28 नवंबर 2025

निखिल धाम [ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी को समर्पित मंदिर ]

     

निखिल धाम

[ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी को समर्पित मंदिर ]




परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [ डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] का यह दिव्य मंदिर है.

इसका निर्माण परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [Dr. Narayan dutta Shrimali Ji ] के प्रिय शिष्य स्वामी सुदर्शननाथ जी तथा डा साधना सिंह जी ने करवाया है.



यह [ Nikhildham ] भोपाल [ मध्यप्रदेश ] से लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर के पास लगभग ५ एकड के क्षेत्र में बना हुआ है.

यहां पर  महाविद्याओं के अद्भुत तेजस्वितायुक्त विशिष्ठ मन्दिर बनाये गये हैं.















21 नवंबर 2025

गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी : एक प्रचंड तंत्र साधक

 गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी : एक प्रचंड तंत्र साधक



साधना का क्षेत्र अत्यंत दुरुह तथा जटिल होता है. इसी लिये मार्गदर्शक के रूप में गुरु की अनिवार्यता स्वीकार की गई है.
गुरु दीक्षा प्राप्त शिष्य को गुरु का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है.
बाहरी आडंबर और वस्त्र की डिजाइन से गुरू की क्षमता का आभास करना गलत है.
एक सफ़ेद धोती कुर्ता पहना हुआ सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति भी साधनाओं के क्षेत्र का महामानव हो सकता है यह गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी से मिलकर मैने अनुभव किया.

भैरव साधना से शरभेश्वर साधना तक.......
कामकला काली से लेकर त्रिपुरसुंदरी तक .......
अघोर साधनाओं से लेकर तिब्बती साधना तक....
महाकाल से लेकर महासुदर्शन साधना तक सब कुछ अपने आप में समेटे हुए निखिल तत्व के जाज्वल्यमान पुंज स्वरूप...
गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी
महाविद्या त्रिपुर सुंदरी के सिद्धहस्त साधक हैं.वर्तमान में बहुत कम महाविद्या सिद्ध साधक इतनी सहजता से साधकों के मार्गदर्शन के लिये उपलब्ध हैं.

आप चाहें तो उनसे संपर्क करके मार्गदर्शन ले सकते हैं :-

साधना सिद्धि विज्ञान
जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116

वेबसाइट:-

www.namobaglamaa.org


यूट्यूब चेनल :-

https://www.youtube.com/@MahavidhyaSadhakPariwar




17 नवंबर 2025

गुरुमाता डॉ. साधना सिंह : एक सिद्ध तंत्र गुरु

    गुरुमाता डॉ. साधना सिंह : एक सिद्ध तंत्र गुरु




वात्सल्यमयी गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी महाविद्या बगलामुखी की प्रचंड , सिद्धहस्त साधिका हैं.
स्त्री कथावाचक और उपदेशक तो बहुत हैं पर तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु अत्यंत दुर्लभ हैं.

तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु का बहुत महत्व होता है.
माँ अपने शिशु को स्नेह और वात्सल्य के साथ जो कुछ भी देती है वह उसके लिए अनुकूल हो जाता है . 

स्त्री गुरु मातृ स्वरूपा होने के कारण उनके द्वारा प्रदत्त मंत्र साधकों को सहज सफ़लता प्रदायक होते हैं. स्त्री गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र स्वयं में सिद्ध माने गये हैं.

वे एक  योगाचार्य और विश्वविख्यात होम्यो पैथ भी हैं । उनके लेख वर्षों तक प्रतिष्ठित पत्रिका निरोगधाम में प्रकाशित होते रहे हैं । आप उनसे अपनी असाध्य बीमारियों पर भी सलाह एप्वाइंटमेंट लेकर ले सकते हैं।

मैने तंत्र साधनाओं की वास्तविकता और उनकी शक्तियों का अनुभव पूज्यपाद सदगुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ] तथा उनके बाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी और गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी के सानिध्य में किया है ।

आप भी उनसे मिलकर प्रत्यक्ष मार्गदर्शन ले सकते हैं :-


जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116

वेबसाइट:-

www.namobaglamaa.org


यूट्यूब चेनल :-

https://www.youtube.com/@MahavidhyaSadhakPariwar

14 नवंबर 2025

दस महाविद्याये तथा उनकी साधना से होने वाले लाभ

  दस महाविद्याये तथा उनकी साधना से होने वाले लाभ 


मेरे सदगुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ने दसों महाविद्याओं के सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन किया है . उनके प्रवचन के ऑडियो/वीडियो आप इंटरनेट पर सर्च करके या यूट्यूब पर सुन सकते हैं . तथा विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं .  


जितना मैंने जाना है उसके आधार पर मुझे ऐसा लगता है कि सभी महाविद्याओं से आध्यात्मिक शक्ति की वृद्धि तथा सर्व मनोकामना की पूर्ती होती है . इसके अलावा जो विशेष प्रयोजन सिद्ध होते हैं उनका उल्लेख इस प्रकार से किया गया है .  

महाकाली - मानसिक प्रबलता /सर्वविध रक्षा / कुण्डलिनी जागरण /पौरुष 

तारा - आर्थिक उन्नति / कवित्व / वाक्शक्ति 

त्रिपुर सुंदरी - आर्थिक/यश / आकर्षण 

भुवनेश्वरी - आर्थिक/स्वास्थ्य/प्रेम 

छिन्नमस्ता - तन्त्रबाधा/शत्रुबाधा / सर्वविध रक्षा

त्रिपुर भैरवी - तंत्र बाधा / शत्रुबाधा / सर्वविध रक्षा

धूमावती - शत्रु बाधा / सर्वविध रक्षा 

बगलामुखी - शत्रु स्तम्भन / वाक् शक्ति / सर्वविध रक्षा

मातंगी - सौंदर्य / प्रेम /आकर्षण/काव्य/संगीत  

कमला - आर्थिक उन्नति 


महाविद्याओं की साधना उच्चकोटि की साधना है . आप अपनी रूचि के अनुसार किसी भी महाविद्या की साधना कर सकते हैं . महाविद्या साधना आपको जीवन में सब कुछ प्रदान करने में सक्षम है .

