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13 जून 2023

नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र

    

नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र है ।.


कलयुग में देवी चंडिका और भगवान गणेश को सहज ही प्रसन्न होने वाला माना गया है इसलिए नवार्ण मंत्र का जाप करके आप साधना के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ सकते हैं।


नवार्ण मंत्र


।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।


इसमे तीन बीज मंत्र हैं जो क्रमशः महासरस्वती महालक्ष्मी और महाकाली के बीजमन्त्र हैं । इसलिए सभी मनोकामनाओं के लिए इसे जप सकते हैं ।


बहुत ज्यादा विधि विधान नहीं जानते हो तो आप केवल अपने सामने दीपक जलाकर मंत्र जाप कर सकते हैं ।

मंत्र जाप की संख्या अपनी क्षमता के अनुसार निर्धारित कर लें कम से कम 108 बार मंत्र जाप करना चाहिए ।

19 मार्च 2023

नवार्ण मंत्र

   

नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र है ।.


कलयुग में देवी चंडिका और भगवान गणेश को सहज ही प्रसन्न होने वाला माना गया है इसलिए नवार्ण मंत्र का जाप करके आप साधना के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ सकते हैं।


नवार्ण मंत्र


।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।


इसमे तीन बीज मंत्र हैं जो क्रमशः महासरस्वती महालक्ष्मी और महाकाली के बीजमन्त्र हैं । इसलिए सभी मनोकामनाओं के लिए इसे जप सकते हैं ।


बहुत ज्यादा विधि विधान नहीं जानते हो तो आप केवल अपने सामने दीपक जलाकर मंत्र जाप कर सकते हैं ।

मंत्र जाप की संख्या अपनी क्षमता के अनुसार निर्धारित कर लें कम से कम 108 बार मंत्र जाप करना चाहिए ।

22 जनवरी 2023

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्

     


यह एक अत्यंत मधुर तथा गीत के रूप मे रचित देवी स्तुति है । इसके पाठ से आपको अत्यंत आनंद और सुखद अनुभूति होगी । 


महिषासुरमर्दिनि   स्तोत्रम् 

 

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते,

गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।

भगवति हे शितिकंठ कुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

 

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,

त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।

दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

 

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते,

शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।

मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

 

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड  गजाधिपते

रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।

निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

 

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते

चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।

दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

 

 अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे

त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।

दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

 

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।

शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

 

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके

कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।

कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

 

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते

झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

 

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते

श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते ।

सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

 

सहित महाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते

विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते ।

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

 

अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते

त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।

अयि सुदतीजन लालस मानस मोहन मन्मथराजसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

 

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते

सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।

अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

 

करमुरलीरव वीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते

मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जित शैल निकुञ्जगते ।

निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

 

कटितट पीत दुकूल विचित्र मयुख तिरस्कृत चन्द्ररुचे

प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चन्द्ररुचे

जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

 

विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैकनुते

कृत सुर तारक सङ्गर तारक सङ्गर तारक सूनुसुते ।

सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजातरते ।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

 

पद कमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

अयि कमले कमला निलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।

तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

 

कनक लसत्कल सिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

भजति स किं न शची कुच कुम्भतटी परिरम्भ सुखानुभवम् ।

तव चरणं शरणं करवाणि नतामर वाणि निवासि शिवम्

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

 

तव विमलेन्दु कुलं वदनेन्दु मलं सकलं ननु कूलयते

किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

 

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

 

 


16 जनवरी 2023

नवार्ण मंत्र : सरल

  

नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र है ।.


कलयुग में देवी चंडिका और भगवान गणेश को सहज ही प्रसन्न होने वाला माना गया है इसलिए नवार्ण मंत्र का जाप करके आप साधना के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ सकते हैं।


नवार्ण मंत्र


।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।


इसमे तीन बीज मंत्र हैं जो क्रमशः महासरस्वती महालक्ष्मी और महाकाली के बीजमन्त्र हैं । इसलिए सभी मनोकामनाओं के लिए इसे जप सकते हैं ।


अपने सामने दीपक जलाकर मंत्र जाप करें ।

मंत्र जाप की संख्या अपनी क्षमता के अनुसार निर्धारित कर लें कम से कम 108 बार मंत्र जाप करना चाहिए ।

25 दिसंबर 2022

नवार्ण मंत्र

 


नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र है ।.


