20 जून 2024

विशेष सिद्ध तन्त्रोक्त शरभेश्वर कवच : सर्व विध रक्षा हेतु

विशेष सिद्ध तन्त्रोक्त शरभेश्वर कवच : सर्व विध रक्षा हेतु



आज का समय संभवतः मानव इतिहास के सबसे कठिन दौर मे से एक है ।

पिछले कुछ सालों से लगातार युद्ध चल रहे हैं । एक भयंकर महामारी से हम बड़ी मुश्किल से बाहर निकल पाये । अभी यह कठिन समय कुछ साल और रहेगा जिसमे शायद बहुत कुछ देखना पड़ेगा ......

भगवान शरभेश्वर देवाधिदेव महादेव का सबसे प्रचंड और उग्र स्वरूप माना गया है । 

कथा है कि जब हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भगवान नरसिंह का आवेश अत्यधिक बढ़ गया था, और वे अनियंत्रित होकर पूरी सृष्टि का संहार कर डालेंगे, ऐसा प्रतीत हो रहा था,

तब.....

भगवान शरभेश्वर का स्वरूप धारण करके उन्हें देवाधिदेव ने नियंत्रित किया था । इसी प्रकार जीवन में आने वाली जटिल से जटिल समस्याओं में भी शरभेश्वर साधना के द्वारा कोई ना कोई हल अवश्य निकल जाता है ।




शरभेश्वर साधना करना थोड़ा कठिन है, जो कि सामान्य गृहस्थ के लिए संभव नहीं हो पता है । ऐसी स्थिति में वह चाहे तो तांत्रिक शरभेश्वर कवच धारण करके इसका लाभ प्राप्त कर सकता है । 

यह कवच विशेष प्रभाव कारी है अगर :-


आप कोई ऐसा कार्य करते हैं जिसमे हमेशा रिस्क रहता हो जैसे फ़ौज/पुलिस/फायर ब्रिगेड/लॉन्ग ट्रिप ड्राइवर आदि ....


घर में काली छाया दिखती हो . 


सफाई रखने के बावजूद घर में अजीब सी बदबू का झोंका आता हो .


परिवार के सदस्यों की असामान्य अकाल मृत्यु होती हो  या हमेशा कोई न कोई बेवजह बीमार पड़ता रहता हो .


बार बार मरणतुल्य कष्ट या दुर्घटनाओं से दो चार होना पड़ता हो .


अच्छे खासे चलते हुए व्यापार में एक झटके में ग्राहकों का आना एकदम बंद हो गया हो .  


अपना मकान बनाना शुरू कर चुके हों, हाथ में पैसे भी हों, लेकिन मकान किसी न किसी कारण से नहीं बन पा रहा हो . 



शिष्य को  एक पूर्ण आध्यात्मिक और पूर्ण भौतिक जीवन देने की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी सद्गुरु के कंधों पर होती है। गुरु वही जो भविष्य देख सके। गुरुजी और गुरु मां की पैनी नजर हम शिष्यों पर हमेशा रहती ही है चाहे  हम अपने भौतिक जीवन का भी कोई कार्य कर रहे हो इसे हजारों साधकों ने अनुभूत भी किया है। गुरुदेव ने  शायद बहुत कुछ दूर का देखते हुए रात्रि काल के विशेष शिव पलो में अतिविशिष्ठ तन्त्रोक्त शरभेश्वर कवच  तैयार किए हैं जो की आने वाले समय में साधक व शिष्यगण के जीवन के हर क्षेत्र में बहुत अधिक लाभदायक सिद्ध होंगे ।।


कवच प्राप्त करने के लिए संपर्क करें 

मुकेश निखिलधाम (भोपाल) 9926670726


कवचों की संख्या गुरुदेव द्वारा बहुत ही सीमित रखी गई है

कवच के साथ-साथ गुरुदेव हमें विशेष मंत्र भी प्रदान करेंगे

अतः जो भी लाभ प्राप्त करना चाहता है शीघ्र अति शीघ्र संपर्क करें।।



11 जून 2024

धूमावती साधना - विवेचन

 

