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6 अक्तूबर 2024

आर्थिक लाभ के लिए सहायक : अभिमंत्रित पारद श्री यंत्र




गृहस्थ के जीवन में लक्ष्मी नही है तो कुछ भी नही है । यह हम सभी जानते हैं ।

व्यापार में अनुकूलता और ज्यादा लाभ के लिए महालक्ष्मी के श्री यंत्र का अनादि काल से उपयोग हों रहा है ।
आप इसकी विशिष्ठता इसी बात से समझ सकते हैं कि लगभग सभी उच्च कोटि के तंत्र पीठों में इसकी स्थापना अनिवार्यं रूप से की जाती है ।
महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए मैंने कई उपाय पहले भी प्रकाशित किए हैं । जिनका कई पाठकों ने प्रयोग किया है और उन्हे अनुकूलता मिली है ।
पारा काफी महंगा होता है इसलिए कम मूल्य पर छोटे श्री यंत्र ही प्राप्त हो सकते हैं । जिनका वजन 20 से 25 ग्राम होता है ।
पारे से बने कुछ छोटे पारद श्री यंत्र को अभिमंत्रित करने का विचार कर रहा हूँ, जो लागत मूल्य ₹=1008/[एक हजार आठ रुपये ]  पर पाठकों को उपलब्ध कराऊंगा ।  इसमे पारद श्री यंत्र का मूल्य, पूजन सामग्री तथा पूजन व्यय, पेकिंग तथा कूरियर के द्वारा इसे आप तक भेजने का खर्च शामिल है । 

इस यंत्र को आप अपने पूजा स्थान मे रख सकते हैं । चाहें तो गल्ले तिजोरी या अलमारी मे भी रख सकते हैं । इसके सामने रोज एक माला महालक्ष्मी के मंत्र का जाप करेंगे तो महामाया की कृपा से तीन से छह महीने के अंदर आपको आर्थिक अनुकूलता प्राप्त होगी । 

जो पाठक इच्छुक हैं वे मुझे 7000630499 पर  संपर्क करके इसे प्राप्त कर सकते हैं ।

यंत्र आपके नाम से सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित जानकारी लगेगी जो आप भेज देंगे :-

भेजे गए शुल्क की रसीद की फोटो ।  
आपका एक ताजा खींचा हुआ फोटो 
नाम 
गोत्र (अगर मालूम हो )
जन्मतिथि (अगर मालूम हो )
जन्म का समय (अगर मालूम हो )
जन्म का स्थान (अगर मालूम हो )

पूरा पता , पिन कोड के साथ, जिसमे आपको यंत्र भेजना है ।
आपका व्हाट्सएप्प  नंबर जिसपर आपको मंत्र तथा यंत्र भेजने की सूचना भेजी जाएगी । 

आप पेमेंट के लिए इस QR code का भी प्रयोग कर सकते हैं

2 अक्तूबर 2024

बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र का उच्चारण




बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र

बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र





ॐ नमो भगवति चामुण्डे नरकंक गृध्रोलूक परिवार सहिते श्मशानप्रिये नररुधिरमांस चरु भोजन प्रिये ! सिद्ध विद्याधर वृन्द वंदित चरणे बृह्मेशविष्णु वरुण कुबेर भैरवी भैरव प्रिये इन्द्रक्रोध विनिर्गत शरीरे द्वादशादित्य चण्डप्रभे अस्थि मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रं दक्षिण दिशि आगच्छ आगच्छ, मानय मानय, नुद नुद, सर्व शत्रुणां मारय मारय, चूर्णय चूर्णय, आवेशय आवेशय, त्रुट त्रुट, त्रोटय त्रोटय, स्फुट स्फुट, स्फोटय स्फोटय, महाभूतान् जृम्भय जृम्भय, ब्रह्मराक्षसान उच्चाटय उच्चाटय, भूत प्रेत पिशाचान् मूर्च्छय मूर्च्छय, मम शत्रुन उच्चाटय उच्चाटय,  शत्रून चूर्णय चूर्णय, सत्यं कथय कथय, वृक्षेभ्यः संन्नाशय संन्नाशय अर्कं स्तंभय स्तंभय , गरुड पक्षपातेन विषं निर्विषं कुरु कुरु, लीलांगालयवृक्षेभ्यः परिपातय परिपातय, शैलकाननमहीं मर्दय मर्दय, मुखं उत्पाटय उत्पाटय, पात्रं पूरय पूरय, भूतभविष्यं यत्सर्व कथय कथय, कृन्त कृन्त, दह दह, पच पच, मथ मथ, प्रमथ प्रमथ, घर्घर घर्घर, ग्रासय ग्रासय, विद्रावय विद्रावय उच्चाटय उच्चाटय, विष्णुचक्रेण वरुणपाशेन इन्द्रवज्रेण ज्वरं नाशय नाशय, प्रविदं स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून मम वशं कुरु कुरु, पातालं प्रत्यंतरिक्षं आकाशग्रहं आनय आनय, करालि विकरालि महाकालि, रुद्रशक्ते पूर्वदिशं निरोधय निरोधयपश्चिमदिशं स्तम्भय स्तम्भयदक्षिणदिशं निधय निधयउत्तरदिशं बंधय बंधय, ह्रां ह्रीं ॐ बंधय बंधय, ज्वालामालिनी स्तम्भिनी मोहिनि, मुकुट विचित्र कुण्डल नागादि वासुकी कृत हारभूषणे मेखला चन्द्रार्कहास प्रभंजने विद्युत्स्फुरित सकाश साट्टहास निलय निलय, हुं फट्, हुं फट् विजृंभित शरीरे सप्तद्वीप कृते ब्रह्माण्ड विस्तारित स्तन युगले असि मुसल परशु तोमर क्षुरिपाश हलेषु वीरान् शमय शमय, सहस्त्र बाहु परापरादिशक्ति विष्णु शरीरे, शंकर ह्रदयेश्वरी बगलामुखी ! सर्वदुष्टान् विनाशय विनाशय, हुं फट् स्वाहा ।