कलयुग में देवी चंडिका और भगवान गणेश को सहज ही प्रसन्न होने वाला माना गया है इसलिए नवार्ण मंत्र का जाप करके आप साधना के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ सकते हैं।


नवार्ण मंत्र


।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।


इसमे तीन बीज मंत्र हैं जो क्रमशः महासरस्वती महालक्ष्मी और महाकाली के बीजमन्त्र हैं । इसलिए सभी मनोकामनाओं के लिए इसे जप सकते हैं ।


अपने सामने दीपक जलाकर मंत्र जाप करें ।

मंत्र जाप की संख्या अपनी क्षमता के अनुसार निर्धारित कर लें कम से कम 108 बार मंत्र जाप करना चाहिए ।

15 अगस्त 2022

नवार्ण महामंत्र

    


नवार्ण महामंत्र 

नवार्ण महामंत्र 

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महादुर्गे नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके नवचंडी महामाये महामोहे महायोगे निद्रे जये मधुकैटभ विद्राविणि महिषासुर मर्दिनी धूम्रलोचन संहंत्री चंड मुंड विनाशिनी रक्त बीजान्तके निशुम्भ ध्वंसिनी शुम्भ दर्पघ्नी देवि अष्टादश बाहुके कपाल खट्वांग शूल खड्ग खेटक धारिणी छिन्न मस्तक धारिणी रुधिर मांस भोजिनी समस्त भूत प्रेतादी योग ध्वंसिनी ब्रह्मेंद्रादी स्तुते देवि माम रक्ष रक्ष मम शत्रून नाशय ह्रीं फट ह्वुं फट ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ||
  • यथाशक्ति जाप नित्य करें |
  • सर्वमनोकामना पूरक मन्त्र है |

29 जून 2022

तंत्र साधना की मूल शक्ति : महाकाली

  तंत्र साधना की मूल शक्ति है महाकाली ..


अगर आप साधना के क्षेत्र मे प्रवेश करना चाहते हैं तो महाकाली बीज मंत्र का जाप प्रारंभ करें । 

यदि आप साधना करने के लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं तो आपको छह माह के अंदर अनुकूलता मिलेगी और मार्ग मिलेगा । 




॥ क्रीं 
kreem


  • महाकाली का बीज मन्त्र है. 
  • इसका जाप करने से महाकाली की कृपा प्राप्त होती  है. 
  • यथाशक्ति जाप करें.
  • चलते फिरते 24 घंटे जाप कर सकते हैं .
  • अगर आप साधना के क्षेत्र मे आगे बढना चाहते हैं तो छह महीने साल भर तक इस मंत्र का जाप अनवरत करते रहें . महामाया आपको कोई न कोई मार्ग अवश्य प्रदान करेगी .... 

7 मार्च 2022

नवार्ण मंत्र के माध्यम से सतोपंथी दीक्षा

 



नवार्ण मंत्र को भगवती के चैतन्य स्वरूप को समाहित करने का सबसे प्रमुख माध्यम माना जाता है ।  उसी नवार्ण मंत्र के द्वारा दी जाने वाली सर्वोच्च दीक्षा को सतोपंथी दीक्षा कहा जाता है ।  सद्गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी ने अपने शिष्यों को अत्यंत दुर्लभ मंत्रों के माध्यम से सतोपंथी दीक्षा प्रदान की है जिसका ऑडियो सुनकर आप भी उस उर्जा का लाभ ले सकते हैं । 


जो साधक साधिका नवार्ण मंत्र का जाप करते हैं या अनुष्ठान करते हैं , यदि वे अपने अनुष्ठान के साथ-साथ नित्य इसे एक बार सुनते रहे तो उन्हें विशेष अनुभव प्राप्त होंगे और उनकी साधना में भी ज्यादा तीव्र गति से सफलता प्राप्त होगी ।




