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13 जून 2023

नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र

    

नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र है ।.


कलयुग में देवी चंडिका और भगवान गणेश को सहज ही प्रसन्न होने वाला माना गया है इसलिए नवार्ण मंत्र का जाप करके आप साधना के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ सकते हैं।


नवार्ण मंत्र


।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।


इसमे तीन बीज मंत्र हैं जो क्रमशः महासरस्वती महालक्ष्मी और महाकाली के बीजमन्त्र हैं । इसलिए सभी मनोकामनाओं के लिए इसे जप सकते हैं ।


बहुत ज्यादा विधि विधान नहीं जानते हो तो आप केवल अपने सामने दीपक जलाकर मंत्र जाप कर सकते हैं ।

मंत्र जाप की संख्या अपनी क्षमता के अनुसार निर्धारित कर लें कम से कम 108 बार मंत्र जाप करना चाहिए ।

17 मई 2023

अष्टकाली मंत्र

   



॥  ऊं अष्टकाल्यै क्रीं श्रीं ह्रीं क्रीं सिद्धिं मे देहि दापय नमः ॥


  1.  
कमजोर मनस्थिति वाले पुरुष/महिलाएं/बच्चे इस साधना को ना करें |
  1. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जाप करें.
  2. दिगम्बर अवस्था में जाप करें या काले रंग का आसन वस्त्र रखें.
  3. रुद्राक्ष या काली हकीक माला से जाप करें.
  4. पुरश्चरण १,२५,००० मन्त्रों का होगा.
  5. रात्रिकाल में जाप करें.जप काल मे किसी स्त्री का अपमान न करें 
  6. दशमी के दिन काली मिर्च/ तिल/दशांग/घी/ चमेली के तेल  से दशांश  हवन  करें |
  7. हवन होने के बाद किसी बालिका को यथाशक्ति दान दें |

7 मई 2023

कामाख्या शक्ति पीठ का दुर्लभ प्रसाद

  







असम के कामाख्या शक्तीपीठ को तंत्र साधनाओं का मूल माना जाता है । ऐसा माना जाता है की यहाँ देवी का योनि भाग गिरा था और इसे योनि पीठ या मातृ पीठ की मान्यता है ।

यहाँ का प्रमुख पर्व है अंबुवाची मेला जब प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।

चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं।

https://www.amarujala.com/spirituality/religion/kamakhya-mandir-ambubachi-mela



यदि आपको इस वस्त्र का एक धागा भी मिल जाये तो उसके निम्न लाभ माने जाते हैं :-

इसे ताबीज मे भरकर पहन लें तंत्र बाधा यानि किए कराये का असर नहीं होगा।
यह सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
इसे धरण करने से आकर्षण बढ़ता है।
आपसी प्रेम मे वृद्धि तथा गृह क्लेश मे कमी आती है ।
इसे साथ रखकर किसी भी कार्य या यात्रा मे जाएँ तो सफलता की संभावना बढ़ जाएगी ।
दुकान के गल्ले मे लाल कपड़े मे बांध कर रखें तो व्यापार मे अनुकूलता मिलेगी । 

3 मई 2023

महाकाली का बीज मन्त्र

  महाकाली का बीज मन्त्र

तंत्र साधना की मूल शक्ति है महाकाली ..

अगर आप साधना के क्षेत्र मे प्रवेश करना चाहते हैं तो महाकाली बीज मंत्र का जाप प्रारंभ करें ।

यदि आप साधना करने के लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं तो आपको छह माह के अंदर अनुकूलता मिलेगी और मार्ग मिलेगा ।


॥ क्रीं ॥
kreem


महाकाली का बीज मन्त्र है.
इसका जाप करने से महाकाली की कृपा प्राप्त होति है.
यथाशक्ति जाप करें.
चलते फिरते 24 घंटे जाप कर सकते हैं .

29 अप्रैल 2023

महाकाली का स्वयंसिद्ध मन्त्र

   






।। हुं हुं ह्रीं ह्रीं कालिके घोर दन्ष्ट्रे प्रचन्ड चन्ड नायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हुं फट ।।



  1. महाकाली का स्वयंसिद्ध मन्त्र है.
  2. तंत्र बाधा की काट , भूत बाधा आदि में लाभ प्रद है .
  3. नवरात्रि मे ज्यादा लाभदायक है . 
  4. १०८ या १००८ की संख्या में जाप करके इसका प्रयोग करें .
  5. इस मन्त्र का जाप करके रक्षा सूत्र बान्ध सकते हैं, उसके लिए सामने मौली धागा या लाल या काला धागा रखकर 108 या 1008 जाप करके अपने लिए या बच्चों के लिए रक्षा सूत्र बनाकर बांध सकते हैं ।  
  6. विभिन्न प्रकार के रक्षा घेरे के निर्माण मे भी सहायक सिद्ध मन्त्र है

26 अप्रैल 2023

महाकाली का रोगनाशक मंत्र

 

 

  

  


॥ ॐ ह्रीं क्रीं मे स्वाहा ॥


  • यह सर्वविध रोगों के प्रशमन में सहायक होता है.
  • इसका प्रभाव भी महामृत्युंजय मंत्र के समान प्रचंड है .
  • यथा शक्ति जाप करें.