ॐ ह्लीं बगलामुखी ये केचनापकारिणः सन्ति, तेषां वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय, जिह्वां कीलय कीलय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, ह्रीं ॐ स्वाहा !

ॐ ह्रीं हिली हिली सर्व शत्रुणां वाचं मुखं पदं स्तम्भय , शत्रुजिह्वां कीलय, शत्रूणां दृष्टिमुष्टि गति मति दंत तालु जिह्वां बंधय बंधय, मारय मारय, शोषय शोषय हुं फट् स्वाहा ।

 महाविद्या बगलामुखी की कृपा प्रदान करता है । 

स्तोत्र है इसलिए वे भी कर सकते हैं जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है । लेकिन वे नित्य 11 पाठ से ज्यादा ना करें । 

नित्य क्षमतानुसार 1,3,5,7,9,11,16,21,33,51,108 पाठ करें ।


सामने सरसों के तेल का दीपक लगा लें । 
रात्री काल बेहतर है । 
पीले रंग का आसन और वस्त्र  । 
सात्विक विद्या है । 
ब्रह्मचर्य का पालन करें । 
सात्विक आचार विचार व्यवहार रखें  । 
नशा और मांसाहार निषेध है । 
उत्तर या पूर्व दिशा की ओर देखते हुए करें । 
शत्रु बाधा निवारण, तथा सर्वविध रक्षा के लिए उपयोगी है । 
नवरात्रि मे ज्यादा लाभ प्रदायक है । 

विधि :-

पहले दिन हाथ मे जल लेकर इच्छा बोलेंगे और माता के चरणों मे छोड़ देंगे । 

गुरु बनाया हो तो एक माला गुरु मंत्र की करें । 
अगर गुरु न हो तो एक माला निम्नलिखित मंत्र की करें :
।। ॐ गुं  गुरुभ्यो नमः ।। 

गुरु मंत्र का जाप रुद्राक्ष या किसी भी माला से कर सकते हैं । 

उसके बाद "ह्लीं " [ hleem ] मंत्र का उच्चारण करते हुए अपने शरीर को सर से पाँव तक छू लेंगे और ऐसी भावना करेंगे कि देवी बगलामुखी आपके शरीर मे स्थापित हो रही हैं । 
इसके बाद पाठ प्रारंभ करें । 
पाठ की गिनती आप किसी भी चीज से कर सकते हैं , कागज पेंसिल पर भी कर सकते हैं । 

आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

 

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भगवती बगलामुखी की साधना के सामान्य नियम

 

    


भगवती बगलामुखी की साधना सामान्यतः शत्रुनाश और मुकदमों में विजय प्राप्ति के लिये की जाती है.इस साधना के सामान्य नियम :-

  1. साधक को सात्विक आचार तथा व्यवहार रखना चाहिये.
  2. साधना काल में पीले रंग के वस्त्र तथा आसन का उपयोग करॆं.
  3. साधना रात्रिकालीन है अर्थात रात्रि ९ से सुबह ४ के मध्य मन्त्र जाप करें.
  4. साधनाकाल में क्रोध ना करें.
  5. साधना काल में यथासंभव ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  6. साधनाकाल में किसी स्त्री का अपमान ना करें.
  7. हल्दी या पीली हकीक की माला से जाप करें.
  8. साधना करने से पहले गुरु दीक्षा और बगलामुखी दीक्षा ले लें  । 
  9. गुरु से अनुमति लेकर ही यह साधना करें. 
  10. यह साधना उग्र साधना है इसलिये नन्हे बालक तथा कमजोर मानसिक स्थिति वाले इस साधना को ना करें.
  11. सामान्यतः सवा लाख जाप का पुरश्चरण तथा १२५०० मन्त्रों से हवन किया जाना अपेक्षित है.
  12. हवन पीली सरसों से किया जायेगा.

भुवनेश्वरी महाविद्या


 
॥ ह्रीं ॥





  • भुवनेश्वरी महाविद्या समस्त सृष्टि की माता हैं

  • हमारे जीवन के लिये आवश्यक अमृत तत्व वे हैं.
  • इस मन्त्र का नित्य जाप आपको उर्जावान बनायेगा.
  • जिनका पाचन संबंधी शिकायत है उनको लाभ मिलेगा.
  • प्रातः काल ४ से ६ बजे तक जाप करें.
  • सफ़ेद वस्त्र और आसन होगा.
  • दिशा उत्तर या पूर्व .
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • आचार विचार व्यवहार सात्विक रखें.


  • रोगनाशक महाकाली मंत्र सिद्ध रुद्राक्ष माला

      

      


      


    ॥ ॐ ह्रीं क्रीं मे स्वाहा ॥


    • यह सर्वविध रोगों के प्रशमन में सहायक होता है.
    • इसका प्रभाव भी महामृत्युंजय मंत्र के समान प्रचंड है .
    • यथा शक्ति जाप करें.

    आप इसे अपने परिवार के किसी सदस्य के स्वस्थ्य लाभ के लिए भी कर सकते हैं । 
    इसके लिए आप नवरात्रि / शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को हाथ मे जल लेकर संकल्प कर लें :-

    मैं (अपना नाम बोलें ), यथा शक्ति, यथा ज्ञान [यानि जितनी मेरी शक्ति है जितना मेरा ज्ञान है उतना ] अमुक (रोगी का नाम ) के स्वस्थ्य लाभ और रोग निवारण के लिए महाकाली रोग निवारण मंत्र के (जाप संख्या बोलें ) जाप का संकल्प लेता हूँ । महा माया महाकाली मेरी त्रुटियों को क्षमा करें और प्रसन्न होकर अमुक (रोगी का नाम ) को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें । 

    1. इसके बाद आप मंत्र जाप रुद्राक्ष की माला से सम्पन्न करें । 
    2. रोज निश्चित संख्या मे मंत्र जाप करें । 
    3. जाप काल मे समर्थ हों तो दीपक जला लें , आर्थिक दिक्कत हो तो बिना दीपक के भी कर सकते हैं । 
    4. जाप पूरा हो जाने के बाद माला को लाल कपड़े मे लपेट कर रख दें । कोशिश करें कि जाप पूरा होते तक आपके अलावा कोई उसका स्पर्श न करे । गलती से स्पर्श हो जाये तो कोई दिक्कत नहीं है । 
    5. ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करें ।
    6. आचार, विचार, व्यव्हार सात्विक और शुद्ध रखें ।  
    7. रात्रि 9 से सुबह 3 बजे तक का समय श्रेष्ठ है । न कर पाएँ तो जब आपको समय मिले तब कर लें । 
    8. पूर्णिमा तक आपको जाप करना है । 
    9. पूर्णिमा के मंत्र जाप के बाद उस माला को आप अपने लिए कर रहे हों तो स्वयं पहन लें । दूसरे के लिए कर रहे हों, तो रोगी को पहना दें । 
    10. एक महीने तक चौबीस घंटे उस माला को पहने रखें । 
    11. अगली पूर्णिमा को अपनी रोगमुक्ति की इच्छा बोलते हुये उस माला को नदी, तालाब, समुद्र मे प्रवाहित कर दें । 
    रोग निवारक महाकाली मंत्रों से सिद्ध रुद्राक्ष माला 
    अगर आप चाहें तो आपके नाम से रोग निवारक काली मंत्र से अभिमंत्रित रुद्राक्ष माला मात्र 1111 रुपये मे उपलब्ध कराने की व्यवस्था इस नवरात्रि मे कर रहा हूँ ।  
    इसे आप एक महीने तक गले मे धारण करें और उसके बाद अपनी रोगमुक्ति की इच्छा बोलते हुये उस माला को नदी, तालाब, समुद्र मे प्रवाहित कर दें । 
    अगर आप इस प्रकार की रुद्राक्ष माला प्राप्त करने के इच्छुक हैं तो  निम्नलिखित जानकारियाँ मुझे मेरे नंबर 7000630499 पर शुल्क की रसीद के साथ व्हाट्सप्प कर सकते हैं :-

