20 अगस्त 2020

बृहत गणेश पूजन

 


 
(बृहत गणेश पूजन )
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जो लोग बडा पुजन कर सकते है वे इस पुजन को जरुर करे ..

पहले गुरु स्मरण ,गणेश स्मरण करे ..
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः
अब आप 4 बार आचमन करे ( दाए हाथ में पानी लेकर पिए )
गं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
गं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
गं शिव तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
गं सर्व तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
अब आप घंटा नाद करे और उसे पुष्प अक्षत अर्पण करे
घंटा देवताभ्यो नमः
अब आप जिस आसन पर बैठे है उस पर पुष्प अक्षत अर्पण करे
आसन देवताभ्यो नमः
अब आप दीपपूजन करे उन्हें प्रणाम करे और पुष्प अक्षत अर्पण करे
दीप देवताभ्यो नमः
अब आप कलश का पूजन करे ..उसमेगंध ,अक्षत ,पुष्प ,तुलसी,इत्र ,कपूर डाले ..उसे तिलक करे .
कलश देवताभ्यो नमः
अब आप अपने आप को तिलक करे
उसके बाद हाथ मे जल अक्षत और पुष्प लेकर संकल्प करे कि आज के दिन मै अपनी समस्या निवारण हेतु ( जो समस्य हो उसे स्मरण करे ) या अपनी मनोकामना पूर्ती हेतु ( अपनी मनोकामना का स्मरण करे ) श्री गणपती का पूजन कर रहा हूं
फिर संक्षिप्त गुरु पुजन करे
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
उसके बाद गणपती का ध्यान करे
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा
गजाननं भूतगणाधिसेवितं
कपित्थ जंबूफलसारभक्षितं
उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजं

श्री महागणपति आवाहयामि
मम पूजन स्थाने रिद्धि सिद्धि सहित शुभ लाभ सहित स्थापयामि नमः
त्वां चरणे गन्धाक्षत पुष्पं समर्पयामि
अगर आपको आवाहनादि मुद्राये आती है तो दिखाये
फिर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करे
यहा पर षोडशोपचार पूजन दे रहा हु
ॐ श्री गणेशाय नम: पाद्यं समर्पयामि ( दो आचमनी जल अर्पण करे )
ॐ श्री गणेशाय नम: अर्घ्य समर्पयामि ( एक आचमनी जल मे दूर्वा पुष्प अक्षत मिलाकर अर्पण करे )
ॐ श्री गणेशाय नम: आचमनीयं समर्पयामि ( एक आचमनी जल अर्पण करे)
ॐ श्री गणेशाय नम: स्नानं समर्पयामि
( स्नान कराते समय आप जल से या दुध से या पंचामृत से गणपति अथर्वशीर्ष या अन्य स्तोत्रोसे अभिषेक कर सकते है )
ॐ श्री गणेशाय नम: वस्त्र उपवस्त्र समर्पयामि ( अक्षत पुष्प या मौली धागा अर्पण करे )
ॐ श्री गणेशाय नम: यज्ञोपवीतम समर्पयामि ( यज्ञोपवीत या अक्षत अर्पण करे )
फिर एक आचमनी जल अर्पण करे
ॐ श्री गणेशाय नम: हरिद्रा कुंकुम चंदन अष्टगंधं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: अक्षतां समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: पुष्पं पुष्पमालां समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: दूर्वाकुरान समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: धूपं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: दीपं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: नैवेद्यं समर्पयामि
(फिर एक आचमनी जल अर्पण करे )
ॐ श्री गणेशाय नम: ऋतुफलं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: तांबुलं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: द्रव्यदक्षिणां
समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: कर्पूरार्तिकं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: नमस्कारं समर्पयामि
गणेश अंगपूजन
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अब गणेश जी के एकेक अंग का स्मरण करते हुये पुष्प अक्षत अर्पण करे )
गं पार्वतीनंदनाय नम: पादौ पूजयामि
गं गणेशाय नम: गुल्फौ पूजयामि
गं जगद्धात्रे नम: जंघे पूजयामि
गं जगद्वल्लभाय नम: जानुनि पूजयामि
गं उमापुत्राय नम: उरु पूजयामि
गं विकटाय नम: कटिं पूजयामि
गं गुहाग्रजाय नम: गुह्यं पूजयामि
गं महत्तमाय नम: मेढ्रं पूजयामि
गं नाथाय नम: नाभिं पूजयामि
गं उत्तमाय नम: उदरं पूजयामि
गं विनायकाय नम: वक्षस्थलं पूजयामि
गं पाशच्छिदे नम: पार्श्वौ पूजयामि
गं हेरंबाय नम: हृदयम पूजयामि
गं कपिलाय नम: कण्ठं पूजयामि
गं स्कंदाग्रजाय नम: स्कंधौ पूजयामि
गं हरसुताय नम: हस्तान पूजयामि
गं ब्रह्मचारिणे नम: बाहून पूजयामि
गं सुमुखाय नम: मुखं पूजयामि
गं एकदंताय नम: दंतौ पूजयामि
गं विघ्नहंत्रे नम: नेत्रे पूजयामि
गं शूर्पकर्णाय नम: कर्णौ पूजयामि
गं भालचंद्राय नम: भालं पूजयामि
गं नागाभरणाय नम: नासिकां पूजयामि
गं चिरंतनाय नम: चिबुकं पूजयामि
गं स्थूलौष्ठाय नम: औष्ठौ पूजयामि
गं गलन्मदाय नम: कण्ठं पूजयामि
गं कपिलाय नम: कचान पूजयामि
गं शिवप्रियाय नम: शिर: पूजयामि
गं सर्वमंगलासुताय नम: सर्वांगे पूजयामि
एकविंशति पत्र पूजा
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अगर आपके पास गणेश जी को अर्पण करने की 21 पत्री उपलब्ध है तो उसे अर्पण करे .. नही तो पुष्प अक्षत अर्पण करे .
गं उमापुत्राय नम: माचीपत्रं समर्पयामि
गं हेरंबाय नम: बृहतीपत्रं समर्पयामि
गं लंबोदराय नम: बिल्वपत्रं समर्पयामि
गं द्विरदाननाय नम: दूर्वापत्रं समर्पयामि
गं धूम्रकेतवे नम: दुर्धूरपत्रं समर्पयामि
गं बृहते नम: बदरीपत्रं समर्पयामि
गं अपवर्गदाय नम: अपामार्गपत्रं समर्पयामि
गं द्वैमातुराय नम: तुलसीपत्रं समर्पयामि
गं चिरंतनाय नम: चूतपत्रं समर्पयामि
गं कपिलाय नम: करवीरपत्रं समर्पयामि
गं विष्णुस्तुताय नम: विष्णुक्रांतपत्रं समर्पयामि
गं अमलाय नम: आमलकीपत्रं समर्पयामि
गं महते नम: मरुवकपत्रं समर्पयामि
गं सिंधुराय नम: सिंधूरपत्रं समर्पयामि
गं गजाननाय नम: जातीपत्रं समर्पयामि
गं गण्डगलन्मदाय नम: गण्डलीपत्रं समर्पयामि
गं शंकरीप्रियाय नम: शमीपत्रं समर्पयामि
गं भृंगराजत्कटाय नम: भृंगराजपत्रं समर्पयामि
गं अर्जुनदंताय नम: अर्जुनपत्रं समर्पयामि
गं अर्कप्रभाय नम: अर्कपत्रं समर्पयामि
गं एकदंताय नम: दाडिमीपत्रं समर्पयामि
एकविंशति दूर्वा पूजन
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अब आप 21 दूर्वा अर्पण करे
१) गं गणाधिपाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
२) गं पाशांकुशधराय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
3) गं आखुवाहनाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
४) गं विनायकाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
५) गं ईशपुत्राय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
६) गं सर्वसिद्धिप्रदाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
७) गं एकदंताय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
८) गं इभवक्त्राय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
९) गं मूषकवाहनाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१०) गं कुमारगुरवे नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
११) गं कपिलवर्णाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१२) गं ब्रह्मचारिणे नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१३) गं मोदकहस्ताय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१४) गं सुरश्रेष्ठाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१५) गं गजनासिकाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१६) गं कपित्थफलप्रियाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१७) गं गजमुखाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१८) गं सुप्रसन्नाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१९) गं सुराग्रजाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
२०) गं उमापुत्राय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
२१) गं स्कंदप्रियाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
अष्टविनायक पूजन
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अब आप अष्टविनायक स्वरुप के पूजन हेतु दूर्वा या पुष्प अक्षत अर्पण करे ..
1) मयुरेश्वर
गं ऐं ह्रीं श्रीं मयूर आरुढाय सिंधुदैत्यविनाशाय श्री मयूरेश्वराय नम:
2) चिंतामणी