आप इसे अपने परिवार के किसी सदस्य के स्वस्थ्य लाभ के लिए भी कर सकते हैं । 
इसके लिए आप नवरात्रि / शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को हाथ मे जल लेकर संकल्प कर लें :-

मैं (अपना नाम बोलें ), यथा शक्ति, यथा ज्ञान [यानि जितनी मेरी शक्ति है जितना मेरा ज्ञान है उतना ] अमुक (रोगी का नाम ) के स्वस्थ्य लाभ और रोग निवारण के लिए महाकाली रोग निवारण मंत्र के (जाप संख्या बोलें ) जाप का संकल्प लेता हूँ । महा माया महाकाली मेरी त्रुटियों को क्षमा करें और प्रसन्न होकर अमुक (रोगी का नाम ) को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें । 

  1. इसके बाद आप मंत्र जाप रुद्राक्ष की माला से सम्पन्न करें । 
  2. रोज निश्चित संख्या मे मंत्र जाप करें । 
  3. जाप काल मे समर्थ हों तो दीपक जला लें , आर्थिक दिक्कत हो तो बिना दीपक के भी कर सकते हैं । 
  4. जाप पूरा हो जाने के बाद माला को लाल कपड़े मे लपेट कर रख दें । कोशिश करें कि जाप पूरा होते तक आपके अलावा कोई उसका स्पर्श न करे । गलती से स्पर्श हो जाये तो कोई दिक्कत नहीं है । 
  5. ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करें ।
  6. आचार, विचार, व्यव्हार सात्विक और शुद्ध रखें ।  
  7. रात्रि 9 से सुबह 3 बजे तक का समय श्रेष्ठ है । न कर पाएँ तो जब आपको समय मिले तब कर लें । 
  8. पूर्णिमा तक आपको जाप करना है । 
  9. पूर्णिमा के मंत्र जाप के बाद उस माला को आप अपने लिए कर रहे हों तो स्वयं पहन लें । दूसरे के लिए कर रहे हों, तो रोगी को पहना दें । 
  10. एक महीने तक चौबीस घंटे उस माला को पहने रखें । 
  11. अगली पूर्णिमा को उस माला को नदी, तालाब, समुद्र मे प्रवाहित कर दें । 

20 मार्च 2023

महाकाली का रोगनाशक मंत्र

 

  

  


॥ ॐ ह्रीं क्रीं मे स्वाहा ॥


  • यह सर्वविध रोगों के प्रशमन में सहायक होता है.
  • इसका प्रभाव भी महामृत्युंजय मंत्र के समान प्रचंड है .
  • यथा शक्ति जाप करें.

आप इसे अपने परिवार के किसी सदस्य के स्वस्थ्य लाभ के लिए भी कर सकते हैं । 
इसके लिए आप नवरात्रि / शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को हाथ मे जल लेकर संकल्प कर लें :-

मैं (अपना नाम बोलें ), यथा शक्ति, यथा ज्ञान [यानि जितनी मेरी शक्ति है जितना मेरा ज्ञान है उतना ] अमुक (रोगी का नाम ) के स्वस्थ्य लाभ और रोग निवारण के लिए महाकाली रोग निवारण मंत्र के (जाप संख्या बोलें ) जाप का संकल्प लेता हूँ । महा माया महाकाली मेरी त्रुटियों को क्षमा करें और प्रसन्न होकर अमुक (रोगी का नाम ) को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें । 

