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31 मार्च 2019

काल भैरव अष्टकम


काल भैरव अष्टकम
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥
॥ फल श्रुति॥
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥
॥इति कालभैरवाष्टकम् संपूर्णम् ॥

9 फ़रवरी 2019

अष्ट भैरव -

अष्ट भैरव -

1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव।



यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानं
सं सं सं संहार मूर्ति शुभ मुकुट जटा शेखरं चन्द्र विम्बं
दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुख चौर्ध्व रोमं करालं
पं पं पं पाप नाशं प्रणमतं सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ १ ॥

रं रं रं रक्तवर्णं कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्रा विशालं
घं घं घं घोर घोसं घ घ घ घ घर्घरा घोर नादं
कं कं कं कालरूपं धग धग धगितं ज्वलितं कामदेहं
दं दं दं दिव्य देहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ २ ॥

लं लं लं लम्ब दन्तं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वाकरालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्ण स्फुट विकृत मुखंमासुरं भीम रूपं
रूं रूं रूं रुण्डमालं रुधिरमय मुखं ताम्र नेत्रं विशालं
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ३ ॥

वं वं वं वायुवेगं प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवन निलयं भास्करं भीमरूपं
चं चं चं चालयन्तं चल चल चलितं चालितं भूत चक्रं
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ४ ॥

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालान्धकारं
क्षि क्षि क्षि क्षिप्र वेग दह दह दहन नेत्रं सांदिप्यमानं
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहन गर्जितं भूमिकंपं
बं बं बं बाललिलम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ५ ॥


14 जनवरी 2019

भैरव साधना


  • यह साधना रात्रि में करें|
  • अपने सामने एक सूखा नारियल , एक कपूर की डली , 11 लौंग 11 इलायची, 1 डली लोबान या धुप रखें |
  • सरसों के तेल का दीपक जलाएं |
  • हाथ में नारियल लेकर अपनी मनोकामना बोलें | नारियल सामने रखें |
  • दक्षिण दिशा कीओर देखकर इस मन्त्र का 108 बार जाप करें |
  • जाप के बाद इसे भैरव मंदिर में काले कपडे में बांधकर चढ़ा दें या फिर जल में प्रवाहित कर दें या सुनसान जगह पर छोड़ दें |

|| ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भ्रः | ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रः |ख्रां ख्रीं ख्रूं ख्रः|घ्रां घ्रीं घ्रूं घ्र: | म्रां म्रीं म्रूं म्र: | म्रों म्रों म्रों म्रों | क्लों   क्लों क्लों क्लों |श्रों श्रों श्रों श्रों | ज्रों ज्रों  ज्रों ज्रों | हूँ हूँ हूँ हूँ| हूँ हूँ हूँ हूँ | फट | सर्वतो रक्ष रक्ष रक्ष रक्ष भैरव नाथ हूँ फट ||

. . .

