||ॐ त्रयम्बकं यजामहे उर्वा रुकमिव स्तुता वरदा प्रचोदयंताम आयु: प्राणं प्रजां पशुं ब्रह्मवर्चसं मह्यं दत्वा व्रजम ब्रह्मलोकं ||
- इस मंत्र के उच्चारण करने या श्रवण करने से समस्त बिमारियों में लाभ होता है .
- श्रावण मास मे क्षमतानुसार जाप करें.
एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
||ॐ त्रयम्बकं यजामहे उर्वा रुकमिव स्तुता वरदा प्रचोदयंताम आयु: प्राणं प्रजां पशुं ब्रह्मवर्चसं मह्यं दत्वा व्रजम ब्रह्मलोकं ||
गुरु पूर्णिमा पर तांत्रोक्त गुरु पूजन
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर तंत्रोक्त गुरु पूजन की विधि प्रस्तुत है ।
जिसके माध्यम से आप अपने सदगुरुदेव का पूजन कर सकते हैं क्योंकि मेरे गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ( डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ) हैं इसलिए गुरुदेव जी के स्थान पर में उनका नाम ले रहा हूं आप अपने गुरु का नाम उनकी जगह पर ले सकते हैं ।
इस पूजन के लिए स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें । लकड़ी की चौकी या बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर पंचामृत या जल से स्नान कराके गुरु चित्र यंत्र या शिवलिंग जो भी आपके पास उपलब्ध हो उसे रख लें । अब पूजन प्रारंभ करें।
पवित्रीकरण
किसी भी कार्य को करने के पहले हम अपने आप को साफ सुथरा करते हैं ठीक वैसे ही पूजन करने से पहले भी अपने आप को पवित्र किया जाता है इसे पवित्रीकरण कहते हैं इसमें अपने ऊपर बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से छिड़कें या फूल या चम्मच जो भी आप इस्तेमाल करना चाहते हो उसके द्वारा अपने ऊपर थोड़ा सा जल छिड़क लें ।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
आचमन
आंतरिक शुद्धि के लिए निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें -
ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।
ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।
ॐ विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।
सूर्य पूजन
भगवान सूर्य इस सृष्टि के संचालन करता है और उन्हीं के माध्यम से हम सभी का जीवन गतिशील होता है इसलिए उनकी पूजा अनिवार्य है ।
कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें -
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।
हिरण्येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
ॐ पश्येन शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं ।जीवेम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात ।।
ध्यान
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम: ॥
ध्यान मूलं गुरु: मूर्ति पूजा मूलं गुरो पदं ।
मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुकृपा ॥
आवाहन
ॐ स्वरुप निरूपण हेतवे श्री निखिलेश्वरानन्दाय गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।
ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री सच्चिदानंद परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।
ॐ स्वात्माराम पिंजर विलीन तेजसे श्री ब्रह्मणे पारमेष्ठि गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।
षट चक्र स्थापन --
गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें -
श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री सदाशिवानन्दनाथ चिच्छक्त्यम्बा स्वाधिष्ठान चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री ईश्वरानन्दनाथ आनंद शक्त्यम्बा मणिपुर चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री विष्णुदेवानन्दनाथ ज्ञान शक्त्यम्बा विशुद्ध चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री ब्रह्मदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः ।
गुरु चरणों मे समर्पित करें
ॐ श्री उन्मनाकाशानन्दनाथ – जलं समर्पयामि ।
ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – गंगाजल स्नानं समर्पयामि ।
ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि ।
ॐ श्री शक्त्याकाशानन्दनाथ – चन्दनं समर्पयामि ।
ॐ श्री ध्वन्याकाशानन्दनाथ – कुंकुमं समर्पयामि ।
ॐ श्री ध्वनिमात्रकाशानन्दनाथ – केशरं समर्पयामि ।
ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि ।
ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतं समर्पयामि ।
ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारम समर्पयामि ।
दीपम
सिद्ध शक्तियों को दीप दिखाएँ
श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि ।
श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि ।
श्री करालाम्बिका सिद्ध दीपं समर्पयामि ।
श्री त्रिबाणाम्बा सिद्ध ज्ञान दीपं समर्पयामि ।
श्री भीमाम्बा सिद्ध ह्रदय दीपं समर्पयामि ।
श्री कराल्याम्बा सिद्ध सिद्ध दीपं समर्पयामि ।
श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि ।
श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि ।
नीराजन --
पात्र में जल, कुंकुम, अक्षत और पुष्प लेकर गुरु चरणों मे समर्पित करें -
श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री सूर्यमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री अग्निमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री ज्ञानमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री ब्रह्ममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
