5 अक्तूबर 2021

नवरात्री : दुर्गा पूजन की सरल विधि




नवरात्री : दुर्गा पूजन  की सरल विधि 

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यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा पूजन नहीं जानते । जो साधक हैं वे प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर विस्तृत पूजन क्षमतानुसार सम्पन्न करें 

यह पूजन आप देवी के चित्र मूर्ति या यंत्र के सामने कर सकते हैं यदि आपके पास इनमे से कुछ भी नही तो आप रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे .

अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार घी या तेल का दीपक जलाये। 

धुप अगरबत्ती जलाये। 

बैठने के लिए लाल या काले कम्बल या मोटे कपडे का आसन हो। 

जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग कर सकते हैं।  

इसके अलावा आपको निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी :-

एक कलश , जल पात्र ,हल्दी,कुंकुम , चन्दन,अष्टगंध, अक्षत(बिना टूटे चावल),  पुष्प ,फल,मिठाई . 

अगर यह सामग्री नहीं है या नहीं ले सकते हैं तो अपने मन में देवी को इन सामग्रियों का समर्पण करने की भावना रखते हुए अर्थात मन से उनको समर्पित करते हुए मानसिक पूजन करे



सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं है तो ब्रह्माण्ड के समस्त गुरु मंडल का स्मरण करे। 


ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।  


गणेश का स्मरण करे


ॐ श्री गणेशाय नमः।


भैरव बाबा का स्मरण करें 

ॐ भ्रं भैरवाय नमः। 


शिव शक्ति का स्मरण करें 

ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः।  


चमच से चार बार बाए हाथ से दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए।  एक मन्त्र के बाद एक बार पानी पीना है।  


ॐ आत्मतत्वाय स्वाहा 

ॐ विद्या तत्वाय स्वाहा 

ॐ शिव तत्वाय स्वाहा 

ॐ सर्व तत्वाय स्वाहा


उसके बाद पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे।  नमः बोलकर सामग्री को छोड़ते हैं।  


ॐ श्री गुरुभ्यो नमः 

ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः 

ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः


हम पृथ्वी के ऊपर बैठकर पूजन कर रहे हैं इसलिए उनको प्रणाम करके उनकी अनुमति मांग के पूजन प्रारंभ किया जाता है जिसे पृथ्वी पूजन कहते हैं।  

अपने आसन को उठाकर उसके नीचे कुमकुम से एक त्रिकोण बना दें उसे प्रणाम करें और निम्नलिखित मंत्र पढ़े और पुष्प अक्षत अर्पण करे।  

ॐ पृथ्वी देव्यै नमः


देह न्यास :-

किसी भी पूजन को संपन्न करने से पहले संबंधित देवी या देवता को अपने शरीर में स्थापित होने और रक्षा करने के लिए प्रार्थना की जाती है इसके निमित्त तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे।   इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप करते रहे।  


ॐ दुँ दुर्गायै नमः ।


कलश स्थापना :-


कलश को अमृत की स्थापना का प्रतीक माना जाता है।   हमें जीवित रहने के लिए अमृत तत्व की आवश्यकता होती है। जो भी भोजन हम ग्रहण करते हैं उसका सार या अमृत जिसे आज वैज्ञानिक भाषा में विटामिन और प्रोटीन कहा जाता है वह जब तक हमारा शरीर ग्रहण न कर ले तब तक हम जीवित नहीं रह सकते। कलश की स्थापना करने का भाव यही है कि हम समस्त प्रकार के अमृत तत्व को अपने पास स्थापित करके उसकी कृपा प्राप्त करें और वह अमृत तत्व हमारे जीवन में और हमारे शरीर में स्थापित हो ताकि हम स्वस्थ निरोगी रह सकें।  


कलश स्थापना के लिए आप संबंधित मंत्रों का उच्चारण भी कर सकते हैं या फिर केवल निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करके मन में उपरोक्त भावना रखकर कलश की स्थापना कर सकते हैं।  

ॐ अमृत कलशाय नमः


संकल्प :-(यह सिर्फ पहले दिन करना है )