धूमावती साधना : तंत्र बाधाओं की प्रचंड काट

    धूमावती साधना : तंत्र बाधाओं की प्रचंड काट 







  • धूमावती साधना समस्त प्रकार की तन्त्र बाधाओं की रामबाण काट है.
  • यह साधना ज्येष्ठ मास /नवरात्रि/ किसी शुभ मुहूर्त में की जा सकती है.
  • दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए काले रंग के वस्त्र पहनकर जाप करें. जाप रात्रि ९ से ४ के बीच करें




 
सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी को प्रणाम करके उनसे अनुमति और आशीर्वाद देने की याचना करें । 




जाप से पहले हाथ में जल लेकर माता से अपनी समस्या के समाधान की प्रार्थना करें.
जाप के पहले तथा बाद मे गुरु मन्त्र की १ माला जाप करें । यह आपकी सुरक्षा के लिए अनिवार्य है । अगर आपके कोई तांत्रिक गुरु हैं तो उनसे प्राप्त गुरु मंत्र करें या फिर मेरे गुरुदेव का यह मंत्र ऊपर दिये फोटो को देख कर उन्हे गुरु मानकर कर लेंगे । 

॥ ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥




  • अपने सामने एक सूखा नारियल रखें.
  • उसपर हनुमान जी को चढने वाला सिन्दूर चढायें.
  • मंत्र जाप से पहले काला धागा तीन बार अपनी कमर मे लपेट कर बांध दें । 
अब रुद्राक्ष की माला से 11 माला निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें


॥  धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥


मंत्र जाप पूरा होने के बाद  काले धागे को कैंची से काट्कर सूखे सिंदूर चढे नारियल के साथ रख लें.

आग जलाकर १०८ बार काली मिर्च में सिन्दूर तथा सरसों का तेल मिलाकर निम्न मन्त्र से आहुति देकर हवन करें :-


॥  धूं धूं धूमावती ठः ठः स्वाहा॥


इसके बाद नारियल को तीन बार सिर से पांव तक उतारा कर लें । इसके लिए उसे सिर से पाँव तक छुवा लें तथा प्रार्थना करें कि मेरे समस्त बाधाओं का माता धूमावती निवारण करें.

अब इस नारियल को धागे सहित आग में डाल दें. 

हाथ जोडकर माता धूमावती से समस्त अपराधों के लिये क्षमा मांगें.

अंत में एक पानी वाला नारियल फ़ोडकर उसका पानी हवन में डाल दें, इस नारियल को उस समय या बाद मे किसी सुनसान जगह या नदी तालाब मे डाल दें । इसे खायें नही.

अब नहा लें तथा जगह हो तो जाप वाली जगह पर ही सो जायें.

आग ठंडी होने के बाद अगले दिन राख को नदी या तालाब में विसर्जित करें ... 

अगले दिन या जब संभव हो किसी विधवा स्त्री को धन या भोजन जो आपकी इच्छा हो वह दान करें .... 

तारा साधना मंत्रम

 



तारा साधना मंत्रम



·      यह साधना गुरु दीक्षा और गुरु अनुमति से ही करनी चाहिए.
·      भगवती तारा महाविद्या की साधना में गलतियों की छूट नहीं होती. इसलिए अपने पर पूरा विश्वास होने पर ही संकल्प लें.
·      सहस्रनाम और कवच का पाठ साथ में करने से अतिरिक्त लाभ होता है.
·      भगवती तारा अपने साधक को उसी प्रकार साधना पथ पर आगे लेकर जाती है जैसे एक माँ ऊँगली पकड़कर अपने बच्चे को ले जाती है.
·      || ॐ तारा तूरी स्वाहा ||
·      इसके अलावा भी सैकड़ों मंत्र हैं गुरु के निर्देशानुसार उस मन्त्र का जाप करें.
·      साधना गुरूवार से प्रारम्भ करें.
·      रात्रिकालीन साधना है |
·      उत्तर दिशा की और देखते हुए बैठें.
·      एकांत कमरा होना चाहिए | साधनाकाल में कोई दूसरा उस कक्ष में ना आये चाहे वह आपकी पत्नी या बच्चा ही क्यों न हो |
·      दिन में भी मन ही मन मन्त्र जाप करते रहें .

