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13 अक्तूबर 2020

कामाख्या तार

 







असम के कामाख्या शक्तीपीठ को तंत्र साधनाओं का मूल माना जाता है । ऐसा माना जाता है की यहाँ देवी का योनि भाग गिरा था और इसे योनि पीठ या मातृ पीठ की मान्यता है ।

यहाँ का प्रमुख पर्व है अंबुवाची मेला जब प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।

चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं।

https://www.amarujala.com/spirituality/religion/kamakhya-mandir-ambubachi-mela



यदि आपको इस वस्त्र का एक धागा भी मिल जाये तो उसके निम्न लाभ माने जाते हैं :-

इसे ताबीज मे भरकर पहन लें तंत्र बाधा यानि किए कराये का असर नहीं होगा।
यह सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
इसे धरण करने से आकर्षण बढ़ता है।
आपसी प्रेम मे वृद्धि तथा गृह क्लेश मे कमी आती है ।
इसे साथ रखकर किसी भी कार्य या यात्रा मे जाएँ तो सफलता की संभावना बढ़ जाएगी ।
दुकान के गल्ले मे लाल कपड़े मे बांध कर रखें तो व्यापार मे अनुकूलता मिलेगी । 

30 जून 2020

महाभगवती कामकलाकाली स्तोत्र साधना

महाभगवती कामकलाकाली स्तोत्र साधना
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श्री गणेशाय नमः ।
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः |
ॐ महाकाल भैरवाय नमः |
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महाकाल उवाच ।
अथ वक्ष्ये महेशानि देव्याः स्तोत्रमनुत्तमम् ।
यस्य स्मरणमात्रेण विघ्ना यान्ति पराङ्मुखाः ॥ १॥
विजेतुं प्रतस्थे यदा कालकस्या- सुरान् रावणो मुञ्जमालिप्रवर्हान् ।
तदा कामकालीं स तुष्टाव वाग्भिर्जिगीषुर्मृधे बाहुवीर्य्येण सर्वान् ॥ २॥
महावर्त्तभीमासृगब्ध्युत्थवीची- परिक्षालिता श्रान्तकन्थश्मशाने ।
चितिप्रज्वलद्वह्निकीलाजटाले शिवाकारशावासने सन्निषण्णाम् ॥ ३॥
महाभैरवीयोगिनीडाकिनीभिः करालाभिरापादलम्बत्कचाभिः ।
भ्रमन्तीभिरापीय मद्यामिषास्रान्यजस्रं समं सञ्चरन्तीं हसन्तीम् ॥ ४॥
महाकल्पकालान्तकादम्बिनी- त्विट्परिस्पर्द्धिदेहद्युतिं घोरनादाम् ।
स्फुरद्द्वादशादित्यकालाग्निरुद्र- ज्वलद्विद्युदोघप्रभादुर्निरीक्ष्याम् ॥ ५॥
लसन्नीलपाषाणनिर्माणवेदि- प्रभश्रोणिबिम्बां चलत्पीवरोरुम् ।
समुत्तुङ्गपीनायतोरोजकुम्भां कटिग्रन्थितद्वीपिकृत्त्युत्तरीयाम् ॥ ६॥
स्रवद्रक्तवल्गन्नृमुण्डावनद्धा- सृगाबद्धनक्षत्रमालैकहाराम् ।
मृतब्रह्मकुल्योपक्लृप्ताङ्गभूषां महाट्टाट्टहासैर्जगत् त्रासयन्तीम् ॥ ७॥
निपीताननान्तामितोद्धृत्तरक्तो- च्छलद्धारया स्नापितोरोजयुग्माम् ।
महादीर्घदंष्ट्रायुगन्यञ्चदञ्च- ल्ललल्लेलिहानोग्रजिह्वाग्रभागाम् ॥ ८॥