संकल्प का तात्पर्य होता है कि आप महामाया के सामने एक प्रकार से एक एग्रीमेंट कर रहे हैं कि हे माता मैं आपके चरणों में अपने अमुक कार्य के लिए इतने मंत्र जाप का संकल्प लेता हूं और आप मुझे इस कार्य की सफलता का आशीर्वाद दें।  


दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प करे।  

“ मैं (अपना नाम और गोत्र ) इस नवरात्री पर्व मे भगवती दुर्गा की कृपा प्राप्त होने हेतु तथा अपनी समस्या निवारण हेतु या अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु ( यहाँ समस्या या मनोकामना बोलेंगे ) यथा शक्ति  (अगर आप निश्चित संख्या में करेंगे तो वह संख्या यहाँ बोल सकते हैं जैसे १०८  माला )साधना कर रहा हूँ।”

इतना बोलकर जल छोड़े

(यह सिर्फ पहले दिन करना है )



अब गणेशजी का ध्यान करे 

वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ 

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा

ॐ श्री गणेशाय नमः का 11 या 21 बार जाप करे


फिर भैरव जी का स्मरण करे 

तीक्ष्ण दंष्ट्र  महाकाय कल्पांत दहनोपम

भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि 

ॐ भं भैरवाय नमः


अब भगवती का ध्यान करे। 


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके 

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते


ॐ दुँ दुर्गा देव्यै नमः 

ध्यायामि आवाहयामि स्थापयामि

पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे ऐसी भावना करे की भगवती वहाँ साक्षात् उपस्थित है और आप उन्हें सारे उपचार अर्पण कर रहे है


भगवती का स्वागत कर पंचोपचार पूजन करे ,

अगर आपके पास सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे।  

ॐ दुँ दुर्गायै नमः गन्धम् समर्पयामि 

(हल्दी कुमकुम चन्दन अष्टगंध अर्पण करे )


ॐ दुँ दुर्गायै नमः पुष्पम समर्पयामि (फूल )


ॐ दुँ दुर्गायै नमः धूपं समर्पयामि(अगरबत्ती या धुप)


ॐ दुँ दुर्गायै नमः दीपं समर्पयामि(दीपक दिखाएँ )


ॐ दुँ दुर्गायै नमः नैवेद्यम समर्पयामि (मिठाई दूध या फल अर्पण करे )


अब भगवती के समक्ष कुछ स्तोत्र का पाठ करे।  सिद्ध कुंजिका स्तोत्र प्रकाशित किया है उसका पाठ भी कर सकते हैं , इसके अलावा श्री दुर्गा सप्तशती में से दुर्गा सप्तश्लोकी ,दुर्गा अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्र , तांत्रोक्त रात्रि सूक्तम ,देवी अथर्वशीर्ष, दुर्गा कवच ,अर्गला स्तोत्र,किलक स्तोत्र , सिद्ध कुंजिका स्तोत्र ,दुर्गा द्वात्रिंशत् नाम स्तोत्र इन स्तोत्रों में से क्षमतानुसार  स्तोत्र का पाठ करे। 



