8 अगस्त 2021

रुद्राष्टकम

रुद्राष्टकम


नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम्।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥


निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।

करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥


तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥


चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥



प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।

त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥


कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥


न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।

न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।

जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥



रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥




आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं


spotify link

https://open.spotify.com/show/00vXvHwYrtTbjnjSzyOt3V

anchor link

https://anchor.fm/u0938u0928u093eu0924u0928-u0938u0942u0924u094du0930

radiopublic link

https://radiopublic.com/-WlZq04

google podcast link

https://podcasts.google.com/?feed=aHR0cHM6Ly9hbmNob3IuZm0vcy8yNmNiMjA1Yy9wb2RjYXN0L3Jzcw%3D%3D

breaker link

https://www.breaker.audio/mntr-rhsy

7 अगस्त 2021

शिव तांडव स्तोत्र

 भगवान शिव का प्रिय शिष्य रावण माना जाता है और उसने एक अप्रतिम रचना लिखी है जिसे शिव तांडव स्तोत्र कहा जाता है ।




जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले, गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं, चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥१॥



जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी, विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके, किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥



धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥



जटाभुजंग पिंगल स्फुरत्फणा मणिप्रभा-कदंब कुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे।

मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥४॥


सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।

भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥



ललाटचत्वरज्वलद्धनंजय स्फुलिङ्गभा-निपीत पंचसायकंनमन्निलिंप नायकम्‌।

सुधामयूखलेखया विराजमान शेखरं महाकपालि संपदे शिरो जटालमस्तुनः ॥६॥


करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।

धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक प्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥


नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधान बंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥


प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंच कालिम प्रभा-विडंबि कंठ कंधरारुचि प्रबंधकंधरम्‌।

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥


अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥


जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंग तुंग मंगल ध्वनिक्रम प्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥


दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्ष पक्षयोः।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥


कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाल लग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥


पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥


॥ इति श्री रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥





आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं


spotify link

https://open.spotify.com/show/00vXvHwYrtTbjnjSzyOt3V

anchor link

https://anchor.fm/u0938u0928u093eu0924u0928-u0938u0942u0924u094du0930

radiopublic link

https://radiopublic.com/-WlZq04

google podcast link

https://podcasts.google.com/?feed=aHR0cHM6Ly9hbmNob3IuZm0vcy8yNmNiMjA1Yy9wb2RjYXN0L3Jzcw%3D%3D

breaker link

https://www.breaker.audio/mntr-rhsy


6 अगस्त 2021

सर्प शांति : सर्प सूक्त




यदि आपको अपने घर में बार बार सांप दिखाई देते हो .....


आपकी कुंडली में कालसर्प दोष हो.........


या आप भगवान शिव के गण के रूप में नाग देवता की पूजा करना चाहते हो तो आप श्रावण मास में इस सर्प सूक्त का प्रयोग कर सकते हैं ।


सर्प सूक्त


ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा: शेषनागपुरोगमा: ।।

नमोSस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।। 1।।


इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखास्तथा।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।


कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा:।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।


इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखास्तथा।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।


सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।


मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखास्तथा।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।


पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये च साकेत वासिन:।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।


सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।


ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पा: प्रचरन्ति च।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।


समुद्रतीरे च ये सर्पा: ये सर्पा जलवासिन:।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।


रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।

नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।


इसका उच्चारण देखें 



5 अगस्त 2021

नीलकंठ महादेव अघोर मंत्र स्तोत्र :



संकल्प:(विनियोग ):-

ओम अस्य श्री नीलकंठ स्तोत्र-मन्त्रस्य ब्रह्म ऋषि अनुष्टुप छंद :नीलकंठो सदाशिवो देवता ब्रह्म्बीजम पार्वती शक्ति:शिव इति कीलकं मम काय जीव स्वरक्षनार्थे सर्वारिस्ट विनाशानार्थेचतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धिअर्थे भक्ति-मुक्ति सिद्धि अर्थे श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थे च जपे पाठे विनियोग:


स्तोत्र मंत्र :-


।। ओम नमो नीलकंठाय श्वेत शरीराय नमः ।

सर्पालंकृत भूषणाय नमः ।

भुजंग परिकराय नाग यग्नोपवीताय नमः ।

अनेक काल मृत्यु विनाशनाय नमः ।

युगयुगान्त काल प्रलय प्रचंडाय नमः ।

ज्वलंमुखाय नमः ।

दंष्ट्रा कराल घोर रुपाय नमः हुं हुं फट स्वाहा,

ज्वालामुख मंत्र करालाय नमः ।

प्रचंडार्क सह्स्त्रान्शु प्रचंडाय नमः ।

कर्पुरामोद परिमलांग सुगंधिताय नमः ।

इन्द्रनील महानील वज्र वैदूर्यमणि माणिक्य मुकुट भूषणाय नमः ।

श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्रस्य नमः ।

ओम ह्रां स्फुर स्फुर ओम ह्रीं स्फुर स्फुर ओम ह्रूं स्फुर स्फुर अघोर घोरतरस्य नमः ।

रथ रथ तत्र तत्र चट चट कह कह मद मद मदन दहनाय नमः ।

श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्राय नमः ।

ज्वलन मरणभय क्षयं हूं फट स्वाहा ।

अनंत घोर ज्वर मरण भय कुष्ठ व्याधि विनाशनाय नमः ।

डाकिनी शाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय नमः ।

अपर पारभुत वेताल कुष्मांड सर्वग्रह विनाशनाय नमः ।

यन्त्र कोष्ठ करालाय नमः ।

सर्वापद विच्छेदनाय नमः हूं हूं फट स्वाहा ।

आत्म मंत्र सुरक्षणाय नमः ।

ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं नमो भुत डामर ज्वाला वश भूतानां द्वादश भूतानां त्रयोदश भूतानां पंचदश डाकिनीना हन् हन् दह दह नाशय नाशय एकाहिक द्याहिक चतुराहिक पंच्वाहिक व्याप्ताय नमः ।

आपादंत सन्निपात वातादि हिक्का कफादी कास्श्वासादिक दह दह छिन्दि छिन्दि,

श्री महादेव निर्मित स्तम्भन मोहन वश्यआकर्षण उच्चाटन कीलन उद्दासन इति षटकर्म विनाशनाय नमः ।


अनंत वासुकी तक्षक कर्कोटक शंखपाल विजय पद्म महापद्म एलापत्र नाना नागानां कुलकादी विषं छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि प्रवेशय प्रवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा ।।

वातज्वर मरणभय छिन्दि छिन्दि हन् हन्: ,

भुतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर सन्निपातज्वर ,

ग्रहज्वर विषमज्वर कुमारज्वर तापज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर ,

महेशज्वर आवश्यकज्वर कामाग्निविषय ज्वर मरीची- ज्वारादी प्रबल दंडधराय नमः ।

परमेश्वराय नमः ।

आवेशय आवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा ।

चोर मृत्यु ग्रह व्यघ्रासर्पादी विषभय विनाशनाय नमः ।

मोहन मन्त्राणाम , पर विद्या छेदन मन्त्राणाम , ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं कुली लीं लीं हूं क्ष कूं कूं हूं हूं फट स्वाहा,

नमो नीलकंठाय नमः ।

दक्षाध्वरहराय नमः ।

श्री नीलकंठाय नमः , ओम ।।


यह अत्यंत तीक्ष्ण तथा प्रचंड स्तोत्र है , इसलिए पाठ जब शुरू हो उन दिनों में एक कप गाय के दूध में आधा चम्मच गाय के घी को मिलकर रात्री मे सेवन करना चाहिए जिससे शरीर में बढ़ने वाली गर्मी पर काबू रख सके वर्ना गुदामार्ग से खून आने की संभावना हो सकती हैं ।


एक दिन मे इसका एक बार पाठ करें ।. एक दिन मे  सामान्य गृहस्थों को ज्यादा से ज्यादा तीन पाठ करने चाहिए ।साधक तथा योगी इससे ज्यादा भी कर सकते हैं  । 


इस मंत्र को शिव मंदिर में जाकर शिव जी का पंचोपचार पूजन करके करना श्रेष्ट है , यदि शिव मंदिर मे संभव न हो तो एकांत कक्ष मे या पूजा कक्ष मे भी कर सकते हैं । अपने सामने शिवलिंग या शिवचित्र या महामाया का चित्र या यंत्र रखके करें ।.  

यह आप पूरे सावन मास मे कर सकते हैं ।


इसके अलावा भी आप किसी भी दिन इसे कर सकते हैं ।. 


