18 जुलाई 2024

सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी )

    


सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी )

किसी भी जीवित जागृत गुरु के साथ रहना मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है .... 

चाहे वह एक क्षण के लिए ही क्यों ना हो ! 

कुछ मिनट के लिए ही क्यों ना हो !

अगर आप किसी सद्गुरु के साथ रहे हैंउनके साथ कुछ समय व्यतीत किया है तो उनकी सुगंध आपके जीवन में अवश्य मिलेगी.... 

यह समझ लीजिए कि आपके अंदर वह ऐसी सुगंध छोड़ देते हैं जो आपके पूरे जीवन भर लोगों को महसूस होती रहेगी.... 

जीवित गुरु के साथ रहना थोड़ा मुश्किल होता है !

क्योंकि एक तो उनकी परीक्षाएं बड़ी जटिल होती है .... 

दूसरे उनके साथ अगर आप रहे तो आपको निरंतर साधनाओं मे लगे रहना पड़ता है । आलस्य और प्रमाद की जगह नहीं होती । 

इसके अलावा तीसरी बात यह कि वे अपने इर्द-गिर्द माया का ऐसा आवरण फैलाते हैं कि अधिकांश शिष्य उसमें फस कर रह जाते हैं । 

बिरले ऐसे होते हैं जो उस माया के आवरण के परे जाकर भी सद्गुरु के ज्ञान को.... 

उनकी महत्ता को... 

उनके दिव्यत्व को थोडा बहुत समझ पाते हैं । 

जो उन्हें समझ लेता है.... 

जो उन्हें महसूस कर लेता है .... 

तो फिर उनकी क्रीडाउनकी माया सब कुछ अपने आप में समेट लेते हैं .... 

और अपने विराट स्वरूप का ज्ञान भी शिष्य को करा देते हैं और फिर ऐसा शिष्य जो स्वयं एक बीज के रूप में होता है..... 

वह धीरे धीरे बढ़ता हुआ पौधा बनता है और कालांतर में एक विशाल वटवृक्ष के जैसा बन जाता है .... 

जिसकी शरण में........ 

जिसकी छाया में धूप से संतप्त यात्री शरण लेते हैं ! भोजन कर सकते हैं !

कई प्रकार के पशु पक्षी उसके आश्रय में आकर निवास कर लेते हैं !

जब यह शिष्यत्व बढ़ता जाता है तो वह स्वयं एक कल्पवृक्ष के रूप में विकसित होने लगता है !

गुरु अपने अंदर स्थित कल्पवृक्ष जैसी क्षमताओं को उस शिष्य के अंदर प्रवाहित करना प्रारंभ कर देते हैं !

उसे समर्थ बना देते हैं !

सक्षम बना देते हैं .... 

ताकि वह भी उन्हीं के समान दूसरों की कठिनाइयों को हल करने की क्षमता प्राप्त कर सकें । 

जीवन में अद्वितीय सफलताओं को प्राप्त कर सके ..... 

साधना की उच्चता को प्राप्त कर सकें !

उस महामाया के सानिध्य को प्राप्त कर सकें !

महादेव का सौरभ अपने जीवन में महसूस कर सके !

जब ऐसी स्थिति आती है तो शिष्य निश्चिंत हो जाता है । निश्चिंत होने का मतलब यह नहीं है कि उसके जीवन में सब कुछ ठीक ही होगा.... जीवन में कोई समस्याएं नहीं होंगी.... 

हाँ ! समस्याएं आएंगी....

चिंताएं भी आएंगी.... 

लेकिन उनके समाधान का मार्ग भी उसी प्रकार से निकलता चला जाएगा । 

जीवन बड़ी ही सरलता से..... 

किसी बहती हुई नदी की तरह..... 

छल छल करता हुआ आगे की ओर बढ़ता रहेगा और आप उस आनंद में गुरु के सानिध्य के उस आनंद में अपने आप को आप्लावित करते हुए.... 

उनकी सुगंध को महसूस करते हुए.... 

स्वयं सुगंधित होते हुए आगे बढ़ते रहेंगे । 

मेरे सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का सानिध्य और उनके पास बिताए गए कुछ क्षण मेरे जीवन की धरोहर है !

मेरे जीवन का सौभाग्य है !

मेरी सबसे बड़ी पूंजी है !

मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि इस पृथ्वी पर गुरु तत्व से परे कुछ भी नहीं है । 

आपने एक अच्छा गुरु प्राप्त कर लिया !

एक अच्छे गुरु के सानिध्य में चले गए !!

आप एक अच्छे शिष्य बन गए !!!

तो यकीन मानिए इस पृथ्वी पर ऐसा कुछ भी नहीं है..... 

जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते !

चाहे धन-संपत्ति हो

चाहे ईश्वरीय सानिध्य हो !

सब कुछ सहज उपलब्ध हो जाता है -----

पूज्यपाद गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी जिन्हें सन्यस्त रूप में परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के रूप में भी जाना जाता है.... 

वे वर्ष 1935 में 21 अप्रैल के दिन इस धरा पर अवतरित हुए थे । उन्होने अपने जीवन का एक लंबा कालखंड साधनाओं के विषय में.... 

तंत्र के विषय में.... 

गोपनीय ज्ञान को प्राप्त करने और इकट्ठा करने में बिताया था । 

उनका मूल लक्ष्य था कि वे भारत की साधनाओं को भारत की गोपनीय विद्याओं को वापस उनके मूल स्वरूप में पुनः स्थापित करके उनकी प्रतिष्ठा को वापस ला सके । 

इसके लिए उन्होंने बहुत गहन गंभीर प्रयास किए । उनका सबसे पहला प्रयास ज्योतिष विद्या के क्षेत्र था । उन्होंने ज्योतिष पर कई किताबें लिखीं । जिनमें कुंडली बनाने से लेकर भावों को देखकर उसकी गणना के द्वारा सटीक भविष्यफल बताने तक बहुत सारी विधि छोटी-छोटी पुस्तकों के रूप में उन्होंने प्रकाशित की थी । आज भी आप उन पुस्तकों को ध्यान से पढ़ लें । 

साल दो साल का समय दें ... 

तो यकीन मानिए कि आप एक अच्छे ज्योतिष बनने की दिशा में अग्रसर हो जाएंगे । 

इसी प्रकार उन्होंने हस्तरेखा पर भी एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा ग्रंथ लिखा है.... 

वृहद हस्तरेखा शास्त्र.... 

