24 जुलाई 2016

अघोरेश्वर महादेव साधना

अघोर साधनाएं जीवन की सबसे अद्भुत साधनाएं हैं

अघोरेश्वर महादेव की साधना उन लोगों को करनी चाहिए जो समस्त सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर शिव गण बनने की इच्छा रखते हैं.

इस साधना से आप को संसार से धीरे धीरे विरक्ति होनी शुरू हो जायेगी इसलिए विवाहित और विवाह सुख के अभिलाषी लोगों को यह साधना नहीं करनी चाहिए.

  • यह  साधना  अमावस्या से प्रारंभ होकर अगली अमावस्या तक की जाती है.
  • सावन माह में कभी भी की जा सकती है .
  • यह  दिगंबर साधना है.
  • एकांत कमरे में साधना होगी.
  • स्त्री से संपर्क तो दूर की बात है बात भी नहीं करनी है.
  • भोजन  कम से कम और खुद पकाकर खाना है.
  • यथा  संभव मौन रहना है.
  • क्रोध,विवाद,प्रलाप, न करे.
  • गोबर के कंडे जलाकर उसकी राख बना लें.
  • स्नान करने के बाद बिना शरीर  पोछे साधना कक्ष में प्रवेश करें.
  • अब राख को अपने पूरे शरीर में मल लें.
  • जमीन पर बैठकर मंत्र जाप करें.
  • माला या यन्त्र की आवश्यकता नहीं है.
  • जप की संख्या अपने क्षमता के अनुसार तय करें.
  • आँख बंद करके दोनों नेत्रों के बीच वाले स्थान पर ध्यान लगाने का प्रयास करते हुए जाप करें.
  • जाप  के बाद भूमि पर सोयें.
  • उठने के बाद स्नान कर सकते हैं.
  • यदि एकांत उपलब्ध हो तो पूरे साधना काल में दिगंबर रहें. यदि यह संभव न हो तो काले रंग का वस्त्र पहनें.
  1. साधना के दौरान तेज बुखार, भयानक दृश्य और आवाजें आ सकती हैं. इसलिए कमजोर मन वाले साधक और बच्चे इस साधना को किसी हालत में न करें.
  2. गुरु दीक्षा ले चुके साधक ही अपने गुरु से अनुमति लेकर इस साधन को करें.
  3. जाप से पहले कम से कम १ माला गुरु मन्त्र का जाप अनिवार्य है.


|||| अघोरेश्वराय हूं ||||





22 जुलाई 2016

शिवलिंग की महिमा

शिवलिंग की महिमा








भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,

इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः
 मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं  भूतो भविष्यति
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग तो बना है और ही बन सकता है।





शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं  

शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।

21 जुलाई 2016

काल भैरव साधना



काल भैरव साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में लाभकारी है :-
  • शत्रु बाधा.
  • तंत्र बाधा.
  • इतर योनी से कष्ट.
  • उग्र साधना में रक्षा हेतु.
काल भैरव मंत्र :-

|| ॐ भ्रं काल भैरवाय फट ||

विधि :-
  1. रात्रि कालीन साधना है.अमावस्या, नवरात्रि,कालभैरवाष्टमी, जन्माष्टमी या किसी भी अष्टमी से प्रारंभ करें.
  2. रात्रि 9 से 4 के बीच करें.
  3. काला आसन और वस्त्र रहेगा.
  4. रुद्राक्ष या काली हकिक माला से जाप करें.
  5. १०००,५०००,११०००,२१००० जितना आप कर सकते हैं उतना जाप करें.
  6. जाप के बाद १० वा हिस्सा यानि ११००० जाप करेंगे तो ११०० बार मंत्र में स्वाहा लगाकर हवन  कर लें.

  7. हवन सामान्य हवन सामग्री से भी कर सकते हैं.
  8. काली  मिर्च या  तिल का प्रयोग भी कर सकते हैं.
  9. अंत में एक कुत्ते को भरपेट भोजन करा दें. काला कुत्ता हो तो बेहतर.
  10. एक नारियल [पानीवाला] आखिरी दिन अपने सर से तीन बार घुमा लें, अपनी इच्छा उसके सामने बोल दें. 
  11. किसी सुनसान जगह पर बने शिव या काली मंदिर में छोड़कर बिना पीछे मुड़े वापस आ जाएँ. 
  12. घर में आकर स्नान कर लें. 
  13. दो अगरबत्ती जलाकर शिव और शक्ति से कृपा की प्रार्थना करें. 
  14. किसी भी प्रकार की गलती हो गयी हो तो उसके लिए क्षमा मांगे.
  15. दोनों अगरबत्ती घर के द्वार पर लगा दें.

20 जुलाई 2016

बिल्व पत्रं समर्पयामि











शिव प्रसादेन बिना न सिद्धि



|| ओम  रुद्राय नमः ||

  • रूद्र  शिव  का  मंत्र है.
  • रूद्र रुदन अर्थात जीवन में जो भी परिस्थिति आपको रुलाती है उसके अधिपति हैं . 
  • जब केवल आंसू ही शेष रह जाता है और कोई मार्ग नहीं दीखता तब रूद्र साधना करनी चाहिए .
  • ११ माला ११ दिन तक करे.
  • अत्यंत विवशता के समय में मार्ग प्रदान करेगा.

साम्ब सदाशिवाय नमः








||  ऊं रुद्राय पशुपतये साम्ब सदाशिवाय नमः ||









  • शिवलिन्ग के सामने १०८ बार बेल पत्र चढाते हुए जाप करें ।



  • अपने जीवन मे पशुवृत्तियों से उठ कर देवत्व प्राप्ति के लिये सहयोगी साधना ।
  • इस मंत्र में जगदम्बा सहित शिव समाहित हैं.
  • देखने में सरल मगर अत्यंत प्रभावशाली मंत्र है.
  • 18 जुलाई 2016

    गुरु की प्राप्ति


    • गुरु, साधना जगत का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है.
    • गुरु, जब साधक को दीक्षा देता है तो उसका दूसरा जन्म होता है, तब वह द्विज कहलाता है.
    • जिस रास्ते पर चलकर गुरु ने सफ़लता प्राप्त की उस मार्ग से शिष्य को मातृवत उंगली पकड कर चलना सिखाता है,  तब जाकर साधक दैवीय साक्षात्कार का पात्र बनता है.
    • ना गुरोरधिकम....ना गुरोरधिकम...ना गुरोरधिकम...



    गुरु मंत्रम:-

    ॥ ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥


    • ऊपर छपे चित्र को फ्रेम करा लें. नित्य जाप उसी के सामने करेंगे .
    • जाप पूरा हो जाने के बाद ऊंचे स्थान पर उसे टांग दें .
    • सफ़ेद वस्त्र तथा आसन पहनकर जाप करें.
    • रुद्राक्ष या स्फ़टिक की माला श्रेष्ठ है.
    • यदि न हो तो तूलसी माला या किसी भी माला से जाप कर सकते हैं .
    • नित्य अपनी क्षमतानुसार 5 माला या अधिक मंत्र जाप करें. आपको गुरु की प्राप्ति होगी या गुरु प्राप्ति के सम्बन्ध में दिशा मिलेगी.



    17 जुलाई 2016

    श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु के लक्षण







     श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु के  लक्षण :-


    • श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को अपने गुरु का एक अच्छा शिष्य होना चाहिये.
    • अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिये.
    • श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को साधक होना चाहिये. 
    • उसे निरंतर साधना करते रहना चाहिये.
    • श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को कम से कम एक महाविद्या सिद्ध होनी चाहिये.
    • श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को वाक सिद्धि होनी चाहिये अर्थात उसे आशिर्वाद और श्राप दोनों देने में सक्षम होना चाहिये.
    • श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को पूजन करना और कराना आना चाहिये.
    • श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को योग और मुद्राओं का ज्ञान होना चाहिये.
    • श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को रस सिद्धि होनी चाहिये, अर्थात पारद के संस्कारों का ज्ञान होना चाहिये.
    • श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को मन्त्र निर्माण की कला आती है.
    • वह आवश्यकतानुसार मंत्रों का निर्माण कर सकता है और पुराने मंत्रों मे आवश्यकतानुसार संशोधन करने में समर्थ होता है.

    16 जुलाई 2016

    साधना : प्रत्यक्ष मार्गदर्शन

    साधना का क्षेत्र अत्यंत दुरुह तथा जटिल होता है. इसी लिये मार्गदर्शक के रूप में गुरु की अनिवार्यता स्वीकार की गई है.


    गुरु दीक्षा प्राप्त शिष्य को गुरु का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है.

    बाहरी आडंबर और वस्त्र की डिजाइन से गुरू की क्षमता का आभास करना गलत है.

    एक सफ़ेद धोती कुर्ता पहना हुआ सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति भी साधनाओं के क्षेत्र का महामानव हो सकता है यह गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी से मिलकर मैने अनुभव किया.


    भैरव साधना से शरभेश्वर साधना तक.......





     कामकला काली से लेकर त्रिपुरसुंदरी तक .......

    अघोर साधनाओं से लेकर तिब्बती साधना तक....





    महाकाल से लेकर महासुदर्शन साधना तक सब कुछ अपने आप में समेटे हुए निखिल  तत्व के जाज्वल्यमान पुंज स्वरूप...



    गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी 

    महाविद्या त्रिपुर सुंदरी के सिद्धहस्त साधक हैं.वर्तमान में बहुत कम महाविद्या सिद्ध साधक इतनी सहजता से साधकों के मार्गदर्शन के लिये उपलब्ध हैं.





    वात्सल्यमयी गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी 

     महाविद्या बगलामुखी की प्रचंड , सिद्धहस्त साधक हैं. 





    स्त्री कथावाचक और उपदेशक तो बहुत हैं पर तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु  अत्यंत दुर्लभ हैं.






    तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु   का बहुत महत्व होता है.

    गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी 

    स्त्री गुरु मातृ स्वरूपा होने के कारण उनके द्वारा प्रदत्त मंत्र साधकों को सहज सफ़लता प्रदायक होते हैं. स्त्री गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र स्वयं में सिद्ध माने गये हैं.





    मैने तंत्र साधनाओं की वास्तविकता और उनकी शक्तियों का अनुभव पूज्यपाद सदगुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ]


    तथा उनके बाद  
    गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी 
     और 

     गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी 

    के सानिध्य में किया है और......


    यदि आप साधनाओं को करने के इच्छुक हैं तो मैं आपका आह्वान करता हूं कि आप आगे बढें, निःशुल्क दीक्षायें प्राप्त करें और दैवीय शक्तियों से स्वयम साक्षात्कार करें







    पत्रिका साधना सिद्धि विज्ञान की सदस्यता[वार्षिक शुल्क मात्र 250 रुपये] लें. सदस्यता शुल्क मनीआर्डर से निम्नलिखित पते पर भेजें.   


    साधना सिद्धि विज्ञान
    शोप न५ प्लाट न२१०
    एम.पी.नगर
    भोपाल [.प्र.] ४६२०११

    15 जुलाई 2016

    निखिल पंचकं

     

     

    शक्ति स्वरूपं भवदेव रूपं, चिन्त्यम विचिन्त्यम शम्भु स्वरूपम ।

    विष्णोर्थवां ब्रह्म तथैव रुपं, गुरुत्वं शरण्यं , गुरुत्वं शरण्यं॥ 

    नारायणोत्वम निखिलेश्वरो त्वम, पूर्णेश्वरो त्वम ज्ञानेश्वरो त्वम ।

    ब्रह्मान्ड रूपं मपरं त्वमेवं, गुरुत्वं शरण्यं गुरुत्वं शरण्यं।

    मातृ स्वरूपं ,पितृ स्वरूपं, ज्ञान स्वरुपं, चैतन्य रुपं ॥ 

    भवतां भवेवं अमृतो sपतुल्यं, गुरुत्वं शरण्यं , गुरुत्वं शरण्यं॥  

    देवाधिदेवं भवतां  श्रियन्तुं ,शिष्यत्व रक्षा परिपूर्ण देयं । 

    अमृतं भवां पूर्ण मदैव कुम्भं, गुरुत्वं शरण्यं , गुरुत्वं शरण्यं॥ 

    कम्पय स्वरूपं गदगद गदेवं, भवतां वदेवं सवितां च सुर्यं । 

    सर्वोपमां पूर्ण पूर्णत्व रुपं, गुरुत्वं शरण्यं , गुरुत्वं शरण्यं॥

    14 जुलाई 2016

    गुरु गायत्री मंत्रम


    ॥ ऊं गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात ॥

     

     

    • गुरुवार से प्रारम्भ करें ।

    • प्रातःकाल [हो सके तो ब्रह्म मुहुर्त ४.०० -६.००] जाप करें । 

    • लाभ - गुरुकृपा ।

    13 जुलाई 2016

    कुन्डलिनी जागरण साधना

    विशेष तथ्य :-

    1. कुन्डलिनी जागरण साधनात्मक जीवन का सौभाग्य है.
    2. कुन्डलिनी जागरण  साधना गुरु के सानिध्य मे करनी चाहिये.
    3. यह शक्ति अत्यन्त प्रचन्ड होती है.
    4. इसका नियन्त्रण केवल गुरु ही कर सकते हैं.
    5. यदि आप गुरु दीक्षा ले चुके हैं तो अपने गुरु की अनुमति से ही यह साधना करें.
    6. यदि आपने गुरु दीक्षा नही ली है तो किसी योग्य गुरु से दीक्षा लेकर ही इस साधना में प्रवृत्त हों.
    7. यदि गुरु प्राप्त ना हो पाये तो आप मेरे गुरु स्वामी सुदर्शननाथ जी  को गुरु मानकर उनसे मानसिक अनुमति लेकर जाप कर सकते हैं .
    स्वामी सुदर्शननाथ जी

    || ॐ ह्रीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय ह्रीं ॐ नम: ||  

    • यह एक अद्भुत मंत्र है. 
    • इससे धीरे धीरे शरीर की आतंरिक शक्तियों का जागरण होता है और कालांतर में कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होने लगती है. 
    • प्रतिदिन इसका १०८, १००८ की संख्या में जाप करें.
    • जाप करते समय महसूस करें कि मंत्र आपके अन्दर गूंज रहा है.
    • मन्त्र जाप के अन्त में कहें :-
    ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम
    शिव शासनतः,शिव शासनतः,शिव शासनतः

    9 जुलाई 2016

    निखिलधाम






    परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [ डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] का यह दिव्य मंदिर है.

    इसका निर्माण परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [Dr. Narayan dutta Shrimali Ji ] के प्रिय शिष्य स्वामी सुदर्शननाथ जी तथा डा साधना सिंह जी ने करवाया है.



    यह [ Nikhildham ] भोपाल [ मध्यप्रदेश ] से लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर के पास लगभग ५ एकड के क्षेत्र में बना हुआ है.

    यहां पर  महाविद्याओं के अद्भुत तेजस्वितायुक्त विशिष्ठ मन्दिर बनाये गये हैं.