17 सितंबर 2019

पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा

श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।



॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥

पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।
108 बार जाप करें |
सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |
ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।
अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।
 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।.

पितृ पक्ष

पितृ पक्ष में सभी लोग विधि विधान से पूजन नहीं कर पते हैं, लेकिन पूजन करना चाहते हैं .उनके लिए एक सरल विधि:-

|| ॐ सर्व पित्रेभ्यो नमः ||

  • आपके घर में जो भोजन बना हो उसे एक थाली में सजा ले.
  • उसको पूजा स्थान में अपने सामने रखकर इस मंत्र का १०८  बार जाप करें.
  • हाथ में पानी लेकर कहें " मेरे सभी ज्ञात अज्ञात पितरों की शांति हो " इसके बाद जल जमीन पर छोड़ दे.
  • अब उस थाली के भोजन को किसी गाय को या किसी गरीब भूखे को खिला दें. 

2 सितंबर 2019

गणपति मंत्र साधना -1

॥ ऊं गं गणपतये नमः ॥

--
दिशा = उत्तर ।
वस्त्र = सफ़ेद ।
आसन = सफ़ेद ।
-----
जप सन्ख्या = २१,२१०,२१००,२१०००.

पन्चोपचार गणपति पूजन


एक नन्हा सा गणपति पूजन प्रस्तुत है ।
इसे पन्चोपचार गणपतिपूजन कहते हैं





ऊं गं गणपतये नमः गंधम समर्पयामि --- इत्र आदि चढायें ।

ऊं गं गणपतये नमः पुष्पम समर्पयामि ---  फ़ूल 

ऊं गं गणपतये नमः धूपम समर्पयामि -- अगरबत्ती

ऊं गं गणपतये नमः दीपम समर्पयामि -- दीपक जलायें

ऊं गं गणपतये नमः नैवेद्यम समर्पयामि -- प्रसाद चढायें

इसके बाद आरती कर लें

1 सितंबर 2019

गणपति हवन


गणपति विसर्जन से पहले सबकी इच्छा होती है कि गणपति हवन हो जाता तो अच्छा होता | यदि किसी कारणवश आप किसी साधक /पंडित से हवन ना करवा सकें तो आपके लिए एक सरल हवन विधान प्रस्तुत है जो आप आसानी से स्वयम कर सकते हैं ।

ऊं अग्नये नमः .........७ बार इस मन्त्र का जाप करें तथा आग जला लें ।

ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ..... २१ बार इस मन्त्र का जाप करें ।
----
अग्नि जल जाए तब  घी/ दशांग से आहुति डालें |

ऊं अग्नये स्वाहा ...... ७ आहुति (अग्नि मे डालें)

ऊं गं  स्वाहा ..... १ बार

ऊं भैरवाय स्वाहा ..... ११ बार

ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः स्वाहा .....२१ बार

ॐ प्रचंड चंडिकायै स्वाहा -- 9 बार ( अपने मस्तक को स्पर्श करते हुए आहुति डालें )

अब अपनी मनोकामना भगवान् गणपति के समक्ष निवेदन (मन में या बोलकर ) करें

ऊं गं गणपतये स्वाहा ..... १०८ बार ( ह्रदय को स्पर्श करते हुए आहुति डालें )

अन्त में कहें कि गणपति भगवान की कृपा मुझे प्राप्त हो....

दोनों कान पकड़कर सभी गलतियों के लिये क्षमा मांगे.....

तीन बार पानी छिडककर शांति शांति शांति ऊं कहें.....

संभव हो तो किसी गरीब बच्चे को भोजन/मिठाई/दान अवश्य दें |

बृहत गणेश पूजन



(बृहत गणेश पूजन )
-----------------------------------------
जो लोग बडा पुजन कर सकते है वे इस पुजन को जरुर करे ..

पहले गुरु स्मरण ,गणेश स्मरण करे ..
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः
अब आप 4 बार आचमन करे ( दाए हाथ में पानी लेकर पिए )
गं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
गं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
गं शिव तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
गं सर्व तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
अब आप घंटा नाद करे और उसे पुष्प अक्षत अर्पण करे
घंटा देवताभ्यो नमः
अब आप जिस आसन पर बैठे है उस पर पुष्प अक्षत अर्पण करे
आसन देवताभ्यो नमः
अब आप दीपपूजन करे उन्हें प्रणाम करे और पुष्प अक्षत अर्पण करे
दीप देवताभ्यो नमः
अब आप कलश का पूजन करे ..उसमेगंध ,अक्षत ,पुष्प ,तुलसी,इत्र ,कपूर डाले ..उसे तिलक करे .
कलश देवताभ्यो नमः
अब आप अपने आप को तिलक करे
उसके बाद हाथ मे जल अक्षत और पुष्प लेकर संकल्प करे कि आज के दिन मै अपनी समस्या निवारण हेतु ( जो समस्य हो उसे स्मरण करे ) या अपनी मनोकामना पूर्ती हेतु ( अपनी मनोकामना का स्मरण करे ) श्री गणपती का पूजन कर रहा हूं
फिर संक्षिप्त गुरु पुजन करे
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
उसके बाद गणपती का ध्यान करे
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा
गजाननं भूतगणाधिसेवितं
कपित्थ जंबूफलसारभक्षितं
उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजं

श्री महागणपति आवाहयामि
मम पूजन स्थाने रिद्धि सिद्धि सहित शुभ लाभ सहित स्थापयामि नमः
त्वां चरणे गन्धाक्षत पुष्पं समर्पयामि
अगर आपको आवाहनादि मुद्राये आती है तो दिखाये
फिर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करे
यहा पर षोडशोपचार पूजन दे रहा हु
ॐ श्री गणेशाय नम: पाद्यं समर्पयामि ( दो आचमनी जल अर्पण करे )
ॐ श्री गणेशाय नम: अर्घ्य समर्पयामि ( एक आचमनी जल मे दूर्वा पुष्प अक्षत मिलाकर अर्पण करे )
ॐ श्री गणेशाय नम: आचमनीयं समर्पयामि ( एक आचमनी जल अर्पण करे)
ॐ श्री गणेशाय नम: स्नानं समर्पयामि
( स्नान कराते समय आप जल से या दुध से या पंचामृत से गणपति अथर्वशीर्ष या अन्य स्तोत्रोसे अभिषेक कर सकते है )
ॐ श्री गणेशाय नम: वस्त्र उपवस्त्र समर्पयामि ( अक्षत पुष्प या मौली धागा अर्पण करे )
ॐ श्री गणेशाय नम: यज्ञोपवीतम समर्पयामि ( यज्ञोपवीत या अक्षत अर्पण करे )
फिर एक आचमनी जल अर्पण करे
ॐ श्री गणेशाय नम: हरिद्रा कुंकुम चंदन अष्टगंधं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: अक्षतां समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: पुष्पं पुष्पमालां समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: दूर्वाकुरान समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: धूपं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: दीपं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: नैवेद्यं समर्पयामि
(फिर एक आचमनी जल अर्पण करे )
ॐ श्री गणेशाय नम: ऋतुफलं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: तांबुलं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: द्रव्यदक्षिणां
समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: कर्पूरार्तिकं समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय नम: नमस्कारं समर्पयामि
गणेश अंगपूजन
--------------------
अब गणेश जी के एकेक अंग का स्मरण करते हुये पुष्प अक्षत अर्पण करे )
गं पार्वतीनंदनाय नम: पादौ पूजयामि
गं गणेशाय नम: गुल्फौ पूजयामि
गं जगद्धात्रे नम: जंघे पूजयामि
गं जगद्वल्लभाय नम: जानुनि पूजयामि
गं उमापुत्राय नम: उरु पूजयामि
गं विकटाय नम: कटिं पूजयामि
गं गुहाग्रजाय नम: गुह्यं पूजयामि
गं महत्तमाय नम: मेढ्रं पूजयामि
गं नाथाय नम: नाभिं पूजयामि
गं उत्तमाय नम: उदरं पूजयामि
गं विनायकाय नम: वक्षस्थलं पूजयामि
गं पाशच्छिदे नम: पार्श्वौ पूजयामि
गं हेरंबाय नम: हृदयम पूजयामि
गं कपिलाय नम: कण्ठं पूजयामि
गं स्कंदाग्रजाय नम: स्कंधौ पूजयामि
गं हरसुताय नम: हस्तान पूजयामि
गं ब्रह्मचारिणे नम: बाहून पूजयामि
गं सुमुखाय नम: मुखं पूजयामि
गं एकदंताय नम: दंतौ पूजयामि
गं विघ्नहंत्रे नम: नेत्रे पूजयामि
गं शूर्पकर्णाय नम: कर्णौ पूजयामि
गं भालचंद्राय नम: भालं पूजयामि
गं नागाभरणाय नम: नासिकां पूजयामि
गं चिरंतनाय नम: चिबुकं पूजयामि
गं स्थूलौष्ठाय नम: औष्ठौ पूजयामि
गं गलन्मदाय नम: कण्ठं पूजयामि
गं कपिलाय नम: कचान पूजयामि
गं शिवप्रियाय नम: शिर: पूजयामि
गं सर्वमंगलासुताय नम: सर्वांगे पूजयामि
एकविंशति पत्र पूजा
-------------------------
अगर आपके पास गणेश जी को अर्पण करने की 21 पत्री उपलब्ध है तो उसे अर्पण करे .. नही तो पुष्प अक्षत अर्पण करे .
गं उमापुत्राय नम: माचीपत्रं समर्पयामि
गं हेरंबाय नम: बृहतीपत्रं समर्पयामि
गं लंबोदराय नम: बिल्वपत्रं समर्पयामि
गं द्विरदाननाय नम: दूर्वापत्रं समर्पयामि
गं धूम्रकेतवे नम: दुर्धूरपत्रं समर्पयामि
गं बृहते नम: बदरीपत्रं समर्पयामि
गं अपवर्गदाय नम: अपामार्गपत्रं समर्पयामि
गं द्वैमातुराय नम: तुलसीपत्रं समर्पयामि
गं चिरंतनाय नम: चूतपत्रं समर्पयामि
गं कपिलाय नम: करवीरपत्रं समर्पयामि
गं विष्णुस्तुताय नम: विष्णुक्रांतपत्रं समर्पयामि
गं अमलाय नम: आमलकीपत्रं समर्पयामि
गं महते नम: मरुवकपत्रं समर्पयामि
गं सिंधुराय नम: सिंधूरपत्रं समर्पयामि
गं गजाननाय नम: जातीपत्रं समर्पयामि
गं गण्डगलन्मदाय नम: गण्डलीपत्रं समर्पयामि
गं शंकरीप्रियाय नम: शमीपत्रं समर्पयामि
गं भृंगराजत्कटाय नम: भृंगराजपत्रं समर्पयामि
गं अर्जुनदंताय नम: अर्जुनपत्रं समर्पयामि
गं अर्कप्रभाय नम: अर्कपत्रं समर्पयामि
गं एकदंताय नम: दाडिमीपत्रं समर्पयामि