यदि ऐसा न संभव हो तो आप दुर्गा जी के बत्तीस नाम से पुष्प अक्षत अर्पण करे। 

इसमें नमः बोलने के बाद पुष्प अक्षत अर्पित करें।  


1. ह्रीं दुर्गायै नमः 

2. ह्रीं दुर्गार्तिशमन्यै नमः 

3. ह्रीं दुर्गापद्विनिवारिण्यै नमः 

4. ह्रीं दुर्गमच्छेदिन्यै नमः 

5. ह्रीं दुर्गसाधिन्यै नमः 

6. ह्रीं दुर्गनाशिन्यै नमः 

7. ह्रीं दुर्गतोद्धारिण्यै नमः 

8. ह्रीं दुर्गनिहन्त्र्यै नमः 

9. ह्रीं दुर्गमापहायै नमः 

10. ह्रीं दुर्गमज्ञानदायै नमः 

11. ह्रीं दुर्गदैत्यलोदवानलायै नमः 

12. ह्रीं दुर्गमायै नमः 

13. ह्रीं दुर्गमालोकायै नमः 

14. ह्रीं दुर्गामात्मस्वरूपिण्यै नमः 

15. ह्रीं दुर्गमार्गप्रदायै नमः 

16. ह्रीं दुर्गमविद्यायै नमः 

17. ह्रीं दुर्गमाश्रितायै नमः 

18. ह्रीं दुर्गमज्ञानसंस्थानायै नमः 

19. ह्रीं दुर्गमध्यानभासिन्यै नमः 

20. ह्रीं दुर्गमोहायै नमः 

21. ह्रीं दुर्गमगायै नमः 

22. ह्रीं दुर्गमार्थस्वरूपिण्यै नमः 

23. ह्रीं दुर्गमासुरसंहन्त्र्यै नमः 

24. ह्रीं दुर्गमायुधधारिण्यै नमः 

25. ह्रीं दुर्गमांग्यै नमः 

26. ह्रीं दुर्गमतायै नमः 

27. ह्रीं दुर्गम्यायै नमः 

28 . ह्रीं दुर्गमेश्वर्यै नमः 

29 . ह्रीं दुर्गभीमायै नमः 

30 . ह्रीं दुर्गभामायै नमः 

31 . ह्रीं दुर्गभायै नमः 

32 . ह्रीं दुर्गदारिण्यै नमः


फिर अंत में एक आचमनी जल चढ़ाये और प्रार्थना करें कि महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपा  श्री दुर्गा जी मुझ पर कृपालु हों।  


रुद्राक्ष माला से नवार्ण मन्त्र का यथाशक्ति जाप करे 

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे 

(ऐम ह्रीम क्लीम चामुंडायै विच्चे ऐसा उच्चारण है, गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अनुसार इसके प्रारम्भ में प्रणव अर्थात ॐ लगाने की जरुरत नहीं है )


या फिर रुद्राक्ष माला से दुर्गा अष्टाक्षरी  का यथाशक्ति जाप करे

ॐ ह्रींम दुं दुर्गायै नम: 


रोज एक ही संख्या में जाप करे। 

एक माला जाप की संख्या 100 मानी जाती है चाहे 

माला में 108 दाने ही क्यों ना हो।  

अपनी क्षमतानुसार १,३,५,७, ९,११,२१, ५१,१०१, माला जाप करे। 

अंत में कान पकड़कर किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करे . 


भगवती का थोड़ी देर तक आँखे बंद कर ध्यान करे और वहीँ बैठे रहें।  

अंत में नमश्चण्डिकायै का 11 बार जाप करे और आसन को प्रणाम करके उठ जाएँ।  


रोगों के प्रशमन में सहायक महाकाली मंत्र

 

  


॥ ॐ ह्रीं क्रीं मे स्वाहा ॥


  • यह सर्वविध रोगों के प्रशमन में सहायक होता है.
  • इसका प्रभाव भी महामृत्युंजय मंत्र के समान प्रचंड है .
  • यथा शक्ति जाप करें.

रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल

 रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल 


रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है रूद्र और अक्ष । 

रुद्र = शिव, अक्ष = आँख 

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के आंखों से गिरे हुए आनंद के आंसुओं से रुद्राक्ष के फल की उत्पत्ति हुई थी । 

रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक पाए जाते हैं । 

रुद्राक्ष साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण चीज है लगभग सभी साधनाओं में रुद्राक्ष की माला को स्वीकार किया जाता है एक तरह से आप इसे माला के मामले में ऑल इन वन कह सकते हैं 


अगर आप तंत्र साधनाएं करते हैं या किसी की समस्या का समाधान करते हैं तो आपको रुद्राक्ष की माला अवश्य पहननी चाहिए ।


यह एक तरह की आध्यात्मिक बैटरी है जो आपके मंत्र जाप और साधना के द्वारा चार्ज होती रहती है और वह आपके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा घेरा बनाकर रखती है जो आपकी रक्षा तब भी करती है जब आप साधना से उठ जाते हैं और यह रक्षा मंडल आपके चारों तरफ दिनभर बना रहता है ।

पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे सुलभ और सस्ते होते हैं । जैसे जैसे मुख की संख्या कम होती जाती है उसकी कीमत बढ़ती जाती है । एक मुखी रुद्राक्ष सबसे दुर्लभ और सबसे महंगे रुद्राक्ष है । इसी प्रकार से पांच मुखी रुद्राक्ष के ऊपर मुख वाले रुद्राक्ष की मुख की संख्या के हिसाब से उसकी कीमत बढ़ती जाती है । 21 मुखी रुद्राक्ष भी बेहद दुर्लभ और महंगे होते हैं ।

पांच मुखी रुद्राक्ष सामान्यतः हर जगह उपलब्ध हो जाता है और आम आदमी उसे खरीद भी सकता है पहन भी सकता है । पाँच मुखी रुद्राक्ष के अंदर भी आध्यात्मिक शक्तियों को समाहित करने के गुण होते हैं ।


गृहस्थ व्यक्ति , पुरुष या स्त्री , पांच मुखी रुद्राक्ष की माला धारण कर सकते हैं और अगर एक दाना धारण करना चाहे तो भी धारण कर सकते हैं ।

रुद्राक्ष की माला से बीपी में भी अनुकूलता प्राप्त होती है


रुद्राक्ष पहनने के मामले में सबसे ज्यादा लोग नियमों की चिंता करते हैं ।

मुझे ऐसा लगता है कि जैसे भगवान शिव किसी नियम किसी सीमा के अधीन नहीं है, उसी प्रकार से उनका अंश रुद्राक्ष भी परा स्वतंत्र हैं । उनके लिए किसी प्रकार के नियमों की सीमा का बांधा जाना उचित नहीं है


रुद्राक्ष हर किसी को सूट नहीं करता यह भी एक सच्चाई है और इसका पता आपको रुद्राक्ष की माला पहनने के महीने भर के अंदर चल जाएगा । अगर रुद्राक्ष आपको स्वीकार करता है तो वह आपको अनुकूलता देगा ।

आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा आपको अपने शरीर में ज्यादा चेतना में महसूस होगी......

आप जो भी काम करने जाएंगे उसमें आपको अनुकूलता महसूस होगी ....

ऐसी स्थिति में आप रुद्राक्ष को धारण कर सकते हैं वह आपके लिए अनुकूल है !!!


इसके विपरीत स्थितियाँ होने से आप समझ जाइए कि आपको रुद्राक्ष की माला नहीं पहननी है ।


इसके बाद सबसे ज्यादा संशय की बात होती है कि रुद्राक्ष असली है या नहीं है । आज के युग में 100% शुद्धता की बात करना बेमानी है । ऑनलाइन में कई प्रकार के सर्टिफाइड रुद्राक्ष भी उपलब्ध है । उनमें से भी कई नकली हो सकते हैं, ऐसी स्थिति में मेरे विचार से आप किसी प्रामाणिक गुरु से या आध्यात्मिक संस्थान से रुद्राक्ष प्राप्त करें तो ज्यादा बेहतर होगा ।




तमिलनाडु में कोयंबटूर नामक स्थान पर सद्गुरु के नाम से लोकप्रिय आध्यात्मिक संत जग्गी वासुदेव जी के द्वारा ईशा फाउंडेशन नामक एक संस्था की स्थापना की गई है । जो आदियोगी अर्थात भगवान शिव के गूढ़ रहस्यों को जन जन तक पहुंचाने के लिए निरंतर गतिशील है । उनके द्वारा एक अद्भुत और संभवतः विश्व के सबसे बड़े पारद शिवलिंग की स्थापना भी की गई है । यही नहीं एक विशालकाय आदियोगी भगवान शिव की प्रतिमा का भी निर्माण किया गया है , जिसके प्रारंभ के उत्सव में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी उपस्थित थे ।


ईशा फाउंडेशन के द्वारा कुछ विशेष अवसरों पर निशुल्क प्राण प्रतिष्ठित रुद्राक्ष भी उपलब्ध कराए जाते हैं जैसा कि शिवरात्रि के अवसर पर इस वर्ष किया गया था ।


इसके अलावा रुद्राक्ष की छोटे मनको वाली और बड़े मनको वाली माला जोकि सदगुरुदेव द्वारा प्राण प्रतिष्ठित होती है, वह आप ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं । ज्यादा जानकारी के लिए आप ईशा फाउंडेशन गूगल में सर्च करके देख सकते हैं ।

उनकी वेबसाइट का एड्रेस है . 

https://www.ishalife.com/in/


4 अक्तूबर 2021

सिद्धकुंजिका स्तोत्रम

 

सिद्धकुंजिका स्तोत्रम

शिव उवाच -----

श्रूणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम !

येन मंत्रप्रभावेण चण्डीजाप: शुभो भवेत !!१!!

न कवचं न अर्गला स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम !

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वा अर्चनं !!२!!

कुंजिका पाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत !

अति गुह्यतरं देवी देवानामपि दुर्लभं  !!३!!

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति !

मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनं उच्चाटनादिकम !

पाठ मात्रेण संसिद्धयेत कुंजिकास्तोत्रं उत्तमम !! ४ !! 

        अथ मंत्र : 

  ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे !!

ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा !! इति मंत्र: !!


=====**

नमस्ते रुद्ररुपिण्ये नमस्ते मधुमर्दिनि !

नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि !

नमस्ते शुभहंत्र्यै च निशुंभासुरघातिनि !

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे !

ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका !

क्लींकारी कामरुपिण्यै बीजरुपे नमोस्तुते !

चामुंडा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनि !

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररुपिणि !

धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी !

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु !

हुं हुं हुंकाररुपिण्यै जं जं जं जंभनादिनी !

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नम: !

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं !

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा !

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा !

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धीं कुरुष्व मे !

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इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे !!

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति !!

यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत !!

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा !!

इति श्री रुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम !!


इसका उच्चारण यहाँ देख सकते हैं 




कामाख्या शक्ति पीठ का दुर्लभ प्रसाद

  







असम के कामाख्या शक्तीपीठ को तंत्र साधनाओं का मूल माना जाता है । ऐसा माना जाता है की यहाँ देवी का योनि भाग गिरा था और इसे योनि पीठ या मातृ पीठ की मान्यता है ।

यहाँ का प्रमुख पर्व है अंबुवाची मेला जब प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।

चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं।

https://www.amarujala.com/spirituality/religion/kamakhya-mandir-ambubachi-mela



यदि आपको इस वस्त्र का एक धागा भी मिल जाये तो उसके निम्न लाभ माने जाते हैं :-

इसे ताबीज मे भरकर पहन लें तंत्र बाधा यानि किए कराये का असर नहीं होगा।
यह सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
इसे धरण करने से आकर्षण बढ़ता है।
आपसी प्रेम मे वृद्धि तथा गृह क्लेश मे कमी आती है ।
इसे साथ रखकर किसी भी कार्य या यात्रा मे जाएँ तो सफलता की संभावना बढ़ जाएगी ।
दुकान के गल्ले मे लाल कपड़े मे बांध कर रखें तो व्यापार मे अनुकूलता मिलेगी । 

3 अक्तूबर 2021

स्वयंसिद्ध महाकाली सर्व रक्षा मन्त्र

 ।। हुं हुं ह्रीं ह्रीं कालिके घोर दन्ष्ट्रे प्रचन्ड चन्ड नायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हुं फट ।।



  1. स्वयंसिद्ध मन्त्र है.
  2. तंत्र बाधा की काट , भूत बाधा आदि में लाभ प्रद है .
  3. नवरात्रि मे ज्यादा लाभदायक है . 
  4. १०८ या १००८ की संख्या में जाप करके इसका प्रयोग करें .
  5. इस मन्त्र का जाप करके रक्षा सूत्र बान्ध सकते हैं. 
  6. विभिन्न प्रकार के रक्षा घेरे के निर्माण मे भी सहायक सिद्ध मन्त्र है


आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं 





2 अक्तूबर 2021

गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी : बगलामुखी साधना

 



Narayan Dutt Shrimali Ji महा काली स्वरुप साधन - भाग १ (दुर्लभ वीडियो) Ma...

महाकाली साधना

 


महाकाली साधना 
नियम 
तर्क 
और 
व्याख्या 
से परे है 

इसलिए निम्नलिखित मन्त्रों का जाप आप अपनी श्रद्धानुसार जैसा बन सके वैसा करें , 

श्रद्धानुसार आपको महामाया महाकाली की कृपा प्राप्त होगी.

|| क्रीं ||


|| ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ॐ ||


|| ॐ क्लीं क्लीं क्लीं कृष्णाये नमः ||



1 अक्तूबर 2021

Sadgurudev Narayan Dutt Shrimali Ji महाकाली साधना शिबिर, १९८५ (१)


महाकाली साधना के रहस्यों को खोलता हुआ गुरुदेव का उद्बोधन


सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना

 


॥ ॐ क्लीं दुर्गायै नमः ॥

  • यह काम बीज से संगुफ़ित दुर्गा मन्त्र है.
  • यह सर्वकार्यों में लाभदायक है.
  • इसका जाप आप नवरात्रि में चलते फ़िरते भी कर सकते हैं.
  • अनुष्ठान के रूप में २१००० जाप करें.
  • २१०० मंत्रों से हवन नवमी को करें.
  • विशेष लाभ के लिये विजयादशमी को हवन करें.
  • सात्विक आहार आचार विचार रखें ।
  • हर स्त्री को मातृवत सम्मान दें ।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें । 

30 सितंबर 2021

नवार्ण महामंत्र

   


नवार्ण महामंत्र 

नवार्ण महामंत्र 

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महादुर्गे नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके नवचंडी महामाये महामोहे महायोगे निद्रे जये मधुकैटभ विद्राविणि महिषासुर मर्दिनी धूम्रलोचन संहंत्री चंड मुंड विनाशिनी रक्त बीजान्तके निशुम्भ ध्वंसिनी शुम्भ दर्पघ्नी देवि अष्टादश बाहुके कपाल खट्वांग शूल खड्ग खेटक धारिणी छिन्न मस्तक धारिणी रुधिर मांस भोजिनी समस्त भूत प्रेतादी योग ध्वंसिनी ब्रह्मेंद्रादी स्तुते देवि माम रक्ष रक्ष मम शत्रून नाशय ह्रीं फट ह्वुं फट ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ||
  • यथाशक्ति जाप नित्य करें |
  • सर्वमनोकामना पूरक मन्त्र है |

बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र

    


बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र

ॐ नमो भगवति चामुण्डे नरकंक गृध्रोलूक परिवार सहिते श्मशानप्रिये नररुधिरमांस चरु भोजन प्रिये ! सिद्ध विद्याधर वृन्द वंदित चरणे बृह्मेशविष्णु वरुण कुबेर भैरवी भैरव प्रिये इन्द्रक्रोध विनिर्गत शरीरे द्वादशादित्य चण्डप्रभे अस्थि मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रं दक्षिण दिशि आगच्छ आगच्छ, मानय मानय, नुद नुद, सर्व शत्रुणां मारय मारय, चूर्णय चूर्णय, आवेशय आवेशय, त्रुट त्रुट, त्रोटय त्रोटय, स्फुट स्फुट, स्फोटय स्फोटय, महाभूतान् जृम्भय जृम्भय, ब्रह्मराक्षसान उच्चाटय उच्चाटय, भूत प्रेत पिशाचान् मूर्च्छय मूर्च्छय, मम शत्रुन उच्चाटय उच्चाटय,  शत्रून चूर्णय चूर्णय, सत्यं कथय कथय, वृक्षेभ्यः संन्नाशय संन्नाशय अर्कं स्तंभय स्तंभय , गरुड पक्षपातेन विषं निर्विषं कुरु कुरु, लीलांगालयवृक्षेभ्यः परिपातय परिपातय, शैलकाननमहीं मर्दय मर्दय, मुखं उत्पाटय उत्पाटय, पात्रं पूरय पूरय, भूतभविष्यं यत्सर्व कथय कथय, कृन्त कृन्त, दह दह, पच पच, मथ मथ, प्रमथ प्रमथ, घर्घर घर्घर, ग्रासय ग्रासय, विद्रावय विद्रावय उच्चाटय उच्चाटय, विष्णुचक्रेण वरुणपाशेन इन्द्रवज्रेण ज्वरं नाशय नाशय, प्रविदं स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून मम वशं कुरु कुरु, पातालं प्रत्यंतरिक्षं आकाशग्रहं आनय आनय, करालि विकरालि महाकालि, रुद्रशक्ते पूर्वदिशं निरोधय निरोधयपश्चिमदिशं स्तम्भय स्तम्भयदक्षिणदिशं निधय निधयउत्तरदिशं बंधय बंधय, ह्रां ह्रीं ॐ बंधय बंधय, ज्वालामालिनी स्तम्भिनी मोहिनि, मुकुट विचित्र कुण्डल नागादि वासुकी कृत हारभूषणे मेखला चन्द्रार्कहास प्रभंजने विद्युत्स्फुरित सकाश साट्टहास निलय निलय, हुं फट्, हुं फट् विजृंभित शरीरे सप्तद्वीप कृते ब्रह्माण्ड विस्तारित स्तन युगले असि मुसल परशु तोमर क्षुरिपाश हलेषु वीरान् शमय शमय, सहस्त्र बाहु परापरादिशक्ति विष्णु शरीरे, शंकर ह्रदयेश्वरी बगलामुखी ! सर्वदुष्टान् विनाशय विनाशय, हुं फट् स्वाहा ।

ॐ ह्लीं बगलामुखी ये केचनापकारिणः सन्ति, तेषां वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय, जिह्वां कीलय कीलय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, ह्रीं ॐ स्वाहा !

ॐ ह्रीं हिली हिली सर्व शत्रुणां वाचं मुखं पदं स्तम्भय , शत्रुजिह्वां कीलय, शत्रूणां दृष्टिमुष्टि गति मति दंत तालु जिह्वां बंधय बंधय, मारय मारय, शोषय शोषय हुं फट् स्वाहा ।

 महाविद्या बगलामुखी की कृपा प्रदान करता है । 

स्तोत्र है इसलिए वे भी कर सकते हैं जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है । लेकिन वे नित्य 11 पाठ से ज्यादा ना करें । 

नित्य क्षमतानुसार 1,3,5,7,9,11,16,21,33,51,108 पाठ करें ।


सामने सरसों के तेल का दीपक लगा लें । 
रात्री काल बेहतर है । 
पीले रंग का आसन और वस्त्र  । 
सात्विक विद्या है । 
ब्रह्मचर्य का पालन करें । 
सात्विक आचार विचार व्यवहार रखें  । 
नशा और मांसाहार निषेध है । 
उत्तर या पूर्व दिशा की ओर देखते हुए करें । 
शत्रु बाधा निवारण, तथा सर्वविध रक्षा के लिए उपयोगी है । 
नवरात्रि मे ज्यादा लाभ प्रदायक है । 

विधि :-

पहले दिन हाथ मे जल लेकर इच्छा बोलेंगे और माता के चरणों मे छोड़ देंगे । 

गुरु बनाया हो तो एक माला गुरु मंत्र की करें । 
अगर गुरु न हो तो एक माला निम्नलिखित मंत्र की करें :
।। ॐ गुं  गुरुभ्यो नमः ।। 

गुरु मंत्र का जाप रुद्राक्ष या किसी भी माला से कर सकते हैं । 

उसके बाद "ह्लीं " [ hleem ] मंत्र का उच्चारण करते हुए अपने शरीर को सर से पाँव तक छू लेंगे और ऐसी भावना करेंगे कि देवी बगलामुखी आपके शरीर मे स्थापित हो रही हैं । 
इसके बाद पाठ प्रारंभ करें । 
पाठ की गिनती आप किसी भी चीज से कर सकते हैं , कागज पेंसिल पर भी कर सकते हैं । 

आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

 

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