19 मार्च 2023

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्

      


यह एक अत्यंत मधुर तथा गीत के रूप मे रचित देवी स्तुति है । इसके पाठ से आपको अत्यंत आनंद और सुखद अनुभूति होगी । 


महिषासुरमर्दिनि   स्तोत्रम् 

 

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते,

गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।

भगवति हे शितिकंठ कुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

 

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,

त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।

दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

 

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते,

शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।

मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

 

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड  गजाधिपते

रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।

निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

 

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते

चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।

दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

 

 अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे

त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।

दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

 

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।

शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

 

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके

कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।

कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

 

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते

झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

 

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते

श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते ।

सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

 

सहित महाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते

विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते ।

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

 

अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते

त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।

अयि सुदतीजन लालस मानस मोहन मन्मथराजसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

 

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते

सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।

अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

 

करमुरलीरव वीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते

मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जित शैल निकुञ्जगते ।

निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

 

कटितट पीत दुकूल विचित्र मयुख तिरस्कृत चन्द्ररुचे

प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चन्द्ररुचे

जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

 

विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैकनुते

कृत सुर तारक सङ्गर तारक सङ्गर तारक सूनुसुते ।

सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजातरते ।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

 

पद कमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

अयि कमले कमला निलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।

तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

 

कनक लसत्कल सिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

भजति स किं न शची कुच कुम्भतटी परिरम्भ सुखानुभवम् ।

तव चरणं शरणं करवाणि नतामर वाणि निवासि शिवम्

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

 

तव विमलेन्दु कुलं वदनेन्दु मलं सकलं ननु कूलयते

किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

 

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

 

 


अघोरमंत्र

    



अघोरमंत्र
ॐ नमः शिवाय महादेवाय नीलकंठाय आदि रुद्राय अघोरमंत्राय अघोर रुद्राय अघोर भद्राय सर्वभयहराय मम सर्वकार्यफल प्रदाय हन हनाय ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ टं टं टं टं टं घ्रीं घ्रीं घ्रीं घ्रीं घ्रीं हर हराय सर्व अघोररुपाय त्र्यम्बकाय विरुपाक्षाय ॐ हौं हः हीं हः ग्रं ग्रं ग्रं हां हीं हूं हैं हौं हः क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ नमः शिवाय अघोरप्रलयप्रचंड रुद्राय अपरिमितवीरविक्रमाय अघोररुद्रमंत्राय सर्वग्रह उचचाटनाय सर्वजनवशीकरणाय सर्वतोमुख मां रक्ष रक्ष शीघ्रं हूं फट् स्वाहा ।
ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ हां हीं हूं हैं हौं हः स्वर्गमृत्यु पाताल त्रिभुवन संच्चरित देव ग्रहाणां दानव ग्रहाणां ब्रह्मराक्षस ग्रहाणां सर्ववातग्रहाणां सर्व वेताल ग्रहाणां शाकिनी ग्रहाणां डाकिनी ग्रहाणां सर्व भूत ग्रहाणां कमिनी ग्रहाणां सर्व पिंड ग्रहाणां सर्व दोष ग्रहाणां सर्वपस्मारग्रहाणां हन हन हन भक्षय भक्षय भक्षय विरूपाक्षाय दह दह दह हूं फट् स्वाहा ॥




  • अघोरेश्वर महादेव की साधना है | कोई नियम विधि बंधन नहीं | उन्मुक्त होने का प्रारंभ .....
  • क्रोध और काम दोनों से बचें .
  • यदि शरीर में ज्यादा गर्मी का आभास हो तो रात्रिकाल में एक कप दूध में आधा चम्मच घी डालकर पियें .

27 फ़रवरी 2023

हनुमान चालीसा से बनायें रक्षा कवच

हनुमान चालीसा से बनायें रक्षा कवच 


हनुमान चालीसा एक बेहद लोकप्रिय उपाय है जो बहुत सारे लोग प्रयोग में लाते हैं ।  

इसकी भाषा सरल है इसलिए कोई भी इसका प्रयोग कर सकता है । 

हनुमान जी अमर है ! चिरंजीवी है !! 