जिसमें हाथ की लकीरों और उन से बनने वाले विभिन्न प्रकार के योगों के बारे में पूरी व्याख्या दी गई है । 

अगर आप हस्तरेखा के क्षेत्र में रुचि रखते हैं तो आपको डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी की यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए । उसे अगर आप पूरी निष्ठा श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़कर उसके अनुसार विवेचन करने की कोशिश करेंगे तो यकीन मानिए कि आप जल्द ही एक प्रतिष्ठित हस्त रेखा शास्त्री के रूप में अपने आप को स्थापित कर लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने हस्तरेखा शास्त्र के विषय में आगे बढ़ने के लिए हस्त रेखाओं की अधिष्ठात्री देवी जिन्हें "पंचांगुली देवीकहा जाता है उनके साधना के संपूर्ण विधान को भी अपनी किताब "पंचांगुली साधनामें स्पष्ट किया है । 

यह साधना जटिल हैलेकिन अगर आप उस किताब के अनुसार इस साधना को संपन्न करते हैं तब भी आपको हस्त रेखाओं के ज्ञान में अनुकूलता और प्रभाव प्राप्त हो सकता है । 

एक और विषय जो उन्होंने प्रारंभिक स्तर पर उठाया था ... 

वह था हिप्नोटिज्म !

हिप्नोटिज्म का अर्थ होता है सम्मोहन या दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने की कला !

अगर आप देखें तो जीवन में खास तौर से गृहस्थ जीवन में हमारा अधिकांश समय दूसरों को प्रभावित करने में ही बीत जाता है.... 

हमारी अधिकांश सफलता का श्रेय भी इसी क्षमता को जाता है.... 

मान लीजिए कि आप एक दुकानदार हैआपका सामान तभी बिकेगा जब आप अपने ग्राहक को समझा पाए कि आपका सामान बढ़िया है और उसके लायक है । जब आप अपने सामान को और  उसकी विशेषताओं को इस प्रकार से प्रस्तुत करें कि वह व्यक्ति उसके प्रति आकर्षित हो जाए आपके प्रति आकर्षित हो जाए तब आपका सामान आराम से बिक जाएगा । 

विज्ञापन इसका एक उदाहरण है । उसमे ऐसे चेहरों का इस्तेमाल होता है जिनसे लोग पहले ही सम्मोहित होते हैं और उनके सम्मोहन के प्रभाव से कई फालतू के सामान जो शरीर के लिए हानिकारक हैं ... जैसे सॉफ्ट ड्रिंक..... वे भी बड़ी मात्रा मे बिक जाते हैं । 

इसी प्रकार से समाज में भी जब आप किसी समूह में या अपने विभाग में या अपने कार्यस्थल पर चर्चा करते हैं... 

या बातें करते हैं... 

या व्यवहार करते हैं... 

तो आपकी लोकप्रियता इस बात पर निर्भर होती है कि लोग आपसे कितने ज्यादा प्रभावित हैं ... 

या यूं कहिए कि लोग आपसे कितने ज्यादा सम्मोहित है.... 

यह सम्मोहन ही आपको सफलता प्रदान करता है । 

सम्मोहन का क्षेत्र बहुत व्यापक है !

अगर आप कोई इंटरव्यू देने जाते हैं तो इंटरव्यू की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप सामने बैठे हुए व्यक्ति को कितना प्रभावित कर पाते हैं ..... 

अगर वह आपसे प्रभावित है तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह आपका सिलेक्शन कर लेगा ..... 

लेकिन वह अगर आप से प्रभावित नहीं हुआ तो इस बात की संभावना है कि आप की योग्यताओं के साथ भी वह आपको रिजेक्ट कर सकता है.... 

अगर आप अध्यापन के क्षेत्र में है तो आप के विद्यार्थी आपकी बातों को मन से स्वीकार तभी करेंगे जब .... 

आपके बोलने की क्षमता में.... 

आपके विषय को प्रस्तुत करने की क्षमता में सम्मोहन होगा ... 

कई बार आप इसे देखते होंगे कि कुछ अध्यापक जब पढ़ाते हैं तो बच्चे पूरी शांति से बैठ कर उनको सुनते हैं .... 

चाहे वह कितने ही उल्टी बुद्धि के बच्चे क्यों ना हो । उनको उस अध्यापक के साथ पढ़ने में मजा आता है । यह उसके अंदर विकसित सम्मोहन की क्षमता है । इसी क्षमता को विकसित करने का अभ्यास ही हिप्नोटिज्म या सम्मोहन कहलाता है । 

इस विषय पर भी उन्होंने एक बहुत ही शानदार किताब लिखी है जिसका नाम है 

"प्रैक्टिकल हिप्नोटिज्म"

इसमें कई ऐसी विधियां दी हुई है जिसके आधार पर.... 

जिन के अभ्यास से... 

आप अपने आप को सम्मोहक स्वरूप प्रदान कर सकते हैं । 

आप यदि मंत्र के विषय में जानना चाहते हैं तो मुझे ऐसा लगता है कि डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के द्वारा लिखी गई किताब "मंत्र रहस्यआपके लिए  एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा काम कर सकती है । उसमें मंत्रों के शास्त्रीय रहस्य को बड़े ही सरल ढंग से खोला गया है और लगभग सभी देवी देवताओं के मंत्र उसमें दिए हुए हैं । 

उनकी एक और किताब है तांत्रिक रहस्य जिसमें उन्होंने कुछ महाविद्या साधनाओं के विषय में भी विस्तार से प्रकाश डाला है । उनकी विधियां भी दी हुई है..... 

 

प्रेम 

अधिकांश गुरु प्रेम के विषय में चर्चा करने से बचते हैं लेकिन अगर आप देखें तो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे सुंदर अगर कोई चीज है तो वह है प्रेम ... 

एक माँ का अपने बच्चे के प्रति जो प्रेम होता है वह उसे विकसित होने बड़ा होने और सक्षम बनने में मदद करता है !

प्रकृति का जो प्रेम है वह हमें समय पर बारिश धूप सब कुछ प्रदान करता है !

पृथ्वी का प्रेम है जो हमें फसलों के रूप में पौधों के रूप में जीवन प्रदान करता है !

यह संपूर्ण सृष्टि उसी प्रेम के सानिध्य में पल रही है और बड़ी हो रही है .... 

लेकिन अधिकांश लोग प्रेम के विषय में चर्चा नहीं करना चाहते । 

वैसे प्रेम और लव में बहुत फर्क है..... 

हम अक्सर प्रेम को लव के साथ कंपेयर करने लग जाते हैं । लव एक पाश्चात्य शब्द है जो कि भौतिकता वादी है । उसके अंतर्गत सिर्फ शरीर और शरीर से सुख प्राप्त करने की क्रियाओं को ही लव माना जाता है लेकिन अगर आप देखें तो उनसे भी परे प्रेम का एक अद्भुत विराट और व्यापक संसार है.... जिसके प्रतीक हैं भगवान कृष्ण !

जिनके प्रेम की महक एक युग युग के बीत जाने के बाद भी आज तक हमारे बीच में मौजूद है !

उसका स्वरूप अलग अलग है लेकिन भगवान कृष्ण के प्रेम की जो मिठास है वह आज भी इस धरती पर महसूस की जा सकती है !

आज भी अगर आप भगवान कृष्ण के चित्र को देखेंगे तो आपके चेहरे पर एक मंद मुस्कान स्वतः बिखर जाएगी !

आपके हृदय में एक हल्की सी खुशी की लहर जरूर उठेगी.... 

यह उनकी प्रेम की विराटता का प्रतीक है !!!