शिव कृपा , तंत्र बाधा निवारण , सर्वविध रक्षा प्रदायक तथा रोगनाशन करने वाला स्तोत्र है ।

4 अगस्त 2021

रोग निवारक पाशुपत मंत्र

 रोग निवारक पाशुपत मंत्र


मैं आगे की पंक्तियों में गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी के द्वारा प्रदान किए गए पाशुपत मंत्र का विवरण दे रहा हूं ।  यह मंत्र भगवान शिव के स्वरूप आदि शंकराचार्य के द्वारा भगवान पशुपति की आराधना के लिए प्रयुक्त हुआ था .... इसलिए यह बेहद प्रभावशाली और शक्तिशाली मंत्र है । 

यह शिव के अवतार द्वारा अपने मूल स्वरूप को प्रसन्न करने और जागृत करने के लिए प्रयुक्त हुआ था ॥ 


यह एक ऐसा अचूक मंत्र है जो सभी प्रकार के संकटों से रक्षा करने में सहायक है.... 


इस मंत्र का जाप आप स्वयं कर सकते हैं । आपकी पत्नी कर सकती है, आपके बच्चे कर सकते हैं । आप इस मंत्र को उन सभी को बता सकते हैं जो भगवान शिव पर और सनातन धर्म में आस्था रखते हो.... 


पाशुपत मंत्र :- 


॥ ॐ श्लीं पशुं हुं फट ॥ 



विधि :-

मंत्र जाप से पहले 3 ,11, 21,51 या 108 बार गुरु मंत्र का उच्चारण कर ले । 






॥ ॐ गुरु मंडलाय नमः ॥ 


इसके बाद आप पशुपत मंत्र का जितना आपकी शक्ति हो उतना जाप करें ।


पशुपति मंत्र के जाप के लिए किसी प्रकार के आयु, जाति ,लिंग, का बंधन नहीं है।


भगवान पशुपति का मंत्र होने के कारण इसमें स्थान, आसन, समय, दिशा, वस्त्र आदि का बंधन भी नहीं है । अर्थात आप इस मंत्र को चलते-फिरते भी जप सकते हैं । 


इसका जाप आप पूजन कक्ष में बैठकर भी कर सकते हैं । नदी तट पर बैठकर भी कर सकते हैं । इसे आप मंदिर में बैठकर जप सकते हैं तो अपने ड्राइंग रूम में बैठकर भी जप सकते हैं । इसका जाप आप अपने कार्यस्थल में, अपने ऑफिस में ,अपनी रसोई में, कहीं भी कर सकते हैं, 


शर्त यही है कि

आपकी आस्था देवाधिदेव महादेव पर हो, बाकी वह देख लेंगे।


3 अगस्त 2021

बिल्वपत्र समर्पण मंत्र

 बिल्वपत्र समर्पण मंत्र 

मेरे आराध्य जगतगुरु दक्षिणामूर्ति देवाधिदेव महादेव का श्रावण मास चल रहा है ।

उनके पूजन में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है बिल्वपत्र का समर्पण।

बिल्वपत्र या बेलपत्र को समर्पित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले 108 स्तुतियों को आप शिव पूजन के लिए प्रयोग कर सकते हैं ।

 



त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् ।

त्रिजन्म पापसंहारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१॥

 