  1. इसके बाद आप मंत्र जाप रुद्राक्ष की माला से सम्पन्न करें । 
  2. रोज निश्चित संख्या मे मंत्र जाप करें । 
  3. जाप काल मे समर्थ हों तो दीपक जला लें , आर्थिक दिक्कत हो तो बिना दीपक के भी कर सकते हैं । 
  4. जाप पूरा हो जाने के बाद माला को लाल कपड़े मे लपेट कर रख दें । कोशिश करें कि जाप पूरा होते तक आपके अलावा कोई उसका स्पर्श न करे । गलती से स्पर्श हो जाये तो कोई दिक्कत नहीं है । 
  5. ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करें ।
  6. आचार, विचार, व्यव्हार सात्विक और शुद्ध रखें ।  
  7. रात्रि 9 से सुबह 3 बजे तक का समय श्रेष्ठ है । न कर पाएँ तो जब आपको समय मिले तब कर लें । 
  8. पूर्णिमा तक आपको जाप करना है । 
  9. पूर्णिमा के मंत्र जाप के बाद उस माला को आप अपने लिए कर रहे हों तो स्वयं पहन लें । दूसरे के लिए कर रहे हों, तो रोगी को पहना दें । 
  10. एक महीने तक चौबीस घंटे उस माला को पहने रखें । 
  11. अगली पूर्णिमा को उस माला को नदी, तालाब, समुद्र मे प्रवाहित कर दें । 

19 मार्च 2023

भगवती महाकाली सहस्त्राक्षरी मंत्र

   

भगवती महाकाली सहस्त्राक्षरी मंत्र



ॐ क्रीं  क्रीँ  क्रीँ  ह्रीँ  ह्रीँ  हूं  हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ  क्रीँ  क्रीँ  ह्रीँ  ह्रीँ  हूं  हूं स्वाहा ।

शुचिजायामहापिशाचिनी,  दुष्टचित्तनिवारिणी,
क्रीँ कामेश्वरी,  वीँ हं वाराहिकेह्रीँ महामायेखं खः क्रोधाधिपे !
श्रीं  महालक्ष्यै ! सर्वहृदय रञ्जनी । वाग्वादिनी विधे त्रिपुरे ।
हंस्त्रिँ  हसकहल ह्रीँ  हस्त्रैँ  ॐ ह्रीँ  क्लीँ  मे  स्वाहा । 

ॐ ॐ ह्रीँ  ईं स्वाहा । 

दक्षिणकालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा ।

खड्गमुण्डधरेकुरुकुल्ले तारे, ॐ  ह्रीँ  नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन । पच पच ।  मथ मथ ।
फ्रेँ विमोहिनी सर्वदुष्टान मोहय मोहय ।
हयग्रीवे, सिँहवाहिनी, सिँहस्थे, अश्वारुढे, अश्वमुरिप विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून ये मां हिँसतु तान ग्रस ग्रस ।
महानीले, वलाकिनी, नीलपताके, क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे, संक्षोभिणी, उच्छिष्टचाण्डालिके, सर्वजगद वशमानय वशमानय ।
मातंगिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातंगिनी सर्ववशंकरी नमः स्वाहा ।

विस्फारिणी । कपालधरे ।  घोरे । घोरनादिनी । भूर शत्रून् विनाशिनी । उन्मादिनी ।
रोँ  रोँ रोँ  रीँ  ह्रीँ  श्रीँ  हसौः सौँ  वद वद क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ  क्रीँ  क्रीँ कति कति स्वाहा |

काहि काहि कालिके ।
शम्वरघातिनी, कामेश्वरी, कामिके, ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा ।

हृदयाये ॐ ह्रीँ  क्रीँ  मे स्वाहा ।

ठः ठः ठः क्रीँ  ह्रं  ह्रीँ  चामुण्डे हृदय जनाभिअसूनव ग्रस ग्रस दुष्टजनान् 
अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नतस्तनेविष्टंभकारिणि । विघाधिके ।  श्मशानवासिनी । कलय कलय । विकलय विकलय । कालग्राहिके । सिँहे । दक्षिणकालिके । अनिरुद्दये । ब्रूहि ब्रूहि । जगच्चित्रिरे । चमत्कारिणी । हं कालिके ।  करालिके । घोरे । कह कह । तडागे । तोये । गहने । कानने । शत्रुपक्षे । शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि । अम्बिके । तुभ्यं कल विकलायै । बलप्रमथनायै । योगमार्ग गच्छ गच्छ ।  निदर्शिके । देहिनि । दर्शनं देहि देहि । मर्दिनि महिषमर्दिन्यै । स्वाहा ।

रिपुन्दर्शने द र्शय दर्शय । सिँहपूरप्रवेशिनि । वीरकारिणि । क्रीँ  क्रीँ  क्रीँ  हूं  हूं ह्रीँ  ह्रीँ फट् स्वाहा ।

शक्तिरुपायै ।  रोँ  वा गणपायै  । रोँ  रोँ  रोँ व्यामोहिनि । यन्त्रनिके । महाकायायै ।  प्रकटवदनायै । लोलजिह्वायै । मुण्डमालिनि । महाकालरसिकायै । नमो नमः ।

ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः ।

शत्रुविग्रहकलहान्त्रिपुरभोगिन्यै । विषज्वालामालिनी । तन्त्रनिके । मेधप्रभे । शवावतंसे । हंसिके । कालि कपालिनि । कुल्ले कुरुकुल्ले । चैतन्यप्रभे प्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ  ह्रीँ  रक्ष रक्ष । ज्वाला । प्रचण्ड । चण्डिके ।  शक्ति । मार्तण्ड ।  भैरवि ।  विप्रचित्तिके । विरोधिनि । आकर्णय आकर्णय । पिशिते । पिशितप्रिये । नमो नमः ।

खः खः खः मर्दय मर्दय । शत्रून् ठः ठः ठः । कालिकायै नमो नमः ।

ब्राम्हयै नमो नमः ।
माहेश्वर्यै नमो नमः ।
कौमार्यै नमो नमः ।
वैष्णव्यै नमो नमः ।
वाराह्यै नमो नमः ।
इन्द्राण्यै नमो नमः ।
चामुण्डायै नमो नमः ।
अपराजितायै नमो नमः ।
नारसिँहिकायै नमो नमः ।

कालि । महाकालिके । अनिरुध्दके । सरस्वति फट् स्वाहा ।

पाहि पाहि ललाटं । भल्लाटनी । अस्त्रीकले । जीववहे । वाचं रक्ष रक्ष । परविद्या क्षोभय क्षोभय । आकर्षय आकर्षय । कट कट । अमुकान मोहय मोहय  महामोहिनिके । चीरसिध्दके । कृष्णरुपिणी । अंजनसिद्धके ।  स्तम्भिनि । मोहिनि । मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।।


आप इसका उच्चारण यहाँ सुन सकते हैं :-

नवार्ण मंत्र

   

नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र है ।.


कलयुग में देवी चंडिका और भगवान गणेश को सहज ही प्रसन्न होने वाला माना गया है इसलिए नवार्ण मंत्र का जाप करके आप साधना के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ सकते हैं।


नवार्ण मंत्र


।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।


इसमे तीन बीज मंत्र हैं जो क्रमशः महासरस्वती महालक्ष्मी और महाकाली के बीजमन्त्र हैं । इसलिए सभी मनोकामनाओं के लिए इसे जप सकते हैं ।


बहुत ज्यादा विधि विधान नहीं जानते हो तो आप केवल अपने सामने दीपक जलाकर मंत्र जाप कर सकते हैं ।

मंत्र जाप की संख्या अपनी क्षमता के अनुसार निर्धारित कर लें कम से कम 108 बार मंत्र जाप करना चाहिए ।

महाकाली का स्वयंसिद्ध मन्त्र

   






।। हुं हुं ह्रीं ह्रीं कालिके घोर दन्ष्ट्रे प्रचन्ड चन्ड नायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हुं फट ।।



  1. महाकाली का स्वयंसिद्ध मन्त्र है.
  2. तंत्र बाधा की काट , भूत बाधा आदि में लाभ प्रद है .
  3. नवरात्रि मे ज्यादा लाभदायक है . 
  4. १०८ या १००८ की संख्या में जाप करके इसका प्रयोग करें .
  5. इस मन्त्र का जाप करके रक्षा सूत्र बान्ध सकते हैं, उसके लिए सामने मौली धागा या लाल या काला धागा रखकर 108 या 1008 जाप करके अपने लिए या बच्चों के लिए रक्षा सूत्र बनाकर बांध सकते हैं ।  
  6. विभिन्न प्रकार के रक्षा घेरे के निर्माण मे भी सहायक सिद्ध मन्त्र है



22 जनवरी 2023

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्

     


यह एक अत्यंत मधुर तथा गीत के रूप मे रचित देवी स्तुति है । इसके पाठ से आपको अत्यंत आनंद और सुखद अनुभूति होगी । 


महिषासुरमर्दिनि   स्तोत्रम् 

 

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते,

गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।

भगवति हे शितिकंठ कुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

 

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,

त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।

दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

 

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते,

शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।

मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

 

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड  गजाधिपते

रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।

निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

 

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते

चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।

दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

 

 अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे

त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।

दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

 

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।

शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

 

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके

कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।

कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

 

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते

झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

 

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते

श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते ।

सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

 

सहित महाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते

विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते ।

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

 

अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते

त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।

अयि सुदतीजन लालस मानस मोहन मन्मथराजसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

 

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते

सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।

अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

 

करमुरलीरव वीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते

मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जित शैल निकुञ्जगते ।

निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

 