प्रेम जैसे महत्वपूर्ण और रहस्यमय अछूते विषय पर

भी गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमली जी ने लिखा है.... 

प्रेम पर उनकी किताब का नाम है 

"फिर दूर कहीं पायल खनकी"

आप इस किताब को पढ़ेंगे तो आपको आश्चर्य होगा कि तंत्र साधना ओं के क्षेत्र में.... 

ज्योतिष के क्षेत्र में..... 

सम्मोहन के क्षेत्र में.... 

योग के क्षेत्र में.... 

आयुर्वेद के क्षेत्र में.... 

अद्भुत क्षमताएं रखने वाला एक विराट व्यक्तित्व प्रेम के विषय में कितनी सरलता सहजता और व्यापकता के साथ व्याख्या प्रस्तुत कर रहा है..... 

वास्तव में अगर आप प्रेम को समझना चाहते हैं तो आपको यह किताब पढ़नी चाहिए.... 

 

कुल मिलाकर मैं कहूंगा कि गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी एक अद्भुत व्यक्तित्व थे जिन्होंने जीवन के सभी आयामों को स्पर्श किया था । 

उनके जीवन में भी कई प्रकार की घटनाएं घटी !

कई ऐसे प्रसंग आए जो कि गृहस्थ जीवन में और सामाजिक जीवन में भी परेशानी देने वाले थे .... 

लेकिन उन्होंने उन सब को सहजता से स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहने का कार्य किया । 

मुझे ऐसा लगता है कि आज इस संपूर्ण विश्व में उनके शिष्यों की संख्या.... 

उनको मानने वालों की संख्या.... 

उनका सम्मान करने वालों की संख्या..... 

कई करोड़ होगी.... 

और यह संख्या बढ़ती रहेगी..... 

क्योंकि वह ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व है कि उनके जाने के वर्षों बाद भी उनका माधुर्य उनकी सुगंध इस धरती पर बिखरी हुई है .... 

आज भी वे शिष्यों को सपने मे या सूक्ष्म रूप मे दर्शन देते हैं .... उनको दीक्षाएं प्रदान करते हैं ...... मंत्र प्रदान करते हैं...... उनको साधना के पथ पर आगे बढ़ाते हैं । 

वर्ष 1998 में जुलाई के दिन ही उन्होंने अपनी पार्थिव देह को त्याग दिया था.... 

मैं आगामी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अपने गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित करता हुआ .... 

उनके चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम करता हुआ अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं.... 

कि हे गुरुदेव 

आपकी कृपा... 

आप का सानिध्य.... 

आपका आशीर्वाद .... 

धूल को फूल बना देने की क्षमता रखता है !

रंक को राजा बना देने की क्षमता रखता है !

आप वास्तव में अद्भुत हैं !!!

 

गुरुदेव के आडिओ वीडियो प्रवचन : सबके लिये

 

गुरुदेव के आडिओ वीडियो प्रवचन : सबके लिये 




मेरे गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी तंत्र तथा
आयुर्वेद के ख्याति प्राप्त विद्वान थे ।
उनका जन्म 21 अप्रेल सन 1935 को हुआ था ।
उनका देहांत 3 जुलाई 1998 में हो गया । 

उन्होंने विभिन्न विषयों पर लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा
किताबें लिखी हैं ।
किताबों के विषय ज्योतिष और हस्तरेखा शास्त्र से लेकर
तंत्र और पारद विद्या तक विस्तृत है । 
विश्व का सर्वप्रथम तांत्रिक उपन्यास " शमशान भैरवी" 
उन्होंने ही लिखा था । 
जब वे किसी विषय पर बोलते थे ...
तो उस पर लगातार घंटों बोल लेते थे । 
ऐसा लगता था ....
जैसे उनके कंठ में साक्षात
भगवती सरस्वती विराजमान हो ।  

मंत्रों का और साधनाओं का
उनके पास अकूत भंडार था । 
जब वे तांत्रिक प्रयोग कराते थे...
तो 30-32 पेज के मंत्र ...
जिनको बोलने में लगभग
आधा से 1 घंटे का समय लगता है
वह बिना कोई कागज देखें बोल लेते थे ।
चारों वेद उनको कंठस्थ थे ..... 

उन्होंने अपने जीवन काल में
अनेक बड़ी-बड़ी हस्तियों को मार्गदर्शन दिया है । 
ज्योतिष के क्षेत्र में उनकी राय को
भारत का ज्योतिष जगत प्रमाणित मानता रहा है ....
भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर
भूतपूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा
और ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी तक
उनके कई प्रतिष्ठित समर्थक रहे हैं । 

उनके कई प्रयोगों के ऑडियो और वीडियो आज भी उपलब्ध हैं
जिन्हें सुनकर आप लाभ उठा सकते हैं ।  

https://www.youtube.com/@Nikhileshwaranandji


16 जुलाई 2024

गुरु पूर्णिमा पर तांत्रोक्त गुरु पूजन

  गुरु पूर्णिमा पर तांत्रोक्त गुरु पूजन


गुरु पूर्णिमा के अवसर पर तंत्रोक्त गुरु पूजन की विधि प्रस्तुत है ।





जिसके माध्यम से आप अपने सदगुरुदेव का पूजन कर सकते हैं क्योंकि मेरे गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ( डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ) हैं इसलिए गुरुदेव जी के स्थान पर में उनका नाम ले रहा हूं आप अपने गुरु का नाम उनकी जगह पर ले सकते हैं ।


इस पूजन के लिए स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें । लकड़ी की चौकी या बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर पंचामृत या जल से स्नान कराके गुरु चित्र यंत्र या शिवलिंग जो भी आपके पास उपलब्ध हो उसे रख लें । अब पूजन प्रारंभ करें।



पवित्रीकरण

किसी भी कार्य को करने के पहले हम अपने आप को साफ सुथरा करते हैं ठीक वैसे ही पूजन करने से पहले भी अपने आप को पवित्र किया जाता है इसे पवित्रीकरण कहते हैं इसमें अपने ऊपर बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से छिड़कें या फूल या चम्मच जो भी आप इस्तेमाल करना चाहते हो उसके द्वारा अपने ऊपर थोड़ा सा जल छिड़क लें ।


ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।


आचमन

आंतरिक शुद्धि के लिए निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें -


ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।

ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।

ॐ विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।


सूर्य पूजन

भगवान सूर्य इस सृष्टि के संचालन करता है और उन्हीं के माध्यम से हम सभी का जीवन गतिशील होता है इसलिए उनकी पूजा अनिवार्य है ।

कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें -


ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।

हिरण्येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।

ॐ पश्येन शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं ।जीवेम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात ।।



ध्यान

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।

गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम: ॥

ध्यान मूलं गुरु: मूर्ति पूजा मूलं गुरो पदं ।

मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुकृपा ॥


आवाहन


ॐ स्वरुप निरूपण हेतवे श्री निखिलेश्वरानन्दाय गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।

ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री सच्चिदानंद परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।