इसलिए उनकी उपस्थिति आज भी पृथ्वी पर महसूस की जाती है । 


रक्षा कवच 

हनुमान चालीसा को रक्षा कवच के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है । 


इसके लिए एक छोटे आकार की हनुमान चालीसा ले लें । उसे रखने लायक गेरुए कलर का कपड़ा ले लें जिसमे आप उसे लपेट कर रख सकें या उससे छोटा पॉकेट जैसा बना लें ।  

हनुमान जयंती से या किसी भी पूर्णिमा के दिन से प्रारंभ करें और उस हनुमान चालीसा के 11 पाठ रोज करें ,  ऐसा अगली पूर्णिमा तक करें यानी कुल मिलाकर लगभग 30 दिनों तक आपका पाठ होगा । पाठ हो जाने के बाद उसे उस कपड़े या पॉकेट में बंद करके रख ले ।  उसे इस प्रकार से रखें कि कोई दूसरा व्यक्ति उसे स्पर्श ना कर सके ।  यानी आपको 30 दिनों तक उसे दूसरों से छुपा कर रखना है ॥ 

पूर्णिमा से पूर्णिमा तक पाठ कर लेने के बाद आप उस हनुमान चालीसा को उस कपड़े में लपेटकर हमेशा अपने साथ रखें तथा नित्य एक बार हनुमान चालीसा का पाठ करें जिससे आपको सभी प्रकार के बाधाओं में हनुमान जी की कृपा से रक्षा प्राप्त होगी । 

16 फ़रवरी 2023

काल भैरव अष्टकम

 


काल भैरव अष्टकम


देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥

शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।

मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥

भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥


विधि :-

सूर्यग्रहण के अवसर पर 108 पाठ करें ।

यह सभी प्रकार के पूजन के पूर्व रक्षा के लिए उपयोगी है।

विभिन्न प्रकार के रक्षा प्रयोगों मे किया जा सकता है । 

13 फ़रवरी 2023

महा मृत्युंजय स्तॊत्रं

  महामृत्युंजय स्तोत्र

मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र” मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है । 

इसका आप नित्य पाठ कर सकते हैं । 


ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकंठमुमापतिम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १ ॥


नीलकंठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ २ ॥


नीलकंठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रदम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ३ ॥


वामदॆवं महादॆवं लॊकनाथं जगद्गुरुम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ४ ॥


दॆवदॆवं जगन्नाथं दॆवॆशं वृषभध्वजम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ५ ॥

गंगाधरं महादॆवं सर्पाभरणभूषितम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ६ ॥


त्र्यक्षं चतुर्भुजं शांतं जटामुकुटधारणम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ७ ॥


भस्मॊद्धूलितसर्वांगं नागाभरणभूषितम्‌ ।

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ८ ॥


अनंतमव्ययं शांतं अक्षमालाधरं हरम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ९ ॥


आनंदं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १० ॥


अर्धनारीश्वरं दॆवं पार्वतीप्राणनायकम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ११ ॥


प्रलयस्थितिकर्तारं आदिकर्तारमीश्वरम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १२ ॥


व्यॊमकॆशं विरूपाक्षं चंद्रार्द्ध कृतशॆखरम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १३ ॥


गंगाधरं शशिधरं शंकरं शूलपाणिनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १४ ॥


अनाथं परमानंदं कैवल्यपददायिनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १५ ॥


स्वर्गापवर्ग दातारं सृष्टिस्थित्यांतकारिणम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १६ ॥


कल्पायुर्द्दॆहि मॆ पुण्यं यावदायुररॊगताम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १७ ॥


शिवॆशानां महादॆवं वामदॆवं सदाशिवम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १८ ॥


उत्पत्ति स्थितिसंहार कर्तारमीश्वरं गुरुम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १९ ॥


फलश्रुति

मार्कंडॆय कृतं स्तॊत्रं य: पठॆत्‌ शिवसन्निधौ । 

तस्य मृत्युभयं नास्ति न अग्निचॊरभयं क्वचित्‌ ॥ २० ॥


शतावृतं प्रकर्तव्यं संकटॆ कष्टनाशनम्‌ । 

शुचिर्भूत्वा पठॆत्‌ स्तॊत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम्‌ ॥ २१ ॥


