12 मार्च 2020

नवरात्रि विशेष : छिन्नमस्ता साधना




॥ ऊं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऎं वज्रवैरोचनीयै ह्रीं ह्रीं फ़ट स्वाहा ॥



नोट:- यह साधना गुरुदीक्षा लेकर गुरु अनुमति से ही करें.....



  1. प्रचंड तान्त्रिक प्रयोगों की शान्ति के लिये छिन्नमस्ता साधना की जाती है. यह तन्त्र क्षेत्र की उग्रतम साधनाओं में से एक है.
  2. यह साधना गुरु दीक्षा लेकर गुरु की अनुमति से ही करें. 
  3. यह रात्रिकालीन साधना है. नवरात्रि में विशेष लाभदायक है. 
  4. काले या लाल वस्त्र आसन का प्रयोग करें. 
  5. रुद्राक्ष या काली हकीक की माला का प्रयोग जाप के लिये करें. 
  6. सुदृढ मानसिक स्थिति वाले साधक ही इस साधना को करें. 
  7. साधना काल में भय लग सकता है.ऐसे में गुरु ही संबल प्रदान करता है.
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साधना में गुरु की आवश्यकता
        मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
        साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता हैजिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
        गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
गुरु के बिना साधना
        स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
        जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
        शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
        गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y      मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखेंढिंढोरा ना पीटेंबेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y      गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y      आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y      बकवास और प्रलाप न करें.
Y      किसी पर गुस्सा न करें.
Y      यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y      ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y      किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y      जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y      बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y      ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y      इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म लगातार गर्भपातसन्तान ना होना अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y      भूतप्रेतजिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशाआसनवस्त्र का महत्व
Y      साधना के लिए नदी तटशिवमंदिरदेविमंदिरएकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y      आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y      अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशाआसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y      इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
माला तथा जप संख्या
Y      रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y      रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती अगर अलग से निर्देश न हो तो सभी साधनाओं में रुद्राक्ष माला से मन्त्र जाप कर सकते हैं .
Y      एक साधना के लिए एक माला का उपयोग करें |
Y      सवा लाख मन्त्र जाप का पुरश्चरण होगा |
Y      गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
सामान्य हवन विधि
Y      जाप पूरा होने के बाद किसी गोल बर्तन, हवनकुंड में हवन अवश्य करें | इससे साधनात्मक रूप से काफी लाभ होता है जो आप स्वयं अनुभव करेंगे |
Y      अग्नि जलाने के लिए माचिस का उपयोग कर सकते हैं | इसके साथ घी में डूबी बत्तियां तथा कपूर रखना चाहिए
Y      जलाते समय “ॐ अग्नये नमः” मन्त्र का कम से काम 7 बार जाप करें | जलना प्रारंभ होने पर इसी मन्त्र में स्वाहा लगाकर घी की 7 आहुतियाँ देनी चाहिए |
Y      बाजार में उपलब्ध हवन सामग्री का उपयोग कर सकते हैं |
Y      हवन में 1250 बार या जितना आपने जाप किया है उसका सौवाँ भाग हवन करें | मन्त्र के पीछे “स्वाहा” लगाकर हवन सामग्री को अग्नि में डालें |
भावना का महत्व
Y      जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y      यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y      नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |
Y      देवी या देवता माता पिता तुल्य होते हैं उनके सामने शिशुवत जाप करेंगे तो किसी प्रकार का दोष नहीं लगेगा |

10 मार्च 2020

गुरु मंत्र

मेरे पूज्यपाद गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी अब सशरीर हमारे बीच नहीं है । 

 डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी

इस वीडियो के माध्यम से आप मानसिक रूप से उन्हे गुरु मानकर गुरु दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं । और गुरु मंत्र का जाप कर सकते हैं ।




जैसे जैसे आपका गुरु मंत्र का जाप बढ़ता जाएगा आपको स्वप्न मे या किसी न किसी माध्यम से साधनात्मक निर्देश या मार्ग प्राप्त हो जाएगा .... 

