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23 जुलाई 2023

सर्व बाधा निवारक : सदाशिव रक्षा कवच

   सर्व बाधा निवारक : सदाशिव रक्षा कवच 




[प्रातः स्मरणीय परम श्रद्धेय सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी]

ॐ नमो भगवते सदाशिवाय सकलतत्वात्मकाय सर्वमन्त्रस्वरूपाय सर्वयन्त्राधिष्ठिताय सर्वतन्त्रस्वरूपाय सर्वतत्वविदूराय ब्रह्मरुद्रावतारिणे नीलकण्ठाय पार्वतीमनोहरप्रियाय सोमसूर्याग्निलोचनाय भस्मोद्धूलितविग्रहाय महामणि मुकुटधारणाय माणिक्यभूषणाय सृष्टिस्थितिप्रलयकाल- रौद्रावताराय दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकालभेदनाय मूलधारैकनिलयाय तत्वातीताय गङ्गाधराय सर्वदेवाधिदेवाय षडाश्रयाय वेदान्तसाराय त्रिवर्गसाधनाय अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायकाय अनन्त वासुकि तक्षक- कर्कोटक शङ्ख कुलिक- पद्म महापद्मेति- अष्टमहानागकुलभूषणाय प्रणवस्वरूपाय चिदाकाशाय आकाश दिक् स्वरूपाय ग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलङ्करहिताय सकललोकैककर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंहर्त्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकलवेदान्तपारगाय सकललोकैकवरप्रदाय सकललोकैकशङ्कराय सकलदुरितार्तिभञ्जनाय सकलजगदभयङ्कराय शशाङ्कशेखराय शाश्वतनिजवासाय निराकाराय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्मदाय निश्चिन्ताय निरहङ्काराय निरङ्कुशाय निष्कलङ्काय निर्गुणाय  निष्कामाय निरूपप्लवाय निरुपद्रवाय निरवद्याय निरन्तराय निष्कारणाय निरातङ्काय निष्प्रपञ्चाय निस्सङ्गाय निर्द्वन्द्वाय निराधाराय नीरागाय निष्क्रोधाय निर्लोपाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय निष्क्रियाय निस्तुलाय निःसंशयाय निरञ्जनाय निरुपमविभवाय नित्यशुद्धबुद्धमुक्तपरिपूर्ण- सच्चिदानन्दाद्वयाय परमशान्तस्वरूपाय परमशान्तप्रकाशाय तेजोरूपाय तेजोमयाय तेजो‌sधिपतये जय जय रुद्र महारुद्र महारौद्र भद्रावतार महाभैरव कालभैरव कल्पान्तभैरव कपालमालाधर खट्वाङ्ग चर्मखड्गधर पाशाङ्कुश- डमरूशूल चापबाणगदाशक्तिभिन्दिपाल- तोमर मुसल मुद्गर पाश परिघ- भुशुण्डी शतघ्नी चक्राद्यायुधभीषणाकार- सहस्रमुखदंष्ट्राकरालवदन विकटाट्टहास विस्फारित ब्रह्माण्डमण्डल नागेन्द्रकुण्डल नागेन्द्रहार नागेन्द्रवलय नागेन्द्रचर्मधर नागेन्द्रनिकेतन मृत्युञ्जय त्र्यम्बक त्रिपुरान्तक विश्वरूप विरूपाक्ष विश्वेश्वर वृषभवाहन विषविभूषण विश्वतोमुख सर्वतोमुख माम# रक्ष रक्ष ज्वलज्वल प्रज्वल प्रज्वल महामृत्युभयं शमय शमय अपमृत्युभयं नाशय नाशय रोगभयम् उत्सादयोत्सादय विषसर्पभयं शमय शमय चोरान् मारय मारय मम# शत्रून् उच्चाटयोच्चाटय त्रिशूलेन विदारय विदारय कुठारेण भिन्धि भिन्धि खड्गेन छिन्द्दि छिन्द्दि खट्वाङ्गेन विपोधय विपोधय मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय बाणैः सन्ताडय सन्ताडय यक्ष रक्षांसि भीषय भीषय अशेष भूतान् विद्रावय विद्रावय कूष्माण्डभूतवेतालमारीगण- ब्रह्मराक्षसगणान् सन्त्रासय सन्त्रासय मम# अभयं कुरु कुरु मम# पापं शोधय शोधय वित्रस्तं माम्# आश्वासय आश्वासय नरकमहाभयान् माम्# उद्धर उद्धर अमृतकटाक्षवीक्षणेन माम# आलोकय आलोकय सञ्जीवय सञ्जीवय क्षुत्तृष्णार्तं माम्# आप्यायय आप्यायय दुःखातुरं माम्# आनन्दय आनन्दय शिवकवचेन माम्# आच्छादय आच्छादय हर हर मृत्युञ्जय त्र्यम्बक सदाशिव परमशिव नमस्ते नमस्ते नमः ॥
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विधि :-
  1. भस्म से  माथे पर  तीन लाइन वाला तिलक त्रिपुंड बनायें.
  2. हाथ में पानी लेकर भगवान  शिव से रक्षा की प्रार्थना करें , जल छोड़ दें.
  3. एक माला गुरुमंत्र की करें . अगर गुरु न बनाया हो तो भगवान् शिव को गुरु मानकर "ॐ नमः शिवाय" मन्त्र का जाप कर लें.
  4. यदि अपने लिए पाठ नहीं कर रहे हैं तो # वाले जगह पर उसका नाम लें जिसके लिए पाठ कर रहे हैं |
  5. रोगमुक्ति, बधामुक्ति, मनोकामना के लिए ११ पाठ ११ दिनों तक करें . अनुकूलता प्राप्त होगी.
  6. रक्षा कवच बनाने के लिए एक पंचमुखी रुद्राक्ष ले लें. उसको दूध,दही,घी,शक्कर,शहद,से स्नान करा लें |अब इसे गंगाजल से स्नान कराकर बेलपत्र चढ़ाएं | ५१ पाठ शिवरात्रि/होली/अष्टमी/अमावस्या/नवरात्री/दीपावली/दशहरा/ग्रहण कि रात्रि करें पाठ के बाद इसे धारण कर लें |


