1 जून 2020

सूर्यग्रहण विशेष : शीघ्र विवाह मंत्र

मखनो हाथी जर्द अम्बारी उस पर बैठी कमाल खाँ की सवारी. कमाल खाँ कमाल खाँ मुग़ल पठान बैठ चबूतरे पढ़े कुरान. हजार काम दुनिया का करे एक काम मेरा भी कर. जो ना करे तो तीन लाख तैंतीस हजार पीर पैगम्बरों की दुहाई।




  1. जिस लड़की का विवाह नहीं हो रहा है वह स्वयं जाप करे |
  2. सूर्यग्रहण पर जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके जाप करें । 
  3. नित्य जाप करते रहें |
  4. जाप से शीघ्र अनुकूलता मिलेगी |

गुरु हृदयस्थ धारण सिद्धि ...

31 मई 2020

दस महाविद्या शाबर मंत्र



दस महाविद्या शाबर मंत्र
प्रथम ज्योति महाकाली प्रगटली ।
ॐ निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वहानी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त-पी-पीवे । भस्मन्ति माई जहाँ पर पाई तहाँ लगाई । सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोर काली अजर ।। महाकाली ।।
बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ॐ काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली ।
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।
द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी ।
।। तारा ।।
ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया । ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया । घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा । पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा, डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया । चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी ।
ॐ ह्रीं स्त्रीं फट्, ॐ ऐं ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्
तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी ।
।। षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी ।।
ॐ निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद । तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश । हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश । त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी । इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी । उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला । योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता ।
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं कएईलह्रीं
हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं सोः
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ।
चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी ।‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍
।। भुवनेश्वरी ।।
ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी । बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया । चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार । योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता ।
ह्रीं
पञ्चम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी ।
।। छिन्नमस्ता ।।
सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या । पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये ।
श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र-वैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा ।
षष्टम ज्योति भैरवी प्रगटी ।
।। भैरवी ।।
ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी, सम्पत्त-प्रदा-भैरवी, कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी । जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।
ॐ ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः
सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी
।। धूमावती ।।
ॐ पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि । डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी । जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये । धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत ।
ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।
अष्टम ज्योति बगलामुखी प्रगटी ।
।। बगलामुखी ।।
ॐ सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पिला । संहासन पीले ऊपर कौन बसे । सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी । कच्ची बच्ची काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुद्-गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला । बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त कोट सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे । बाला बगलामुखी नमो नमस्कार ।
ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात् ।
नवम ज्योति मातंगी प्रगटी ।
।। मातंगी ।।
ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।
ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।
दसवीं ज्योति कमला प्रगटी ।
।। कमला ।।
ॐ अ-योनी शंकर ॐ-कार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप । हाथ में सोने का कलश, मुख से अभय मुद्रा । श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा । देवी देवत्या ने किया जय ॐ-कार । कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन । कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान । जिसकी तीन लोक में भया मान । कमला देवी के चरण कमल को आदेश ।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध-लक्ष्म्यै नमः ।


28 मई 2020

सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना


॥ ॐ क्लीं दुर्गायै नमः ॥

  • यह काम बीज से संगुफ़ित दुर्गा मन्त्र है.
  • यह सर्वकार्यों में लाभदायक है.
  • इसका जाप आप नवरात्रि में चलते फ़िरते भी कर सकते हैं.
  • अनुष्ठान के रूप में २१००० जाप करें.
  • २१०० मंत्रों से हवन नवमी को करें.
  • विशेष लाभ के लिये विजयादशमी को हवन करें.
  • सात्विक आहार आचार विचार रखें ।
  • हर स्त्री को मातृवत सम्मान दें ।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें । 

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26 मई 2020

रक्षा कारक : पाशुपत मंत्र

पाशुपत मंत्र


पशुपति अर्थात पशुओं के पति....


जो पशुओं को नियंत्रित करने की क्षमता रखते हैं... 


जो अनियंत्रित पशुओं को भी नियंत्रित करने की क्षमता रखते हैं .... 


आपने चरवाहों को देखा होगा...  