गं ऐं ह्रीं श्रीं कपिलऋषी सुपुज्याय चिंतामणि प्रदानाय श्री चिंतामणि गणेशाय नम:
3) महागणपति
गं ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुरासुरवध कारणाय शिवसुपूजिताय श्रीमहागणपतये नम:
4) सिद्धिविनायक
गं ऐं ह्रीं श्रीं विष्णुपूजिताय मधुकैटभवध कारणाय दक्षिणशुंडधारणाय समस्त सिद्धिप्रदानाय श्रीसिद्धिविनायकाय नम:
5) विघ्नेश्वर
गं ऐं ह्रीं श्रीं इंद्रसुपूजिताय विघ्नासुरप्राण हरणाय श्रीविघ्नेश्वराय नम:
6) गिरिजात्मक
गं ऐं ह्रीं श्रीं गिरिजासुपुजिताय शक्तिपुत्राय श्रीगिरिजात्मकाय नम:
7) बालेश्वर
गं ऐं ह्रीं श्रीं बाल्यस्वरुपाय भक्तप्रियाय श्रीबालेश्वराय नम:
8) वरदविनायक
गं ऐं ह्रीं श्रीं वरदहस्ताय सर्वबाधा प्रशमनाय श्रीवरदविनायकाय नम:
गणेश अष्ट अवतार पूजन
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अब आप गणेश जी के अवतारो के पूजन हेतु दूर्वा या पुष्प अक्षत अर्पण करे
१) गं ॐ नमो भगवते मत्सरासुरहंताय सिंहवाहनाय वक्रतुंडाय नम:
२) गं ॐ नमो भगवते मदासुरहंताय मूषकवाहनाय एकदंताय नम:
३) गं ॐ नमो भगवते मोहासुरहंताय ज्ञानदाताय मूषकवाहनाय महोदराय नम:
४) गं ॐ नमो भगवते लोभासुरहंताय सांख्यसिद्धिप्रदानाय मूषकवाहनाय गजाननाय नम:
५) गं ॐ नमो भगवते क्रोधासुरहंताय मूषकवाहनाय लंबोदराय नम:
६) गं ॐ नमो भगवते कामासुरहंताय मयूरवाहनाय विकटनाय नम:
७) गं ॐ नमो भगवते मयासुर प्रहर्ताय शेष वाहनाय विघ्नराजाय नम:
८) गं ॐ नमो भगवते अहंतासुर हंताय मूषकवाहनाय धूम्रवर्णाय नम:
(यहाँ पर भगवान गणेश जी के 16 नामावली दी है उससे पूजन करे ..दूर्वा या पुष्प अक्षत या जल अर्पण करे )
1. ॐ गं सुमुखाय नम: ।
2. ॐ गं एकदंताय नमः।
3. ॐ गं कपिलाय नमः।
4. ॐ गं गजकर्णकाय नमः।
5. ॐ गं लंबोदराय नमः।
6. ॐ गं विकटाय नम: !
7. ॐ गं विघ्नराजाय नमः।
8. ॐ गं गणाधिपाय नम: !
9. ॐ गं धूम्रकेतवे नम : ।
10 . ॐ गं गणाध्यक्षाय नमः।
11. ॐ गं भालचंद्राय नमः।
12. ॐ गं गजाननाय नम: !
13. ॐ गं वक्रतुंडाय नमः।
14. ॐ गं शूर्पकर्णाय नमः।
15. ॐ गं हेरंबाय नमः।
16. ॐ गं स्कंदपूर्वजाय नमः।
इसके बाद अगर आपके पास समय हो तो दुसरे अलग पोस्ट मे जो आवरण पूजन एवं गणेशजी के द्वात्रिशद (32 ) स्वरुप और गणेश 108 नामावली पूजन दिया है उसे करे
अब नीचे दिये हुये गणपती माला मंत्र का पाठ कर पुष्प अर्पण करे
श्री गणपती माला मंत्र
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ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं ग्लौं ॐ ह्रीं क्रौं गं ॐ नमो भगवते महागणपतये स्मरणमात्रसंतुष्टाय सर्वविद्याप्रकाशकाय सर्वकामप्रदाय भवबंधविमोचनाय ह्रीं सर्वभूतबंधनाय क्रों साध्याकर्षणाय क्लीं जगतत्रयवशीकरणाय सौ: सर्वमनक्षोभणाय श्रीं महासंपत्प्रदाय ग्लौं भूमंडलाधिपत्यप्रदाय महाज्ञानप्रदाय चिदानंदात्मने गौरीनंदनाय महायोगिने शिवप्रियाय सर्वानंदवर्धनाय सर्वविद्याप्रकाशनप्रदाय द्रां चिरंजिविने ब्लूं सम्मोहनाय ॐ मोक्षप्रदाय ! फट वशी कुरु कुरु! वौषडाकर्षणाय हुं विद्वेषणाय विद्वेषय विद्वेषय ! फट उच्चाटय उच्चाटय ! ठ: ठ: स्तंभय स्तंभय ! खें खें मारय मारय ! शोषय शोषय ! परमंत्रयंत्रतंत्राणि छेदय छेदय ! दुष्टग्रहान निवारय निवारय ! दु:खं हर हर ! व्याधिं नाशय नाशय ! नम: संपन्नय संपन्नय स्वाहा ! सर्वपल्लवस्वरुपाय महाविद्याय गं गणपतये स्वाहा !
यन्मंत्रे क्षितलांछिताभमनघं मृत्युश्च वज्राशिषो भूतप्रेतपिशाचका: प्रतिहता निर्घातपातादिव ! उत्पन्नं च समस्तदु:खदुरितं उच्चाटनोत्पादकं वंदेsभीष्टगणाधिपं भयहरं विघ्नौघनाशं परम ! ॐ गं गणपतये नम:
ॐ नमो महागणपतये , महावीराय , दशभुजाय , मदनकाल विनाशन , मृत्युं
हन हन , यम यम , मद मद , कालं संहर संहर , सर्व ग्रहान चूर्णय चूर्णय , नागान मूढय मूढय , रुद्ररूप, त्रिभुवनेश्वर , सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा !
ॐ नमो गणपतये , श्वेतार्कगणपतये , श्वेतार्कमूलनिवासाय , वासुदेवप्रियाय , दक्षप्रजापतिरक्षकाय , सूर्यवरदाय , कुमारगुरवे , ब्रह्मादिसुरावंदिताय , सर्पभूषणाय , शशांकशेखराय , सर्पमालालंकृतदेहाय , धर्मध्वजाय , धर्मवाहनाय , त्राहि त्राहि , देहि देहि , अवतर अवतर , गं गणपतये , वक्रतुंडगणपतये , वरवरद , सर्वपुरुषवशंकर , सर्वदुष्टमृगवशंकर , सर्वस्ववशंकर , वशी कुरु वशी कुरु , सर्वदोषान बंधय बंधय , सर्वव्याधीन निकृंतय निकृंतय , सर्वविषाणि संहर संहर , सर्वदारिद्र्यं मोचय मोचय , सर्वविघ्नान छिंदि छिंदि , सर्ववज्राणि स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून उच्चाटय उच्चाटय , सर्वसिद्धिं कुरु कुरु , सर्वकार्याणि साधय साधय , गां गीं गूं गैं गौं गं गणपतये हुं फट स्वाहा !
ॐ नमो गणपते महावीर दशभुज मदनकालविनाशन मृत्युं हन हन , कालं संहर संहर , धम धम , मथ मथ , त्रैलोक्यं मोहय मोहय , ब्रह्मविष्णुरुद्रान मोहय मोहय , अचिंत्य बलपराक्रम , सर्वव्याधीन विनाशाय , सर्वग्रहान चूर्णय चूर्णय , नागान मोटय मोटय , त्रिभुवनेश्वर सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा !
अब गणेशजी को अर्घ्य प्रदान करे
एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात
अब एक आचमनी जल लेकर पूजा स्थान पर छोड़े
अनेन गणपती पूजनेन श्री भगवान महागणपती प्रीयन्तां न मम .
हाथ जोड़ कर भगवान गणेश जी से प्रार्थना करे
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय
लंबोदराय सकलाय जगद्धिताय
नागाननाय श्रूतियज्ञविभूषिताय
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते !!
भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय
सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय
विद्याधराय विकटाय च वामनाय
भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते !!
नमस्ते ब्रह्मरुपाय विष्णुरुपाय ते नम:
नमस्ते रुद्ररुपाय करिरुपाय ते नम:
विश्वरुपस्वरुपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे
भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक !!
लंबोदर नमस्त्युभ्यं सततं मोदकप्रियं
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !!
भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति
विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवंति
तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव !!
गणेशपूजने कर्म यन्नूनमधिकं कृतं
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोsस्तु सदा मम !!
अनया पूजया सिद्धिबुद्धिसहितो महागणपती: प्रीयंतां न मम

