5 अक्टूबर 2021

नवरात्री : दुर्गा पूजन की सरल विधि




नवरात्री : दुर्गा पूजन  की सरल विधि 

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यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा पूजन नहीं जानते । जो साधक हैं वे प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर विस्तृत पूजन क्षमतानुसार सम्पन्न करें 

यह पूजन आप देवी के चित्र मूर्ति या यंत्र के सामने कर सकते हैं यदि आपके पास इनमे से कुछ भी नही तो आप रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे .

अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार घी या तेल का दीपक जलाये। 

धुप अगरबत्ती जलाये। 

बैठने के लिए लाल या काले कम्बल या मोटे कपडे का आसन हो। 

जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग कर सकते हैं।  

इसके अलावा आपको निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी :-

एक कलश , जल पात्र ,हल्दी,कुंकुम , चन्दन,अष्टगंध, अक्षत(बिना टूटे चावल),  पुष्प ,फल,मिठाई . 

अगर यह सामग्री नहीं है या नहीं ले सकते हैं तो अपने मन में देवी को इन सामग्रियों का समर्पण करने की भावना रखते हुए अर्थात मन से उनको समर्पित करते हुए मानसिक पूजन करे



सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं है तो ब्रह्माण्ड के समस्त गुरु मंडल का स्मरण करे। 


ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।  


गणेश का स्मरण करे


ॐ श्री गणेशाय नमः।


भैरव बाबा का स्मरण करें 

ॐ भ्रं भैरवाय नमः। 


शिव शक्ति का स्मरण करें 

ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः।  


चमच से चार बार बाए हाथ से दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए।  एक मन्त्र के बाद एक बार पानी पीना है।  


ॐ आत्मतत्वाय स्वाहा 

ॐ विद्या तत्वाय स्वाहा 

ॐ शिव तत्वाय स्वाहा 

ॐ सर्व तत्वाय स्वाहा


उसके बाद पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे।  नमः बोलकर सामग्री को छोड़ते हैं।  


ॐ श्री गुरुभ्यो नमः 

ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः 

ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः


हम पृथ्वी के ऊपर बैठकर पूजन कर रहे हैं इसलिए उनको प्रणाम करके उनकी अनुमति मांग के पूजन प्रारंभ किया जाता है जिसे पृथ्वी पूजन कहते हैं।  

अपने आसन को उठाकर उसके नीचे कुमकुम से एक त्रिकोण बना दें उसे प्रणाम करें और निम्नलिखित मंत्र पढ़े और पुष्प अक्षत अर्पण करे।  

ॐ पृथ्वी देव्यै नमः


देह न्यास :-

किसी भी पूजन को संपन्न करने से पहले संबंधित देवी या देवता को अपने शरीर में स्थापित होने और रक्षा करने के लिए प्रार्थना की जाती है इसके निमित्त तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे।   इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप करते रहे।  


ॐ दुँ दुर्गायै नमः ।


कलश स्थापना :-


कलश को अमृत की स्थापना का प्रतीक माना जाता है।   हमें जीवित रहने के लिए अमृत तत्व की आवश्यकता होती है। जो भी भोजन हम ग्रहण करते हैं उसका सार या अमृत जिसे आज वैज्ञानिक भाषा में विटामिन और प्रोटीन कहा जाता है वह जब तक हमारा शरीर ग्रहण न कर ले तब तक हम जीवित नहीं रह सकते। कलश की स्थापना करने का भाव यही है कि हम समस्त प्रकार के अमृत तत्व को अपने पास स्थापित करके उसकी कृपा प्राप्त करें और वह अमृत तत्व हमारे जीवन में और हमारे शरीर में स्थापित हो ताकि हम स्वस्थ निरोगी रह सकें।  


कलश स्थापना के लिए आप संबंधित मंत्रों का उच्चारण भी कर सकते हैं या फिर केवल निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करके मन में उपरोक्त भावना रखकर कलश की स्थापना कर सकते हैं।  

ॐ अमृत कलशाय नमः


संकल्प :-(यह सिर्फ पहले दिन करना है )

संकल्प का तात्पर्य होता है कि आप महामाया के सामने एक प्रकार से एक एग्रीमेंट कर रहे हैं कि हे माता मैं आपके चरणों में अपने अमुक कार्य के लिए इतने मंत्र जाप का संकल्प लेता हूं और आप मुझे इस कार्य की सफलता का आशीर्वाद दें।  


दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प करे।  

“ मैं (अपना नाम और गोत्र ) इस नवरात्री पर्व मे भगवती दुर्गा की कृपा प्राप्त होने हेतु तथा अपनी समस्या निवारण हेतु या अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु ( यहाँ समस्या या मनोकामना बोलेंगे ) यथा शक्ति  (अगर आप निश्चित संख्या में करेंगे तो वह संख्या यहाँ बोल सकते हैं जैसे १०८  माला )साधना कर रहा हूँ।”

इतना बोलकर जल छोड़े

(यह सिर्फ पहले दिन करना है )



अब गणेशजी का ध्यान करे 

वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ 

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा

ॐ श्री गणेशाय नमः का 11 या 21 बार जाप करे


फिर भैरव जी का स्मरण करे 

तीक्ष्ण दंष्ट्र  महाकाय कल्पांत दहनोपम

भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि 

ॐ भं भैरवाय नमः


अब भगवती का ध्यान करे। 


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके 

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते


ॐ दुँ दुर्गा देव्यै नमः 

ध्यायामि आवाहयामि स्थापयामि

पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे ऐसी भावना करे की भगवती वहाँ साक्षात् उपस्थित है और आप उन्हें सारे उपचार अर्पण कर रहे है