गुरु मंत्र
॥ ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥

1.    गुरु मंत्र जाप के लिए ब्रह्म मुहूर्त अर्थात 3 से 6 बजे का समय सबसे बढ़िया है । संभव न हो तो कभी भी कर सकते हैं ।
2.  मंत्र जाप के काल मे शुद्ध आचार व्यवहार और विचार रखें ।
3.  सभी स्त्रियों को मातृवत समझें तथा उनका सम्मान करें ।
4. यथासंभव ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
5.  संभव हो तो नित्य एक निश्चित समय पर बैठें ।
6.  जाप पूरा हो जाने के बाद उस स्थान पर कम से कम पाँच मिनट आँख बंद करके बैठे रहें ।  
7.   108 मनकों की माला से मंत्र जाप किया जाता है ।
8.  रुद्राक्ष या स्फटिक माला श्रेष्ठ है ।
9.  मंत्र जाप की गिनती करते समय एक माला के जाप को 100 मंत्र माना जाता है ।  
10.                     मंत्र जाप करते समय एक माला के 108 मे से बचे 8 मंत्र के जाप को उच्चारण की त्रुटि या किसी प्रकार की अन्य त्रुटि के समाधान के लिए छोड़ दिया जाता है ।  
11.                      सवा लाख मंत्र जाप का एक पुरश्चरण माना जाता है ।
12.                     इसके लिए आपको 1250 माला मंत्र जाप करना होगा ।
13.                     किसी भी प्रकार की साधना करते समय सबसे पहले गुरु पूजन करें तथा उसके बाद आप गुरु मंत्र की एक माला करें तथा उसके बाद ही मंत्र जाप करें । इससे सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं ।

9 मार्च 2020

पति अनुकूलन प्रयोग : होलीका दहन विशेष


पति से झगड़ा और कडवे संबंध गृहस्थ जीवन की सबसे बड़ी समस्या है....
अपने पति से समरसता बनाने के लिए ... इस मंत्र का प्रयोग करें ।
॥ यह केवल आपस मे विवाहित पति पत्नी के लिए काम करेगा, दूसरे की पत्नी/पति  को अनुकूल बनाने या प्रेमी/प्रेमिका को अनुकूल बनाने के लिए इस मंत्र का प्रयोग आपको नुकसान और अपयश प्रदान करेगा  

"हथेली में हनुमन्त बसैभैरु बसे कपार ।
नरसिंह की मोहिनीमोहे सब संसार ।
मोहन रे मोहन्ता वीरसब वीरन में तेरा सीर ।
सबकी नजर बाँध देतेल सिन्दूर चढ़ाऊँ तुझे ।
तेल सिन्दूर कहाँ से आया ?
कैलास-पर्वत से आया ।
कौन लायाअञ्जनी का हनुमन्त,गौरी का गनेश लाया ।
कालागोरातोतला-तीनों बसे कपार ।
बिन्दा तेल सिन्दूर कादुश्मन गया पाताल ।
दुहाई कमिया सिन्दूर की,
हमें देख शीतल हो जाए भरतार ।
दुहाई महादेव पार्वती की ।
बस जाये मेरा परिवार ।
सत्य नामआदेश गुरु का ।
फूरो मंत्र ईश्वरो वाचा ।


जाप के अंत मे तीन बार निम्नलिखित मंत्र बोलें ।
॥ ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥ 


1.      कामिया सिन्दूर मिल जाये तो उसे सामने रख लें.
2.   कामिया सिंदूर न मिले तो उस कुमकुम को या बिंदी को रख लें जिसका आप उपयोग करती हैं ।
3.   इस मन्त्र को रोज 108 बार जाप , होलिका दहन वाली पूर्णिमा से प्रारंभ कर अगली पूर्णिमा तक करें.
4.   इसका जाप रात मे करना श्रेष्ठ है, लेकिन संभव न हो तो आप दिन मे भी कर सकते हैं ।
5.    इसका टीका  [बिंदी] लगाकर पति के पास जाएँ. टीका लगाते समय महामाया से प्रार्थना करें कि मेरा पति मेरे अनुकूल हो .
6.  ऐसा नित्य करें तो पति धीरे धीरे अनुकूल होने लगता है.
7.    ऐसा नहीं है कि इससे वह आपके आदेश का गुलाम हो जाएगा , वह आपके प्रति सद्भावना से युक्त होने लगेगा .
8.   इसके साथ साथ अपना व्यवहार भी अच्छा और शांत रखें. बेवजह की तानाकशी और टिप्पणी से बचें. ससुराल वालों को कोसना और मीन मेख निकालना भी कम करें .
9.  मुस्कुराए . क्योंकि मुस्कुराहट सबसे बड़ा सम्मोहन है. खुश रहें ।  

4 मार्च 2020

भगवती महाकाली सहस्त्राक्षरी मंत्र

भगवती महाकाली सहस्त्राक्षरी मंत्र



ॐ क्रीं  क्रीँ  क्रीँ  ह्रीँ  ह्रीँ  हूं  हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ  क्रीँ  क्रीँ  ह्रीँ  ह्रीँ  हूं  हूं स्वाहा ।

शुचिजाया, महापिशाचिनी,  दुष्टचित्तनिवारिणी,
क्रीँ कामेश्वरी,  वीँ हं वाराहिके, ह्रीँ महामाये, खं खः क्रोधाधिपे !
श्रीं  महालक्ष्म्ये ! सर्वहृदय रञ्जनी । वाग्वादिनी विधे त्रिपुरे ।
हंस्त्रिँ  हसकहल ह्रीँ  हस्त्रैँ  ॐ ह्रीँ  क्लीँ  मे  स्वाहा ।
ॐ ॐ ह्रीँ  ईं स्वाहा ।
दक्षिणकालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा ।

खड्गमुण्डधरे, कुरुकुल्ले तारे, ॐ  ह्रीँ  नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन । पच पच ।  मथ मथ ।
फ्रेँ विमोहिनी सर्वदुष्टान मोहय मोहय ।
हयग्रीवे, सिँहवाहिनी, सिँहस्थे, अश्वारुढे, अश्वमुरिप विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून ये मां हिँसतु तान ग्रस ग्रस ।
महानीले, वलाकिनी, नीलपताके, क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे, संक्षोभिणी, उच्छिष्टचाण्डालिके,
सर्वजगद वशमानय वशमानय ।

मातंगिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातंगिनी सर्ववशंकरी नमः स्वाहा ।
विस्फारिणी । कपालधरे ।  घोरे । घोरनादिनी । भूर शत्रून् विनाशिनी । उन्मादिनी ।
रोँ  रोँ रोँ  रीँ  ह्रीँ  श्रीँ  हसौः सौँ  वद वद क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ  क्रीँ  क्रीँ कति कति स्वाहा |

काहि काहि कालिके ।
शम्वरघातिनी, कामेश्वरी, कामिके, ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा ।

हृदयाये ॐ ह्रीँ  क्रीँ  मे स्वाहा ।

ठः ठः ठः क्रीँ  ह्रं  ह्रीँ  चामुण्डे हृदय जनाभिअसूनव ग्रस ग्रस दुष्टजनान् ।
अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नतस्तनेविष्टंभकारिणि । विघाधिके ।  श्मशानवासिनी । कलय कलय । विकलय विकलय । कालग्राहिके । सिँहे । दक्षिणकालिके । अनिरुद्दये । ब्रूहि ब्रूहि । जगच्चित्रिरे । चमत्कारिणी । हं कालिके ।  करालिके । घोरे । कह कह । तडागे । तोये । गहने । कानने । शत्रुपक्षे । शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि । अम्बिके । तुभ्यं कल विकलायै । बलप्रमथनायै । योगमार्ग गच्छ गच्छ ।  निदर्शिके । देहिनि । दर्शनं देहि देहि । मर्दिनि महिषमर्दिन्यै । स्वाहा ।