चलत्पादपद्मद्वयालम्बिमुक्त- प्रकम्पालिसुस्निग्धसम्भुग्नकेशाम् ।
पदन्याससम्भारभीताहिराजा- ननोद्गच्छदात्मस्तुतिव्यस्तकर्णाम् ॥ ९॥
महाभीषणां घोरविंशार्द्धवक्त्रै- स्तथासप्तविंशान्वितैर्लोचनैश्च ।
पुरोदक्षवामे द्विनेत्रोज्ज्वलाभ्यां तथान्यानने त्रित्रिनेत्राभिरामाम् ॥ १०॥
लसद्वीपिहर्य्यक्षफेरुप्लवङ्ग- क्रमेलर्क्षतार्क्षद्विपग्राहवाहैः ।
मुखैरीदृशाकारितैर्भ्राजमानां महापिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ॥ ११॥
भुजैः सप्तविंशाङ्कितैर्वामभागे युतां दक्षिणे चापि तावद्भिरेव ।
क्रमाद्रत्नमालां कपालं च शुष्कं ततश्चर्मपाशं सुदीर्घं दधानाम् ॥ १२॥
ततः शक्तिखट्वाङ्गमुण्डं भुशुण्डीं धनुश्चक्रघण्टाशिशुप्रेतशैलान् ।
ततो नारकङ्कालबभ्रूरगोन्माद- वंशीं तथा मुद्गरं वह्निकुण्डम् ॥ १३॥
अधो डम्मरुं पारिघं भिन्दिपालं तथा मौशलं पट्टिशं प्राशमेवम् ।
शतघ्नीं शिवापोतकं चाथ दक्षे महारत्नमालां तथा कर्त्तुखड्गौ ॥ १४॥
चलत्तर्ज्जनीमङ्कुशं दण्डमुग्रं लसद्रत्नकुम्भं त्रिशूलं तथैव ।
शरान् पाशुपत्यांस्तथा पञ्च कुन्तं पुनः पारिजातं छुरीं तोमरं च ॥ १५॥
प्रसूनस्रजं डिण्डिमं गृध्रराजं ततः कोरकं मांसखण्डं श्रुवं च ।
फलं बीजपूराह्वयं चैव सूचीं तथा पर्शुमेवं गदां यष्टिमुग्राम् ॥ १६॥
ततो वज्रमुष्टिं कुणप्पं सुघोरं तथा लालनं धारयन्तीं भुजैस्तैः ।
जवापुष्परोचिष्फणीन्द्रोपक्लृप्त- क्वणन्नूपुरद्वन्द्वसक्ताङ्घ्रिपद्माम् ॥ १७॥
महापीतकुम्भीनसावद्धनद्ध स्फुरत्सर्वहस्तोज्ज्वलत्कङ्कणां च ।
महापाटलद्योतिदर्वीकरेन्द्रा- वसक्ताङ्गदव्यूहसंशोभमानाम् ॥ १८॥
महाधूसरत्त्विड्भुजङ्गेन्द्रक्लृप्त- स्फुरच्चारुकाटेयसूत्राभिरामाम् ।
चलत्पाण्डुराहीन्द्रयज्ञोपवीत- त्विडुद्भासिवक्षःस्थलोद्यत्कपाटाम् ॥ १९॥
पिषङ्गोरगेन्द्रावनद्धावशोभा- महामोहबीजाङ्गसंशोभिदेहाम् ।
महाचित्रिताशीविषेन्द्रोपक्लृप्त- स्फुरच्चारुताटङ्कविद्योतिकर्णाम् ॥ २०॥
वलक्षाहिराजावनद्धोर्ध्वभासि- स्फुरत्पिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ।
महाशोणभोगीन्द्रनिस्यूतमूण्डो- ल्लसत्किङ्कणीजालसंशोभिमध्याम् ॥ २१॥
सदा संस्मरामीदृशों कामकालीं जयेयं सुराणां हिरण्योद्भवानाम् ।
स्मरेयुर्हि येऽन्येऽपि ते वै जयेयु- र्विपक्षान्मृधे नात्र सन्देहलेशः ॥ २२॥
पठिष्यन्ति ये मत्कृतं स्तोत्रराजं मुदा पूजयित्वा सदा कामकालीम् ।
न शोको न पापं न वा दुःखदैन्यं न मृत्युर्न रोगो न भीतिर्न चापत् ॥ २३॥
धनं दीर्घमायुः सुखं बुद्धिरोजो यशः शर्मभोगाः स्त्रियः सूनवश्च ।
श्रियो मङ्गलं बुद्धिरुत्साह आज्ञा लयः शर्म सर्व विद्या भवेन्मुक्तिरन्ते ॥ २४॥ ॥
|| इति श्री महावामकेश्वरतन्त्रे कालकेयहिरण्यपुरविजये
रावणकृतं कामकलाकाली भुजङ्गप्रयात स्तोत्रराजं सम्पूर्णम् ॥

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सामान्य निर्देश :-
  • ·    स्तोत्रसाधना के मार्ग में प्रवेश करने का सबसे उत्तम मार्ग है |
  • ·    स्तोत्र साधना के लिए गुरु अनिवार्य नहीं है |
  • ·    आप अपनी क्षमतानुसार नित्य पाठ करें |
  • ·    पाठ संख्या 21,51,108 तक हो सकती हैं | गिनती के लिए आप अपनी सुविधानुसार कापी पेन या किसी अन्य वस्तु का प्रयोग कर सकते हैं |
  • ·    जैसे जैसे पाठ की संख्या बढती जायेगी स्तोत्र उतना बलवान होगा और आपको कार्य में अनुकूलता प्रदान करेगा |
  • ·    साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
  • ·    इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
  • ·    साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |

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विधि :-

पाठ प्रारम्भ के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले)आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह स्तोत्र पाठ  कर रहा/ रही हूँ | मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " | इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
1. उत्तर या पूर्व दिशा की और देखते हुए बैठें |
2. आसन लाल/पीले रंग का रखें|
3. शक्ति स्त्रोत का पाठ रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें | संभव ना हो तो दिन में भी कर सकते हैं |
4. यदि अर्धरात्रि पाठ करते हुए निकले तो श्रेष्ट है |
5. पाठ के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें |
6. साधना काल में किसी को आशीर्वाद या श्राप ना दें इससे आपकी साधनात्मक शक्ति का ह्रास होगा |
7. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें | यथा संभव हर स्त्री को देवी के रूप में देखें |
8. सात्विक आहार/ आचार/ विचार/व्यवहार रखें |
9. ब्रह्मचर्य का पालन करें | विवाहित पुरुष अपनी विवाहिता स्त्री के साथ सम्बन्ध रख सकते हैं |
10.   व्यर्थ के प्रलाप और अपनी साधना का ढिंढोरा पीटने से बचें इससे आपकी शक्ति कम होती जाती है साधना को यथा संभव गोपनीय रखें |
11.   साधना का प्रयोग यदि लोगों की समस्या के समाधान के लिए कर रहे हों तो नित्य साधना अवश्य करें |


12.   यदि नित्य साधना नहीं करेंगे और समस्या समाधान करेंगे तो धीरे धीरे आपकी शक्ति क्षीण होती जायेगी और काम होने बंद हो जायेंगे |
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------------------- विशेष ----------------------   साधना में गुरु की आवश्यकता
Y   मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y   साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y   गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y   रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y   रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y   गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y   स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y   गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
Y    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y   मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें, ढिंढोरा ना पीटें, बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y   गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y   आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y   बकवास और प्रलाप न करें.
Y   किसी पर गुस्सा न करें.
Y   यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y   ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y   किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y   जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y   बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y   ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y   इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y   भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें , इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशा, आसन, वस्त्र का महत्व
Y   साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y   आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y   अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y   इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
Y   जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है , जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y   यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y   नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें , लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |

13 मार्च 2020

भगवती महाकाली सहस्त्राक्षरी मंत्र

भगवती महाकाली सहस्त्राक्षरी मंत्र



ॐ क्रीं  क्रीँ  क्रीँ  ह्रीँ  ह्रीँ  हूं  हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ  क्रीँ  क्रीँ  ह्रीँ  ह्रीँ  हूं  हूं स्वाहा ।

शुचिजाया, महापिशाचिनी,  दुष्टचित्तनिवारिणी,
क्रीँ कामेश्वरी,  वीँ हं वाराहिके, ह्रीँ महामाये, खं खः क्रोधाधिपे !
श्रीं  महालक्ष्म्ये ! सर्वहृदय रञ्जनी । वाग्वादिनी विधे त्रिपुरे ।
हंस्त्रिँ  हसकहल ह्रीँ  हस्त्रैँ  ॐ ह्रीँ  क्लीँ  मे  स्वाहा ।
ॐ ॐ ह्रीँ  ईं स्वाहा ।
दक्षिणकालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा ।

खड्गमुण्डधरे, कुरुकुल्ले तारे, ॐ  ह्रीँ  नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन । पच पच ।  मथ मथ ।
फ्रेँ विमोहिनी सर्वदुष्टान मोहय मोहय ।
हयग्रीवे, सिँहवाहिनी, सिँहस्थे, अश्वारुढे, अश्वमुरिप विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून ये मां हिँसतु तान ग्रस ग्रस ।
महानीले, वलाकिनी, नीलपताके, क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे, संक्षोभिणी, उच्छिष्टचाण्डालिके,
सर्वजगद वशमानय वशमानय ।

मातंगिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातंगिनी सर्ववशंकरी नमः स्वाहा ।
विस्फारिणी । कपालधरे ।  घोरे । घोरनादिनी । भूर शत्रून् विनाशिनी । उन्मादिनी ।
रोँ  रोँ रोँ  रीँ  ह्रीँ  श्रीँ  हसौः सौँ  वद वद क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ  क्रीँ  क्रीँ कति कति स्वाहा |

काहि काहि कालिके ।
शम्वरघातिनी, कामेश्वरी, कामिके, ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा ।

हृदयाये ॐ ह्रीँ  क्रीँ  मे स्वाहा ।

ठः ठः ठः क्रीँ  ह्रं  ह्रीँ  चामुण्डे हृदय जनाभिअसूनव ग्रस ग्रस दुष्टजनान् ।
अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नतस्तनेविष्टंभकारिणि । विघाधिके ।  श्मशानवासिनी । कलय कलय । विकलय विकलय । कालग्राहिके । सिँहे । दक्षिणकालिके । अनिरुद्दये । ब्रूहि ब्रूहि । जगच्चित्रिरे । चमत्कारिणी । हं कालिके ।  करालिके । घोरे । कह कह । तडागे । तोये । गहने । कानने । शत्रुपक्षे । शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि । अम्बिके । तुभ्यं कल विकलायै । बलप्रमथनायै । योगमार्ग गच्छ गच्छ ।  निदर्शिके । देहिनि । दर्शनं देहि देहि । मर्दिनि महिषमर्दिन्यै । स्वाहा ।

रिपुन्दर्शने द र्शय दर्शय । सिँहपूरप्रवेशिनि । वीरकारिणि । क्रीँ  क्रीँ  क्रीँ  हूं  हूं ह्रीँ  ह्रीँ फट् स्वाहा ।

शक्तिरुपायै ।  रोँ  वा गणपायै  । रोँ  रोँ  रोँ व्यामोहिनि । यन्त्रनिके । महाकायायै ।  प्रकटवदनायै । लोलजिह्वायै । मुण्डमालिनि । महाकालरसिकायै । नमो नमः ।
ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः ।
शत्रुविग्रहकलहान्त्रिपुरभोगिन्यै । विषज्वालामालिनी । तन्त्रनिके । मेधप्रभे । शवावतंसे । हंसिके । कालि कपालिनि । कुल्ले कुरुकुल्ले । चैतन्यप्रभे प्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ  ह्रीँ  रक्ष रक्ष । ज्वाला । प्रचण्ड । चण्डिके ।  शक्ति । मार्तण्ड ।  भैरवि ।  विप्रचित्तिके । विरोधिनि । आकर्णय आकर्णय । पिशिते । पिशितप्रिये । नमो नमः ।
खः खः खः मर्दय मर्दय । शत्रून् ठः ठः ठः । कालिकायै नमो नमः ।
ब्राम्हयै नमो नमः ।
माहेश्वर्यै नमो नमः ।
कौमार्यै नमो नमः ।
वैष्णव्यै नमो नमः ।
वाराह्यै नमो नमः ।
इन्द्राण्यै नमो नमः ।
चामुण्डायै नमो नमः ।
अपराजितायै नमो नमः ।
नारसिँहिकायै नमो नमः ।
कालि । महाकालिके । अनिरुध्दके । सरस्वति फट् स्वाहा ।

पाहि पाहि ललाटं । भल्लाटनी । अस्त्रीकले । जीववहे । वाचं रक्ष रक्ष । परविद्या क्षोभय क्षोभय । आकर्षय आकर्षय । कट कट । अमुकान मोहय मोहय  महामोहिनिके । चीरसिध्दके । कृष्णरुपिणी । अंजनसिद्धके ।  स्तम्भिनि । मोहिनि । मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।।



  • 108 पाठ से लाभ मिलेगा |
  • चमेली के तेल का दीपक जलाएंगे । 
  • रात्रिकालीन साधना है |
  • दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए जाप करें 
  • काला वस्त्र तथा काले कंबल का आसन रहेगा । 

13 फ़रवरी 2020

भगवती कामाख्या


भगवती कामाख्या 
मूल शक्ति हैं




 जो सभी साधनाओं का मूल हैं ।
 
॥ ऊं ऎं ह्रीं क्लीं कामाख्यायै स्वाहा ॥


विशिष्ट  निर्देश :-
1.        साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
2.        साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
3.        भगवती कामाख्या मूल शक्ति हैं । इस साधना को  कम से कम ५  वर्षों तक लगातार करते रहैं |
4.        यह साधना विवाहित साधकों को ही करनी चाहिए । 
5.        यह साधना पति पत्नी एक साथ करें तो ज्यादा लाभ होगा। 
6.        इस साधना में दिशा /आसन/वस्त्र /संख्या का महत्व नहीं है
7.        जाप गौरीशंकर रुद्राक्ष की माला से किया जाये तो सर्व श्रेष्ट है ना हो तो पञ्चमुखी रुद्राक्ष या किसी भी रुद्राक्ष की माला  स्वीकार्य  है |



  • यह साधना गुरु की अनुमति से ही करें। 
  • साधना नियमित रूप से करें। 
  • जाप के दौरान बकवास और बेवजह का प्रलाप चुगली आदि ना करें|
  • किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें |           
  • साधना काल में किसी के बारे में बुरा न बोले। भविष्यवाणी न करें। 
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23 सितंबर 2019

अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले




शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
                                महाकाल  प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
                                अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

मेरी अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर विराजमान हैजो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैंजो चौंषठ कलाओं से युक्त हैंजो भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैंऐसी प्रचंड स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं |


उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
                                 रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
                               अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैंअर्थात हर नियमहर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं जो श्मशान की अधिष्टात्री देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |



क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
                               केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
कटि नर कर मेखला धारिणीम,
                               अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

अद्भुत सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत उन्नत स्तन मंडलों से सुशोभित हैंजिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे  सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव अर्चन करता हूं  ||


खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
                               युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
                               अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
देव सेना की महानायिकाजो खड्ग चालन में अति निपुण हैंयुद्ध जिनको अत्यंत प्रिय हैअसुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध भूमि की अधिष्टात्री हैं जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का रक्तपान करने को आतुर रहती हैं ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल रमणी महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |

मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
                                प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
                                अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥


जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैंजिनके मुख पर सदैव अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |

|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||