ॐ स्वात्माराम पिंजर विलीन तेजसे श्री ब्रह्मणे पारमेष्ठि गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।


षट चक्र स्थापन --


गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें -


श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री सदाशिवानन्दनाथ चिच्छक्त्यम्बा स्वाधिष्ठान चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री ईश्वरानन्दनाथ आनंद शक्त्यम्बा मणिपुर चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री विष्णुदेवानन्दनाथ ज्ञान शक्त्यम्बा विशुद्ध चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री ब्रह्मदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः ।



गुरु चरणों मे समर्पित करें 


ॐ श्री उन्मनाकाशानन्दनाथ – जलं समर्पयामि ।

ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – गंगाजल स्नानं समर्पयामि ।

ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि ।

ॐ श्री शक्त्याकाशानन्दनाथ – चन्दनं समर्पयामि ।

ॐ श्री ध्वन्याकाशानन्दनाथ – कुंकुमं समर्पयामि ।

ॐ श्री ध्वनिमात्रकाशानन्दनाथ – केशरं समर्पयामि ।

ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि ।

ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतं समर्पयामि ।

ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारम समर्पयामि ।


दीपम

सिद्ध शक्तियों को दीप दिखाएँ


श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि ।

श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि ।

श्री करालाम्बिका सिद्ध दीपं समर्पयामि ।

श्री त्रिबाणाम्बा सिद्ध ज्ञान दीपं समर्पयामि ।

श्री भीमाम्बा सिद्ध ह्रदय दीपं समर्पयामि ।

श्री कराल्याम्बा सिद्ध सिद्ध दीपं समर्पयामि ।

श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि ।

श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि ।



नीराजन --

पात्र में जल, कुंकुम, अक्षत और पुष्प लेकर गुरु चरणों मे समर्पित करें -


श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री सूर्यमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री अग्निमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री ज्ञानमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री ब्रह्ममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।


पञ्च पंचिका


अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर , दोनों हाथों को भिक्षापात्र के समान जोड़कर, निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें -


श्री विद्या लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री एकाकार लक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री महालक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री त्रिशक्तिलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री सर्वसाम्राज्यलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।


श्री विद्या कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री परज्योति कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री परिनिष्कल शाम्भवी कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अजपा कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री मातृका कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।


श्री विद्या कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री त्वरिता कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री पारिजातेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री त्रिपुटा कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री पञ्च बाणेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।


श्री विद्या कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अमृत पीठेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री सुधांशु कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अमृतेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अन्नपूर्णा कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।


श्री विद्या रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री सिद्धलक्ष्मी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री मातंगेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री भुवनेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री वाराही रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।



श्री मन्मालिनी मंत्र


अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके । इसके द्वारा सभी अक्षरों अर्थात स्वर व्यंजनों का पूजन हो जाता है जिससे मंत्र बनते हैं :-


ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं ल्रृं एं ऐँ ओं औं अं अः ।

कं खं गं घं ङं ।

चं छं जं झं ञं ।

टं ठं डं ढं णं ।

तं थं दं धं नं ।

पं फं बं भं मं ।

यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं हंसः सोऽहं गुरुदेवाय नमः ।


गुरु मंत्र जाप


इसके बाद गुरु मंत्र का यथा शक्ति जाप करें ।

यदि आपके पास कोई गुरु मंत्र हो तो उसका जाप करें ना हो तो निम्नलिखित मंत्र का जाप करें

ॐ गुरुभ्यो नमः ।।


प्रार्थना --

लोकवीरं महापूज्यं सर्वरक्षाकरं विभुम् ।

शिष्य हृदयानन्दं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।


त्रिपूज्यं विश्व वन्द्यं च विष्णुशम्भो प्रियं सुतं ।

क्षिप्र प्रसाद निरतं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।


मत्त मातंग गमनं कारुण्यामृत पूजितं ।

सर्व विघ्न हरं देवं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।


अस्मत् कुलेश्वरं देवं सर्व सौभाग्यदायकं ।

अस्मादिष्ट प्रदातारं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।


यस्य धन्वन्तरिर्माता पिता रुद्रोऽभिषक् तमः ।

तं शास्तारमहं वंदे महावैद्यं दयानिधिं ।।



समर्पण --

सम्पूर्ण पूजन गुरु के चरणों मे समर्पित करें :-


देवनाथ गुरौ स्वामिन देशिक स्वात्म नायक: ।

त्राहि त्राहि कृपा सिंधों , पूजा पूर्णताम कुरु ....


अनया पूजया श्री गुरु प्रीयंताम तदसद श्री सद्गुरु चरणार्पणमस्तु ॥


इतना कहकर गुरु चरणों मे जल छोड़ें ।


शांति


तीन बार जल छिडके...


ॐ शान्तिः । शान्तिः ।। शान्तिः ।।।


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आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं


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15 जुलाई 2024

गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी : एक प्रचंड तंत्र साधक

  गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी : एक प्रचंड तंत्र साधक



साधना का क्षेत्र अत्यंत दुरुह तथा जटिल होता है. इसी लिये मार्गदर्शक के रूप में गुरु की अनिवार्यता स्वीकार की गई है.
गुरु दीक्षा प्राप्त शिष्य को गुरु का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है.
बाहरी आडंबर और वस्त्र की डिजाइन से गुरू की क्षमता का आभास करना गलत है.
एक सफ़ेद धोती कुर्ता पहना हुआ सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति भी साधनाओं के क्षेत्र का महामानव हो सकता है यह गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी से मिलकर मैने अनुभव किया.

भैरव साधना से शरभेश्वर साधना तक.......
कामकला काली से लेकर त्रिपुरसुंदरी तक .......
अघोर साधनाओं से लेकर तिब्बती साधना तक....
महाकाल से लेकर महासुदर्शन साधना तक सब कुछ अपने आप में समेटे हुए निखिल तत्व के जाज्वल्यमान पुंज स्वरूप...
गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी
महाविद्या त्रिपुर सुंदरी के सिद्धहस्त साधक हैं.वर्तमान में बहुत कम महाविद्या सिद्ध साधक इतनी सहजता से साधकों के मार्गदर्शन के लिये उपलब्ध हैं.

आप चाहें तो उनसे संपर्क करके मार्गदर्शन ले सकते हैं :-

साधना सिद्धि विज्ञान
जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116

वेबसाइट:-

www.namobaglamaa.org


यूट्यूब चेनल :-

https://www.youtube.com/@MahavidhyaSadhakPariwar




10 जुलाई 2024

गुरु पूर्णिमा : गुरु दीक्षा प्राप्ति का सिद्ध मुहूर्त



गुरु पूर्णिमा : गुरु का महत्व 

एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है,
शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए....

