27 अप्रैल 2025

अक्षय तृतीया पर अभिमंत्रित पारद श्री यंत्र

    



गृहस्थ के जीवन में लक्ष्मी नही है तो कुछ भी नही है । यह हम सभी जानते हैं ।

सम्पूर्ण ऐश्वर्य और समृद्धि के लिए श्री यंत्र का अनादि काल से उपयोग हों रहा है । आप इसकी विशिष्ठता इसी बात से समझ सकते हैं कि लगभग सभी उच्च कोटि के तंत्र पीठों में इसकी स्थापना अनिवार्यं रूप से की जाती है ।
श्री यंत्र तांबा,पीतल,सोना,चाँदी,जैसे धातुओं से बनाए जाते हैं । 

पारा भी तंत्र मे अत्यंत विशिष्ट धातु माना गया है । उससे बने विग्रह विशेष लाभदायक भी कहे गए हैं । 
पारे से बने कुछ छोटे पारद श्री यंत्र अभिमंत्रित करके ₹1008/[एक हजार आठ रुपये ] मे उपलब्ध हैं । 

इस यंत्र को आप अपने पूजा स्थान मे रख सकते हैं । चाहें तो गल्ले तिजोरी या अलमारी मे भी रख सकते हैं । जो पाठक इच्छुक हैं वे मुझे 7000630499 पर  संपर्क करके इसे प्राप्त कर सकते हैं ।


यंत्र आपके नाम से सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित जानकारी लगेगी जो आप भेज देंगे :-

भेजे गए शुल्क की रसीद की फोटो ।  
आपका एक ताजा खींचा हुआ फोटो 
नाम 
गोत्र (अगर मालूम हो )
जन्मतिथि (अगर मालूम हो )
जन्म का समय (अगर मालूम हो )
जन्म का स्थान (अगर मालूम हो )

पूरा पता , पिन कोड के साथ, जिसमे आपको यंत्र भेजना है ।
आपका व्हाट्सएप्प  नंबर जिसपर आपको मंत्र तथा यंत्र भेजने की सूचना भेजी जाएगी । 

आप पेमेंट के लिए इस QR code का भी प्रयोग कर सकते हैं



अक्षय तृतीया : महालक्ष्मी मंत्र




गृहस्थ जीवन की मूल शक्ति है लक्ष्मी ! 

जिसके अभाव में कुछ भी संभव नहीं है | अक्षय तृतीया लक्ष्मी साधना का विशेष मुहूर्त है इस अवसर पर कुछ लक्ष्मी मन्त्र प्रस्तुत हैं , जिनका जाप कर आप व्यापार/नौकरी आदि में अनुकूलता प्राप्त कर सकते हैं |


लक्ष्मी साधना मन्त्र  :-
  1. || ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै  नमः   ||
  2.  || ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै  नमः   ||
  3. || ॐ श्रीं  महालक्ष्म्यै  नमः   || 
  4. || ॐ महालक्ष्म्यै  नमः   || 
  5. || ॐ श्रीं ॐ || 
  6. || ॐ  श्रीं  ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्धलक्ष्म्ये नमः ||


सामान्य निर्देश :-
साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रधा और विश्वास पर निर्भर करता है |
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विधि :-
  1. इनमे से किसी भी एक मन्त्र का जाप कर सकते हैं |
  2. ११/२१/५१ हजार जाप करें | यदि इतना ना कर सकते हों तो अपनी क्षमता के अनुसार करें |
  3. रोज सामान संख्या में जाप करें | संभव हो तो जाप का समय भी एक ही हो |
  4. अपने सामने  लाल कपडे में श्री यंत्र या लक्ष्मी यंत्र रख लें  |
  5. जाप के बाद इसे लाल कपडे से ढँक दें |
  6. कोशिश करें की जाप काल में आपके अलावा इसे कोई ना छुए और ना ही देखे |
  7. जाप समाप्त होने पर इसे अपने गल्ले /तिजोरी/जेब में रखें |
  8. जाप कमलगट्टे की माला से किया जाये तो श्रेष्ट है ना हो तो रुद्राक्ष की माल सभी कार्यों के लिए स्वीकार्य  है |
  9. जाप के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले), आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह मन्त्र जाप कर रहा/ रही हूँ | मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " | इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
  10. दिशा उत्तर/ पूर्व की और देखते हुए बैठें |
  11. आसन लाल/पीले रंग का रखें|
  12. जाप रात्रि काल मे करें|
  13. यदि अर्धरात्रि जाप करते हुए निकले तो श्रेष्ट है |
  14. जाप के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें|
  15. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें |
  16. सात्विक आहार/ आचार/ विचार रखें |
  17. ब्रह्मचारी का पालन करें |
यदि संभव हो तो घी में कमलगट्टा मिलाकर १०८ आहूतियां , मन्त्र के पीछे स्वाहा लगाकर दें |

कनकधारा स्तोत्र

 











अक्षय तृतीया : लक्ष्मी साधना का सिद्ध मुहूर्त

अक्षय तृतीया महालक्ष्मी साधना के लिए अत्यंत विशेष मुहूर्त माना गया है । इस वर्ष अक्षय त्रितीया 30 अप्रेल को है । वास्तव मे तृतीया तिथि दिनांक 29 अप्रेल की शाम साढ़े पाँच बजे से 30 अप्रेल की दोपहर लगभग दो बजे तक है । इस पूरे समय मे आप लक्ष्मी से संबन्धित साधना, मंत्र जाप, स्तोत्र पाठ, शतनाम, सहस्र नाम आदि करेंगे तो विशेष लाभ मिलेगा ।  

26 अप्रैल 2025

युद्ध मे भारत की विजय के लिए गुरुसेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी द्वारा प्रदत्त रणचंडी मंत्र

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की संभावनाएं बढ़ रही हैं । सैनिक तो युद्ध क्षेत्र मे अपना कार्य करेंगे । हम सभी देशवासी भी युद्ध मे विजय के लिए गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी द्वारा प्रदत्त निम्नलिखित मंत्र का यथा शक्ति जाप करें । 

इसके लिए कोई विशेष नियम नहीं है । 

गुरु दीक्षित होने की भी अनिवार्यता नहीं है । 

यह संकट काल है और रणचंडी देवी महाकाली के किसी भी स्वरूप का ध्यान करके आप अपनी क्षमतानुसार जाप कर सकते हैं । 

बैठकर ना कर पाएँ तो चलते फिरते भी कर सकते हैं । 





21 अप्रैल 2025

गुरु शृंखला

 

 जगद्गुरु भगवान शिव







भगवान वेद व्यास


गौड पादाचार्य [शंकराचार्य जी के गुरु ]


जगद्गुरु आदि शंकराचार्य 



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ब्रह्मानंद सरस्वती



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।                                                                                                 ।
           महेश योगी                                                                     करपात्री महाराज
।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
                                           पूज्यपाद सद्गुरुदेव
                                                                               डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी
[परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी]
[1933-1998]



                                                 
                                              ।
                                              ।
                                               ।
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।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
गुरुमाता डॉ . साधना सिंह  जी                                                                       गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी
                                                                                                       
जानकारी स्त्रोत -  साधना सिद्धि विज्ञान जुलाई २००५ पेज ७०

Books written by Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji [परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ]

   



Books written by 


Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji

[परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ]




























  • Practical Palmistry
  • Practical Hypnotism
  • The Power of Tantra
  • Mantra Rahasya
  • Meditation
  • Dhyan, Dharana aur Samadhi
  • Kundalini Tantra
  • Alchemy Tantra
  • Activation of Third Eye
  • Guru Gita
  • Fragrance of Devotion
  • Beauty - A Joy forever
  • Kundalini naad Brahma
  • Essence of Shaktipat
  • Wealth and Prosperity
  • The Celestial Nymphs
  • The Ten Mahavidyas
  • Gopniya Durlabh Mantron Ke Rahasya.
  • Rahasmaya Agyaat tatntron ki khoj men.
  • Shmashaan bhairavi.
  • Himalaya ke yogiyon ki gupt siddhiyaan.
  • Rahasyamaya gopniya siddhiyaan.
  • Phir Dur Kahi Payal Khanki
  • Yajna Sar
  • Shishyopanishad
  • Durlabhopanishad
  • Siddhashram
  • Hansa Udahoon Gagan Ki Oar
  • Mein Sugandh Ka Jhonka Hoon
  • Jhar Jhar Amrit Jharei
  • Nikhileshwaranand Chintan
  • Nikhileshwaranand Rahasya
  • Kundalini Yatra- Muladhar Sey Sahastrar Tak
  • Soundarya
  • Mein Baahen Feilaaye Khada Hoon
  • Hastrekha vigyan aur panchanguli sadhana. 


and many more.........











सदगुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा वीडियो के माध्यम से गुरु दीक्षा

  

निखिल धाम [ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी को समर्पित मंदिर ]

    

निखिल धाम

[ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी को समर्पित मंदिर ]




परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [ डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] का यह दिव्य मंदिर है.

इसका निर्माण परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [Dr. Narayan dutta Shrimali Ji ] के प्रिय शिष्य स्वामी सुदर्शननाथ जी तथा डा साधना सिंह जी ने करवाया है.



यह [ Nikhildham ] भोपाल [ मध्यप्रदेश ] से लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर के पास लगभग ५ एकड के क्षेत्र में बना हुआ है.

यहां पर  महाविद्याओं के अद्भुत तेजस्वितायुक्त विशिष्ठ मन्दिर बनाये गये हैं.















सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ) : जन्मदिवस 21 अप्रेल

    


सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी )

किसी भी जीवित जागृत गुरु के साथ रहना मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य होता है .... 

चाहे वह एक क्षण के लिए ही क्यों ना हो ! 

कुछ मिनट के लिए ही क्यों ना हो !

अगर आप किसी सद्गुरु के साथ रहे हैंउनके साथ कुछ समय व्यतीत किया है तो उनकी सुगंध आपके जीवन में अवश्य मिलेगी.... 

यह समझ लीजिए कि आपके अंदर वह ऐसी सुगंध छोड़ देते हैं जो आपके पूरे जीवन भर लोगों को महसूस होती रहेगी.... 

 

जीवित गुरु के साथ रहना थोड़ा मुश्किल होता है !

क्योंकि एक तो उनकी परीक्षाएं बड़ी जटिल होती है .... 

दूसरे उनके साथ अगर आप रहे तो आपको निरंतर साधनाओं मे लगे रहना पड़ता है । आलस्य और प्रमाद की जगह नहीं होती । 

 

इसके अलावा तीसरी बात यह कि वे अपने इर्द-गिर्द माया का ऐसा आवरण फैलाते हैं कि अधिकांश शिष्य उसमें फस कर रह जाते हैं । 

बिरले ऐसे होते हैं जो उस माया के आवरण के परे जाकर भी सद्गुरु के ज्ञान को.... 

उनकी महत्ता को... 

उनके दिव्यत्व को थोडा बहुत समझ पाते हैं । 

जो उन्हें समझ लेता है.... 

जो उन्हें महसूस कर लेता है .... 

तो फिर उनकी क्रीडाउनकी माया सब कुछ अपने आप में समेट लेते हैं .... 

और अपने विराट स्वरूप का ज्ञान भी शिष्य को करा देते हैं और फिर ऐसा शिष्य जो स्वयं एक बीज के रूप में होता है..... 

वह धीरे धीरे बढ़ता हुआ पौधा बनता है और कालांतर में एक विशाल वटवृक्ष के जैसा बन जाता है .... 

जिसकी शरण में........ 

जिसकी छाया में धूप से संतप्त यात्री शरण लेते हैं ! भोजन कर सकते हैं !

कई प्रकार के पशु पक्षी उसके आश्रय में आकर निवास कर लेते हैं !

जब यह शिष्यत्व बढ़ता जाता है तो वह स्वयं एक कल्पवृक्ष के रूप में विकसित होने लगता है !

गुरु अपने अंदर स्थित कल्पवृक्ष जैसी क्षमताओं को उस शिष्य के अंदर प्रवाहित करना प्रारंभ कर देते हैं !

उसे समर्थ बना देते हैं !

सक्षम बना देते हैं .... 

ताकि वह भी उन्हीं के समान दूसरों की कठिनाइयों को हल करने की क्षमता प्राप्त कर सकें । 

जीवन में अद्वितीय सफलताओं को प्राप्त कर सके ..... 

साधना की उच्चता को प्राप्त कर सकें !

उस महामाया के सानिध्य को प्राप्त कर सकें !

महादेव का सौरभ अपने जीवन में महसूस कर सके !

जब ऐसी स्थिति आती है तो शिष्य निश्चिंत हो जाता है । निश्चिंत होने का मतलब यह नहीं है कि उसके जीवन में सब कुछ ठीक ही होगा.... जीवन में कोई समस्याएं नहीं होंगी.... 

हाँ ! समस्याएं आएंगी....

चिंताएं भी आएंगी.... 

लेकिन उनके समाधान का मार्ग भी उसी प्रकार से निकलता चला जाएगा । 

जीवन बड़ी ही सरलता से..... 

किसी बहती हुई नदी की तरह..... 

छल छल करता हुआ आगे की ओर बढ़ता रहेगा और आप उस आनंद में गुरु के सानिध्य के उस आनंद में अपने आप को आप्लावित करते हुए.... 

उनकी सुगंध को महसूस करते हुए.... 

स्वयं सुगंधित होते हुए आगे बढ़ते रहेंगे । 

 

मेरे सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का सानिध्य और उनके पास बिताए गए कुछ क्षण मेरे जीवन की धरोहर है !

मेरे जीवन का सौभाग्य है !

मेरी सबसे बड़ी पूंजी है !

आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि इस पृथ्वी पर गुरु तत्व से परे कुछ भी नहीं है । 

आपने एक अच्छा गुरु प्राप्त कर लिया !

एक अच्छे गुरु के सानिध्य में चले गए !!

आप एक अच्छे शिष्य बन गए !!!

तो यकीन मानिए इस पृथ्वी पर ऐसा कुछ भी नहीं है..... 

जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकते !

चाहे धन-संपत्ति हो

चाहे ईश्वरीय सानिध्य हो !

सब कुछ सहज उपलब्ध हो जाता है -----

 

पूज्यपाद गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी जिन्हें सन्यस्त रूप में परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के रूप में भी जाना जाता है.... 

वे वर्ष 1935 में 21 अप्रैल के दिन इस धरा पर अवतरित हुए थे । उन्होने अपने जीवन का एक लंबा कालखंड साधनाओं के विषय में.... 

तंत्र के विषय में.... 

गोपनीय ज्ञान को प्राप्त करने और इकट्ठा करने में बिताया था । 

उनका मूल लक्ष्य था कि वे भारत की साधनाओं को भारत की गोपनीय विद्याओं को वापस उनके मूल स्वरूप में पुनः स्थापित करके उनकी प्रतिष्ठा को वापस ला सके । 

इसके लिए उन्होंने बहुत गहन गंभीर प्रयास किए । उनका सबसे पहला प्रयास ज्योतिष विद्या के क्षेत्र था । उन्होंने ज्योतिष पर कई किताबें लिखीं । जिनमें कुंडली बनाने से लेकर भावों को देखकर उसकी गणना के द्वारा सटीक भविष्यफल बताने तक बहुत सारी विधि छोटी-छोटी पुस्तकों के रूप में उन्होंने प्रकाशित की थी । आज भी आप उन पुस्तकों को ध्यान से पढ़ लें । 

साल दो साल का समय दें ... 

तो यकीन मानिए कि आप एक अच्छे ज्योतिष बनने की दिशा में अग्रसर हो जाएंगे । 

 

इसी प्रकार उन्होंने हस्तरेखा पर भी एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा ग्रंथ लिखा है.... 

वृहद हस्तरेखा शास्त्र.... 

जिसमें हाथ की लकीरों और उन से बनने वाले विभिन्न प्रकार के योगों के बारे में पूरी व्याख्या दी गई है । 

अगर आप हस्तरेखा के क्षेत्र में रुचि रखते हैं तो आपको डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी की यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए । उसे अगर आप पूरी निष्ठा श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़कर उसके अनुसार विवेचन करने की कोशिश करेंगे तो यकीन मानिए कि आप जल्द ही एक प्रतिष्ठित हस्त रेखा शास्त्री के रूप में अपने आप को स्थापित कर लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने हस्तरेखा शास्त्र के विषय में आगे बढ़ने के लिए हस्त रेखाओं की अधिष्ठात्री देवी जिन्हें "पंचांगुली देवीकहा जाता है उनके साधना के संपूर्ण विधान को भी अपनी किताब "पंचांगुली साधनामें स्पष्ट किया है । 

यह साधना जटिल हैलेकिन अगर आप उस किताब के अनुसार इस साधना को संपन्न करते हैं तब भी आपको हस्त रेखाओं के ज्ञान में अनुकूलता और प्रभाव प्राप्त हो सकता है । 

 

एक और विषय जो उन्होंने प्रारंभिक स्तर पर उठाया था ... 

वह था हिप्नोटिज्म !

हिप्नोटिज्म का अर्थ होता है सम्मोहन या दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने की कला !

अगर आप देखें तो जीवन में खास तौर से गृहस्थ जीवन में हमारा अधिकांश समय दूसरों को प्रभावित करने में ही बीत जाता है.... 

हमारी अधिकांश सफलता का श्रेय भी इसी क्षमता को जाता है.... 

मान लीजिए कि आप एक दुकानदार हैआपका सामान तभी बिकेगा जब आप अपने ग्राहक को समझा पाए कि आपका सामान बढ़िया है और उसके लायक है । जब आप अपने सामान को और  उसकी विशेषताओं को इस प्रकार से प्रस्तुत करें कि वह व्यक्ति उसके प्रति आकर्षित हो जाए आपके प्रति आकर्षित हो जाए तब आपका सामान आराम से बिक जाएगा । 

विज्ञापन इसका एक उदाहरण है । उसमे ऐसे चेहरों का इस्तेमाल होता है जिनसे लोग पहले ही सम्मोहित होते हैं और उनके सम्मोहन के प्रभाव से कई फालतू के सामान जो शरीर के लिए हानिकारक हैं ... जैसे सॉफ्ट ड्रिंक..... वे भी बड़ी मात्रा मे बिक जाते हैं । 

इसी प्रकार से समाज में भी जब आप किसी समूह में या अपने विभाग में या अपने कार्यस्थल पर चर्चा करते हैं... 

या बातें करते हैं... 

या व्यवहार करते हैं... 

तो आपकी लोकप्रियता इस बात पर निर्भर होती है कि लोग आपसे कितने ज्यादा प्रभावित हैं ... 

या यूं कहिए कि लोग आपसे कितने ज्यादा सम्मोहित है.... 

यह सम्मोहन ही आपको सफलता प्रदान करता है । 

 

सम्मोहन का क्षेत्र बहुत व्यापक है !

अगर आप कोई इंटरव्यू देने जाते हैं तो इंटरव्यू की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप सामने बैठे हुए व्यक्ति को कितना प्रभावित कर पाते हैं ..... 

अगर वह आपसे प्रभावित है तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह आपका सिलेक्शन कर लेगा ..... 

लेकिन वह अगर आप से प्रभावित नहीं हुआ तो इस बात की संभावना है कि आप की योग्यताओं के साथ भी वह आपको रिजेक्ट कर सकता है.... 

 

अगर आप अध्यापन के क्षेत्र में है तो आप के विद्यार्थी आपकी बातों को मन से स्वीकार तभी करेंगे जब .... 

आपके बोलने की क्षमता में.... 

आपके विषय को प्रस्तुत करने की क्षमता में सम्मोहन होगा ... 

कई बार आप इसे देखते होंगे कि कुछ अध्यापक जब पढ़ाते हैं तो बच्चे पूरी शांति से बैठ कर उनको सुनते हैं .... 

चाहे वह कितने ही उल्टी बुद्धि के बच्चे क्यों ना हो । उनको उस अध्यापक के साथ पढ़ने में मजा आता है । यह उसके अंदर विकसित सम्मोहन की क्षमता है । इसी क्षमता को विकसित करने का अभ्यास ही हिप्नोटिज्म या सम्मोहन कहलाता है । 

इस विषय पर भी उन्होंने एक बहुत ही शानदार किताब लिखी है जिसका नाम है 

"प्रैक्टिकल हिप्नोटिज्म"

इसमें कई ऐसी विधियां दी हुई है जिसके आधार पर.... 

जिन के अभ्यास से... 

आप अपने आप को सम्मोहक स्वरूप प्रदान कर सकते हैं । 

 

आप यदि मंत्र के विषय में जानना चाहते हैं तो मुझे ऐसा लगता है कि डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के द्वारा लिखी गई किताब "मंत्र रहस्यआपके लिए  एक इनसाइक्लोपीडिया जैसा काम कर सकती है । उसमें मंत्रों के शास्त्रीय रहस्य को बड़े ही सरल ढंग से खोला गया है और लगभग सभी देवी देवताओं के मंत्र उसमें दिए हुए हैं । 

 

उनकी एक और किताब है तांत्रिक रहस्य जिसमें उन्होंने कुछ महाविद्या साधनाओं के विषय में भी विस्तार से प्रकाश डाला है । उनकी विधियां भी दी हुई है..... 

 

प्रेम 

अधिकांश गुरु प्रेम के विषय में चर्चा करने से बचते हैं लेकिन अगर आप देखें तो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे सुंदर अगर कोई चीज है तो वह है प्रेम ... 

एक माँ का अपने बच्चे के प्रति जो प्रेम होता है वह उसे विकसित होने बड़ा होने और सक्षम बनने में मदद करता है !

प्रकृति का जो प्रेम है वह हमें समय पर बारिश धूप सब कुछ प्रदान करता है !

पृथ्वी का प्रेम है जो हमें फसलों के रूप में पौधों के रूप में जीवन प्रदान करता है !

यह संपूर्ण सृष्टि उसी प्रेम के सानिध्य में पल रही है और बड़ी हो रही है .... 

 

लेकिन अधिकांश लोग प्रेम के विषय में चर्चा नहीं करना चाहते । 

वैसे प्रेम और लव में बहुत फर्क है..... 

हम अक्सर प्रेम को लव के साथ कंपेयर करने लग जाते हैं । लव एक पाश्चात्य शब्द है जो कि भौतिकता वादी है । उसके अंतर्गत सिर्फ शरीर और शरीर से सुख प्राप्त करने की क्रियाओं को ही लव माना जाता है लेकिन अगर आप देखें तो उनसे भी परे प्रेम का एक अद्भुत विराट और व्यापक संसार है.... जिसके प्रतीक हैं भगवान कृष्ण !

जिनके प्रेम की महक एक युग युग के बीत जाने के बाद भी आज तक हमारे बीच में मौजूद है !

उसका स्वरूप अलग अलग है लेकिन भगवान कृष्ण के प्रेम की जो मिठास है वह आज भी इस धरती पर महसूस की जा सकती है !

आज भी अगर आप भगवान कृष्ण के चित्र को देखेंगे तो आपके चेहरे पर एक मंद मुस्कान स्वतः बिखर जाएगी !

आपके हृदय में एक हल्की सी खुशी की लहर जरूर उठेगी.... 

यह उनकी प्रेम की विराटता का प्रतीक है !!!

 

प्रेम जैसे महत्वपूर्ण और रहस्यमय अछूते विषय पर

भी गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमली जी ने लिखा है.... 

प्रेम पर उनकी किताब का नाम है 

"फिर दूर कहीं पायल खनकी"

 

आप इस किताब को पढ़ेंगे तो आपको आश्चर्य होगा कि तंत्र साधना ओं के क्षेत्र में.... 

ज्योतिष के क्षेत्र में..... 

सम्मोहन के क्षेत्र में.... 

योग के क्षेत्र में.... 

आयुर्वेद के क्षेत्र में.... 

अद्भुत क्षमताएं रखने वाला एक विराट व्यक्तित्व प्रेम के विषय में कितनी सरलता सहजता और व्यापकता के साथ व्याख्या प्रस्तुत कर रहा है..... 

वास्तव में अगर आप प्रेम को समझना चाहते हैं तो आपको यह किताब पढ़नी चाहिए.... 

 

कुल मिलाकर मैं कहूंगा कि गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी एक अद्भुत व्यक्तित्व थे जिन्होंने जीवन के सभी आयामों को स्पर्श किया था । 

उनके जीवन में भी कई प्रकार की घटनाएं घटी !

कई ऐसे प्रसंग आए जो कि गृहस्थ जीवन में और सामाजिक जीवन में भी परेशानी देने वाले थे .... 

लेकिन उन्होंने उन सब को सहजता से स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहने का कार्य किया । 

मुझे ऐसा लगता है कि आज इस संपूर्ण विश्व में उनके शिष्यों की संख्या.... 

उनको मानने वालों की संख्या.... 

उनका सम्मान करने वालों की संख्या..... 

कई करोड़ होगी.... 

और यह संख्या बढ़ती रहेगी..... 

क्योंकि वह ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व है कि उनके जाने के वर्षों बाद भी उनका माधुर्य उनकी सुगंध इस धरती पर बिखरी हुई है .... 

आज भी वे शिष्यों को सपने मे या सूक्ष्म रूप मे दर्शन देते हैं .... 

उनको साधना के पथ पर आगे बढ़ाते हैं । 

आज उनकी मृत्यु को 24 साल हो गए हैं !

वर्ष 1998 में जुलाई के दिन ही उन्होंने अपनी पार्थिव देह को त्याग दिया था.... 

मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अपने गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित करता हुआ .... 

उनके चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम करता हुआ अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं.... 

कि हे गुरुदेव 

आपकी कृपा... 

आप का सानिध्य.... 

आपका आशीर्वाद .... 

धूल को फूल बना देने की क्षमता रखता है !

रंक को राजा बना देने की क्षमता रखता है !

 

आप वास्तव में अद्भुत हैं !!!