एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
Disclaimer
11 जुलाई 2023
निखिल धाम [ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी को समर्पित मंदिर ]
10 जुलाई 2023
निखिल समर्पण पंचकं
3 जुलाई 2023
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना
|| ॐ निं निखिलेश्वराये निं नमः ||
- वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र धारण करें.
- आसन - सफ़ेद होगा.
- समय - प्रातः ४ से ६ बजे का समय सबसे अच्छा है, न हो पाए तो कभी भी कर सकते हैं.
- दिशा - उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए बैठें.
- पुरश्चरण - सवा लाख मंत्र जाप का होगा.यदि इतना न कर सकते हों तो यथाशक्ति करें.
- हवन - १२,५०० मंत्रों से मंत्र के पीछे स्वाहा लगाकर हवन करेंगे
- हवन सामग्री - दशांग या घी.
निखिलेश्वरानंदजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए यह मंत्र जाप कर रहा हूँ , वे प्रसन्न हों और मुझपर कृपा करें साधना के मार्ग पर आगे बढायें ". अब पानी निचे छोड़ दें.
गुलाब या अष्टगंध की खुशबु आना गुरुदेव के आगमन का प्रमाण है.
1 जुलाई 2023
गुरु कृपा हि केवलम
एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है,
शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए....
रास्ते में पडा ! लोगों के पांवों की ठोकरें खाने वाला पत्थर ! जब योग्य मूर्तिकार के हाथ लग जाता है, तो वह उसे तराशकर ,अपनी सर्जनात्मक क्षमता का उपयोग करते हुये, इस योग्य बना देता है, कि वह मंदिर में प्रतिष्ठित होकर करोडों की श्रद्धा का केद्र बन जाता है। करोडों सिर उसके सामने झुकते हैं।
रास्ते के पत्थर को इतना उच्च स्वरुप प्रदान करने वाले मूर्तिकार के समान ही, एक गुरु अपने शिष्य को सामान्य मानव से उठाकर महामानव के पद पर बिठा देता है।
चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त को सडक से उठाकर संपूर्ण भारतवर्ष का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया।
विश्व मुक्केबाजी का महानतम हैवीवेट चैंपियन माइक टायसन सुधार गृह से निकलकर अपराधी बन जाता अगर उसकी प्रतिभा को उसके गुरू ने ना पहचाना होता।
यह एक अकाट्य सत्य है कि चाहे वह कल का विश्वविजेता सिकंदर हो या आज का हमारा महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर, वे अपनी क्षमताओं को पूर्णता प्रदान करने में अपने गुरु के मार्गदर्शन व योगदान के अभाव में सफल नही हो सकते थे।
हमने प्राचीन काल से ही गुरु को सबसे ज्यादा सम्माननीय तथा आवश्यक माना। भारत की गुरुकुल परंपरा में बालकों को योग्य बनने के लिये आश्रम में रहकर विद्याद्ययन करना पडता था, जहां गुरु उनको सभी आवश्यक ग्रंथो का ज्ञान प्रदान करते हुए उन्हे समाज के योग्य बनाते थे।
विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों नालंदा तथा तक्षशिला में भी उसी ज्ञानगंगा का प्रवाह हम देखते हैं। संपूर्ण विश्व में शायद ही किसी अन्य देश में गुरु को उतना सम्मान प्राप्त हो जितना हमारे देश में दिया जाता रहा है। यहां तक कहा गया किः-
गुरु गोविंद दोऊ खडे काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय ॥
अर्थात, यदि गुरु के साथ स्वयं गोविंद अर्थात साक्षात भगवान भी सामने खडे हों, तो भी गुरु ही प्रथम सम्मान का अधिकारी होता है, क्योंकि उसीने तो यह क्षमता प्रदान की है कि मैं गोविंद को पहचानने के काबिल हो सका।
आध्यात्मिक जगत की ओर जाने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग गुरु और केवल गुरु से ही प्रारंभ होता है।
कुछ को गुरु आसानी से मिल जाते हैं, कुछ को काफी प्रयास के बाद मिलते हैं,और कुछ को नहीं मिलते हैं।
साधनात्मक जगत, जिसमें योग, तंत्र, मंत्र जैसी विद्याओं को रखा जाता है, में गुरु को अत्यंत ही अनिवार्य माना जाता है।
वे लोग जो इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं, उनको अनिवार्य रुप से योग्य गुरु के सानिध्य के लिये प्रयास करना ही चाहिये।
ये क्षेत्र उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं।
गुरु का तात्पर्य किसी व्यक्ति के देह या देहगत न्यूनताओं से नही बल्कि उसके अंतर्निहित ज्ञान से होता है, वह ज्ञान जो आपके लिये उपयुक्त हो,लाभप्रद हो। गुरु गीता में कुछ श्लोकों में इसका विवेचन मिलता हैः-
अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देकर उसके नेत्रों को प्रकाश का अनुभव कराने वाले गुरु को नमन ।
गुरु शब्द के अर्थ को बताया गया है कि :-
गुकारस्त्वंधकारश्च रुकारस्तेज उच्यते।
अज्ञान तारकं ब्रह्म गुरुरेव न संशयः॥
गुरु शब्द के पहले अक्षर 'गु' का अर्थ है, अंधकार जिसमें शिष्य डूबा हुआ है, और 'रु' का अर्थ है, तेज या प्रकाश जिसे गुरु शिष्य के हृदय में उत्पन्न कर इस अंधकार को हटाने में सहायक होता है, और ऐसे ज्ञान को प्रदान करने वाला गुरु साक्षात ब्रह्म के तुल्य होता है।
ज्ञान का दान ही गुरु की महत्ता है। ऐसे ही ज्ञान की पूर्णता का प्रतीक हैं भगवान शिव। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वे प्रत्येक विद्या के ज्ञाता होने के कारण जगद्गुरु भी हैं। गुरु और शिव को आध्यात्मिक जगत में समान माना गया है।
कहा गया है कि :-
यः शिवः सः गुरु प्रोक्तः। यः गुरु सः शिव स्मृतः॥
अर्थात गुरु और शिव दोनों ही अभेद हैं, और एक दूसरे के पर्याय हैं।जब गुरु ज्ञान की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं ही शिव तुल्य हो जाता है, तब वह भगवान आदि शंकराचार्य के समान उद्घोष करता है कि ÷
शिवो s हं, शंकरो s हं'।
ऐसे ही ज्ञान के भंडार माने जाने वाले गुरुओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने का पर्व है,
गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा
यह वो बिंदु है, जिसके वाद से सावन का महीना जो कि शिव का मास माना जाता है, प्रारंभ हो जाता है।
इसका प्रतीक रुप में अर्थ लें तो, जब गुरु अपने शिष्य को पूर्णता प्रदान कर देता है, तो वह आगे शिवत्व की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होने लगता है,और यह भाव उसमें जाग जाना ही मोक्ष या ब्रह्मत्व की स्थिति कही गयी है।
21 अप्रैल 2023
Books written by Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji [परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ]
Books written by
- Practical Palmistry
- Practical Hypnotism
- The Power of Tantra
- Mantra Rahasya
- Meditation
- Dhyan, Dharana aur Samadhi
- Kundalini Tantra
- Alchemy Tantra
- Activation of Third Eye
- Guru Gita
- Fragrance of Devotion
- Beauty - A Joy forever
- Kundalini naad Brahma
- Essence of Shaktipat
- Wealth and Prosperity
- The Celestial Nymphs
- The Ten Mahavidyas
- Gopniya Durlabh Mantron Ke Rahasya.
- Rahasmaya Agyaat tatntron ki khoj men.
- Shmashaan bhairavi.
- Himalaya ke yogiyon ki gupt siddhiyaan.
- Rahasyamaya gopniya siddhiyaan.
- Phir Dur Kahi Payal Khanki
- Yajna Sar
- Shishyopanishad
- Durlabhopanishad
- Siddhashram
- Hansa Udahoon Gagan Ki Oar
- Mein Sugandh Ka Jhonka Hoon
- Jhar Jhar Amrit Jharei
- Nikhileshwaranand Chintan
- Nikhileshwaranand Rahasya
- Kundalini Yatra- Muladhar Sey Sahastrar Tak
- Soundarya
- Mein Baahen Feilaaye Khada Hoon
- Hastrekha vigyan aur panchanguli sadhana.
गुरु जन्म दिवस : 21 अप्रेल
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना
|| ॐ निं निखिलेश्वराये निं नमः ||
- वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र धारण करें.
- आसन - सफ़ेद होगा.
- समय - प्रातः ४ से ६ बजे का समय सबसे अच्छा है, न हो पाए तो कभी भी कर सकते हैं.
- दिशा - उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए बैठें.
- पुरश्चरण - सवा लाख मंत्र जाप का होगा.यदि इतना न कर सकते हों तो यथाशक्ति करें.
- हवन - १२,५०० मंत्रों से मंत्र के पीछे स्वाहा लगाकर हवन करेंगे
- हवन सामग्री - दशांग या घी.
निखिलेश्वरानंदजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए यह मंत्र जाप कर रहा हूँ , वे प्रसन्न हों और मुझपर कृपा करें साधना के मार्ग पर आगे बढायें ". अब पानी निचे छोड़ दें.
गुलाब या अष्टगंध की खुशबु आना गुरुदेव के आगमन का प्रमाण है.
13 जुलाई 2022
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना
|| ॐ निं निखिलेश्वराये निं नमः ||
- वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र धारण करें.
- आसन - सफ़ेद होगा.
- समय - प्रातः ४ से ६ बजे का समय सबसे अच्छा है, न हो पाए तो कभी भी कर सकते हैं.
- दिशा - उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए बैठें.
- पुरश्चरण - सवा लाख मंत्र जाप का होगा.यदि इतना न कर सकते हों तो यथाशक्ति करें.
- हवन - १२,५०० मंत्रों से मंत्र के पीछे स्वाहा लगाकर हवन करेंगे
- हवन सामग्री - दशांग या घी.
निखिलेश्वरानंदजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए यह मंत्र जाप कर रहा हूँ , वे प्रसन्न हों और मुझपर कृपा करें साधना के मार्ग पर आगे बढायें ". अब पानी निचे छोड़ दें.
गुलाब या अष्टगंध की खुशबु आना गुरुदेव के आगमन का प्रमाण है.
गुरु पूर्णिमा पर गुरुपूजन की सरल विधि
गुरु पूर्णिमा पर गुरुपूजन की सरल विधि
गुरु पूजन की एक सरल विधि प्रस्तुत है ।
जिसका उपयोग आप दैनिक पूजन में भी कर सकते हैं ।
सबसे पहले अपने सदगुरुदेव को हाथ जोडकर प्रणाम करे
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:
गणेश भगवान का स्मरण करें तथा उन्हें प्रणाम करें
ॐ श्री गणेशाय नम:
सृष्टि की संचालनि शक्ति भगवती जगदंबा के 10
स्वरूपों को महाविद्या कहा जाता है । उन को हृदय से प्रणाम करें तथा पूजन की
पूर्णता की हेतु अनुमति मांगें ।
ॐ ह्रीं दशमहाविद्याभ्यो नम:
गुरुदेव का ध्यान करे
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ॥
ध्यानमूलं गुरो मूर्ति : पूजामूलं गुरो: पदं ।
मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा ॥
गुरुकृपाहि केवलम ।
गुरुकृपाहि केवलम ।
गुरुकृपाहि केवलम ।
श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नम: ध्यानं समर्पयामि ।
अब ऐसी भावना करें कि गुरुदेव (अंडरलाइन वाले जगह पर अपने
गुरु का नाम लें ) आपके हृदय कमल के ऊपर विराजमान हो ।
श्री सदगुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद महाराज मम ह्रदय
कमल मध्ये आवाहयामि स्थापयामि नम: ॥
सदगुरुदेव का मानसिक पंचोपचार पूजन करे और पूजन के बाद
गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का भी पाठ अवश्य करे ..
कई बार हमारे पास सामग्री उपलब्ध नहीं होती ऐसी स्थिति में
मानसिक रूप से पूजन संपन्न किया जा सकता है इसके लिए विभिन्न प्रकार की मुद्राएं
उंगलियों के माध्यम से प्रस्तुत की जाती हैं जिसको उस सामग्री के अर्पण के समान ही
माना जाता है ।
मानसिक पूजन करते समय पंचतत्वो की मुद्राये प्रदर्शित करे
और सामग्री से पूजन करते समय उचित सामग्री का उपयोग करे
अंगूठे और छोटी उंगली को स्पर्श कराकर कहें
ॐ " लं " पृथ्वी तत्वात्मकं गंधं समर्पयामि ॥
अंगूठे और पहली उंगली को स्पर्श कराकर कहें
ॐ " हं " आकाश तत्वात्मकं पुष्पम समर्पयामि ॥
अंगूठे और पहली उंगली को स्पर्श कराकर धूप मुद्रा दिखाकर
मानसिक रूप से समर्पित करें
ॐ " यं " वायु तत्वात्मकं धूपं समर्पयामि ॥
दीपक उपलब्ध हो तो दीपक दिखाएं और ना हो तो मानसिक रूप से
अंगूठे और बीच वाली उंगली को स्पर्श करके दीपक मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए ऐसा
भाव रखें कि आप गुरुदेव को दीपक समर्पित कर रहे हैं ।
ॐ " रं " अग्नि तत्वात्मकं दीपं समर्पयामि ॥
प्रसाद हो तो उसे अर्पित करें और ना हो तो मानसिक रूप से
प्रसाद या नैवेद्य अर्पित करने के लिए अंगूठे और अनामिका अर्थात तीसरी उंगली या
रिंग फिंगर को स्पर्श करके वह मुद्रा गुरुदेव को दिखाते हुए मानसिक रूप से प्रसाद
अर्पित करें ।
ॐ " वं " जल तत्वात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि
श्रीगुरवे नम:
अब सारी उंगलियों को जोड़कर गुरुदेव के चरणों में तांबूल या
पान अर्पित करें ।
ॐ " सं " सर्व तत्वात्मकं तांबूलं समर्पयामि श्री
गुरवे नम:
अब हाथ जोडकर गुरु पंक्ति का पूजन करे ।
इसमें नमः बोलकर आप सिर्फ हाथ जोड़कर नमस्कार कर सकते हैं....
या फिर चावल चढ़ा सकते हैं....
या पुष्प चढ़ा सकते हैं.....
या फिर जल चढ़ा सकते हैं ।
ॐ गुरुभ्यो नम: ।
ॐ परम गुरुभ्यो नम: ।
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम: ।
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम: ।
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम: ।
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम: ।
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम: ।
अब गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का पाठ करे ..
गुरुपादुका पंचक स्तोत्र
ॐ नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यां
नम: परेभ्य: परपादुकाभ्यां
आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! १ !!
ऐंकार ह्रींकार रहस्ययुक्त
श्रीं कार गूढार्थ महाविभूत्या
ॐकार मर्म प्रतिपादिनीभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! २ !!
होमाग्नि होत्राग्नि हविष्यहोतृ
होमादि सर्वाकृति भासमानं
यद ब्रह्म तद बोध वितारिणाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ३ !!
अनंत संसार समुद्रतार
नौकायिताभ्यां स्थिर भक्तिदाभ्यां
जाड्याब्धि संशोषण बाडवाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ४ !!
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां
विवेक वैराग्य निधिप्रदाभ्यां
बोधप्रदाभ्यां द्रुत मोक्षदाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ५ !!
अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे या मानसिक स्तर पर
ऐसा भाव करें कि आपने जल में चंदन मिलाया है और उसे गुरु चरणों में समर्पित कर रहे
हैं ..
ॐ गुरुदेवाय विदमहे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्
।
अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे
आप अपने गुरु के द्वारा प्राप्त मंत्र का जाप कर सकते हैं
या फिर निम्नलिखित गुरु मंत्र का जाप कर सकते हैं ।
॥ ॐ गुरुभ्यो नमः ॥
अंत मे जप गुरुदेव को अर्पण करे
ॐ गुह्याति गुह्यगोप्तात्वं गृहाणास्मत कृतं जपं
सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!
अब एक आचमनी जल अर्पण करे , मन में भाव रखें कि हे
गुरुदेव मैं यह पूजन आपके चरणों में समर्पित कर रहा हूं और आप मुझ पर कृपालु होकर
अपना आशीर्वाद प्रदान करें ।
अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव प्रीयंता मम !!
दोनों कान पकड़कर पूजन में हुई किसी भी प्रकार की गलती के
लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए कहे
क्षमस्व गुरुदेव ॥
क्षमस्व गुरुदेव ॥
क्षमस्व गुरुदेव ॥
श्री निखिलेश्वरानन्द कवच
पूज्यपाद गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी के प्रचंड सन्यस्त रूप परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी का यह कवच सर्व विध रक्षा प्रदायक है ...
श्री निखिलेश्वरानन्द कवच
विनियोग :------
ॐ अस्य श्री निखिलेश्वरानन्द कवचस्य श्री मुद्गल ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री गुरुदेवो निखिलेश्वरानन्द परमात्मा देवता, महोस्तवं रूपं च इति बीजम, प्रबुद्धम निर्नित्यम इति कीलकम, अथौ नेत्रं पूर्णं इति कवचम, श्री भगवत्पाद निखिलेश्वरानन्द प्रीति द्वारा मम सम्पूर्ण रक्षणार्थे, स्वकृतेन आत्म मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र रक्षणार्थे च पारायणे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास :------
श्री मुद्गल ऋषये नमः शिरसि। (सिर को स्पर्श करें)
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे। (मुख को स्पर्श करें)
श्री गुरुदेवो निखिलेश्वरानन्द परमात्मा देवतायै नमः हृदि। (हृदय को स्पर्श करें)
महोस्तवं रूपं च इति बीजाय नमः गुह्ये। (गुह्य-स्थान को स्पर्श करें)
प्रबुद्धम निर्नित्यम इति कीलकाय नमः पादयोः। (दोनों पैरों को स्पर्श करें)
अथौ नेत्रं पूर्णं इति कवचाय नमः नाभौ। (नाभि को स्पर्श करें)
श्री भगवत्पाद निखिलेश्वरानन्द प्रीति द्वारा मम सम्पूर्ण रक्षणार्थे, स्वकृतेन आत्म मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र रक्षणार्थे च पारायणे विनियोगाय नमः सर्वांगे। (पूरे शरीर को स्पर्श करें)
करन्यास :------
श्री सर्वात्मने निखिलेश्वराय अंगुष्ठाभ्यां नमः। (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठों को स्पर्श करें)
श्री मन्त्रात्मने पूर्णेश्वराय तर्जनीभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
श्री तन्त्रात्मने वागीश्वराय मध्यमाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
श्री तन्त्रात्मने योगीश्वराय अनामिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
श्री शिष्य प्राणात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
श्री सच्चिदानन्द प्रियाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)
हृदयादिन्यास :------
श्रीं शेश्वरः हृदयाय नमः। (हृदय को स्पर्श करें)
ह्रीं शेश्वरः शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें)
क्लीं शेश्वरः शिखायै वषट्। (शिखा को स्पर्श करें)
तपसेश्वरः कवचाय हुं। (परस्पर भुजाओं को स्पर्श करें)
तापेशेश्वरः नेत्रत्रयाय वौषट्। (नेत्रों को स्पर्श करें)
एकेश्वरः अस्त्राय फट्। (सिर से हाथ घुमाकर तीन बार ताली बजाएं)
मूल कवचम् :------
ॐ शिरः सिद्धेश्वरः पातु ललाटं च परात्परः।
नेत्रे निखिलेश्वरानन्दः नासिके नरकान्तकः॥१॥
कर्णौ कालात्मकः पातु मुखं मन्त्रेश्वरस्तथा।
कण्ठं रक्षतु वागीशः भुजौ च भुवनेश्वरः॥२॥
स्कन्धौ कामेश्वरः पातु हृदयं ब्रह्मवर्चसः।
नाभिं नारायणो रक्षेत ऊरुं ऊर्जस्वलोऽपि वै॥३॥
जानुनि सच्चिदानन्दः पातु पादौ शिवात्मकः।
गुह्यं लयात्मकः पायात् चित्तं चिन्तापहारकः॥४॥
मदनेशः मनः पातु पृष्ठं पूर्णप्रदायकः।
पूर्वं रक्षतु तन्त्रेशः यन्त्रेशः वारुणीं तथा॥५॥
उत्तरं श्रीधरः रक्षेत दक्षिणं दक्षिणेश्वरः।
पातालं पातु सर्वज्ञः ऊर्ध्वं मे प्राणसंज्ञकः॥६॥
फलश्रुति :------
कवचेनावृतो यस्तु यत्र कुत्रापि गच्छति।
तत्र सर्वत्र लाभः स्यात् किंचिदत्र न संशयः॥७॥
यं यं चिन्तयते काम तं तं प्राप्नोति निश्चितं।
धनवान बलवान लोके जायते समुपासकः॥८॥
ग्रह भूत पिशाचाश्च यक्ष गर्न्धव राक्षसाः।
नश्यन्ति सर्व विघ्नानि दर्शनात् कवचेनावृतम्॥९॥
य इदं कवचं पुण्यं प्रातः पठति नित्यशः।
सिद्धाश्रमः पदारूढ़ः ब्रह्मभावेन भूयते॥१०॥
संक्षिप्त गुरुपूजन
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ॐ श्री गणेशाय नम:
ॐ ह्रीम दशमहाविद्याभ्यो नम:
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:
मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा
गुरुकृपाहि केवलं गुरुकृपाहि केवलं
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम:
नम: परेभ्य: परपादुकाभ्यां
आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! १ !!
श्रीं कार गूढार्थ महाविभूत्या
ॐकार मर्म प्रतिपादिनीभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! २ !!
होमादि सर्वाकृति भासमानं
यद ब्रह्म तद बोध वितारिणाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ३ !!
नौकायिताभ्यां स्थिर भक्तिदाभ्यां
जाड्याब्धि संशोषण बाडवाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ४ !!
विवेक वैराग्य निधिप्रदाभ्यां
बोधप्रदाभ्यां द्रुत मोक्षदाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ५ !!
त्वं गृहाणास्मत कृतं जपं
सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!