- गुरु स्वयं एक शिष्य और साधक होता है .
- वह स्वयं साधना के पथ पर चलता रहता है, क्योंकि गुरुत्व शिवत्व अर्थात निरंतर ध्यानस्थ और साधनारत होने का नाम है .
- गुरु अपने आप में महामाया की सर्वश्रेष्ठ कृति है.
- गुरु स्वयं शिव है शिव स्वयं गुरु हैं .
- गुरुत्व वंश से या जाती से नहीं आता , और न ही यह पिता से पुत्र के पास अपने आप जाता है .
- गुरुत्व साधनाओं से, पराविद्याओं की कृपा और सानिध्य से आता है.
- वह एक विशेष उद्देश्य के साथ धरा पर आता है और अपना कार्य करके वापस महामाया के पास लौट जाता है.
- बिना योग्यता के शिष्य को कभी गुरु बनने की कोशिश नही करनी चाहिये.
- गुरु का अनुकरण यानी गुरु के पहनावे की नकल करने से या उनके अंदाज से बात कर लेने से कोई गुरु के समान नही बन सकता.
- गुरु का अनुसरण करना चाहिये उनके बताये हुए मार्ग पर चलना चाहिये, इसीसे साधनाओं में सफ़लता मिलती है.
- शिष्य बने रहने में लाभ ही लाभ हैं जबकि गुरु के मार्ग में परेशानियां ही परेशानियां हैं, जिन्हे संभालने के लिये प्रचंड साधक होना जरूरी होता है, अखंड गुरु कृपा होनी जरूरी होती है.
- बेवजह गुरु बनने का ढोंग करने से साधक साधनात्मक रूप से नीचे गिरता जाता है और एक दिन अभिशप्त जीवन जीने को विवश हो जाता है .
- गुरु भी सदैव अपने गुरु के प्रति नतमस्तक ही रहता है इसलिए साधकों को अपने गुरुत्व के प्रदर्शन में अपने गुरु के सम्मान को ध्यान रखना चाहिए .
एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
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13 दिसंबर 2016
गुरु मार्ग में कैसे चलें
11 दिसंबर 2016
महाकाली स्तुति
शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
महाकाल प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
मेरी
अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर विराजमान है,
जो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैं, जो चौंषठ कलाओं से युक्त हैं, जो
भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैं, ऐसी प्रचंड
स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं |
उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जिनकी
केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैं, अर्थात हर
नियम, हर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं , जो श्मशान की अधिष्टात्री
देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं , जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये
हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता
हूं |
क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
कटि नर कर मेखला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
अद्भुत
सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत उन्नत
स्तन मंडलों से सुशोभित हैं, जिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे
सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली
जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव
अर्चन करता हूं ||
खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
देव
सेना की महानायिका, जो खड्ग चालन में अति निपुण हैं, युद्ध जिनको अत्यंत
प्रिय है, असुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध
भूमि की अधिष्टात्री हैं , जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का
रक्तपान करने को आतुर रहती हैं , ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल रमणी
महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |
मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||
10 दिसंबर 2016
पद्मावती स्तुति
पूरे भारत में सबसे समृद्ध संप्रदाय है
जैन संप्रदाय
और उनकी अधिष्टात्री देवी है
पद्मावती
दिव्योवताम वे पद्मावती त्वं, लक्ष्मी त्वमेव धन धन्य सुतान्वदै च |
पूर्णत्व देह परिपूर्ण मदैव तुल्यं, पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||
ज्ञानेव सिन्धुं ब्रह्मत्व नेत्रं , चैतन्य देवीं भगवान भवत्यम |
