13 सितंबर 2022

गायत्री मंत्र द्वारा एक सौ आठ देवी देवताओं का पूजन साधना

 गायत्री मंत्र द्वारा एक सौ आठ देवी देवताओं का पूजन साधना 



गुरुदेव आचार्य श्रीराम शर्मा के द्वारा स्थापित गायत्री परिवार के माध्यम से संपूर्ण विश्व गायत्री मंत्र की शक्ति और क्षमता से परिचित हो चुका है और गायत्री मंत्र के महत्त्व से  सभी साधक गण अच्छी तरह से परिचित है .

यहाँ पर  मैं अपने गुरु भाई श्री राहुल कुलकर्णी जी के द्वारा प्राप्त हुई पूजन  विधि प्रस्तुत कर रहा हूं जिसके माध्यम से आप 108 देवी देवताओं का पूजन एक साथ सब बंद कर सकते हैं इसमें मुश्किल से आधा या 1 घंटे का समय लगेगा ।  

 इसमें आप मंत्र जाप करते हुए पुष्प अक्षत जल जो आपकी श्रद्धा हो उसे अपने इष्ट के विग्रह शिवलिंग आदि पर समर्पित कर सकते हैं। 

कुछ भी उपलब्ध नही हो तो भी किसी खाली  प्लेट मे एक आचमनी जल छोडते हुये संपन्न कर सकते है । 

प्रयोग के रूप में अगर आप इसे करना चाहे तो जो माला, रुद्राक्ष या रत्न आप पहनते हैं या पहनना चाहते हैं उसके ऊपर इन मंत्रों का जाप करते हुए जल अक्षत कुमकुम आदि चढ़ाकर आप उसे चैतन्य कर सकते हैं । यह आपके लिए रक्षा कवच ऐसा कार्य करेगा । 

इस पूजन में सभी प्रमुख देवी देवताओं के साथ-साथ नवग्रह का पूजन भी सम्मिलित है यही नहीं इसमें सभी दिशाओं के देवताओं का पूजन सम्मिलित होने के कारण वास्तु पूजन भी संपन्न हो जाता है एक प्रकार से यह एक बेहद सरल छोटा और अपने आप में संपूर्ण पूजन है जिसका प्रयोग आप किसी भी विशेष पूजन के अवसर पर या नित्य पूजन में भी कर सकते हैं ।  मंत्रों का उच्चारण करने में शुरू में थोड़ी दिक्कत हो सकती है लेकिन उच्चारण करते करते आप का उच्चारण होता है स्पष्ट होता जाएगा यदि किसी शब्द के उच्चारण में आपको दिक्कत है तो आप मेरे ऑडियो चैनल से इसे सुन सकते हैं जिसका लिंक नीचे दिया हुआ है :-




सर्वप्रथम हाथ जोडकर प्रणाम करे 

ॐ गुं गुरुभ्यो नम: 

ॐ श्री गणेशाय नम: 

ॐ  गायत्र्यै नम: 

अब दाहिने हाथ मे जल लेकर 4 बार आचमन करे 

 ॐ  आत्मतत्वाय स्वाहा 

ॐ विद्यातत्वाय स्वाहा 

ॐ  शिवतत्वाय स्वाहा 

ॐ  सर्वतत्वाय स्वाहा 

फिर गुरु , परम गुरु और पारमेष्ठी गुरु को प्रणाम करे 

ॐ गुरुभ्यो नम: 

ॐ परम गुरुभ्यो नम: 

ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम: 

अब अपने आसन को स्पर्श कर पुष्प अक्षत अर्पण करे 

ॐ आसन देवताभ्यो नम: 

ॐ पृथिव्यै  नम: 

अब एक  कलश मे जल लेकर उसमे कपुर , चंदन , इत्र की कुछ बुंदे , तुलसी पत्र , पुष्प अक्षत डाले और कलश को तिलक करे . 

