18 अक्टूबर 2025

श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशतनाम या महालक्ष्मी के 108 नाम

     

श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशतनाम या महालक्ष्मी के 108 नाम  


सबसे पहले महालक्ष्मी जी को हाथ जोड़कर ध्यान करलें :-



सरसिज निलये सरोज हस्ते धवलतरांशुक गन्ध माल्य शोभे ।

भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥


हिन्दी भावार्थ - हे महामाया महालक्ष्मी ! आप कमल फूलो से भरे हुए वन में निवास करनेवाली हो, आपके हाथों में सुंदर कमल है। आपके वस्त्र अत्यन्त उज्ज्वल हैं । आपके दिव्य देह पर अत्यंत मनोहर गन्ध और सुंदर सुंदर मालाएँ डाली हुई हैं । हे भगवान श्री हरी की प्रिया आपका स्वरूप अत्यंत मनमोहक है । आपकी कृपा से त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्राप्त हो सकता है आप मुझपर प्रसन्न होकर कृपा करें । 

ऐसा ध्यान करेंगे । 


इसके बाद अपने पूजा स्थान/दुकान/ एकांत कक्ष मे अपने सामने लक्ष्मी चित्र/ यंत्र/ श्रीयंत्र/ चाँदी सिक्का/ लक्ष्मी मूर्ति (जो आपके पास उपलब्ध हो ) रखकर भगवती लक्ष्मी के 108 नामों का उच्चारण करें और हर बार नम:  के साथ फूल /कुमकुम/ चावल/ अष्टगंध चढ़ाएं । 