कटितट पीत दुकूल विचित्र मयुख तिरस्कृत चन्द्ररुचे

प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चन्द्ररुचे

जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

 

विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैकनुते

कृत सुर तारक सङ्गर तारक सङ्गर तारक सूनुसुते ।

सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजातरते ।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

 

पद कमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

अयि कमले कमला निलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।

तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

 

कनक लसत्कल सिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

भजति स किं न शची कुच कुम्भतटी परिरम्भ सुखानुभवम् ।

तव चरणं शरणं करवाणि नतामर वाणि निवासि शिवम्

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

 

तव विमलेन्दु कुलं वदनेन्दु मलं सकलं ननु कूलयते

किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

 

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

 

 


20 जनवरी 2023

नवरात्रि : अखंड ज्योति तथा दुर्गा पूजन की सरल विधि

  

नवरात्रि : अखंड ज्योति तथा दुर्गा पूजन की सरल विधि

 

यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा पूजन नहीं जानते । 

जो साधक हैं वे प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर विस्तृत पूजन क्षमतानुसार सम्पन्न करें . 

 

यह पूजन आप देवी के चित्रमूर्ति या यंत्र के सामने कर सकते हैं । 

यदि आपके पास इनमे से कुछ भी नही तो आप शिवलिंगरत्न या रुद्राक्ष पर भी पूजन कर सकते हैं । 

अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार घी या तेल का दीपक जलाये। धुप अगरबत्ती जलाये।

 

अगर अखंड दीपक जलाना चाहते हैं तो बड़ा दीपक और लंबी बत्ती रखें । इसे बुझने से बचाने के लिए काँच की चिमनी का प्रयोग कर सकते हैं । पूजा करते समय आपका मुंह उत्तर या पूर्व की ओर देखता हुआ हो तो बेहतर है । दीपक की लौ को उत्तर या पूर्व की ओर रखें ।

 

बैठने के लिए लाल या काले कम्बल या मोटे कपडे का आसन हो।

जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग कर सकते हैं।

 

इसके अलावा आपको निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी :-

एक बड़ा पीतल,तांबा,मिट्टी का कलश,

जल पात्र,

हल्दी, कुंकुमचन्दन, अष्टगंध,

अक्षत(बिना टूटे चावल),

पुष्प ,

फल,

मिठाई / प्रसाद .

 

अगर यह सामग्री नहीं है या नहीं ले सकते हैं तो अपने मन में देवी को इन सामग्रियों का समर्पण करने की भावना रखते हुए अर्थात मन से उनको समर्पित करते हुए मानसिक पूजन करे । 

 

सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं है तो ब्रह्माण्ड के समस्त गुरु मंडल का स्मरण करे या जगद्गुरु भगवान् शिव का ध्यान कर लें ।

 

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।

 

श्री गणेश का स्मरण करे

 

ॐ श्री गणेशाय नमः।

 

भैरव बाबा का स्मरण करें

ॐ भ्रं भैरवाय नमः।

 

शिव शक्ति का स्मरण करें

ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः।

 

चमच से चार बार बाए हाथ से दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए। एक मन्त्र के बाद एक बार पानी पीना है।

 

ॐ आत्मतत्वाय स्वाहा । 

ॐ विद्या तत्वाय स्वाहा । 

ॐ शिव तत्वाय स्वाहा । 

ॐ सर्व तत्वाय स्वाहा । 

 

गुरु सभी पूजन का आधार है इसलिए उनके लिए पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे। नमः बोलकर सामग्री को छोड़ते हैं।

 

ॐ श्री गुरुभ्यो नमः

ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः

ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः

 

हम पृथ्वी के ऊपर बैठकर पूजन कर रहे हैं इसलिए उनको प्रणाम करके उनकी अनुमति मांग के पूजन प्रारंभ किया जाता है जिसे पृथ्वी पूजन कहते हैं।

 

अपने आसन को उठाकर उसके नीचे कुमकुम से एक त्रिकोण बना दें उसे प्रणाम करें और निम्नलिखित मंत्र पढ़े और पुष्प अक्षत अर्पण करे।

 

ॐ पृथ्वी देव्यै नमः । 

 

देह न्यास :-

 

किसी भी पूजन को संपन्न करने से पहले संबंधित देवी या देवता को अपने शरीर में स्थापित होने और रक्षा करने के लिए प्रार्थना की जाती है इसके निमित्त तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे। इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप करते रहे।

 

ॐ दुँ दुर्गायै नमः ।

 