देव्यं प्रपन्नाति हरे प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद ||
धनं धान्य रूपं, साम्राज्य रूपं,ज्ञान स्वरुपम् ब्रह्म स्वरुपम् |
चैतन्य रूपं परिपूर्ण रूपं , पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||
न मोहं न क्रोधं न ज्ञानं न चिन्त्यं परिपुर्ण रूपं भवताम वदैव |
दिव्योवताम सूर्य तेजस्वी रूपं , पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||
सन्यस्त रूप मपरम पूर्ण गृहस्थं, देव्यो सदाहि भवताम श्रियेयम |
पद्मावती त्वं, हृदये पद्माम, कमालत्व रूपं पद्मम प्रियेताम ||
|| इति परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद कृत पद्मावती स्तोत्रं सम्पूर्णं ||
विधि :-
- सबसे पहले तीन बार " ॐ निखिलेश्वराय नमः " मन्त्र का जोर से बोलकर उच्चारण करें |
- इस स्तोत्र को अमावस्या से प्रारंभ करके अगले मॉस की पूर्णिमा पर समाप्त करें |
- नित्य 1,3,5,11 जैसे आपकी क्षमता हो वैसा पाठ करें |
- सात्विक आहार /विचार /व्यवहार रखें |
- क्रोध ना करें |
- किसी स्त्री का अपमान ना करें |
- जिस दिनपाठ पूर्ण हो जाए उस दिन किसी गरीब विवाहित महिला को लाल साड़ी दान करें|
- लक्ष्मी मंदिर या दुर्गा मंदिर में अपनी क्षमतानुसार गुलाब या कमल के फूल चढ़ाएं और देवी पद्मावती से कृपा करने की प्रार्थना करके सीधे वापस घर आ जाएँ |
- घर आने के बाद एक बार और पाठ करें |
- फिर से 3 बार " ॐ निखिलेश्वराय नमः " मन्त्र का जोर से बोलकर उच्चारण करें |
- घर में या परिचय में कोई वृद्ध महिला हो तो उसके चरण स्पर्श करें और कुछ भेंट दें , भेंट आप अपनी क्षमतानुसार कुछ भी दे सकते हैं |
- इस प्रकार पूजन संपन्न हुआ | आगे आप चाहें तो नित्य एक बार पाठ करते रहें |
9 दिसंबर 2016
डोंगरगढ़ साधना शिविर : 10 , 11 दिसम्बर 16
गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी
के दिव्य सान्निध्य में
साधना शिविर का आयोजन
छत्तीसगढ़ के सिद्ध शक्तिपीठ
डोंगरगढ़
में किया जा रहा है |
शिविर में विशेष :-
- विभिन्न साधनाओं के सम्बन्ध में गुरुदेव तथा गुरुमाता जी से व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं .
- गुरु परम्परा के अनुसार विभिन्न महाविद्या , भैरव, महादेव , श्री वेंकटेश्वर आदि साधनाओं से सम्बंधित निशुल्क दीक्षाएं तथा मन्त्र श्री गुरु मुख से प्राप्त कर सकते हैं .
- शिविर स्थल पर विभिन्न साधनात्मक मालाओं और विग्रहों की जानकारी उपलब्ध रहेगी .
- साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका की नयी सदस्यता तथा पुराने अंकों का संग्रह प्राप्त कर सकते हैं | इनमे महाविद्याओं जैसे तारा काली बगलामुखी से सम्बंधित विशेषांक तथा भैरव, शरभेश्वर, हनुमान , जैसे विविध देवताओं से सम्बंधित विशेषांक भी उपलब्ध होंगे |
अन्य किसी प्रकार की जानकारी के लिए संपर्क करें :-
साधना सिद्धि विज्ञान कार्यालय , भोपाल
0755 - 4269368, 4283681,4221116
आयोजन समिति :-
श्री लोकपाल बिसेन 08959688047, 7000427882
8 दिसंबर 2016
भगवती तारा महाविद्या साधना-3
तारा साधना मंत्रम
तारा साधना जीवन का सौभाग्य है। यह साधना मनुष्यत्व से ब्रह्मत्व की यात्रा है। .........
· भगवती तारा महाविद्या की साधना में एक बार संकल्प ले लेने के बाद गलतियों की छूट नहीं होती. इसलिए अपने पर पूरा विश्वास होने पर ही संकल्प लें. संकल्प में अपनी मनोकामना बोले और नित्य जाप की संख्या बताएं। नित्य उतनी ही संख्या में जाप करें। कम ज्यादा जाप ना करें
· सहस्रनाम और कवच का पाठ साथ में करने से अतिरिक्त लाभ होता है.
· भगवती तारा अपने साधक को उसी प्रकार साधना पथ पर आगे लेकर जाती है जैसे एक माँ ऊँगली पकड़कर अपने बच्चे को ले जाती है.
|| ॐ तारा त्रिपुरायै नमः ऋद्धिं वृद्धिम कुरु कुरु स्वाहा ||
· इसके अलावा भी सैकड़ों मंत्र हैं गुरु के निर्देशानुसार उस मन्त्र का जाप करें.
· साधना गुरूवार से प्रारम्भ करें.
· रात्रिकालीन साधना है |
· उत्तर दिशा की और देखते हुए बैठें.
· एकांत कमरा होना चाहिए | साधनाकाल में कोई दूसरा उस कक्ष में ना आये चाहे वह आपकी पत्नी या बच्चा ही क्यों न हो |
· दिन में भी मन ही मन मन्त्र जाप करते रहें .
·
कामकलाकाली स्तोत्रम
महाभगवती कामकलाकाली स्तोत्र साधना
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श्री गणेशाय नमः ।
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः |
ॐ महाकाल भैरवाय नमः |
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महाकाल उवाच ।
अथ वक्ष्ये महेशानि देव्याः स्तोत्रमनुत्तमम् ।
यस्य स्मरणमात्रेण विघ्ना यान्ति पराङ्मुखाः ॥ १॥
विजेतुं प्रतस्थे यदा कालकस्या- सुरान् रावणो मुञ्जमालिप्रवर्हान् ।
तदा कामकालीं स तुष्टाव वाग्भिर्जिगीषुर्मृधे बाहुवीर्य्येण सर्वान् ॥ २॥
महावर्त्तभीमासृगब्ध्युत्थवीची- परिक्षालिता श्रान्तकन्थश्मशाने ।
चितिप्रज्वलद्वह्निकीलाजटाले शिवाकारशावासने सन्निषण्णाम् ॥ ३॥
महाभैरवीयोगिनीडाकिनीभिः करालाभिरापादलम्बत्कचाभिः ।
भ्रमन्तीभिरापीय मद्यामिषास्रान्यजस्रं समं सञ्चरन्तीं हसन्तीम् ॥ ४॥
महाकल्पकालान्तकादम्बिनी- त्विट्परिस्पर्द्धिदेहद्युतिं घोरनादाम् ।
स्फुरद्द्वादशादित्यकालाग्निरुद्र- ज्वलद्विद्युदोघप्रभादुर्निरीक्ष्याम् ॥ ५॥
लसन्नीलपाषाणनिर्माणवेदि- प्रभश्रोणिबिम्बां चलत्पीवरोरुम् ।
समुत्तुङ्गपीनायतोरोजकुम्भां कटिग्रन्थितद्वीपिकृत्त्युत्तरीयाम् ॥ ६॥
स्रवद्रक्तवल्गन्नृमुण्डावनद्धा- सृगाबद्धनक्षत्रमालैकहाराम् ।
मृतब्रह्मकुल्योपक्लृप्ताङ्गभूषां महाट्टाट्टहासैर्जगत् त्रासयन्तीम् ॥ ७॥
निपीताननान्तामितोद्धृत्तरक्तो- च्छलद्धारया स्नापितोरोजयुग्माम् ।
महादीर्घदंष्ट्रायुगन्यञ्चदञ्च- ल्ललल्लेलिहानोग्रजिह्वाग्रभागाम् ॥ ८॥
चलत्पादपद्मद्वयालम्बिमुक्त- प्रकम्पालिसुस्निग्धसम्भुग्नकेशाम् ।
पदन्याससम्भारभीताहिराजा- ननोद्गच्छदात्मस्तुतिव्यस्तकर्णाम् ॥ ९॥
महाभीषणां घोरविंशार्द्धवक्त्रै- स्तथासप्तविंशान्वितैर्लोचनैश्च ।
पुरोदक्षवामे द्विनेत्रोज्ज्वलाभ्यां तथान्यानने त्रित्रिनेत्राभिरामाम् ॥ १०॥
लसद्वीपिहर्य्यक्षफेरुप्लवङ्ग- क्रमेलर्क्षतार्क्षद्विपग्राहवाहैः ।
मुखैरीदृशाकारितैर्भ्राजमानां महापिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ॥ ११॥
भुजैः सप्तविंशाङ्कितैर्वामभागे युतां दक्षिणे चापि तावद्भिरेव ।
क्रमाद्रत्नमालां कपालं च शुष्कं ततश्चर्मपाशं सुदीर्घं दधानाम् ॥ १२॥
ततः शक्तिखट्वाङ्गमुण्डं भुशुण्डीं धनुश्चक्रघण्टाशिशुप्रेतशैलान् ।
ततो नारकङ्कालबभ्रूरगोन्माद- वंशीं तथा मुद्गरं वह्निकुण्डम् ॥ १३॥
अधो डम्मरुं पारिघं भिन्दिपालं तथा मौशलं पट्टिशं प्राशमेवम् ।
शतघ्नीं शिवापोतकं चाथ दक्षे महारत्नमालां तथा कर्त्तुखड्गौ ॥ १४॥
चलत्तर्ज्जनीमङ्कुशं दण्डमुग्रं लसद्रत्नकुम्भं त्रिशूलं तथैव ।
शरान् पाशुपत्यांस्तथा पञ्च कुन्तं पुनः पारिजातं छुरीं तोमरं च ॥ १५॥
प्रसूनस्रजं डिण्डिमं गृध्रराजं ततः कोरकं मांसखण्डं श्रुवं च ।
फलं बीजपूराह्वयं चैव सूचीं तथा पर्शुमेवं गदां यष्टिमुग्राम् ॥ १६॥
ततो वज्रमुष्टिं कुणप्पं सुघोरं तथा लालनं धारयन्तीं भुजैस्तैः ।
जवापुष्परोचिष्फणीन्द्रोपक्लृप्त- क्वणन्नूपुरद्वन्द्वसक्ताङ्घ्रिपद्माम् ॥ १७॥
महापीतकुम्भीनसावद्धनद्ध स्फुरत्सर्वहस्तोज्ज्वलत्कङ्कणां च ।
महापाटलद्योतिदर्वीकरेन्द्रा- वसक्ताङ्गदव्यूहसंशोभमानाम् ॥ १८॥
महाधूसरत्त्विड्भुजङ्गेन्द्रक्लृप्त- स्फुरच्चारुकाटेयसूत्राभिरामाम् ।
चलत्पाण्डुराहीन्द्रयज्ञोपवीत- त्विडुद्भासिवक्षःस्थलोद्यत्कपाटाम् ॥ १९॥
पिषङ्गोरगेन्द्रावनद्धावशोभा- महामोहबीजाङ्गसंशोभिदेहाम् ।
महाचित्रिताशीविषेन्द्रोपक्लृप्त- स्फुरच्चारुताटङ्कविद्योतिकर्णाम् ॥ २०॥
वलक्षाहिराजावनद्धोर्ध्वभासि- स्फुरत्पिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ।
महाशोणभोगीन्द्रनिस्यूतमूण्डो- ल्लसत्किङ्कणीजालसंशोभिमध्याम् ॥ २१॥
सदा संस्मरामीदृशों कामकालीं जयेयं सुराणां हिरण्योद्भवानाम् ।
स्मरेयुर्हि येऽन्येऽपि ते वै जयेयु- र्विपक्षान्मृधे नात्र सन्देहलेशः ॥ २२॥
पठिष्यन्ति ये मत्कृतं स्तोत्रराजं मुदा पूजयित्वा सदा कामकालीम् ।
न शोको न पापं न वा दुःखदैन्यं न मृत्युर्न रोगो न भीतिर्न चापत् ॥ २३॥
धनं दीर्घमायुः सुखं बुद्धिरोजो यशः शर्मभोगाः स्त्रियः सूनवश्च ।
श्रियो मङ्गलं बुद्धिरुत्साह आज्ञा लयः शर्म सर्व विद्या भवेन्मुक्तिरन्ते ॥ २४॥ ॥
|| इति श्री महावामकेश्वरतन्त्रे कालकेयहिरण्यपुरविजये
रावणकृतं कामकलाकाली भुजङ्गप्रयात स्तोत्रराजं सम्पूर्णम् ॥
**************************************************
सामान्य निर्देश :-
· स्तोत्र, साधना के मार्ग में प्रवेश करने का सबसे उत्तम मार्ग है |
· स्तोत्र साधना के लिए गुरु अनिवार्य नहीं है |
· आप अपनी क्षमतानुसार नित्य पाठ करें |
· पाठ संख्या 21,51,108 तक हो सकती हैं | गिनती के लिए आप अपनी सुविधानुसार कापी पेन या किसी अन्य वस्तु का प्रयोग कर सकते हैं |
· जैसे जैसे पाठ की संख्या बढती जायेगी स्तोत्र उतना बलवान होगा और आपको कार्य में अनुकूलता प्रदान करेगा |
· साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
· इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
· साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
-------------------------------------
विधि :-
पाठ प्रारम्भ के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले), आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह स्तोत्र पाठ कर रहा/ रही हूँ | मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " | इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
1. उत्तर या पूर्व दिशा की और देखते हुए बैठें |
2. आसन लाल/पीले रंग का रखें|
3. शक्ति स्त्रोत का पाठ रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें | संभव ना हो तो दिन में भी कर सकते हैं |
4. यदि अर्धरात्रि पाठ करते हुए निकले तो श्रेष्ट है |
5. पाठ के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें |
6. साधना काल में किसी को आशीर्वाद या श्राप ना दें | इससे आपकी साधनात्मक शक्ति का ह्रास होगा |
7. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें | यथा संभव हर स्त्री को देवी के रूप में देखें |
8. सात्विक आहार/ आचार/ विचार/व्यवहार रखें |
9. ब्रह्मचर्य का पालन करें | विवाहित पुरुष अपनी विवाहिता स्त्री के साथ सम्बन्ध रख सकते हैं |
10. व्यर्थ के प्रलाप और अपनी साधना का ढिंढोरा पीटने से बचें | इससे आपकी शक्ति कम होती जाती है | साधना को यथा संभव गोपनीय रखें |
11. साधना का प्रयोग यदि लोगों की समस्या के समाधान के लिए कर रहे हों तो नित्य साधना अवश्य करें |
12. यदि नित्य साधना नहीं करेंगे और समस्या समाधान करेंगे तो धीरे धीरे आपकी शक्ति क्षीण होती जायेगी और काम होने बंद हो जायेंगे |
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