मृत्युंजय महादॆव त्राहि मां शरणागतम्‌ । 

जन्ममृत्यु जरारॊगै: पीडितं कर्मबंधनै: ॥ २२ ॥


तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्व च्चित्तॊऽहं सदा मृड । 

इति विज्ञाप्य दॆवॆशं त्र्यंबकाख्यममं जपॆत्‌ ॥ २३ ॥


नम: शिवाय सांबाय हरयॆ परमात्मनॆ । 

प्रणतक्लॆशनाशाय यॊगिनां पतयॆ नम: ॥ २४ ॥



॥ इति श्री मार्कंडॆयपुराणॆ महा मृत्युंजय स्तॊत्रं संपूर्णम्‌ ॥


12 फ़रवरी 2023

पाशुपतास्त्र स्तोत्र

  पाशुपतास्त्र स्तोत्र 



श्रावण मास मे इस स्तोत्र का नियमित पाठ कर सकते है ..

इसका पाठ एक बार से ज्यादा न करें क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जा उत्पन्न करने वाला स्तोत्र है । 


विनियोग :-


हाथ मे पानी लेकर विनियोग पढे और जल जमीन पर छोड़ें .... 

 

ॐ  अस्य श्री पाशुपतास्त्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छन्द: श्रीं बीजं हुं शक्ति: श्री पशुपतीनाथ देवता मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य सर्वग्रह बाधा शत्रू बाधा रोग बाधा अनिष्ट बाधा निवारणार्थं मम सर्व कार्य सिद्धर्थे  [यहाँ अपनी इच्छा बोलें ] जपे विनियोग: ॥ 


कर न्यास :-


ॐ अंगुष्ठाभ्यां  नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )

श्ल तर्जनीभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )


ईं मध्यमाभ्यां नम: (अंगूठा और मध्यमा यानि बीच वाली  उंगली को आपस मे मिलाएं )


प अनामिकाभ्यां नम: (अंगूठा और अनामिका यानि तीसरी  उंगली को आपस मे मिलाएं )


शु: कनिष्ठिकाभ्यां नम: (अंगूठा और कनिष्ठिका यानि छोटी उंगली को आपस मे मिलाएं )


हुं फट करतल करपृष्ठाभ्यां नम: (दोनों हाथों को आपस मे रगड़ दें )


हृदयादि न्यास :-

अपने हाथ से संबंधित अंगों को स्पर्श कर लें । 


ॐ हृदयाय नम: 

श्ल शिरसे स्वाहा 

ईं शिखायै वषट 

प कवचाय हुं 

शु: नेत्रत्रयाय वौषट 

हुं फट अस्त्राय फट 


ध्यान 

मध्यान्ह अर्कसमप्रभं शशिधरं  भीम अट्टहासोज्वलं 

त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रू  स्फुरन्मूर्धजम 

हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुदगरमसिं शक्तिं दधानं विभुं 

दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररुपं स्मरेत !! 


अर्थ :- जो मध्यान्ह कालीन अर्थात दोपहर के सूर्य के समान कांति से युक्त है , चंद्रमा को धारण किये हुये हैं । जिनका भयंकर अट्टहास अत्यंत प्रचंड है । उनके तीन नेत्र है तथा शरीर मे सर्पों का आभूषण सुशोभित हो रहा है । 

उनके ललाट मे स्थित तीसरे नेत्र से निकलती अग्नि की शिखा से श्मश्रू तथा केश दैदिप्यमान हो रहे है । 

जो अपने कर कमलो मे त्रिशूल , मुदगर , तलवार , तथा शक्ति धारण किये हुये है ऐसे दंष्ट्रा से भयानक चार मुख वाले दिव्य स्वरुपधारी सर्वव्यापक महादेव का मैं दिव्यास्त्र के रूप मे स्मरण करता हूँ ।  


अब नीचे दिये हुये स्तोत्र का पाठ करे .. 