रिपुन्दर्शने द र्शय दर्शय । सिँहपूरप्रवेशिनि । वीरकारिणि । क्रीँ  क्रीँ  क्रीँ  हूं  हूं ह्रीँ  ह्रीँ फट् स्वाहा ।

शक्तिरुपायै ।  रोँ  वा गणपायै  । रोँ  रोँ  रोँ व्यामोहिनि । यन्त्रनिके । महाकायायै ।  प्रकटवदनायै । लोलजिह्वायै । मुण्डमालिनि । महाकालरसिकायै । नमो नमः ।
ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः ।
शत्रुविग्रहकलहान्त्रिपुरभोगिन्यै । विषज्वालामालिनी । तन्त्रनिके । मेधप्रभे । शवावतंसे । हंसिके । कालि कपालिनि । कुल्ले कुरुकुल्ले । चैतन्यप्रभे प्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ  ह्रीँ  रक्ष रक्ष । ज्वाला । प्रचण्ड । चण्डिके ।  शक्ति । मार्तण्ड ।  भैरवि ।  विप्रचित्तिके । विरोधिनि । आकर्णय आकर्णय । पिशिते । पिशितप्रिये । नमो नमः ।
खः खः खः मर्दय मर्दय । शत्रून् ठः ठः ठः । कालिकायै नमो नमः ।
ब्राम्हयै नमो नमः ।
माहेश्वर्यै नमो नमः ।
कौमार्यै नमो नमः ।
वैष्णव्यै नमो नमः ।
वाराह्यै नमो नमः ।
इन्द्राण्यै नमो नमः ।
चामुण्डायै नमो नमः ।
अपराजितायै नमो नमः ।
नारसिँहिकायै नमो नमः ।
कालि । महाकालिके । अनिरुध्दके । सरस्वति फट् स्वाहा ।

पाहि पाहि ललाटं । भल्लाटनी । अस्त्रीकले । जीववहे । वाचं रक्ष रक्ष । परविद्या क्षोभय क्षोभय । आकर्षय आकर्षय । कट कट । अमुकान मोहय मोहय  महामोहिनिके । चीरसिध्दके । कृष्णरुपिणी । अंजनसिद्धके ।  स्तम्भिनि । मोहिनि । मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।।



  • 108 पाठ से लाभ मिलेगा |
  • चमेली के तेल का दीपक जलएंगे । 
  • रात्रिकालीन साधना है |

आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

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29 फ़रवरी 2020

सद्गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा गुरु दीक्षा की वीडियो

मेरे पूज्यपाद गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी अब सशरीर हमारे बीच नहीं है । 

 डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी

इस वीडियो के माध्यम से आप मानसिक रूप से उन्हे गुरु मानकर गुरु दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं । और गुरु मंत्र का जाप कर सकते हैं ।




जैसे जैसे आपका गुरु मंत्र का जाप बढ़ता जाएगा आपको स्वप्न मे या किसी न किसी माध्यम से साधनात्मक निर्देश या मार्ग प्राप्त हो जाएगा .... 

गुरु मंत्र
॥ ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥

1.    गुरु मंत्र जाप के लिए ब्रह्म मुहूर्त अर्थात 3 से 6 बजे का समय सबसे बढ़िया है । संभव न हो तो कभी भी कर सकते हैं ।
2.  मंत्र जाप के काल मे शुद्ध आचार व्यवहार और विचार रखें ।
3.  सभी स्त्रियों को मातृवत समझें तथा उनका सम्मान करें ।
4. यथासंभव ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
5.  संभव हो तो नित्य एक निश्चित समय पर बैठें ।
6.  जाप पूरा हो जाने के बाद उस स्थान पर कम से कम पाँच मिनट आँख बंद करके बैठे रहें ।  
7.   108 मनकों की माला से मंत्र जाप किया जाता है ।
8.  रुद्राक्ष या स्फटिक माला श्रेष्ठ है ।
9.  मंत्र जाप की गिनती करते समय एक माला के जाप को 100 मंत्र माना जाता है ।  
10.                     मंत्र जाप करते समय एक माला के 108 मे से बचे 8 मंत्र के जाप को उच्चारण की त्रुटि या किसी प्रकार की अन्य त्रुटि के समाधान के लिए छोड़ दिया जाता है ।  
11.                      सवा लाख मंत्र जाप का एक पुरश्चरण माना जाता है ।
12.                     इसके लिए आपको 1250 माला मंत्र जाप करना होगा ।
13.                     किसी भी प्रकार की साधना करते समय सबसे पहले गुरु पूजन करें तथा उसके बाद आप गुरु मंत्र की एक माला करें तथा उसके बाद ही मंत्र जाप करें । इससे सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं ।