एकविंशति दूर्वा पूजन
---------------------------
अब आप 21 दूर्वा अर्पण करे
१) गं गणाधिपाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
२) गं पाशांकुशधराय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
3) गं आखुवाहनाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
४) गं विनायकाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
५) गं ईशपुत्राय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
६) गं सर्वसिद्धिप्रदाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
७) गं एकदंताय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
८) गं इभवक्त्राय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
९) गं मूषकवाहनाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१०) गं कुमारगुरवे नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
११) गं कपिलवर्णाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१२) गं ब्रह्मचारिणे नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१३) गं मोदकहस्ताय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१४) गं सुरश्रेष्ठाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१५) गं गजनासिकाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१६) गं कपित्थफलप्रियाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१७) गं गजमुखाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१८) गं सुप्रसन्नाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
१९) गं सुराग्रजाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
२०) गं उमापुत्राय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
२१) गं स्कंदप्रियाय नम: दूर्वायुग्मं समर्पयामि
अष्टविनायक पूजन
------------------------
अब आप अष्टविनायक स्वरुप के पूजन हेतु दूर्वा या पुष्प अक्षत अर्पण करे ..
1) मयुरेश्वर
गं ऐं ह्रीं श्रीं मयूर आरुढाय सिंधुदैत्यविनाशाय श्री मयूरेश्वराय नम:
2) चिंतामणी
गं ऐं ह्रीं श्रीं कपिलऋषी सुपुज्याय चिंतामणि प्रदानाय श्री चिंतामणि गणेशाय नम:
3) महागणपति
गं ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुरासुरवध कारणाय शिवसुपूजिताय श्रीमहागणपतये नम:
4) सिद्धिविनायक
गं ऐं ह्रीं श्रीं विष्णुपूजिताय मधुकैटभवध कारणाय दक्षिणशुंडधारणाय समस्त सिद्धिप्रदानाय श्रीसिद्धिविनायकाय नम:
5) विघ्नेश्वर
गं ऐं ह्रीं श्रीं इंद्रसुपूजिताय विघ्नासुरप्राण हरणाय श्रीविघ्नेश्वराय नम:
6) गिरिजात्मक
गं ऐं ह्रीं श्रीं गिरिजासुपुजिताय शक्तिपुत्राय श्रीगिरिजात्मकाय नम:
7) बालेश्वर
गं ऐं ह्रीं श्रीं बाल्यस्वरुपाय भक्तप्रियाय श्रीबालेश्वराय नम:
8) वरदविनायक
गं ऐं ह्रीं श्रीं वरदहस्ताय सर्वबाधा प्रशमनाय श्रीवरदविनायकाय नम:
गणेश अष्ट अवतार पूजन
----------------------------------
अब आप गणेश जी के अवतारो के पूजन हेतु दूर्वा या पुष्प अक्षत अर्पण करे
१) गं ॐ नमो भगवते मत्सरासुरहंताय सिंहवाहनाय वक्रतुंडाय नम:
२) गं ॐ नमो भगवते मदासुरहंताय मूषकवाहनाय एकदंताय नम:
३) गं ॐ नमो भगवते मोहासुरहंताय ज्ञानदाताय मूषकवाहनाय महोदराय नम:
४) गं ॐ नमो भगवते लोभासुरहंताय सांख्यसिद्धिप्रदानाय मूषकवाहनाय गजाननाय नम:
५) गं ॐ नमो भगवते क्रोधासुरहंताय मूषकवाहनाय लंबोदराय नम:
६) गं ॐ नमो भगवते कामासुरहंताय मयूरवाहनाय विकटनाय नम:
७) गं ॐ नमो भगवते मयासुर प्रहर्ताय शेष वाहनाय विघ्नराजाय नम:
८) गं ॐ नमो भगवते अहंतासुर हंताय मूषकवाहनाय धूम्रवर्णाय नम:
(यहाँ पर भगवान गणेश जी के 16 नामावली दी है उससे पूजन करे ..दूर्वा या पुष्प अक्षत या जल अर्पण करे )
1. ॐ गं सुमुखाय नम: ।
2. ॐ गं एकदंताय नमः।
3. ॐ गं कपिलाय नमः।
4. ॐ गं गजकर्णकाय नमः।
5. ॐ गं लंबोदराय नमः।
6. ॐ गं विकटाय नम: !
7. ॐ गं विघ्नराजाय नमः।
8. ॐ गं गणाधिपाय नम: !
9. ॐ गं धूम्रकेतवे नम : ।
10 . ॐ गं गणाध्यक्षाय नमः।
11. ॐ गं भालचंद्राय नमः।
12. ॐ गं गजाननाय नम: !
13. ॐ गं वक्रतुंडाय नमः।
14. ॐ गं शूर्पकर्णाय नमः।
15. ॐ गं हेरंबाय नमः।
16. ॐ गं स्कंदपूर्वजाय नमः।
इसके बाद अगर आपके पास समय हो तो दुसरे अलग पोस्ट मे जो आवरण पूजन एवं गणेशजी के द्वात्रिशद (32 ) स्वरुप और गणेश 108 नामावली पूजन दिया है उसे करे