इस वीडियो को बार बार देखें और साथ ही यथा शक्ति नवार्ण मंत्र का जाप करें । 
आपको महामाया की तेजस्विता का अनुभव अवश्य होगा । 

19 जनवरी 2022

नवार्ण मन्त्र

 



॥ ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चै ॥



ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।

ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।

क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।

नवरात्री में नवार्ण मन्त्र का जाप इन तीनों देवियों की कृपा प्रदान करता है ।

6 अक्तूबर 2021

नवरात्रि हवन की सरल विधि

नवरात्रि हवन की सरल विधि:-

 

नवरात्रि मे आप चाहें तो रोज या फिर आखिरी मे हवन कर सकते हैं ।

यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा विधि विधान नहीं कर सकते हैं ।. जो साधक हैं या कर्मकाँड़ी हैं वे अपने गुरु से प्राप्त विधि विधान या प्रामाणिक ग्रंथों से विधि देखकर सम्पन्न करें ।। मेरी राय मे चंडी प्रकाशन, गीता प्रेस, चौखम्बा प्रकाशन, आदि से प्रकाशित ग्रंथों मे त्रुटियाँ काम रहती हैं ।. 

आवश्यक सामग्री :-

1. दशांग या हवन सामग्री , दुकान पर आपको मिल जाएगा .

2. घी ( अच्छा वाला लें , भले कम लें , पूजा वाला घी न लें क्योंकि वह ऐसी चीजों से बनता है जिसे आपको खाने से दुकानदार मना करता है तो ऐसी चीज आप देवी को कैसे अर्पित कर सकते हैं )

3. कपूर आग जलाने के लिए .

4. एक नारियल गोला या सूखा नारियल पूर्णाहुति के लिए ,

5. हवन कुंड या गोल बर्तन ।. 

 

हवनकुंड/ वेदी को साफ करें.

हवनकुंड न हो तो गोल बर्तन मे कर सकते हैं .

फर्श गरम हो जाता है इसलिए नीचे स्टैन्ड या ईंट , रेती रखें उसपर पात्र रखें.

कुंड मे लकड़ी जमा लें और उसके नीचे में कपूर रखकर जला दें.

हवनकुंड की अग्नि प्रज्जवलित हो जाए तो पहले घी की आहुतियां दी जाती हैं.

सात बार अग्नि देवता को आहुति दें और अपने हवन की पूर्णता की प्रार्थना करें

ॐ अग्नये स्वाहा

 

इन मंत्रों से शुद्ध घी की आहुति दें-

ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये न मम् ।

ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदं इन्द्राय न मम् ।

ॐ अग्नये स्वाहा । इदं अग्नये न मम ।

ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय न मम ।

ॐ भूः स्वाहा ।

 

उसके बाद हवन सामग्री से हवन करें .

नवग्रह मंत्र :-

ऊँ सूर्याय नमः स्वाहा

ऊँ चंद्रमसे नमः स्वाहा

ऊं भौमाय नमः स्वाहा

ऊँ बुधाय नमः स्वाहा

ऊँ गुरवे नमः स्वाहा

ऊँ शुक्राय नमः स्वाहा

ऊँ शनये नमः स्वाहा

ऊँ राहवे नमः स्वाहा

ऊँ केतवे नमः स्वाहा

गायत्री मंत्र :-

 

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।

 

ऊं गणेशाय नम: स्वाहा,

ऊं भैरवाय नम: स्वाहा,

ऊं गुं गुरुभ्यो नम: स्वाहा,

 

ऊं कुल देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ऊं स्थान देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ऊं वास्तु देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ऊं ग्राम देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ॐ सर्वेभ्यो गुरुभ्यो नमः स्वाहा ,

 

ऊं सरस्वती सहित ब्रह्माय नम: स्वाहा,

ऊं लक्ष्मी सहित विष्णुवे नम: स्वाहा,

ऊं शक्ति सहित शिवाय नम: स्वाहा

 

माता के नर्वाण मंत्र से 108 बार आहुतियां दे

 

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै स्वाहा

 

हवन के बाद नारियल के गोले में कलावा बांध लें. चाकू से उसके ऊपर के भाग को काट लें. उसके मुंह में घी, हवन सामग्री आदि डाल दें.