हर बार फट की आवाज के साथ आप शिवलिंग पर बेलपत्र पुष्प या चावल समर्पित कर सकते हैं । 

 

यदि किसी सामग्री की व्यवस्था ना हो पाए तो हर बार फट की आवाज के साथ एक ताली बजाएं । 


पाशुपतास्त्र 

ॐ नमो भगवते महापाशुपताय अतुलबलवीर्य पराक्रमाय त्रिपंचनयनाय नानारुपाय नाना प्रहरणोद्यताय सर्वांगरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशानवेतालप्रियाय सर्वविघ्न निकृंतनरताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकंपिने असंख्यवक्त्र-भुजपादाय तस्मिन सिद्धाय वेतालवित्रासने शाकिनीक्षोभजनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय सूर्यसोमाग्निनेत्राय विष्णुकवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदंडवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलजिव्हाय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षयकारिणे ! 

ॐ कृष्णपिंगलाय फट ! 

ॐ हूंकारास्त्राय फट ! 

ॐ वज्रहस्ताय फट ! 

ॐ शक्तये फट ! 

ॐ दंडाय फट ! 

ॐ यमाय फट ! 

ॐ खडगाय फट ! 

ॐ निऋताय फट ! 

ॐ वरुणाय फट ! 

ॐ वज्राय फट ! 

ॐ पाशाय फट ! 

ॐ ध्वजाय फट ! 

ॐ अंकुशाय फट ! 

ॐ गदायै फट ! 

ॐ कुबेराय फट ! 

ॐ त्रिशूलाय फट ! 

ॐ मुदगराय फट ! 

ॐ चक्राय फट ! 

ॐ पद्माय फट ! 

ॐ नागास्त्राय फट ! 

ॐ ईशानाय फट ! 

ॐ खेटकास्त्राय फट ! 

ॐ मुंडाय फट ! 

ॐ मुंडास्त्राय फट ! 

ॐ कंकालास्त्राय फट ! 

ॐ पिच्छिकास्त्राय फट ! 

ॐ क्षुरिकास्त्राय फट ! 

ॐ ब्रह्मास्त्राय फट ! 

ॐ शक्त्यास्त्राय फट ! 

ॐ गणास्त्राय फट ! 

ॐ सिद्धास्त्राय फट ! 

ॐ पिलिपिच्छास्त्राय फट ! 

ॐ गंधर्वास्त्राय फट ! 

ॐ पूर्वास्त्राय फट ! 

ॐ दक्षिणास्त्राय फट ! 

ॐ वामास्त्राय फट ! 

ॐ पश्चिमास्त्राय फट ! 

ॐ मंत्रास्त्राय फट  ! 

ॐ शाकिनि अस्त्राय फट ! 

ॐ योगिनी अस्त्राय फट ! 

ॐ दंडास्त्राय फट ! 

ॐ महादंडास्त्राय फट ! 

ॐ नमो अस्त्राय फट ! 

ॐ शिवास्त्राय फट ! 

ॐ ईशानास्त्राय फट ! 

ॐ पुरुषास्त्राय फट ! 

ॐ अघोरास्त्राय फट ! 

ॐ सद्योजातास्त्राय फट ! 

ॐ हृदयास्त्राय फट ! 

ॐ महास्त्राय फट ! 

ॐ गरुडास्त्राय फट ! 

ॐ राक्षसास्त्राय फट ! 

ॐ दानवास्त्राय फट ! 

ॐ क्षौं नरसिंहास्त्राय फट ! 

ॐ त्वष्ट्र अस्त्राय फट ! 

ॐ सर्वास्त्राय फट ! 

ॐ न: फट !
ॐ व: फट ! 

ॐ प: फट ! 

ॐ फ: फट ! 

ॐ म: फट ! 

ॐ श्री: फट ! 

ॐ पें फट ! 

ॐ भू: फट ! 

ॐ भुव: फट ! 

ॐ स्व: फट ! 

ॐ मह: फट ! 

ॐ जन: फट ! 

ॐ तप: फट ! 

ॐ सत्यं फट ! 

ॐ सर्व लोक फट ! 

ॐ  सर्व पाताल फट ! 

ॐ सर्व तत्त्व फट ! 

ॐ सर्व प्राण फट ! 

ॐ सर्व नाडी फट ! 

ॐ सर्व कारण फट ! 

ॐ सर्व देव फट ! 

ॐ ह्रीम फट ! 

ॐ श्रीं फट ! 

ॐ ह्रूं फट ! 

ॐ स्त्रूं फट ! 

ॐ स्वां फट ! 

