ü किसी साधना को करने से पहले दीक्षा लेना चाहिए ऐसा क्यों कहा जाता है ?
§ यह एक सामान्य प्रश्न है जो हर किसी के दिल में उठता है .गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के सानिध्य में मिले अपने अल्प ज्ञान के द्वारा थोडा सा प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूँ :-
§ साधना से शरीर में उर्जा [ एनर्जी फील्ड ] उठती है, इसको नियंत्रित रखना जरुरी होता है.
§ कई बार ऐसा अनुभव होता है जैसे तेज बुखार चढ़ गया हो .
§ जब साधनात्मक उर्जा अनियंत्रित होती है तो वह अनियंत्रित उर्जा दो तरह से बह सकती है प्रथम तो वासना के रूप में दूसरी क्रोध के रूप में, ये दोनों ही प्रवाह साधक को दुष्कर्म के लिए प्रेरित करते हैं.इसे नियंत्रित करने का काम गुरु करता है.
§ गुरु दीक्षा के द्वारा गुरु अपने शिष्य के साथ एक लिंक जोड़ देता है . जब भी साधनात्मक उर्जा बढ़ कर साधक के लिए परेशानी का कारण बनने की संभावना होती है तब गुरु उस उर्जा को नियंत्रित करने का काम करता है और शिष्य सुरक्षित रहता है.
§ कई बार मन्त्र जाप करते करते ऐसी स्थिति आती है कि साधक को छूने से बिजली के हल्के झटके जैसा एहसास भी होता है .
§ हर मंत्र अपने आप में एक विशेष प्रकार का एनर्जी फील्ड पैदा करता है. यह फील्ड साधक के शरीर के इर्दगिर्द घूमता है.
§ हर मंत्र हर साधक के लिए अनुकूल नहीं होता , यदि वह अनुकूल मंत्र का जाप करता है तो उसे लाभ मिलता है अन्यथा हानि भी हो सकती है.
§ गुरु एक ऐसा व्यक्ति होता है जो विभिन्न साधनाओं में सिद्धहस्त होता है, उसे यह पता होता है की किस साधना का एनर्जी फील्ड किस साधक के अनुकूल होगा . इस बात को ध्यान में रखकर गुरु, उसके अनुकूल मंत्र अपने शिष्य को प्रदान करता है.
§ वर्त्तमान में डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के शिष्य गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी विभिन्न साधनाओं से सम्बंधित दीक्षाएं प्रदान कर साधकों का साधनात्मक मार्ग दर्शन कर रहे हैं.
§ यदि आप भी किसी प्रकार की साधना के बारे में मार्गदर्शन या दीक्षा प्राप्त करने के इच्छुक हैं तो फोन पर संपर्क करें तथा समय ले लें :-
§ समय = सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक
गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी
तथा गुरुमाता डॉ. साधना सिंह
साधना सिद्धि विज्ञान
जैस्मिन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी, जे.के.रोड, भोपाल [म.प्र.] 462011
phone -[0755]-4283681, [0755]-4269368,[0755]-4221116
साधना कौन कर सकता है ?
§ सनातन धर्म में जाति या धर्म
का कोई बंधन नही माना जाता है.
§ किसी भी जाति या धर्म का
व्यक्ति जो सनातन धर्म पर निष्ठा रखता है, देवी देवताओं पर विश्वास रखता है वह
साधनायें कर सकता है.
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क्या गुरु के बिना भी साधनायें की जा सकती हैं ?
§ गुरु के बिना साधनायें
स्तोत्र तथा सहस्रनाम पाठ के रूप में की जा सकती हैं.
§ मंत्र की सिद्धि के लिये गुरु
का होना जरूरी माना गया है.
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गुरु का साधनाओं में क्या महत्व है ?
§ गुरु का तात्पर्य एक ऐसे
व्यक्ति से है जो आपको भी जानता है और देवताओं को भी जानता है.
§ वह साधना के मार्ग पर चला है
इसलिये आपको वह मार्ग बता सकता है.
§ मंत्र साधनाओं से शरीर में
उर्जा का संचार होने लगता है, इस उर्जा को सही दिशा में ले जाना जरूरी होता
है जो केवल और केवल गुरु ही कर सकता है.
§ गुरु भी पहले शिष्य होता है, वह अपने गुरु के
सानिध्य में साधना कर गुरुत्व को प्राप्त होता है.
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क्या साधनाओं से जीवन की समस्याओं का समाधान हो सकता
है ?
§ साधनाओं से जीवन की विविध
समस्याओं का समाधान का मार्ग मिलता है.
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क्या आज भी देवी देवताओं का प्रत्यक्ष दर्शन हो सकता
है ?
§ हाँ आज भी देवी देवताओं का
प्रत्यक्ष दर्शन संभव है.
§ इसके लिए तीन बातें अनिवार्य
हैं : -
§ एक सक्षम गुरु का शिष्यत्व.
§ इष्ट और मंत्र में पूर्ण
विश्वास.
§ शुद्ध ह्रदय से लगन और समर्पण
के साथ साधना.
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कुछ साधनाओं में ब्रह्मचर्य को अनिवार्य क्यों माना
जाता है ?
§ ब्रह्मचर्य से शरीर का आतंरिक
बल बढ़ता है,
§ उग्र साधनाएँ जैसे बजरंग बली
या भैरव साधना में यह आतंरिक बल साधक को जल्द सफलता दिलाता है.
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क्या साधनाओं के द्वारा विवाह बाधा का निवारण संभव
है ?
§ मातंगी , हरगौरी, तथा शिव साधनाओं के द्वारा विवाह बाधा दूर हो सकती है.
§ इनका फल तब ज्यादा होता है जब
वही व्यक्ति साधना करे जिसके विवाह में बाधा आ रही है.
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क्या साधनाओं से धन की प्राप्ति संभव है ?
§ साधना के द्वारा आसमान से धन
गिरने जैसा चमत्कार नहीं होता है .
§ लक्ष्मी,कुबेर ,जैसी साधनाएँ
करने से धनागमन के मार्ग अवश्य खुलने लगते हैं.
§ इसमें साधक को प्रयत्न तो
स्वयं करना होता है , लेकिन सफलता दैवीय कृपा से जल्द मिलने लगती है.
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क्या यन्त्र चमत्कारी होते हैं ?
§ यन्त्र मात्र एक धातु का
टुकड़ा होता है जिसपर सम्बंधित देवी या देवता का यन्त्र अंकित होता है.
§ यह चमत्कारी नहीं होता यदि
ऐसा होता तो श्री यंत्र रखने वाला हर व्यक्ति धनवान होना चाहिये. लेकिन ऐसा नही
होता.
§ यंत्र की भी प्राण प्रतिष्ठा
करनी पडती है.
§ जब एक उच्च कोटि का गुरु या
साधक उसका पूजन करके उस देवी या देवता की प्राण प्रतिष्टा यन्त्र में करता है तब
वह चमत्कारी बन जाता है.
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तांत्रिक विग्रह क्या है ? उसके क्या
लाभ हैं ?
§ तांत्रिक विग्रह देवी या
देवता के तांत्रोक्त स्वरूप होते है.
§ इनका निर्माण जिस पदार्थ
/धातु/रत्न से किया जाता है वह उस देवी या देवता की कृपा प्राप्ति को और सहज बना
देता है.
§ यूं समझ लें कि ८० प्रतिशत
काम ऐसे विग्रह की स्थापना से ही हो जाता है. बाकी २० प्रतिशत काम उसके पूजन
द्वारा हो जाता है.
§ ऐसे विग्रह दुर्लभ हैं . मगर
इनकी स्थापना और पूजन से कार्य सिद्धि निश्चित रूप से होती है.
§ कुछ तांत्रिक विग्रह हैं:-
§ पारद शिवलिंग.
§ पारद काली.
§ पारद लक्ष्मी.
§ पारद श्री यंत्र.
§ पारद कवच.
§ रत्न निर्मित
गणपति/काली/लक्ष्मी/शिवलिंग.
§ श्वेतार्क गणपति.
§ तांत्रोक्त काली/भैरवि/योगिनी
विग्रह. इत्यादि
ये विग्रह अपने गुरुदेव के निर्देशानुसार ही प्राप्त /स्थापित और पूजित करें.
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