अब नीचे दिये हुये गणपती माला मंत्र का पाठ कर पुष्प अर्पण करे
श्री गणपती माला मंत्र
----------------------------
ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं ग्लौं ॐ ह्रीं क्रौं गं ॐ नमो भगवते महागणपतये स्मरणमात्रसंतुष्टाय सर्वविद्याप्रकाशकाय सर्वकामप्रदाय भवबंधविमोचनाय ह्रीं सर्वभूतबंधनाय क्रों साध्याकर्षणाय क्लीं जगतत्रयवशीकरणाय सौ: सर्वमनक्षोभणाय श्रीं महासंपत्प्रदाय ग्लौं भूमंडलाधिपत्यप्रदाय महाज्ञानप्रदाय चिदानंदात्मने गौरीनंदनाय महायोगिने शिवप्रियाय सर्वानंदवर्धनाय सर्वविद्याप्रकाशनप्रदाय द्रां चिरंजिविने ब्लूं सम्मोहनाय ॐ मोक्षप्रदाय ! फट वशी कुरु कुरु! वौषडाकर्षणाय हुं विद्वेषणाय विद्वेषय विद्वेषय ! फट उच्चाटय उच्चाटय ! ठ: ठ: स्तंभय स्तंभय ! खें खें मारय मारय ! शोषय शोषय ! परमंत्रयंत्रतंत्राणि छेदय छेदय ! दुष्टग्रहान निवारय निवारय ! दु:खं हर हर ! व्याधिं नाशय नाशय ! नम: संपन्नय संपन्नय स्वाहा ! सर्वपल्लवस्वरुपाय महाविद्याय गं गणपतये स्वाहा !
यन्मंत्रे क्षितलांछिताभमनघं मृत्युश्च वज्राशिषो भूतप्रेतपिशाचका: प्रतिहता निर्घातपातादिव ! उत्पन्नं च समस्तदु:खदुरितं उच्चाटनोत्पादकं वंदेsभीष्टगणाधिपं भयहरं विघ्नौघनाशं परम ! ॐ गं गणपतये नम:
ॐ नमो महागणपतये , महावीराय , दशभुजाय , मदनकाल विनाशन , मृत्युं
हन हन , यम यम , मद मद , कालं संहर संहर , सर्व ग्रहान चूर्णय चूर्णय , नागान मूढय मूढय , रुद्ररूप, त्रिभुवनेश्वर , सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा !
ॐ नमो गणपतये , श्वेतार्कगणपतये , श्वेतार्कमूलनिवासाय , वासुदेवप्रियाय , दक्षप्रजापतिरक्षकाय , सूर्यवरदाय , कुमारगुरवे , ब्रह्मादिसुरावंदिताय , सर्पभूषणाय , शशांकशेखराय , सर्पमालालंकृतदेहाय , धर्मध्वजाय , धर्मवाहनाय , त्राहि त्राहि , देहि देहि , अवतर अवतर , गं गणपतये , वक्रतुंडगणपतये , वरवरद , सर्वपुरुषवशंकर , सर्वदुष्टमृगवशंकर , सर्वस्ववशंकर , वशी कुरु वशी कुरु , सर्वदोषान बंधय बंधय , सर्वव्याधीन निकृंतय निकृंतय , सर्वविषाणि संहर संहर , सर्वदारिद्र्यं मोचय मोचय , सर्वविघ्नान छिंदि छिंदि , सर्ववज्राणि स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून उच्चाटय उच्चाटय , सर्वसिद्धिं कुरु कुरु , सर्वकार्याणि साधय साधय , गां गीं गूं गैं गौं गं गणपतये हुं फट स्वाहा !
ॐ नमो गणपते महावीर दशभुज मदनकालविनाशन मृत्युं हन हन , कालं संहर संहर , धम धम , मथ मथ , त्रैलोक्यं मोहय मोहय , ब्रह्मविष्णुरुद्रान मोहय मोहय , अचिंत्य बलपराक्रम , सर्वव्याधीन विनाशाय , सर्वग्रहान चूर्णय चूर्णय , नागान मोटय मोटय , त्रिभुवनेश्वर सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा !
अब गणेशजी को अर्घ्य प्रदान करे
एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात
अब एक आचमनी जल लेकर पूजा स्थान पर छोड़े
अनेन गणपती पूजनेन श्री भगवान महागणपती प्रीयन्तां न मम .
हाथ जोड़ कर भगवान गणेश जी से प्रार्थना करे
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय
लंबोदराय सकलाय जगद्धिताय
नागाननाय श्रूतियज्ञविभूषिताय
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते !!
भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय
सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय
विद्याधराय विकटाय च वामनाय
भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते !!
नमस्ते ब्रह्मरुपाय विष्णुरुपाय ते नम:
नमस्ते रुद्ररुपाय करिरुपाय ते नम:
विश्वरुपस्वरुपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे
भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक !!
लंबोदर नमस्त्युभ्यं सततं मोदकप्रियं
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !!
भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति
विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवंति
तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव !!
गणेशपूजने कर्म यन्नूनमधिकं कृतं
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोsस्तु सदा मम !!
अनया पूजया सिद्धिबुद्धिसहितो महागणपती: प्रीयंतां न मम