उच्चिष्ठ गणपति साधना

 

  •  


॥ हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा ॥
 
सामान्य निर्देश :-
  • साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
  • इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
  • साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
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विधि :-

  1. रुद्राक्ष की माला सभी कार्यों के लिए स्वीकार्य  है |
  2. जाप के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले), आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह मन्त्र जाप कर रहा/ रही हूँ | मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " | इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
  3. गुरु से अनुमति ले लें|
  4. पान का बीड़ा चबाएं फिर मंत्र जाप करें |
  5. दिशा दक्षिण की और देखते हुए बैठें |
  6. आसन लाल/पीले रंग का रखें|
  7. जाप रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें|
  8. यदि अर्धरात्रि जाप करते हुए निकले तो श्रेष्ट है | 
  9. कम से कम 21 दिन जाप करने से अनुकूलता मिलती है | 
  10. जाप के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें|
  11. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें | यथा सम्भव सम्मान करें |
  12. जिस बालिका/युवती/स्त्री के बाल कमर से नीचे तक या उससे ज्यादा लम्बे हों उसे देखने पर मन ही मन मातृवत मानते हुए प्रणाम करें |
  13. सात्विक आहार/ आचार/ विचार रखें |
  14. ब्रह्मचर्य का पालन करें |

