एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
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20 अप्रैल 2012
16 अप्रैल 2012
सद्गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा लिखित ग्रंथ
Books written by
Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji
Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji
- Practical Palmistry
- Practical Hypnotism
- The Power of Tantra
- Mantra Rahasya
- Meditation
- Dhyan, Dharana aur Samadhi
- Kundalini Tantra
- Alchemy Tantra
- Activation of Third Eye
- Guru Gita
- Fragrance of Devotion
- Beauty - A Joy forever
- Kundalini naad Brahma
- Essence of Shaktipat
- Wealth and Prosperity
- The Celestial Nymphs
- The Ten Mahavidyas
- Gopniya Durlabh Mantron Ke Rahasya.
- Rahasmaya Agyaat tatntron ki khoj men.
- Shmashaan bhairavi. [ First Tantrik novel in the world ]
- Himalaya ke yogiyon ki gupt siddhiyaan.
- Rahasyamaya gopniya siddhiyaan.
- Phir Dur Kahi Payal Khanki
- Yajna Sar
- Shishyopanishad
- Durlabhopanishad
- Siddhashram
- Hansa Udahoon Gagan Ki Oar
- Mein Sugandh Ka Jhonka Hoon
- Jhar Jhar Amrit Jharei
- Nikhileshwaranand Chintan
- Nikhileshwaranand Rahasya
- Kundalini Yatra- Muladhar Sey Sahastrar Tak
- Soundarya
- Mein Baahen Feilaaye Khada Hoon
- Hastrekha vigyan aur panchanguli sadhana.
and many more.........
7 अप्रैल 2012
4 अप्रैल 2012
29 मार्च 2012
महाकाल रमणी स्तुति
शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
महाकाल प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
मेरी अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर विराजमान है, जो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैं, जो चौंषठ कलाओं से युक्त हैं, जो भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैं, ऐसी प्रचंड स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं |
उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैं, अर्थात हर नियम, हर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं , जो श्मशान की अधिष्टात्री देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं , जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |
क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
कटि नर कर मेखला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
अद्भुत सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत उन्नत स्तन मंडलों से सुशोभित हैं, जिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव अर्चन करता हूं ||
खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
देव सेना की महानायिका, जो खड्ग चालन में अति निपुण हैं, युद्ध जिनको अत्यंत प्रिय है, असुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध भूमि की अधिष्टात्री हैं , जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का रक्तपान करने को आतुर रहती हैं , ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल रमणी महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |
मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैं, जिनके मुख पर सदैव अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है , जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं , हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |
|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||
|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||
21 मार्च 2012
नवरात्रि साधना के सामान्य नियम
- साधना प्रारम्भ करने से पहले हाथ में जल लेकर अपनी मनोकामना बोले.
- महाविद्याओं की साधना दीक्षा लेकर ही करे.
- जाप के पहले तथा बाद मे गुरु मन्त्र की १ माला जाप करें.॥ ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥
- नवरात्रि में मंत्र का जाप रात्रि काल में ९ से ३ बजे के बीच करना चाहिये.
- जहाँ दिशानिर्देश न हो वहाँ उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए जाप करें.
- यथासंभव एकांत वास करें.
- सात्विक आचार व्यव्हार रखें.
- बहुत आवश्यक हो तो पत्नी से संपर्क रख सकते हैं.
- किसी स्त्री का अपमान ना करें.
- क्रोध न करें .
- किसी को नुक्सान न पहुंचाए.
- साधना को गोपनीय रखें.
- हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
- किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
- यथा संभव मौन रखें.
- साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें.
- जप के बाद दोनों कान पकड़कर सभी प्रकार की गलतियों के लिए माफ़ी मांगें.
- अंत में जप गुरु को समर्पित करें .
- उग्र सधानाये बच्चे और महिलाएं न करें.
- गुरु से अनुमति लेकर ही साधना करें .
- सिद्धि का दुरुपयोग न करे वरना परिणाम भयानक तथा विनाशकारी होंगे .
नवरात्रि विशेष : सर्व बाधा निवारण हेतु : धूमावती साधना
नवरात्रि में महाविद्यायें जागृत और चैतन्य हो जाती हैं.
महाविद्याओं में सबसे उग्रतम विद्या है धूमावती...
इनका स्वरूप बहुत ही उग्र तथा सब कुछ भक्षण कर लेने को आतुर है..
ये अपने साधक की सभी प्रकार की बाधायें चाहे वे किसी भी प्रकार की हों भक्षण कर जाती हैं.....
नवरात्रि में जाप करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
यथा संभव मौन रहें.
अनर्गल प्रलाप और बकवास न करें.
किसी स्त्री का भूलकर भी अपमान ना करें.सफ़ेद वस्त्र पहनकर सफ़ेद आसन पर बैठ कर जाप करें.
यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.
बेसन के पकौडे का भोग लगायें. भोग पर्याप्त मात्रा में होना चाहिये. कम से कम एक पाव बेसन के पकौडे चढायें.इसमें से आपको नही खाना है.
जाप के बाद भोग को निर्जन स्थान पर छोड कर वापस मुडकर देखे बिना लौट जायें.
११००० जाप करें.
नवमी को मंत्र के आखिर में स्वाहा लगाकर ११०० मंत्रों से हवन करें.
हवन की भस्म को प्रभावित स्थल या घर पर छिडक दें. शेष भस्म को नदी में प्रवाहित करें.
जाप पूरा हो जाने पर किसी गरीब विधवा स्त्री को भोजन तथा सफ़ेद साडी दान में दें.
महाविद्याओं में सबसे उग्रतम विद्या है धूमावती...
इनका स्वरूप बहुत ही उग्र तथा सब कुछ भक्षण कर लेने को आतुर है..
ये अपने साधक की सभी प्रकार की बाधायें चाहे वे किसी भी प्रकार की हों भक्षण कर जाती हैं.....
॥ धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥
नवरात्रि में जाप करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
यथा संभव मौन रहें.
अनर्गल प्रलाप और बकवास न करें.
किसी स्त्री का भूलकर भी अपमान ना करें.सफ़ेद वस्त्र पहनकर सफ़ेद आसन पर बैठ कर जाप करें.
यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.
बेसन के पकौडे का भोग लगायें. भोग पर्याप्त मात्रा में होना चाहिये. कम से कम एक पाव बेसन के पकौडे चढायें.इसमें से आपको नही खाना है.
जाप के बाद भोग को निर्जन स्थान पर छोड कर वापस मुडकर देखे बिना लौट जायें.
११००० जाप करें.
नवमी को मंत्र के आखिर में स्वाहा लगाकर ११०० मंत्रों से हवन करें.
हवन की भस्म को प्रभावित स्थल या घर पर छिडक दें. शेष भस्म को नदी में प्रवाहित करें.
जाप पूरा हो जाने पर किसी गरीब विधवा स्त्री को भोजन तथा सफ़ेद साडी दान में दें.
लेबल:
धूमावती DHOOMAVATI
गुरु निलयम, MIG-556,पद्मनाभपुर, दुर्ग, छ.ग., भारत
151-F, रिसाली सेक्टर, भिलाई, छत्तीसगढ़, भारत
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