पूर्ण आहुति मंत्र पढ़ते हुए उसे हवनकुंड की अग्नि में रख दें.

पूर्णाहुति मंत्र-

ऊँ पूर्णमद: पूर्णम् इदम् पूर्णात पूर्णम उदिच्यते ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते ।।

 

इसका अर्थ है :-

वह पराशक्ति या महामाया पूर्ण है , उसके द्वारा उत्पन्न यह जगत भी पूर्ण हूँ , उस पूर्ण स्वरूप से पूर्ण निकालने पर भी वह पूर्ण ही रहता है ।

वही पूर्णता मुझे भी प्राप्त हो और मेरे कार्य , अभीष्ट मे पूर्णता मिले ....

 

इस मंत्र को कहते हुए पूर्ण आहुति देनी चाहिए.

उसके बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें,

फिर आरती करें.

अंत मे क्षमा प्रार्थना करें.

माताजी को समर्पित दक्षिण किसी गरीब महिला या कन्या को दान मे दें ।

 


5 अक्तूबर 2021

नवरात्री : दुर्गा पूजन की सरल विधि




नवरात्री : दुर्गा पूजन  की सरल विधि 

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यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा पूजन नहीं जानते । जो साधक हैं वे प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर विस्तृत पूजन क्षमतानुसार सम्पन्न करें 

यह पूजन आप देवी के चित्र मूर्ति या यंत्र के सामने कर सकते हैं यदि आपके पास इनमे से कुछ भी नही तो आप रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे .

अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार घी या तेल का दीपक जलाये। 

धुप अगरबत्ती जलाये। 

बैठने के लिए लाल या काले कम्बल या मोटे कपडे का आसन हो। 

जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग कर सकते हैं।  

इसके अलावा आपको निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी :-

एक कलश , जल पात्र ,हल्दी,कुंकुम , चन्दन,अष्टगंध, अक्षत(बिना टूटे चावल),  पुष्प ,फल,मिठाई . 

अगर यह सामग्री नहीं है या नहीं ले सकते हैं तो अपने मन में देवी को इन सामग्रियों का समर्पण करने की भावना रखते हुए अर्थात मन से उनको समर्पित करते हुए मानसिक पूजन करे



सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं है तो ब्रह्माण्ड के समस्त गुरु मंडल का स्मरण करे। 


ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।  


गणेश का स्मरण करे


ॐ श्री गणेशाय नमः।


भैरव बाबा का स्मरण करें 

ॐ भ्रं भैरवाय नमः। 


शिव शक्ति का स्मरण करें 

ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः।  


चमच से चार बार बाए हाथ से दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए।  एक मन्त्र के बाद एक बार पानी पीना है।  


ॐ आत्मतत्वाय स्वाहा 

ॐ विद्या तत्वाय स्वाहा 

ॐ शिव तत्वाय स्वाहा 

ॐ सर्व तत्वाय स्वाहा


उसके बाद पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे।  नमः बोलकर सामग्री को छोड़ते हैं।  


ॐ श्री गुरुभ्यो नमः 

ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः 

ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः


हम पृथ्वी के ऊपर बैठकर पूजन कर रहे हैं इसलिए उनको प्रणाम करके उनकी अनुमति मांग के पूजन प्रारंभ किया जाता है जिसे पृथ्वी पूजन कहते हैं।  

अपने आसन को उठाकर उसके नीचे कुमकुम से एक त्रिकोण बना दें उसे प्रणाम करें और निम्नलिखित मंत्र पढ़े और पुष्प अक्षत अर्पण करे।  