विघ्नेश्वर गणपति

 





विघ्नेश्वरं सुरगणपूजितंमोदकप्रियं पार्वती सुतम ।
हस्तिमुखं लम्बोदरं नमामि शिवपुत्रम गणेश्वरम ॥

विघ्नों के अधिपतिदेवताओं के भी आराध्यमोदक अर्थात लड्डूओं के प्रेमीजगदम्बा पार्वती के पुत्रहाथी के समान मुख व लम्बे पेट वालेभगवान शिव के प्रिय पुत्र गणेश को मैं प्रणाम करता हूं ।

जनसामान्य में व्यापक लोकप्रियता रखने वाले इस अद्भुत देवता के गूणों की चर्चा करना लगभग असंभव है। वे गणों के अधिपति हैं तो देवताओं के सम्पूर्ण मण्डल में प्रथम पूज्य भी हैं। बुद्धि कौशल तथा चातुर्य को प्रदान करने वाले है तो कार्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने वाले भी हैं। समस्त देव सेना और शिवगणों को पराजित करने वाले हेैं तो दूसरी ओर महाभारत जैसे ग्रंथ के लेखक भी हैं। ऐसे सर्वगुण संपन्न देवता की आराधना न सिर्फ भौतिक जीवन बल्कि आध्यात्मिक जीवन की भी समस्त विध मनोकामनाओं की पूर्ति करने में सक्षम हैं।

भगवान गणेश की आराधना या साधना उनके तीन स्वरूपों में की जाती है। उनके तीनों स्वरूपराजसी तामसी तथा सात्विक स्वरूप साधक की इच्ठा तथा क्षमता के अनुसार कार्यसिद्धि प्रदान करते ही हैं।

भारतीय संस्कृति में जो परंपरा है उसके अनुसार तो प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में गणपति का स्मरण किया ही जाता है। यदि नित्य न किया जाये तो भी गणेश चतुर्थी जैसे अवसरों पर तो गृहस्थों को उनका पूजन व ध्यान करना चाहिए।

व्यापारसेल्समार्केटिंगएडवर्टाइजिंग जैसे क्षेत्रों में जहां वाकपटुता तथा चातुर्य की नितांत आवश्यकता होती हैवहां गणपति साधना तथा ध्यान विशेष लाभप्रद होता है। भगवती लक्ष्मी को चंचला माना गया है। लक्ष्मी के साथ गणपति का पूजन लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान करता है। इसलिए आप व्यापारी बंधुओं के पास ऐसा संयुक्त चित्र लगा हुआ पायेंगे।

आगे की पंक्तियों में भगवान गणपति का एक स्तोत्र प्रस्तुत है। इस स्तोत्र का नित्य पाठ करना लाभप्रद होता है।

गणपति स्तोत्र

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियायलम्बोदराय सकलाय जगद्विताय ।
नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषितायगौरीसुताय गणनाथ नमोस्तुते ॥

भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वरायसर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय ।
विद्याधराय विकटाय च वामनायभक्तप्रसन्न वरदाय नमोनमस्ते ॥

नमस्ते ब्रह्‌मरूपाय विष्णुरूपायते नमःनमस्ते रूद्ररूपाय करि रूपायते नमः ।
विश्वरूपस्य रूपाय नमस्ते ब्रह्‌मचारिणेभक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायकः ॥

लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रियनिर्विनं में कुरू सर्व कार्येषु सर्वदा ।
त्वां विन शत्रु दलनेति च सुंदरेति भक्तप्रियेति शुभदेति फलप्रदेति ॥

विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवंति तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेवि ।
अनया पूजया सांगाय सपरिवाराय श्री गणपतिम समर्पयामि नमः ॥

इस स्तोत्र का पाठ कर गणपति को नमन करें ।

कलि काल में साधनाओं के विषय में कहा गया है कि :-

कलौ चण्डी विनायकौ

अर्थात कलियुग में चण्डी तथा गणपति साधनायें ज्यादा फलप्रद होंगी। गणपति साधना को प्रारंभिक तथा अत्यंत लाभप्रद साधनाओं में गिना जाता है। योगिक विचार में मूलाधार चक्र को कुण्डली का प्रारंभ माना जाता है तथा गणपति उसके स्वामी माने जाते हैं। साथ ही शिव शक्ति के पुत्र होने के कारण दोनों की संयुक्त कृपा प्रदान करते हैं।