3 जनवरी 2019

भैरव अष्टोत्तर शत नाम


भैरव अष्टोत्तर शत नाम


01) ॐ भैरवाय नम:
02) ॐ भूतनाथाय नम: 
03) ॐ भूतात्मने नम: 
04) ॐ भूतभावनाय नम: 
05) ॐ क्षेत्रदाय नम: 
06) ॐ क्षेत्रपालाय नम: 
07) ॐ क्षेत्रज्ञाय नम: 
08) ॐ क्षत्रियाय नम: 
09) ॐ विराजे नम: 
10) ॐ श्मशानवासिने नम: 
11) ॐ मांसाशिने नम: 
12) ॐ खर्पराशिने नम: 
13) ॐ स्मरांतकाय नम: 
14) ॐ रक्तपाय नम: 
15) ॐ पानपाय नम: 
16) ॐ सिद्धाय नम: 
17) ॐ सिद्धिदाय नम: 
18) ॐ सिद्धसेविताय नम: 
19) ॐ कंकालाय नम:
20) ॐ कालशमनाय नम: 
21) ॐ कलाकाष्ठाय नम: 
22) ॐ तनये नम: 
23) ॐ कवये नम:
24) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
25) ॐ बहुनेत्राय नम: 
26) ॐ पिंगललोचनाय नम: 
27) ॐ शूलपाणये नम: 
28) ॐ खडगपाणये नम: 
29) ॐ कंकालिने नम: 
30) ॐ धूम्रलोचनाय नम: 
31) ॐ अभीरवे नम: 
32) ॐ भैरवीनाथाय नम: 
33) ॐ भूतपाय नम: 
34) ॐ योगिनीपतये नम: 
35) ॐ धनदाय नम: 
36) ॐ अधनहारिणे नम: 
37) ॐ धनवते नम: 
38) ॐ प्रीतिवर्धनाय नम: 
39) ॐ नागहाराय नम: 
40) ॐ नागपाशाय नम: 
41) ॐ व्योमकेशाय नम: 
42) ॐ कपालभृते नम: 
43) ॐ कालाय नम: 
44) ॐ कपालमालिने नम: 
45) ॐ कमनीयाय नम: 
46) ॐ कलानिधये नम: 
47) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
48) ॐ ज्वलन्नेत्राय नम: 
49) ॐ त्रिशिखिने नम: 
50) ॐ त्रिलोकपालाय नम: 
51) ॐ त्रिवृत्ततनयाय नम: 
52) ॐ डिंभाय नम: 
53) ॐ शांताय नम: 
54) ॐ शांतजनप्रियाय नम: 
55) ॐ बटुकाय नम: 
56) ॐ बटुवेशाय नम: 
57) ॐ खट्वांगधराय नम: 
58) ॐ भूताध्यक्षाय नम: 
59) ॐ पशुपतये नम: 
60) ॐ भिक्षकाय नम: 
61) ॐ परिचारकाय नम: 
62) ॐ धूर्ताय नम: 
63) ॐ दिगंबराय नम: 
64) ॐ शूराय नम: 
65) ॐ हरिणे नम: 
66) ॐ पांडुलोचनाय नम: 
67) ॐ प्रशांताय नम: 
68) ॐ शांतिदाय नम: 
69) ॐ शुद्धाय नम: 
70) ॐ शंकरप्रियबांधवाय नम: 
71) ॐ अष्टमूर्तये नम: 
72) ॐ निधीशाय नम: 
73) ॐ ज्ञानचक्षुषे नम: 
74) ॐ तपोमयाय नम: 
75) ॐ अष्टाधाराय नम: 
76) ॐ षडाधाराय नम: 
77) ॐ सर्पयुक्ताय नम: 
78) ॐ शिखिसखाय नम: 
79) ॐ भूधराय नम: 
80) ॐ भूधराधीशाय नम: 
81) ॐ भूपतये नम: 
82) ॐ भूधरात्मजाय नम: 
83) ॐ कपालधारिणे नम: 
84) ॐ मुंडिने नम: 
85) ॐ नागयज्ञोपवीतवते नम: 
86) ॐ जृंभणाय नम: 
87) ॐ मोहनाय नम: 
88) ॐ स्तंभिने नम: 
89) ॐ मारणाय नम: 
90) ॐ क्षोभणाय नम: 
91) ॐ शुद्धनीलांजनप्रख्याय नम: 
92) ॐ दैत्यघ्ने नम: 
93) ॐ मुंडभूषिताय नम: 
94) ॐ बलिभुजे नम: 
95) ॐ बलिभुंगनाथाय नम: 
96) ॐ बालाय नम: 
97) ॐ बालपराक्रमाय नम: 
98) ॐ सर्वापत्तारणाय नम: 
99) ॐ दुर्गाय नम: 
100) ॐ दुष्टभूतनिषेविताय नम: 
101) ॐ कामिने नम: 
102) ॐ कलानिधये नम: 
103) ॐ कांताय नम: 
104) ॐ कामिनीवशकृद्वशिने नम: 
105) ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम: 
106) ॐ वैद्याय नम: 
107) ॐ प्रभवे नम: 
108) ॐ विष्णवे नम:

विधि:-
  • काला/लाल वस्त्र पहनें.
  • दक्षिण दिशा की और मुख रखें .
  • भैरव यंत्र या चित्र या पंचमुखी रुद्राक्ष रखकर कर सकते हैं .
  • सरसों के तेल का दीपक जला सकते हैं .
  • हर मन्त्र के साथ सिंदूर या लाल पुष्प चढ़ाएं .