22 जुलाई 2023

शिवलिंगम

 शिवलिंगम 


भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।


मिट्टी से बनाए जाने वाले शिवलिंग को पार्थिव शिवलिंग कहा जाता है और सामान्यतः इसका निर्माण करने के कुछ समय के बाद इसे विसर्जित कर दिया जाता है क्योंकि मिट्टी से बना होने के कारण यह जल्दी टूट जाता है । सामान्यतः श्रावण मास में या शिवरात्रि के अवसर पर पार्थिव शिवलिंग के पूजन का विधान रखा जाता है । इसके दौरान भक्त अपनी क्षमता के अनुसार एक सौ आठ, एक हजार आठ जैसी संख्या में शिवलिंग का निर्माण करते हैं । कई बार सामूहिक रूप से भी ऐसे आयोजन किए जाते हैं । पार्थिव शिवलिंग को बनाकर उसका पूजन करने और जल में विसर्जित कर देने से मनोकामना की पूर्ति होती है ऐसा माना जाता है ।


इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,


इसके बारे में कहा गया है कि,


मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः,

मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः

रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥


अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से,

स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से,

मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग के पूजन से

तथा

बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल

रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है।

आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।



शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग जिन्हें बाणलिंग भी कहते हैं । अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं।


यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं ।


शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।

20 जुलाई 2023

रुद्राष्टकम

रुद्राष्टकम


नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम्।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥


निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।

करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥


तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥


चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥



प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।

त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥


कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥


न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।

न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।

जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥



रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥




आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं


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19 जुलाई 2023

पाशुपतास्त्र स्तोत्र

पाशुपतास्त्र स्तोत्र 



श्रावण मास मे इस स्तोत्र का नियमित पाठ कर सकते है ..

इसका पाठ एक बार से ज्यादा न करें क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जा उत्पन्न करने वाला स्तोत्र है । 


विनियोग :-


हाथ मे पानी लेकर विनियोग पढे और जल जमीन पर छोड़ें .... 

 

ॐ  अस्य श्री पाशुपतास्त्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छन्द: श्रीं बीजं हुं शक्ति: श्री पशुपतीनाथ देवता मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य सर्वग्रह बाधा शत्रू बाधा रोग बाधा अनिष्ट बाधा निवारणार्थं मम सर्व कार्य सिद्धर्थे  [यहाँ अपनी इच्छा बोलें ] जपे विनियोग: ॥ 


कर न्यास :-


ॐ अंगुष्ठाभ्यां  नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )

श्ल तर्जनीभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )


ईं मध्यमाभ्यां नम: (अंगूठा और मध्यमा यानि बीच वाली  उंगली को आपस मे मिलाएं )


प अनामिकाभ्यां नम: (अंगूठा और अनामिका यानि तीसरी  उंगली को आपस मे मिलाएं )


शु: कनिष्ठिकाभ्यां नम: (अंगूठा और कनिष्ठिका यानि छोटी उंगली को आपस मे मिलाएं )


हुं फट करतल करपृष्ठाभ्यां नम: (दोनों हाथों को आपस मे रगड़ दें )


हृदयादि न्यास :-

अपने हाथ से संबंधित अंगों को स्पर्श कर लें । 


ॐ हृदयाय नम: 

श्ल शिरसे स्वाहा 

ईं शिखायै वषट 

प कवचाय हुं 

शु: नेत्रत्रयाय वौषट 

हुं फट अस्त्राय फट 


ध्यान 

मध्यान्ह अर्कसमप्रभं शशिधरं  भीम अट्टहासोज्वलं 

त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रू  स्फुरन्मूर्धजम 

हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुदगरमसिं शक्तिं दधानं विभुं 

दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररुपं स्मरेत !! 