यदि गणपति साधना करना चाहें तो आप आगे लिखी विधि के अनुसार करें।

गणपति साधना

  • गणपति साधना का यह विवरण सामान्य गृहस्थों के लिए है। इसे किसी भी जातिलिंग,आयु का व्यक्ति कर सकता है।

  • मंत्र का जाप प्रतिदिन निश्चित संख्या या समय तक करना चाहिये ।

  • माला की व्यवस्था हो सके तो माला से तथा अभाव में किसी भी गणनायोग्य वस्तु से गणना  कर सकते हैं ।

  • ऐसा न कर सकें तो एक समयावधि निश्चित समयावधि जैसे पांचदसपंद्रह मिनटआधा या एक घंटा अपनी क्षमता के अनुसार निश्चित कर लें ।

  • इस प्रकार ११११६२१३३या ५१ दिनों तक करें। यदि किसी दिन जाप न कर पायें तो साधना खण्डित मानी जायेगी । अगले दिन से पुनः प्रारंभ करना पडेगा। इसलिये दिनों की संख्या का चुनाव अपनी क्षमता के अनुसार ही करें। महिलायें रजस्वला होने पर जाप छोडकर उस अवधि के बाद पुनः जाप कर सकती हैं। इस अवस्था में साधना खण्डित नही मानी जायेगी।

  • यदि संभव हो तो प्रतिदिन निश्चित समय पर ही बैठने का प्रयास करें ।

  • जप करते समय दीपक जलता रहना चाहिये ।

  • साफ वस्त्र पहनकर स्नानादि करके जाप करें । पूर्व की ओर देखते हुए बैठें। सामने गणपति  का चित्रमूर्ति या यंत्र रखें।

गणपति मंत्र

॥ ऊं गं गणेश्वराय गं नमः ॥

वे साधक जो माता गायत्री के भक्त हैं वे गणेश गायत्री मंत्र का जाप उपरोक्त मंत्र के स्थान पर कर सकते हैं जो उनके लिए ज्यादा लाभप्रद होगा।


गणपति गायत्री मंत्र

॥ ऊं तत्पुरूषाय विद्यहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात ॥

साधना लक्ष्य प्राप्ति की सहायक क्रिया है। पुरूषार्थ के साथ-साथ साधना भी हो तो इष्ट देवता की शक्तियां मार्ग की बाधाओं को दूर करने में सहायक होती हैं। जिससे सफलता की संभावनायें बढ जाती हैं।




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------------------- विशेष ---------------------  साधना में गुरु की आवश्यकता
Y   मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y   साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y   गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y   रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y   रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y   गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y   स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y   गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
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मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y   मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें, ढिंढोरा ना पीटें, बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y   गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y   आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y   बकवास और प्रलाप न करें.
Y   किसी पर गुस्सा न करें.
Y   यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y   ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y   किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y   जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y   बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y   ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y   इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y   भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें , इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशा, आसन, वस्त्र का महत्व
Y   साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y   आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y   अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y   इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
Y   जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है , जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y   यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y   नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें , लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |

19 अगस्त 2020

वक्रतुंडस्तोत्रम

 



ॐ ॐ ॐकाररुपं त्र्यहमिति च परं यत्स्वरुपं तुरियं
त्रैगुण्यातीतनीलं कलयति मनसतेजसिंदूरमूर्तिम !
योगींन्द्रैब्रह्मरंध्रे सकलगुणमयं श्रीहरेंन्द्रेण संगं
गं गं गं गं गणेशं गजमुखमभितो व्यापकं चिंतयंति !!
वं वं वं विघ्नराजं भजति निजभुजे दक्षिणेन्यस्तशुंडं
क्रं क्रं क्रं क्रोधमुद्रादलितरिपुबलं कल्पवृक्षस्य मूले !
दं दं दं दन्तमेकं दधत मुनिमुखं कामधेन्वा निषेव्यं !
धं धं धं धारयंतं धनदमतिधियं सिद्धि बुद्धिद्वितियं !!
तुं तुं तुं तुंगरुपं गगनपथि गतं व्याप्नुवंतं दिगंतान
क्लीं क्लीं क्लींकारनाथं गलित मदमिल्ल लोलमत्तालिमालं !
ह्रीं ह्रीं ह्रींकारपिंगं सकलमुनिवर ध्येयमुंडं च शुंडम !
श्रीं श्रीं श्रीं श्रयंतं निखिलनिधिकुलं नौमि हेरंबबिंबं !
लौं लौं लौं लौकारमाद्यं प्रणवमिव पदं मंत्रमुक्तावलीनां शुद्धं विघ्नेशबीजं शशिकरसदृशं योगिनांध्यानगम्यं !
डं डं डं डामरुपं दलितभवभयं सूर्यकोटिप्रकाशं !
यं यं यं यज्ञनाथं जपति मुनिवरो बाह्यभ्यंतरं च !!
हुं हुं हुं हेमवर्णं श्रूतिगणितगुणं शूर्पकर्णं कृपालुं
ध्येयं सूर्यस्यबिंबं उरसि च विलसत सर्पयज्ञोपवितं !
स्वाहा हुं फट नमों अंतैष्ठ
ठ ठ ठ सहितै: पल्लवै: सेव्यमानं मंत्राणां सप्तकोटि प्रगुणित महिमाधारमीशं प्रपद्ये !!

