पूज्यपाद गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी के प्रचंड सन्यस्त रूप परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी का यह कवच सर्व विध रक्षा प्रदायक है ...
श्री निखिलेश्वरानन्द कवच
विनियोग :------
ॐ अस्य श्री निखिलेश्वरानन्द कवचस्य श्री मुद्गल ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री गुरुदेवो निखिलेश्वरानन्द परमात्मा देवता, महोस्तवं रूपं च इति बीजम, प्रबुद्धम निर्नित्यम इति कीलकम, अथौ नेत्रं पूर्णं इति कवचम, श्री भगवत्पाद निखिलेश्वरानन्द प्रीति द्वारा मम सम्पूर्ण रक्षणार्थे, स्वकृतेन आत्म मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र रक्षणार्थे च पारायणे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास :------
श्री मुद्गल ऋषये नमः शिरसि। (सिर को स्पर्श करें)
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे। (मुख को स्पर्श करें)
श्री गुरुदेवो निखिलेश्वरानन्द परमात्मा देवतायै नमः हृदि। (हृदय को स्पर्श करें)
महोस्तवं रूपं च इति बीजाय नमः गुह्ये। (गुह्य-स्थान को स्पर्श करें)
प्रबुद्धम निर्नित्यम इति कीलकाय नमः पादयोः। (दोनों पैरों को स्पर्श करें)
अथौ नेत्रं पूर्णं इति कवचाय नमः नाभौ। (नाभि को स्पर्श करें)
श्री भगवत्पाद निखिलेश्वरानन्द प्रीति द्वारा मम सम्पूर्ण रक्षणार्थे, स्वकृतेन आत्म मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र रक्षणार्थे च पारायणे विनियोगाय नमः सर्वांगे। (पूरे शरीर को स्पर्श करें)
करन्यास :------
श्री सर्वात्मने निखिलेश्वराय अंगुष्ठाभ्यां नमः। (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठों को स्पर्श करें)
श्री मन्त्रात्मने पूर्णेश्वराय तर्जनीभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
श्री तन्त्रात्मने वागीश्वराय मध्यमाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
श्री तन्त्रात्मने योगीश्वराय अनामिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
श्री शिष्य प्राणात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
श्री सच्चिदानन्द प्रियाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)
हृदयादिन्यास :------
श्रीं शेश्वरः हृदयाय नमः। (हृदय को स्पर्श करें)
ह्रीं शेश्वरः शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें)
क्लीं शेश्वरः शिखायै वषट्। (शिखा को स्पर्श करें)
तपसेश्वरः कवचाय हुं। (परस्पर भुजाओं को स्पर्श करें)
तापेशेश्वरः नेत्रत्रयाय वौषट्। (नेत्रों को स्पर्श करें)
एकेश्वरः अस्त्राय फट्। (सिर से हाथ घुमाकर तीन बार ताली बजाएं)
मूल कवचम् :------
ॐ शिरः सिद्धेश्वरः पातु ललाटं च परात्परः।
नेत्रे निखिलेश्वरानन्दः नासिके नरकान्तकः॥१॥
कर्णौ कालात्मकः पातु मुखं मन्त्रेश्वरस्तथा।
कण्ठं रक्षतु वागीशः भुजौ च भुवनेश्वरः॥२॥
स्कन्धौ कामेश्वरः पातु हृदयं ब्रह्मवर्चसः।
नाभिं नारायणो रक्षेत ऊरुं ऊर्जस्वलोऽपि वै॥३॥
जानुनि सच्चिदानन्दः पातु पादौ शिवात्मकः।
गुह्यं लयात्मकः पायात् चित्तं चिन्तापहारकः॥४॥
मदनेशः मनः पातु पृष्ठं पूर्णप्रदायकः।
पूर्वं रक्षतु तन्त्रेशः यन्त्रेशः वारुणीं तथा॥५॥
उत्तरं श्रीधरः रक्षेत दक्षिणं दक्षिणेश्वरः।
पातालं पातु सर्वज्ञः ऊर्ध्वं मे प्राणसंज्ञकः॥६॥
फलश्रुति :------
कवचेनावृतो यस्तु यत्र कुत्रापि गच्छति।
तत्र सर्वत्र लाभः स्यात् किंचिदत्र न संशयः॥७॥
यं यं चिन्तयते काम तं तं प्राप्नोति निश्चितं।
धनवान बलवान लोके जायते समुपासकः॥८॥
ग्रह भूत पिशाचाश्च यक्ष गर्न्धव राक्षसाः।
नश्यन्ति सर्व विघ्नानि दर्शनात् कवचेनावृतम्॥९॥
य इदं कवचं पुण्यं प्रातः पठति नित्यशः।
सिद्धाश्रमः पदारूढ़ः ब्रह्मभावेन भूयते॥१०॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके सुझावों के लिये धन्यवाद..
आपके द्वारा दी गई टिप्पणियों से मुझे इसे और बेहतर बनाने मे सहायता मिलेगी....
यदि आप जवाब चाहते हैं तो कृपया मेल कर दें . अपने अल्पज्ञान से संभव जवाब देने का प्रयास करूँगा.मेरा मेल है :-
dr.anilshekhar@gmail.com