रास्ते में पडा ! लोगों के पांवों की ठोकरें खाने वाला पत्थर ! जब योग्य मूर्तिकार के हाथ लग जाता है, तो वह उसे तराशकर ,अपनी सर्जनात्मक क्षमता का उपयोग करते हुये, इस योग्य बना देता है, कि वह मंदिर में प्रतिष्ठित होकर करोडों की श्रद्धा का केद्र बन जाता है। करोडों सिर उसके सामने झुकते हैं।

रास्ते के पत्थर को इतना उच्च स्वरुप प्रदान करने वाले मूर्तिकार के समान ही, एक गुरु अपने शिष्य को सामान्य मानव से उठाकर महामानव के पद पर बिठा देता है।

चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त को सडक से उठाकर संपूर्ण भारतवर्ष का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया।

विश्व मुक्केबाजी का महानतम हैवीवेट चैंपियन माइक टायसन सुधार गृह से निकलकर अपराधी बन जाता अगर उसकी प्रतिभा को उसके गुरू ने ना पहचाना होता।

यह एक अकाट्य सत्य है कि चाहे वह कल का विश्वविजेता सिकंदर हो या आज का हमारा महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर, वे अपनी क्षमताओं को पूर्णता प्रदान करने में अपने गुरु के मार्गदर्शन व योगदान के अभाव में सफल नही हो सकते थे।
हमने प्राचीन काल से ही गुरु को सबसे ज्यादा सम्माननीय तथा आवश्यक माना। भारत की गुरुकुल परंपरा में बालकों को योग्य बनने के लिये आश्रम में रहकर विद्याद्ययन करना पडता था, जहां गुरु उनको सभी आवश्यक ग्रंथो का ज्ञान प्रदान करते हुए उन्हे समाज के योग्य बनाते थे।
विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों नालंदा तथा तक्षशिला में भी उसी ज्ञानगंगा का प्रवाह हम देखते हैं। संपूर्ण विश्व में शायद ही किसी अन्य देश में गुरु को उतना सम्मान प्राप्त हो जितना हमारे देश में दिया जाता रहा है। यहां तक कहा गया किः-

गुरु गोविंद दोऊ खडे काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय ॥

अर्थात, यदि गुरु के साथ स्वयं गोविंद अर्थात साक्षात भगवान भी सामने खडे हों, तो भी गुरु ही प्रथम सम्मान का अधिकारी होता है, क्योंकि उसीने तो यह क्षमता प्रदान की है कि मैं गोविंद को पहचानने के काबिल हो सका।
आध्यात्मिक जगत की ओर जाने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग गुरु और केवल गुरु से ही प्रारंभ होता है।

कुछ को गुरु आसानी से मिल जाते हैं, कुछ को काफी प्रयास के बाद मिलते हैं,और कुछ को नहीं मिलते हैं।

साधनात्मक जगत, जिसमें योग, तंत्र, मंत्र जैसी विद्याओं को रखा जाता है, में गुरु को अत्यंत ही अनिवार्य माना जाता है।

वे लोग जो इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं, उनको अनिवार्य रुप से योग्य गुरु के सानिध्य के लिये प्रयास करना ही चाहिये।

ये क्षेत्र उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं।

गुरु का तात्पर्य किसी व्यक्ति के देह या देहगत न्यूनताओं से नही बल्कि उसके अंतर्निहित ज्ञान से होता है, वह ज्ञान जो आपके लिये उपयुक्त हो,लाभप्रद हो। गुरु गीता में कुछ श्लोकों में इसका विवेचन मिलता हैः-

अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥


अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देकर उसके नेत्रों को प्रकाश का अनुभव कराने वाले गुरु को नमन ।

गुरु शब्द के अर्थ को बताया गया है कि :-

गुकारस्त्वंधकारश्च रुकारस्तेज उच्यते।
अज्ञान तारकं ब्रह्‌म गुरुरेव न संशयः॥


गुरु शब्द के पहले अक्षर 'गु' का अर्थ है, अंधकार जिसमें शिष्य डूबा हुआ है, और 'रु' का अर्थ है, तेज या प्रकाश जिसे गुरु शिष्य के हृदय में उत्पन्न कर इस अंधकार को हटाने में सहायक होता है, और ऐसे ज्ञान को प्रदान करने वाला गुरु साक्षात ब्रह्‌म के तुल्य होता है।

ज्ञान का दान ही गुरु की महत्ता है। ऐसे ही ज्ञान की पूर्णता का प्रतीक हैं भगवान शिव। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वे प्रत्येक विद्या के ज्ञाता होने के कारण जगद्गुरु भी हैं। गुरु और शिव को आध्यात्मिक जगत में समान माना गया है।


कहा गया है कि :-

यः शिवः सः गुरु प्रोक्तः। यः गुरु सः शिव स्मृतः॥
अर्थात गुरु और शिव दोनों ही अभेद हैं, और एक दूसरे के पर्याय हैं।जब गुरु ज्ञान की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं ही शिव तुल्य हो जाता है, तब वह भगवान आदि शंकराचार्य के समान उद्घोष करता है कि ÷

शिवो s हं, शंकरो s हं'।

ऐसे ही ज्ञान के भंडार माने जाने वाले गुरुओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने का पर्व है,

गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा

यह वो बिंदु है, जिसके वाद से सावन का महीना जो कि शिव का मास माना जाता है, प्रारंभ हो जाता है।
इसका प्रतीक रुप में अर्थ लें तो, जब गुरु अपने शिष्य को पूर्णता प्रदान कर देता है, तो वह आगे शिवत्व की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होने लगता है,और यह भाव उसमें जाग जाना ही मोक्ष या ब्रह्‌मत्व की स्थिति कही गयी है।

भारत वर्ष गुरुओं की भूमि है !
यहाँ सिद्ध गुरुओं की प्राप्ति संभव है ।
ऐसे ही एक सिद्ध गुरु युगल हैं गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी और गुरुमाता डा. साधना सिंह जी !


वे गृहस्थ मे हैं ! इसलिए हम गृहस्थों की समस्या और सीमाओं को समझकर साधनाएं बताते हैं !
वे भोपाल मे रहते हैं ! जो रेल,सड़क और वायुमार्ग से देश के लगभग सभी हिस्सों से जुड़ा है .... यानि आप आसानी से वहाँ पहुँच सकते हैं ....
सबसे बड़ी बात यह कि शिष्यों के लिए वे सहज उपलब्ध हैं !
शिष्य अपनी निजी और साधनात्मक समस्याओं के विषय मे उनसे मिलकर या फोन पर बात कर सकते हैं ....
यानि वे एक ऐसे गुरु हैं जो शिष्यों के लिए अविलेबल हैं .....
दुर्लभ नहीं हैं....
दूर दूर नहीं रहते हैं ....
हर शिष्य से मिलते हैं चाहे वह मंत्री या आई ए एस ऑफिसर हो या एक गरीब व्यक्ति..... 

और उसी सहज भाव से मिलते हैं !
ऐसे गुरु दुर्लभ हैं ....