ॐ पृथ्वी देव्यै नमः


देह न्यास :-

किसी भी पूजन को संपन्न करने से पहले संबंधित देवी या देवता को अपने शरीर में स्थापित होने और रक्षा करने के लिए प्रार्थना की जाती है इसके निमित्त तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे।   इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप करते रहे।  


ॐ दुँ दुर्गायै नमः ।


कलश स्थापना :-


कलश को अमृत की स्थापना का प्रतीक माना जाता है।   हमें जीवित रहने के लिए अमृत तत्व की आवश्यकता होती है। जो भी भोजन हम ग्रहण करते हैं उसका सार या अमृत जिसे आज वैज्ञानिक भाषा में विटामिन और प्रोटीन कहा जाता है वह जब तक हमारा शरीर ग्रहण न कर ले तब तक हम जीवित नहीं रह सकते। कलश की स्थापना करने का भाव यही है कि हम समस्त प्रकार के अमृत तत्व को अपने पास स्थापित करके उसकी कृपा प्राप्त करें और वह अमृत तत्व हमारे जीवन में और हमारे शरीर में स्थापित हो ताकि हम स्वस्थ निरोगी रह सकें।  


कलश स्थापना के लिए आप संबंधित मंत्रों का उच्चारण भी कर सकते हैं या फिर केवल निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करके मन में उपरोक्त भावना रखकर कलश की स्थापना कर सकते हैं।  

ॐ अमृत कलशाय नमः


संकल्प :-(यह सिर्फ पहले दिन करना है )

संकल्प का तात्पर्य होता है कि आप महामाया के सामने एक प्रकार से एक एग्रीमेंट कर रहे हैं कि हे माता मैं आपके चरणों में अपने अमुक कार्य के लिए इतने मंत्र जाप का संकल्प लेता हूं और आप मुझे इस कार्य की सफलता का आशीर्वाद दें।  


दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प करे।  

“ मैं (अपना नाम और गोत्र ) इस नवरात्री पर्व मे भगवती दुर्गा की कृपा प्राप्त होने हेतु तथा अपनी समस्या निवारण हेतु या अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु ( यहाँ समस्या या मनोकामना बोलेंगे ) यथा शक्ति  (अगर आप निश्चित संख्या में करेंगे तो वह संख्या यहाँ बोल सकते हैं जैसे १०८  माला )साधना कर रहा हूँ।”

इतना बोलकर जल छोड़े

(यह सिर्फ पहले दिन करना है )



अब गणेशजी का ध्यान करे 

वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ 

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा

ॐ श्री गणेशाय नमः का 11 या 21 बार जाप करे


फिर भैरव जी का स्मरण करे 

तीक्ष्ण दंष्ट्र  महाकाय कल्पांत दहनोपम

भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि 

ॐ भं भैरवाय नमः


अब भगवती का ध्यान करे। 


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके 

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते


ॐ दुँ दुर्गा देव्यै नमः 

ध्यायामि आवाहयामि स्थापयामि

पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे ऐसी भावना करे की भगवती वहाँ साक्षात् उपस्थित है और आप उन्हें सारे उपचार अर्पण कर रहे है


भगवती का स्वागत कर पंचोपचार पूजन करे ,

अगर आपके पास सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे।  

ॐ दुँ दुर्गायै नमः गन्धम् समर्पयामि 

(हल्दी कुमकुम चन्दन अष्टगंध अर्पण करे )


ॐ दुँ दुर्गायै नमः पुष्पम समर्पयामि (फूल )


ॐ दुँ दुर्गायै नमः धूपं समर्पयामि(अगरबत्ती या धुप)


ॐ दुँ दुर्गायै नमः दीपं समर्पयामि(दीपक दिखाएँ )


ॐ दुँ दुर्गायै नमः नैवेद्यम समर्पयामि (मिठाई दूध या फल अर्पण करे )