  1. ॐ श्रीं अदित्यै नमः ।

  2. ॐ श्रीं अनघायै नमः ।

  3. ॐ श्रीं अनुग्रहप्रदायै नमः ।

  4. ॐ श्रीं अमृतायै नमः ।

  5. ॐ श्रीं अशोकायै नमः ।

  6. ॐ श्रीं आह्लादजनन्यै नमः ।

  7. ॐ श्रीं इन्दिरायै नमः ।

  8. ॐ श्रीं इन्दुशीतलायै नमः । 

  9. ॐ श्रीं उदाराङ्गायै नमः ।

  10. ॐ श्रीं कमलायै नमः ।

  11. ॐ श्रीं करुणायै नमः ।

  12. ॐ श्रीं कान्तायै नमः ।

  13. ॐ श्रीं कामाक्ष्यै नमः ।

  14. ॐ श्रीं क्रोधसम्भवायै नमः ।

  15. ॐ श्रीं चतुर्भुजायै नमः ।

  16. ॐ श्रीं चन्द्ररूपायै नमः ।

  17. ॐ श्रीं चन्द्रवदनायै नमः ।

  18. ॐ श्रीं चन्द्रसहोदर्यै नमः ।

  19. ॐ श्रीं चन्द्रायै नमः ।

  20. ॐ श्रीं जयायै नमः ।

  21. ॐ श्रीं तुष्टयै नमः । 

  22. ॐ श्रीं त्रिकालज्ञानसम्पन्नायै नमः ।

  23. ॐ श्रीं दारिद्र्यध्वंसिन्यै नमः ।

  24. ॐ श्रीं दारिद्र्यनाशिन्यै नमः । 

  25. ॐ श्रीं दित्यै नमः ।

  26. ॐ श्रीं दीप्तायै नमः ।

  27. ॐ श्रीं देव्यै नमः ।

  28. ॐ श्रीं धनधान्यकर्यै नमः ।

  29. ॐ श्रीं धन्यायै नमः ।

  30. ॐ श्रीं धर्मनिलयायै नमः ।

  31. ॐ श्रीं नवदुर्गायै नमः ।

  32. ॐ श्रीं नारायणसमाश्रितायै नमः ।

  33. ॐ श्रीं नित्यपुष्टायै नमः ।

  34. ॐ श्रीं नृपवेश्मगतानन्दायै नमः ।

  35. ॐ श्रीं पद्मगन्धिन्यै नमः ।

  36. ॐ श्रीं पद्मनाभप्रियायै नमः ।

  37. ॐ श्रीं पद्मप्रियायै नमः ।

  38. ॐ श्रीं पद्ममालाधरायै नमः ।

  39. ॐ श्रीं पद्ममुख्यै नमः ।

  40. ॐ श्रीं पद्मसुन्दर्यै नमः ।

  41. ॐ श्रीं पद्महस्तायै नमः ।

  42. ॐ श्रीं पद्माक्ष्यै नमः ।

  43. ॐ श्रीं पद्मायै नमः ।

  44. ॐ श्रीं पद्मालयायै नमः ।

  45. ॐ श्रीं पद्मिन्यै नमः ।

  46. ॐ श्रीं पद्मोद्भवायै नमः ।

  47. ॐ श्रीं परमात्मिकायै नमः ।

  48. ॐ श्रीं पुण्यगन्धायै नमः ।

  49. ॐ श्रीं पुष्टयै नमः ।

  50. ॐ श्रीं प्रकृत्यै नमः ।

  51. ॐ श्रीं प्रभायै नमः ।

  52. ॐ श्रीं प्रसन्नाक्ष्यै नमः । 

  53. ॐ श्रीं प्रसादाभिमुख्यै नमः ।

  54. ॐ श्रीं प्रीतिपुष्करिण्यै नमः ।

  55. ॐ श्रीं बिल्वनिलयायै नमः ।

  56. ॐ श्रीं बुद्धये नमः ।

  57. ॐ श्रीं ब्रह्माविष्णुशिवात्मिकायै नमः ।

  58. ॐ श्रीं भास्कर्यै नमः ।

  59. ॐ श्रीं भुवनेश्वर्यै नमः । 

  60. ॐ श्रीं मङ्गळा देव्यै नमः ।

  61. ॐ श्रीं महाकाल्यै नमः ।

  62. ॐ श्रीं महादीप्तायै नमः ।

  63. ॐ श्रीं महादेव्यै नमः ।

  64. ॐ श्रीं यशस्विन्यै नमः ।

  65. ॐ श्रीं रमायै नमः ।

  66. ॐ श्रीं लक्ष्म्यै नमः । 

  67. ॐ श्रीं लोकमात्रे नमः ।

  68. ॐ श्रीं लोकशोकविनाशिन्यै नमः ।

  69. ॐ श्रीं वरलक्ष्म्यै नमः । 

  70. ॐ श्रीं वरारोहायै नमः ।

  71. ॐ श्रीं वसुधायै नमः ।

  72. ॐ श्रीं वसुधारिण्यै नमः ।

  73. ॐ श्रीं वसुन्धरायै नमः । 

  74. ॐ श्रीं वसुप्रदायै नमः ।

  75. ॐ श्रीं वाचे नमः । 

  76. ॐ श्रीं विकृत्यै नमः ।

  77. ॐ श्रीं विद्यायै नमः ।

  78. ॐ श्रीं विभावर्यै नमः ।

  79. ॐ श्रीं विभूत्यै नमः ।

  80. ॐ श्रीं विमलायै नमः ।

  81. ॐ श्रीं विश्वजनन्यै नमः ।

  82. ॐ श्रीं विष्णुपत्न्यै नमः ।

  83. ॐ श्रीं विष्णुवक्षस्स्थलस्थितायै नमः ।

  84. ॐ श्रीं शान्तायै नमः ।

  85. ॐ श्रीं शिवकर्यै नमः ।

  86. ॐ श्रीं शिवायै नमः ।

  87. ॐ श्रीं शुक्लमाल्याम्बरायै नमः ।

  88. ॐ श्रीं शुचये नमः ।

  89. ॐ श्रीं शुभप्रदाये नमः ।

  90. ॐ श्रीं शुभायै नमः ।

  91. ॐ श्रीं श्रद्धायै नमः ।

  92. ॐ श्रीं श्रियै नमः ।

  93. ॐ श्रीं सत्यै नमः ।

  94. ॐ श्रीं समुद्रतनयायै नमः ।

  95. ॐ श्रीं सर्वभूतहितप्रदायै नमः ।

  96. ॐ श्रीं सर्वोपद्रव वारिण्यै नमः ।

  97. ॐ श्रीं सिद्धये नमः ।

  98. ॐ श्रीं सुधायै नमः ।

  99. ॐ श्रीं सुप्रसन्नायै नमः । 

  100. ॐ श्रीं सुरभ्यै नमः ।

  101. ॐ श्रीं स्त्रैणसौम्यायै नमः ।

  102. ॐ श्रीं स्वधायै नमः ।

  103. ॐ श्रीं स्वाहायै नमः ।

  104. ॐ श्रीं हरिण्यै नमः ।

  105. ॐ श्रीं हरिवल्लभायै नमः ।

  106. ॐ श्रीं हिरण्मय्यै नमः ।

  107. ॐ श्रीं हिरण्यप्राकारायै नमः ।

  108. ॐ श्रीं हेममालिन्यै नमः ।




अन्त मे हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना कर लें ।


यह पूजन आप रात्री मे कर सकते हैं । अगर ऐसा संभव ना हो तो आप दिन में किसी भी समय इसे कर सकते हैं ।  