 ॐ कलश देवताभ्यो नम: 

अब अपने आप को चंदन या कुंकुम का तिलक  लगाये 

फिर दाहिने हाथ मे जल लेकर निम्न संकल्प का उच्चारण कर छोडे

मैं (अपना नाम ), गोत्र ( न मालूम हो तो भारद्वाज या कश्यप गोत्र बोल सकते हैं ), आज इस पुण्य अवसर पर अपनी मनोकामना (मन मे अपनी मनोकामना बोल दें या आध्यात्मिक उन्नती हेतु कहें ) की पूर्ति हेतु श्रद्धापूर्वक सकल देवता की कृपा हेतु अष्टोत्तर देवता गायत्री मंत्र अर्चन संपन्न कर रहा हू .

हाथ जोड़कर देवी गायत्री के स्वरूप का ध्यान करके प्रणाम कर लें । 

भगवती गायत्री का पंचोपचार पूजन करे 

ॐ भुर्भुव:  स्व: गायत्र्यै नम : गंधं समर्पयामि [कुमकुम चढ़ाएँ ]

ॐ भूर्भुवः स्व:  गायत्र्यै नम: पुष्पं समर्पयामि [फूल चढ़ाएँ ]

ॐ भूर्भुवः स्व:  गायत्र्यै नम: धूपं समर्पयामि [अगरबत्ती दिखाएँ ]

ॐ भूर्भुवः स्व:  गायत्र्यै नम: दीपं  समर्पयामि [दीपक]

ॐ भूर्भुवः स्व:  गायत्र्यै नम: नैवेद्यं  समर्पयामि [प्रसाद ]



अब गायत्री मंत्र का 12 बार उच्चारण करे .

ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात् 

अब विविध देवताओं के गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुये कलश के जल से एक एक आचमनी जल चढ़ाएँ । या कुमकुम, पुष्प, बेलपत्र,चावल जो भी आपकी भावना हो उसे चढ़ा सकते हैं । 

विविध देवताओं के  गायत्री मंत्र 

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1) ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् 

2) ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात् 

3) ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीश: प्रचोदयात् 

4) ॐ अनसुयासुताय विद्महे अत्रिपुत्राय धीमहि तन्नो दत्त: प्रचोदयात् 

5) ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात् 

6) ॐ एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंति प्रचोदयात् 

7) ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसरुढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् 

8) ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै च धीमहि तन्नो वाणी प्रचोदयात् 

9) ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात् 

10) ॐ महालक्ष्म्यै  विद्महे विष्णुप्रियायै   धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् 

11) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् 

12) ॐ कात्यायन्यै च विद्महे कन्याकुमारी च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् 

13) ॐ कृष्णकायाम्बिकाय विद्महे पार्वतीरुपाय च धीमहि तन्नो कालिका प्रचोदयात् 

14) ॐ तारायै विद्महे महोग्रायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

15) ॐ वैरोचन्यै च विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

16) ॐ ऐं त्रिपुरा देव्यै विद्महे क्लीं कामेश्वर्यै धीमहि सौस्तन्न: क्लिन्ने प्रचोदयात् 

17) ॐ त्रिपुरसुंदर्यै च विद्महे कामेश्वर्यै धीमहि तन्नो बाला प्रचोदयात् 

18) ॐ भुवनेश्वर्यै विद्महे रत्नेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

19)  ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

20) ॐ धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात् 

21) ॐ बगलामुख्यै च विद्महे स्तंभिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

22) ॐ मातंग्यै च विद्महे उच्छिष्टचांडाल्यै  च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

23) ॐ महालक्ष्मी विद्महे विष्णुपत्नी धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् 

24) ॐ महिषमर्दिन्यै च विद्महे दुर्गादेव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

25) ॐ तुलसीदेव्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि तन्नो वृंदा प्रचोदयात् 

26) ॐ गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् 

27) ॐ शैलपुत्र्यै च विद्महे काममालायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