    नाम , 
    जन्म तिथि, समय स्थान ,गोत्र (मालूम हो तो )  । 
    अपनी एक ताजा फोटो । 
    शुल्क फोन पे करने के बाद उसकी रसीद । 
    अपना पूरा पोस्टल एड्रेस और मोबाइल नंबर । 

    शुल्क पेमेंट के लिए किसी भी यूपीआई एप्प [जैसे फोन पे] पर इस क्यूआर कोड़ का प्रयोग कर सकते हैं । 


    UPI आईडी - 
    sanilshekhar@fifederal



    नवरात्रि : अखंड ज्योति तथा दुर्गा पूजन की सरल विधि - youtube video

     

    नवरात्रि हवन की सरल विधि:-

     नवरात्रि हवन की सरल विधि:-

     


    नवरात्रि मे आप चाहें तो रोज या फिर आखिरी मे हवन कर सकते हैं ।

    यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा विधि विधान नहीं कर सकते हैं ।. जो साधक हैं या कर्मकाँड़ी हैं वे अपने गुरु से प्राप्त विधि विधान या प्रामाणिक ग्रंथों से विधि देखकर सम्पन्न करें ।। मेरी राय मे चंडी प्रकाशनगीता प्रेसचौखम्बा प्रकाशनआदि से प्रकाशित ग्रंथों मे त्रुटियाँ काम रहती हैं ।. 

    आवश्यक सामग्री :-

    1. दशांग या हवन सामग्री दुकान पर आपको मिल जाएगा .

    2. घी ( अच्छा वाला लें भले कम लें पूजा वाला घी न लें क्योंकि वह ऐसी चीजों से बनता है जिसे आपको खाने से दुकानदार मना करता है तो ऐसी चीज आप देवी को कैसे अर्पित कर सकते हैं )

    3. कपूर आग जलाने के लिए .

    4. एक नारियल गोला या सूखा नारियल पूर्णाहुति के लिए ,

    5. हवन कुंड या गोल बर्तन ।. 

     

    हवनकुंड/ वेदी को साफ करें.

    हवनकुंड न हो तो गोल बर्तन मे कर सकते हैं .

    फर्श गरम हो जाता है इसलिए नीचे स्टैन्ड या ईंट रेती रखें उसपर पात्र रखें.

    कुंड मे लकड़ी जमा लें और उसके नीचे में कपूर रखकर जला दें.

    हवनकुंड की अग्नि प्रज्जवलित हो जाए तो पहले घी की आहुतियां दी जाती हैं.

    सात बार अग्नि देवता को आहुति दें और अपने हवन की पूर्णता की प्रार्थना करें

    “ ॐ अग्नये स्वाहा 

     

    इन मंत्रों से शुद्ध घी की आहुति दें-

    ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये न मम् ।

    ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदं इन्द्राय न मम् ।

    ॐ अग्नये स्वाहा । इदं अग्नये न मम ।

    ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय न मम ।

    ॐ भूः स्वाहा ।

     

    उसके बाद हवन सामग्री से हवन करें .

    नवग्रह मंत्र :-

    ऊँ सूर्याय नमः स्वाहा

    ऊँ चंद्रमसे नमः स्वाहा

    ऊं भौमाय नमः स्वाहा

    ऊँ बुधाय नमः स्वाहा

    ऊँ गुरवे नमः स्वाहा

    ऊँ शुक्राय नमः स्वाहा

    ऊँ शनये नमः स्वाहा

    ऊँ राहवे नमः स्वाहा

    ऊँ केतवे नमः स्वाहा

    गायत्री मंत्र :-

     

    ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।

     

    ऊं गणेशाय नम: स्वाहा,

    ऊं भैरवाय नम: स्वाहा,

    ऊं गुं गुरुभ्यो नम: स्वाहा,

     

    ऊं कुल देवताभ्यो नम: स्वाहा,

    ऊं स्थान देवताभ्यो नम: स्वाहा,

    ऊं वास्तु देवताभ्यो नम: स्वाहा,

    ऊं ग्राम देवताभ्यो नम: स्वाहा,

    ॐ सर्वेभ्यो गुरुभ्यो नमः स्वाहा ,

     

    ऊं सरस्वती सहित ब्रह्माय नम: स्वाहा,

    ऊं लक्ष्मी सहित विष्णुवे नम: स्वाहा,

    ऊं शक्ति सहित शिवाय नम: स्वाहा

     

    माता के नर्वाण मंत्र से 108 बार आहुतियां दे

     

    ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै स्वाहा

     

    हवन के बाद नारियल के गोले में कलावा बांध लें. चाकू से उसके ऊपर के भाग को काट लें. उसके मुंह में घीहवन सामग्री आदि डाल दें.

    पूर्ण आहुति मंत्र पढ़ते हुए उसे हवनकुंड की अग्नि में रख दें.

    पूर्णाहुति मंत्र-

    ऊँ पूर्णमद: पूर्णम् इदम् पूर्णात पूर्णम उदिच्यते ।

    पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते ।।

     

    इसका अर्थ है :-

    वह पराशक्ति या महामाया पूर्ण है उसके द्वारा उत्पन्न यह जगत भी पूर्ण हूँ उस पूर्ण स्वरूप से पूर्ण निकालने पर भी वह पूर्ण ही रहता है ।

    वही पूर्णता मुझे भी प्राप्त हो और मेरे कार्य अभीष्ट मे पूर्णता मिले ....

     

    इस मंत्र को कहते हुए पूर्ण आहुति देनी चाहिए.

    उसके बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें,

    फिर आरती करें.

    अंत मे क्षमा प्रार्थना करें.

    माताजी को समर्पित दक्षिण किसी गरीब महिला या कन्या को दान मे दें ।

     


    महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्

           


    यह एक अत्यंत मधुर तथा गीत के रूप मे रचित देवी स्तुति है । इसके पाठ से आपको अत्यंत आनंद और सुखद अनुभूति होगी । 


    महिषासुरमर्दिनि   स्तोत्रम् 

     

    अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते,

    गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।

    भगवति हे शितिकंठ कुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

     

    सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,

    त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।

    दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

     

    अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते,

    शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।

    मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

     

    अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड  गजाधिपते

    रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।

    निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

     

    अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते

    चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।

    दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

     

     अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे

    त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।

    दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

     

    अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

    समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।

    शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

     

    धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके

    कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।

    कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

     

    जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते

    झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।

    नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

     

    अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते

    श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते ।

    सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

     

    सहित महाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते

    विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते ।

    शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

     

    अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते

    त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।

    अयि सुदतीजन लालस मानस मोहन मन्मथराजसुते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

     

    कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते

    सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।

    अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

     

    करमुरलीरव वीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते

    मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जित शैल निकुञ्जगते ।

    निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

     

    कटितट पीत दुकूल विचित्र मयुख तिरस्कृत चन्द्ररुचे

    प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चन्द्ररुचे

    जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

     

    विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैकनुते

    कृत सुर तारक सङ्गर तारक सङ्गर तारक सूनुसुते ।

    सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजातरते ।

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

     

    पद कमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

    अयि कमले कमला निलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।

    तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

     

    कनक लसत्कल सिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

    भजति स किं न शची कुच कुम्भतटी परिरम्भ सुखानुभवम् ।

    तव चरणं शरणं करवाणि नतामर वाणि निवासि शिवम्

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

     

    तव विमलेन्दु कुलं वदनेन्दु मलं सकलं ननु कूलयते

    किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।

    मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

     

    अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

    अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।

    यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

     

     


    सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना

        

    सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना 


    ॥ ॐ क्लीं दुर्गायै नमः ॥

    • यह काम बीज से संगुफ़ित दुर्गा मन्त्र है.
    • यह सर्वकार्यों में लाभदायक है.
    • इसका जाप आप नवरात्रि में चलते फ़िरते भी कर सकते हैं.
    • अनुष्ठान के रूप में २१००० जाप करें.
    • २१०० मंत्रों से हवन नवमी को करें.
    • विशेष लाभ के लिये विजयादशमी को हवन करें.
    • सात्विक आहार आचार विचार रखें ।
    • हर स्त्री को मातृवत सम्मान दें ।
    • ब्रह्मचर्य का पालन करें ।