कलश स्थापना :-

कलश को अमृत की स्थापना का प्रतीक माना जाता है। हमें जीवित रहने के लिए अमृत तत्व की आवश्यकता होती है। जो भी भोजन हम ग्रहण करते हैं उसका सार या अमृत जिसे आज वैज्ञानिक भाषा में विटामिन और प्रोटीन कहा जाता है वह जब तक हमारा शरीर ग्रहण न कर ले तब तक हम जीवित नहीं रह सकते। कलश की स्थापना करने का भाव यही है कि हम समस्त प्रकार के अमृत तत्व को अपने पास स्थापित करके उसकी कृपा प्राप्त करें और वह अमृत तत्व हमारे जीवन में और हमारे शरीर में स्थापित हो ताकि हम स्वस्थ निरोगी रह सकें।

 

कलश स्थापना के लिए निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करके मन में उपरोक्त भावना रखकर कलश की स्थापना कर सकते हैं।

 

ॐ अमृत कलशाय नमः । 

उसपर पुष्प,अक्षत,पानी छिड़के । ऐसी भावना करें कि जितनी पवित्र नदियां हैं उनका अमृततुल्य जल कलश मे समाहित हो रहा है ।  

 

संकल्प :-(यह सिर्फ पहले दिन करना है )

संकल्प का तात्पर्य होता है कि आप महामाया के सामने एक प्रकार से एक एग्रीमेंट कर रहे हैं कि हे माता मैं आपके चरणों में अपने अमुक कार्य के लिए इतने मंत्र जाप का संकल्प लेता हूं और आप मुझे इस कार्य की सफलता का आशीर्वाद दें।

 

दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प (सिर्फ पहले दिन) करे।

“ मैं (अपना नाम और गोत्र 

[गोत्र न मालूम हो तो भारद्वाज गोत्र कह सकते हैं ]) 

इस नवरात्री पर्व मे

भगवती दुर्गा की कृपा प्राप्त होने हेतु /अपनी समस्या निवारण हेतु /अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु 

यहाँ समस्या या मनोकामना बोलेंगे ) 

यथा शक्ति (अगर रोज निश्चित संख्या मे नहीं कर सकते तो, अगर आप निश्चित संख्या में करेंगे तो वह संख्या यहाँ बोल सकते हैं जैसे 11 या 21 माला नित्य जाप )

करते हुए आपकी साधना नवरात्रि मे कर रहा हूँ। आप मेरी मनोकामना पूर्ण करें ”

इतना बोलकर जल छोड़े

(यह सिर्फ पहले दिन करना है )

 

अब गणेशजी का ध्यान करे

 

वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा

 

फिर भैरव जी का स्मरण करे

 

तीक्ष्ण दंष्ट्र  महाकाय कल्पांत दहनोपम 

भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि 

 

अब भगवती का ध्यान करे।

 

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते

 

इसके बाद आप अखंड ज्योति या दीपक जला सकते हैं ।

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

 

अब भगवती को अपने पूजा स्थल मे आमंत्रित करें :-

ॐ दुँ दुर्गा देव्यै नमः ध्यायामि आवाहयामि स्थापयामि

 

पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे ऐसी भावना करे की भगवती वहाँ साक्षात् उपस्थित है और आप उन्हें सारे उपचार अर्पण कर रहे है ।

 

भगवती का स्वागत कर पंचोपचार पूजन करे ,

अगर आपके पास सामग्री नहीं है तो मानसिक रूप से यानि उस वस्तु की भावना करते हुए पूजन करे।

 

ॐ दुँ दुर्गायै नमः गन्धम् समर्पयामि

(हल्दी कुमकुम चन्दन अष्टगंध अर्पण करे )

 

ॐ दुँ दुर्गायै नमः पुष्पम समर्पयामि

(फूल चढ़ाएं )

 

ॐ दुँ दुर्गायै नमः धूपं समर्पयामि

(अगरबत्ती या धुप दिखाएं )

 

ॐ दुँ दुर्गायै नमः दीपं समर्पयामि

(दीपक दिखाएँ )

 

ॐ दुँ दुर्गायै नमः नैवेद्यम समर्पयामि

(मिठाई दूध या फल अर्पण करे )

 

मां दुर्गा के 108 नाम से पूजन करें :-

·        आप इनके सामने नमः लगाकर फूल,चावल,कुमकुम,अष्टगंधहल्दी, सिंदूर जो आप चढ़ाना चाहें चढ़ा सकते हैं ।

·        यदि कुछ न हो तो पानी चढ़ा सकते हैं ।

·        वह भी न हो तो प्रणाम कर सकते हैं ।  

(  हर एक नाम मे  "-"  के बाद उस नाम का अर्थ लिखा हुआ है । आप केवल नाम का उच्चारण करके नमः लगा लेंगे । जैसे सती नमः साध्वी नमः ..... )