ॐ लां फट ! 

ॐ वैराग्यस्त्राय फट ! 

ॐ मायास्त्राय फट ! 

ॐ कामास्त्राय फट ! 

ॐ क्षेत्रपालास्त्राय फट ! 

ॐ हुंकारास्त्राय फट ! 

ॐ भास्करास्त्राय फट ! 

ॐ चंद्रास्त्राय फट ! 

ॐ विघ्नेश्वरास्त्राय फट ! 

ॐ गौ: गां फट ! 

ॐ ख्रों ख्रौं फट ! 

ॐ हौं हों फट ! 

ॐ भ्रामय भ्रामय फट ! 

ॐ संतापय संतापय फट ! 

ॐ छादय छादय फट ! 

ॐ उन्मूलय उन्मूलय फट ! 

ॐ त्रासय त्रासय फट ! 

ॐ संजीवय संजीवय फट ! 

ॐ विद्रावय विद्रावय फट ! 

ॐ सर्वदुरितं नाशय नाशय फट ! 

ॐ श्लीं पशुं हुं फट स्वाहा !


अंत मे एक नींबू काटकर शिवलिंग पर निचोड़ कर अर्पित कर दें ।

दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें ।

और कहें "श्री निखिलेश्वरानंद चरणार्पणम अस्तु" ॥  

11 फ़रवरी 2023

सर्प सूक्त

 




यदि आपको अपने घर में बार बार सांप दिखाई देते हो .....


आपकी कुंडली में कालसर्प दोष हो.........


या आप भगवान शिव के गण के रूप में नाग देवता की पूजा करना चाहते हो तो आप इस सर्प सूक्त का प्रयोग कर सकते हैं ।


सर्प सूक्त


ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा: शेषनागपुरोगमा: ।।

नमोSस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।। 1।।


इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखास्तथा।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।


कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा:।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।


इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखास्तथा।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।


सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।


मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखास्तथा।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।


पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये च साकेत वासिन:।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।


सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।


ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पा: प्रचरन्ति च।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।


समुद्रतीरे च ये सर्पा: ये सर्पा जलवासिन:।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।


रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।


इसका उच्चारण देखें 


10 फ़रवरी 2023

रुद्राष्टकम

 रुद्राष्टकम


नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम्।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥


निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।

करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥


तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥


चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥



प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।

त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥


कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥


न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।

न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।

जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥



रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥




आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं


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9 फ़रवरी 2023

साम्ब सदाशिव

    


भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र :-  

॥ ओम साम्ब सदाशिवाय नम: ॥ 

  1. सवा लाख मन्त्र का एक पुरस्चरण होगा.
  2. शिवलिंग सामने रखकर साधना करें.
  3. समस्त प्रकार की मनोकामना पूर्ती के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
  4. किसी अनुचित अनैतिक इच्छा से न करें गंभीर  नुक्सान हो सकता है. 
  5.  

8 फ़रवरी 2023

श्री नीलकंठ स्तोत्र

  

श्री नीलकंठ स्तोत्र


संकल्प:(विनियोग ):-

ओम अस्य श्री नीलकंठ स्तोत्र-मन्त्रस्य ब्रह्म ऋषि अनुष्टुप छंद :नीलकंठो सदाशिवो देवता ब्रह्म्बीजम पार्वती शक्ति:शिव इति कीलकं मम काय जीव स्वरक्षनार्थे सर्वारिस्ट विनाशानार्थेचतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धिअर्थे भक्ति-मुक्ति सिद्धि अर्थे श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थे च जपे पाठे विनियोग:


स्तोत्र मंत्र :-


।। ओम नमो नीलकंठाय श्वेत शरीराय नमः ।

सर्पालंकृत भूषणाय नमः ।

भुजंग परिकराय नाग यग्नोपवीताय नमः ।

अनेक काल मृत्यु विनाशनाय नमः ।

युगयुगान्त काल प्रलय प्रचंडाय नमः ।

ज्वलंमुखाय नमः ।

दंष्ट्रा कराल घोर रुपाय नमः हुं हुं फट स्वाहा,

ज्वालामुख मंत्र करालाय नमः ।

प्रचंडार्क सह्स्त्रान्शु प्रचंडाय नमः ।

कर्पुरामोद परिमलांग सुगंधिताय नमः ।

इन्द्रनील महानील वज्र वैदूर्यमणि माणिक्य मुकुट भूषणाय नमः ।

श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्रस्य नमः ।

ओम ह्रां स्फुर स्फुर ओम ह्रीं स्फुर स्फुर ओम ह्रूं स्फुर स्फुर अघोर घोरतरस्य नमः ।

रथ रथ तत्र तत्र चट चट कह कह मद मद मदन दहनाय नमः ।

श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्राय नमः ।

ज्वलन मरणभय क्षयं हूं फट स्वाहा ।

अनंत घोर ज्वर मरण भय कुष्ठ व्याधि विनाशनाय नमः ।

डाकिनी शाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय नमः ।

अपर पारभुत वेताल कुष्मांड सर्वग्रह विनाशनाय नमः ।

यन्त्र कोष्ठ करालाय नमः ।

सर्वापद विच्छेदनाय नमः हूं हूं फट स्वाहा ।

आत्म मंत्र सुरक्षणाय नमः ।

ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं नमो भुत डामर ज्वाला वश भूतानां द्वादश भूतानां त्रयोदश भूतानां पंचदश डाकिनीना हन् हन् दह दह नाशय नाशय एकाहिक द्याहिक चतुराहिक पंच्वाहिक व्याप्ताय नमः ।

आपादंत सन्निपात वातादि हिक्का कफादी कास्श्वासादिक दह दह छिन्दि छिन्दि,

श्री महादेव निर्मित स्तम्भन मोहन वश्यआकर्षण उच्चाटन कीलन उद्दासन इति षटकर्म विनाशनाय नमः ।


अनंत वासुकी तक्षक कर्कोटक शंखपाल विजय पद्म महापद्म एलापत्र नाना नागानां कुलकादी विषं छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि प्रवेशय प्रवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा ।।

वातज्वर मरणभय छिन्दि छिन्दि हन् हन्: ,

भुतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर सन्निपातज्वर ,

ग्रहज्वर विषमज्वर कुमारज्वर तापज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर ,

महेशज्वर आवश्यकज्वर कामाग्निविषय ज्वर मरीची- ज्वारादी प्रबल दंडधराय नमः ।

परमेश्वराय नमः ।

आवेशय आवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा ।

चोर मृत्यु ग्रह व्यघ्रासर्पादी विषभय विनाशनाय नमः ।

मोहन मन्त्राणाम , पर विद्या छेदन मन्त्राणाम , ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं कुली लीं लीं हूं क्ष कूं कूं हूं हूं फट स्वाहा,

नमो नीलकंठाय नमः ।

दक्षाध्वरहराय नमः ।

श्री नीलकंठाय नमः , ओम ।।


यह अत्यंत तीक्ष्ण तथा प्रचंड स्तोत्र है , इसलिए पाठ जब शुरू हो उन दिनों में एक कप गाय के दूध में आधा चम्मच गाय के घी को मिलकर रात्री मे सेवन करना चाहिए जिससे शरीर में बढ़ने वाली गर्मी पर काबू रख सके वर्ना गुदामार्ग से खून आने की संभावना हो सकती हैं ।


एक दिन मे इसका एक बार पाठ करें ।. एक दिन मे  सामान्य गृहस्थों को ज्यादा से ज्यादा तीन पाठ करने चाहिए ।साधक तथा योगी इससे ज्यादा भी कर सकते हैं  । 


इस मंत्र को शिव मंदिर में जाकर शिव जी का पंचोपचार पूजन करके करना श्रेष्ट है , यदि शिव मंदिर मे संभव न हो तो एकांत कक्ष मे या पूजा कक्ष मे भी कर सकते हैं । अपने सामने शिवलिंग या शिवचित्र या महामाया का चित्र या यंत्र रखके करें ।.  

यह आप पूरे सावन मास मे कर सकते हैं ।


इसके अलावा भी आप किसी भी दिन इसे कर सकते हैं ।. 


शिव कृपा , तंत्र बाधा निवारण , सर्वविध रक्षा प्रदायक तथा रोगनाशन करने वाला स्तोत्र है ।