श्री गणेश अष्टोत्तर शत नामावली


श्री गणेश अष्टोत्तर शत नामावली 

1) गं विनायकाय नम:
2) गं विघ्नराजाय नम:
3) गं गौरीपुत्राय नम:
4) गं गणेश्वराय नम:
5) गं स्कंदाग्रजाय नम:
6) गं अव्ययाय नम:
7) गं भूताय नम:
8) गं दक्षाय नम:
9) गं अध्यक्षाय नम:
10) गं द्विजप्रियाय नम:
11) गं अग्निगर्भच्छिदे नम:
12) गं इंद्रश्रीप्रदाय नम:
13) गं वाणीप्रदाय नम:
14) गं अव्ययाय नम:
15) गं सर्वसिद्धिप्रदाय नम:
16) गं शर्वतनयाय नम:
17) गं शर्वरीप्रियाय नम:
18) गं सर्वात्मकाय नम:
19) गं सृष्टिकत्रै नम:
20) गं देवाय नम:
21) गं अनेकार्चिताय नम:
22) गं शिवाय नम:
23) गं शुद्धाय नम:
24) गं बुद्धिप्रियाय नम:
25) गं शांताय नम:
26) गं ब्रह्मचारिणे नम:
27) गं गजाननाय नम:
28) गं द्वैमातुराय नम:
29) गं मुनिस्तुत्याय नम:
30) गं भक्तविघ्नविनाशनाय नम:
31) गं एकदंताय नम:
32) गं चतुर्बाहवे नम:
33)गं चतुराय नम:
34) गं शक्तिसंयुताय नम:
35) गं लंबोदराय नम:
36) गं शूर्पकर्णाय नम:
37) गं हरये नम:
38) गं ब्रह्मविदुत्तमाय नम:
39) गं कालाय नम:
40) गं ग्रहपतये नम:
41) गं कामिने नम:
42) गं सोमसूर्याग्निलोचनाय नम:
43) गं पाशांकुशधराय नम:
44) गं चण्डाय नम:
45) गं गुणातीताय नम:
46) गं निरंजनाय नम:
47) गं अकल्मषाय नम:
48) गं स्वयंसिद्धाय नम:
49) गं सिद्धार्चितपदांबुजाय नम:
50) गं बीजापूरफलासक्ताय नम:
51) गं वरदाय नम:
52) गं शाश्वताय नम:
53) गं कृतिने नम:
54) गं द्विजप्रियाय नम:
55) गं वीतभयाय नम:
56) गं गतिने नम:
57) गं चक्रिणे नम:
58) गं इक्षुचापधृते नम:
59) गं श्रीदाय नम:
60) गं अजाय नम:
61) गं उत्पलकराय नम:
62) गं श्रीपतये नम:
63) गं स्तुतिहर्षिताय नम:
64) गं कुलाद्रिभेत्रे नम:
65) गं जटिलाय नम:
66) गं कलिकल्मषनाशनाय नम:
67) गं चंद्रचूडामणये नम:
68) गं कांताय नम:
69) गं पापहारिणे नम:
70) गं समाहिताय नम:
71) गं आश्रिताय नम:
72) गं श्रीकराय नम:
73) गं सौम्याय नम:
74) गं भक्तवांछितदायकाय नम:
75) गं शांताय नम:
76) गं कैवल्यसुखदाय नम:
77) गं सच्चिदानंदविग्रहाय नम:
78) गं ज्ञानिने नम:
79) गं दयायुताय नम:
80) गं दांताय नम:
81) गं ब्रह्मद्वेषविवर्जिताय नम:
82) गं प्रमत्तदैत्यभयदाय नम:
83) गं श्रीकण्ठाय नम:
84) गं विबुधेश्वराय नम:
85) गं रामार्चिताय नम:
86) गं विधये नम:
87) गं नागराजयज्ञोपवितवते नम:
88) गं स्थूलकण्ठाय नम:
89) गं स्वयंकर्त्रे नम:
90) गं सामघोषप्रियाय नम:
91) गं परस्मै नम:
92) गं स्थूलतुंडाय नम:
93) गं अग्रण्यै नम:
94) गं धीराय नम:
95) गं वागीशाय नम:
96) गं सिद्धिदायकाय नम:
97) गं दूर्वाबिल्वप्रियाय नम:
98) गं अव्यक्तमूर्तये नम:
99) गं अद्भुतमूर्तिमते नम:
100) गं शैलेंद्रतनुजोत्संगखेलनोत्सुकमानसाय नम:
101) गं स्वलावण्यसुधासारजितमन्मथविग्रहाय नम:
102) गं समस्तजगदाधाराय नम:
103) गं मायिने नम:
104) गं मूषकवाहनाय नम:
105) गं हृष्टाय नम:
106) गं तुष्टाय नम:
107) गं प्रसन्नात्मने नम:
108) गं सर्वसिद्धिप्रदायकाय नम:

31 अगस्त 2019

श्री महागणपती




विघ्नेश्वरं सुरगणपूजितंमोदकप्रियं पार्वती सुतम ।
हस्तिमुखं लम्बोदरं नमामि शिवपुत्रम गणेश्वरम ॥

विघ्नों के अधिपतिदेवताओं के भी आराध्यमोदक अर्थात लड्डूओं के प्रेमीजगदम्बा पार्वती के पुत्रहाथी के समान मुख व लम्बे पेट वालेभगवान शिव के प्रिय पुत्र गणेश को मैं प्रणाम करता हूं ।

जनसामान्य में व्यापक लोकप्रियता रखने वाले इस अद्भुत देवता के गूणों की चर्चा करना लगभग असंभव है। वे गणों के अधिपति हैं तो देवताओं के सम्पूर्ण मण्डल में प्रथम पूज्य भी हैं। बुद्धि कौशल तथा चातुर्य को प्रदान करने वाले है तो कार्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने वाले भी हैं। समस्त देव सेना और शिवगणों को पराजित करने वाले हैं, तो दूसरी ओर महाभारत जैसे ग्रंथ के लेखक भी हैं। ऐसे सर्वगुण संपन्न देवता की आराधना न सिर्फ भौतिक जीवन बल्कि आध्यात्मिक जीवन की भी समस्त विध मनोकामनाओं की पूर्ति करने में सक्षम हैं।