28) ॐ ब्रह्मचारिण्यै विद्महे ज्ञानमालायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

29) ॐ चंद्रघण्टायै विद्महे अर्धचंद्राय धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्

30) ॐ कुष्मांडायै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

31) ॐ कुमार्यै  च विद्महे स्कंदमातायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

32) ॐ कात्यायन्यै च विद्महे सिद्धिशक्त्यै च धीमहि तन्नो कात्यायनी प्रचोदयात् 

33) ॐ कालरात्र्यै च विद्महे सर्वभयनाशिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

34) ॐ सिद्धिदात्र्यै च विद्महे सर्वसिद्धिदायिनी च धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् 

35) ॐ महागौर्यै विद्महे शिवप्रियायै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् 

36) ॐ ब्रह्ममनसायै विद्महे मंत्रअधिष्ठात्र्यै च धीमहि तन्नो मनसा प्रचोदयात् 

37) ॐ सुस्थिरयौवनायै विद्महे सर्वमंगलायै च धीमहि तन्नो मंगलचंडी प्रचोदयात् 

38) ॐ भूवाराह्यै च विद्महे रत्नेश्वर्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

39) ॐ वराहमुखी विद्महे आंत्रासनी च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्

40) ॐ ज्वालामालिन्यै च विद्महे महाशूलिन्यै च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्

41) ॐ भगवत्यै विद्महे महेश्वर्यै धीमहि  तन्नो अन्नपूर्णा प्रचोदयात्

42) ॐ व्यापिकायै विद्महे नानारुपायै धीमहि तन्नो योगिनी प्रचोदयात् 

43) ॐ सहस्त्रथनाय विद्महे जननीरुपायै च धीमहि तन्नो कामधेनु: प्रचोदयात् 

44) ॐ देवकीनंदनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात् 

45) ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात् 

46) ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात् 

47) ॐ जनकनंदिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि तन्नो सीता प्रचोदयात्

48) ॐ दशरथसुताय विद्महे रामानुजाय धीमहि तन्नो लक्ष्मण: प्रचोदयात् 

49) ॐ अंजनीसुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनुमत प्रचोदयात् 

50) ॐ श्री निलयाय विद्महे व्यंकटेशाय धीमहि तन्नो हरि: प्रचोदयात् 

51) ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात् 

52) ॐ जामदग्नाय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात् 

53) ॐ धन्वंतराय विद्महे अमृतकलशहस्ताय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात् 

54) ॐ सहस्त्रशीर्षाय विद्महे विष्णुतल्पाय धीमहि तन्नो शेष: प्रचोदयात् 

55) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुड: प्रचोदयात् 

56) ॐ पांचजन्याय विद्महे पवमानाय धीमहि तन्नो शंख: प्रचोदयात् 

57) ॐ सुदर्शनाय विद्महे चक्रराजाय धीमहि तन्नो चक्र: प्रचोदयात् 

58) ॐ यंत्रराजाय विद्महे वरप्रदाय धीमहि तन्नो यंत्र: प्रचोदयात् 

59) ॐ पाशुपतये विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो शिव: प्रचोदयात् 

60) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय  धीमहि तन्नो स्कंद: प्रचोदयात् 

61) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे चक्रतुंडाय धीमहि तन्नो नंदी: प्रचोदयात् 

62) ॐ आपदुद्धारणाय विद्महे बटुकेश्वराय धीमहि तन्नो वीर:  प्रचोदयात् 

63) ॐ मन्मथेशाय विद्महे कामदेवाय धीमहि तन्नो अनंग: प्रचोदयात् 

64) ॐ कालवर्णाय विद्महे महाकोपाय धीमहि तन्नो वीरभद्र: प्रचोदयात् 

65) ॐ शालुवेषाय विद्महे पक्षिराजाय धीमहि तन्नो शरभ: प्रचोदयात् 

66) ॐ श्वानध्वजाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नो क्षेत्रपाल: प्रचोदयात् 

67) ॐ ओंकाराय विद्महे भवताराय धीमहि तन्नो प्रणव: प्रचोदयात् 

68) ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात् 

69) ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृततत्त्वाय धीमहि तन्नो चंद्र: प्रचोदयात् 

70) ॐ अंगारकाय  विद्महे शक्तिहस्ताय  धीमहि तन्नो  भौम: प्रचोदयात् 

71) ॐ सौम्यरुपाय  विद्महे बाणेशाय  धीमहि तन्नो बुध: प्रचोदयात् 

72) ॐ आंगिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय  धीमहि तन्नो जीव: प्रचोदयात् 

73) ॐ शुक्राचार्याय विद्महे गौरवर्णाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात् 

74) ॐ कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्नो सौरि: प्रचोदयात् 

75) ॐ कृष्णवर्णाय विद्महे रौद्ररुपाय धीमहि तन्न: शनैश्चर: प्रचोदयात् 

76) ॐ शिरोरुपाय  विद्महे अमृतेशाय  धीमहि तन्न: राहु: प्रचोदयात् 

77) ॐ पद्मपुत्राय  विद्महे अमृतेशाय  धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात् 

78) ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्रमूर्त्यै च धीमहि तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात् 

79) ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्नि: प्रचोदयात् 

80) ॐ जलबिंबाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नो अंबु  प्रचोदयात् 

81) ॐ विश्वपुरुषाय विद्महे शिवापत्ये च धीमहि तन्नो पवन: प्रचोदयात् 

82) ॐ सर्वव्यापकाय विद्महे गगनाय च धीमहि तन्नो आकाश: प्रचोदयात् 

83) ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्न: इंद्र: प्रचोदयात् 

84) ॐ वैश्वानराय विद्महे सप्तजिव्हाय धीमहि तन्नो अग्नि: प्रचोदयात् 

85) ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यम: प्रचोदयात् 

86) ॐ ज्वालामुखाय विद्महे उष्ट्रवाहनाय धीमहि निऋति: प्रचोदयात् 

87) ॐ पश्चिमेशाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नो वरुण: प्रचोदयात् 

88) ॐ ध्वजहस्ताय विद्महे प्राणाधिपाय धीमहि तन्नो वायु: प्रचोदयात् 

89) ॐ यक्षराजाय विद्महे पुलस्त्य पुत्राय धीमहि तन्नो कुबेर: प्रचोदयात् 

90) ॐ अर्धदेवाय विद्महे व्यंतरदेवत्रे च धीमहि तन्नो यक्ष: प्रचोदयात् 

91) ॐ गीतवीणायै विद्महे कामरुपिण्यै धीमहि तन्नो गंधर्व: प्रचोदयात् 

92) ॐ कामदेवप्रियायै विद्महे सौंदर्यमूर्तये धीमहि तन्नो अप्सरा प्रचोदयात् 

93) ॐ सहस्त्रफणाय विद्महे वासुकिराजाय धीमहि तन्नो नाग: प्रचोदयात्

94) ॐ पितृवंशाय विद्महे प्रपितामहाय धीमहि तन्नो पितर: प्रचोदयात् 

95) ॐ नागपृष्ठाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नो वास्तु प्रचोदयात् 

96) ॐ पाराशरगोत्राय विद्महे नानापुराणाय धीमहि तन्नो व्यास: प्रचोदयात् 

97) ॐ आदिऋष्यै विद्महे रामायणाय धीमहि तन्नो वाल्मिकि: प्रचोदयात् 

98) ॐ ब्रह्ममानसपुत्राय विद्महे पुराणेतिहासकाराय धीमहि तन्नो वसिष्ठ: प्रचोदयात् 

99) ॐ शक्तिपुत्राय विद्महे पापानिती निवारणाय धीमहि तन्नो पराशर: प्रचोदयात् 

100) ॐ गाधिपुत्राय विद्महे गायत्रीमंत्रप्रवर्तकाय च धीमहि तन्नो विश्वामित्र: प्रचोदयात् 

101) ॐ अक्षुणोत्पत्ताय विद्महे ब्रह्मपुत्राय धीमहि तन्नो अत्रि: प्रचोदयात् 

102) ॐ कर्दमसुतायै विद्महे अत्रिभार्यायै धीमहि तन्नो अनसुया प्रचोदयात् 

103) ॐ सप्तर्षाय विद्महे मानसीसृष्टाय धीमहि तन्नो गौतम: प्रचोदयात् 

104) ॐ मृकुण्डुपुत्राय विद्महे योगज्ञानाय च धीमहि तन्नो मार्कंडेय: प्रचोदयात् 

105 ) ॐ शिवतत्त्वाय विद्महे योगांतराय धीमहि तन्नो पतंजली प्रचोदयात् 

106) ॐ त्रिपथगामिनी विद्महे रुद्रपत्न्यै च धीमहि तन्नो गंगा प्रचोदयात् 

107) ॐ यमुनादेव्यै च विद्महे तीर्थवासिनी च धीमहि तन्नो यमुना प्रचोदयात्

108) ॐ रुद्रदेहायै विद्महे मेकलकन्यकायै धीमहि तन्नो रेवा प्रचोदयात्

अब एक आचमनी जल निम्न मंत्र बोलते हुये अर्पण करे 

अनेन अष्टोत्तर देवता गायत्री मंत्र पूजनेन भगवती  गायत्री सह सकल देवतां प्रीयतां न मम .. 

अब क्षमा प्रार्थना करे .

आवाहनं न जानामि , न जानामि विसर्जनं 

पूजां चैव न जानामि , क्षम्यतां परमेश्वरी 

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी 

यत पूजितं मया परिपूर्णं तदस्तु मे 

देव देव गुरुदेव पूजां प्राप्य करोतु यत 

त्राहि त्राहि कृपासिंधु पूजा पूर्णतरां कुरु 

ॐ तत्सत ब्रह्मार्पणं अस्तु


11 सितंबर 2022

साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका



साधना सिद्धि विज्ञान  मासिक पत्रिका का प्रकाशन वर्ष 1999 से भोपाल से हो रहा है. 
यह पत्रिका साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये  स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. 





गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता साधनाजी के साधनात्मक अनुभव के प्रकाश मे प्रकाशित साधनात्मक ज्ञान आप को स्वयम अभिभूत कर देगा 

[ Sadhana Siddhi Vigayan monthly magazine,a knowledge bank of Tantra, Mantra, Yantra Sadhana

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समस्त प्रकार की साधनात्मक जानकारियों से भरपूर शुद्द पूजन तथा प्रयोगों की जानकारी के लिये 

साधना सिद्धि विज्ञान पढें:-


वार्षिक सदस्यता शुल्क 250 रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें .

अगले माह से आपकी सदस्यता प्रारंभ कर दी जायेगी

साधना सिद्धि विज्ञान 
जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी 
जे. के. रोड , भोपाल  [म.प्र.]



आप चाहें तो पत्रिका कार्यालय मे इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं, और यूपीआई से भी पेमेंट कर सकते हैं । 
श्री संजय सिंह 94256-68111