 

1.               सती- जो दक्ष यज्ञ की अग्नि में जल कर भी जीवित हो गई

2.             साध्वी- सरल

3.             भवप्रीता- भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली

4.             भवानी- ब्रह्मांड में निवास करने वाली

5.             भवमोचनी- भव अर्थात संसारिक बंधनों से मुक्त करने वाली

6.             आर्या- देवी

7.              दुर्गा- अपराजेय

8.             जया- विजयी

9.             आद्य- जो सृष्टि का प्रारंभ है

10.                       त्रिनेत्र- तीन नेत्रों से युक्त

11.            शूलधारिणी- शूल नामक अस्त्र को धारण करने वाली

12.                        पिनाकधारिणी- शिव का धनुष पिनाक को धारण करने वाली

13.                        चित्रा- सुरम्य

14.                       चण्डघण्टा- प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली

15.                        सुधा- अमृत की देवी

16.                       मन- मनन-शक्ति की स्वामिनी

17.          बुद्धि- सर्वज्ञाता

18.                       अहंकारा- अभिमान करने वाली

19.                       चित्तरूपा- वह जो हमारी सोच की स्वामिनी है

20.                     चिता- मृत्युशय्या

21.                        चिति- चेतना की स्वामिनी

22.                      सर्वमन्त्रमयी- सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली

23.                      सत्ता- सत-स्वरूपाजो सब से ऊपर है

24.                     सत्यानंद स्वरूपिणी- सत्य और आनंद के रूप वाली

25.                      अनन्ता- जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं

26.                     भाविनी- सबको उत्पन्न करने वाली

27.                      भाव्या- भावना एवं ध्यान करने योग्य

28.                     भव्या-जो भव्यता की स्वामिनी है

29.                     अभव्या- जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं

30.                     सदागति- हमेशा गतिशील या सक्रिय

31.                        शाम्भवी- शंभू की पत्नी

32.                      देवमाता- देवगण की माता

33.                      चिन्ता- चिन्ता की स्वामिनी

34.                     रत्नप्रिया- जो रत्नों को पसंद करती है उनकी की स्वामिनी है

35.                      सर्वविद्या- सभी प्रकार के ज्ञान की की स्वामिनी है

36.                     दक्षकन्या- प्रजापति दक्ष की बेटी

37.                      दक्षयज्ञविनाशिनी- दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली

38.                     अपर्णा- तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली

39.                     अनेकवर्णा- अनेक रंगों वाली

40.                    पाटला- लाल रंग वाली

41.                       पाटलावती- गुलाब के फूल

42.                     पट्टाम्बरपरीधाना- रेशमी वस्त्र पहनने वाली

43.                     कलामंजीरारंजिनी- पायल की ध्वनि से प्रसन्न रहने वाली

44.                     अमेय- जिसकी कोई सीमा नहीं

45.                     विक्रमा- असीम पराक्रमी

46.                     क्रूरा- कठोर

47.                      सुन्दरी- सुंदर रूप वाली

48.                     सुरसुन्दरी- अत्यंत सुंदर

49.                     वनदुर्गा- जंगलों की देवी

50.                     मातंगी- महाविद्या

51.                        मातंगमुनिपूजिता- ऋषि मतंगा द्वारा पूजनीय

52.                      ब्राह्मी- भगवान ब्रह्मा की शक्ति

53.                      माहेश्वरी- प्रभु शिव की शक्ति

54.                     इंद्री- इंद्र की शक्ति

55.                      कौमारी- किशोरी

56.                     वैष्णवी- भगवान विष्णु की शक्ति

57.                      चामुण्डा- चंडिका

58.                     वाराही- वराह पर सवार होने वाली

59.                     लक्ष्मी- ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी

60.                    पुरुषाकृति- वह जो पुरुष रूप भी धारण कर ले

61.                       विमिलौत्त्कार्शिनी- आनन्द प्रदान करने वाली

62.                     ज्ञाना- ज्ञान की स्वामिनी है

63.                     क्रिया- हर कार्य की स्वामिनी

64.                     नित्या- जो हमेशा रहे

65.                     बुद्धिदा- बुद्धि देने वाली

66.                     बहुला- विभिन्न रूपों वाली

67.                      बहुलप्रेमा- सर्व जन प्रिय

68.                     सर्ववाहनवाहना- सभी वाहन पर विराजमान होने वाली

69.                     निशुम्भशुम्भहननी- शुम्भनिशुम्भ का वध करने वाली

70.                     महिषासुरमर्दिनि- महिषासुर का वध करने वाली

71.          मधुकैटभहंत्री- मधु व कैटभ का नाश करने वाली

72.                      चण्डमुण्ड विनाशिनि- चंड और मुंड का नाश करने वाली

73.                      सर्वासुरविनाशा- सभी राक्षसों का नाश करने वाली

74.                      सर्वदानवघातिनी- सभी दानवों का नाश करने वाली

75.                      सर्वशास्त्रमयी- सभी शास्त्रों को अपने अंदर समाहित करने वाली