भगवान गणेश की आराधना या साधना उनके तीन स्वरूपों में की जाती है। उनके तीनों स्वरूपराजसी तामसी तथा सात्विक स्वरूप साधक की इच्ठा तथा क्षमता के अनुसार कार्यसिद्धि प्रदान करते ही हैं।

भारतीय संस्कृति में जो परंपरा है उसके अनुसार तो प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में गणपति का स्मरण किया ही जाता है। यदि नित्य न किया जाये तो भी गणेश चतुर्थी जैसे अवसरों पर तो गृहस्थों को उनका पूजन व ध्यान करना चाहिए।

व्यापारसेल्समार्केटिंगएडवर्टाइजिंग जैसे क्षेत्रों में जहां वाकपटुता तथा चातुर्य की नितांत आवश्यकता होती हैवहां गणपति साधना तथा ध्यान विशेष लाभप्रद होता है। भगवती लक्ष्मी को चंचला माना गया है। लक्ष्मी के साथ गणपति का पूजन लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान करता है। इसलिए आप व्यापारी बंधुओं के पास ऐसा संयुक्त चित्र लगा हुआ पायेंगे।

आगे की पंक्तियों में भगवान गणपति का एक स्तोत्र प्रस्तुत है। इस स्तोत्र का नित्य पाठ करना लाभप्रद होता है।

गणपति स्तोत्र

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियायलम्बोदराय सकलाय जगद्विताय ।
नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषितायगौरीसुताय गणनाथ नमोस्तुते ॥

भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वरायसर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय ।
विद्याधराय विकटाय च वामनायभक्तप्रसन्न वरदाय नमोनमस्ते ॥

नमस्ते ब्रह्‌मरूपाय विष्णुरूपायते नमःनमस्ते रूद्ररूपाय करि रूपायते नमः ।
विश्वरूपस्य रूपाय नमस्ते ब्रह्‌मचारिणेभक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायकः ॥

लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रियनिर्विनं में कुरू सर्व कार्येषु सर्वदा ।
त्वां विन शत्रु दलनेति च सुंदरेति भक्तप्रियेति शुभदेति फलप्रदेति ॥

विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवंति तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेवि ।
अनया पूजया सांगाय सपरिवाराय श्री गणपतिम समर्पयामि नमः ॥

इस स्तोत्र का पाठ कर गणपति को नमन करें ।


सर्व विघ्न नाशक लघु गणपति स्तवन



सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः | 
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।
धुम्रकेतुर्धनाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः| 
द्वादशैती नामानि पठेद्श्रुनुयादपी | 
विद्यारंभे विवाहे च संग्रामे संकटे तथा विघ्नस्तस्य न जायते ||

श्री गणेशपुराणे श्री गणेश कवचं

…|| श्री गणेश कवच ||
एषोति चपलो दैत्यान् बाल्येपि नाशयत्यहो ।
अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम ॥ १ ॥

दैत्या नानाविधा दुष्टास्साधु देवद्रुमः खलाः ।
अतोस्य कंठे किंचित्त्यं रक्षां संबद्धुमर्हसि ॥ २ ॥

ध्यायेत् सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहु माद्ये युगे
त्रेतायां तु मयूर वाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् । ई
द्वापरेतु गजाननं युगभुजं रक्तांगरागं विभुम् तुर्ये
तु द्विभुजं सितांगरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ॥ ३ ॥

विनायक श्शिखांपातु परमात्मा परात्परः ।
अतिसुंदर कायस्तु मस्तकं सुमहोत्कटः ॥ ४ ॥

ललाटं कश्यपः पातु भ्रूयुगं तु महोदरः ।
नयने बालचंद्रस्तु गजास्यस्त्योष्ठ पल्लवौ ॥ ५ ॥

जिह्वां पातु गजक्रीडश्चुबुकं गिरिजासुतः ।
वाचं विनायकः पातु दंतान्‌ रक्षतु दुर्मुखः ॥ ६ ॥

श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिंतितार्थदः ।
गणेशस्तु मुखं पातु कंठं पातु गणाधिपः ॥ ७ ॥

स्कंधौ पातु गजस्कंधः स्तने विघ्नविनाशनः ।
हृदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान् ॥ ८ ॥

धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं विघ्नहरश्शुभः ।
लिंगं गुह्यं सदा पातु वक्रतुंडो महाबलः ॥ ९ ॥

गजक्रीडो जानु जंघो ऊरू मंगलकीर्तिमान् ।
एकदंतो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ सदावतु ॥ १० ॥

क्षिप्र प्रसादनो बाहु पाणी आशाप्रपूरकः ।
अंगुलीश्च नखान् पातु पद्महस्तो रिनाशनः ॥ ११ ॥

सर्वांगानि मयूरेशो विश्वव्यापी सदावतु ।
अनुक्तमपि यत् स्थानं धूमकेतुः सदावतु ॥ १२ ॥

आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः पृष्ठतोवतु ।
प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेय्यां सिद्धिदायकः ॥ १३ ॥

दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैऋत्यां तु गणेश्वरः ।
प्रतीच्यां विघ्नहर्ता व्याद्वायव्यां गजकर्णकः ॥ १४ ॥

कौबेर्यां निधिपः पायादीशान्याविशनंदनः ।
दिवाव्यादेकदंत स्तु रात्रौ संध्यासु यःविघ्नहृत् ॥ १५ ॥

राक्षसासुर बेताल ग्रह भूत पिशाचतः ।
पाशांकुशधरः पातु रजस्सत्त्वतमस्स्मृतीः ॥ १६ ॥

ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मी च लज्जां कीर्तिं तथा कुलम् । ई
वपुर्धनं च धान्यं च गृहं दारास्सुतान्सखीन् ॥ १७ ॥

सर्वायुध धरः पौत्रान् मयूरेशो वतात् सदा ।
कपिलो जानुकं पातु गजाश्वान् विकटोवतु ॥ १८ ॥

भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कंठे धारयेत् सुधीः ।
न भयं जायते तस्य यक्ष रक्षः पिशाचतः ॥ १९ ॥

त्रिसंध्यं जपते यस्तु वज्रसार तनुर्भवेत् ।
यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ॥ २० ॥

युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्ध्रुवम् ।
मारणोच्चाटनाकर्ष स्तंभ मोहन कर्मणि ॥ २१ ॥

सप्तवारं जपेदेतद्दनानामेकविंशतिः ।
तत्तत्फलमवाप्नोति साधको नात्र संशयः ॥ २२ ॥

एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः ।
कारागृहगतं सद्यो राज्ञावध्यं च मोचयोत् ॥ २३ ॥

राजदर्शन वेलायां पठेदेतत् त्रिवारतः ।
स राजानं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां जयेत् ॥ २४ ॥

इदं गणेशकवचं कश्यपेन सविरितम् ।
मुद्गलाय च ते नाथ मांडव्याय महर्षये ॥ २५ ॥

मह्यं स प्राह कृपया कवचं सर्व सिद्धिदम् ।
न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ॥ २६ ॥

अनेनास्य कृता रक्षा न बाधास्य भवेत् व्याचित् ।
राक्षसासुर बेताल दैत्य दानव संभवाः ॥ २७ ॥

॥ इति श्री गणेशपुराणे श्री गणेश कवचं संपूर्णम् ॥

उच्चिष्ठ गणपति साधना

  •  


॥ हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा ॥
 
सामान्य निर्देश :-
  • साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
  • इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
  • साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
-------------------------------------
विधि :-

  1. रुद्राक्ष की माला सभी कार्यों के लिए स्वीकार्य  है |
  2. जाप के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले), आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह मन्त्र जाप कर रहा/ रही हूँ | मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " | इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
  3. गुरु से अनुमति ले लें|
  4. पान का बीड़ा चबाएं फिर मंत्र जाप करें |
  5. दिशा दक्षिण की और देखते हुए बैठें |
  6. आसन लाल/पीले रंग का रखें|
  7. जाप रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें|
  8. यदि अर्धरात्रि जाप करते हुए निकले तो श्रेष्ट है | 
  9. कम से कम 21 दिन जाप करने से अनुकूलता मिलती है | 
  10. जाप के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें|
  11. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें | यथा सम्भव सम्मान करें |
  12. जिस बालिका/युवती/स्त्री के बाल कमर से नीचे तक या उससे ज्यादा लम्बे हों उसे देखने पर मन ही मन मातृवत मानते हुए प्रणाम करें |
  13. सात्विक आहार/ आचार/ विचार रखें |
  14. ब्रह्मचर्य का पालन करें |

(संक्षिप्त गणेश पूजन )





(संक्षिप्त गणेश पूजन )
-----------------------------------------
जो लोग बडा पुजन नहि कर सकते वे इस संक्षिप्त पुजन को जरुर करे ..
पहले गुरु स्मरण ,गणेश स्मरण करे ..
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः
अब आप 4 बार आचमन करे ( दाए हाथ में पानी लेकर पिए )
गं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
गं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
गं शिव तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
गं सर्व तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
अब आप घंटा नाद करे और उसे पुष्प अक्षत अर्पण करे
घंटा देवताभ्यो नमः
अब आप जिस आसन पर बैठे है उस पर पुष्प अक्षत अर्पण करे
आसन देवताभ्यो नमः
अब आप दीपपूजन करे उन्हें प्रणाम करे और पुष्प अक्षत अर्पण करे
दीप देवताभ्यो नमः
अब आप कलश का पूजन करे ..उसमेगंध ,अक्षत ,पुष्प ,तुलसी,इत्र ,कपूर डाले ..उसे तिलक करे .
कलश देवताभ्यो नमः
अब आप अपने आप को तिलक करे
फिर संक्षिप्त गुरु पुजन करे
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
उसके बाद गणपती का ध्यान करे
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा
श्री महागणपति आवाहयामि
मम पूजन स्थाने रिद्धि सिद्धि सहित शुभ लाभ सहित स्थापयामि नमः
त्वां चरणे गन्धाक्षत पुष्पं समर्पयामि
अगर आपको आवाहनादि मुद्राये आती है तो दिखाये
फिर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करे
यहा पर पंचोपचार पूजन दे रहा हु
ॐ गं " लं" पृथ्वी तत्वात्मकं गंधं समर्पयामि महागणपतये नम:
ॐ गं " हं" आकाश तत्वात्मकं पुष्पम समर्पयामि महागणपतये नम:
ॐ गं " यं " वायु तत्वात्मकं धूपं समर्पयामि महागणपतये नम:
ॐ गं " रं" अग्नी तत्वात्मकं दीपं समर्पयामि महागणपतये नम:
ॐ गं " वं " जल तत्वात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि महागणपतये नम:
अब गणेशजी को अर्घ्य प्रदान करे
एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात
(यहाँ पर भगवान गणेश जी के 16 नामावली दी है उससे पूजन करे ..दूर्वा या पुष्प अक्षत या जल अर्पण करे )
1. ॐ गं सुमुखाय नम: ।
2. ॐ गं एकदंताय नमः।
3. ॐ गं कपिलाय नमः।
4. ॐ गं गजकर्णकाय नमः।
5. ॐ गं लंबोदराय नमः।
6. ॐ गं विकटाय नम: !
7. ॐ गं विघ्नराजाय नमः।
8. ॐ गं गणाधिपाय नम: !
9. ॐ गं धूम्रकेतवे नम : ।
10 . ॐ गं गणाध्यक्षाय नमः।
11. ॐ गं भालचंद्राय नमः।
12. ॐ गं गजाननाय नम: !
13. ॐ गं वक्रतुंडाय नमः।
14. ॐ गं शूर्पकर्णाय नमः।
15. ॐ गं हेरंबाय नमः।
16. ॐ गं स्कंदपूर्वजाय नमः।
अब एक आचमनी जल लेकर पूजा स्थान पर छोड़े
अनेन महागणपती षोडश नाम पूजनेन श्री भगवान महागणपती प्रीयन्तां न मम .
हाथ जोड़ कर भगवान गणेश जी से प्रार्थना करे
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय
लंबोदराय सकलाय जगद्धिताय
नागाननाय श्रूती यग्यविभिषिताय
गौरिसुताय गणनाथ नमो नमस्ते