साधना सिद्धि विज्ञान
अब तक प्रकाशित साधनात्मक जानकारी से परिपूर्ण अंक :-




महाविद्या गुह्यकाली विशेषांक








महाविद्या तारा विशेषांक










महाविद्या छिन्नमस्ता विशेषांक
महाविद्या बगलामुखी विशेषांक




निखिल तंत्रम


निखिल तंत्रम


निखिल तंत्रम


निखिल  महामृत्युंजय तंत्रम






महाविद्या भुवनेश्वरी विशेषांक







महाविद्या महाकाली विशेषांक





महाविद्या तारा विशेषांक

















  • गुरु तन्त्रम.
  • शरभ तन्त्रम.
  • बगलामुखी तन्त्रम.
  • श्री विद्या रहस्यम.
  • तारा तन्त्रम.
  • महाकाल तन्त्रम.
  • मातंगी तन्त्रम.
  • अप्सरा तन्त्रम.
  • नाग तन्त्रम.
  • योगिनी तन्त्रम.
  • लक्ष्मी तन्त्रम.
  • कामकलाकाली तन्त्रम.
  • गुह्यकाली तन्त्रम.
  • भुवनेश्वरि तन्त्रम.
  • धूमावती तन्त्रम.
  • कमला तन्त्रम.
  • रुद्र तन्त्रम.
  • शिव रहस्यम.
  • छिन्नमस्ता तन्त्रम.
  • नाथ तन्त्रम.
  • विष्णु तन्त्रम.
  • काली तन्त्रम.
  • दक्षिण काली तन्त्रम.
  • भैरव तन्त्रम.
  • त्रिपुर सुन्दरी तन्त्रम.
  • भैरवी तन्त्रम.
  • कामाख्या तन्त्रम.
  • रस तन्त्रम
  • निखिल तन्त्रम.
  • चामुन्डा तन्त्रम.
  • अघोर तन्त्रम.
  • रुद्राक्ष रहस्यम.
  • रत्न रहस्यम.
  • तान्त्रिक सामग्री रहस्यम.
  • मुद्रा विवेचन.

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जानकारीजिज्ञासासूचना हेतु कार्यालय में सम्पर्क का समय :

10 बजे से 7 बजे तक 
(रविवार अवकाश)

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जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी 
जे. के. रोड , भोपाल  [म.प्र.]





9 सितंबर 2022

पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा

   पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा




श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।

॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥


पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।

108 बार जाप करें |

सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |

ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।

अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।

 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र

8 सितंबर 2022

पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां

 पितृ पक्ष 

अपने मृत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का पक्ष है श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष । पितृ पक्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को कहा जाता है । इस वर्ष 10 सितंबर 2022 से पितृ पक्ष आरंभ है । इसका समापन 25 सितंबर 2022 को सर्वपितृ अमावस्‍या से होगा । 

पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है, यानि अगर पंचमी तिथि को मृत्यु हुई है तो पंचमी को श्राद्ध करते हैं । अगर तिथि ज्ञात न हो तो अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है । इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है और इसे सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या कहते हैं [आश्विन अमावस्या]


पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां-


पूर्णिमा श्राद्ध - 10 सितंबर 2022 

प्रतिपदा श्राद्ध - 11 सितंबर 2022

द्वितीया श्राद्ध - 12 सितंबर 2022

तृतीया श्राद्ध - 13 सितंबर 2022

चतुर्थी श्राद्ध - 14 सितंबर 2022

पंचमी श्राद्ध - 15 सितंबर 2022

षष्ठी श्राद्ध - 16 सितंबर 2022

सप्तमी श्राद्ध - 17 सितंबर 2022

अष्टमी श्राद्ध - 18 सितंबर 2022

नवमी श्राद्ध - 19 सितंबर 2022  

दशमी श्राद्ध - 20 सितंबर 2022

एकादशी श्राद्ध - 21 सितंबर 2022

द्वादशी श्राद्ध - 22 सितंबर 2022

त्रयोदशी श्राद्ध - 23 सितंबर 2022

चतुर्दशी श्राद्ध - 24 सितंबर 2022

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31 अगस्त 2022

जनदेवता : भगवान गणेश

जनदेवता : भगवान गणेश 


जनसामान्य में व्यापक लोकप्रियता रखने वाले इस अद्भुत देवता के गूणों की चर्चा करना लगभग असंभव है। वे गणों के अधिपति हैं तो देवताओें के सम्पूर्ण मण्डल में प्रथम पूज्य भी हैं। बुद्धि कौशल तथा चातुर्य को  प्रदान करने वाले है तो कार्य के मार्ग में आने वाली बाधाओें को दूर करने वाले भी हैं। समस्त देव सेना और शिवगणों को पराजित करने वाले हेैं तो दूसरी ओर महाभारत जैसे ग्रंथ के लेखक भी हैं। ऐसे सर्वगुण संपन्न देवता की आराधना न सिर्फ भौतिक जीवन बल्कि आध्यात्मिक जीवन की भी समस्त विध मनोकामनाओं की पूर्ति करने में सक्षम हैं।

