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29 अक्तूबर 2024

महालक्ष्मी का सहोदर : दक्षिणवर्ती शंख

 दक्षिणावर्ती शंख : महालक्ष्मी का सहोदर 

लक्ष्मी साधना का सबसे दिव्य मुहूर्त है दीपावली ! इस दिन विभिन्न प्रकार के प्रयोग संपन्न करके आप अपने जीवन में लक्ष्मी की उपस्थिति सुनिश्चित कर सकते हैं ।
लक्ष्मी को समुद्र से उत्पन्न माना जाता है इसलिए समुद्र से उत्पन्न निर्मित पदार्थ उनके सहोदर माने जाते हैं और इसमें सबसे महत्वपूर्ण होता है शंख । प्रकार के होते हैं लेकिन इसमे सबसे महत्वपूर्ण होता है दक्षिणावर्ती शंख !



यह शंख सामान्य शंख से उल्टा होता है , यानि शंख के पतले हिस्से को आप अपनी तरफ रखेंगे तो उसका गड्ढा दाहिने तरफ की बजाये बाएं तरफ होता है, और यह उससे काफी महंगा होता है । इसे घर में रखने मात्र से धन की और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है । आजकल नकली शंख भी बहुत मात्रा में उपलब्ध हैं इसलिए किसी प्रामाणिक स्थान से ही इसे प्राप्त करें अन्यथा आप को पूर्ण लाभ नहीं होगा ।

दक्षिणावर्ती शंख का पूजन
दक्षिणावर्ती शंख का पूजन कई प्रकार से किया जा सकता है और आगे की पंक्तियों में नए सरल पूजन विधि बता रहा हूं जिसका प्रयोग आप कर सकते हैं .

यह विधि बेहद सरल है और आप इसे किसी भी प्रकार के शंख के ऊपर प्रयोग कर सकते हैं लेकिन दक्षिणावर्ती शंख के ऊपर प्रयोग करने से यह ज्यादा प्रभावी होता है ।


अक्षत अर्थात बिना टूटे हुए चावल रख ले । इसकी मात्रा शंख के आकार के अनुसार तय करें । यह इतना होना चाहिए कि शंख पूरा भर जाए । शंख पूरा भर जाए तो आप उसे चांदी के वर्क से या सोने के वर्क से जो आपकी क्षमता हो लपेट लें । उसके बाद उसे एक सुंदर लाल कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी या पूजा स्थान में रखें । हो सके तो नित्य उसका दर्शन करें ।
कोशिश करें कि आपके अलावा कोई और उसे खुला ना देख पाए ।

दीपावली के दिन स्थिर लग्न के विषय में गूगल में, पेपर में या पंचांग में देख तय कर लेंगे ।

इस पूजन के लिए आपको कुछ चीजें लगेंगी

पहला है बिना टूटे हुए चावल यानि अक्षत। इसके अलावा शंख को लपेटने के लिए लाल कपड़ा और उसे रखने के लिए एक तांबे या कांसे की थाली भी लगेगी । शंख को आखिरी में लपेटने के लिए चांदी का वर्क भी लगेगा । 

पूजा स्थान में गुरुचित्र,लक्ष्मी का चित्र / श्री यंत्र / शंख/ महाविद्या यन्त्र या फोटो जो भी उपलब्ध हो वह रखें ।

गुरु को प्रणाम करें ।
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः

इसके बाद भगवान गणेश को याद करें और उन्हें पूजा में सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करने की प्रार्थना करें ।

ॐ श्री गणेशाय नमः

भगवान भैरव को याद करें और पूजन की रक्षा करने की प्रार्थना करें ।

ॐ भ्रम भैरवाय नमः ।
इसके बाद तंत्र के अधिपति भगवान शिव और मां जगदंबा को ज्ञात करें उन्हें प्रणाम करें उनसे आशीर्वाद लें कि आपको पूजन में सफलता प्राप्त हो और भगवती महालक्ष्मी आपकी पूजा को स्वीकार कर अनुकूलता प्रदान करें ।

ॐ सांब सदाशिवाय नमः

देवी महालक्ष्मी से प्रार्थना करें कि मैं आपका पूजन करने जा रहा हूं और आप मुझे इसके लिए अनुमति प्रदान करें
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः


इसके बाद देवी लक्ष्मी का ध्यान करें ।
महालक्ष्मी ध्यान
------------
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गंभीरावर्तनाभिस्तनभारनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया
या लक्ष्मी दिव्यरुपै मणि गण खचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः
सानित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता

इस प्रकार से महालक्ष्मी का आह्वान करने के बाद ऐसी भावना करें कि वे अपने दिव्य स्वरुप में आपके घर में ! आपके कुल में !! आपके पूजा स्थान में !!! आकर स्थापित हो रही हैं और आपको अपने आशीर्वाद से आप्लावित कर रही हैं ....

अब निम्नलिखित लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते हुए थोड़ा थोड़ा चावल शंख के अंदर तब तक डालते रहे जब तक वह भरकर छलक ना जाए । जब वह पूरा भर जाए तब उसके ऊपर चाँदी के वर्क को लपेट देंगे और उसके बाद लाल कपड़े से उसे बांध देंगे । यह आपको लक्ष्मी की कृपा प्रदान करेगा । नित्य उसके दर्शन करें और एक बार महालक्ष्मी मंत्र का उच्चारना करें । 

.. ॐ श्री ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नमः .. 

om shreem hreem shreem mahalaxmaiye namah 

अघोर महालक्ष्मी यंत्र

 



गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी द्वारा प्रदत्त 108 महालक्ष्मी यंत्र
आवश्यक सामग्री.
  1. भोजपत्र 
  2. अष्टगंध
  3. कुमकुम.
  4. चांदी की लेखनी , चांदी के छोटे से तार से भी लिख सकते हैं.
  5. उचित आकार का एक ताबीज जिसमे यह यंत्र रख कर आप पहन सकें.
  6. दीपावली की रात या किसी भी अमावस्या की रात को कर सकते हैं.

विधि विधान :-

  • धुप अगर बत्ती जला दें.
  • संभव हो तो घी का दीपक जलाएं.
  • रात्रि 11 बजे के बाद , स्नान कर के बिना किसी वस्त्र का स्पर्श किये पूजा स्थल पर बिना किसी आसन के जमीन पर बैठें.
  • मेरे परम श्रद्धेय सदगुरुदेव डॉ.नारायण दत्त श्रीमाली जी को प्रणाम करें.

  • 1 माला गुरु मंत्र का जाप करें " ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ". उनसे पूजन को सफल बनाने और आर्थिक अनुकूलता प्रदान करने की प्रार्थना करें.
  • इस यन्त्र का निर्माण अष्टगंध से भोजपत्र पर करें.
  • इस प्रकार 108 बार श्रीं [लक्ष्मी बीज मंत्र] लिखें.
  • हर मन्त्र लेखन के साथ मन्त्र का जाप भी मन में करतेरहें.
  • यंत्र लिख लेने के बाद 108 माला " ॐ श्रीं ॐ " मंत्र का जाप यंत्र के सामने करें.
  • एक माला पूर्ण हो जाने पर एक श्रीं के ऊपर कुमकुम की एक बिंदी लगा दें.
  • इस प्रकार १०८ माला जाप जाप पूरा होते तक हर "श्रीं"  पर बिंदी लग जाएगी. 
  • पुनः 1 माला गुरु मंत्र का जाप करें " ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ".
  • जाप पूरा हो जाने के बाद इस यंत्र को ताबीज में डाल कर गले में धारण कर लें.
  • कोशिश यह करें की इसे न उतारें.
  • उतारते ही इसका प्रभाव ख़तम हो जायेगा. ऐसी स्थिति में इसे जल में विसर्जित कर देना चाहिए . अपने पास नहीं रखना चाहिए. अगली अमावस्या को आप इसे पुनः कर सकते हैं.
आर्थिक अनुकूलता प्रदान करता है.धनागमन का रास्ता खुलता है.महालक्ष्मी की कृपा प्रदायक है.

28 अक्तूबर 2024

महालक्ष्मी के 108 नाम से पूजन

     

श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशतनाम या महालक्ष्मी के 108 नाम  


सबसे पहले महालक्ष्मी जी को हाथ जोड़कर ध्यान करलें :-



सरसिज निलये सरोज हस्ते धवलतरांशुक गन्ध माल्य शोभे ।

भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥


हिन्दी भावार्थ - हे महामाया महालक्ष्मी ! आप कमल फूलो से भरे हुए वन में निवास करनेवाली हो, आपके हाथों में सुंदर कमल है। आपके वस्त्र अत्यन्त उज्ज्वल हैं । आपके दिव्य देह पर अत्यंत मनोहर गन्ध और सुंदर सुंदर मालाएँ डाली हुई हैं । हे भगवान श्री हरी की प्रिया आपका स्वरूप अत्यंत मनमोहक है । आपकी कृपा से त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्राप्त हो सकता है आप मुझपर प्रसन्न होकर कृपा करें । 

ऐसा ध्यान करेंगे । 


इसके बाद अपने पूजा स्थान/दुकान/ एकांत कक्ष मे अपने सामने लक्ष्मी चित्र/ यंत्र/ श्रीयंत्र/ चाँदी सिक्का/ लक्ष्मी मूर्ति (जो आपके पास उपलब्ध हो ) रखकर भगवती लक्ष्मी के 108 नामों का उच्चारण करें और हर बार नम:  के साथ फूल /कुमकुम/ चावल/ अष्टगंध चढ़ाएं । 


  1. ॐ श्रीं अदित्यै नमः ।

  2. ॐ श्रीं अनघायै नमः ।

  3. ॐ श्रीं अनुग्रहप्रदायै नमः ।

  4. ॐ श्रीं अमृतायै नमः ।

  5. ॐ श्रीं अशोकायै नमः ।

  6. ॐ श्रीं आह्लादजनन्यै नमः ।

  7. ॐ श्रीं इन्दिरायै नमः ।

  8. ॐ श्रीं इन्दुशीतलायै नमः । 

  9. ॐ श्रीं उदाराङ्गायै नमः ।

  10. ॐ श्रीं कमलायै नमः ।

  11. ॐ श्रीं करुणायै नमः ।

  12. ॐ श्रीं कान्तायै नमः ।

  13. ॐ श्रीं कामाक्ष्यै नमः ।

  14. ॐ श्रीं क्रोधसम्भवायै नमः ।

  15. ॐ श्रीं चतुर्भुजायै नमः ।

  16. ॐ श्रीं चन्द्ररूपायै नमः ।

  17. ॐ श्रीं चन्द्रवदनायै नमः ।

  18. ॐ श्रीं चन्द्रसहोदर्यै नमः ।

  19. ॐ श्रीं चन्द्रायै नमः ।

  20. ॐ श्रीं जयायै नमः ।

  21. ॐ श्रीं तुष्टयै नमः । 

  22. ॐ श्रीं त्रिकालज्ञानसम्पन्नायै नमः ।

  23. ॐ श्रीं दारिद्र्यध्वंसिन्यै नमः ।

  24. ॐ श्रीं दारिद्र्यनाशिन्यै नमः । 

  25. ॐ श्रीं दित्यै नमः ।

  26. ॐ श्रीं दीप्तायै नमः ।

  27. ॐ श्रीं देव्यै नमः ।

  28. ॐ श्रीं धनधान्यकर्यै नमः ।

  29. ॐ श्रीं धन्यायै नमः ।

  30. ॐ श्रीं धर्मनिलयायै नमः ।

  31. ॐ श्रीं नवदुर्गायै नमः ।

  32. ॐ श्रीं नारायणसमाश्रितायै नमः ।

  33. ॐ श्रीं नित्यपुष्टायै नमः ।

  34. ॐ श्रीं नृपवेश्मगतानन्दायै नमः ।

  35. ॐ श्रीं पद्मगन्धिन्यै नमः ।

  36. ॐ श्रीं पद्मनाभप्रियायै नमः ।

  37. ॐ श्रीं पद्मप्रियायै नमः ।

  38. ॐ श्रीं पद्ममालाधरायै नमः ।

  39. ॐ श्रीं पद्ममुख्यै नमः ।

  40. ॐ श्रीं पद्मसुन्दर्यै नमः ।

  41. ॐ श्रीं पद्महस्तायै नमः ।

  42. ॐ श्रीं पद्माक्ष्यै नमः ।

  43. ॐ श्रीं पद्मायै नमः ।

  44. ॐ श्रीं पद्मालयायै नमः ।

  45. ॐ श्रीं पद्मिन्यै नमः ।

  46. ॐ श्रीं पद्मोद्भवायै नमः ।

  47. ॐ श्रीं परमात्मिकायै नमः ।

  48. ॐ श्रीं पुण्यगन्धायै नमः ।

  49. ॐ श्रीं पुष्टयै नमः ।

  50. ॐ श्रीं प्रकृत्यै नमः ।

  51. ॐ श्रीं प्रभायै नमः ।

  52. ॐ श्रीं प्रसन्नाक्ष्यै नमः । 

  53. ॐ श्रीं प्रसादाभिमुख्यै नमः ।

  54. ॐ श्रीं प्रीतिपुष्करिण्यै नमः ।

  55. ॐ श्रीं बिल्वनिलयायै नमः ।

  56. ॐ श्रीं बुद्धये नमः ।

  57. ॐ श्रीं ब्रह्माविष्णुशिवात्मिकायै नमः ।

  58. ॐ श्रीं भास्कर्यै नमः ।

  59. ॐ श्रीं भुवनेश्वर्यै नमः । 

  60. ॐ श्रीं मङ्गळा देव्यै नमः ।

  61. ॐ श्रीं महाकाल्यै नमः ।

  62. ॐ श्रीं महादीप्तायै नमः ।

  63. ॐ श्रीं महादेव्यै नमः ।

  64. ॐ श्रीं यशस्विन्यै नमः ।

  65. ॐ श्रीं रमायै नमः ।

  66. ॐ श्रीं लक्ष्म्यै नमः । 

  67. ॐ श्रीं लोकमात्रे नमः ।

  68. ॐ श्रीं लोकशोकविनाशिन्यै नमः ।

  69. ॐ श्रीं वरलक्ष्म्यै नमः । 

  70. ॐ श्रीं वरारोहायै नमः ।

  71. ॐ श्रीं वसुधायै नमः ।

  72. ॐ श्रीं वसुधारिण्यै नमः ।

  73. ॐ श्रीं वसुन्धरायै नमः । 

  74. ॐ श्रीं वसुप्रदायै नमः ।

  75. ॐ श्रीं वाचे नमः । 

  76. ॐ श्रीं विकृत्यै नमः ।

  77. ॐ श्रीं विद्यायै नमः ।

  78. ॐ श्रीं विभावर्यै नमः ।

  79. ॐ श्रीं विभूत्यै नमः ।

  80. ॐ श्रीं विमलायै नमः ।

  81. ॐ श्रीं विश्वजनन्यै नमः ।

  82. ॐ श्रीं विष्णुपत्न्यै नमः ।

  83. ॐ श्रीं विष्णुवक्षस्स्थलस्थितायै नमः ।

  84. ॐ श्रीं शान्तायै नमः ।

  85. ॐ श्रीं शिवकर्यै नमः ।

  86. ॐ श्रीं शिवायै नमः ।

  87. ॐ श्रीं शुक्लमाल्याम्बरायै नमः ।

  88. ॐ श्रीं शुचये नमः ।

  89. ॐ श्रीं शुभप्रदाये नमः ।

  90. ॐ श्रीं शुभायै नमः ।

  91. ॐ श्रीं श्रद्धायै नमः ।

  92. ॐ श्रीं श्रियै नमः ।

  93. ॐ श्रीं सत्यै नमः ।

  94. ॐ श्रीं समुद्रतनयायै नमः ।

  95. ॐ श्रीं सर्वभूतहितप्रदायै नमः ।

  96. ॐ श्रीं सर्वोपद्रव वारिण्यै नमः ।

  97. ॐ श्रीं सिद्धये नमः ।

  98. ॐ श्रीं सुधायै नमः ।

  99. ॐ श्रीं सुप्रसन्नायै नमः । 

  100. ॐ श्रीं सुरभ्यै नमः ।

  101. ॐ श्रीं स्त्रैणसौम्यायै नमः ।

  102. ॐ श्रीं स्वधायै नमः ।

  103. ॐ श्रीं स्वाहायै नमः ।

  104. ॐ श्रीं हरिण्यै नमः ।

  105. ॐ श्रीं हरिवल्लभायै नमः ।

  106. ॐ श्रीं हिरण्मय्यै नमः ।

  107. ॐ श्रीं हिरण्यप्राकारायै नमः ।

  108. ॐ श्रीं हेममालिन्यै नमः ।




अन्त मे हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना कर लें ।


यह पूजन आप रात्री मे कर सकते हैं । अगर ऐसा संभव ना हो तो आप दिन में किसी भी समय इसे कर सकते हैं ।  


अगर आपने श्री यंत्र के ऊपर पूजन किया है तो पूजा करने के बाद उस यंत्र को आप पूजा स्थान में या अपने पैसा रखने वाले गल्ले में रख सकते हैं ।


27 अक्तूबर 2024

श्री यंत्र, सिक्के का पूजन

 दीपावली महालक्ष्मी पूजन का सिद्ध मुहूर्त होता है उस दिन आप विभिन्न प्रकार के पूजन संपन्न कर सकते हैं । आगे की पंक्तियों में एक छोटा सा पूजन प्रस्तुत है जिसे आप श्री यंत्र के ऊपर या लक्ष्मी के सिक्के पर कर सकते हैं । 








आगे 32 प्रकार की लक्ष्मीयों के नाम दिए गए हैं जिनके नाम का उच्चारण करके हर बार नमः बोलने के साथ आप कुमकुम या केसर से सिक्के या श्री यंत्र पर बिंदी लगा सकते हैं या पुष्प और चावल छोड़ सकते हैं । 

इस प्रकार से पूजन करने के बाद आप उस सिक्के या यंत्र को तिजोरी या धन रखने के स्थान पर रख सकते हैं और अगर इच्छा हो तो उसे अपनी जेब में या पर्स में भी रख सकते हैं । 


श्री गुरुवे नमः 

ॐ गं गणपतये नमः 

ॐ भ्रम भैरवाये नमः 



1. ॐ श्रियै नमः।

2. ॐ लक्ष्म्यै नमः।

3. ॐ वरदायै नमः।

4. ॐ विष्णुपत्न्यै नमः।

5. ॐ वसुप्रदायै नमः।

6. ॐ हिरण्यरूपिण्यै नमः।

7. ॐ स्वर्णमालिन्यै नमः।

8. ॐ रजतस्त्रजायै नमः।

9. ॐ स्वर्णगृहायै नमः।

10. ॐ स्वर्णप्राकारायै नमः।

11. ॐ पद्मवासिन्यै नमः।

12. ॐ पद्महस्तायै नमः।

13. ॐ पद्मप्रियायै नमः।

14. ॐ मुक्तालंकारायै नमः।

15. ॐ सूर्यायै नमः।

16. ॐ चंद्रायै नमः।

17. ॐ बिल्वप्रियायै नमः।

18. ॐ ईश्वर्यै नमः।

19. ॐ भुक्त्यै नमः।

20. ॐ प्रभुक्त्यै नमः।

21. ॐ विभूत्यै नमः।

22. ॐ ऋद्धयै नमः।

23. ॐ समृद्ध्यै नमः।

24. ॐ तुष्टयै नमः।

25. ॐ पुष्टयै नमः।

26. ॐ धनदायै नमः।

27. ॐ धनैश्वर्यै नमः।

28. ॐ श्रद्धायै नमः।

29. ॐ भोगिन्यै नमः।

30. ॐ भोगदायै नमः।

31. ॐ धात्र्यै नमः।

32. ॐ विधात्र्यै नमः।


अगर आप चाहें तो उस सिक्के पर रोज, हर बुधवार या हर पूर्णिमा को उपरोक्त प्रकार से पुनः पूजन कर सकते हैं इससे ज्यादा अनुकूलता मिलेगी ।


देवी पद्मावती स्तोत्र : [परमहंस स्वामी निखिलेश्वरनन्द कृत ]

   पूरे भारत में सबसे समृद्ध संप्रदाय है 

जैन संप्रदाय 
और उनकी अधिष्टात्री देवी है 
पद्मावती 

गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ने एक अत्यंत तेजस्वी पद्मावती स्तोत्र प्रदान किया था जो निम्नानुसार है :-  

दिव्योवताम वे पद्मावती त्वं, लक्ष्मी त्वमेव धन धन्य सुतान्वदै  च |
पूर्णत्व देह परिपूर्ण मदैव तुल्यं, पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||

ज्ञानेव सिन्धुं ब्रह्मत्व नेत्रं , चैतन्य देवीं भगवान भवत्यम |
देव्यं प्रपन्नाति हरे प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद ||

धनं धान्य रूपं, साम्राज्य रूपं,ज्ञान स्वरुपम् ब्रह्म स्वरुपम् |
चैतन्य रूपं परिपूर्ण रूपं , पद्मावती त्वं  प्रणमं नमामि ||

न मोहं न क्रोधं न ज्ञानं न चिन्त्यं परिपुर्ण रूपं भवताम वदैव |
दिव्योवताम सूर्य तेजस्वी रूपं  , पद्मावती त्वं  प्रणमं नमामि ||

सन्यस्त रूप मपरम पूर्ण गृहस्थं, देव्यो सदाहि भवताम श्रियेयम |
पद्मावती त्वं, हृदये पद्माम, कमालत्व रूपं पद्मम प्रियेताम ||




|| इति परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद कृत पद्मावती स्तोत्रं सम्पूर्णं ||


विधि :-
  1. पाठ से पहले और अंत मे तीन बार " ॐ निखिलेश्वराय नमः "  मन्त्र का जोर से बोलकर उच्चारण करें |
  2. इस स्तोत्र को दीपावली की रात्री मे करें  | उसके बाद अगली अमावस्या तक कंटिन्यू कर सकते हैं । इससे ज्यादा लाभ मिलेगा । 
  3. नित्य 1,3,5,11 जैसे आपकी क्षमता हो वैसा पाठ करें |
  4. सात्विक आहार /विचार /व्यवहार  रखें |
  5. क्रोध ना करें |
  6. किसी स्त्री का अपमान ना करें |
  7. जिस दिनपाठ पूर्ण हो जाए उस दिन किसी गरीब विवाहित महिला को लाल साड़ी दान करें|
  8. लक्ष्मी मंदिर या दुर्गा मंदिर में अपनी क्षमतानुसार गुलाब या कमल के फूल चढ़ाएं और देवी पद्मावती से कृपा करने की प्रार्थना करके सीधे वापस घर आ जाएँ |
  9. घर आने के बाद एक बार और पाठ करें |
  10. घर में या परिचय में कोई वृद्ध महिला हो तो उसके चरण स्पर्श करें और कुछ भेंट दें , भेंट आप अपनी क्षमतानुसार कुछ भी दे सकते हैं |
  11.  इस प्रकार पूजन संपन्न हुआ | आगे आप चाहें तो नित्य एक बार पाठ करते रहें |

सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र

  सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र

दीपावली भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण मुहूर्त है. प्रत्येक गृहस्थ को इस अवसर पर देवी महालक्ष्मी का पूजन विधि विधान से संपन्न करना ही चाहिए क्योंकि गृहस्थ जीवन का आधार ही महालक्ष्मी हैं. महालक्ष्मी पूजन विविध प्रकार से किए जा सकते हैं लेकिन देवराज इंद्रकृत सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र अपने आप में अत्यंत ही प्रभावशाली तथा शीघ्र फलप्रदायक है. इस अवसर पर आप चाहें तो महालक्ष्मी के किसी भी मंत्र का जाप कर सकते हैं जिससे आपको अनुकूलता प्राप्त होगी


यह स्तोत्र लक्ष्मी जी के यंत्र चित्र या मूर्ति के सामने करना चाहिए.

पहले लघु पूजन करें. तदुपरांत स्तोत्र का पाठ करें.

महालक्ष्मी पूजनः-


श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः गंधम समर्पयामि । (इत्र कुंकुम चढायें)

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः पुष्पम समर्पयामि । (फूल चढायें )

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः धूपम समर्पयामि । (अगरबत्ती दिखायें)

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः दीपम समर्पयामि । (दीपक दिखायें )

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यम समर्पयामि । (प्रसाद चढायें )


क्षमतानुसार 11, 21,51 या 108 बार सहस्राक्षरी स्तोत्र मंत्र का पाठ करेंः-


(हाथ में जल लेकर)विनियोगः-

ऊँ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मंत्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी सहस्राक्षरी सहस्र रूपिणि महाविद्याया श्री इंद्र ऋषिं गायत्रयादि नाना छंदांसि नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थ जपे पाठे विनियोगः । (जल जमीन पर छोड़ दें )

अपने हाथ मे एक पुष्प रखें । एक पाठ पूरा हो जाने पर उसे देवी के चरणों मे चढ़ा दें और उनकी कृपा प्राप्ति की प्रार्थना करें ।.


स्तोत्र मंत्र :-


ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं हसौं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं सौः सौः ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं जय जय महालक्ष्मी, जगदाद्ये,विजये सुरासुर त्रिभुवन निदाने दयांकुरे सर्व तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते, विधि वरदे सच्चिदानंदे विष्णु देहावृते महामोहिनी नित्य वरदान तत्परे महासुधाब्धि वासिनी महातेजो धारिणी सर्वाधारे सर्वकारण कारिणे अचिंत्य रूपे इंद्रादि सकल निर्जर सेविते सामगान गायन परिपूर्णोदय कारिणी विजये जयंति अपराजिते सर्व सुंदरि रक्तांशुके सूर्य कोटि संकाशे चंद्र कोटि सुशीतले अग्निकोटि दहनशीले यम कोटि वहनशीले ऊँकार नाद बिंदु रूपिणी निगमागम भाग्यदायिनी त्रिदश राज्य दायिनी सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणी दिव्य देहिनि निर्गुणे सगुणे सदसद रूप धारिणी सुर वरदे भक्त त्राण तत्परे बहु वरदे सहस्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणी अनेक लक्षलक्ष स्वरूपे अनंत कोटि ब्रहमाण्ड नायिके चतुर्विंशति मुनिजन संस्थिते चतुर्दश भुवन भाव विकारिणे गगन वाहिनी नाना मंत्र राज विराजिते सकल सुंदरी गण सेविते चरणारविंद्र महात्रिपुर सुंदरी कामेश दायिते करूणा रस कल्लोलिनी कल्पवृक्षादि स्थिते चिंतामणि द्वय मध्यावस्थिते मणिमंदिरे निवासिनी विष्णु वक्षस्थल कारिणे अजिते अमले अनुपम चरिते मुक्तिक्षेत्राधिष्ठायिनी प्रसीद प्रसीद सर्व मनोरथान पूरय पूरय सर्वारिष्टान छेदय छेदय सर्वग्रह पीडा ज्वराग्र भय विध्वंसय विध्वंसय सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय मोक्ष मार्गाणि दर्शय दर्शय ज्ञानमार्ग प्रकाशय प्रकाशय अज्ञान तमो नाशय नाशय धनधान्यादि वृद्धिं कुरूकुरू सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय माम रक्ष रक्ष सर्वापदभ्यो निस्तारय निस्तारय वज्र शरीरं साधय साधय ह्रीं सहस्राक्षरी सिद्ध लक्ष्मी महाविद्यायै नमः ।


अगर आप चाहें तो इस स्तोत्र का उच्चारण मेरे यूट्यूब चैनल से सुन सकते हैं । लिंक नीचे है । 


25 अक्तूबर 2024

भगवती महालक्ष्मी पूजन

भगवती महालक्ष्मी पूजन 


पूजन सामग्री :-
हल्दी,कुमकुम ,चन्दन ,अष्टगंध ,अक्षत ,इत्र ,कपूर,फुल,फल,मिठाई ,पान,अगरबत्ती,दीपक, कलश  आदि । 
जो सामग्री उपलब्ध हो वह रखें और जो उपलब्ध ना हो पाए उसके लिए चिंता ना करें । 
प्रयास करें कि सारी सामग्रियां उपलब्ध हो क्योंकि देवी महालक्ष्मी के पूजन में कंजूसी नहीं करनी चाहिए और यथासंभव अपनी क्षमता के अनुसार पूजन संपन्न करना चाहिए । 
पूजन सामग्री भी अच्छी क्वालिटी का ही रखें । 
जिस स्थान पर बैठे वह साफ सुथरा हो । 
आपके कपड़े साफ सुथरे हो । 
महिलाएं हो तो श्रृंगार कर के बैठे हैं पुरुष हो तो साफ-सुथरे धुले हुए वस्त्र पहन कर बैठे । 
यदि इत्र या परफ्यूम उपलब्ध हो तो उसे लगाएं । 
पूजा स्थान में अगरबत्ती या खुशबूदार इत्र का छिड़काव करें ।

यदि गुरु दीक्षा प्राप्त हो तो गुरु का चित्र अवश्य रखें क्योंकि गुरु लक्ष्मी के आने पर उसके दुरुपयोग किए जाने से आपकी रक्षा करता है और आपको  सदबुद्धि देता है कि आप उस धन का सदुपयोग करें ।

पूजा स्थान में गुरुचित्र,लक्ष्मी का चित्र / श्री यंत्र / शंख/ महाविद्या यन्त्र या फोटो जो भी उपलब्ध हो वह रखें ।

गुरु को प्रणाम करें । 
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः

इसके बाद भगवान गणेश को याद करें और उन्हें पूजा में सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करने की प्रार्थना करें । 
ॐ श्री गणेशाय नमः

भगवान भैरव को याद करें और पूजन की रक्षा करने की प्रार्थना करें । 
ॐ भ्रम भैरवाय नमः ।

इसके बाद तंत्र के अधिपति भगवान शिव और मां जगदंबा को ज्ञात करें उन्हें प्रणाम करें उनसे आशीर्वाद लें कि आपको पूजन में सफलता प्राप्त हो और भगवती महालक्ष्मी आपकी पूजा को स्वीकार कर अनुकूलता प्रदान करें । 
ॐ सांब सदाशिवाय नमः

देवी महालक्ष्मी से प्रार्थना करें कि मैं आपका पूजन करने जा रहा हूं और आप मुझे इसके लिए अनुमति प्रदान करें
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः

अब आप 4 बार आचमन करे ( दाए हाथ में पानी लेकर पिए )
श्रीं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
श्रीं विद्या तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
श्रीं शिव तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
श्रीं सर्व तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा

अब आप घंटी बजाएं । घंटे को पुष्प समर्पित करें । 
अब आप जिस आसन पर बैठे है उस पर पुष्प अक्षत अर्पण करे । पृथ्वी पर हम बैठे हैं इसलिए उसे प्रणाम करें और उनसे भी आशीर्वाद लें कि आपको पूजन में सफलता प्राप्त हो ।

पृथ्वी देव्ये नमः 
आसन देवताभ्यो नमः

दीपक जलाकर उसका पूजन करे । उन्हें प्रणाम करे और पुष्प अक्षत अर्पण करे । अग्नि का स्वरूप होता है दीपक और उसे शक्ति का प्रतीक माना जाता है इसी भाव के साथ उसे प्रणाम करेंगे । 
दीप देवताभ्यो नमः ।

तांबे या मिट्टी से बना हुआ कलश लेकर उसमें पानी भर कर आप स्थापित कर सकते हैं यह अमृत का प्रतीक माना जाता है अर्थात जीवन में संपूर्णता प्रदान करने वाला .....

कलश का पूजन करे ..
उसमे गंध ,अक्षत ,पुष्प ,तुलसी,इत्र ,कपूर डाले ..
कलश देवताभ्यो नमः ।


उसे सात बार तिलक करे .
त्रिदेवाय नमः । 
चतुर्वेदाय नमः ।

अब आप अपने आप को तिलक करे । इसके लिए आप महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग कर सकते हैं और यदि आपको ज्ञात नहीं है तो महालक्ष्मी नमः ऐसा बोल कर अपने माथे पर तिलक लगा सकते हैं । तिलक कुमकुम अष्टगंध केसर किसी भी चीज का लगा सकते हैं ।

संकल्प :-
संकल्प का तात्पर्य होता है कि आप संबंधित देवी या देवता के साथ एक प्रकार का अनुबंध कर रहे हैं कि मैं आपकी कृपा के प्राप्ति के लिए यह कार्य कर रहा हूं और आप खुश होकर मेरी मनोकामना को पूर्ण करें ।

दाहिने हाथ में जल,पुष्प,अक्षत लेकर संकल्प करे 
मैं (अपना नाम) आज दीपावली  के शुभ मुहूर्त पर अपने ज्ञान और क्षमता के अनुसार जैसा संभव हो उस प्रकार से महालक्ष्मी पूजन कर रहा हूँ । मेरा पूजन ग्रहण करे और मुझपर कृपा दृष्टी रखे तथा मेरी मनोकामना ( आपकी जो इच्छा है उसे यहां पर बोले ) पूर्ण करे ।

अब जल को पूजा स्थान पर छोडे ..
अब आप गणेशजी का स्मरण करे

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा

प्रत्येक कार्य के लिए महागणपति का पूजन अनिवार्य होता है । वह बुद्धि के अधिपति हैं और साथ ही लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान करते हैं इसलिए हमेशा महालक्ष्मी का पूजन गणपति के साथ ही किया जाना चाहिए ...

श्री महागणपति आवाहयामि
मम पूजन स्थाने ऋद्धि सिद्धि सहित शुभ लाभ सहित स्थापयामि नमः

ॐ श्री गणेशाय नमः गंधाक्षत समर्पयामि
कुमकुम और चावल चढ़ाएं

ॐ श्री गणेशाय नमः पुष्पं समर्पयामि
फूल चढ़ाएं

ॐ श्री गणेशाय नमः धूपं समर्पयामि
अगरबत्ती धूप दिखाएं

ॐ श्री गणेशाय नमः दीपं समर्पयामि
दीपक प्रदर्शित करें

ॐ श्री गणेशाय नमः नैवेद्यं समर्पयामि
प्रसाद समर्पित करें ।

अब नीचे दिये हुये गणपती माला मंत्र का पाठ कर पुष्प अर्पण करे
श्री गणपती माला मंत्र 
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ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं ग्लौं ॐ ह्रीं क्रौं गं ॐ नमो भगवते महागणपतये स्मरणमात्रसंतुष्टाय सर्वविद्याप्रकाशकाय सर्वकामप्रदाय भवबंधविमोचनाय ह्रीं सर्वभूतबंधनाय क्रों साध्याकर्षणाय क्लीं जगतत्रयवशीकरणाय सौ: सर्वमनक्षोभणाय श्रीं महासंपत्प्रदाय ग्लौं भूमंडलाधिपत्यप्रदाय महाज्ञानप्रदाय चिदानंदात्मने गौरीनंदनाय महायोगिने शिवप्रियाय सर्वानंदवर्धनाय सर्वविद्याप्रकाशनप्रदाय द्रां चिरंजिविने ब्लूं सम्मोहनाय ॐ मोक्षप्रदाय ! फट वशी कुरु कुरु! वौषडाकर्षणाय हुं विद्वेषणाय विद्वेषय विद्वेषय ! फट उच्चाटय उच्चाटय ! ठ: ठ: स्तंभय स्तंभय ! खें खें मारय मारय ! शोषय शोषय ! परमंत्रयंत्रतंत्राणि छेदय छेदय ! दुष्टग्रहान निवारय निवारय ! दु:खं हर हर ! व्याधिं नाशय नाशय ! नम: संपन्नय संपन्नय स्वाहा ! सर्वपल्लवस्वरुपाय महाविद्याय गं गणपतये स्वाहा ! 
यन्मंत्रे क्षितलांछिताभमनघं मृत्युश्च वज्राशिषो भूतप्रेतपिशाचका: प्रतिहता निर्घातपातादिव ! उत्पन्नं च समस्तदु:खदुरितं उच्चाटनोत्पादकं वंदेsभीष्टगणाधिपं भयहरं विघ्नौघनाशं परम ! ॐ गं गणपतये नम:
ॐ नमो महागणपतये , महावीराय , दशभुजाय , मदनकाल विनाशन , मृत्युं
हन हन , यम यम , मद मद , कालं संहर संहर , सर्व ग्रहान चूर्णय चूर्णय , नागान मूढय मूढय , रुद्ररूप, त्रिभुवनेश्वर , सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा ! 
ॐ नमो गणपतये , श्वेतार्कगणपतये , श्वेतार्कमूलनिवासाय , वासुदेवप्रियाय , दक्षप्रजापतिरक्षकाय , सूर्यवरदाय , कुमारगुरवे , ब्रह्मादिसुरावंदिताय , सर्पभूषणाय , शशांकशेखराय , सर्पमालालंकृतदेहाय , धर्मध्वजाय , धर्मवाहनाय , त्राहि त्राहि , देहि देहि , अवतर अवतर , गं गणपतये , वक्रतुंडगणपतये , वरवरद , सर्वपुरुषवशंकर , सर्वदुष्टमृगवशंकर , सर्वस्ववशंकर , वशी कुरु वशी कुरु , सर्वदोषान बंधय बंधय , सर्वव्याधीन निकृंतय निकृंतय , सर्वविषाणि संहर संहर , सर्वदारिद्र्यं मोचय मोचय , सर्वविघ्नान छिंदि छिंदि , सर्ववज्राणि स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून उच्चाटय उच्चाटय , सर्वसिद्धिं कुरु कुरु , सर्वकार्याणि साधय साधय , गां गीं गूं गैं गौं गं गणपतये हुं फट स्वाहा ! 
ॐ नमो गणपते महावीर दशभुज मदनकालविनाशन मृत्युं हन हन , कालं संहर संहर , धम धम , मथ मथ , त्रैलोक्यं मोहय मोहय , ब्रह्मविष्णुरुद्रान मोहय मोहय , अचिंत्य बलपराक्रम , सर्वव्याधीन विनाशाय , सर्वग्रहान चूर्णय चूर्णय , नागान मोटय मोटय , त्रिभुवनेश्वर सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा !



अब नीचे दिये हुये नामों से गणेश जी को दुर्वा या पुष्प अक्षत अर्पण करे

गं सुमुखाय नम:
गं एकदंताय नम:
गं कपिलाय नम:
गं गजकर्णकाय नम:
गं लंबोदराय नम:
गं विकटाय नम:
गं विघ्नराजाय नम:
गं गणाधिपाय नम:
गं धूम्रकेतवे नम:
गं गणाध्यक्षाय नम:
गं भालचंद्राय नम:
गं गजाननाय नम:
गं वक्रतुंडाय नम:
गं शूर्पकर्णाय नम:
गं हेरंबाय नम:
गं स्कंदपूर्वजाय नम:

अब गणेशजी को अर्घ्य (एक चम्मच जल )प्रदान करे

एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात

महालक्ष्मी विष्णु पत्नी है। जहां भगवान विष्णु का पूजन होता है वहाँ लक्ष्मी अपने आप आती है
विष्णु ध्यान :-
शान्ताकारं भुजंग शयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभांगम
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगीर्भि ध्यानगम्यम् 
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैक नाथम्

ॐ श्री विष्णवे नमः

श्री महाविष्णु आवाहयामि मम पूजा स्थाने स्थापयामि पूजयामि नमः

ॐ श्री विष्णवे नमः गंधाक्षत समर्पयामि
कुमकुम चावल समर्पित करें

ॐ श्री विष्णवे नमः पुष्पं समर्पयामि
फूल चढ़ाएं

ॐ श्री विष्णवे नमः धूपं समर्पयामि
धूप अगरबत्ती दिखाएं

ॐ श्री विष्णवे नमः दीपं समर्पयामि
दीपक दिखाएं


ॐ श्री विष्णवे नमः नैवेद्यं समर्पयामि
प्रसाद समर्पित करें

भगवान विष्णु का पूजन तथा ध्यान करने से देवी महालक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं इसलिए आप चाहे तो यहाँ पुरुषसूक्त , विष्णुसूक्त का पाठ कर सकते है ..

अब भगवान विष्णु के 24 नामों से तुलसी या पुष्प अर्पण करे ।

१. ॐ केशवाय नमः
२. ॐ नारायणाय नमः
३. ॐ माधवाय नमः
४. ॐ गोविन्दाय नमः
५. ॐ विष्णवे नमः
६. ॐ मधुसूदनाय नमः
७. ॐ त्रिविक्रमाय नमः
८. ॐ वामनाय नमः
९. ॐ श्रीधराय नमः
१०. ॐ ऋषिकेशाय नमः
११. ॐ पद्मनाभाय नमः
१२. ॐ दामोदराय नमः
१३. ॐ संकर्षणाय नमः
१४. ॐ वासुदेवाय नमः
१५. ॐ प्रद्युम्नाय नमः
१६. ॐ अनिरुद्धाय नमः
१७. ॐ पुरुषोत्तमाय नमः
१८. ॐ अधोक्षजाय नमः
१९. ॐ नारसिंहाय नमः
२०. ॐ अच्युताय नमः
२१. ॐ जनार्दनाय नमः
२२. ॐ उपेन्द्राय नमः
२३. ॐ हरये नमः
२४. ॐ श्रीकृष्णाय नमः

अब भगवान विष्णु को अर्घ्य प्रदान करे
एक चम्मच जल डालें

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात

महालक्ष्मी ध्यान 
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या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गंभीरावर्तनाभिस्तनभारनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया
या लक्ष्मी दिव्यरुपै मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः
सानित्यं पद्महस्ता मम वसतु गॄहे सर्वमांगल्ययुक्ता

इस प्रकार से महालक्ष्मी का आह्वान करने के बाद ऐसी भावना करें कि वे अपने दिव्य स्वरुप में आपके घर में ! आपके कुल में !! आपके पूजा स्थान में !!! आकर स्थापित हो रही हैं और आपको अपने आशीर्वाद से आप्लावित कर रही हैं ....

श्री महालक्ष्मी आवाहयामि मम गृहे मम कुले मम पूजा स्थाने आवाहयामि स्थापयामि नमः
( पुष्प अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आवाहनं समर्पयामि

( पुष्प अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि

( दो आचमनी जल अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पाद्यो पाद्यं समर्पयामि


(जल में चन्दन अष्ट गंध मिलाकर अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः अर्घ्यम समर्पयामि

( एक आचमनी जल अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि

( स्नान के लिए जल अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः स्नानं समर्पयामि

( मौली/ लाल धागा या अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः उप वस्त्रं समर्पयामि

हल्दी कुमकुम अर्पण करे 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः हरिद्रा कुमकुम समर्पयामि

चंदन अष्टगंधअर्पण करे 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः चन्दन अष्ट गंधं समर्पयामि

इतर या गुलाब का जल अर्पण करे 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः सुगन्धित द्रव्यम समर्पयामि

चावल अर्पण करे
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः अलंकारार्थे अक्षतान समर्पयामि

फूल अर्पण करे
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पं समर्पयामि

फूलों की माला अर्पण करे 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पमालाम समर्पयामि

धूप दिखाएं 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं समर्पयामि

दीपक प्रदर्शित करें
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं समर्पयामि

प्रसाद चढ़ाएं
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि

फल समर्पित है
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः फलं समर्पयामि

जल चढ़ाएं
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि

मीठे पान का बीडा हो तो उसे समर्पित करें और ना हो तो लोंग इलाइची सुपारी पान का पत्ता समर्पित करें
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि

दक्षिणा समर्पित करें इसे पूजन समाप्त हो जाने के बाद किसी विवाहित स्त्री को दे दे । 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः द्रव्य दक्षिणा समर्पयामि

कपूर जलाकर आरती करें 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः कर्पुर आरती समर्पयामि ।

अष्ट सिद्धियों का पूजन 
गंध अक्षत पुष्पं अर्पण करे
ॐ अणिम्ने नमः
ॐ महिम्ने नमः
ॐ गरिम्ने नमः
ॐ लघिम्ने नमः
ॐ प्राप्त्यै नमः
ॐ प्राकाम्यै नमः
ॐ इशितायै नमः
ॐ वशितायै नमः

अष्टलक्ष्मी का पूजन

गंध अक्षत पुष्पं अर्पण करे
ॐ आद्य लक्ष्म्यै नमः
ॐ धन लक्ष्म्यै नमः
ॐ धान्य लक्ष्म्यै नमः
ॐ धैर्य लक्ष्म्यै नमः
ॐ गज लक्ष्म्यै नमः
ॐ संतान लक्ष्म्यै नमः
ॐ विद्या लक्ष्म्यै नमः
ॐ विजय लक्ष्म्यै नमः

भगवती महालक्ष्मी के 32 नाम पढ़कर पुष्प अक्षत चढ़ाते जाए।

1. ॐ श्रियै नमः।
2. ॐ लक्ष्म्यै नमः।
3. ॐ वरदायै नमः।
4. ॐ विष्णुपत्न्यै नमः।
5. ॐ वसुप्रदायै नमः।
6. ॐ हिरण्यरूपिण्यै नमः।
7. ॐ स्वर्णमालिन्यै नमः।
8. ॐ रजतस्त्रजायै नमः।
9. ॐ स्वर्णगृहायै नमः।
10. ॐ स्वर्णप्राकारायै नमः।
11. ॐ पद्मवासिन्यै नमः।
12. ॐ पद्महस्तायै नमः।
13. ॐ पद्मप्रियायै नमः।
14. ॐ मुक्तालंकारायै नमः।
15. ॐ सूर्यायै नमः।
16. ॐ चंद्रायै नमः।
17. ॐ बिल्वप्रियायै नमः।
18. ॐ ईश्वर्यै नमः।
19. ॐ भुक्त्यै नमः।
20. ॐ प्रभुक्त्यै नमः।
21. ॐ विभूत्यै नमः।
22. ॐ ऋद्धयै नमः।
23. ॐ समृद्ध्यै नमः।
24. ॐ तुष्टयै नमः।
25. ॐ पुष्टयै नमः।
26. ॐ धनदायै नमः।
27. ॐ धनैश्वर्यै नमः।
28. ॐ श्रद्धायै नमः।
29. ॐ भोगिन्यै नमः।
30. ॐ भोगदायै नमः।
31. ॐ धात्र्यै नमः।
32. ॐ विधात्र्यै नमः।

महालक्ष्मी के पुत्रों का पूजन

१. ॐ देवसखाय नमः
२. ॐ चिक्लीताय नमः
३. ॐ आनंदाय नमः
४. ॐ कर्दमाय नमः
५. ॐ श्रीप्रदाय नमः
६. ॐ जातवेदाय नमः
७. ॐ अनुरागाय नमः
८. ॐ संवादाय नमः
९. ॐ विजयाय नमः
१०. ॐ वल्लभाय नमः
११. ॐ मदाय नमः
१२. ॐ हर्षाय नमः
१३. ॐ बलाय नमः
१४. ॐ तेजसे नमः
१५. ॐ दमकाय नमः
१६. ॐ सलिलाय नमः
१७. ॐ गुग्गुलाय नमः
१८ . ॐ कुरूण्टकाय नमः

हाथ जोड़ कर क्षमा प्रार्थना करे
त्रैलोक्य पूजिते देवी कमले विष्णु वल्लभे 
यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा 
इश्वरी कमला लक्ष्मीश्चचला भूतिर हरिप्रिया 
पद्मा पद्मालया संपदुच्चे: श्री: पद्माधारिणी
द्वादशैतानी नामानि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत स्थिरा लक्ष्मी भवेत् तस्य पुत्र दारादीभि : सह ।।

अब आचमनी मे जल और कुंकुम लेकर महालक्ष्मी गायत्री से अर्घ्य दे .
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात

हाथ जोड़ कर माँ महालक्ष्मी से प्रार्थना करे
त्राहि त्राहि महालक्ष्मी त्राहि त्राहि सुरेश्वरी त्राहि त्राहि जगन्माता दरिद्रात त्राही वेगत :
त्वमेव जननी लक्ष्मी त्वमेव पिता लक्ष्मी भ्राता त्वं च सखा लक्ष्मी विद्या लक्ष्मी त्वमेव च रक्ष त्वं देव देवेशी देव देवस्य वल्लभे दरिद्रात त्राही मां लक्ष्मी कृपां कुरु ममोपरी

ऐसी भावना करें कि देवी महालक्ष्मी इस पूजन से प्रसन्न होकर आपके घर में आए और आपके घर में आपके कुल में आपके परिवार में आपके गोत्र में और आपके हृदय में सदा विराजमान रहें प्रसन्न रहें और वरदान देती रहें ताकि उनकी कृपा सदैव बनी रहे .....

भगवती महालक्ष्मी मम गृहे मम कुले मम परिवारे मम गोत्रे मम हृदये आगच्छ ! सुस्थिरो भव ! प्रसन्नो भव ! वरदो भव …

अंत में इस पूजन को गुरु चरणों में समर्पित करें

हाथ में जल और पुष्प लेकर नीचे लिखा हुआ मंत्र पढ़ें और पूजा स्थान में छोड़ दें ।

।। श्री सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानन्द चरणार्पणमस्तु ।।


दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की पूजा में त्रुटि हुई हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थना कर ले और देवी महालक्ष्मी से कृपा की प्रार्थना करके पूजा स्थान से उठ जाएं ।