25 अगस्त 2019

गीताप्रेस : अध्यात्मिक ग्रन्थ प्रकाशक


गीता प्रेस भारत के प्रमुख अध्यात्मिक प्रकाशनों में से एक है | यहाँ से कल्याण नमक पत्रिका निकलती है | विस्तृत जानकारी के लिए गीता प्रेस की वेब साईट :-




गीताप्रेस द्वारा मुख्य रूपसे हिन्दी तथा संस्कृतभाषामें गीताप्रेसका साहित्य प्रकाशित होता हैकिन्तु अहिन्दीभाषी लोगोंकी असुविधाको देखते हुए अब तमिलतेलुगुमराठीकन्नड़बँगला,गुजराती तथा ओड़िआ आदि प्रान्तीय भाषाओंमें भी पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं और इस योजनासे लोगोंको लाभ भी हुआ है। अंग्रेजी भाषामें भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। अब न केवल भारतमें अपितु विदेशोंमें भी यहाँका प्रकाशन बड़े मनोयोग एवं श्रद्धासे पढ़ा जाता है। प्रवासी भारतीय भी यहाँका साहित्य पढ़नेके लिये उत्कण्ठित रहते हैं । 

गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं के लिए क्लिक करें :-





17 अगस्त 2019

Tantra and Kundalini: काली सहस्त्राक्षरी

Tantra and Kundalini: काली सहस्त्राक्षरी: :::::::::::::::::  श्री काली सहस्त्राक्षरी ::::::::::::::::: =========================== ॐ क्रीं क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं ह...

16 अगस्त 2019

महाकाली शरणम मम


महाकाली साधना 
नियम 
तर्क 
और 
व्याख्या 
से परे है 

इसलिए निम्नलिखित मन्त्रों का जाप आप अपनी श्रद्धानुसार जैसा बन सके वैसा करें , 

श्रद्धानुसार आपको महामाया महाकाली की कृपा प्राप्त होगी.

|| क्रीं ||


|| ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ॐ ||


|| ॐ क्लीं क्लीं क्लीं कृष्णाये नमः ||




----
साधना में गुरु की आवश्यकता
        मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
        साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता हैजिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
        गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
गुरु के बिना साधना
        स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
        जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
        शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
        गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y      मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखेंढिंढोरा ना पीटेंबेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y      गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y      आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y      बकवास और प्रलाप न करें.
Y      किसी पर गुस्सा न करें.
Y      यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y      ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y      किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y      जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y      बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y      ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y      इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म लगातार गर्भपातसन्तान ना होना अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y      भूतप्रेतजिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशाआसनवस्त्र का महत्व
Y      साधना के लिए नदी तटशिवमंदिरदेविमंदिरएकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y      आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y      अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशाआसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y      इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
माला तथा जप संख्या
Y      रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y      रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती अगर अलग से निर्देश न हो तो सभी साधनाओं में रुद्राक्ष माला से मन्त्र जाप कर सकते हैं .
Y      एक साधना के लिए एक माला का उपयोग करें |
Y      सवा लाख मन्त्र जाप का पुरश्चरण होगा |
Y      गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
सामान्य हवन विधि
Y      जाप पूरा होने के बाद किसी गोल बर्तन, हवनकुंड में हवन अवश्य करें | इससे साधनात्मक रूप से काफी लाभ होता है जो आप स्वयं अनुभव करेंगे |
Y      अग्नि जलाने के लिए माचिस का उपयोग कर सकते हैं | इसके साथ घी में डूबी बत्तियां तथा कपूर रखना चाहिए
Y      जलाते समय “ॐ अग्नये नमः” मन्त्र का कम से काम 7 बार जाप करें | जलना प्रारंभ होने पर इसी मन्त्र में स्वाहा लगाकर घी की 7 आहुतियाँ देनी चाहिए |
Y      बाजार में उपलब्ध हवन सामग्री का उपयोग कर सकते हैं |
Y      हवन में 1250 बार या जितना आपने जाप किया है उसका सौवाँ भाग हवन करें | मन्त्र के पीछे “स्वाहा” लगाकर हवन सामग्री को अग्नि में डालें |
भावना का महत्व
Y      जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y      यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y      नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |
Y      देवी या देवता माता पिता तुल्य होते हैं उनके सामने शिशुवत जाप करेंगे तो किसी प्रकार का दोष नहीं लगेगा |