त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः ।

तव पूजां करिष्यामि बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२॥


सर्व त्रैलोक्य कर्तारं सर्व त्रैलोक्य पालनम् ।

सर्व त्रैलोक्य हर्तारं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥३॥


नागाधिराज वलयं नाग हारेण भूषितम् ।

नाग कुण्डल संयुक्तं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥४॥


अक्षमालाधरं रुद्रं पार्वती प्रिय वल्लभम् ।

चन्द्रशेखरमीशानं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥५॥


त्रिलोचनं दशभुजं दुर्गा देहार्ध धारिणम् ।

विभूत्यभ्यर्चितं देवं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥६॥


त्रिशूल धारिणं देवं नागाभरण सुन्दरम् ।

चन्द्रशेखरमीशानं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥७॥


गङ्गाधर अम्बिकानाथं फणि कुण्डल मण्डितम् ।

कालकालं गिरीशं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥८॥


शुद्ध स्फटिक सङ्काशं शितिकण्ठं कृपानिधिम् ।

सर्वेश्वरं सदा शान्तं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥९॥


सच्चिदानन्दरूपं च परानन्दमयं शिवम् ।

वागीश्वरं चिदाकाशं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१०॥


शिपिविष्टं सहस्राक्षं दुंदुभ्यश्च निषंगीणम ।

हिरण्यबाहुं सेनान्यं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥११॥


अरुणं वामनं तारं वास्तव्यं चैव वास्तवम् ।

ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१२॥



हरिकेशं सनन्दीशं उच्चैर्घोषं सनातनम् ।

अघोर रूपकं कर्मम बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१३॥


पूर्वजावरजं याम्यं सूक्ष्मं तस्कर नायकम् ।

नीलकण्ठं जघन्यं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१४॥


सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं च वरूधिनम् I

महासेनं महावीरं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१५॥


कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यञ्च महारथम् ।

तौर्यातौर्यं च देव्यं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१६॥


दशकर्णं ललाटाक्षं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम् ।

अशेष पाप संहारं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१७॥


नीलकण्ठं जगद्वन्द्यं दीनानाथं महेश्वरम् ।

महापाप हरं शंभूम बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१८॥


चूडामणी कृतविभुं वलयीकृत वासुकिम् ।

कैलास निलयम भीमं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१९॥


कर्पूर कुन्द धवलं नरकार्णव तारकम् ।

करुणामृत सिन्धुं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२०॥


महादेवं महात्मानं भुजङ्गाधिप कङ्कणम् ।

महापाप हरं देवं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२१॥


भूतेशं खण्डपरशुं वामदेवं पिनाकिनम् ।

वामे शक्तिधरं श्रेष्ठं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२२॥ 


कालेक्षणं विरूपाक्षं श्रीकण्ठं भक्तवत्सलम् ।

नीललोहित खट्वाङ्गं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२३॥


कैलासवासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरान्तकम् ।

वृषाङ्कं वृषभारूढं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२४॥


सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धूलित विग्रहम् ।

मृत्युञ्जयं लोकनाथं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥२५॥


दारिद्र्य दुःख हरणं रविचन्द्रानलेक्षणम् ।

मृगपाणिं चन्द्रमौलिम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२६॥


सर्वलोकमयाकारं सर्वलोकैक साक्षिणम् ।

निर्मलं निर्गुणाकारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२७॥


सर्व तत्त्वात्मकं साम्बं सर्वतत्त्वविदूरकम् ।

सर्व तत्त्व स्वरूपं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥२८॥


सर्व लोक गुरुं स्थाणुं सर्वलोक वरप्रदम् ।

सर्व लोकैक नेत्रं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ २९॥


मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गं परात्मकम् ।

कमला प्रिय पूज्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३०॥


तेजोमयं महाभीमं उमेशं भस्मलेपनम् ।

भव रोग विनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३१॥


स्वर्गापवर्ग फलदं रघुनाथ वरप्रदम् ।

नगराज सुताकान्तं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३२॥


मञ्जीरपाद युगलं शुभ लक्षण लक्षितम् ।

फणिराज विराजं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३३॥


निरामयं निराधारं निस्सङ्गं निष्प्रपञ्चकम् ।

तेजोरूपं महारौद्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३४॥


सर्व लोकैक पितरं सर्व लोकैक मातरम् ।

सर्व लोकैक नाथं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३५॥


चित्राम्बरं निराभासं वृषभेश्वर वाहनम् ।

नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥३६॥


रत्नकञ्चुक रत्नेशं रत्नकुण्डल मण्डितम् ।

नवरत्नकिरीटं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३७॥


दिव्य रत्नाङ्गुली स्वर्णं कण्ठाभरण भूषितम् ।

नानारत्न मणिमयं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ३८॥


रत्नाङ्गुलीय विलसत कर शाखा नखप्रभम् ।

भक्त मानस गेहं च बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥ ३९॥


वामाङ्ग भाग विलसद अंबिका वीक्षणप्रियम् ।

पुण्डरीकनिभाक्षं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४०॥


सम्पूर्ण कामदं सौख्यं भक्तेष्ट फलकारणम् ।

सौभाग्यदं हितकरं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४१॥