गायों के और भैंसों के झुंड भी आपने देखे होंगे…


इसमें से बहुत सारे नियंत्रित होते हैं और कुछ एक ऐसे होते हैं जो अनियंत्रित होते हैं …


अपनी अलग ही चाल में चलते हैं.....


उनको नियंत्रित करने की क्षमता रखने वाला व्यक्ति ही एक अच्छा चरवाहा अर्थात पशुपति बन सकता है..... 


यह संपूर्ण सृष्टि भी पशुओं से भरी हुई है.....

जिसमें सबसे विकसित पशु मनुष्य है......

अमीबा से लेकर वायरस तक सब कुछ एक किस्म का पशु ही है... 

इन सब के अधिपति इन सब को नियंत्रित करने की क्षमता रखने वाले है ..... 

पशुपति.... 

अर्थात भगवान शिव.....


उनका सबसे तेजस्वी मंत्र है पाशुपत मंत्र 


यह एक ऐसा मंत्र है जो सभी प्रकार के अनियंत्रित स्थितियों को नियंत्रित करने में मदद करता है....


कोरोना वायरस के संक्रमण की स्थिति भी लगभग अनियंत्रित अवस्था में पहुंच चुकी है .... 


अगर आप ध्यान से देखें तो कोरोना भी एक किस्म का अत्यंत सूक्ष्म पशु ही है जो अनियंत्रित हो गया है । अपनी सीमाओं का उल्लंघन करते हुए वह हर तरफ त्राहि-त्राहि की स्थिति उत्पन्न कर रहा है .... 

जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो उसका इलाज केवल देवाधिदेव महादेव शिव का पाशुपत मंत्र ही कर सकता है....... 


इस विपरीत परिस्थिति में अनुकूलता लाने के लिए…

अपने परिवार की रक्षा के लिए.....

अपने समाज की रक्षा के लिए..... 

अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए..... 

मानवता की रक्षा के लिए.... 

आप पाशुपत मंत्र का प्रयोग कर सकते हैं..... 


मैं आगे की पंक्तियों में गुरुदेव  सुदर्शन नाथ जी के द्वारा प्रदान किए गए पाशुपत मंत्र का विवरण दे रहा हूं।  यह मंत्र भगवान शिव के स्वरूप आदि शंकराचार्य के द्वारा भगवान पशुपति की आराधना के लिए प्रयुक्त हुआ था .... इसलिए यह बेहद प्रभावशाली और शक्तिशाली मंत्र है । यह शिव के अवतार द्वारा अपने मूल स्वरूप को प्रसन्न करने और जागृत करने के लिए प्रयुक्त हुआ था ॥ 

यह एक ऐसा अचूक मंत्र है जो सभी प्रकार के संकटों से रक्षा करने में सहायक है.... 


इस मंत्र का जाप आप स्वयं कर सकते हैं । आपकी पत्नी कर सकती है, आपके बच्चे कर सकते हैं । आप इस मंत्र को उन सभी को बता सकते हैं जो भगवान शिव पर और सनातन धर्म में आस्था रखते हो और अपने परिवार तथा राष्ट्र की रक्षा के प्रति जागरूक हो.... 


 

पाशुपत मंत्र :- 

॥ ॐ श्लीं पशुं हुं फट ॥ 


इसका उच्चारण होगा :- 

( ॐ श्लीम पशुम हुम फट) 

(om shleem pashum hoom fat)


विधि :-

  • मंत्र जाप से पहले 3 या 11, 21,51 या 108 बार गुरु मंत्र का उच्चारण कर ले । 

॥ ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥ 

यदि आपने गुरू  बनाया हो और उन्होंने आपको कोई मंत्र दिया हो तो आप उस मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं । 

  • इसके बाद आप पशुपत मंत्र का जितना आपकी शक्ति हो उतना जाप करें ।

  • पशुपति मंत्र के जाप के लिए किसी प्रकार के आयु, जाति ,लिंग, का बंधन नहीं है।

  • भगवान पशुपति का मंत्र होने के कारण इसमें स्थान, आसन, समय, दिशा, वस्त्र आदि का बंधन भी नहीं है । अर्थात आप इस मंत्र को चलते-फिरते भी जप सकते हैं । 

  • इसका जाप आप पूजन कक्ष में बैठकर भी कर सकते हैं । नदी तट पर बैठकर भी कर सकते हैं । इसे आप मंदिर में बैठकर जप सकते हैं तो अपने ड्राइंग रूम में बैठकर भी जप सकते हैं । इसका जाप आप अपने कार्यस्थल में, अपने ऑफिस में ,अपनी रसोई में, कहीं भी कर सकते हैं, 

  • शर्त यही है कि आपकी आस्था देवाधिदेव महादेव पर हो,  बाकी वह देख लेंगे। 

24 मई 2020

पाँच मुखी रुद्राक्ष के विविध प्रयोग

पाँच मुखी रुद्राक्ष 




  • पञ्च मुखी रुद्राक्ष सहजता से मिल जाता है। 

  • यह पंच देवों का स्वरूप है । 

  • शिवकृपा देता है । 

  • उच्च रक्तचाप HIGH BP में लाभदायक है । 

  • शिवरात्रि या किसी सोमवार को 1008 बार "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप कर धारण करने से रक्षा कवच का काम करता है . इसे पहनने से नजर/तंत्र /टोटका से रक्षा मिलती है .

  • अमावस्या, कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी , शिवरात्रि या किसी सोमवार को अपने सामने चौकी मे इसे रखकर  1008 बार "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप बेलपत्र या पुष्प चढ़ाते हुए करे। इसे अपने वाहन मे रखें । दुर्घटनाओं मे रक्षा प्रदान करेगा । 

  • किसी को ऊपरी बाधा लग रही हो तो हनुमानजी को चोला चढ़ाने के समय पांचमुखी रुद्राक्ष उनके चरणों के पास रखें । हनुमान चालीसा का 11 पाठ करें । हर पाठ के बाद उनके बाएँ पांव से सिंदूर लेकर रुद्राक्ष पर लगाएँ ।  फिर पीड़ित को पहना दें । और फिर से 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें । लाभ होगा । 

  • घर की रक्षा के लिए पाँच मुखी रुद्राक्ष के 11 दाने ले लें । उसे कटोरी मे गंगा जल मे डूबा दें । 1008 बार " ॐ नमः शिवाय शिवाय नमः ॐ " मंत्र का जाप करें । हर दिन जल बदल देंगे । पहले दिन के जल को घर मे छिड़क देंगे । 11 दिन तक नित्य ऐसा करें । 11 दिन के बाद सफ़ेद या लाल कपड़े मे बांधकर घर के मुख्य द्वार के ऊपर लटका दें । रोज धूप दिखाते रहें । 

  • इसे साथ मे रखने से ही बहुत सारी नकारात्मक शक्तियाँ भाग जाती हैं । 



23 मई 2020

उच्छिष्ट गणपति साधना

  •  
  •  कलौ चंडी विनायकौ अर्थात कलियुग में चंडिका तथा गणपति साधना शीघ्र फलदायक होती है |
  • गणपति साधना में सबसे प्रबल सफलता प्रदायक साधना है उच्छिष्ट गणपति साधना |


  • ॥ हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा ॥
     
    सामान्य निर्देश :-
    • साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
    • इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
    • साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
    -------------------------------------
    विधि :-


    1. रुद्राक्ष की माला सभी कार्यों के लिए स्वीकार्य  है |
    2. जाप के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले), आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह मन्त्र जाप कर रहा/ रही हूँ | मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " | इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
    3. पान का बीड़ा चबाएं फिर मंत्र जाप करें |
    4. गुरु से अनुमति ले लें|
    5. दिशा दक्षिण की और देखते हुए बैठें |
    6. आसन लाल/पीले रंग का रखें|
    7. नित्य कम से कम 108 बार जाप करें , जितना ज्यादा जाप करेंगे उतना बेहतर परिणाम मिलेगा |
    8. जाप रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें|
    9. यदि अर्धरात्रि जाप करते हुए निकले तो श्रेष्ट है | 
    10. कम से कम 21 दिन जाप करने से अनुकूलता मिलती है | 
    11. जाप के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें|
    12. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें | यथा सम्भव सम्मान करें |
    13. जिस बालिका/युवती/स्त्री के बाल कमर से नीचे तक या उससे ज्यादा लम्बे हों उसे देखने पर मन ही मन मातृवत मानते हुए प्रणाम करें |
    14. सात्विक आहार/ आचार/ विचार रखें |
    15. ब्रह्मचर्य का पालन करें |
    . . .
॥ हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा ॥
 
सामान्य निर्देश :-
  • साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
  • इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
  • साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
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विधि :-


  1. रुद्राक्ष की माला सभी कार्यों के लिए स्वीकार्य  है |
  2. जाप के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले), आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह मन्त्र जाप कर रहा/ रही हूँ | मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " | इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
  3. पान का बीड़ा चबाएं फिर मंत्र जाप करें |
  4. गुरु से अनुमति ले लें|
  5. दिशा दक्षिण की और देखते हुए बैठें |
  6. आसन लाल/पीले रंग का रखें|
  7. नित्य कम से कम 108 बार जाप करें , जितना ज्यादा जाप करेंगे उतना बेहतर परिणाम मिलेगा |
  8. जाप रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें|
  9. यदि अर्धरात्रि जाप करते हुए निकले तो श्रेष्ट है | 
  10. कम से कम 21 दिन जाप करने से अनुकूलता मिलती है | 
  11. जाप के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें|
  12. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें | यथा सम्भव सम्मान करें |
  13. जिस बालिका/युवती/स्त्री के बाल कमर से नीचे तक या उससे ज्यादा लम्बे हों उसे देखने पर मन ही मन मातृवत मानते हुए प्रणाम करें |
  14. सात्विक आहार/ आचार/ विचार रखें |
  15. ब्रह्मचर्य का पालन करें |
. . .

22 मई 2020

शनि जयंती विशेष : सदगुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा नव ग्रह प्रयोग

शनि जयंती विशेष संक्षिप्त शनि पूजन




शनि जयंती विशेष संक्षिप्त शनि पूजन
संक्षिप्त शनि पूजन :-
---------------------------
सर्व प्रथम सदगुरु का ध्यान करे
गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर :
गुरु: साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नमः
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ शं शनैश्चराय नमः
अब 4 बार आचमन करे।
ॐ आत्म तत्व शोधयामि स्वाहा
ॐ विद्या तत्व शोधयामि स्वाहा
ॐ शिव तत्व शोधयामि स्वाहा
ॐ सर्व तत्व शोधयामि स्वाहा
फिर गुरु , परम गुरु और परमेष्ठी गुरु का पूजन करे पूजन स्थल पर पुष्प अक्षत अर्पण करे।
ॐ गुरुभ्यो नमः
ॐ परम गुरुभ्यो नमः
ॐ परमेष्ठी गुरुभ्यो नमः
अब आसन पर पुष्प अक्षत अर्पण करे
ॐ पृथ्वी देव्यै नमः
चारो तरफ दिशा बंधन हेतु अक्षत फेके
और अपनी शिखा पर दाहिना हाथ रखे
फिर दीपक को प्रणाम करे
दीप देवताभ्यो नमः
कलश में जल डाले और उसमे चन्दन या सुगन्धित द्रव्य डाले
कलश देवताभ्यो नमः
अब अपने आप को तिलक करे
और दाहिने हाथ में जल लेकर अपने नाम और गोत्र का
उच्चारण कर संकल्प करे की आज शनि जयंती के दिन
मैं शनि भगवान की कृपा प्राप्त करने हेतु यथाशक्ति साधना संपन्न कर रहा हूँ और गुरु कृपा से साधना सफल हो जाए।
गुरु के स्मरण पूजन से साधना सम्बंधित दोष दूर हो जाते है
फिर सदगुरु का पंचोपचार पूजन करे
(गंध अक्षत पुष्प धुप दीप नैवेद्य )
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः पंचोपचार पूजनम समर्पयामि
फिर गणेश जी का स्मरण करे
वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
ॐ श्री गणेशाय नमः पंचोपचार पूजनम समर्पयामि
फिर शनि महाराज का ध्यान मन्त्र पढ़े और उनका आवाहन करे
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्
श्री शनि देवता आवाहयामि मम
पूजा स्थाने स्थापयामि नमः
श्री शनि भगवान इहावह इहावह
इह तिष्ठ इह तिष्ठ
मम सन्निधिं कुरु कुरु मम कृपाम कुरु कुरु
अब उनका पंचोपचार पूजन करे
ॐ शं शनैश्चराय नम: गंधं समर्पयामि
ॐ शं शनैश्चराय नम: पुष्पम समर्पयामि
ॐ शं शनैश्चराय नम: धूपम समर्पयामि
ॐ शं शनैश्चराय नम: दीपम समर्पयामि
ॐ शं शनैश्चराय नम: नैवेद्यम समर्पयामि
अगर आपके पास समय हो तो शनिदेव के १०८ नामो से पुष्प अक्षत या बेल पत्र से पूजन करे .. शनि देव के अष्टोत्तर शत नामावली को अलग एक पोस्ट मे प्रस्तुत कर रहा हु ..
और विभिन्न शनि स्तोत्रो का यथाशक्ती पाठ करे .. एक शनि स्तोत्र इसी फेसबुक पेज पर अलग पोस्ट मे प्रस्तुत किया है उसका पाठ कर सकते है ..
अब निम्नलिखीत शनि गायत्री से शनिदेव को अर्घ्य प्रदान करे
शनि गायत्री
१)ॐ कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात्
२) ॐ भगभवाय विद्महे मृत्यु रुपाय धीमहि तन्नो शनि: प्रचोदयात्
अब आप नीचे दिये हुये शनि माला मंत्र का पाठ करते हुये पुष्प अर्पण करे
दुर्लभ शनि माला मंत्र
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(इस दुर्लभ शनि माला मंत्र के आप अलग यथासंभव 11 या 21 या 51 या 108 या 1008 पाठ करे .. शनिबाधा निवारण हेतु यह सटिक उपाय है .. आप इसे नित्य पूजन मे शामिल कर सकते है .. या प्रत्येक शनिवार इसका उचित संख्या मे पाठ करे .. )
ॐ नमो भगवते शनैश्चराय मंदगतये सूर्यपुत्राय महाकालाग्निसदृशाय क्रूरदेहाय गृध्रासनाय नीलरुपाय चतुर्भुजाय त्रिनेत्राय नीलांबरधराय नीलमालाविभूषिताय धनुराकारमण्डले प्रतिष्ठिताय काश्यपगोत्रात्मजाय माणिक्यमुक्ताभरणाय छायापुत्राय सकल महारौद्राय सकल जगतभयंकराय पंगुपादाय क्रूररुपाय देवासुरभयंकराय सौरये कृष्णवर्णाय स्थूलरोमाय अधोमुखाय नीलभद्रासनाय नीलवर्णरथारुढाय त्रिशूलधराय सर्वजनभयंकराय मंदाय दं शं नं मं हुं रक्ष रक्ष , मम शत्रून नाशय नाशय , सर्वपीडा नाशय नाशय , विषमस्थ शनैश्चरान सुप्रीणय सुप्रीणय , सर्व ज्वरान शमय शमय , समस्त व्याधीनामोचय मोचय विमोचय विमोचय मां रक्ष रक्ष , समस्त दुष्टग्रहान भक्षय भक्षय , भ्रामय भ्रामय , त्रासय त्रासय , बंधय बंधय , उन्मादय उन्मादय , दीपय दीपय , तापय तापय , सर्व विघ्नान छिंधि छिंधि , डाकिनी शाकिनी भूत वेताल यक्षरगोगंधर्वग्रहान ग्रासय ग्रासय , भक्षय भक्षय , दह दह , पच पच , हन हन , विदारय विदारय , शत्रून नाशय नाशय , सर्वपीडा नाशय नाशय , विषमस्थ शनैश्चरान सुप्रीणय सुप्रीणय , सर्वज्वरान शमय शमय , समस्त व्याधीन विमोचय विमोचय , ॐ शं नं मं ह्रां फं हुं शनैश्चराय नीलाभ्रवर्णाय नीलमेखलाय सौरये नम:
!! इति शनि माला मंत्र !!
उसके बाद आप निम्नलिखीत शनि मंत्र मे से किसी एक मंत्र का यथाशक्ती जाप करे ..और अंत मे क्षमा प्रार्थना जरुर करे
१) ॐ शं शनैश्चराय नम:
२) ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
३) ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नम: