21 मार्च 2012

नवरात्रि विशेष : तारा तान्त्रोक्त साधना मन्त्रम





  • तारा काली कुल की महविद्या है । 

  • तारा महाविद्या की साधना जीवन का सौभाग्य है । 

  • यह महाविद्या साधक की उंगली पकडकर उसके लक्ष्य तक पहुन्चा देती है।

  • गुरु कृपा से यह साधना मिलती है तथा जीवन को निखार देती है ।

  • साधना से पहले गुरु से तारा दीक्षा लेना लाभदायक होता है । 

  • नवरात्रि तथा ज्येष्ठ मास तारा साधना का सबसे उपयुक्त समय है ।







तारा मंत्रम

 ॥ ऐं ऊं ह्रीं स्त्रीं हुं फ़ट ॥






  1. मंत्र का जाप रात्रि काल में ९ से ३ बजे के बीच करना चाहिये.
  2. यह रात्रिकालीन साधना है. 
  3. गुलाबी वस्त्र/आसन/कमरा रहेगा.
  4. उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए जाप करें.
  5. यथासंभव एकांत वास करें.
  6. सवा लाख जाप का पुरश्चरण है. 
  7. ब्रह्मचर्य/सात्विक आचार व्यव्हार रखें.
  8. किसी स्त्री का अपमान ना करें.
  9. क्रोध और बकवास ना करें.
  10. साधना को गोपनीय रखें.


प्रतिदिन तारा त्रैलोक्य विजय कवच का एक पाठ अवश्य करें. यह आपको निम्नलिखित ग्रंथों से प्राप्त हो जायेगा.

नवरात्रि विशेष : भुवनेश्वरी साधना






॥ ह्रीं ॥
  • भुवनेश्वरी महाविद्या समस्त सृष्टि की माता हैं
  • हमारे जीवन के लिये आवश्यक अमृत तत्व वे हैं.
  • जो निरंतर बीमार रहते हों, उर्जा का अभाव महसूस करते हों वे इस साधना को करें.इस मन्त्र का नित्य जाप आपको उर्जावान बनायेगा.
  • नवरात्रि में सफ़ेद वस्त्र/आसन के साथ जाप करें.
  • ११००० जाप करें.
  • रुद्राक्ष से ११०० हवन करें.
  • ब्रहम मुहुर्त यानि सुबह ४ से ६ के बीच करें.

नवरात्रि विशेष : गृहस्थ सुख हेतु मातंगी साधना




॥ ह्रीं क्लीं हुं मातंग्यै फ़ट स्वाहा ॥


  • मातंगी साधना संपूर्ण गृहस्थ सुख प्रदान करती है.
  • यह साधना जीवन में रस प्रदान करती है.
  • ११००० जाप करें. ११०० मंत्रों से हवन करें.
  • गुलाबी रंग का वस्त्र आसन होगा.

हनुमान मन्त्र





॥ ॐ पंचमुखाय महारौद्राय कपिराजाय नमः ॥ 




ब्रह्मचर्य का पालन किया जाना चाहिये. साधना का समय रात्रि ९ से सुबह ६ बजे तक. साधना कक्ष में हो सके तो किसी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश न दें. जाप संख्या ११,००० होगी. प्रतिदिन चना,गुड,बेसन लड्डू,बूंदी में से किसी एक वस्तु का भोग लगायें. हवन ११०० मन्त्र का होगा, इसमें जाप किये जाने वाले मन्त्र के अन्त में स्वाहा लगाकर सामग्री अग्नि में डालना होता है. हवन सामग्री में गुड का चूरा मिला लें. वस्त्र तथा आसन लाल रंग का होगा. रुद्राक्ष की माला से जाप होगा.

11 मार्च 2012

गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी : जन्म दिवस



११ मार्च

 मेरे आदरणीय गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथजी का जन्म दिवस

निखिलकृपा से आप शतायु हों....

आपकी कृपा शिष्यों को इसी प्रकार मिलती रहे...







गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी


एक विराट व्यक्तित्व जिसने अपने अंदर तन्त्र साधनाओं के विश्व्वविख्यात गुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] के ज्ञान को संपूर्णता के साथ समाहित किया है.






डॉ . नारायण दत्त श्रीमाली जी के देहत्याग [ ३ जुलाई १९९८ ] के बाद साधनाओं के पुनरुत्थान तथा साधकों के निर्माण में सतत गतिशील गुरुवर स्वामी सुदर्शन नाथजी ने दस महाविद्याओं पर जितना ज्ञान तथा विवेचन किया है वह अपने आप में एक मिसाल है.

परम गोपनीय शरभ तन्त्र से लेकर महाकाल संहिता तक ...... और कामकलाकाली तन्त्र से लेकर गुह्यकाली तक........

तन्त्र का कोइ क्षेत्र गुरुदेव की सीमा से परे नहीं है.



लुप्तप्राय हो चुके तन्त्र ग्रन्थों से ढूढ कर सहस्रनाम स्तोत्रों और दुर्लभ पूजन विधियों का अकूत भन्डार साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका के माध्यम से अपने शिष्यों के लिये सहज ही प्रस्तुत करने वाले ऐसे दिव्य साधक के चरणों मे मेरा शत शत नमन है .

आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मेरे लिये सर्वसौभाग्य प्रदायक है....

ज्ञान की इतनी ऊंचाई पर बैठ्कर भी साधकों तथा जिज्ञासुओं के लिये वे सहज ही उपलब्ध हैं. आप यदि साधनात्मक मार्गदर्शन चाहते हैं तो आप भी संपर्क कर सकते हैं.








गुरु देव स्वामी सुदर्शननाथ जी से सीधे सम्पर्क का समय :



सायं  से  बजे तक (रविवार अवकाश)



दूरभाष : (0755) --- 4269368,4283681

मेरे गुरुदेव : स्वामी सुदर्शननाथ जी







अघोरेश्वरं महा सिद्ध रूपम,

निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥१॥

अघोर शक्तियों के स्वामी, 
साक्षात अघोरेश्वर,
शिव स्वरूप , 
सिद्धों के भी सिद्ध,
भैरव से शरभेश्वर तक
और
उच्चिष्ठ चाण्डालिनी से गुह्याकाली तक
हर गुह्यतम साधना के ज्ञाता

मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत, प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.


प्रचण्डातिचण्डम शिवानंद कंदम,

निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥२॥

प्रचंडता की साक्षात मूर्ति,
शिवत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप,
जिन्होंने तंत्र ग्रंथों और तांत्रिक अनुष्ठानों की गोपनीय विधियों को साधकों को सहज सुलभ कराया
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ, 
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.



सुदर्शनोत्वं परिपूर्ण रूपम,

निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥३॥

सौन्दर्य की पूर्णता को साकार करने वाले,
साक्षात कामेश्वर,
पूर्णत्व युक्त,
शिव के प्रतीक,
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ 
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.



ब्रह्माण्ड रूपम, गूढातिगूढम,

निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥४॥

जो स्वयं अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं,
जो अहं ब्रह्मास्मि के नाद से गुन्जरित हैं,
जो गूढ से भी गूढ 
अर्थात गोपनीय से भी गोपनीय 
विद्याओं के ज्ञाता हैं,
महाकाल संहिता और गुह्य काली संहिता जैसे दुर्लभ ग्रंथों का जिन्होंने पुनरुद्धार किया है ,
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ 
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.



योगेश्वरोत्वम, कृष्ण स्वरूपम,

निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥५॥

जो योग के सभी अंगों के सिद्धहस्त आचार्य हैं,
जिनका शरीर योग के जटिलतम आसनों को भी
सहजता से करने में सिद्ध है,
जो योग मुद्राओं के प्रतिष्ठित आचार्य हैं,
जो साक्षात कृष्ण के समान,
प्रेममय,
योगमय,
आह्लादमय,
सहज व्यक्तित्व के स्वामी हैं  
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ 
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.



महाकाल तत्वम घोरातिघोरम,

निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥६॥

काल भी जिससे घबराता है, 
ऐसे महाकाल और महाकाली युगल के उपासक,
साक्षात महाकाल स्वरूप,
अघोरत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप,
महाकाली के महासिद्ध साधक
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.





6 मार्च 2012

सर्व बाधा निवारण हेतु : धूमावती




॥ धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥ 

  • सर्व तन्त्र बाधा निवारण हेतु. 

  •  ब्रह्मचर्य का पालन करें.  
  • सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.  
  • यथा संभव मौन रहें.  
  • अनर्गल प्रलाप और बकवास न करें.  

  • सफ़ेद वस्त्र पहनकर सफ़ेद आसन पर बैठ कर  जाप करें.   
  • यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.  

  • बेसन के पकौडे का भोग लगायें.  
  • जाप के बाद भोग को निर्जन स्थान पर छोड कर वापस मुडकर देखे बिना लौट जायें. 

  • होली दहन की रात्री एक नारियल सामने रखकर ११०० जाप करें. जाप के बाद नारियल सर से ३ बार घुमाकर होली में डाल कर हाथ जोड़कर प्रणाम करें .अपने सर पर ३ बार शान्ति ..कहकर पानी छिडक लें.

  • किसी गरीब विधवा स्त्री को भोजन तथा सफ़ेद साडी दान में दें.