विभिन्न साधनाओं से सम्बंधित दीक्षा प्राप्ति और मंत्र के सम्बन्ध में जानकारी के लिए नीचे लिखे नंबर पर संपर्क करें

साधना सिद्धि विज्ञान
जैस्मिन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे.के.रोड
भोपाल [म.प्र.] 462011
phone -[0755]-4283681


गुरु पूर्णिमा इस वर्ष 21 जुलाई को पड़ रही है । यह गुरु दीक्षा प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है । अगर आप दीक्षा के इच्छुक हैं तो इस अवसर पर भोपाल जाकर दीक्षा प्राप्त करें ।

यदि आप भोपाल जाने में असमर्थ हैं या किसी वजह से नहीं जा पा रहे हैं तो आप व्हाट्स ऐप पर फोटो भेजकर भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं और साधना के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं ।
इसमें आपको गुरुदेव की तरफ से प्राण प्रतिष्ठित गुरु चित्र , रुद्राक्ष कवच और रुद्राक्ष माला भेजी जाती है ।
दीक्षा की निर्धारित प्रक्रिया की जानकारी के लिए संपर्क करें ।

Suman Mandve Ji
93076 10360

6 जुलाई 2024

नवरात्रि में देवी का विस्तृत पूजन

 नवरात्रि में देवी का विस्तृत पूजन



नवरात्रि में सभी की इच्छा रहती है कि देवी का विस्तृत पूजन किया जाए । नीचे की पंक्तियों में एक सरल पूजन विधि प्रस्तुत है ।


इसमें मेरी आराध्य महामाया देवी महाकाली का पूजन किया गया है उनके पूजन में सभी देवियों का पूजन संपन्न हो जाता है .  लेकिन अगर आप देवी के किसी और स्वरूप का पूजन करना चाहते हैं तो भी आप इसी विधि से पूजन संपन्न कर सकते हैं । फर्क सिर्फ इतना होगा कि जहां पर (क्रीं महाकाल्यै नमः) लिखा है उस स्थान पर देवी के दूसरे स्वरूप का मंत्र आ जाएगा ।

उदाहरण के लिए अगर आप दुर्गा देवी की साधना कर रहे हैं तो वहां पर आप (दुँ दुर्गायै नमः ) बोलकर पूरा पूजन सम्पन्न कर सकते हैं ।
काली :-
ध्यान
देवी काली का ध्यान करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः ध्यानम समर्पयामि )

दुर्गा :-
ध्यान
देवी दुर्गा का ध्यान करें
( दुँ दुर्गायै नमः ध्यानम समर्पयामि )

इस तरह से आप किसी भी देवी का पूजन कर सकते हैं ....

इसके अलावा आप यदि किसी मंत्र का जाप कर रहे हो उस मंत्र को बोलकर भी पूरा पूजन संपन्न कर सकते हैं ।
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माता महाकाली का पूजन


महाकाली का पूजन प्रस्तुत है जो कि बेहद सरल है ।


ध्यान
देवी काली का ध्यान करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः ध्यानम समर्पयामि )

यदि पढ़ सकते हो तो नीचे लिखा हुआ ध्यान भी पढ़ सकते हैं ।

करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् ।
कालिकां दक्षिणां दिव्यां मुण्डमाला विभूषिताम् ॥
सद्यः छिन्नशिरः खड्गवामाधोर्ध्व कराम्बुजाम् ।
अभयं वरदञ्चैव दक्षिणोर्ध्वाध: पाणिकाम् ॥
महामेघ प्रभां श्यामां तथा चैव दिगम्बरीम् ।
कण्ठावसक्तमुण्डाली गलद्‌रुधिर चर्चिताम् ॥
कर्णावतंसतानीत शवयुग्म भयानकां ।
घोरदंष्ट्रां करालास्यां पीनोन्नत पयोधराम् ॥
शवानां कर संघातैः कृतकाञ्ची हसन्मुखीम् ।
सृक्कद्वयगलद् रक्तधारां विस्फुरिताननाम् ॥
घोररावां महारौद्रीं श्मशानालय वासिनीम् ।
बालर्क मण्डलाकार लोचन त्रितयान्विताम् ॥
दन्तुरां दक्षिण व्यापि मुक्तालम्बिकचोच्चयाम् ।
शवरूप महादेव ह्रदयोपरि संस्थिताम् ॥
शिवाभिर्घोर रावाभिश्चतुर्दिक्षु समन्विताम् ।
महाकालेन च समं विपरीत रतातुराम् ॥
सुक प्रसन्नावदनां स्मेरानन सरोरुहाम् ।
एवं सञ्चियन्तयेत् काली सर्वकाम समृद्धिदां ॥

पुष्प समर्पण :-
अब फूल चढ़ाएं
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुष्पम समर्पयामि )

आसन :-
आसन के लिए महाकाली के चरणों में निम्न मंत्र को बोलते हुए पुष्प / अक्षत समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः आसनं समर्पयामि )

पाद्य :-
जल से चरण धोएं
( क्रीं महाकाल्यै नमः पाद्यं समर्पयामि )

उद्वर्तन :-
चरणों में सुगन्धित तेल समर्पित करे ।
( क्रीं महाकाल्यै नमः उद्वर्तन तैलं समर्पयामि )

आचमन :-
पीने के लिए जल प्रदान करें ।
( क्रीं महाकाल्यै नमः आचमनीयम् समर्पयामि )

स्नान :-
सामान्य जल या सुगन्धित पदार्थों से युक्त जल से स्नान करवाएं (जल में इत्र , कर्पूर , तिल , कुश एवं अन्य वस्तुएं अपनी सामर्थ्य या सुविधानुसार मिश्रित कर लें )
( क्रीं महाकाल्यै नमः स्नानं निवेदयामि )

मधुपर्क :-
गाय का शुद्ध, दूध , दही , घी , चीनी , शहद मिलाकर चढ़ाएं या शहद चढ़ाएं
( क्रीं महाकाल्यै नमः मधुपर्कं समर्पयामि )

चन्दन :-
सफ़ेद चन्दन समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः चन्दनं समर्पयामि )

रक्त चन्दन :-
लाल चन्दन समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः रक्त चन्दनं समर्पयामि )

सिन्दूर :-
सिन्दूर समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः सिन्दूरं समर्पयामि )

कुंकुम :-
कुंकुम समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः कुंकुमं समर्पयामि )

अक्षत :-
चावल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः अक्षतं समर्पयामि )

पुष्प :-
पुष्प समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुष्पं समर्पयामि )

विल्वपत्र :-
बिल्वपत्र समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः बिल्वपत्रं समर्पयामि )

पुष्प माला :-
फूलों की माला समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुष्पमालां समर्पयामि )

वस्त्र :-
वस्त्र समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि )

धूप :-
सुगन्धित धुप समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः धूपं समर्पयामि )

दीप :-
दीपक समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः दीपं दर्शयामि )

सुगंधि द्रव्य :-
इत्र समर्पित करे
( क्रीं महाकाल्यै नमः सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि )

कर्पूर दीप :-
कर्पूर का दीपक जलाकर समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः कर्पूर दीपम दर्शयामि )

नैवेद्य :-
प्रसाद समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि )

ऋतु फल :-
फल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः ऋतुफलं समर्पयामि )

जल :-
जल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः जलम समर्पयामि )

करोद्वर्तन जल :-
हाथ धोने के लिए जल प्रदान करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः करोद्वर्तन जलम समर्पयामि )

आचमन :-
जल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुनराचमनीयम् समर्पयामि )

ताम्बूल :-
पान समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि )

काजल :-
काजल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः कज्जलं समर्पयामि )

महावर :-
महावर समर्पित करे
( क्रीं महाकाल्यै नमः महावरम समर्पयामि )

चामर :-
चामर / पंखा झलना होता है
( क्रीं महाकाल्यै नमः चामरं समर्पयामि )

घंटा वादनम :-
घंटी बजाएं
( क्रीं महाकाल्यै नमः घंटा वाद्यं समर्पयामि )

दक्षिणा :-
दक्षिणा/ धन समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः दक्षिणाम समर्पयामि )

पुष्पांजलि :-
दोनों हाथों मे फूल या फूल की पंखुड़ियाँ भरकर समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि )

नीराजन :-
कपूर से आरती
( क्रीं महाकाल्यै नमः नीराजनं समर्पयामि )

क्षमा प्रार्थना :-
( क्रीं महाकाल्यै नमः क्षमा प्रार्थनाम समर्पयामि )


दोनों हाथों से कानों को पकड़कर पूजन मे हुईं किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए कृपा की याचना करें ।

अगर पढ़ सकते हैं तो इसे भी पढ़ सकते हैं

ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित स्खलितम् मम
क्षम्यतां तज्जगन्मातः कालिके देवी नमोस्तुते

ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदरचितम्
पुर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वप्रसादान्महेश्वरी
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोअल्पधिः
न जाने अहं स्वरुप ते न शरीरं न वा गुणान्
एकामेव ही जानामि भक्तिं त्वचर्णाबजयोः ।।

आरती :-
अंत मे आरती करें

दस महाविद्याये तथा उनकी साधना से होने वाले लाभ

 दस महाविद्याये तथा उनकी साधना से होने वाले लाभ 


मेरे सदगुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ने दसों महाविद्याओं के सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन किया है . उनके प्रवचन के ऑडियो/वीडियो आप इंटरनेट पर सर्च करके या यूट्यूब पर सुन सकते हैं . तथा विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं .  


जितना मैंने जाना है उसके आधार पर मुझे ऐसा लगता है कि सभी महाविद्याओं से आध्यात्मिक शक्ति की वृद्धि तथा सर्व मनोकामना की पूर्ती होती है . इसके अलावा जो विशेष प्रयोजन सिद्ध होते हैं उनका उल्लेख इस प्रकार से किया गया है .  

महाकाली - मानसिक प्रबलता /सर्वविध रक्षा / कुण्डलिनी जागरण /पौरुष 

तारा - आर्थिक उन्नति / कवित्व / वाक्शक्ति 

त्रिपुर सुंदरी - आर्थिक/यश / आकर्षण 

भुवनेश्वरी - आर्थिक/स्वास्थ्य/प्रेम 

छिन्नमस्ता - तन्त्रबाधा/शत्रुबाधा / सर्वविध रक्षा

त्रिपुर भैरवी - तंत्र बाधा / शत्रुबाधा / सर्वविध रक्षा

धूमावती - शत्रु बाधा / सर्वविध रक्षा 

बगलामुखी - शत्रु स्तम्भन / वाक् शक्ति / सर्वविध रक्षा

मातंगी - सौंदर्य / प्रेम /आकर्षण/काव्य/संगीत  

कमला - आर्थिक उन्नति 

सभी महाविद्याओं के शाबर मंत्र होते हैं , जिनका प्रयोग कोई भी कर सकता है . यदि आपके गुरु नहीं हैं तो भगवान शिव/महाकाली को गुरु मानकर आप इनका प्रयोग इस नवरात्रि में करें और लाभ उठायें . शाबर मंत्र सामान्य भाषा में होते हैं . उनको जैसा लिखा है वैसा ही पढ़ना चाहिए . उसमे व्याकरण सुधार करने के कोशिश न करें . ये मंत्र सिद्ध योगियों द्वारा उद्भूत हैं इसलिए जैसा उन्होंने रच दिया वैसा ही पढ़ने से ज्यादा लाभ होगा . 

शाबर मन्त्रों के जाप करते समय दीपक और अगरबत्ती या धुप जलाये रखना चाहिए . गुग्गुल की धुप या अगरबत्ती का प्रयोग बेहतर होगा . न हो तो कोई भी अगरबत्ती जला लें . 


महाविद्याओं की साधना उच्चकोटि की साधना है . आप अपनी रूचि के अनुसार किसी भी महाविद्या की साधना कर सकते हैं . महाविद्या साधना आपको जीवन में सब कुछ प्रदान करने में सक्षम है . यदि आप सात्विक पद्धति से गृहस्थ जीवन में रहते हुए ही , महाविद्या साधना सिद्धि करना चाहते हैं तो आप महाविद्या से सम्बंधित दीक्षा तथा मंत्र प्राप्त करने के लिए मेरे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी से या गुरुमाता डा साधना सिंह जी से संपर्क कर सकते हैं .


विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए गए वेबसाइट तथा यूट्यूब चैनल का अवलोकन कर सकते हैं . 

contact for details
वेबसाइट
namobaglamaa.org

यूट्यूब चैनल
https://youtube.com/c/MahavidhyaSadhakPariwar

श्री कालिका अष्टकम Shree Kali Ashtakam

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र उच्चारण siddhkunjika stotra pronunciation

भैरवं क्षेत्रपालम

नवार्ण महामंत्र, navarn mahamntr

नवरात्रि : अखंड ज्योति तथा दुर्गा पूजन की सरल विधि

भवान्याष्टकम

तंत्र या नकारात्मक शक्ति प्रयोग से अपनी रक्षा स्वयं करें

 तंत्र या नकारात्मक शक्ति प्रयोग से अपनी रक्षा स्वयं करें 

यह सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी के द्वारा दिया गया एक अद्भुत मंत्र है .....


ॐ रक्षो रक्ष महावीर !

काला गोरा भेरूँ! बल वहन करे !

वज्र सी देह रक्षा करे ! एडी सू चोटी चोटी सू एडी !

तणो वज्र निरधार झरे ! ठम ठम ठम !!!


सद्गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमली जी के इस स्वरूप को प्रणाम करें और रक्षा की प्रार्थना करें उसके बाद इसे आप नवरात्रि मे रोज 108 बार जपकर सिद्ध कर लें ।.

बिस्तर से उठते समय यदि आप इसका नित्य 1 या 3 बार जाप करते रहें तो आपके ऊपर किसी प्रकार का तंत्र प्रयोग आदि होने पर उससे रक्षा होगी ।.