भगवती का स्वागत कर पंचोपचार पूजन करे ,

अगर आपके पास सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे।  

ॐ दुँ दुर्गायै नमः गन्धम् समर्पयामि 

(हल्दी कुमकुम चन्दन अष्टगंध अर्पण करे )


ॐ दुँ दुर्गायै नमः पुष्पम समर्पयामि (फूल )


ॐ दुँ दुर्गायै नमः धूपं समर्पयामि(अगरबत्ती या धुप)


ॐ दुँ दुर्गायै नमः दीपं समर्पयामि(दीपक दिखाएँ )


ॐ दुँ दुर्गायै नमः नैवेद्यम समर्पयामि (मिठाई दूध या फल अर्पण करे )


अब भगवती के समक्ष कुछ स्तोत्र का पाठ करे।  सिद्ध कुंजिका स्तोत्र प्रकाशित किया है उसका पाठ भी कर सकते हैं , इसके अलावा श्री दुर्गा सप्तशती में से दुर्गा सप्तश्लोकी ,दुर्गा अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्र , तांत्रोक्त रात्रि सूक्तम ,देवी अथर्वशीर्ष, दुर्गा कवच ,अर्गला स्तोत्र,किलक स्तोत्र , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र ,दुर्गा द्वात्रिंशत् नाम स्तोत्र इन स्तोत्रों में से क्षमतानुसार  स्तोत्र का पाठ करे। 



यदि ऐसा न संभव हो तो आप दुर्गा जी के बत्तीस नाम से पुष्प अक्षत अर्पण करे। 

इसमें नमः बोलने के बाद पुष्प अक्षत अर्पित करें।  


1. ह्रीं दुर्गायै नमः 

2. ह्रीं दुर्गार्तिशमन्यै नमः 

3. ह्रीं दुर्गापद्विनिवारिण्यै नमः 

4. ह्रीं दुर्गमच्छेदिन्यै नमः 

5. ह्रीं दुर्गसाधिन्यै नमः 

6. ह्रीं दुर्गनाशिन्यै नमः 

7. ह्रीं दुर्गतोद्धारिण्यै नमः 

8. ह्रीं दुर्गनिहन्त्र्यै नमः 

9. ह्रीं दुर्गमापहायै नमः 

10. ह्रीं दुर्गमज्ञानदायै नमः 

11. ह्रीं दुर्गदैत्यलोदवानलायै नमः 

12. ह्रीं दुर्गमायै नमः 

13. ह्रीं दुर्गमालोकायै नमः 

14. ह्रीं दुर्गामात्मस्वरूपिण्यै नमः 

15. ह्रीं दुर्गमार्गप्रदायै नमः 

16. ह्रीं दुर्गमविद्यायै नमः 

17. ह्रीं दुर्गमाश्रितायै नमः 

18. ह्रीं दुर्गमज्ञानसंस्थानायै नमः 

19. ह्रीं दुर्गमध्यानभासिन्यै नमः 

20. ह्रीं दुर्गमोहायै नमः 

21. ह्रीं दुर्गमगायै नमः 

22. ह्रीं दुर्गमार्थस्वरूपिण्यै नमः 

23. ह्रीं दुर्गमासुरसंहन्त्र्यै नमः 

24. ह्रीं दुर्गमायुधधारिण्यै नमः 

25. ह्रीं दुर्गमांग्यै नमः 

26. ह्रीं दुर्गमतायै नमः 

27. ह्रीं दुर्गम्यायै नमः 

28 . ह्रीं दुर्गमेश्वर्यै नमः 

29 . ह्रीं दुर्गभीमायै नमः 

30 . ह्रीं दुर्गभामायै नमः 

31 . ह्रीं दुर्गभायै नमः 

32 . ह्रीं दुर्गदारिण्यै नमः


फिर अंत में एक आचमनी जल चढ़ाये और प्रार्थना करें कि महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपा  श्री दुर्गा जी मुझ पर कृपालु हों।  


रुद्राक्ष माला से नवार्ण मन्त्र का यथाशक्ति जाप करे 

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे 

(ऐम ह्रीम क्लीम चामुंडायै विच्चे ऐसा उच्चारण है, गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अनुसार इसके प्रारम्भ में प्रणव अर्थात ॐ लगाने की जरुरत नहीं है )


या फिर रुद्राक्ष माला से दुर्गा अष्टाक्षरी  का यथाशक्ति जाप करे

ॐ ह्रींम दुं दुर्गायै नम: 


रोज एक ही संख्या में जाप करे। 

एक माला जाप की संख्या 100 मानी जाती है चाहे 

माला में 108 दाने ही क्यों ना हो।  

अपनी क्षमतानुसार १,३,५,७, ९,११,२१, ५१,१०१, माला जाप करे। 

अंत में कान पकड़कर किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करे . 


भगवती का थोड़ी देर तक आँखे बंद कर ध्यान करे और वहीँ बैठे रहें।  

अंत में नमश्चण्डिकायै का 11 बार जाप करे और आसन को प्रणाम करके उठ जाएँ।  


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