अर्थ :- जो मध्यान्ह कालीन अर्थात दोपहर के सूर्य के समान कांति से युक्त है , चंद्रमा को धारण किये हुये हैं । जिनका भयंकर अट्टहास अत्यंत प्रचंड है । उनके तीन नेत्र है तथा शरीर मे सर्पों का आभूषण सुशोभित हो रहा है । 

उनके ललाट मे स्थित तीसरे नेत्र से निकलती अग्नि की शिखा से श्मश्रू तथा केश दैदिप्यमान हो रहे है । 

जो अपने कर कमलो मे त्रिशूल , मुदगर , तलवार , तथा शक्ति धारण किये हुये है ऐसे दंष्ट्रा से भयानक चार मुख वाले दिव्य स्वरुपधारी सर्वव्यापक महादेव का मैं दिव्यास्त्र के रूप मे स्मरण करता हूँ ।  


अब नीचे दिये हुये स्तोत्र का पाठ करे .. 


हर बार फट की आवाज के साथ आप शिवलिंग पर बेलपत्र पुष्प या चावल समर्पित कर सकते हैं । 

 

यदि किसी सामग्री की व्यवस्था ना हो पाए तो हर बार फट की आवाज के साथ एक ताली बजाएं । 


पाशुपतास्त्र 

ॐ नमो भगवते महापाशुपताय अतुलबलवीर्य पराक्रमाय त्रिपंचनयनाय नानारुपाय नाना प्रहरणोद्यताय सर्वांगरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशानवेतालप्रियाय सर्वविघ्न निकृंतनरताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकंपिने असंख्यवक्त्र-भुजपादाय तस्मिन सिद्धाय वेतालवित्रासने शाकिनीक्षोभजनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय सूर्यसोमाग्निनेत्राय विष्णुकवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदंडवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलजिव्हाय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षयकारिणे ! 

ॐ कृष्णपिंगलाय फट ! 

ॐ हूंकारास्त्राय फट ! 

ॐ वज्रहस्ताय फट ! 

ॐ शक्तये फट ! 

ॐ दंडाय फट ! 

ॐ यमाय फट ! 

ॐ खडगाय फट ! 

ॐ निऋताय फट ! 

ॐ वरुणाय फट ! 

ॐ वज्राय फट ! 

ॐ पाशाय फट ! 

ॐ ध्वजाय फट ! 

ॐ अंकुशाय फट ! 

ॐ गदायै फट ! 

ॐ कुबेराय फट ! 

ॐ त्रिशूलाय फट ! 

ॐ मुदगराय फट ! 

ॐ चक्राय फट ! 

ॐ पद्माय फट ! 

ॐ नागास्त्राय फट ! 

ॐ ईशानाय फट ! 

ॐ खेटकास्त्राय फट ! 

ॐ मुंडाय फट ! 

ॐ मुंडास्त्राय फट ! 

ॐ कंकालास्त्राय फट ! 

ॐ पिच्छिकास्त्राय फट ! 

ॐ क्षुरिकास्त्राय फट ! 

ॐ ब्रह्मास्त्राय फट ! 

ॐ शक्त्यास्त्राय फट ! 

ॐ गणास्त्राय फट ! 

ॐ सिद्धास्त्राय फट ! 

ॐ पिलिपिच्छास्त्राय फट ! 

ॐ गंधर्वास्त्राय फट ! 

ॐ पूर्वास्त्राय फट ! 

ॐ दक्षिणास्त्राय फट ! 

ॐ वामास्त्राय फट ! 

ॐ पश्चिमास्त्राय फट ! 

ॐ मंत्रास्त्राय फट  ! 

ॐ शाकिनि अस्त्राय फट ! 

ॐ योगिनी अस्त्राय फट ! 

ॐ दंडास्त्राय फट ! 

ॐ महादंडास्त्राय फट ! 

ॐ नमो अस्त्राय फट ! 

ॐ शिवास्त्राय फट ! 

ॐ ईशानास्त्राय फट ! 

ॐ पुरुषास्त्राय फट ! 

ॐ अघोरास्त्राय फट ! 

ॐ सद्योजातास्त्राय फट ! 

ॐ हृदयास्त्राय फट ! 

ॐ महास्त्राय फट ! 

ॐ गरुडास्त्राय फट ! 

ॐ राक्षसास्त्राय फट ! 

ॐ दानवास्त्राय फट ! 

ॐ क्षौं नरसिंहास्त्राय फट ! 

ॐ त्वष्ट्र अस्त्राय फट ! 

ॐ सर्वास्त्राय फट ! 

ॐ न: फट !
ॐ व: फट ! 

ॐ प: फट ! 

ॐ फ: फट ! 

ॐ म: फट ! 

ॐ श्री: फट ! 

ॐ पें फट ! 

ॐ भू: फट ! 

ॐ भुव: फट ! 

ॐ स्व: फट ! 

ॐ मह: फट ! 

ॐ जन: फट ! 

ॐ तप: फट ! 

ॐ सत्यं फट ! 

ॐ सर्व लोक फट ! 

ॐ  सर्व पाताल फट ! 

ॐ सर्व तत्त्व फट ! 

ॐ सर्व प्राण फट ! 

ॐ सर्व नाडी फट ! 

ॐ सर्व कारण फट ! 

ॐ सर्व देव फट ! 

ॐ ह्रीम फट ! 

ॐ श्रीं फट ! 

ॐ ह्रूं फट ! 

ॐ स्त्रूं फट ! 

ॐ स्वां फट ! 

ॐ लां फट ! 

ॐ वैराग्यस्त्राय फट ! 

ॐ मायास्त्राय फट ! 

ॐ कामास्त्राय फट ! 

ॐ क्षेत्रपालास्त्राय फट ! 

ॐ हुंकारास्त्राय फट ! 

ॐ भास्करास्त्राय फट ! 

ॐ चंद्रास्त्राय फट ! 

ॐ विघ्नेश्वरास्त्राय फट ! 

ॐ गौ: गां फट ! 

ॐ ख्रों ख्रौं फट ! 

ॐ हौं हों फट ! 

ॐ भ्रामय भ्रामय फट ! 

ॐ संतापय संतापय फट ! 

ॐ छादय छादय फट ! 

ॐ उन्मूलय उन्मूलय फट ! 

ॐ त्रासय त्रासय फट ! 

ॐ संजीवय संजीवय फट ! 

ॐ विद्रावय विद्रावय फट ! 

ॐ सर्वदुरितं नाशय नाशय फट ! 

ॐ श्लीं पशुं हुं फट स्वाहा !


अंत मे एक नींबू काटकर शिवलिंग पर निचोड़ कर अर्पित कर दें ।

दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें ।

और कहें "श्री निखिलेश्वरानंद चरणार्पणम अस्तु" ॥  

18 जुलाई 2023

महामृत्युंजय स्तोत्र

महामृत्युंजय स्तोत्र

मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र” मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है । 

इसका आप नित्य पाठ कर सकते हैं । 


ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकंठमुमापतिम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १ ॥


नीलकंठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ २ ॥


नीलकंठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रदम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ३ ॥


वामदॆवं महादॆवं लॊकनाथं जगद्गुरुम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ४ ॥


दॆवदॆवं जगन्नाथं दॆवॆशं वृषभध्वजम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ५ ॥

गंगाधरं महादॆवं सर्पाभरणभूषितम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ६ ॥


त्र्यक्षं चतुर्भुजं शांतं जटामुकुटधारणम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ७ ॥


भस्मॊद्धूलितसर्वांगं नागाभरणभूषितम्‌ ।

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ८ ॥


अनंतमव्ययं शांतं अक्षमालाधरं हरम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ९ ॥


आनंदं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १० ॥


अर्धनारीश्वरं दॆवं पार्वतीप्राणनायकम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ११ ॥


प्रलयस्थितिकर्तारं आदिकर्तारमीश्वरम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १२ ॥


व्यॊमकॆशं विरूपाक्षं चंद्रार्द्ध कृतशॆखरम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १३ ॥


गंगाधरं शशिधरं शंकरं शूलपाणिनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १४ ॥


अनाथं परमानंदं कैवल्यपददायिनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १५ ॥


स्वर्गापवर्ग दातारं सृष्टिस्थित्यांतकारिणम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १६ ॥


कल्पायुर्द्दॆहि मॆ पुण्यं यावदायुररॊगताम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १७ ॥


शिवॆशानां महादॆवं वामदॆवं सदाशिवम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १८ ॥


उत्पत्ति स्थितिसंहार कर्तारमीश्वरं गुरुम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १९ ॥


फलश्रुति

मार्कंडॆय कृतं स्तॊत्रं य: पठॆत्‌ शिवसन्निधौ । 

तस्य मृत्युभयं नास्ति न अग्निचॊरभयं क्वचित्‌ ॥ २० ॥


शतावृतं प्रकर्तव्यं संकटॆ कष्टनाशनम्‌ । 

शुचिर्भूत्वा पठॆत्‌ स्तॊत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम्‌ ॥ २१ ॥


मृत्युंजय महादॆव त्राहि मां शरणागतम्‌ । 

जन्ममृत्यु जरारॊगै: पीडितं कर्मबंधनै: ॥ २२ ॥


तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्व च्चित्तॊऽहं सदा मृड । 

इति विज्ञाप्य दॆवॆशं त्र्यंबकाख्यममं जपॆत्‌ ॥ २३ ॥


नम: शिवाय सांबाय हरयॆ परमात्मनॆ । 

प्रणतक्लॆशनाशाय यॊगिनां पतयॆ नम: ॥ २४ ॥



॥ इति श्री मार्कंडॆयपुराणॆ महा मृत्युंजय स्तॊत्रं संपूर्णम्‌ ॥


17 जुलाई 2023

अघोरेश्वर महादेव की साधना

     



अघोरमंत्र
ॐ नमः शिवाय महादेवाय नीलकंठाय आदि रुद्राय अघोरमंत्राय अघोर रुद्राय अघोर भद्राय सर्वभयहराय मम सर्वकार्यफल प्रदाय हन हनाय ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ टं टं टं टं टं घ्रीं घ्रीं घ्रीं घ्रीं घ्रीं हर हराय सर्व अघोररुपाय त्र्यम्बकाय विरुपाक्षाय ॐ हौं हः हीं हः ग्रं ग्रं ग्रं हां हीं हूं हैं हौं हः क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ नमः शिवाय अघोरप्रलयप्रचंड रुद्राय अपरिमितवीरविक्रमाय अघोररुद्रमंत्राय सर्वग्रह उचचाटनाय सर्वजनवशीकरणाय सर्वतोमुख मां रक्ष रक्ष शीघ्रं हूं फट् स्वाहा ।
ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ हां हीं हूं हैं हौं हः स्वर्गमृत्यु पाताल त्रिभुवन संच्चरित देव ग्रहाणां दानव ग्रहाणां ब्रह्मराक्षस ग्रहाणां सर्ववातग्रहाणां सर्व वेताल ग्रहाणां शाकिनी ग्रहाणां डाकिनी ग्रहाणां सर्व भूत ग्रहाणां कमिनी ग्रहाणां सर्व पिंड ग्रहाणां सर्व दोष ग्रहाणां सर्वपस्मारग्रहाणां हन हन हन भक्षय भक्षय भक्षय विरूपाक्षाय दह दह दह हूं फट् स्वाहा ॥




  • अघोरेश्वर महादेव की साधना है | कोई नियम विधि बंधन नहीं | उन्मुक्त होने का प्रारंभ .....
  • क्रोध और काम दोनों से बचें .
  • यदि शरीर में ज्यादा गर्मी का आभास हो तो रात्रिकाल में एक कप दूध में आधा चम्मच घी डालकर पियें .

16 जुलाई 2023

भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र

    


भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र :-  

॥ ओम साम्ब सदाशिवाय नम: ॥ 

  1. सवा लाख मन्त्र का एक पुरस्चरण होगा.
  2. शिवलिंग सामने रखकर साधना करें.
  3. समस्त प्रकार की मनोकामना पूर्ती के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
  4. किसी अनुचित अनैतिक इच्छा से न करें गंभीर  नुक्सान हो सकता है. 
  5.  

बिल्वपत्र समर्पण मंत्र

 बिल्वपत्र समर्पण मंत्र 

मेरे आराध्य जगतगुरु दक्षिणामूर्ति देवाधिदेव महादेव के पूजन में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है बिल्वपत्र का समर्पण।

बिल्वपत्र या बेलपत्र को समर्पित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले 108 स्तुतियों को आप शिव पूजन के लिए प्रयोग कर सकते हैं ।

 



त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् ।

त्रिजन्म पापसंहारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१॥

 

त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः ।

तव पूजां करिष्यामि बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२॥


सर्व त्रैलोक्य कर्तारं सर्व त्रैलोक्य पालनम् ।

सर्व त्रैलोक्य हर्तारं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥३॥


नागाधिराज वलयं नाग हारेण भूषितम् ।

नाग कुण्डल संयुक्तं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥४॥


अक्षमालाधरं रुद्रं पार्वती प्रिय वल्लभम् ।

चन्द्रशेखरमीशानं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥५॥


त्रिलोचनं दशभुजं दुर्गा देहार्ध धारिणम् ।

विभूत्यभ्यर्चितं देवं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥६॥


त्रिशूल धारिणं देवं नागाभरण सुन्दरम् ।

चन्द्रशेखरमीशानं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥७॥


गङ्गाधर अम्बिकानाथं फणि कुण्डल मण्डितम् ।

कालकालं गिरीशं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥८॥


शुद्ध स्फटिक सङ्काशं शितिकण्ठं कृपानिधिम् ।

सर्वेश्वरं सदा शान्तं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥९॥


सच्चिदानन्दरूपं च परानन्दमयं शिवम् ।

वागीश्वरं चिदाकाशं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१०॥


शिपिविष्टं सहस्राक्षं दुंदुभ्यश्च निषंगीणम ।

हिरण्यबाहुं सेनान्यं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥११॥


अरुणं वामनं तारं वास्तव्यं चैव वास्तवम् ।

ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१२॥



हरिकेशं सनन्दीशं उच्चैर्घोषं सनातनम् ।

अघोर रूपकं कर्मम बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१३॥


पूर्वजावरजं याम्यं सूक्ष्मं तस्कर नायकम् ।

नीलकण्ठं जघन्यं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१४॥


सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं च वरूधिनम् I

महासेनं महावीरं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१५॥


कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यञ्च महारथम् ।

तौर्यातौर्यं च देव्यं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१६॥


दशकर्णं ललाटाक्षं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम् ।

अशेष पाप संहारं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१७॥


नीलकण्ठं जगद्वन्द्यं दीनानाथं महेश्वरम् ।

महापाप हरं शंभूम बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१८॥


चूडामणी कृतविभुं वलयीकृत वासुकिम् ।

कैलास निलयम भीमं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१९॥


कर्पूर कुन्द धवलं नरकार्णव तारकम् ।

करुणामृत सिन्धुं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२०॥


महादेवं महात्मानं भुजङ्गाधिप कङ्कणम् ।

महापाप हरं देवं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२१॥


भूतेशं खण्डपरशुं वामदेवं पिनाकिनम् ।

वामे शक्तिधरं श्रेष्ठं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२२॥ 


कालेक्षणं विरूपाक्षं श्रीकण्ठं भक्तवत्सलम् ।

नीललोहित खट्वाङ्गं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२३॥


कैलासवासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरान्तकम् ।

वृषाङ्कं वृषभारूढं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२४॥


सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धूलित विग्रहम् ।

मृत्युञ्जयं लोकनाथं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२५॥


दारिद्र्य दुःख हरणं रविचन्द्रानलेक्षणम् ।

मृगपाणिं चन्द्रमौलिम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२६॥


सर्वलोकमयाकारं सर्वलोकैक साक्षिणम् ।

निर्मलं निर्गुणाकारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२७॥


सर्व तत्त्वात्मकं साम्बं सर्वतत्त्वविदूरकम् ।

सर्व तत्त्व स्वरूपं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२८॥


सर्व लोक गुरुं स्थाणुं सर्वलोक वरप्रदम् ।

सर्व लोकैक नेत्रं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ २९॥


मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गं परात्मकम् ।

कमला प्रिय पूज्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३०॥


तेजोमयं महाभीमं उमेशं भस्मलेपनम् ।

भव रोग विनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३१॥


स्वर्गापवर्ग फलदं रघुनाथ वरप्रदम् ।

नगराज सुताकान्तं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३२॥


मञ्जीरपाद युगलं शुभ लक्षण लक्षितम् ।

फणिराज विराजं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३३॥


निरामयं निराधारं निस्सङ्गं निष्प्रपञ्चकम् ।

तेजोरूपं महारौद्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३४॥


सर्व लोकैक पितरं सर्व लोकैक मातरम् ।

सर्व लोकैक नाथं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३५॥


चित्राम्बरं निराभासं वृषभेश्वर वाहनम् ।

नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३६॥


रत्नकञ्चुक रत्नेशं रत्नकुण्डल मण्डितम् ।