6 दिसंबर 2018

भैरव अष्टोत्तर शत नाम


भैरव अष्टोत्तर शत नाम


01) ॐ भैरवाय नम:
02) ॐ भूतनाथाय नम: 
03) ॐ भूतात्मने नम: 
04) ॐ भूतभावनाय नम: 
05) ॐ क्षेत्रदाय नम: 
06) ॐ क्षेत्रपालाय नम: 
07) ॐ क्षेत्रज्ञाय नम: 
08) ॐ क्षत्रियाय नम: 
09) ॐ विराजे नम: 
10) ॐ श्मशानवासिने नम: 
11) ॐ मांसाशिने नम: 
12) ॐ खर्पराशिने नम: 
13) ॐ स्मरांतकाय नम: 
14) ॐ रक्तपाय नम: 
15) ॐ पानपाय नम: 
16) ॐ सिद्धाय नम: 
17) ॐ सिद्धिदाय नम: 
18) ॐ सिद्धसेविताय नम: 
19) ॐ कंकालाय नम:
20) ॐ कालशमनाय नम: 
21) ॐ कलाकाष्ठाय नम: 
22) ॐ तनये नम: 
23) ॐ कवये नम:
24) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
25) ॐ बहुनेत्राय नम: 
26) ॐ पिंगललोचनाय नम: 
27) ॐ शूलपाणये नम: 
28) ॐ खडगपाणये नम: 
29) ॐ कंकालिने नम: 
30) ॐ धूम्रलोचनाय नम: 
31) ॐ अभीरवे नम: 
32) ॐ भैरवीनाथाय नम: 
33) ॐ भूतपाय नम: 
34) ॐ योगिनीपतये नम: 
35) ॐ धनदाय नम: 
36) ॐ अधनहारिणे नम: 
37) ॐ धनवते नम: 
38) ॐ प्रीतिवर्धनाय नम: 
39) ॐ नागहाराय नम: 
40) ॐ नागपाशाय नम: 
41) ॐ व्योमकेशाय नम: 
42) ॐ कपालभृते नम: 
43) ॐ कालाय नम: 
44) ॐ कपालमालिने नम: 
45) ॐ कमनीयाय नम: 
46) ॐ कलानिधये नम: 
47) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
48) ॐ ज्वलन्नेत्राय नम: 
49) ॐ त्रिशिखिने नम: 
50) ॐ त्रिलोकपालाय नम: 
51) ॐ त्रिवृत्ततनयाय नम: 
52) ॐ डिंभाय नम: 
53) ॐ शांताय नम: 
54) ॐ शांतजनप्रियाय नम: 
55) ॐ बटुकाय नम: 
56) ॐ बटुवेशाय नम: 
57) ॐ खट्वांगधराय नम: 
58) ॐ भूताध्यक्षाय नम: 
59) ॐ पशुपतये नम: 
60) ॐ भिक्षकाय नम: 
61) ॐ परिचारकाय नम: 
62) ॐ धूर्ताय नम: 
63) ॐ दिगंबराय नम: 
64) ॐ शूराय नम: 
65) ॐ हरिणे नम: 
66) ॐ पांडुलोचनाय नम: 
67) ॐ प्रशांताय नम: 
68) ॐ शांतिदाय नम: 
69) ॐ शुद्धाय नम: 
70) ॐ शंकरप्रियबांधवाय नम: 
71) ॐ अष्टमूर्तये नम: 
72) ॐ निधीशाय नम: 
73) ॐ ज्ञानचक्षुषे नम: 
74) ॐ तपोमयाय नम: 
75) ॐ अष्टाधाराय नम: 
76) ॐ षडाधाराय नम: 
77) ॐ सर्पयुक्ताय नम: 
78) ॐ शिखिसखाय नम: 
79) ॐ भूधराय नम: 
80) ॐ भूधराधीशाय नम: 
81) ॐ भूपतये नम: 
82) ॐ भूधरात्मजाय नम: 
83) ॐ कपालधारिणे नम: 
84) ॐ मुंडिने नम: 
85) ॐ नागयज्ञोपवीतवते नम: 
86) ॐ जृंभणाय नम: 
87) ॐ मोहनाय नम: 
88) ॐ स्तंभिने नम: 
89) ॐ मारणाय नम: 
90) ॐ क्षोभणाय नम: 
91) ॐ शुद्धनीलांजनप्रख्याय नम: 
92) ॐ दैत्यघ्ने नम: 
93) ॐ मुंडभूषिताय नम: 
94) ॐ बलिभुजे नम: 
95) ॐ बलिभुंगनाथाय नम: 
96) ॐ बालाय नम: 
97) ॐ बालपराक्रमाय नम: 
98) ॐ सर्वापत्तारणाय नम: 
99) ॐ दुर्गाय नम: 
100) ॐ दुष्टभूतनिषेविताय नम: 
101) ॐ कामिने नम: 
102) ॐ कलानिधये नम: 
103) ॐ कांताय नम: 
104) ॐ कामिनीवशकृद्वशिने नम: 
105) ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम: 
106) ॐ वैद्याय नम: 
107) ॐ प्रभवे नम: 
108) ॐ विष्णवे नम:

विधि:-
  • काला/लाल वस्त्र पहनें.
  • दक्षिण दिशा की और मुख रखें .
  • भैरव यंत्र या चित्र या पंचमुखी रुद्राक्ष रखकर कर सकते हैं .
  • सरसों के तेल का दीपक जला सकते हैं .
  • हर मन्त्र के साथ सिंदूर या लाल पुष्प चढ़ाएं .


5 दिसंबर 2018

भैरवं नमामि



भैरवं नमामि
यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानं
सं सं सं संहार मूर्ति शुभ मुकुट जटा शेखरं चन्द्र विम्बं
दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुख चौर्ध्व रोमं करालं
पं पं पं पाप नाशं प्रणमतं सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ १ ॥
रं रं रं रक्तवर्णं कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्रा विशालं
घं घं घं घोर घोषं घ घ घ घ घर्घरा घोर नादं
कं कं कं कालरूपं धग धग धगितं ज्वलितं कामदेहं
दं दं दं दिव्य देहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ २ ॥
लं लं लं लम्ब दन्तं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वाकरालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्ण स्फुट विकृत मुखंमासुरं भीम रूपं
रूं रूं रूं रुण्डमालं रुधिरमय मुखं ताम्र नेत्रं विशालं
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ३ ॥
वं वं वं वायुवेगं प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवन निलयं भास्करं भीमरूपं
चं चं चं चालयन्तं चल चल चलितं चालितं भूत चक्रं
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ४ ॥
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालान्धकारं
क्षि क्षि क्षि क्षिप्र वेग दह दह दहन नेत्रं सन्दीप्यमानं
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहन गर्जितं भूमिकंपं
बं बं बं बाललीलम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ५ ॥

  • भैरव प्रार्थना है.
  • उनकी कृपा प्रदान करती है .

4 दिसंबर 2018

काल भैरव साधना




काल भैरव साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में लाभकारी है :-
  • शत्रु बाधा.
  • तंत्र बाधा.
  • इतर योनी से कष्ट.
  • उग्र साधना में रक्षा हेतु.
काल भैरव मंत्र :-

|| ॐ भ्रं काल भैरवाय फट ||

विधि :-
  1. रात्रि कालीन साधना है.अमावस्या, नवरात्रि,कालभैरवाष्टमी, जन्माष्टमी या किसी भी अष्टमी से प्रारंभ करें.
  2. गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अनुसार शिवरात्रि भैरव साधना का सिद्ध मुहूर्त है |
  3. रात्रि 9 से 4 के बीच करें.
  4. काला आसन और वस्त्र रहेगा.
  5. रुद्राक्ष या काली हकिक माला से जाप करें.
  6. १०००,५०००,११०००,२१००० जितना आप कर सकते हैं उतना जाप करें.
  7. जाप के बाद १० वा हिस्सा यानि ११००० जाप करेंगे तो ११०० बार मंत्र में स्वाहा लगाकर हवन  कर लें.
  8. हवन सामान्य हवन सामग्री से भी कर सकते हैं.