सिद्धकुंजिका स्तोत्रम : भावार्थ सहित

 सिद्धकुंजिका स्तोत्रम : भावार्थ सहित 



शिव उवाच -----
श्रूणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम ।
येन मंत्रप्रभावेण चण्डीजाप: शुभो भवेत ॥ १॥

अर्थ - शिव जी बोले-देवी! सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र बताता हूँ, जिस मन्त्र(स्तोत्र) के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) शुभ (सफल) होता है । 

न कवचं न अर्गला स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वा अर्चनं ॥ २॥

अर्थ - (इसका पाठ करने से)कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है । 

कुंजिका पाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत ।
अति गुह्यतरं देवी देवानामपि दुर्लभं ॥ ३॥

अर्थ - केवल कुंजिका स्तोत्र के पाठ कर लेने से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। (यह कुंजिका) अत्यंत गोपनीय और देवताओं के लिए भी दुर्लभ है अर्थात इतना महत्वपूर्ण है । 

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनं उच्चाटनादिकम ।
पाठ मात्रेण संसिद्धयेत कुंजिकास्तोत्रं उत्तमम ॥ ४ ॥
अर्थ - हे पार्वती! जिस प्रकार स्त्री अपने गुप्त भाग (स्वयोनि) को सबसे गुप्त रखती है अर्थात छुपाकर या ढँककर रखती है उसी भांति इस कुंजिका स्तोत्र को भी प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह कुंजिकास्तोत्र इतना उत्तम (प्रभावशाली ) है कि केवल इसके पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि (अभिचारिक षट कर्मों ) को सिद्ध करता है ( अभीष्ट फल प्रदान करता है ) । 

अथ मंत्र : ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा ॥ इति मंत्र: ॥


नमस्ते रुद्ररुपिण्ये नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥1॥

अर्थ - हे रुद्ररूपिणी! तुम्हे नमन है । हे मधु नामक दैत्य का मर्दन करने (मारने) वाली! तुम्हे नमस्कार है। कैटभ और महिषासुर नामक दैत्यों को मारने वाली माई ! मैं आपके श्री चरणों मे प्रणाम करता हूँ ।. 


नमस्ते शूम्भहंत्र्यै च निशुंभासुरघातिनि ॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥2॥

अर्थ - दैत्य शुम्भ का हनन करने (मारने) वाली और दैत्य निशुम्भ का घात करने (मारने) वाली! माता मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ आप मेरे जप (पाठ द्वारा इस कुंजिका स्तोत्र)को जाग्रत और (मेरे लिए)सिद्ध करो। 

ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरुपिण्यै बीजरुपे नमोस्तुते ॥3॥

अर्थ - ऐंकार ( ऐं बीज मंत्र जो कि सृष्टि कर्ता ब्रह्मा की शक्ति सरस्वती का बीज मंत्र है ) के रूप में सृष्टिरूपिणी( उत्पत्ति करने वाली ), ‘ह्रीं’ ( भुवनेश्वरी महालक्ष्मी बीज जो कि पालन कर्ता  श्री हरि विष्णु की शक्ति है )के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली क्लीं (काम / काली बीज )के रूप में  क्रियाशील होने वाली बीजरूपिणी (सबका मूल  या बीज  स्वरूप वाली ) हे देवी! मैं तुम्हे बारम्बार  नमस्कार करता हूँ । 


चामुंडा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनि ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररुपिणि ॥4॥

अर्थ - (नवार्ण मंत्र मे प्रयुक्त "चामुंडायै" शब्द मे )"चामुंडा" के रूप में तुम मुण्ड(अहंकार और दुष्टता का) विनाश करने वाली हो, और ‘यैकार’ के रूप में वर देने वाली (भक्त की रक्षा और उसकी मनोकामना की पूर्ति प्रदान करने वाली )हो । ’विच्चे’ रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो।(इस प्रकार आप स्वयं नवार्ण मंत्र "ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ") मन्त्र का स्वरुप हो । 

धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥5॥

धां धीं धूं’ के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्नी हो। ‘वां वीं वूं’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। ‘क्रां क्रीं क्रूं’ के रूप में कालिकादेवी, ‘शां शीं शूं’ के रूप में मेरा शुभ अर्थात कल्याण करो, मेरा अभीष्ट सिद्ध करो ।.

हुं हुं हुंकाररुपिण्यै जं जं जं जंभनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नम: ॥6॥

बीजमंत्रों मे (वायु बीज)'हुं हुं हुंकार’ के स्वरूप वाली , ‘जं जं जं’ (जं बीज का नाद करने वाली)जम्भनादिनी, ‘भ्रां भ्रीं भ्रूं’ के रूप में (भैरव बीज स्वरूपा भैरवी शक्ति ), संसार मे भद्रता(सज्जनता) की स्थापना करने वाली हे भवानी! मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ ।. 

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥7॥

।।7।।’अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ’ इन सब बीज मंत्रों को जागृत करो, मेरे सभी पाशों को तोड़ो और मेरी चेतना को दीप्त ( प्रकाशित या उज्ज्वल प्रकाशमान ) करो, और (न्युनताओं को भस्मीभूत ) स्वाहा करो । 

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धीं कुरुष्व मे ॥8॥

’पां पीं पूं’ के रूप में तुम पार्वती अर्थात भगवान शिव की पूर्णा शक्ति हो। ‘खां खीं खूं’ के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) या परा शक्ति हो।।8।।’सां सीं सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के इस विशिष्ट मन्त्र की मुझे सिद्धि प्रदान करो। 

फलश्रुति:-

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ॥ अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
यह सिद्धकुंजिका स्तोत्र (नवार्ण) मन्त्र को जगाने(चैतन्य करने /सिद्धि प्रदायक बनाने)  के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती ! इस मन्त्र को गुप्त रखकर इसकी रक्षा करनी चाहिए  ।.

यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत ॥ न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥

हे देवी ! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में (निर्जन स्थान पर जहां कोई देखने सुनने वाला न हो ) रोना निरर्थक होता है।


इति श्री रुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम ॥



वर्तमान समय मे मेरे गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी को सर्वश्रेष्ठ तंत्र मंत्र मर्मज्ञ के रूप मे निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाता है । आप उनके द्वारा सम्पन्न कराये गए विभिन्न मंत्र प्रयोगों को यूट्यूब पर सर्च करके देख और सुन सकते हैं । उनके प्रत्येक प्रयोग मे आप देख सकते हैं कि वे रक्षा के लिए कुंजिका स्तोत्र का ही पाठ प्रारम्भ मे करवाते थे । इसी से आप इसका महत्व और शक्ति को समझ सकते हैं ।.

नवरात्रि मे इसका 108 पाठ या जितना आप कर सकें दीपक जलाकर सम्पन्न करें और उसके बाद नित्य एक बार इसका पाठ करें तो आपके ऊपर छोटे मोटे तंत्र प्रयोग, टोने टोटके का असर ही नहीं होगा और बड़े तंत्र प्रयोग जैसे मारण अगर किए गए तो भी वे घातक नहीं हो पाएंगे । भगवती का यह सिद्ध स्तोत्र आपकी रक्षा कर लेगा ।