·         

10 जून 2024

तारा साधना मंत्रम

 


तारा साधना मंत्रम
तारा साधना जीवन का सौभाग्य है। यह साधना मनुष्यत्व से ब्रह्मत्व की यात्रा है। .........
शक्ति साधकों के लिए गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ने तारा शाक्त मन्त्र नवरात्री शिविर 1995 कराला में प्रदान किया था. यह साधना आर्थिक लाभ प्रदायक है .


·      यह साधना गुरु दीक्षा और गुरु अनुमति से ही करनी चाहिए.

·      भगवती तारा महाविद्या की साधना में एक बार संकल्प ले लेने के बाद गलतियों की छूट नहीं होती. इसलिए अपने पर पूरा विश्वास होने पर ही संकल्प लें. संकल्प में अपनी मनोकामना बोले और नित्य जाप की संख्या बताएं। नित्य उतनी ही संख्या में जाप करें। कम ज्यादा जाप ना करें  

  • ·      सहस्रनाम और कवच का पाठ साथ में करने से अतिरिक्त लाभ होता है.
  • ·      भगवती तारा अपने साधक को उसी प्रकार साधना पथ पर आगे लेकर जाती है जैसे एक माँ ऊँगली पकड़कर अपने शिशु को ले जाती है.

|| ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं तारायै नमः ||
·      इसके अलावा भी सैकड़ों मंत्र हैं गुरु के निर्देशानुसार उस मन्त्र का जाप करें.
·      साधना गुरूवार से प्रारम्भ करें.
·      रात्रिकालीन साधना है |
·      उत्तर दिशा की और देखते हुए बैठें.
·      एकांत कमरा होना चाहिए साधनाकाल में कोई दूसरा उस कक्ष में ना आये |
·      दिन में भी मन ही मन मन्त्र जाप करते रहें .

·         


8 जून 2024

तारा बीजयुक्त गायत्री मंत्रम

  

  • तारा साधना नवरात्री तथा ज्येष्ठ मास में की जानी चाहिए 


  • तारा काली कुल की महविद्या है । 

  • तारा महाविद्या की साधना जीवन का सौभाग्य है । 

  • यह महाविद्या साधक की उंगली पकडकर उसके लक्ष्य तक पहुन्चा देती है।

  • गुरु कृपा से यह साधना मिलती है तथा जीवन को निखार देती है ।

  • साधना से पहले गुरु से तारा दीक्षा लेना लाभदायक होता है । 









तारा बीजयुक्त गायत्री मंत्रम

 ॥ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट एकजटे विद्महे ह्रीं स्त्रीं हूँ परे नीले विकट दंष्ट्रे ह्रीं धीमहि ॐ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट एं सः स्त्रीं तन्नस्तारे प्रचोदयात  ॥


  1. मंत्र का जाप रात्रि काल में ९ से ३ बजे के बीच करना चाहिये.
  2. यह रात्रिकालीन साधना है. 
  3. गुरुवार से प्रारंभ करें. 
  4. गुलाबी वस्त्र/आसन/कमरा रहेगा.
  5. उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए जाप करें.
  6. यथासंभव एकांत वास करें.
  7. सवा लाख जाप का पुरश्चरण है. 
  8. ब्रह्मचर्य/सात्विक आचार व्यव्हार रखें.
  9. किसी स्त्री का अपमान ना करें.
  10. क्रोध और बकवास ना करें.
  11. साधना को गोपनीय रखें.


प्रतिदिन तारा त्रैलोक्य विजय कवच का एक पाठ अवश्य करें. यह आपको निम्नलिखित ग्रंथों से प्राप्त हो जायेगा.

  1. तारा स्तव मंजरी - चंडी प्रकाशन 
  2. साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका   - भोपाल          

7 जून 2024

तारा महाविद्या की साधना

  




  1. तारा काली कुल की महविद्या है ।
  2. तारा महाविद्या की साधना जीवन का सौभाग्य है ।
  3. यह महाविद्या साधक की उंगली पकडकर उसके लक्ष्य तक पहुन्चा देती है।
  4. गुरु कृपा से यह साधना मिलती है तथा जीवन को निखार देती है ।
  5. साधना से पहले गुरु से तारा दीक्षा लेना लाभदायक होता है ।