पञ्च पंचिका
अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर , दोनों हाथों को भिक्षापात्र के समान जोड़कर, निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें -
श्री विद्या लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री एकाकार लक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री महालक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री त्रिशक्तिलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री सर्वसाम्राज्यलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री परज्योति कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री परिनिष्कल शाम्भवी कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अजपा कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री मातृका कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री त्वरिता कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री पारिजातेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री त्रिपुटा कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री पञ्च बाणेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अमृत पीठेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री सुधांशु कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अमृतेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अन्नपूर्णा कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री सिद्धलक्ष्मी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री मातंगेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री भुवनेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री वाराही रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री मन्मालिनी मंत्र
अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके । इसके द्वारा सभी अक्षरों अर्थात स्वर व्यंजनों का पूजन हो जाता है जिससे मंत्र बनते हैं :-
ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं ल्रृं एं ऐँ ओं औं अं अः ।
कं खं गं घं ङं ।
चं छं जं झं ञं ।
टं ठं डं ढं णं ।
तं थं दं धं नं ।
पं फं बं भं मं ।
यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं हंसः सोऽहं गुरुदेवाय नमः ।
गुरु मंत्र जाप
इसके बाद गुरु मंत्र का यथा शक्ति जाप करें ।
यदि आपके पास कोई गुरु मंत्र हो तो उसका जाप करें ना हो तो निम्नलिखित मंत्र का जाप करें
ॐ गुरुभ्यो नमः ।।
प्रार्थना --
लोकवीरं महापूज्यं सर्वरक्षाकरं विभुम् ।
शिष्य हृदयानन्दं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।
त्रिपूज्यं विश्व वन्द्यं च विष्णुशम्भो प्रियं सुतं ।
क्षिप्र प्रसाद निरतं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।
मत्त मातंग गमनं कारुण्यामृत पूजितं ।
सर्व विघ्न हरं देवं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।
अस्मत् कुलेश्वरं देवं सर्व सौभाग्यदायकं ।
अस्मादिष्ट प्रदातारं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।
यस्य धन्वन्तरिर्माता पिता रुद्रोऽभिषक् तमः ।
तं शास्तारमहं वंदे महावैद्यं दयानिधिं ।।
समर्पण --
सम्पूर्ण पूजन गुरु के चरणों मे समर्पित करें :-
देवनाथ गुरौ स्वामिन देशिक स्वात्म नायक: ।
त्राहि त्राहि कृपा सिंधों , पूजा पूर्णताम कुरु ....
अनया पूजया श्री गुरु प्रीयंताम तदसद श्री सद्गुरु चरणार्पणमस्तु ॥
इतना कहकर गुरु चरणों मे जल छोड़ें ।
शांति
तीन बार जल छिडके...
ॐ शान्तिः । शान्तिः ।। शान्तिः ।।।
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आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं
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गुरु पूर्णिमा पर गुरुपूजन की सरल विधि
गुरु पूजन की एक सरल विधि प्रस्तुत है ।
जिसका उपयोग आप दैनिक पूजन में भी कर सकते हैं ।
सबसे पहले अपने सदगुरुदेव को हाथ जोडकर प्रणाम करे
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:
गणेश भगवान का स्मरण करें तथा उन्हें प्रणाम करें
ॐ श्री गणेशाय नम:
सृष्टि की संचालनि शक्ति भगवती जगदंबा के 10 स्वरूपों को महाविद्या कहा जाता है । उन को हृदय से प्रणाम करें तथा पूजन की पूर्णता की हेतु अनुमति मांगें ।
ॐ ह्रीम दशमहाविद्याभ्यो नम:
गुरुदेव का ध्यान करे
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ॥
ध्यानमूलं गुरो मूर्ति : पूजामूलं गुरो: पदं ।
मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा ॥
गुरुकृपाहि केवलम ।
गुरुकृपाहि केवलम ।
गुरुकृपाहि केवलम ।
श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नम: ध्यानं समर्पयामि ।
अब ऐसी भावना करें कि गुरुदेव (अंडरलाइन वाले जगह पर अपने गुरु का नाम लें ) आपके हृदय कमल के ऊपर विराजमान हो ।
श्री सदगुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद महाराज मम ह्रदय कमल मध्ये आवाहयामि स्थापयामि नम: ॥
अगर आपके पास समय कम है तो आप सीधे गुरुमंत्र का जाप शुरु करे .. नही तो सदगुरुदेव का मानसिक पंचोपचार पूजन करे और पूजन के बाद गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का भी पाठ अवश्य करे ..