  1. नित्य पूजन मे उपयोग कर सकते हैं 
  2. मनोकामना पूर्ति के लिए संकल्प लेकर 1008 पाठ करें  । 


आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

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पन्चोपचार गणपतिपूजन

 


एक नन्हा सा गणपति पूजन प्रस्तुत है ।
इसे पन्चोपचार गणपतिपूजन कहते हैं





ऊं गं गणपतये नमः गंधम समर्पयामि --- इत्र आदि चढायें ।

ऊं गं गणपतये नमः पुष्पम समर्पयामि ---  फ़ूल 

ऊं गं गणपतये नमः धूपम समर्पयामि -- अगरबत्ती

ऊं गं गणपतये नमः दीपम समर्पयामि -- दीपक जलायें

ऊं गं गणपतये नमः नैवेद्यम समर्पयामि -- प्रसाद चढायें

इसके बाद आरती कर लें

12 अगस्त 2020

साधना मे रक्षा हेतु हनुमान शाबरमंत्र






साधना मे रक्षा हेतु हनुमान शाबरमंत्र
·       इस शाबर मंत्र को किसी शुभ दिन जैसे ग्रहणहोलीरवि पुष्य योग, गुरु पुष्य योग मे1008 बार जप कर सिद्ध कर ले ।
·       इस मंत्र का जाप आप एकांत/हनुमान मंदिर/अपने घर मे करें |
·       हनुमान जी का विधी विधान से पुजन करके 11 लड्डुओ का भोग लगा कर जप शुरू कर दे । जप समाप्त होने पर हनुमान जी को प्रणाम करे | त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थना कर लें |
·       जब भी आप कोई साधना करे |तो मात्र बार इस मंत्र का जाप करके रक्षा घेरा बनाने से स्वयं हनुमान जी रक्षा करते है ।
·       इस मंत्र का बार जप कर के ताली बजा देने से भी पूर्ण तरह से रक्षाहोती है ।

इस मंत्र को सिद्ध करने के बाद रोज इस मंत्र की 1 माला जाप करने पर इसका तेज बढ़ता जाता है  और टोना जादु साधक पर असर नही करते ।
मंत्र :-
॥ ओम नमो वज्र का कोठा, जिसमे पिंण्ड हमारा पैठा,
ईश्वर कुंजी ब्रम्हा का ताला, मेरे आठो अंग का यति हनुमंत वज्र वीर रखवाला ।


11 अगस्त 2020

महाविद्या धूमावती





  • धूमावती साधना समस्त प्रकार की तन्त्र बाधाओं की रामबाण काट है.
  • यह साधना नवरात्रि में की जा सकती है.
  • दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए काले रंग के वस्त्र पहनकर जाप करें. जाप रात्रि ९ से ४ के बीच करें



जाप के पहले तथा बाद मे गुरु मन्त्र की १ माला जाप करें

॥ ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥

जाप से पहले हाथ में जल लेकर माता से अपनी समस्या के समाधान की प्रार्थना करें.


  • अपने सामने एक सूखा नारियल रखें.
  • उसपर हनुमान जी को चढने वाला सिन्दूर चढायें.
अब रुद्राक्ष की माला से 11 माला निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें


॥  धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥


अंतिम दिन मंत्र जाप से पहले काला धागा तीन बार अपनी कमर मे लपेट कर बांध दें । उस दिन मंत्र जाप पूरा होने के बाद  काले धागे को कैंची से काट्कर सूखे सिंदूर चढे नारियल के साथ रख लें.

आग जलाकर १०८ बार काली मिर्च में सिन्दूर तथा सरसों का तेल मिलाकर निम्न मन्त्र से आहुति देकर हवन करें :-


॥  धूं धूं धूमावती ठः ठः स्वाहा॥


इसके बाद नारियल को तीन बार सिर से पांव तक उतारा कर लें इसके लिए उसे सिर से पाँव तक छुवा लें तथा प्रार्थना करें कि मेरे समस्त बाधाओं का माता धूमावती निवारण करें.