नवरत्नकिरीटं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३७॥


दिव्य रत्नाङ्गुली स्वर्णं कण्ठाभरण भूषितम् ।

नानारत्न मणिमयं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३८॥


रत्नाङ्गुलीय विलसत कर शाखा नखप्रभम् ।

भक्त मानस गेहं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥ ३९॥


वामाङ्ग भाग विलसद अंबिका वीक्षणप्रियम् ।

पुण्डरीकनिभाक्षं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४०॥


सम्पूर्ण कामदं सौख्यं भक्तेष्ट फलकारणम् ।

सौभाग्यदं हितकरं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४१॥


नानाशास्त्र गुणोपेतं स्फुरन्मङ्गल विग्रहम् ।

विद्या विभेद रहितं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४२॥


अप्रमेय गुणाधारं वेदकृद्रूप विग्रहम् ।

धर्माधर्म प्रवृत्तं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४३॥


गौरी विलास सदनं जीव जीवपितामहम् ।

कल्पान्त भैरवं शुभ्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४४॥


सुखदं सुख नाशं च दुःखदं दुःखनाशनम् ।

दुःखावतारं भद्रं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४५॥


सुखरूपं रूपनाशं सर्वधर्मफलप्रदम् ।

अतीन्द्रियं महामायं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४६॥


सर्वपक्षि मृगाकारं सर्वपक्षि मृगाधिपम् ।

सर्वपक्षि मृगाधारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४७॥


जीवाध्यक्षं जीववन्द्यं जीवजीवनरक्षकम् ।

जीवकृज्जीवहरणं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४८॥


विश्वात्मानं विश्ववन्द्यं वज्रात्मा वज्रहस्तकम् ।

वज्रेशं वज्रभूषं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४९॥


गणाधिपं गणाध्यक्षं प्रलयानलनाशकम् ।

जितेन्द्रियं वीरभद्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५०॥


त्र्यम्बकं मृडं शूरं अरिषड्वर्गनाशनम् ।

दिगम्बरं क्षोभनाशं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५१॥


कुन्देन्दु शङ्ख धवलं भगनेत्रभिदुज्ज्वलम् ।

कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५२॥


कम्बुग्रीवं कम्बुकण्ठं धैर्यदं धैर्यवर्धकम् ।

शार्दूल चर्मवसनं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५३॥


जगदुत्पत्ति हेतुं च जगत्प्रलय कारणम् ।

पूर्णानन्द स्वरूपं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५४॥


सर्गकेशं महत्तेजं पुण्यश्रवणकीर्तनम् ।

ब्रह्माण्डनायकं तारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५५॥


मन्दार मूल निलयं मन्दार कुसुम प्रियम् ।

बृन्दारक प्रियतरं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥५६॥


महेन्द्रियं महाबाहुं विश्वासपरिपूरकम् ।

सुलभासुलभं लभ्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५७॥


बीजाधारं बीजरूपं निर्बीजं बीजवृद्धिदम् ।

परेशं बीजनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५८॥


युगाकारं युगाधीशं युगकृद्युगनाशनम् ।

परेशं बीज नाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५९॥


धूर्जटिं पिङ्गलजटं जटामण्डलमण्डितम् ।

कर्पूरगौरं गौरीशं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६०॥


सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुङ्गवम् ।

योगदं योगिनां सिंहं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६१॥


उत्तमानुत्तमं तत्त्वं अन्धकासुरसूदनम् ।

भक्त कल्पद्रुमस्तोमं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६२॥


विचित्र माल्य वसनं दिव्य चन्दन चर्चितम् ।

विष्णु ब्रह्मादि वन्द्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६३॥


कुमारं पितरं देवं स्थितचन्द्रकलानिधिम् ।

ब्रह्म शत्रुं जगन्मित्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६४॥


लावण्य मधुराकारं करुणारस वारिधिम् ।

भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६५॥


जटाधरं पावकाक्षं वृक्षेशं भूमिनायकम् ।

कामदं सर्वदागम्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६६॥


शिवं शान्तं उमानाथं महाध्यानपरायणम् ।

ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६७॥


वासुक्युरगहारं च लोकानुग्रह कारणम् ।

ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६८॥


शशाङ्क धारिणं भर्गं सर्वलोकैक शङ्करम् I

शुद्धं च शाश्वतं नित्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६९॥


शरणागत दीनार्त परित्राण परायणम् ।

गम्भीरं च वषट्कारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७०॥


भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानसम् I

करणं कारणं जिष्णुं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७१॥


क्षेत्रज्ञं क्षेत्रपालञ्च परार्धैकप्रयोजनम् ।

व्योमकेशं भीमवेषं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७२॥


भवज्ञं करुणोपेतं चोरिष्टं यमनाशनम् ।

हिरण्यगर्भं हेमाङ्गं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७३॥


दक्षं चामुण्ड जनकं मोक्षदं मोक्षनायकम् ।

हिरण्यदं हेमरूपं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७४॥


महाश्मशान निलयं प्रच्छन्नस्फटिकप्रभम् ।

वेदास्यं वेदरूपं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७५॥


स्थिरं धर्मं उमानाथं ब्रह्मण्यं चाश्रयं विभुम् I

जगन्निवासं प्रमथम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७६॥


रुद्राक्ष मालाभरणं रुद्राक्ष प्रिय वत्सलम् ।

रुद्राक्ष भक्त संस्तोभम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७७॥


फणीन्द्र विलसत्कण्ठं भुजङ्गाभरण प्रियम् I

दक्षाध्वर विनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७८॥


नागेन्द्र विलसत्कर्णं महीन्द्रवलयावृतम् ।

मुनिवन्द्यं मुनिश्रेष्ठम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७९॥


मृगेन्द्र चर्म वसनं मुनीनामेक जीवनम् ।

सर्वदेवादि पूज्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८०॥


निधनेशं धनाधीशं अपमृत्यु विनाशनम् ।

लिङ्गमूर्तिम लिङ्गात्मं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८१॥


भक्त कल्याणदं व्यस्तं वेदवेदान्त संस्तुतम् ।

कल्पकृत्कल्पनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८२॥


घोरपातक दावाग्निं जन्मकर्म विवर्जितम् ।

कपाल माला भरणं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८३॥


मातङ्ग चर्म वसनं विरदम पवित्र धारकम् ।

विष्णुक्रान्तम अनन्तं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८४॥


यज्ञ कर्म फलाध्यक्षं यज्ञ विघ्न विनाशकम् ।

यज्ञेशं यज्ञभोक्तारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८५॥


कालाधीशं त्रिकालज्ञं दुष्ट निग्रह कारकम् ।

योगि मानस पूज्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८६॥


महोन्नत महाकायं महोदर महाभुजम् ।

महावक्त्रं महावृद्धं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८७॥


सुनेत्रं सुललाटं च सर्वभीम पराक्रमम् ।

महेश्वरं शिवतरं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् II८८॥


समस्त जगदाधारं समस्त गुण सागरम् ।

सत्यं सत्यगुणोपेतं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ८९॥


माघ कृष्ण चतुर्दश्यां पूजार्थं च जगद्गुरोः ।

दुर्लभं सर्वदेवानां बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९०॥


तत्रापि दुर्लभं मन्येत् नभोमासेन्दुवासरे ।

प्रदोष काले पूजायां बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९१॥


तडागम धननिक्षेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम् ।

कोटिकन्यामहादानं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९२॥


दर्शनं बिल्व वृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।

अघोर पाप संहारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् II९३॥


तुलसी बिल्व निर्गुण्डी जम्बीरामलकं तथा ।

पञ्चबिल्वमिति ख्यातं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९४॥


अखण्ड बिल्वपत्रैश्च पूजयेन्नन्दिकेश्वरम् ।

मुच्यते सर्वपापेभ्यः बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९५॥


सालङ्कृता शतावृत्ता कन्याकोटिसहस्रकम् ।

साम्राज्य पृथ्वीदानं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९६॥


अश्व कोटि दानानि अश्वमेधसहस्रकम् ।

सवत्सधेनु दानानि बिल्वपत्रम शिवार्पणम् II९७॥


चतुर्वेद सहस्राणि भारतादिपुराणकम् ।

साम्राज्य पृथ्वीदानं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९८॥


सर्वरत्नमयं मेरुं काञ्चनं दिव्यवस्त्रकम् ।

तुलाभागं शतावर्तं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९९॥


अष्टोत्तरशतं बिल्वं योऽर्चयेल्लिङ्गमस्तके ।

अथर्वोक्तं वदेद्यस्तु बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१००॥


काशीक्षेत्र निवासं च कालभैरव दर्शनम् ।

अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१०१॥


अष्टोत्तर शतश्लोकैः स्तोत्राद्यैः पूजयेद्यथा ।

त्रिसन्ध्यं मोक्षमाप्नोति बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०२॥


दन्तिकोटि सहस्राणां भूः हिरण्य सहस्रकम्

सर्वक्रतुमयं पुण्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम्   ॥१०३॥


पुत्र पौत्रादिकं भोगं भुक्त्वा चात्र यथेप्सितम् ।

अन्ते च शिव सायुज्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०४॥


विप्र कोटि सहस्राणां वित्तदानाच्च यत्फलम् ।

तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०५॥


त्वन्नामकीर्तनं तत्त्वं तव पादाम्बु यः पिबेत्

जीवन्मुक्तो भवेन्नित्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०६॥


अनेक दान फलदं अनन्त सुकृतादिकम् ।

तीर्थयात्राखिलं पुण्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०७॥


त्वं मां पालय सर्वत्र पदध्यान कृतं तव ।

भवनं शाङ्करं नित्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०८॥


क्षणे क्षणे कृतम पापम स्मरणेन विनश्यती ।  

पुस्तकम धारयेद देहि आरोग्यम दुख नाशनम ॥



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