23 जुलाई 2021

गुरु पूर्णिमा पर गुरुपूजन की सरल विधि

 गुरु पूर्णिमा पर गुरुपूजन की सरल विधि


गुरु पूजन की एक सरल विधि प्रस्तुत है ।


जिसका उपयोग आप दैनिक पूजन में भी कर सकते हैं ।


सबसे पहले अपने सदगुरुदेव को हाथ जोडकर प्रणाम करे


ॐ गुं गुरुभ्यो नम:


गणेश भगवान का स्मरण करें तथा उन्हें प्रणाम करें


ॐ श्री गणेशाय नम:


सृष्टि की संचालनि शक्ति भगवती जगदंबा के 10 स्वरूपों को महाविद्या कहा जाता है । उन को हृदय से प्रणाम करें तथा पूजन की पूर्णता की हेतु अनुमति मांगें ।


ॐ ह्रीम दशमहाविद्याभ्यो नम:


गुरुदेव का ध्यान करे



गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।

गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ॥

ध्यानमूलं गुरो मूर्ति : पूजामूलं गुरो: पदं ।

मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा ॥


गुरुकृपाहि केवलम ।

गुरुकृपाहि केवलम ।

गुरुकृपाहि केवलम ।


श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नम: ध्यानं समर्पयामि ।


अब ऐसी भावना करें कि गुरुदेव (अंडरलाइन वाले जगह पर अपने गुरु का नाम लें ) आपके हृदय कमल के ऊपर विराजमान हो ।


श्री सदगुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद महाराज मम ह्रदय कमल मध्ये आवाहयामि स्थापयामि नम: ॥ 


अगर आपके पास समय कम है तो आप सीधे गुरुमंत्र का जाप शुरु करे .. नही तो सदगुरुदेव का मानसिक पंचोपचार पूजन करे और पूजन के बाद गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का भी पाठ अवश्य करे ..

कई बार हमारे पास सामग्री उपलब्ध नहीं होती ऐसी स्थिति में मानसिक रूप से पूजन संपन्न किया जा सकता है इसके लिए विभिन्न प्रकार की मुद्राएं उंगलियों के माध्यम से प्रस्तुत की जाती हैं जिसको उस सामग्री के अर्पण के समान ही माना जाता है ।


मानसिक पूजन करते समय पंचतत्वो की मुद्राये प्रदर्शित करे और सामग्री से पूजन करते समय उचित सामग्री का उपयोग करे


अंगूठे और छोटी उंगली को स्पर्श कराकर कहें


ॐ " लं " पृथ्वी तत्वात्मकं गंधं समर्पयामि श्री गुरवे नम: ॥


अंगूठे और पहली उंगली को स्पर्श कराकर कहें


ॐ " हं " आकाश तत्वात्मकं पुष्पम समर्पयामि श्री गुरवे नम: ॥


अंगूठे और पहली उंगली को स्पर्श कराकर धूप मुद्रा दिखाकर मानसिक रूप से समर्पित करें


ॐ " यं " वायु तत्वात्मकं धूपं समर्पयामि श्रीगुरवे नम: ॥


दीपक उपलब्ध हो तो दीपक दिखाएं और ना हो तो मानसिक रूप से अंगूठे और बीच वाली उंगली को स्पर्श करके दीपक मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए ऐसा भाव रखें कि आप गुरुदेव को दीपक समर्पित कर रहे हैं ।


ॐ " रं " अग्नी तत्वात्मकं दीपं समर्पयामि श्रीगुरवे नम: ॥


प्रसाद हो तो उसे अर्पित करें और ना हो तो मानसिक रूप से प्रसाद या नैवेद्य अर्पित करने के लिए अंगूठे और अनामिका अर्थात तीसरी उंगली या रिंग फिंगर को स्पर्श करके वह मुद्रा गुरुदेव को दिखाते हुए मानसिक रूप से प्रसाद अर्पित करें ।



ॐ " वं " जल तत्वात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि श्रीगुरवे नम:


अब सारी उंगलियों को जोड़कर गुरुदेव के चरणों में तांबूल या पान अर्पित करें ।


ॐ " सं " सर्व तत्वात्मकं तांबूलं समर्पयामि श्री गुरवे नम:


अब हाथ जोडकर गुरु पंक्ति का पूजन करे । इसमें आप सिर्फ हाथ जोड़कर नमस्कार कर सकते हैं या फिर चावल चढ़ा सकते हैं या पुष्प चढ़ा सकते हैं या फिर जल चढ़ा सकते हैं ।


ॐ गुरुभ्यो नम: ।

ॐ परम गुरुभ्यो नम: ।

ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम: ।

ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम: ।

ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम: ।

ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम: ।

ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम: ।



अब गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का पाठ करे ..

अगर स्तोत्र पाठ नही करना है तो सीधे आगे का पूजन करे


गुरुपादुका पंचक स्तोत्र


ॐ नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यां

नम: परेभ्य: परपादुकाभ्यां

आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यां

नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! १ !!


ऐंकार ह्रींकार रहस्ययुक्त

श्रीं कार गूढार्थ महाविभूत्या

ॐकार मर्म प्रतिपादिनीभ्यां

नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! २ !!


होमाग्नि होत्राग्नि हविष्यहोतृ

होमादि सर्वाकृति भासमानं

यद ब्रह्म तद बोध वितारिणाभ्यां

नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ३ !!


अनंत संसार समुद्रतार

नौकायिताभ्यां स्थिर भक्तिदाभ्यां

जाड्याब्धि संशोषण बाडवाभ्यां

नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ४ !!


कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां

विवेक वैराग्य निधिप्रदाभ्यां

बोधप्रदाभ्यां द्रुत मोक्षदाभ्यां

नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ५ !!


अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे या

मानसिक स्तर पर ऐसा भाव करें कि आपने जल में चंदन मिलाया है और उसे गुरु चरणों में समर्पित कर रहे हैं ..


ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात् ।


अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे



आप अपने गुरु के द्वारा प्राप्त मंत्र का जाप कर सकते हैं या फिर निम्नलिखित गुरु मंत्र का जाप कर सकते हैं ।


॥ ॐ गुरुभ्यो नमः ॥


अंत मे जप गुरुदेव को अर्पण करे


ॐ गुह्याति गुह्यगोप्तात्वं गृहाणास्मत कृतं जपं सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!


अब एक आचमनी जल अर्पण करे , मन में भाव रखें कि हे गुरुदेव मैं यह पूजन आपके चरणों में समर्पित कर रहा हूं और आप मुझ पर कृपालु होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करें ।


अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव प्रीयंता मम !!


दोनों कान पकड़कर पूजन में हुई किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए कहे



क्षमस्व गुरुदेव ॥

क्षमस्व गुरुदेव ॥

क्षमस्व गुरुदेव ॥

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