अगर आपने श्री यंत्र के ऊपर पूजन किया है तो पूजा करने के बाद उस यंत्र को आप पूजा स्थान में या अपने पैसा रखने वाले गल्ले में रख सकते हैं ।


सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र

 सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र

दीपावली भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण मुहूर्त है. प्रत्येक गृहस्थ को इस अवसर पर देवी महालक्ष्मी का पूजन विधि विधान से संपन्न करना ही चाहिए क्योंकि गृहस्थ जीवन का आधार ही महालक्ष्मी हैं. महालक्ष्मी पूजन विविध प्रकार से किए जा सकते हैं लेकिन देवराज इंद्रकृत सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र अपने आप में अत्यंत ही प्रभावशाली तथा शीघ्र फलप्रदायक है. इस अवसर पर आप चाहें तो महालक्ष्मी के किसी भी मंत्र का जाप कर सकते हैं जिससे आपको अनुकूलता प्राप्त होगी


यह स्तोत्र लक्ष्मी जी के यंत्र चित्र या मूर्ति के सामने करना चाहिए.

पहले लघु पूजन करें. तदुपरांत स्तोत्र का पाठ करें.

महालक्ष्मी पूजनः-


श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः गंधम समर्पयामि । (इत्र कुंकुम चढायें)

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः पुष्पम समर्पयामि । (फूल चढायें )

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः धूपम समर्पयामि । (अगरबत्ती दिखायें)

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः दीपम समर्पयामि । (दीपक दिखायें )

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यम समर्पयामि । (प्रसाद चढायें )


क्षमतानुसार 11, 21,51 या 108 बार सहस्राक्षरी स्तोत्र मंत्र का पाठ करेंः-


(हाथ में जल लेकर)विनियोगः-

ऊँ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मंत्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी सहस्राक्षरी सहस्र रूपिणि महाविद्याया श्री इंद्र ऋषिं गायत्रयादि नाना छंदांसि नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थ जपे पाठे विनियोगः । (जल जमीन पर छोड़ दें )

अपने हाथ मे एक पुष्प रखें । एक पाठ पूरा हो जाने पर उसे देवी के चरणों मे चढ़ा दें और उनकी कृपा प्राप्ति की प्रार्थना करें ।.


स्तोत्र मंत्र :-


ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं हसौं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं सौः सौः ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं जय जय महालक्ष्मी, जगदाद्ये,विजये सुरासुर त्रिभुवन निदाने दयांकुरे सर्व तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते, विधि वरदे सच्चिदानंदे विष्णु देहावृते महामोहिनी नित्य वरदान तत्परे महासुधाब्धि वासिनी महातेजो धारिणी सर्वाधारे सर्वकारण कारिणे अचिंत्य रूपे इंद्रादि सकल निर्जर सेविते सामगान गायन परिपूर्णोदय कारिणी विजये जयंति अपराजिते सर्व सुंदरि रक्तांशुके सूर्य कोटि संकाशे चंद्र कोटि सुशीतले अग्निकोटि दहनशीले यम कोटि वहनशीले ऊँकार नाद बिंदु रूपिणी निगमागम भाग्यदायिनी त्रिदश राज्य दायिनी सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणी दिव्य देहिनि निर्गुणे सगुणे सदसद रूप धारिणी सुर वरदे भक्त त्राण तत्परे बहु वरदे सहस्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणी अनेक लक्षलक्ष स्वरूपे अनंत कोटि ब्रहमाण्ड नायिके चतुर्विंशति मुनिजन संस्थिते चतुर्दश भुवन भाव विकारिणे गगन वाहिनी नाना मंत्र राज विराजिते सकल सुंदरी गण सेविते चरणारविंद्र महात्रिपुर सुंदरी कामेश दायिते करूणा रस कल्लोलिनी कल्पवृक्षादि स्थिते चिंतामणि द्वय मध्यावस्थिते मणिमंदिरे निवासिनी विष्णु वक्षस्थल कारिणे अजिते अमले अनुपम चरिते मुक्तिक्षेत्राधिष्ठायिनी प्रसीद प्रसीद सर्व मनोरथान पूरय पूरय सर्वारिष्टान छेदय छेदय सर्वग्रह पीडा ज्वराग्र भय विध्वंसय विध्वंसय सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय मोक्ष मार्गाणि दर्शय दर्शय ज्ञानमार्ग प्रकाशय प्रकाशय अज्ञान तमो नाशय नाशय धनधान्यादि वृद्धिं कुरूकुरू सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय माम रक्ष रक्ष सर्वापदभ्यो निस्तारय निस्तारय वज्र शरीरं साधय साधय ह्रीं सहस्राक्षरी सिद्ध लक्ष्मी महाविद्यायै नमः ।


अगर आप चाहें तो इस स्तोत्र का उच्चारण मेरे यूट्यूब चैनल से सुन सकते हैं । लिंक नीचे है । 


16 अक्टूबर 2025

भगवती महालक्ष्मी का बीज मंत्र

  


भूलोक के पालन कर्ता हैं भगवान् विष्णु और उनकी शक्ति हैं महामाया महालक्ष्मी ....

इस संसार में जो भी चंचलता है अर्थात गति है उसके मूल में वे ही हैं.....
उनके अभाव में गृहस्थ जीवन अधूरा अपूर्ण अभावयुक्त और अभिशापित है....
लक्ष्मी की कृपा के बिना सुखद गृहस्थ जीवन बेहद कठिन है...............




॥  श्रीं ॥


  • भगवती लक्ष्मी का बीज मन्त्र है.
  • गुलाबी या लाल रंग के वस्त्र तथा आसन का प्रयोग करें.
  • न हों तो कोई भी साफ धुला वस्त्र पहन कर बैठें.
  • अगरबत्ती इत्र आदि से पूजा स्थल को सुगन्धित करें.
  • विवाहित हों तो पत्नी सहित बैठें तो और लाभ मिलेगा.
  •  
  • रात्रि ९ से ५ के बीच 108 माला या यथा शक्ति जाप करें.
  • क्षमता हो तो घी का दीपक लगायें ।

15 अक्टूबर 2025

दीपावली पर : अभिमंत्रित पारद श्री यंत्र

     



गृहस्थ के जीवन में लक्ष्मी नही है तो कुछ भी नही है । यह हम सभी जानते हैं ।

सम्पूर्ण ऐश्वर्य और समृद्धि के लिए श्री यंत्र का अनादि काल से उपयोग हों रहा है । आप इसकी विशिष्ठता इसी बात से समझ सकते हैं कि लगभग सभी उच्च कोटि के तंत्र पीठों में इसकी स्थापना अनिवार्यं रूप से की जाती है ।
श्री यंत्र तांबा,पीतल,सोना,चाँदी,जैसे धातुओं से बनाए जाते हैं । 

पारा भी तंत्र मे अत्यंत विशिष्ट धातु माना गया है । उससे बने विग्रह विशेष लाभदायक भी कहे गए हैं । 
पारे से बने कुछ छोटे पारद श्री यंत्र अभिमंत्रित करके ₹1008/[एक हजार आठ रुपये ] मे उपलब्ध हैं । 

इस यंत्र को आप अपने पूजा स्थान मे रख सकते हैं । चाहें तो गल्ले तिजोरी या अलमारी मे भी रख सकते हैं । जो पाठक इच्छुक हैं वे मुझे 7000630499 पर  संपर्क करके इसे प्राप्त कर सकते हैं ।


यंत्र आपके नाम से सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित जानकारी लगेगी जो आप भेज देंगे :-

भेजे गए शुल्क की रसीद की फोटो ।  
आपका एक ताजा खींचा हुआ फोटो 
नाम 
गोत्र (अगर मालूम हो )
जन्मतिथि (अगर मालूम हो )
जन्म का समय (अगर मालूम हो )
जन्म का स्थान (अगर मालूम हो )

पूरा पता , पिन कोड के साथ, जिसमे आपको यंत्र भेजना है ।
आपका व्हाट्सएप्प  नंबर जिसपर आपको मंत्र तथा यंत्र भेजने की सूचना भेजी जाएगी । 

आप पेमेंट के लिए इस QR code का भी प्रयोग कर सकते हैं



14 अक्टूबर 2025

लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गणपति साधना

 लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गणपति साधना

 


गजाननं भूतगणादि सेवितं कपीत्थ जम्बू फल चारू भक्षितम ।

उमासुतम शोक विनाशकारणम नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम ।


गज के समान मुख वाले, भूतादि गण जिनकी सेवा करते हैं ऐसे विविध भोज्य पदार्थों के प्रेमी तथा बाधओं को दूर करने वाले देवी जगदम्बा के प्रियपुत्र भगवान गणेश के चरण कमलों को मैं सादर प्रणाम करता हूं ।


कलियुग में फलदायक साधनाओं के विषय में कहा गया है कि:-

 

‘कलौ चण्डी विनायकौ’

 