  9. काली  मिर्च या  तिल का प्रयोग भी कर सकते हैं.
  10. अंत में एक कुत्ते को भरपेट भोजन करा दें. काला कुत्ता हो तो बेहतर.
  11. एक नारियल [पानीवाला] आखिरी दिन अपने सर से तीन बार घुमा लें, अपनी इच्छा उसके सामने बोल दें. 
  12. किसी सुनसान जगह पर बने शिव या काली मंदिर में छोड़कर बिना पीछे मुड़े वापस आ जाएँ. 
  13. घर में आकर स्नान कर लें. 
  14. दो अगरबत्ती जलाकर शिव और शक्ति से कृपा की प्रार्थना करें. 
  15. किसी भी प्रकार की गलती हो गयी हो तो उसके लिए क्षमा मांगे.
  16. दोनों अगरबत्ती घर के द्वार पर लगा दें.

4 अक्तूबर 2018

भगवती कामाख्या


भगवती कामाख्या 
मूल शक्ति हैं




 जो सभी साधनाओं का मूल हैं ।
 
॥ ऊं ऎं ह्रीं क्लीं कामाख्यायै स्वाहा ॥


विशिष्ट  निर्देश :-
1.        साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
2.        साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
3.        भगवती कामाख्या मूल शक्ति हैं । इस साधना को  कम से कम ५  वर्षों तक लगातार करते रहैं |
4.        यह साधना विवाहित साधकों को ही करनी चाहिए । 
5.        यह साधना पति पत्नी एक साथ करें तो ज्यादा लाभ होगा। 
6.        इस साधना में दिशा /आसन/वस्त्र /संख्या का महत्व नहीं है
7.        जाप गौरीशंकर रुद्राक्ष की माला से किया जाये तो सर्व श्रेष्ट है ना हो तो पञ्चमुखी रुद्राक्ष या किसी भी रुद्राक्ष की माला  स्वीकार्य  है |



  • यह साधना गुरु की अनुमति से ही करें। 
  • साधना नियमित रूप से करें। 
  • जाप के दौरान बकवास और बेवजह का प्रलाप चुगली आदि ना करें|
  • किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें |           
  • साधना काल में किसी के बारे में बुरा न बोले। भविष्यवाणी न करें। 
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19 अगस्त 2018

काल भैरव ध्यान




भैरवं नमामि
यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानं
सं सं सं संहार मूर्ति शुभ मुकुट जटा शेखरं चन्द्र विम्बं
दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुख चौर्ध्व रोमं करालं
पं पं पं पाप नाशं प्रणमतं सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ १ ॥
रं रं रं रक्तवर्णं कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्रा विशालं
घं घं घं घोर घोषं घ घ घ घ घर्घरा घोर नादं
कं कं कं कालरूपं धग धग धगितं ज्वलितं कामदेहं
दं दं दं दिव्य देहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ २ ॥
लं लं लं लम्ब दन्तं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वाकरालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्ण स्फुट विकृत मुखंमासुरं भीम रूपं
रूं रूं रूं रुण्डमालं रुधिरमय मुखं ताम्र नेत्रं विशालं
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ३ ॥
वं वं वं वायुवेगं प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवन निलयं भास्करं भीमरूपं
चं चं चं चालयन्तं चल चल चलितं चालितं भूत चक्रं
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ४ ॥
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालान्धकारं
क्षि क्षि क्षि क्षिप्र वेग दह दह दहन नेत्रं सन्दीप्यमानं
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहन गर्जितं भूमिकंपं
बं बं बं बाललीलम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ५ ॥


15 अगस्त 2018

अष्ट भैरव ध्यान

अष्ट भैरव -

1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव।





यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानं
सं सं सं संहार मूर्ति शुभ मुकुट जटा शेखरं चन्द्र विम्बं
दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुख चौर्ध्व रोमं करालं
पं पं पं पाप नाशं प्रणमतं सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ १ ॥

रं रं रं रक्तवर्णं कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्रा विशालं
घं घं घं घोर घोसं घ घ घ घ घर्घरा घोर नादं
कं कं कं कालरूपं धग धग धगितं ज्वलितं कामदेहं
दं दं दं दिव्य देहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ २ ॥

लं लं लं लम्ब दन्तं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वाकरालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्ण स्फुट विकृत मुखंमासुरं भीम रूपं
रूं रूं रूं रुण्डमालं रुधिरमय मुखं ताम्र नेत्रं विशालं
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ३ ॥

वं वं वं वायुवेगं प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवन निलयं भास्करं भीमरूपं
चं चं चं चालयन्तं चल चल चलितं चालितं भूत चक्रं
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ४ ॥

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालान्धकारं
क्षि क्षि क्षि क्षिप्र वेग दह दह दहन नेत्रं सांदिप्यमानं
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहन गर्जितं भूमिकंपं
बं बं बं बाललिलम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ५ ॥

27 मई 2018

भैरवं नमामि



भैरवं नमामि
यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानं
सं सं सं संहार मूर्ति शुभ मुकुट जटा शेखरं चन्द्र विम्बं
दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुख चौर्ध्व रोमं करालं
पं पं पं पाप नाशं प्रणमतं सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ १ ॥
रं रं रं रक्तवर्णं कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्रा विशालं
घं घं घं घोर घोषं घ घ घ घ घर्घरा घोर नादं
कं कं कं कालरूपं धग धग धगितं ज्वलितं कामदेहं
दं दं दं दिव्य देहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ २ ॥
लं लं लं लम्ब दन्तं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वाकरालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्ण स्फुट विकृत मुखंमासुरं भीम रूपं
रूं रूं रूं रुण्डमालं रुधिरमय मुखं ताम्र नेत्रं विशालं
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ३ ॥
वं वं वं वायुवेगं प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवन निलयं भास्करं भीमरूपं
चं चं चं चालयन्तं चल चल चलितं चालितं भूत चक्रं
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ४ ॥
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालान्धकारं
क्षि क्षि क्षि क्षिप्र वेग दह दह दहन नेत्रं सन्दीप्यमानं
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहन गर्जितं भूमिकंपं
बं बं बं बाललीलम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ५ ॥

26 मई 2018

भैरव साधना

तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव इस प्रकार हैं-

1.
असितांग भैरव,
2.
चंड भैरव,
3.
रूरू भैरव,
4.
क्रोध भैरव,
5.
उन्मत्त भैरव,
6.
कपाल भैरव,
7.
भीषण भैरव
8.
संहार भैरव।


आप अपनी इच्छानुसार इष्ट भैरव का नाम काल के स्थान पर रख कर जाप कर सकते हैं |


काल भैरव साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में लाभकारी है :-
  • शत्रु बाधा.
  • तंत्र बाधा.
  • इतर योनी से कष्ट.
  • उग्र साधना में रक्षा हेतु.
जब सभी मार्ग बंद हो जाएँ तो काल भैरव साधना से मार्गदर्शन प्राप्त होता है |
काल भैरव मंत्र :-
|| ॐ भ्रं काल भैरवाय फट ||
विधि :-
  1. होलीका दहन की रात्रि यह साधना करें
  2. रात्रि कालीन साधना है.
  3. रात्रि 9 से 4 के बीच करें.
  4. काला आसन और वस्त्र रहेगा.
  5. रुद्राक्ष या काली हकिक माला से जाप करें.
  6. १०००,५०००,११०००,२१००० जितना आप कर सकते हैं उतना जाप करें.
  7. जाप के बाद १० वा हिस्सा यानि ११००० जाप करेंगे तो ११०० बार मंत्र में स्वाहां लगाकर हवं कर लें.
  8. हवन सामान्य हवन सामग्री से भी कर सकते हैं.
  9. कालि मिर्च , तिल का प्रयोग भी कर सकते हैं.
  10. अंत में एक कुत्ते को भोजन करा दें. काला कुत्ता हो तो बेहतर.


28 फ़रवरी 2018

होलिका दहन पर भैरव साधना

होलिका दहन तन्त्र साधनाओं का विशिष्ट सिद्ध मुहूर्त है :-
  • होलिका दहन कि रात्रि करें|
  • अपने सामने एक सूखा नारियल , एक कपूर की डली , 11 लौंग 11 इलायची, 1 डली लोबान या धुप रखें |
  • सरसों के तेल का दीपक जलाएं |
  • हाथ में नारियल लेकर अपनी मनोकामना बोलें | नारियल सामने रखें |
  • दक्षिण दिशा कीओर देखकर इस मन्त्र का 108 बार जाप करें |
  • अर्धरात्रि के बाद पूरी सामग्री होली कि अग्नि में डाल दें |



|| ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भ्रः | ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रः |ख्रां ख्रीं ख्रूं ख्रः|घ्रां घ्रीं घ्रूं घ्र: | म्रां म्रीं म्रूं म्र: | म्रों म्रों म्रों म्रों | क्लों   क्लों क्लों क्लों |श्रों श्रों श्रों श्रों | ज्रों ज्रों  ज्रों ज्रों | हूँ हूँ हूँ हूँ| हूँ हूँ हूँ हूँ | फट | सर्वतो रक्ष रक्ष रक्ष रक्ष भैरव नाथ हूँ फट ||

31 अगस्त 2017

भैरवं नमामि

भैरव स्तुति के पाठ से उनकी कृपा प्राप्त होती है :-

यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानं
सं सं सं संहार मूर्ति शुभ मुकुट जटा शेखरं चन्द्र विम्बं
दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुख चौर्ध्व रोमं करालं
पं पं पं पाप नाशं प्रणमतं सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ १ ॥

रं रं रं रक्तवर्णं कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्रा विशालं
घं घं घं घोर घोषं घ घ घ घ घर्घरा घोर नादं
कं कं कं कालरूपं धग धग धगितं ज्वलितं कामदेहं
दं दं दं दिव्य देहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ २ ॥

लं लं लं लम्ब दन्तं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वाकरालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्ण स्फुट विकृत मुखंमासुरं भीम रूपं
रूं रूं रूं रुण्डमालं रुधिरमय मुखं ताम्र नेत्रं विशालं
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ३ ॥

वं वं वं वायुवेगं प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवन निलयं भास्करं भीमरूपं
चं चं चं चालयन्तं चल चल चलितं चालितं भूत चक्रं
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ४ ॥

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालान्धकारं
क्षि क्षि क्षि क्षिप्र वेग दह दह दहन नेत्रं सांदिप्यमानं
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहन गर्जितं भूमिकंपं
बं बं बं बाललिलम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ५ ॥

  • 108 पाठ करें.
  • बोलकर पाठ होगा.
  • गुड / चने का भोग लगाएं.
  • पाठ के बाद काले कुत्ते को कुछ अवश्य खिलाएं.


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------------------- विशेष --------------------- साधना में गुरु की आवश्यकता
Y   मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y   साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y   गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y   रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y   रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y   गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y   स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y   गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
Y    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y   मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें, ढिंढोरा ना पीटें, बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y   गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y   आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y   बकवास और प्रलाप न करें.
Y   किसी पर गुस्सा न करें.
Y   यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y   ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y   किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y   जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y   बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y   ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y   इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y   भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें , इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशा, आसन, वस्त्र का महत्व
Y   साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y   आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y   अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y   इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
Y   जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है , जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y   यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y   नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें , लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |