10 अप्रैल 2016

छिन्नमस्ता साधना मन्त्र





॥ ऊं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऎं वज्रवैरोचनीयै ह्रीं ह्रीं फ़ट स्वाहा ॥



नोट:- यह साधना गुरुदीक्षा लेकर गुरु अनुमति से ही करें.....







प्रचंड तान्त्रिक प्रयोगों की शान्ति के लिये छिन्नमस्ता साधना की जाती है. यह तन्त्र क्षेत्र की उग्रतम साधनाओं में से एक है.

यह साधना गुरु दीक्षा लेकर गुरु की अनुमति से ही करें. यह रात्रिकालीन साधना है. नवरात्रि में विशेष लाभदायक है. काले या लाल वस्त्र आसन का प्रयोग करें. रुद्राक्ष या काली हकीक की माला का प्रयोग जाप के लिये करें. सुदृढ मानसिक स्थिति वाले साधक ही इस साधना को करें. साधना काल में भय लग सकता है.ऐसे में गुरु ही संबल प्रदान करता है.

नवरात्री : सरस्वती साधना





॥ ऎं श्रीं ऎं ॥ 


लाभ - विद्या तथा वाकपटुता 



विधि ---

  1. पूर्णिमा तक सवा लाख जाप करें |
  2. रात्रि में जाप करें.
  3. रात्रि काल में जाप होगा.
  4. रत्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे के बीच का समय रात्रि काल है.
  5. सफ़ेद रंग का आसन तथा वस्त्र होगा.
  6. दिशा पूर्व या उत्तर की तरफ़ मुंह करके बैठना है.
  7. हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
  8. सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
  9. किसी स्त्री का अपमान न करें.
  10. किसी पर साधन काल में क्रोध न करें.
  11. किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
  12. यथा संभव मौन रखें.
  13. साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें.

4 अप्रैल 2016

नवार्ण मन्त्रम








॥ ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चै ॥


ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।

ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।

क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।
नवरात्री में नवार्ण मन्त्र का जाप इन तीनों देवियों की कृपा प्रदान करता है ।

24 मार्च 2016

भगवती महाविद्या महाकाली

महाकाली की साधना जीवन का सौभाग्य है । यह साधना साधक को आध्यात्मिक रुप से परिपूर्णता प्रदान करती है साथ ही साथ उसे जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुखों की उपलब्धता भी कराती है । महाकाली का स्वरूप अत्यंत ही विकराल है  ! भयानक है ! उनके गले में मुंडमाला है ! जिह्वा बाहर लपलपा रही है ! नेत्र क्रोध से लाल-लाल होकर भयानकता में वृद्धि कर रहे हैं ! ऐसी विकराल स्वरूपिणी होते हुए भी ! महाकाली के भीतर का मातृत्व , उनकी सहजता , उन की असीम कृपा का अनुभव, जब साधक कर लेता है, तो उसके जीवन में किसी प्रकार की कमी नहीं रह जाती  ।

हर क्षण उसे यह एहसास होता है कि कोई उसके साथ है । कोई ऐसा ! जो उसे हर कदम पर मार्गदर्शन भी देगा ! फिसलते हुए कदमों का सहारा भी बनेगा ! और जब किसी गलत दिशा की ओर कदम उठाएंगे तो उन कदमों को रोकने के लिए संकेत भी देगा । ऐसी अद्भुत साधना है महाकाली साधना !! इस साधना को कर लेने के बाद साधक भीड़ से हट कर खड़ा हो जाता है । उसकी एक अलग पहचान बनने लगती है । उसके व्यक्तित्व में कुछ अलग नूर आ जाता है । लोग अपने आप उसकी तरफ आकर्षित होने लगते हैं  । उसके पास खड़ा हो जाने पर से एक अजीब सा सुकून, एक अजीब अजीब सी शांति, महसूस होती है जैसे किसी वटवृक्ष की छाया में आकर खड़े हो गए हो ! ऐसे साधक के पास बैठने मात्र से ही समस्याओं को व्यक्ति भूल जाता है ! भगवती महाकाली अपने साधकों इतना कुछ देती है कि वह अपने दोनों हाथों से समेट  नहीं  सकता । जैसे एक शिशु अपनी मां को पुकारता है ! अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ! ठीक वैसा ही महाकालि का साधक भगवती महाकाली को पुकारता है ! अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिए , और ठीक जैसे एक शिशु की आवाज पर उसकी मां दौड़ी चली आती है, वैसी ही भगवती भी अपने साधकों की पुकार पर तत्क्षण पहुंच जाती है । उसे अपने आंचल में समेट लेती है और उसकी सारी जरूरतों को पूरा कर देती है । ऐसी अदभुत लीला विहारिणी भगवती महाकाली की साधना करना जीवन का सौभाग्य है । जो साधक इस साधना को अपने जीवन में शामिल कर लेते हैं , और इस साधना में निरंतर लीन रहते हैं , वे  उनके सानिध्य को उनके स्पर्श को उनकी उपस्थिति को महसूस करने में सक्षम हो जाते हैं और भगवती अपनी कृपा का अनुभव अपने साधकों को अवश्य कराती है ।

11 मार्च 2016

मेरे गुरुदेव : स्वामी सुदर्शननाथ जी









अघोर शक्तियों के स्वामी, साक्षात अघोरेश्वर शिव स्वरूप , सिद्धों के भी सिद्ध मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत, प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.

प्रचंडता की साक्षात मूर्ति, शिवत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप   मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.


सौन्दर्य की पूर्णता को साकार करने वाले साक्षात कामेश्वर, पूर्णत्व युक्त, शिव के प्रतीक, मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.

जो स्वयं अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, जो अहं ब्रह्मास्मि के नाद से गुन्जरित हैं, जो गूढ से भी गूढ अर्थात गोपनीय से भी गोपनीय विद्याओं के ज्ञाता हैं ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.

जो योग के सभी अंगों के सिद्धहस्त आचार्य हैं, जिनका शरीर योग के जटिलतम आसनों को भी सहजता से करने में सिद्ध है, जो योग मुद्राओं के विद्वान हैं, जो साक्षात कृष्ण के समान प्रेममय, योगमय, आह्लादमय, सहज व्यक्तित्व के स्वामी हैं  ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.

काल भी जिससे घबराता है, ऐसे महाकाल और महाकाली युगल के उपासक, साक्षात महाकाल स्वरूप, अघोरत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप, महाकाली के महासिद्ध साधक मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.






5 मार्च 2016

भोले बाबा की साधना


यह साधना भोले बाबा के उन भोले भक्तों के लिए है जो कुछ जानते नहीं और जानना भी नहीं चाहते |
शिव पंचाक्षरी मन्त्र है |
॥ ऊं नमः शिवाय ॥

शिवरात्रि की रात्रि शाम ६ से सुबह ६ तक जाप करें..
जाप से पहले अपनी मनोकामना कह दें..
कर सकें तो कम से कम 1 बेलपत्र और एक कलश जल बाबा के ऊपर चढ़ा दें बाकी बाबा देख लेंगे 

2 मार्च 2016

देवाधिदेव - भगवान शिव


देवाधिदेव - भगवान शिव


भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था गृहप्रवेश से पूर्व पूजन के लिए उन्होने अपने असुर शिष्य प्रकाण्ड विद्वान रावण को आमंत्रित किया था दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका ही दक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंका रावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए ऐसी सहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथ' कहलाते हैं ऐसे भोले भंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने के लिए शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।



भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है। जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहां ठीक इसके विपरीत 
शिव पूर्ण दिगंबर हैं,
अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं
श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं। 
उनकी मुद्रा में चिंतन है, तो निर्विकार भाव भी है!
आनंद भी है और लास्य भी। 

भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी।  

यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। 

वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं वे देवों के भी देव होने के कारण महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण महाकाल भी हैं  

वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं  
देवताओं में प्रथमाराध्य, विनों के कारक निवारणकर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं तो, जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं
वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो कामेश्वर भी हैं  
तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं  


उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः-
असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रे, सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी
लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईश पारम याति॥
अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीसकर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है
भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं।इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं।भगवान शिव क्षिप्रप्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं और अभीप्सित कामना की पूर्ति कर देते हैं। भगवान शिव के पूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कर रहा हूं।इन विधियों से प्रत्येक आयु, लिंग, धर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता है और भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकता है।


भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-
ऊं नमः शिवाय
यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं।अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारह लाख मंत्रों का किया जाता है विविध कामनाओं के लिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।

बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजय शिव मंत्रः-

ऊं हौं ऊं जूं ऊं सः ऊं भूर्भुवः ऊं स्वः ऊं त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ऊं स्वः ऊं भूर्भुवः ऊं सः ऊं जूं ऊं हौं ऊं

भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ है, ऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुका हो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो,

परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जाप कर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें
" मैं(अपना नाम) महामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नाम) के रोग निवारण के निमित्त कर रहा हॅू | भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें''
इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्र तथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।

1 मार्च 2016

शिवलिंग की महिमा

शिवलिंग की महिमा








भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,

इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः
 मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं  भूतो भविष्यति
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग तो बना है और ही बन सकता है।





शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं  

शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।

27 फ़रवरी 2016

युग्म धतूरा : वैवाहिक सुख के लिए


शिवलिंग पर बेलपत्र के सामान ही धतूरा का फल और फूल भी चढ़ाया जाता है |
युग्म धतूरा :-
  • युग्म धतूरा, दो धतूरा एक साथ जुड़ा जैसा दीखता है |
  • इसमें बीच में एक लाइन जैसी दिखती है |
  • वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिए दूध से अभिषेक कर इसे शिवलिंग पर चढ़ाना लाभप्रद होता है |

20 फ़रवरी 2016

शिवरात्रि शिविर : 6 और 7 मार्च

शिवरात्रि शिविर 
6 और 7 मार्च 
निखिलधाम , भोजपुर, भोपाल (म.प्र.)
जानकारी के लिए संपर्क फोन 
  • (0755 ) 4283681 
  • (0755 ) 4269368 
  • (0755 ) 4221116  

साधना सिद्धि विज्ञान : महाकाल विशेषांक



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डाउनलोड के लिए क्लिक करें


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महाकाल विशेषांक जून 2003

19 फ़रवरी 2016

शिव तथा शक्ति की कृपा प्रदायक मन्त्र





॥ ऊं सांब सदाशिवाय नमः ॥

 लाभ - यह शिव तथा शक्ति की कृपा प्रदायक है.

विधि ---
  1. नवरात्रि में जाप करें.
  2. रात्रि काल में जाप होगा.
  3. रत्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे के बीच का समय रात्रि काल है.
  4. सफ़ेद या लाल रंग का आसन तथा वस्त्र होगा.
  5. दिशा पूर्व तथा उत्तर के बीच [ईशान] की तरफ़ मुंह करके बैठना है.
  6. हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
  7. सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
  8. किसी स्त्री का अपमान न करें.
  9. किसी पर साधन काल में क्रोध न करें.
  10. किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
  11. यथा संभव मौन रखें.
  12. साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें अन्यथा नींद आयेगी.