यदि आप सात्विक पद्धति से गृहस्थ जीवन में रहते हुए ही , महाविद्या साधना सिद्धि करना चाहते हैं तो आप महाविद्या से सम्बंधित दीक्षा तथा मंत्र प्राप्त करने के लिए मेरे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी से या गुरुमाता डा साधना सिंह जी से संपर्क कर सकते हैं .


विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए गए वेबसाइट तथा यूट्यूब चैनल का अवलोकन कर सकते हैं . 

contact for details
वेबसाइट
namobaglamaa.org

यूट्यूब चैनल
https://youtube.com/c/MahavidhyaSadhakPariwar

11 नवंबर 2025

काल भैरव साधना

    




काल भैरव साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में लाभकारी है :-
  • शत्रु बाधा.
  • तंत्र बाधा.
  • इतर योनी से कष्ट.
  • उग्र साधना में रक्षा हेतु.
काल भैरव मंत्र :-

|| ॐ भ्रं काल भैरवाय फट ||

विधि :-
  1. रात्रि कालीन साधना है.अमावस्या, नवरात्रि,कालभैरवाष्टमी, जन्माष्टमी या किसी भी अष्टमी से प्रारंभ करें.
  2. रात्रि 9 से 4 के बीच करें.
  3. काला आसन और वस्त्र रहेगा.
  4. रुद्राक्ष या काली हकिक माला से जाप करें.
  5. १०००,५०००,११०००,२१००० जितना आप कर सकते हैं उतना जाप करें.
  6. जाप के बाद १० वा हिस्सा यानि ११००० जाप करेंगे तो ११०० बार मंत्र में स्वाहा लगाकर हवन  कर लें.
  7. हवन सामान्य हवन सामग्री से भी कर सकते हैं.
  8. काली  मिर्च या  तिल का प्रयोग भी कर सकते हैं.
  9. अंत में एक कुत्ते को भरपेट भोजन करा दें. काला कुत्ता हो तो बेहतर.
  10. एक नारियल [पानीवाला] आखिरी दिन अपने सर से तीन बार घुमा लें, अपनी इच्छा उसके सामने बोल दें. 
  11. किसी सुनसान जगह पर बने शिव या काली मंदिर में छोड़कर बिना पीछे मुड़े वापस आ जाएँ. 
  12. घर में आकर स्नान कर लें. 
  13. दो अगरबत्ती जलाकर शिव और शक्ति से कृपा की प्रार्थना करें. 
  14. किसी भी प्रकार की गलती हो गयी हो तो उसके लिए क्षमा मांगे.
  15. दोनों अगरबत्ती घर के द्वार पर लगा दें.

10 नवंबर 2025

भैरव अष्टोत्तर शत नाम

 

     

    भैरव अष्टोत्तर शत नाम



    01) ॐ भैरवाय नम:
    02) ॐ भूतनाथाय नम: 
    03) ॐ भूतात्मने नम: 
    04) ॐ भूतभावनाय नम: 
    05) ॐ क्षेत्रदाय नम: 
    06) ॐ क्षेत्रपालाय नम: 
    07) ॐ क्षेत्रज्ञाय नम: 
    08) ॐ क्षत्रियाय नम: 
    09) ॐ विराजे नम: 
    10) ॐ श्मशानवासिने नम: 
    11) ॐ मांसाशिने नम: 
    12) ॐ खर्पराशिने नम: 
    13) ॐ स्मरांतकाय नम: 
    14) ॐ रक्तपाय नम: 
    15) ॐ पानपाय नम: 
    16) ॐ सिद्धाय नम: 
    17) ॐ सिद्धिदाय नम: 
    18) ॐ सिद्धसेविताय नम: 
    19) ॐ कंकालाय नम:
    20) ॐ कालशमनाय नम: 
    21) ॐ कलाकाष्ठाय नम: 
    22) ॐ तनये नम: 
    23) ॐ कवये नम:
    24) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
    25) ॐ बहुनेत्राय नम: 
    26) ॐ पिंगललोचनाय नम: 
    27) ॐ शूलपाणये नम: 
    28) ॐ खडगपाणये नम: 
    29) ॐ कंकालिने नम: 
    30) ॐ धूम्रलोचनाय नम: 
    31) ॐ अभीरवे नम: 
    32) ॐ भैरवीनाथाय नम: 
    33) ॐ भूतपाय नम: 
    34) ॐ योगिनीपतये नम: 
    35) ॐ धनदाय नम: 
    36) ॐ अधनहारिणे नम: 
    37) ॐ धनवते नम: 
    38) ॐ प्रीतिवर्धनाय नम: 
    39) ॐ नागहाराय नम: 
    40) ॐ नागपाशाय नम: 
    41) ॐ व्योमकेशाय नम: 
    42) ॐ कपालभृते नम: 
    43) ॐ कालाय नम: 
    44) ॐ कपालमालिने नम: 
    45) ॐ कमनीयाय नम: 
    46) ॐ कलानिधये नम: 
    47) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
    48) ॐ ज्वलन्नेत्राय नम: 
    49) ॐ त्रिशिखिने नम: 
    50) ॐ त्रिलोकपालाय नम: 
    51) ॐ त्रिवृत्ततनयाय नम: 
    52) ॐ डिंभाय नम: 
    53) ॐ शांताय नम: 
    54) ॐ शांतजनप्रियाय नम: 
    55) ॐ बटुकाय नम: 
    56) ॐ बटुवेशाय नम: 
    57) ॐ खट्वांगधराय नम: 
    58) ॐ भूताध्यक्षाय नम: 
    59) ॐ पशुपतये नम: 
    60) ॐ भिक्षकाय नम: 
    61) ॐ परिचारकाय नम: 
    62) ॐ धूर्ताय नम: 
    63) ॐ दिगंबराय नम: 
    64) ॐ शूराय नम: 
    65) ॐ हरिणे नम: 
    66) ॐ पांडुलोचनाय नम: 
    67) ॐ प्रशांताय नम: 
    68) ॐ शांतिदाय नम: 
    69) ॐ शुद्धाय नम: 
    70) ॐ शंकरप्रियबांधवाय नम: 
    71) ॐ अष्टमूर्तये नम: 
    72) ॐ निधीशाय नम: 
    73) ॐ ज्ञानचक्षुषे नम: 
    74) ॐ तपोमयाय नम: 
    75) ॐ अष्टाधाराय नम: 
    76) ॐ षडाधाराय नम: 
    77) ॐ सर्पयुक्ताय नम: 
    78) ॐ शिखिसखाय नम: 
    79) ॐ भूधराय नम: 
    80) ॐ भूधराधीशाय नम: 
    81) ॐ भूपतये नम: 
    82) ॐ भूधरात्मजाय नम: 
    83) ॐ कपालधारिणे नम: 
    84) ॐ मुंडिने नम: 
    85) ॐ नागयज्ञोपवीतवते नम: 
    86) ॐ जृंभणाय नम: 
    87) ॐ मोहनाय नम: 
    88) ॐ स्तंभिने नम: 
    89) ॐ मारणाय नम: 
    90) ॐ क्षोभणाय नम: 
    91) ॐ शुद्धनीलांजनप्रख्याय नम: 
    92) ॐ दैत्यघ्ने नम: 
    93) ॐ मुंडभूषिताय नम: 
    94) ॐ बलिभुजे नम: 
    95) ॐ बलिभुंगनाथाय नम: 
    96) ॐ बालाय नम: 
    97) ॐ बालपराक्रमाय नम: 
    98) ॐ सर्वापत्तारणाय नम: 
    99) ॐ दुर्गाय नम: 
    100) ॐ दुष्टभूतनिषेविताय नम: 
    101) ॐ कामिने नम: 
    102) ॐ कलानिधये नम: 
    103) ॐ कांताय नम: 
    104) ॐ कामिनीवशकृद्वशिने नम: 
    105) ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम: 
    106) ॐ वैद्याय नम: 
    107) ॐ प्रभवे नम: 
    108) ॐ विष्णवे नम:

    विधि:-
    • काला/लाल वस्त्र पहनें.
    • दक्षिण दिशा की और मुख रखें .
    • भैरव यंत्र या चित्र या पंचमुखी रुद्राक्ष रखकर कर सकते हैं .
    • सरसों के तेल का दीपक जला सकते हैं .
    • हर मन्त्र के साथ सिंदूर या लाल पुष्प चढ़ाएं .

9 नवंबर 2025

भैरवं नमामि

  


भैरवं नमामि
यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानं
सं सं सं संहार मूर्ति शुभ मुकुट जटा शेखरं चन्द्र विम्बं
दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुख चौर्ध्व रोमं करालं
पं पं पं पाप नाशं प्रणमतं सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ १ ॥
रं रं रं रक्तवर्णं कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्रा विशालं
घं घं घं घोर घोषं घ घ घ घ घर्घरा घोर नादं
कं कं कं कालरूपं धग धग धगितं ज्वलितं कामदेहं
दं दं दं दिव्य देहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ २ ॥
लं लं लं लम्ब दन्तं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वाकरालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्ण स्फुट विकृत मुखंमासुरं भीम रूपं
रूं रूं रूं रुण्डमालं रुधिरमय मुखं ताम्र नेत्रं विशालं
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ३ ॥
वं वं वं वायुवेगं प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवन निलयं भास्करं भीमरूपं
चं चं चं चालयन्तं चल चल चलितं चालितं भूत चक्रं
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ४ ॥
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालान्धकारं
क्षि क्षि क्षि क्षिप्र वेग दह दह दहन नेत्रं सन्दीप्यमानं
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहन गर्जितं भूमिकंपं
बं बं बं बाललीलम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ५ ॥

  • भैरव प्रार्थना है.
  • उनकी कृपा प्रदान करती है .

8 नवंबर 2025

रक्षा कारक भैरव् यंत्र !

 रक्षा कारक भैरव् यंत्र  !



नकारात्मक शक्तियों से परेशान हैं ?

घर/दुकान पर तंत्र प्रयोग का संदेह है ?

तो आपको रक्षा प्रयोग करना चाहिए ....  

रक्षा कारक देवताओं में भगवान भैरव को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है । इन्हें भगवान शिव का ही एक स्वरूप माना गया है । प्रत्येक पूजन में विघ्नों से रक्षा के लिए भगवान गणेश की पूजा के पश्चात सर्व विध रक्षा के लिए भगवान श्री भैरव का पूजन संपन्न किया जाता है . प्रमुख रूप से आठ प्रकार के भैरव माने गए हैं । कई तांत्रिक ग्रन्थों में 51 और 64 प्रकार के भैरव का भी उल्लेख मिलता है । 

यूट्यूब पर उपलब्ध विडियोस मे आप पाएंगे कि गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी ने अपने प्रवचनों में कई बार भैरव साधना के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां दी है उनमें से एक महत्वपूर्ण जानकारी यह भी है कि भैरव यंत्र का पूजन करके अगर आप उसे घर के प्रमुख द्वार के ऊपर लटका दें तो नकारात्मक शक्तियों का घर के अंदर प्रवेश नहीं हो पाता है ।.

आपके नाम से भैरव यंत्र [शुल्क- पाँच सौ एक रुपये मात्र] अभिमंत्रित करके आपको स्पीड पोस्ट से भेजने की व्यवस्था हमारे प्रतिष्ठान " अष्टलक्ष्मी पूजा सामग्री" की तरफ से की जा सकती है, इसके लिए आप इस क्यूआर कोड़ का उपयोग भी कर सकते हैं :- 





यदि आप इच्छुक हो तो आप निम्नलिखित जानकारी मेरे व्हाट्सएप नंबर 7000630499 पर भेज देंगे  ➖

1> निर्धारित शुल्क 501 रुपये का शुल्क फोन पे/गूगल पे//पे टी एम  के द्वारा भेजे जाने की रसीद/स्क्रीन शॉट ।

2> आपका नाम ।

3> आपका गोत्र, जन्म तिथि,समय,स्थान (यदि मालूम हो तो )

4> बिना चश्मे के आपकी एक ताजा फोटो जिसमे आपका चेहरा और आँखें स्पष्ट दिखती हों ।

5> पिन कोड़ सहित, आपका पूरा डाक का पता, जिस पते पर पार्सल भेजना है । साथ मे आपका वह मोबाइल नंबर जिसपर पोस्टमेन आवश्यकता पड़ने पर आपसे पार्सल डिलिवरी के समय संपर्क कर सके ।



7 नवंबर 2025

काल भैरव अष्टकम

  


काल भैरव अष्टकम

देवराज सेव्यमान पावनांघ्रि पङ्कजं व्याल यज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् ।

नारदादि योगिवृन्द वन्दितं दिगंबरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ १॥

जिनके चरण कमलों की पूजा देवराज इन्द्र द्वारा की जाती हैजिन्होंने सर्प को एक यज्ञोपवीत के रूप में धारण किया हैजिनके ललाट पर चन्द्रमा शोभायमान है और जो अति करुणामयी हैंजिनकी स्तुति देवों के मुनि नारद और सभी योगियों द्वारा की जाती हैजो दिगंबर रूप में रहते हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

भानुकोटि भास्वरं भवाब्धि तारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थ दायकं त्रिलोचनम् ।

काल कालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ २॥

जिनकी आभा कोटि सूर्यों के प्रकाश के समान हैजो अपने भक्तों को जन्म मृत्यु के चक्र से रक्षा करते हैंऔर जो सबसे महान हैं जिनका कंठ नीला हैजो हमारी इच्छाओं और आशाओं को पूरा करते हैं और जिनके तीन नेत्र हैंजो स्वयं काल के लिए भी काल हैं और जिनके नयन पंकज के पुष्प जैसे हैंजिनके हाथ में त्रिशूल हैऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

शूलटंक पाशदण्ड पाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डवप्रियं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ३॥

जिनके हाथों में त्रिशूलकुल्हाड़ीपाश और दंड धारण किए हैंजिनका शरीर श्याम हैजो स्वयं आदिदेव हैं और अविनाशी हैं और सांसारिक दुःखों से परे हैंजो सर्वशक्तिमान हैंऔर विचित्र तांडव उनका प्रिय नृत्य हैऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

भुक्ति मुक्तिदायकं प्रशस्त चारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्त लोकविग्रहम् ।

विनिक्वणन्मनोज्ञ हेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ ४॥

जो अपने भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति और मुक्तिदोनों प्रदान करते हैं और जिनका रूप मनमोहक हैजो अपने भक्तों से सदा प्रेम करते हैं और समूचे ब्रह्मांड मेंतीनों लोकों में में स्थित हैंजिनकी कमर पर सोने की घंटियाँ बंधी हुई है और जब भगवान चलते हैं तो उनमें से सुरीले सुर निकलते हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

धर्मसेतु पालकं त्वधर्म मार्गनाशनं कर्मपाश मोचकं सुशर्म धायकं विभुम् ।

स्वर्णवर्ण शेषपाश शोभितांग मण्डलं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥

काशी नगर के स्वामीभगवान कालभैरवजो सदैव धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करते हैंजो हमें कर्मों के बंधन से मुक्त करके हमारी आत्माओं को मुक्त करते हैंऔर जो अपने तन पर सुनहरे रंग के सर्प लपेटे हुए हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

रत्नपादुका प्रभाभिरामपाद युग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्ट दैवतं निरंजनम् ।

मृत्युदर्प नाशनं कराल दंष्ट्रमोक्षणं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ६॥

जिनके दोनों पैरों में रत्नजड़ित पादुकायें हैंजो शाश्वत्अद्वैत इष्ट देव हैं और हमारी कामनाओं को पूरा करते हैंजो मृत्यु के देवतायम का दर्प नष्ट करने मे सक्षम हैंजिनके भयानक दाँत हमारे लिए मुक्तिदाता हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।

अष्टसिद्धि दायकं कपालमालिका धरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ७॥

जिनके हास्य की प्रचंड ध्वनि कमल जनित ब्रह्मा जी द्वारा रचित सृष्टियों को नष्ट कर देती हैंअर्थात् हमारे मन की भ्रांतियों को दूर करती हैजिनके एक दृष्टिपात मात्र से हमारे सभी पाप नष्ट हो जाते हैंजो अष्टसिद्धि के दाता हैं और जो खोपड़ियों से बनी माला धारण किए हुए हैंकाशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

भूतसंघ नायकं विशाल कीर्तिदायकं काशिवास लोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।

नीतिमार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ८॥

जो भूतों के संघ के नायक हैंजो अद्भुत कीर्ति प्रदान करते हैंजो काशी की प्रजा को उनके पापों और पुण्य दोनों से मुक्त करते हैंजो हमें नीति और सत्य का मार्ग दिखाते हैं और जो ब्रह्मांड के आदिदेव हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञान मुक्तिसाधनं विचित्र पुण्य वर्धनम्।

शोक मोह दैन्य लोभ कोप तापनाशनं ते प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम्॥९॥

यह अतिसुंदर काल भैरव अष्टकजो ज्ञान तथा मुक्ति का स्रोत हैजो व्यक्ति में सत्य और नीति के आदर्शों को स्थापित करने वाला हैजो दुःखरागनिर्धनतालोभक्रोधऔर ताप को नाश करने वाला है । इस स्तोत्र का जो पाठ करता है वह भगवान कालभैरव अर्थात् शिव चरणों को प्राप्त करता है ।


विधि :-

भगवान काल भैरव के इस अष्टक का नित्य 11 पाठ 11 दिन करें । 

सामने सरसों के तेल का दीपक जलाकर जाप करेंगे । 

काले रंग का वस्त्र और आसन पहनकर बैठें ।  

19 अक्टूबर 2025

शाबर लक्ष्मी मंत्र

शाबर मंत्र सामान्य जन की भाषा में लिखे हुए मंत्र होते हैं और उसमें व्याकरण की त्रुटि या शब्दों का अर्थ निकालने का प्रयास नहीं करना चाहिए और वे जैसे हैं वैसे ही पाठ कर लेना चाहिए ।

इसमें अलग-अलग स्रोतों के हिसाब से शब्दों में फर्क पड़ सकता है जो कि अलग-अलग साधकों के द्वारा अपने ढंग से प्रस्तुत किए जाते हैं लेकिन सभी सुखद परिणाम देते हैं।
पढ़ने में सरल होते हैं इसलिए कोई भी व्यक्ति से कर सकता है ।
इन मंत्रों का प्रयोग पुरुष या स्त्री कोई भी कर सकता है ।

मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरु को |
नमो सिद्ध गणपति प्रसादात विघ्न हर्तुम गणपत गणपत वसो मसाण |
जो फल चाहूं सो फल आण , पञ्च लाडूँ , सिर सिन्दूर , रिद्धि सिद्धि आण |
गौरी का पुत्र सिंहासन बैठा |
राजा काम्पै प्रजा काम्पै दृष्टे राजा सिम चाम्पे| पञ्च कोष पूर्व पश्चिम से आण उत्तर से आण दक्षिण से आण |
इतनी कर रिद्धि सिद्धि मेरे घर द्वार आण|
राजा प्रजा अभी मेरो पड़े पाँव न पड़े तो लाजे मैया गौरी |
जो मै देखूं गणेश बाला कर मंत्र का सत की फट फट स्वाहा |


विधि:-

भोजपत्र पर इस मंत्र को लिख कर उसके सामने 1008  बार जाप करें . भोजपत्र न मिले तो कागज या रेशमी कपडे पर लिख सकते हैं . लिखने के लिए अष्टगंध या कुमकुम का प्रयोग करें . 

जाप के समय गुग्गुल का धुप जलता रहे तो अच्छा है.
जाप के बाद ताबीज में भरकर पहन लें या धन रखने के स्थान में रख लें.
दूकान हो तो वहां गल्ले में भी रख सकते हैं.

भगवती महालक्ष्मी पूजन

भगवती महालक्ष्मी पूजन 


पूजन सामग्री :-
हल्दी,कुमकुम ,चन्दन ,अष्टगंध ,अक्षत ,इत्र ,कपूर,फुल,फल,मिठाई ,पान,अगरबत्ती,दीपक, कलश  आदि । 
जो सामग्री उपलब्ध हो वह रखें और जो उपलब्ध ना हो पाए उसके लिए चिंता ना करें । 
प्रयास करें कि सारी सामग्रियां उपलब्ध हो क्योंकि देवी महालक्ष्मी के पूजन में कंजूसी नहीं करनी चाहिए और यथासंभव अपनी क्षमता के अनुसार पूजन संपन्न करना चाहिए । 
पूजन सामग्री भी अच्छी क्वालिटी का ही रखें । 
जिस स्थान पर बैठे वह साफ सुथरा हो । 
आपके कपड़े साफ सुथरे हो । 
महिलाएं हो तो श्रृंगार कर के बैठे हैं पुरुष हो तो साफ-सुथरे धुले हुए वस्त्र पहन कर बैठे । 
यदि इत्र या परफ्यूम उपलब्ध हो तो उसे लगाएं । 
पूजा स्थान में अगरबत्ती या खुशबूदार इत्र का छिड़काव करें ।

यदि गुरु दीक्षा प्राप्त हो तो गुरु का चित्र अवश्य रखें क्योंकि गुरु लक्ष्मी के आने पर उसके दुरुपयोग किए जाने से आपकी रक्षा करता है और आपको  सदबुद्धि देता है कि आप उस धन का सदुपयोग करें ।


पूजा स्थान में गुरुचित्र,लक्ष्मी का चित्र / श्री यंत्र / शंख/ महाविद्या यन्त्र या फोटो जो भी उपलब्ध हो वह रखें ।

गुरु को प्रणाम करें । 
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः

इसके बाद भगवान गणेश को याद करें और उन्हें पूजा में सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करने की प्रार्थना करें । 
ॐ श्री गणेशाय नमः

भगवान भैरव को याद करें और पूजन की रक्षा करने की प्रार्थना करें । 
ॐ भ्रम भैरवाय नमः ।

इसके बाद तंत्र के अधिपति भगवान शिव और मां जगदंबा को ज्ञात करें उन्हें प्रणाम करें उनसे आशीर्वाद लें कि आपको पूजन में सफलता प्राप्त हो और भगवती महालक्ष्मी आपकी पूजा को स्वीकार कर अनुकूलता प्रदान करें । 
ॐ सांब सदाशिवाय नमः

देवी महालक्ष्मी से प्रार्थना करें कि मैं आपका पूजन करने जा रहा हूं और आप मुझे इसके लिए अनुमति प्रदान करें
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः

अब आप 4 बार आचमन करे ( दाए हाथ में पानी लेकर पिए )
श्रीं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
श्रीं विद्या तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
श्रीं शिव तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
श्रीं सर्व तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा

अब आप घंटी बजाएं । घंटे को पुष्प समर्पित करें । 
अब आप जिस आसन पर बैठे है उस पर पुष्प अक्षत अर्पण करे । पृथ्वी पर हम बैठे हैं इसलिए उसे प्रणाम करें और उनसे भी आशीर्वाद लें कि आपको पूजन में सफलता प्राप्त हो ।

पृथ्वी देव्ये नमः 
आसन देवताभ्यो नमः

दीपक जलाकर उसका पूजन करे । उन्हें प्रणाम करे और पुष्प अक्षत अर्पण करे । अग्नि का स्वरूप होता है दीपक और उसे शक्ति का प्रतीक माना जाता है इसी भाव के साथ उसे प्रणाम करेंगे । 
दीप देवताभ्यो नमः ।

तांबे या मिट्टी से बना हुआ कलश लेकर उसमें पानी भर कर आप स्थापित कर सकते हैं यह अमृत का प्रतीक माना जाता है अर्थात जीवन में संपूर्णता प्रदान करने वाला .....

कलश का पूजन करे ..
उसमे गंध ,अक्षत ,पुष्प ,तुलसी,इत्र ,कपूर डाले ..
कलश देवताभ्यो नमः ।


उसे सात बार तिलक करे .
त्रिदेवाय नमः । 
चतुर्वेदाय नमः ।

अब आप अपने आप को तिलक करे । इसके लिए आप महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग कर सकते हैं और यदि आपको ज्ञात नहीं है तो महालक्ष्मी नमः ऐसा बोल कर अपने माथे पर तिलक लगा सकते हैं । तिलक कुमकुम अष्टगंध केसर किसी भी चीज का लगा सकते हैं ।

संकल्प :-
संकल्प का तात्पर्य होता है कि आप संबंधित देवी या देवता के साथ एक प्रकार का अनुबंध कर रहे हैं कि मैं आपकी कृपा के प्राप्ति के लिए यह कार्य कर रहा हूं और आप खुश होकर मेरी मनोकामना को पूर्ण करें ।

दाहिने हाथ में जल,पुष्प,अक्षत लेकर संकल्प करे 
मैं (अपना नाम) आज दीपावली  के शुभ मुहूर्त पर अपने ज्ञान और क्षमता के अनुसार जैसा संभव हो उस प्रकार से महालक्ष्मी पूजन कर रहा हूँ । मेरा पूजन ग्रहण करे और मुझपर कृपा दृष्टी रखे तथा मेरी मनोकामना ( आपकी जो इच्छा है उसे यहां पर बोले ) पूर्ण करे ।

अब जल को पूजा स्थान पर छोडे ..
अब आप गणेशजी का स्मरण करे

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा

प्रत्येक कार्य के लिए महागणपति का पूजन अनिवार्य होता है । वह बुद्धि के अधिपति हैं और साथ ही लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान करते हैं इसलिए हमेशा महालक्ष्मी का पूजन गणपति के साथ ही किया जाना चाहिए ...

श्री महागणपति आवाहयामि
मम पूजन स्थाने ऋद्धि सिद्धि सहित शुभ लाभ सहित स्थापयामि नमः

ॐ श्री गणेशाय नमः गंधाक्षत समर्पयामि
कुमकुम और चावल चढ़ाएं

ॐ श्री गणेशाय नमः पुष्पं समर्पयामि
फूल चढ़ाएं

ॐ श्री गणेशाय नमः धूपं समर्पयामि
अगरबत्ती धूप दिखाएं

ॐ श्री गणेशाय नमः दीपं समर्पयामि
दीपक प्रदर्शित करें

ॐ श्री गणेशाय नमः नैवेद्यं समर्पयामि
प्रसाद समर्पित करें ।

अब नीचे दिये हुये गणपती माला मंत्र का पाठ कर पुष्प अर्पण करे
श्री गणपती माला मंत्र 
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ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं ग्लौं ॐ ह्रीं क्रौं गं ॐ नमो भगवते महागणपतये स्मरणमात्रसंतुष्टाय सर्वविद्याप्रकाशकाय सर्वकामप्रदाय भवबंधविमोचनाय ह्रीं सर्वभूतबंधनाय क्रों साध्याकर्षणाय क्लीं जगतत्रयवशीकरणाय सौ: सर्वमनक्षोभणाय श्रीं महासंपत्प्रदाय ग्लौं भूमंडलाधिपत्यप्रदाय महाज्ञानप्रदाय चिदानंदात्मने गौरीनंदनाय महायोगिने शिवप्रियाय सर्वानंदवर्धनाय सर्वविद्याप्रकाशनप्रदाय द्रां चिरंजिविने ब्लूं सम्मोहनाय ॐ मोक्षप्रदाय ! फट वशी कुरु कुरु! वौषडाकर्षणाय हुं विद्वेषणाय विद्वेषय विद्वेषय ! फट उच्चाटय उच्चाटय ! ठ: ठ: स्तंभय स्तंभय ! खें खें मारय मारय ! शोषय शोषय ! परमंत्रयंत्रतंत्राणि छेदय छेदय ! दुष्टग्रहान निवारय निवारय ! दु:खं हर हर ! व्याधिं नाशय नाशय ! नम: संपन्नय संपन्नय स्वाहा ! सर्वपल्लवस्वरुपाय महाविद्याय गं गणपतये स्वाहा ! 
यन्मंत्रे क्षितलांछिताभमनघं मृत्युश्च वज्राशिषो भूतप्रेतपिशाचका: प्रतिहता निर्घातपातादिव ! उत्पन्नं च समस्तदु:खदुरितं उच्चाटनोत्पादकं वंदेsभीष्टगणाधिपं भयहरं विघ्नौघनाशं परम ! ॐ गं गणपतये नम:
ॐ नमो महागणपतये , महावीराय , दशभुजाय , मदनकाल विनाशन , मृत्युं
हन हन , यम यम , मद मद , कालं संहर संहर , सर्व ग्रहान चूर्णय चूर्णय , नागान मूढय मूढय , रुद्ररूप, त्रिभुवनेश्वर , सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा ! 
ॐ नमो गणपतये , श्वेतार्कगणपतये , श्वेतार्कमूलनिवासाय , वासुदेवप्रियाय , दक्षप्रजापतिरक्षकाय , सूर्यवरदाय , कुमारगुरवे , ब्रह्मादिसुरावंदिताय , सर्पभूषणाय , शशांकशेखराय , सर्पमालालंकृतदेहाय , धर्मध्वजाय , धर्मवाहनाय , त्राहि त्राहि , देहि देहि , अवतर अवतर , गं गणपतये , वक्रतुंडगणपतये , वरवरद , सर्वपुरुषवशंकर , सर्वदुष्टमृगवशंकर , सर्वस्ववशंकर , वशी कुरु वशी कुरु , सर्वदोषान बंधय बंधय , सर्वव्याधीन निकृंतय निकृंतय , सर्वविषाणि संहर संहर , सर्वदारिद्र्यं मोचय मोचय , सर्वविघ्नान छिंदि छिंदि , सर्ववज्राणि स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून उच्चाटय उच्चाटय , सर्वसिद्धिं कुरु कुरु , सर्वकार्याणि साधय साधय , गां गीं गूं गैं गौं गं गणपतये हुं फट स्वाहा ! 
ॐ नमो गणपते महावीर दशभुज मदनकालविनाशन मृत्युं हन हन , कालं संहर संहर , धम धम , मथ मथ , त्रैलोक्यं मोहय मोहय , ब्रह्मविष्णुरुद्रान मोहय मोहय , अचिंत्य बलपराक्रम , सर्वव्याधीन विनाशाय , सर्वग्रहान चूर्णय चूर्णय , नागान मोटय मोटय , त्रिभुवनेश्वर सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा !



अब नीचे दिये हुये नामों से गणेश जी को दुर्वा या पुष्प अक्षत अर्पण करे

गं सुमुखाय नम:
गं एकदंताय नम:
गं कपिलाय नम:
गं गजकर्णकाय नम:
गं लंबोदराय नम:
गं विकटाय नम:
गं विघ्नराजाय नम:
गं गणाधिपाय नम:
गं धूम्रकेतवे नम:
गं गणाध्यक्षाय नम:
गं भालचंद्राय नम:
गं गजाननाय नम:
गं वक्रतुंडाय नम:
गं शूर्पकर्णाय नम:
गं हेरंबाय नम:
गं स्कंदपूर्वजाय नम:

अब गणेशजी को अर्घ्य (एक चम्मच जल )प्रदान करे

एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात

महालक्ष्मी विष्णु पत्नी है। जहां भगवान विष्णु का पूजन होता है वहाँ लक्ष्मी अपने आप आती है
विष्णु ध्यान :-
शान्ताकारं भुजंग शयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभांगम
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगीर्भि ध्यानगम्यम् 
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैक नाथम्

ॐ श्री विष्णवे नमः

श्री महाविष्णु आवाहयामि मम पूजा स्थाने स्थापयामि पूजयामि नमः

ॐ श्री विष्णवे नमः गंधाक्षत समर्पयामि
कुमकुम चावल समर्पित करें

ॐ श्री विष्णवे नमः पुष्पं समर्पयामि
फूल चढ़ाएं

ॐ श्री विष्णवे नमः धूपं समर्पयामि
धूप अगरबत्ती दिखाएं

ॐ श्री विष्णवे नमः दीपं समर्पयामि
दीपक दिखाएं


ॐ श्री विष्णवे नमः नैवेद्यं समर्पयामि
प्रसाद समर्पित करें

भगवान विष्णु का पूजन तथा ध्यान करने से देवी महालक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं इसलिए आप चाहे तो यहाँ पुरुषसूक्त , विष्णुसूक्त का पाठ कर सकते है ..

अब भगवान विष्णु के 24 नामों से तुलसी या पुष्प अर्पण करे ।

१. ॐ केशवाय नमः
२. ॐ नारायणाय नमः
३. ॐ माधवाय नमः
४. ॐ गोविन्दाय नमः
५. ॐ विष्णवे नमः
६. ॐ मधुसूदनाय नमः
७. ॐ त्रिविक्रमाय नमः
८. ॐ वामनाय नमः
९. ॐ श्रीधराय नमः
१०. ॐ ऋषिकेशाय नमः
११. ॐ पद्मनाभाय नमः
१२. ॐ दामोदराय नमः
१३. ॐ संकर्षणाय नमः
१४. ॐ वासुदेवाय नमः
१५. ॐ प्रद्युम्नाय नमः
१६. ॐ अनिरुद्धाय नमः
१७. ॐ पुरुषोत्तमाय नमः
१८. ॐ अधोक्षजाय नमः
१९. ॐ नारसिंहाय नमः
२०. ॐ अच्युताय नमः
२१. ॐ जनार्दनाय नमः
२२. ॐ उपेन्द्राय नमः
२३. ॐ हरये नमः
२४. ॐ श्रीकृष्णाय नमः

अब भगवान विष्णु को अर्घ्य प्रदान करे
एक चम्मच जल डालें

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात

महालक्ष्मी ध्यान 
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या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गंभीरावर्तनाभिस्तनभारनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया
या लक्ष्मी दिव्यरुपै मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः
सानित्यं पद्महस्ता मम वसतु गॄहे सर्वमांगल्ययुक्ता

इस प्रकार से महालक्ष्मी का आह्वान करने के बाद ऐसी भावना करें कि वे अपने दिव्य स्वरुप में आपके घर में ! आपके कुल में !! आपके पूजा स्थान में !!! आकर स्थापित हो रही हैं और आपको अपने आशीर्वाद से आप्लावित कर रही हैं ....

श्री महालक्ष्मी आवाहयामि मम गृहे मम कुले मम पूजा स्थाने आवाहयामि स्थापयामि नमः
( पुष्प अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आवाहनं समर्पयामि

( पुष्प अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि

( दो आचमनी जल अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पाद्यो पाद्यं समर्पयामि


(जल में चन्दन अष्ट गंध मिलाकर अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः अर्घ्यम समर्पयामि

( एक आचमनी जल अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि

( स्नान के लिए जल अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः स्नानं समर्पयामि

( मौली/ लाल धागा या अक्षत अर्पण करे )
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः उप वस्त्रं समर्पयामि

हल्दी कुमकुम अर्पण करे 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः हरिद्रा कुमकुम समर्पयामि

चंदन अष्टगंधअर्पण करे 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः चन्दन अष्ट गंधं समर्पयामि

इतर या गुलाब का जल अर्पण करे 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः सुगन्धित द्रव्यम समर्पयामि

चावल अर्पण करे
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः अलंकारार्थे अक्षतान समर्पयामि

फूल अर्पण करे
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पं समर्पयामि

फूलों की माला अर्पण करे 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पमालाम समर्पयामि

धूप दिखाएं 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं समर्पयामि

दीपक प्रदर्शित करें
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं समर्पयामि

प्रसाद चढ़ाएं
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि

फल समर्पित है
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः फलं समर्पयामि

जल चढ़ाएं
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि

मीठे पान का बीडा हो तो उसे समर्पित करें और ना हो तो लोंग इलाइची सुपारी पान का पत्ता समर्पित करें
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि

दक्षिणा समर्पित करें इसे पूजन समाप्त हो जाने के बाद किसी विवाहित स्त्री को दे दे । 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः द्रव्य दक्षिणा समर्पयामि

कपूर जलाकर आरती करें 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः कर्पुर आरती समर्पयामि ।

अष्ट सिद्धियों का पूजन 
गंध अक्षत पुष्पं अर्पण करे
ॐ अणिम्ने नमः
ॐ महिम्ने नमः
ॐ गरिम्ने नमः
ॐ लघिम्ने नमः
ॐ प्राप्त्यै नमः
ॐ प्राकाम्यै नमः
ॐ इशितायै नमः
ॐ वशितायै नमः

अष्टलक्ष्मी का पूजन

गंध अक्षत पुष्पं अर्पण करे
ॐ आद्य लक्ष्म्यै नमः
ॐ धन लक्ष्म्यै नमः
ॐ धान्य लक्ष्म्यै नमः
ॐ धैर्य लक्ष्म्यै नमः
ॐ गज लक्ष्म्यै नमः
ॐ संतान लक्ष्म्यै नमः
ॐ विद्या लक्ष्म्यै नमः
ॐ विजय लक्ष्म्यै नमः

भगवती महालक्ष्मी के 32 नाम पढ़कर पुष्प अक्षत चढ़ाते जाए।

1. ॐ श्रियै नमः।
2. ॐ लक्ष्म्यै नमः।
3. ॐ वरदायै नमः।
4. ॐ विष्णुपत्न्यै नमः।
5. ॐ वसुप्रदायै नमः।
6. ॐ हिरण्यरूपिण्यै नमः।
7. ॐ स्वर्णमालिन्यै नमः।
8. ॐ रजतस्त्रजायै नमः।
9. ॐ स्वर्णगृहायै नमः।
10. ॐ स्वर्णप्राकारायै नमः।
11. ॐ पद्मवासिन्यै नमः।
12. ॐ पद्महस्तायै नमः।
13. ॐ पद्मप्रियायै नमः।
14. ॐ मुक्तालंकारायै नमः।
15. ॐ सूर्यायै नमः।
16. ॐ चंद्रायै नमः।
17. ॐ बिल्वप्रियायै नमः।
18. ॐ ईश्वर्यै नमः।
19. ॐ भुक्त्यै नमः।
20. ॐ प्रभुक्त्यै नमः।
21. ॐ विभूत्यै नमः।
22. ॐ ऋद्धयै नमः।
23. ॐ समृद्ध्यै नमः।
24. ॐ तुष्टयै नमः।
25. ॐ पुष्टयै नमः।
26. ॐ धनदायै नमः।
27. ॐ धनैश्वर्यै नमः।
28. ॐ श्रद्धायै नमः।
29. ॐ भोगिन्यै नमः।
30. ॐ भोगदायै नमः।
31. ॐ धात्र्यै नमः।
32. ॐ विधात्र्यै नमः।

महालक्ष्मी के पुत्रों का पूजन

१. ॐ देवसखाय नमः
२. ॐ चिक्लीताय नमः
३. ॐ आनंदाय नमः
४. ॐ कर्दमाय नमः
५. ॐ श्रीप्रदाय नमः
६. ॐ जातवेदाय नमः
७. ॐ अनुरागाय नमः
८. ॐ संवादाय नमः
९. ॐ विजयाय नमः
१०. ॐ वल्लभाय नमः
११. ॐ मदाय नमः
१२. ॐ हर्षाय नमः
१३. ॐ बलाय नमः
१४. ॐ तेजसे नमः
१५. ॐ दमकाय नमः
१६. ॐ सलिलाय नमः
१७. ॐ गुग्गुलाय नमः
१८ . ॐ कुरूण्टकाय नमः

हाथ जोड़ कर क्षमा प्रार्थना करे
त्रैलोक्य पूजिते देवी कमले विष्णु वल्लभे 
यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा 
इश्वरी कमला लक्ष्मीश्चचला भूतिर हरिप्रिया 
पद्मा पद्मालया संपदुच्चे: श्री: पद्माधारिणी
द्वादशैतानी नामानि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत स्थिरा लक्ष्मी भवेत् तस्य पुत्र दारादीभि : सह ।।

अब आचमनी मे जल और कुंकुम लेकर महालक्ष्मी गायत्री से अर्घ्य दे .
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात

हाथ जोड़ कर माँ महालक्ष्मी से प्रार्थना करे
त्राहि त्राहि महालक्ष्मी त्राहि त्राहि सुरेश्वरी त्राहि त्राहि जगन्माता दरिद्रात त्राही वेगत :
त्वमेव जननी लक्ष्मी त्वमेव पिता लक्ष्मी भ्राता त्वं च सखा लक्ष्मी विद्या लक्ष्मी त्वमेव च रक्ष त्वं देव देवेशी देव देवस्य वल्लभे दरिद्रात त्राही मां लक्ष्मी कृपां कुरु ममोपरी

ऐसी भावना करें कि देवी महालक्ष्मी इस पूजन से प्रसन्न होकर आपके घर में आए और आपके घर में आपके कुल में आपके परिवार में आपके गोत्र में और आपके हृदय में सदा विराजमान रहें प्रसन्न रहें और वरदान देती रहें ताकि उनकी कृपा सदैव बनी रहे .....

भगवती महालक्ष्मी मम गृहे मम कुले मम परिवारे मम गोत्रे मम हृदये आगच्छ ! सुस्थिरो भव ! प्रसन्नो भव ! वरदो भव …

अंत में इस पूजन को गुरु चरणों में समर्पित करें

हाथ में जल और पुष्प लेकर नीचे लिखा हुआ मंत्र पढ़ें और पूजा स्थान में छोड़ दें ।

।। श्री सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानन्द चरणार्पणमस्तु ।।


दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की पूजा में त्रुटि हुई हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थना कर ले और देवी महालक्ष्मी से कृपा की प्रार्थना करके पूजा स्थान से उठ जाएं ।