अर्थात कलियुग में चण्डी तथा गणपति साधनायें ज्यादा फलप्रद होंगी। 

गणपति साधना को प्रारंभिक तथा अत्यंत लाभप्रद साधनाओं में गिना जाता है। योगिक विचार में मूलाधार चक्र को कुण्डली का प्रारंभ माना जाता है तथा गणपति उसके स्वामी माने जाते हैं। साथ ही शिव शक्ति के पुत्र होने के कारण दोनों की संयुक्त कृपा प्रदान करते हैं।

 

भगवती लक्ष्मी को चंचला कहा गया है । चंचला अर्थात जो एक स्थान पर ज्यादा देर तक न रह सकती हो । केवल लक्ष्मी का पूजन तथा साधना यद्यपि फलदायक होती है मगर अल्पकालिक होती है । लक्ष्मी के साथ गणपति का पूजन लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान करता है।

 

आगे की पंक्तियों में भगवान गणपति का एक स्तोत्र प्रस्तुत है। इस स्तोत्र का नित्य पाठ करना लाभप्रद होता है। यद्यपि यह कहना उचित नही होगा कि इस स्तोत्र के पाठ से आप धनवान बन जायेंगें, परंतु धनागमन के नए मार्गों के संबंध में नए विचार उपाय आदि आपके मस्तिष्क में उत्पन्न होंगें, जिनका सही प्रयोग कर आप धन प्राप्ति कर सकेंगें।

 

गणपति स्तोत्र

 

ऊं नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्य प्रदायिने ।

दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परात्मने ।

लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितं ।

अर्धचंद्रधरं देवं विघ्न व्यूह विनाशनम ।

ॐ हृॉं हृीं ह्रूँ हृैं हृौं हृः हेरम्बाय नमः ।

सर्व सिद्धिप्रदो सि त्वं सिद्धिबुद्धिप्रदो भवतः ।

चिंतितार्थ प्रदस्त्वं हि सततं मोदकप्रियः ।

सिंदूरारूण वस्त्रेश्च पूजितो वरदायकः ।


फलश्रुति:-

इदं गणपति स्तोत्रं यः पठेद भक्तिमान नरः ।

तस्य देहं च गेहं च लक्ष्मीर्न मुश्चति ।

 

इस स्तोत्र का 108 पाठ करें। इससे पहले भगवान गणपति के सामने अपनी इच्ठा या मनोकामना रखें तथा इसका पाठ प्रारंभ करें । भगवान गणपति की कृपा से आपको अपनी इच्ठा की पूर्ति में अवश्य सहायता मिलेगी।

 


12 अक्टूबर 2025

गुरु दीक्षा और लक्ष्मी पूजन मे ऑनलाइन भाग लीजिये : इस दीपावली मे





देवी महालक्ष्मी की साधना का सबसे विशिष्ट मुहूर्त होता है दीपावली ! इस अवसर पर अगर गुरु के सानिध्य में लक्ष्मी पूजन का अवसर मिले तो उसका लाभ अवश्य उठाना चाहिए । इस प्रकार के पूजन से परिवार में चली आ रही दरिद्रता और आर्थिक संकट में निश्चित रूप से लाभ प्राप्त होता है । गृहस्थ के जीवन में धन की कमी से होने वाली समस्याओं के विषय में बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह हर कोई जानता है ।  लेकिन....  
उन समस्याओं से निजात पाने और आर्थिक लाभ बढ़ाने व्यापार या नौकरी में बेहतर आर्थिक अवसर पाने के लिए भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करना अनिवार्य होता है । उसके लिए अगर आप आध्यात्मिक उपायों का सहारा लें तो उसमें सर्वश्रेष्ठ उपाय महालक्ष्मी की दीक्षा और उनके पूजन को माना गया है । यदि वह दीपावली जैसे विशिष्ट अवसर पर संपन्न की जाए, जो कि उनका स्वयं का सिद्धि पर्व है; तो इसका लाभ कई गुना बढ़ जाता है । 


यदि आप आर्थिक समस्याओं से परेशान है !
आपका व्यापार नहीं चल रहा है.....  तो आप अवश्य इस अवसर का लाभ उठाएं । ऑनलाइन पूजन अनुष्ठान मे भाग लें और मिलने वाले मंत्र का नित्य जाप करके आर्थिक अनुकूलता की ओर अपने कदम बढ़ाए.....  