अब इस नारियल को धागे सहित आग में डाल दें. 

हाथ जोडकर समस्त अपराधों के लिये क्षमा मांगें.

अंत में एक पानी वाला नारियल फ़ोडकर उसका पानी हवन में डाल दें, इस नारियल को उस समय या बाद मे किसी सुनसान जगह या नदी तालाब मे डाल दें । इसे खायें नही.

अब नहा लें तथा जगह हो तो जाप वाली जगह पर ही सो जायें.

आग ठंडी होने के बाद अगले दिन राख को नदी या तालाब में विसर्जित करें ... 

किसी विधवा स्त्री को धन या भोजन जो आपकी इच्छा हो वह दान करें .... 

10 अगस्त 2020

बीज मंत्रात्मक हनुमान साधना



॥ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः ॐ ॥

  • यह तान्त्रिक बीज मन्त्र युक्त मन्त्र है. 
  • जाप प्रारंभ करने से पहले अपनी मनोकामना प्रभु के सामने व्यक्त करें.
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • एक समय भोजन करें.
  • बीच में चाहें तो फ़लाहार कर सकते हैं.
  • दक्षिण दिशा में मुख करके वज्रासन या वीरासन में बैठें.
  • रात्रि ९ से ३ के बीच जाप करें.
  • लाल वस्त्र पहनकर लाल आसन पर बैठ कर  जाप करें.
  • गुड तथा चने का भोग लगायें.
  • यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.

  • ११००० जाप करें
  • ११०० मन्त्रों से हवन करें.
  • साधना पूर्ण होने पर एक छोटे बालक को उसकी पसंद का वस्त्र लेकर दें.

9 अगस्त 2020

विश्वशान्ति हेतु : शान्ति स्तोत्र

हम एक विनाशकारी समय से गुजर रहे हैं. ऐसे में यथाशक्ति शांति मन्त्रों का जाप विश्वशांति के लिये करना लाभदायक होगा ।


विश्वशान्ति हेतु : शान्ति स्तोत्र


नश्यन्तु प्रेत कूष्माण्डा नश्यन्तु दूषका नरा: ।
साधकानां शिवाः सन्तु आम्नाय परिपालिनाम ॥
जयन्ति मातरः सर्वा जयन्ति योगिनी गणाः ।
जयन्ति सिद्ध डाकिन्यो जयन्ति गुरु पन्क्तयः ॥

जयन्ति साधकाः सर्वे विशुद्धाः साधकाश्च ये ।
समयाचार संपन्ना जयन्ति पूजका नराः ॥
नन्दन्तु चाणिमासिद्धा नन्दन्तु कुलपालकाः ।
इन्द्राद्या देवता सर्वे तृप्यन्तु वास्तु देवतः ॥

चन्द्रसूर्यादयो देवास्तृप्यन्तु मम भक्तितः ।
नक्षत्राणि ग्रहाः योगाः करणा राशयश्च ये ॥
सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नश्यन्तु पक्षिणः ।
पशवस्तुरगाश्चैव पर्वताः कन्दरा गुहाः ॥

ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्तिम कुर्वन्तु सर्वदा ।
स्तुता मे विदिताः सन्तु सिद्धास्तिष्ठन्तु पूजकाः ॥
ये ये पापधियस्सुदूषणरतामन्निन्दकाः पूजने ।
वेदाचार विमर्द नेष्ट हृदया भ्रष्टाश्च ये साधकाः ॥

दृष्ट्वा चक्रम्पूर्वमन्दहृदया ये कौलिका दूषकास्ते ।
ते यान्तु विनाशमत्र समये श्री भैरवास्याज्ञया ॥
द्वेष्टारः साधकानां च सदैवाम्नाय दूषकाः ।
डाकिनीनां मुखे यान्तु तृप्तास्तत्पिशितै स्तुताः ॥

ये वा शक्तिपरायणाः शिवपरा ये वैष्णवाः साधवः ।
सर्वस्मादखिले सुराधिपमजं सेव्यं सुरै संततम ॥
शक्तिं विष्णुधिया शिवं च सुधियाश्रीकृष्ण बुद्धया च ये ।
सेवन्ते त्रिपुरं त्वभेदमतयो गच्छन्तु मोक्षन्तु ते ॥

शत्रवो नाशमायान्तु मम निन्दाकराश्च ये ।
द्वेष्टारः साधकानां च ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।
तत्परं पठेत स्तोत्रमानंदस्तोत्रमुत्तमम ।
सर्वसिद्धि भवेत्तस्य सर्वलाभो प्रणाश्यति ॥

इस स्तोत्र का पाठ इस भावना के साथ करें कि हमारी पृथ्वी पर शांति हो.



आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

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