तारा मंत्रम
 
॥ ऐं ऊं ह्रीं स्त्रीं हुं फ़ट ॥
  • मंत्र का जाप रात्रि काल में ९ से ३ बजे के
  • बीच करना चाहिये.
  • यह रात्रिकालीन साधना है.
  • गुरुवार से प्रारंभ करें.
  • गुलाबी वस्त्र/आसन/कमरा रहेगा.
  • उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए जाप करें.
  • यथासंभव एकांत वास करें.
  • सवा लाख जाप का पुरश्चरण है.
  • ब्रह्मचर्य/सात्विक आचार व्यव्हार रखें.
  • किसी स्त्री का अपमान ना करें.
  • क्रोध और बकवास ना करें.
  • साधना को गोपनीय रखें.
  • प्रतिदिन तारा त्रैलोक्य विजय कवच का एक पाठ अवश्य करें. यह आपको निम्नलिखित ग्रंथों से प्राप्त हो जायेगा.

साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका ।    
तारा स्तव मंजरी । 

22 मई 2024

अप्सरा दीक्षा : जीवन मे बसंत का आगमन

 


अप्सरा एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही हमारे सामने एक ऐसी स्त्री की परिकल्पना साकार हो जाती है जो अत्यंत ही सुंदर और मादक है !

हमारी प्राचीन कथाओं में भी हम विभिन्न ऋषियों की तपस्या को भंग करने के लिए अप्सराओं के भेजे जाने का विवरण सुनते आए हैं जो अपने आप में सौंदर्य की प्रतिकृति हुआ करती थी और साक्षात कामदेव का पुष्प बाण होती थीं जो अचूक होता था ।

ऋषि मुनि तक इस वार के सामने विवश दिखते थे.....  

वास्तव में अप्सरा, यक्षिणी, किन्नरी आदि योनियाँ इस जगत मे मानव योनि के अलावा जो चौरासी लाख योनियाँ कही जाती हैं उनमे मौजूद हैं ।

हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि

"पिंडे ब्रह्मांडम"

अर्थात यह पिंड यानि मानव शरीर अपने आप में इस संपूर्ण ब्रह्मांड की प्रतिकृति है । इसके अंदर असीमित संभावनाएं मौजूद है ।

हम ब्रह्मांड की अनेक अनेक शक्तियों या तत्वों को को अपने शरीर के माध्यम से जागृत कर सकते हैं !

अप्सरा तत्व भी हमारे शरीर में मौजूद है ! ठीक उसी प्रकार जैसे इस ब्रह्मांड के अनेक शक्ति तत्व हमारे अंदर मौजूद है ।

अप्सरा की जब साधना की जाती है तो हमारे शरीर में स्थित अप्सरा तत्व जागृत होने लगता है ....

आमतौर पर अप्सरा साधक को ऐसा लगता है कि वह अप्सरा साधना करके एक ऐसी सुंदर स्त्री को शारीरिक सुख प्राप्त करने के लिए प्राप्त कर सकता है जो इसकी इच्छा अनुसार उसे भोग प्रदान करेगी....

यह भी संभव है !

लेकिन..... 

वर्तमान समय और अवस्था में जो साधक साधनाएं करते हैं, उनकी साधना में इतनी प्रबलता इतनी प्रचंडता नहीं होती, इतना पौरुष नहीं होता कि अप्सरा को वे इस प्रकार से प्राप्त कर सके !

ऐसे साधक बहुत कम है जो 8-10 साल अप्सरा साधना में लगातार लग रह सकें ....

अगर कोई ऐसा करता है तो आज भी ऐसी स्थिति को प्राप्त करना असंभव नहीं है ।

अप्सरा उसे राजा बना देती है !

धनवान और पौरुषवान !

क्योंकि….

महालक्ष्मी के मण्डल मे प्रवेश का रास्ता भी अप्सरा साधना से ही निकलता है .....

अप्सरा साधना का फल अनेक प्रकार से मिलता है ! जो कि सामान्यतः साधक समझ नहीं पाते हैं इसलिए कुछ स्थितियाँ स्पष्ट कर रहा हूँ ....

अगर आपने अप्सरा साधना की है और आप पुरुष है तो इस बात की पूरी संभावना है कि आपकी पत्नी या आपकी प्रेमिका के अंदर उसकी शक्तियों का कुछ अंश प्रवाहित होने लगेगा !

उसका व्यवहार या उसकी चपलता, चंचलता,मादकता पहले की तुलना में अलग हो जाएगी । वह आपको प्रसन्न करने के लिए अनेक प्रयास करती लगेगी । अगर वह इस प्रकार से व्यवहार करती हैं तो उन साधकों को समझ लेना चाहिए कि उनकी अप्सरा साधना फलीभूत हुई है.....

हाँ ! साधक के चेहरे मे भी और उसके व्यक्तित्व मे भी एक अलग सा आकर्षण आ जाता है ! चाहे वह गोरा हो या काला ! सुंदर हो या न हो ! उसके व्यक्तित्व मे एक अलग सा प्रभाव अप्सरा तत्व पैदा कर ही देता है ...

इसी प्रकार से जो स्त्री साधिकाऐं अप्सरा साधना करती हैं, उनके चेहरे पर और उनके सम्पूर्ण शरीर में एक अलग ही प्रकार का निखार दिखने लगता है । ऐसा निखार जो लोगों को पलटकर देखने के लिए मजबूर कर देता है !

अप्सराएँ अपने साधक को उचित अनुचित का मार्गदर्शन भी संकेतों से प्रदान करती हैं । इससे साधक या साधिका को एक ऐसा मार्गदर्शक मिल जाता है जो उनके हित मे उनके लाभ मे सहायक बन जाता है ...

अप्सरा साधना उन लोगों को विशेष रूप से करनी चाहिए जो

मानसिक तनाव मे रहते हैं !

वैवाहिक सुख से वंचित हैं !

किसी का प्रेम पाना चाहते हैं !

पति पत्नी मे संबंध सुधारना चाहते हैं !

आर्थिक न्यूनता है !

व्यापार या व्यवसाय नहीं चल रहा है !

और सबसे महत्वपूर्ण अप्सरा को सहयोगी, सखी, मार्गदर्शक के रूप मे पाना चाहते हैं !

 

अब सौ टके का सवाल यह कि अप्सरा साधना कैसे करें ?

इसका पहला स्टेप है

"अप्सरा दीक्षा"

 

अब यह कहाँ से मिलेगी ?

 

अप्सरा दीक्षा वही गुरु दे सकता है:-

जिसके गुरु को अप्सरा सिद्ध हो !

जिसने उस अप्सरा सिद्ध गुरु से स्वयं अप्सरा दीक्षा प्राप्त की हो !

जिसने स्वयं अप्सरा साधना सम्पन्न की हो ! उसका साक्षात्कार किया हो !

जो स्वयं एक प्रचंड साधक हो .....

 

इस कसौटी पर खरा उतरने वाले गुरु नहीं के बराबर हैं !

सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी अप्सरा के सिद्ध साधक थे, वे ही थे जिन्होने अप्सरा साधना को जन सामान्य के लिए अपनी पत्रिका " मंत्र तंत्र यंत्र विज्ञान" के माध्यम से स्पष्ट किया । उसी के माध्यम से मुझे भी इस विषय की जानकारी हुई !

उनकी प्रिय शिष्या हैं गुरुमाता डा साधना सिंह !



उन्होने सद्गुरुदेव से अप्सरा दीक्षा प्राप्त की है !

उन्होने स्वयं अप्सरा साधना सिद्ध की है !

उन्होने अप्सरा के विषय मे अपनी पत्रिका " साधना सिद्धि विज्ञान" मे विस्तृत विवेचन किया है ।

प्रचंड साधिका तो वे हैं ही !

पिछले पच्चीस वर्षों से उन्होंने अनेक अनुष्ठान स्वयं सम्पन्न किए हैं और अपने हजारों लाखों शिष्यों को सम्पन्न करवाए हैं ।

सबसे बड़ी बात वे स्त्री गुरु हैं !

तंत्र साधनाओं के क्षेत्र मे स्त्री गुरु अत्यंत दुर्लभ हैं !

स्त्री गुरु से प्राप्त साधनाएं बहुत जल्दी फलीभूत होती हैं, क्योंकि वे मातृ स्वरूप होती हैं और उनमे शक्तियों का संचरण सहज सम्पन्न होता रहता है । 

 

आप चाहें तो उनसे अगले महीने यानि जून की चार तारीख को भोपाल मध्यप्रदेश जाकर या फिर अपनी फोटो भेजकर यह दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं ।

विस्तृत जानकारी के लिए संपर्क करें :-

साधना सिद्धि विज्ञान कार्यालय

0755 4269368

 

इसके अलावा आप देख सकते हैं अप्सरा तत्व की विस्तृत व्याख्या गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी के इस वीडियो  मे :-




 

 


17 मई 2024

तारा महाविद्या की साधना : जीवन का परम सौभाग्य

  






  1. तारा काली कुल की महविद्या है ।
  2. तारा महाविद्या की साधना जीवन का सौभाग्य है ।
  3. यह महाविद्या साधक की उंगली पकडकर उसके लक्ष्य तक पहुन्चा देती है।
  4. गुरु कृपा से यह साधना मिलती है तथा जीवन को निखार देती है ।
  5. साधना से पहले गुरु से तारा दीक्षा लेना लाभदायक होता है ।
इसके विषय मे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी का विवेचन अवश्य सुनें । आप चाहें तो उनसे तारा दीक्षा और मंत्र भी प्राप्त कर सकते हैं । 




15 मई 2024

श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम

  श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम

 

बगलामुखी बीज मंत्र है [ह्लीं ] उच्चारण होगा [hleem]

 

देवी के सामने पीले पुष्प, पीले चावल, हल्दी नमः के उच्चारण के साथ समर्पित कर सकते हैं ।

 

1.   ह्लीं कठिनायै नमः ।

2.   ह्लीं कपर्दिन्यै नमः ।

3.   ह्लीं कलहकारिण्यै नमः ।

4.   ह्लीं कलहायै नमः ।

5.   ह्लीं कलायै नमः ।

6.   ह्लीं कलिदुर्गतिनाशिन्यै नमः ।

7.   ह्लीं कलिहरायै नमः ।

8.   ह्लीं कल्किरूपायै नमः ।

9.   ह्लीं काल्यै नमः ।

10.                    ह्लीं किशोर्यै नमः ।

11.                    ह्लीं कृत्यायै नमः ।

12.                    ह्लीं कृष्णायै नमः ।

13.                    ह्लीं केवलायै नमः ।

14.                    ह्लीं केशवस्तुतायै नमः ।

15.                    ह्लीं केशवाराध्यायै नमः ।

16.                    ह्लीं केशव्यै नमः ।

17.                    ह्लीं कैवल्यदायिन्यै नमः ।

18.                    ह्लीं कोटिकन्दर्पमोहिन्यै नमः ।

19.                    ह्लीं कोटिसूर्यप्रतीकाशायै नमः ।

20.                    ह्लीं घनायै नमः ।

21.                    ह्लीं जामदग्न्यस्वरूपायै नमः ।

22.                    ह्लीं देवदानवसिद्धौघपूजितापरमेश्वर्यै नमः ।

23.                    ह्लीं नक्षत्रपतिवन्दितायै नमः ।

24.                    ह्लीं नक्षत्ररूपायै नमः ।

25.                    ह्लीं नक्षत्रायै नमः ।

26.                    ह्लीं नक्षत्रेशप्रपूजितायै नमः ।

27.                    ह्लीं नक्षत्रेशप्रियायै नमः ।

28.                    ह्लीं नगराजप्रपूजितायै नमः ।

29.                    ह्लीं नगात्मजायै नमः ।

30.                    ह्लीं नगाधिराजतनयायै नमः ।

31.                    ह्लीं नरसिंहप्रियायै नमः । १०

32.                    ह्लीं नवीनायै नमः ।

33.                    ह्लीं नागकन्यायै नमः ।

34.                    ह्लीं नागजनन्यै नमः । ५०

35.                    ह्लीं नागराजप्रवन्दितायै नमः ।

36.                    ह्लीं नागर्यै नमः ।

37.                    ह्लीं नागिन्यै नमः ।

38.                    ह्लीं नागेश्वर्यै नमः ।

39.                    ह्लीं नित्यायै नमः ।

40.                    ह्लीं नीरदायै नमः ।

41.                    ह्लीं नीलायै नमः ।

42.                    ह्लीं परतन्त्रविनाशिन्यै नमः ।

43.                    ह्लीं पराणुरूपापरमायै नमः ।

44.                    ह्लीं पीतपुष्पप्रियायै नमः ।

45.                    ह्लीं पीतवसनापीतभूषणभूषितायै नमः ।

46.                    ह्लीं पीतस्वरूपिण्यै नमः ।

47.                    ह्लीं पीतहारायै नमः ।

48.                    ह्लीं पीतायै नमः ।

49.                    ह्लीं बगलायै नमः ।

50.                    ह्लीं बलदायै नमः ।

51.                    ह्लीं बहुदावाण्यै नमः ।

52.                    ह्लीं बहुलायै नमः ।

53.                    ह्लीं बुद्धभार्यायै नमः ।

54.                    ह्लीं बुद्धिरूपायै नमः ।

55.                    ह्लीं बौद्धपाखण्डखण्डिन्यै नमः ।

56.                    ह्लीं ब्रह्मरूपावराननायै नमः ।

57.                    ह्लीं भामिन्यै नमः ।

58.                    ह्लीं महाकूर्मायै नमः ।

59.                    ह्लीं महामत्स्यायै नमः ।

60.                    ह्लीं महारावणहारिण्यै नमः ।

61.                    ह्लीं महावाराहरूपिण्यै नमः ।

62.                    ह्लीं महाविष्णुप्रस्वै नमः ।

63.                    ह्लीं मायायै नमः ।

64.                    ह्लीं मोहिन्यै नमः ।

65.                    ह्लीं यक्षिण्यै नमः ।

66.                    ह्लीं रक्तायै नमः ।

67.                    ह्लीं रम्यायै नमः ।

68.                    ह्लीं रागद्वेषकर्यै नमः ।

69.                    ह्लीं रात्र्यै नमः ।

70.                    ह्लीं रामप्रपूजितायै नमः ।

71.                    ह्लीं रामायै नमः ।

72.                    ह्लीं रिपुत्रासकर्यै नमः ।

73.                    ह्लीं रुद्रदेवतायै नमः ।

74.                    ह्लीं रुद्रमूर्त्यै नमः ।

75.                    ह्लीं रुद्ररूपायै नमः ।

76.                    ह्लीं रुद्राण्यै नमः ।

77.                    ह्लीं रेखायै नमः ।

78.                    ह्लीं रौरवध्वंसकारिण्यै नमः ।

79.                    ह्लीं लङ्कानाथकुलहरायै नमः ।

80.                    ह्लीं लङ्कापतिध्वंसकर्यै नमः ।

81.                    ह्लीं लङ्केशरिपुवन्दितायै नमः ।

82.                    ह्लीं वटुरूपिण्यै नमः ।

83.                    ह्लीं वरदाऽऽराध्यायै नमः ।

84.                    ह्लीं वरदानपरायणायै नमः ।

85.                    ह्लीं वरदायै नमः ।

86.                    ह्लीं वरदेशप्रियावीरायै नमः ।

87.                    ह्लीं वसुदायै नमः ।

88.                    ह्लीं वामनायै नमः ।

89.                    ह्लीं विष्णुवनितायै नमः ।

90.                    ह्लीं विष्णुशङ्करभामिन्यै नमः ।

91.                    ह्लीं वीरभूषणभूषितायै नमः ।

92.                    ह्लीं वेदमात्रे नमः ।

93.                    ह्लीं शत्रुसंहारकारिण्यै नमः ।

94.                    ह्लीं शुभायै नमः ।

95.                    ह्लीं शुभ्रायै नमः ।

96.                    ह्लीं श्यामायै नमः ।

97.                    ह्लीं श्वेतायै नमः ।

98.                    ह्लीं सिद्धनिवहायै नमः ।

99.                    ह्लीं सिद्धिरूपिण्यै नमः ।

100.              ह्लीं सिद्धेशायै नमः ।

101.              ह्लीं सुन्दर्यै नमः ।

102.              ह्लीं सौन्दर्यकारिण्यै नमः ।

103.              ह्लीं सुभगायै नमः ।

104.              ह्लीं सौभाग्यदायिन्यै नमः ।

105.              ह्लीं सौम्यायै नमः ।

106.              ह्लीं स्तम्भिन्यै नमः ।

107.              ह्लीं स्वर्गगतिप्रदायै नमः ।

108.              ह्लीं स्वर्णाभायै नमः ।