नोट:शिविर ऑनलाइन होगा जो भी साधक शिविर में सम्मिलित होना चाहते हैं, वे कृपया नीचे दिये गये नम्बरों में से किसी भी नम्बर पर सम्पर्क कर सकतें है। 👇


🔴 प्रशांत पांड़े (दिल्ली) 8800458271

🟠  रजनीश आचार्य (छिंदवाड़ा) 9425146518

🟠 देवेन्द्र उइके (नागपुर): 9096078410 

🟡मनोहर सरजाल (छत्तीसगढ़)+91 90091 60861

🟡सचिन किसवे (लातूर)+91 93257 77190

🟠 सुभाष शर्मा (उदयपुर) 9929140845

🟡प्रेमजीत सिंह (पटना)+91 87574 02620

🟡विनयशर्मा(गुना)9685224686

🔴कपिल वास्पत (इंदौर) 9179050735

🔵रणजीत अन्कुलगे (उदगीर) 9923440540

🟡विनय शर्मा ( अयोध्या)09235712271

🟢करुणेश कर्ण (पटना)+91 98522 84595

🟣स्वाति शर्मा (गाजियाबाद) 9958862952,9354101677

🔵सन्तोष नागतोडे (मोइझिरि) 9301107239

🟠 कार्यालय भोपाल 0755-+917554269368

2 अक्टूबर 2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: शताब्दी वर्ष पर शुभकामनायें

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: शताब्दी वर्ष पर शुभकामनायें


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत का एक प्रमुख, गैर-राजनीतिक और विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है, जिसकी स्थापना 27 सितंबर 1925 को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने महाराष्ट्र के नागपुर में विजयादशमी के दिन की थी। यानि इस वर्ष अर्थात 2025 की विजयदशमी को संघ पूरे सौ साल का हो जाएगा । संघ की स्थापना का मूल उद्देश्य भारतीय समाज को संगठित, सशक्त और गौरवशाली बनाना था, जो भारतीय संस्कृति और विरासत के मूल्यों पर आधारित हो। अब आप इस संगठन के सैद्धान्तिक और वैचारिक सामाजिक प्रभाव को इस बात से समझ सकते हैं कि भारत के सर्वोच्च पदों पर संघ के तैयार किए गए व्यक्तित्व विराजमान हैं :-


आइये जानते हैं कि आखिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ है क्या और उसने ऐसा कौन सा कार्य किया है जिसकी वजह से उसे इतना राष्ट्रव्यापी समर्थन और सहमति प्राप्त है ।
संघ की कार्यप्रणाली निम्नलिखित प्रमुख सिद्धांतों पर टिकी हुई है:

व्यक्ति निर्माण: संघ का मानना है कि राष्ट्र का निर्माण व्यक्तियों के निर्माण से होता है। इसलिए, स्वयंसेवकों को शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से मजबूत बनाने पर जोर दिया जाता है।

हिंदुत्व और राष्ट्रीयता: संघ 'हिंदुत्व' को एक जीवन-पद्धति और भारतीय संस्कृति के रूप में देखता है। यह सभी भारतीयों को एक समान राष्ट्रीय पहचान के तहत संगठित करने पर बल देता है।

सेवा भाव: निस्वार्थ भाव से समाज और राष्ट्र की सेवा करना संघ के स्वयंसेवकों का मूल मंत्र है।

अनुशासन और समर्पण: संघ अपने स्वयंसेवकों में कठोर अनुशासन, समर्पण और निःस्वार्थ कार्य की भावना पैदा करता है।

कार्यप्रणाली (शाखा तंत्र)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विशिष्टता उसकी अनूठी कार्यप्रणाली में निहित है, जिसे 'शाखा' कहा जाता है।

शाखा: यह संघ की सबसे छोटी और मूलभूत इकाई है, जो प्रतिदिन या सप्ताह में कुछ बार निश्चित समय पर एक निर्धारित स्थान पर लगती है। शाखा में स्वयंसेवक एक साथ आते हैं और शारीरिक (खेल, योग), बौद्धिक (चर्चा, गीत, कहानी) और नैतिक शिक्षा का प्रशिक्षण लेते हैं। यह एक प्रकार का संस्कार केंद्र है, जो व्यक्ति को देशभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी के लिए तैयार करता है।

प्रशिक्षण वर्ग: स्वयंसेवकों को क्रमबद्ध तरीके से प्रशिक्षित करने के लिए प्राथमिक, संघ शिक्षा वर्ग (ओटी्सी) जैसे प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाते हैं।

संगठनात्मक संरचना: संघ का कार्य क्षेत्र केंद्र, क्षेत्र, प्रांत, विभाग, जिला, नगर और खंड के स्तरों पर संगठित है। इसका शीर्ष नेतृत्व सरसंघचालक के पास होता है।