कई बार हमारे पास सामग्री उपलब्ध नहीं होती ऐसी स्थिति में मानसिक रूप से पूजन संपन्न किया जा सकता है इसके लिए विभिन्न प्रकार की मुद्राएं उंगलियों के माध्यम से प्रस्तुत की जाती हैं जिसको उस सामग्री के अर्पण के समान ही माना जाता है ।
मानसिक पूजन करते समय पंचतत्वो की मुद्राये प्रदर्शित करे और सामग्री से पूजन करते समय उचित सामग्री का उपयोग करे
अंगूठे और छोटी उंगली को स्पर्श कराकर कहें
ॐ " लं " पृथ्वी तत्वात्मकं गंधं समर्पयामि श्री गुरवे नम: ॥
अंगूठे और पहली उंगली को स्पर्श कराकर कहें
ॐ " हं " आकाश तत्वात्मकं पुष्पम समर्पयामि श्री गुरवे नम: ॥
अंगूठे और पहली उंगली को स्पर्श कराकर धूप मुद्रा दिखाकर मानसिक रूप से समर्पित करें
ॐ " यं " वायु तत्वात्मकं धूपं समर्पयामि श्रीगुरवे नम: ॥
दीपक उपलब्ध हो तो दीपक दिखाएं और ना हो तो मानसिक रूप से अंगूठे और बीच वाली उंगली को स्पर्श करके दीपक मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए ऐसा भाव रखें कि आप गुरुदेव को दीपक समर्पित कर रहे हैं ।
ॐ " रं " अग्नी तत्वात्मकं दीपं समर्पयामि श्रीगुरवे नम: ॥
प्रसाद हो तो उसे अर्पित करें और ना हो तो मानसिक रूप से प्रसाद या नैवेद्य अर्पित करने के लिए अंगूठे और अनामिका अर्थात तीसरी उंगली या रिंग फिंगर को स्पर्श करके वह मुद्रा गुरुदेव को दिखाते हुए मानसिक रूप से प्रसाद अर्पित करें ।
ॐ " वं " जल तत्वात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि श्रीगुरवे नम:
अब सारी उंगलियों को जोड़कर गुरुदेव के चरणों में तांबूल या पान अर्पित करें ।
ॐ " सं " सर्व तत्वात्मकं तांबूलं समर्पयामि श्री गुरवे नम:
अब हाथ जोडकर गुरु पंक्ति का पूजन करे । इसमें आप सिर्फ हाथ जोड़कर नमस्कार कर सकते हैं या फिर चावल चढ़ा सकते हैं या पुष्प चढ़ा सकते हैं या फिर जल चढ़ा सकते हैं ।
ॐ गुरुभ्यो नम: ।
ॐ परम गुरुभ्यो नम: ।
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम: ।
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम: ।
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम: ।
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम: ।
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम: ।
अब गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का पाठ करे ..
अगर स्तोत्र पाठ नही करना है तो सीधे आगे का पूजन करे
गुरुपादुका पंचक स्तोत्र
ॐ नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यां
नम: परेभ्य: परपादुकाभ्यां
आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! १ !!
ऐंकार ह्रींकार रहस्ययुक्त
श्रीं कार गूढार्थ महाविभूत्या
ॐकार मर्म प्रतिपादिनीभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! २ !!
होमाग्नि होत्राग्नि हविष्यहोतृ
होमादि सर्वाकृति भासमानं
यद ब्रह्म तद बोध वितारिणाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ३ !!
अनंत संसार समुद्रतार
नौकायिताभ्यां स्थिर भक्तिदाभ्यां
जाड्याब्धि संशोषण बाडवाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ४ !!
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां
विवेक वैराग्य निधिप्रदाभ्यां
बोधप्रदाभ्यां द्रुत मोक्षदाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ५ !!
अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे या
मानसिक स्तर पर ऐसा भाव करें कि आपने जल में चंदन मिलाया है और उसे गुरु चरणों में समर्पित कर रहे हैं ..
ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात् ।
अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे
आप अपने गुरु के द्वारा प्राप्त मंत्र का जाप कर सकते हैं या फिर निम्नलिखित गुरु मंत्र का जाप कर सकते हैं ।
॥ ॐ गुरुभ्यो नमः ॥
अंत मे जप गुरुदेव को अर्पण करे
ॐ गुह्याति गुह्यगोप्तात्वं गृहाणास्मत कृतं जपं सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!
अब एक आचमनी जल अर्पण करे , मन में भाव रखें कि हे गुरुदेव मैं यह पूजन आपके चरणों में समर्पित कर रहा हूं और आप मुझ पर कृपालु होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करें ।
अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव प्रीयंता मम !!
दोनों कान पकड़कर पूजन में हुई किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए कहे
क्षमस्व गुरुदेव ॥
क्षमस्व गुरुदेव ॥
क्षमस्व गुरुदेव ॥
दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है । यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।
बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र
ॐ नमो भगवति चामुण्डे नरकंक गृध्रोलूक परिवार सहिते श्मशानप्रिये नररुधिरमांस चरु भोजन प्रिये ! सिद्ध विद्याधर वृन्द वंदित चरणे बृह्मेशविष्णु वरुण कुबेर भैरवी भैरव प्रिये इन्द्रक्रोध विनिर्गत शरीरे द्वादशादित्य चण्डप्रभे अस्थि मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रं दक्षिण दिशि आगच्छ आगच्छ, मानय मानय, नुद नुद, सर्व शत्रुणां मारय मारय, चूर्णय चूर्णय, आवेशय आवेशय, त्रुट त्रुट, त्रोटय त्रोटय, स्फुट स्फुट, स्फोटय स्फोटय, महाभूतान् जृम्भय जृम्भय, ब्रह्मराक्षसान उच्चाटय उच्चाटय, भूत प्रेत पिशाचान् मूर्च्छय मूर्च्छय, मम शत्रुन उच्चाटय उच्चाटय, शत्रून चूर्णय चूर्णय, सत्यं कथय कथय, वृक्षेभ्यः संन्नाशय संन्नाशय अर्कं स्तंभय स्तंभय , गरुड पक्षपातेन विषं निर्विषं कुरु कुरु, लीलांगालयवृक्षेभ्यः परिपातय परिपातय, शैलकाननमहीं मर्दय मर्दय, मुखं उत्पाटय उत्पाटय, पात्रं पूरय पूरय, भूतभविष्यं यत्सर्व कथय कथय, कृन्त कृन्त, दह दह, पच पच, मथ मथ, प्रमथ प्रमथ, घर्घर घर्घर, ग्रासय ग्रासय, विद्रावय विद्रावय उच्चाटय उच्चाटय, विष्णुचक्रेण वरुणपाशेन इन्द्रवज्रेण ज्वरं नाशय नाशय, प्रविदं स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून मम वशं कुरु कुरु, पातालं प्रत्यंतरिक्षं आकाशग्रहं आनय आनय, करालि विकरालि महाकालि, रुद्रशक्ते पूर्वदिशं निरोधय निरोधय, पश्चिमदिशं स्तम्भय स्तम्भय, दक्षिणदिशं निधय निधय, उत्तरदिशं बंधय बंधय, ह्रां ह्रीं ॐ बंधय बंधय, ज्वालामालिनी स्तम्भिनी मोहिनि, मुकुट विचित्र कुण्डल नागादि वासुकी कृत हारभूषणे मेखला चन्द्रार्कहास प्रभंजने विद्युत्स्फुरित सकाश साट्टहास निलय निलय, हुं फट्, हुं फट् विजृंभित शरीरे सप्तद्वीप कृते ब्रह्माण्ड विस्तारित स्तन युगले असि मुसल परशु तोमर क्षुरिपाश हलेषु वीरान् शमय शमय, सहस्त्र बाहु परापरादिशक्ति विष्णु शरीरे, शंकर ह्रदयेश्वरी बगलामुखी ! सर्वदुष्टान् विनाशय विनाशय, हुं फट् स्वाहा ।
ॐ ह्लीं बगलामुखी ये केचनापकारिणः सन्ति, तेषां वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय, जिह्वां कीलय कीलय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, ह्रीं ॐ स्वाहा !
ॐ ह्रीं हिली हिली सर्व शत्रुणां वाचं मुखं पदं स्तम्भय , शत्रुजिह्वां कीलय, शत्रूणां दृष्टिमुष्टि गति मति दंत तालु जिह्वां बंधय बंधय, मारय मारय, शोषय शोषय हुं फट् स्वाहा ।
महाविद्या बगलामुखी की कृपा प्रदान करता है ।
स्तोत्र है इसलिए वे भी कर सकते हैं जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है । लेकिन वे नित्य 11 पाठ से ज्यादा ना करें ।
आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं ।
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-
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