अब भगवती के समक्ष कुछ स्तोत्र का पाठ करे।  सिद्ध कुंजिका स्तोत्र प्रकाशित किया है उसका पाठ भी कर सकते हैं , इसके अलावा श्री दुर्गा सप्तशती में से दुर्गा सप्तश्लोकी ,दुर्गा अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्र , तांत्रोक्त रात्रि सूक्तम ,देवी अथर्वशीर्ष, दुर्गा कवच ,अर्गला स्तोत्र,किलक स्तोत्र , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र ,दुर्गा द्वात्रिंशत् नाम स्तोत्र इन स्तोत्रों में से क्षमतानुसार  स्तोत्र का पाठ करे। 



यदि ऐसा न संभव हो तो आप दुर्गा जी के बत्तीस नाम से पुष्प अक्षत अर्पण करे। 

इसमें नमः बोलने के बाद पुष्प अक्षत अर्पित करें।  


1. ह्रीं दुर्गायै नमः 

2. ह्रीं दुर्गार्तिशमन्यै नमः 

3. ह्रीं दुर्गापद्विनिवारिण्यै नमः 

4. ह्रीं दुर्गमच्छेदिन्यै नमः 

5. ह्रीं दुर्गसाधिन्यै नमः 

6. ह्रीं दुर्गनाशिन्यै नमः 

7. ह्रीं दुर्गतोद्धारिण्यै नमः 

8. ह्रीं दुर्गनिहन्त्र्यै नमः 

9. ह्रीं दुर्गमापहायै नमः 

10. ह्रीं दुर्गमज्ञानदायै नमः 

11. ह्रीं दुर्गदैत्यलोदवानलायै नमः 

12. ह्रीं दुर्गमायै नमः 

13. ह्रीं दुर्गमालोकायै नमः 

14. ह्रीं दुर्गामात्मस्वरूपिण्यै नमः 

15. ह्रीं दुर्गमार्गप्रदायै नमः 

16. ह्रीं दुर्गमविद्यायै नमः 

17. ह्रीं दुर्गमाश्रितायै नमः 

18. ह्रीं दुर्गमज्ञानसंस्थानायै नमः 

19. ह्रीं दुर्गमध्यानभासिन्यै नमः 

20. ह्रीं दुर्गमोहायै नमः 

21. ह्रीं दुर्गमगायै नमः 

22. ह्रीं दुर्गमार्थस्वरूपिण्यै नमः 

23. ह्रीं दुर्गमासुरसंहन्त्र्यै नमः 

24. ह्रीं दुर्गमायुधधारिण्यै नमः 

25. ह्रीं दुर्गमांग्यै नमः 

26. ह्रीं दुर्गमतायै नमः 

27. ह्रीं दुर्गम्यायै नमः 

28 . ह्रीं दुर्गमेश्वर्यै नमः 

29 . ह्रीं दुर्गभीमायै नमः 

30 . ह्रीं दुर्गभामायै नमः 

31 . ह्रीं दुर्गभायै नमः 

32 . ह्रीं दुर्गदारिण्यै नमः


फिर अंत में एक आचमनी जल चढ़ाये और प्रार्थना करें कि महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपा  श्री दुर्गा जी मुझ पर कृपालु हों।  


रुद्राक्ष माला से नवार्ण मन्त्र का यथाशक्ति जाप करे 

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे 

(ऐम ह्रीम क्लीम चामुंडायै विच्चे ऐसा उच्चारण है, गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अनुसार इसके प्रारम्भ में प्रणव अर्थात ॐ लगाने की जरुरत नहीं है )


या फिर रुद्राक्ष माला से दुर्गा अष्टाक्षरी  का यथाशक्ति जाप करे

ॐ ह्रींम दुं दुर्गायै नम: 


रोज एक ही संख्या में जाप करे। 

एक माला जाप की संख्या 100 मानी जाती है चाहे 

माला में 108 दाने ही क्यों ना हो।  

अपनी क्षमतानुसार १,३,५,७, ९,११,२१, ५१,१०१, माला जाप करे। 

अंत में कान पकड़कर किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करे . 


भगवती का थोड़ी देर तक आँखे बंद कर ध्यान करे और वहीँ बैठे रहें।  

अंत में नमश्चण्डिकायै का 11 बार जाप करे और आसन को प्रणाम करके उठ जाएँ।