संघ परिवार को आज सबसे शक्तिशाली माना जाता है आइये जानते हैं कि क्या है

संघ परिवार 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने भारतीय समाज के लगभग हर क्षेत्र में काम करने के लिए 40 से अधिक अनुषांगिक संगठनों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित किया है, जिसे सामूहिक रूप से "संघ परिवार" कहा जाता है। इन संगठनों के कार्य और उद्देश्य इस प्रकार हैं:

भारतीय जनता पार्टी - संघ परिवार की राजनीतिक शाखा है। इसका उद्देश्य भारतीय राष्ट्रवाद और अंत्योदय (सबसे गरीब का उत्थान) की विचारधारा के आधार पर राजनीतिक शक्ति प्राप्त करना और देश का शासन चलाना है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद - यह विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। इसका उद्देश्य छात्रों में राष्ट्रभक्ति, सामाजिक चेतना जगाना और शैक्षणिक परिसर को राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का केंद्र बनाना है।

भारतीय युवा मोर्चा - भारतीय जनता पार्टी की युवा शाखा। यह युवाओं को राजनीति और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया से जोड़ने का काम करती है।

भारतीय मजदूर संघ - यह भारत का सबसे बड़ा श्रमिक संगठन (ट्रेड यूनियन) है। यह राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए मजदूरों के अधिकारों और उनके कल्याण के लिए संघर्ष करता है।

भारतीय किसान संघ - यह किसानों के हितों की रक्षा के लिए काम करता है। इसका उद्देश्य कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना तथा किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना है।

स्वदेशी जागरण मंच - यह संगठन स्वदेशी (आर्थिक स्व-निर्भरता) नीतियों की वकालत करता है। यह विदेशी निवेश और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के खिलाफ जागरूकता फैलाता है।

लघु उद्योग भारती - लघु और मध्यम उद्योगों के हितों की रक्षा और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए काम करता है।

विश्व हिंदू परिषद - यह धार्मिक और सांस्कृतिक संगठन है। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म, संस्कृति और मूल्यों की रक्षा करना, हिंदू समाज के विभिन्न संप्रदायों के बीच समन्वय स्थापित करना और धर्म परिवर्तन को रोकना है।

सेवा भारती - यह सामाजिक सेवा के लिए समर्पित संगठन है। यह देश के दूर-दराज और वंचित क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा, आपदा राहत और स्वरोजगार के माध्यम से सेवा कार्य करता है।

वनवासी कल्याण आश्रम - यह आदिवासी (वनवासी) समुदायों के सर्वांगीण विकास के लिए कार्यरत है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक उत्थान और सांस्कृतिक संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है।

सक्षम - यह दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण और उनकी क्षमताओं को विकसित करने के लिए काम करता है, ताकि वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें।

विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान - यह शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन है। यह देशभर में 'सरस्वती शिशु मंदिर' जैसे हजारों विद्यालय चलाता है, जो भारतीय मूल्यों, संस्कृति और राष्ट्रभक्ति पर आधारित शिक्षा प्रदान करते हैं।

संस्कार भारती - यह कला और संस्कृति के संरक्षण और प्रचार के लिए काम करता है। इसका उद्देश्य भारतीय कलाओं, लोक कलाओं और संस्कृति को पुनर्जीवित करना है।

विवेकानंद केंद्र - स्वामी विवेकानंद के विचारों पर आधारित मानव निर्माण और राष्ट्र निर्माण के लिए कार्यरत है। यह योग, शिक्षा, और प्राकृतिक संसाधन विकास जैसे क्षेत्रों में काम करता है।

इतिहास संकलन योजना - इसका उद्देश्य भारतीय इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से संकलित और पुनर्लेखित करना है, ताकि इतिहास में हुए विकृतियों को ठीक किया जा सके।

राष्ट्र सेविका समिति - इसका उद्देश्य महिलाओं में राष्ट्रीय भावना, चरित्र निर्माण और आत्मविश्वास को बढ़ाना है।

प्रज्ञा प्रवाह - विभिन्न क्षेत्रों में संघ के विचारधारात्मक संवाद और बौद्धिक आदान-प्रदान के लिए एक मंच।

पूर्व सैनिक सेवा परिषद - भूतपूर्व सैनिकों को सामाजिक कार्यों से जोड़कर राष्ट्र सेवा में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना।

27 सितंबर 2025

नवरात्रि हवन की सरल विधि

   नवरात्रि हवन की सरल विधि:-

 


नवरात्रि मे आप चाहें तो रोज या फिर आखिरी मे हवन कर सकते हैं ।

यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा विधि विधान नहीं कर सकते हैं ।. जो साधक हैं या कर्मकाँड़ी हैं वे अपने गुरु से प्राप्त विधि विधान या प्रामाणिक ग्रंथों से विधि देखकर सम्पन्न करें ।। मेरी राय मे चंडी प्रकाशनगीता प्रेसचौखम्बा प्रकाशनआदि से प्रकाशित ग्रंथों मे त्रुटियाँ काम रहती हैं ।. 

आवश्यक सामग्री :-

1. दशांग या हवन सामग्री दुकान पर आपको मिल जाएगा .

2. घी ( अच्छा वाला लें भले कम लें पूजा वाला घी न लें क्योंकि वह ऐसी चीजों से बनता है जिसे आपको खाने से दुकानदार मना करता है तो ऐसी चीज आप देवी को कैसे अर्पित कर सकते हैं )

3. कपूर आग जलाने के लिए .

4. एक नारियल गोला या सूखा नारियल पूर्णाहुति के लिए ,

5. हवन कुंड या गोल बर्तन ।. 

 

हवनकुंड/ वेदी को साफ करें.

हवनकुंड न हो तो गोल बर्तन मे कर सकते हैं .

फर्श गरम हो जाता है इसलिए नीचे स्टैन्ड या ईंट रेती रखें उसपर पात्र रखें.

कुंड मे लकड़ी जमा लें और उसके नीचे में कपूर रखकर जला दें.

हवनकुंड की अग्नि प्रज्जवलित हो जाए तो पहले घी की आहुतियां दी जाती हैं.

सात बार अग्नि देवता को आहुति दें और अपने हवन की पूर्णता की प्रार्थना करें

“ ॐ अग्नये स्वाहा 

 

इन मंत्रों से शुद्ध घी की आहुति दें-

ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये न मम् ।

ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदं इन्द्राय न मम् ।

ॐ अग्नये स्वाहा । इदं अग्नये न मम ।

ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय न मम ।

ॐ भूः स्वाहा ।

 

उसके बाद हवन सामग्री से हवन करें .

नवग्रह मंत्र :-

ऊँ सूर्याय नमः स्वाहा

ऊँ चंद्रमसे नमः स्वाहा

ऊं भौमाय नमः स्वाहा

ऊँ बुधाय नमः स्वाहा

ऊँ गुरवे नमः स्वाहा

ऊँ शुक्राय नमः स्वाहा

ऊँ शनये नमः स्वाहा

ऊँ राहवे नमः स्वाहा

ऊँ केतवे नमः स्वाहा

गायत्री मंत्र :-

 

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।

 

ऊं गणेशाय नम: स्वाहा,

ऊं भैरवाय नम: स्वाहा,

ऊं गुं गुरुभ्यो नम: स्वाहा,

 

ऊं कुल देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ऊं स्थान देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ऊं वास्तु देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ऊं ग्राम देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ॐ सर्वेभ्यो गुरुभ्यो नमः स्वाहा ,

 

ऊं सरस्वती सहित ब्रह्माय नम: स्वाहा,

ऊं लक्ष्मी सहित विष्णुवे नम: स्वाहा,

ऊं शक्ति सहित शिवाय नम: स्वाहा

 

माता के नर्वाण मंत्र से 108 बार आहुतियां दे

 

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै स्वाहा

 

हवन के बाद नारियल के गोले में कलावा बांध लें. चाकू से उसके ऊपर के भाग को काट लें. उसके मुंह में घीहवन सामग्री आदि डाल दें.

पूर्ण आहुति मंत्र पढ़ते हुए उसे हवनकुंड की अग्नि में रख दें.

पूर्णाहुति मंत्र-

ऊँ पूर्णमद: पूर्णम् इदम् पूर्णात पूर्णम उदिच्यते ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते ।।

 

इसका अर्थ है :-

वह पराशक्ति या महामाया पूर्ण है उसके द्वारा उत्पन्न यह जगत भी पूर्ण हूँ उस पूर्ण स्वरूप से पूर्ण निकालने पर भी वह पूर्ण ही रहता है ।

वही पूर्णता मुझे भी प्राप्त हो और मेरे कार्य अभीष्ट मे पूर्णता मिले ....

 

इस मंत्र को कहते हुए पूर्ण आहुति देनी चाहिए.

उसके बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें,

फिर आरती करें.

अंत मे क्षमा प्रार्थना करें.

माताजी को समर्पित दक्षिण किसी गरीब महिला या कन्या को दान मे दें ।