्ध्वभासि- स्फुरत्पिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ।
    महाशोणभोगीन्द्रनिस्यूतमूण्डो- ल्लसत्किङ्कणीजालसंशोभिमध्याम् ॥ २१॥
    सदा संस्मरामीदृशों कामकालीं जयेयं सुराणां हिरण्योद्भवानाम् ।
    स्मरेयुर्हि येऽन्येऽपि ते वै जयेयु- र्विपक्षान्मृधे नात्र सन्देहलेशः ॥ २२॥
    पठिष्यन्ति ये मत्कृतं स्तोत्रराजं मुदा पूजयित्वा सदा कामकालीम् ।
    न शोको न पापं न वा दुःखदैन्यं न मृत्युर्न रोगो न भीतिर्न चापत् ॥ २३॥
    धनं दीर्घमायुः सुखं बुद्धिरोजो यशः शर्मभोगाः स्त्रियः सूनवश्च ।
    श्रियो मङ्गलं बुद्धिरुत्साह आज्ञा लयः शर्म सर्व विद्या भवेन्मुक्तिरन्ते ॥ २४॥ ॥
    || इति श्री महावामकेश्वरतन्त्रे कालकेयहिरण्यपुरविजये
    रावणकृतं कामकलाकाली भुजङ्गप्रयात स्तोत्रराजं सम्पूर्णम् ॥
     
    **************************************************
    सामान्य निर्देश :-
    ·    स्तोत्रसाधना के मार्ग में प्रवेश करने का सबसे उत्तम मार्ग है |
    ·    स्तोत्र साधना के लिए गुरु अनिवार्य नहीं है |
    ·    आप अपनी क्षमतानुसार नित्य पाठ करें |
    ·    पाठ संख्या 21,51,108 तक हो सकती हैं | गिनती के लिए आप अपनी सुविधानुसार कापी पेन या किसी अन्य वस्तु का प्रयोग कर सकते हैं |
    ·    जैसे जैसे पाठ की संख्या बढती जायेगी स्तोत्र उतना बलवान होगा और आपको कार्य में अनुकूलता प्रदान करेगा |
    ·    साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
    ·    इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
    ·    साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
    -------------------------------------
    विधि :-

    पाठ प्रारम्भ के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले)आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह स्तोत्र पाठ  कर रहा/ रही हूँ मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
    1. उत्तर या पूर्व दिशा की और देखते हुए बैठें |
    2. आसन लाल/पीले रंग का रखें|
    3. शक्ति स्त्रोत का पाठ रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें | संभव ना हो तो दिन में भी कर सकते हैं |
    4. यदि अर्धरात्रि पाठ करते हुए निकले तो श्रेष्ट है |
    5. पाठ के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें |
    6. साधना काल में किसी को आशीर्वाद या श्राप ना दें | इससे आपकी साधनात्मक शक्ति का ह्रास होगा |
    7. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें यथा संभव हर स्त्री को देवी के रूप में देखें |
    8. सात्विक आहार/ आचार/ विचार/व्यवहार रखें |
    9. ब्रह्मचर्य का पालन करें | विवाहित पुरुष अपनी विवाहिता स्त्री के साथ सम्बन्ध रख सकते हैं |
    10.   व्यर्थ के प्रलाप और अपनी साधना का ढिंढोरा पीटने से बचें | इससे आपकी शक्ति कम होती जाती है | साधना को यथा संभव गोपनीय रखें |
    11.   साधना का प्रयोग यदि लोगों की समस्या के समाधान के लिए कर रहे हों तो नित्य साधना अवश्य करें |


    12.   यदि नित्य साधना नहीं करेंगे और समस्या समाधान करेंगे तो धीरे धीरे आपकी शक्ति क्षीण होती जायेगी और काम होने बंद हो जायेंगे |