 

भगवान गणेश की आराधना या साधना उनके तीन स्वरूपों में की जाती है। उनके तीनों स्वरूप, राजसी तामसी तथा सात्विक स्वरूप साधक की इच्ठा तथा क्षमता के अनुसार कार्यसिद्धि प्रदान करते ही हैं।

 

भारतीय संस्कृति में जो परंपरा है उसके अनुसार तो प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में गणपति का स्मरण किया ही जाता है। यदि नित्य न किया जाये तो भी गणेश चतुर्थी जैसे अवसरों पर तो गृहस्थों को उनका पूजन व ध्यान करना चाहिए।

 

व्यापार, सेल्स, मार्केटिंग, एडवर्टाइजिंग जैसे क्षेत्रों में जहां वाकपटुता तथा चातुर्य की नितांत आवश्यकता होती है, वहां गणपति साधना तथा ध्यान विशेष लाभप्रद होता है।

 

 

यदि गणपति साधना करना चाहें तो आप आगे लिखी विधि के अनुसार करें।

 

गणपति साधना

 

गणपति साधना का यह विवरण सामान्य गृहस्थों के लिए है। इसे किसी भी जाति, लिंग, आयु का व्यक्ति कर सकता है।

 

मंत्र का जाप प्रतिदिन निश्चित संख्या या समय तक करना चाहिये ।

 

माला की व्यवस्था हो सके तो माला से तथा अभाव में किसी भी गणनायोग्य वस्तु से गणना कर सकते हैं ।

 

ऐसा न कर सकें तो एक समयावधि निश्चित समयावधि जैसे पांच, दस, पंद्रह मिनट, आधा या एक घंटा अपनी क्षमता के अनुसार निश्चित कर लें ।

 

इस प्रकार 1, 3, 7, 9, 11, 16, 21, 33, या 51 दिनों तक करें। यदि किसी दिन जाप न कर पायें तो साधना खण्डित मानी जायेगी । अगले दिन से पुनः प्रारंभ करना पडेगा। इसलिये दिनोें की संख्या का चुनाव अपनी क्षमता के अनुसार ही करें। 


महिलायें रजस्वला होने पर जाप छोडकर उस अवधि के बाद पुनः जाप कर सकती हैं। इस अवस्था में साधना खण्डित नही मानी जायेगी।

 

यदि संभव हो तो प्रतिदिन निश्चित समय पर ही बैठने का प्रयास करें ।

 

जप करते समय दीपक जलता रहना चाहिये ।

 

साफ वस्त्र पहनकर स्नानादि करके जाप करें । पूर्व की ओर देखते हुए बैठें। सामने गणपति का चित्र, मूर्ति या यंत्र रखें।

 

गणपति मंत्र

 

। ऊं ग्लौं गं गणपतये नमः ।

 

वे साधक जो माता गायत्री के भक्त हैं वे गणेश गायत्री मंत्र का जाप उपरोक्त मंत्र के स्थान पर कर सकते हैं जो उनके लिए ज्यादा लाभप्रद होगा।

 

 

गणपति गायत्री मंत्र

 

। ऊं तत्पुरूषाय विद्यहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात ।


साधना लक्ष्य प्राप्ति की सहायक क्रिया है। पुरूषार्थ के साथ-साथ साधना भी हो तो इष्ट देवता की शक्तियां मार्ग की बाधाओं को दूर करने में सहायक होती हैं। जिससे सफलता की संभावनायें बढ जाती हैं।