76.                      सत्या- जो सत्य के साथ है

77.                       सर्वास्त्रधारिणी- सभी प्रकार के अस्त्र या हथियारों को धारण करने वाली

78.                      अनेकशस्त्रहस्ता- कई शस्त्र हाथों मे रखने वाली

79.                      अनेकास्त्रधारिणी- अनेक अस्त्र या हथियारों को धारण करने वाली

80.                    कुमारी- जिसका स्वरूप कन्या जैसा है

81.                       एककन्या- कन्या जैसे स्वरूप वाली

82.                     कैशोरी- किशोरी जैसे स्वरूप वाली

83.                     युवती- युवा स्त्री जैसे स्वरूप वाली

84.                     यति- जो तपस्वीयों मे श्रेष्ठ है

85.                     अप्रौढा- जो कभी वृद्ध ना हो

86.                     प्रौढा- जो वृद्ध भी है

87.                      वृद्धमाता- जो वृद्ध माता जैसे स्वरूप वाली है

88.                     बलप्रदा- शक्ति देने वाली

89.                     महोदरी- ब्रह्मांड को संभालने वाली

90.                    मुक्तकेशी- खुले बाल वाली

91.                       घोररूपा- भयंकर रूप वाली

92.                     महाबला- अपार शक्ति वाली

93.                     अग्निज्वाला- आग की ज्वाला की तरह प्रचंड स्वरूप वाली

94.                     रौद्रमुखी- विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर स्वरूप वाली

95.                     कालरात्रि- जो काल रात्री नामक महाशक्ति है

96.                     तपस्विनी- तपस्या में लगी हुई

97.                      नारायणी- भगवान नारायण की शक्ति

98.                     भद्रकाली- काली का भयंकर रूप

99.                     विष्णुमाया- भगवान विष्णु की माया

100.                जलोदरी- जल में निवास करने वाली

101.                   शिवदूती- भगवान शिव की दूत

102.                 कराली- प्रचंड स्वरूपिणी

103.                 अनन्ता- जिसका ओर छोर नहीं है

104.                 परमेश्वरी- जो परम देवी है

105.                 कात्यायनी- महाविद्या कात्यायनी

106.                 सावित्री- देवी सावित्री स्वरूपिणी

107.                  प्रत्यक्षा- जो प्रत्यक्ष है

108.                 ब्रह्मवादिनी- ब्रह्मांड मे हर जगह वास करने वाली

 

अंत में एक आचमनी(चम्मच) जल चढ़ाये और प्रार्थना करें कि महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपा श्री दुर्गा जी मुझ पर कृपालु हों।

 

इसके बाद रुद्राक्ष माला से नवार्ण मन्त्र या दुर्गा मंत्र का यथाशक्ति या जो संख्या आपने निश्चित की है उतनी संख्या मे जाप करे ।

नवार्ण मंत्र :-

 

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे

(ऐम ह्रीम क्लीम चामुंडायै विच्चे ऐसा उच्चारण होगा )

[Aim Hreem Kleem Chamundaaye vichche ]

 

सदगुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी) के अनुसार इसके प्रारम्भ में प्रणव अर्थात ॐ लगाने की जरुरत नहीं है ।

दुर्गा मंत्र:-

ॐ ह्रींम दुं दुर्गायै नम:

[Om Hreem doom durgaaye namah ]

रोज एक ही संख्या में जाप करे।

एक माला जाप की संख्या 100 मानी जाती है । माला में 108 दाने होते हैं । शेष 8 मंत्रों को उच्चारण त्रुटि या अन्य गलतियों के निवारण के लिए छोड़ दिया जाता है ।

अपनी क्षमतानुसार 1/3/5/7/11/21/33/51 या 108  माला जाप करे।

 

जब जाप पूरा हो जाये तो अपने दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करे .

उसके बाद भगवती का थोड़ी देर तक आँखे बंद कर ध्यान करे और वहीँ 5 मिनट बैठे रहें।

अंत मे आसन को प्रणाम करके उठ जाएँ।

 

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