20 फ़रवरी 2020

पञ्च मुखी रुद्राक्ष


  1. पञ्च मुखी रुद्राक्ष सहजता से मिल जाता है.
  2. यह पंच देवों का स्वरूप है .
  3. शिवरात्रि या किसी सोमवार को 108 बार "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप कर धारण करने से रक्षा कवच का काम करता है .
  4. इसे पहनने से नजर/तंत्र /टोटका से रक्षा मिलती है .
  5. शिवकृपा देता है .
  6. उच्च रक्तचाप HIGH BP में लाभदायक है.
. . .

दस महाविद्या शाबर मंत्र




प्रथम ज्योति महाकाली प्रगटली ।
ॐ निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वहानी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त-पी-पीवे । भस्मन्ति माई जहाँ पर पाई तहाँ लगाई । सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोर काली अजर ।। महाकाली ।।
बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ॐ काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली ।
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।
द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी ।
।। तारा ।।
ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया । ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया । घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा । पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा, डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया । चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी ।
ॐ ह्रीं स्त्रीं फट्, ॐ ऐं ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्
तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी ।
।। षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी ।।
ॐ निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद । तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश । हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश । त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी । इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी । उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला । योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता ।
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं कएईलह्रीं
हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं सोः
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ।
चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी ।‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
।। भुवनेश्वरी ।।
ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी । बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया । चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार । योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता ।
ह्रीं
पञ्चम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी ।
।। छिन्नमस्ता ।।
सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या । पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये ।
श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र-वैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा ।
षष्टम ज्योति भैरवी प्रगटी ।
।। भैरवी ।।
ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी, सम्पत्त-प्रदा-भैरवी, कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी । जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।
ॐ ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः
सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी
।। धूमावती ।।
ॐ पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि । डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी । जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये । धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत ।
ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।
अष्टम ज्योति बगलामुखी प्रगटी ।
।। बगलामुखी ।।
ॐ सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पिला । संहासन पीले ऊपर कौन बसे । सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी । कच्ची बच्ची काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुद्-गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला । बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त कोट सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे । बाला बगलामुखी नमो नमस्कार ।
ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात् ।
नवम ज्योति मातंगी प्रगटी ।
।। मातंगी ।।
ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।
ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।
दसवीं ज्योति कमला प्रगटी ।
।। कमला ।।
ॐ अ-योनी शंकर ॐ-कार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप । हाथ में सोने का कलश, मुख से अभय मुद्रा । श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा । देवी देवत्या ने किया जय ॐ-कार । कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन । कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान । जिसकी तीन लोक में भया मान । कमला देवी के चरण कमल को आदेश ।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध-लक्ष्म्यै नमः ।


भोले बाबा की साधना


यह साधना भोले बाबा के उन भोले भक्तों के लिए है जो कुछ जानते नहीं और जानना भी नहीं चाहते |
शिव पंचाक्षरी मन्त्र है |
॥ ऊं नमः शिवाय ॥

शिवरात्रि की रात्रि शाम ६ से सुबह ६ तक जाप करें..


जाप से पहले अपनी मनोकामना कह दें..
कर सकें तो कम से कम 1 बेलपत्र और एक कलश जल बाबा के ऊपर चढ़ा दें बाकी बाबा देख लेंगे