नानाशास्त्र गुणोपेतं स्फुरन्मङ्गल विग्रहम् ।

विद्या विभेद रहितं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४२॥


अप्रमेय गुणाधारं वेदकृद्रूप विग्रहम् ।

धर्माधर्म प्रवृत्तं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४३॥


गौरी विलास सदनं जीव जीवपितामहम् ।

कल्पान्त भैरवं शुभ्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४४॥


सुखदं सुख नाशं च दुःखदं दुःखनाशनम् ।

दुःखावतारं भद्रं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४५॥


सुखरूपं रूपनाशं सर्वधर्मफलप्रदम् ।

अतीन्द्रियं महामायं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४६॥


सर्वपक्षि मृगाकारं सर्वपक्षि मृगाधिपम् ।

सर्वपक्षि मृगाधारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४७॥


जीवाध्यक्षं जीववन्द्यं जीवजीवनरक्षकम् ।

जीवकृज्जीवहरणं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४८॥


विश्वात्मानं विश्ववन्द्यं वज्रात्मा वज्रहस्तकम् ।

वज्रेशं वज्रभूषं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥४९॥


गणाधिपं गणाध्यक्षं प्रलयानलनाशकम् ।

जितेन्द्रियं वीरभद्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५०॥


त्र्यम्बकं मृडं शूरं अरिषड्वर्गनाशनम् ।

दिगम्बरं क्षोभनाशं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५१॥


कुन्देन्दु शङ्ख धवलं भगनेत्रभिदुज्ज्वलम् ।

कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५२॥


कम्बुग्रीवं कम्बुकण्ठं धैर्यदं धैर्यवर्धकम् ।

शार्दूल चर्मवसनं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५३॥


जगदुत्पत्ति हेतुं च जगत्प्रलय कारणम् ।

पूर्णानन्द स्वरूपं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५४॥


सर्गकेशं महत्तेजं पुण्यश्रवणकीर्तनम् ।

ब्रह्माण्डनायकं तारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५५॥


मन्दार मूल निलयं मन्दार कुसुम प्रियम् ।

बृन्दारक प्रियतरं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥५६॥


महेन्द्रियं महाबाहुं विश्वासपरिपूरकम् ।

सुलभासुलभं लभ्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५७॥


बीजाधारं बीजरूपं निर्बीजं बीजवृद्धिदम् ।

परेशं बीजनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५८॥


युगाकारं युगाधीशं युगकृद्युगनाशनम् ।

परेशं बीज नाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥५९॥


धूर्जटिं पिङ्गलजटं जटामण्डलमण्डितम् ।

कर्पूरगौरं गौरीशं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६०॥


सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुङ्गवम् ।

योगदं योगिनां सिंहं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६१॥


उत्तमानुत्तमं तत्त्वं अन्धकासुरसूदनम् ।

भक्त कल्पद्रुमस्तोमं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६२॥


विचित्र माल्य वसनं दिव्य चन्दन चर्चितम् ।

विष्णु ब्रह्मादि वन्द्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६३॥


कुमारं पितरं देवं स्थितचन्द्रकलानिधिम् ।

ब्रह्म शत्रुं जगन्मित्रं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६४॥


लावण्य मधुराकारं करुणारस वारिधिम् ।

भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६५॥


जटाधरं पावकाक्षं वृक्षेशं भूमिनायकम् ।

कामदं सर्वदागम्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६६॥


शिवं शान्तं उमानाथं महाध्यानपरायणम् ।

ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६७॥


वासुक्युरगहारं च लोकानुग्रह कारणम् ।

ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६८॥


शशाङ्क धारिणं भर्गं सर्वलोकैक शङ्करम् I

शुद्धं च शाश्वतं नित्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥६९॥


शरणागत दीनार्त परित्राण परायणम् ।

गम्भीरं च वषट्कारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७०॥


भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानसम् I

करणं कारणं जिष्णुं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७१॥


क्षेत्रज्ञं क्षेत्रपालञ्च परार्धैकप्रयोजनम् ।

व्योमकेशं भीमवेषं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७२॥


भवज्ञं करुणोपेतं चोरिष्टं यमनाशनम् ।

हिरण्यगर्भं हेमाङ्गं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७३॥


दक्षं चामुण्ड जनकं मोक्षदं मोक्षनायकम् ।

हिरण्यदं हेमरूपं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७४॥


महाश्मशान निलयं प्रच्छन्नस्फटिकप्रभम् ।

वेदास्यं वेदरूपं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७५॥


स्थिरं धर्मं उमानाथं ब्रह्मण्यं चाश्रयं विभुम् I

जगन्निवासं प्रमथम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७६॥


रुद्राक्ष मालाभरणं रुद्राक्ष प्रिय वत्सलम् ।

रुद्राक्ष भक्त संस्तोभम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७७॥


फणीन्द्र विलसत्कण्ठं भुजङ्गाभरण प्रियम् I

दक्षाध्वर विनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७८॥


नागेन्द्र विलसत्कर्णं महीन्द्रवलयावृतम् ।

मुनिवन्द्यं मुनिश्रेष्ठम बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥७९॥


मृगेन्द्र चर्म वसनं मुनीनामेक जीवनम् ।

सर्वदेवादि पूज्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८०॥


निधनेशं धनाधीशं अपमृत्यु विनाशनम् ।

लिङ्गमूर्तिम लिङ्गात्मं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८१॥


भक्त कल्याणदं व्यस्तं वेदवेदान्त संस्तुतम् ।

कल्पकृत्कल्पनाशं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८२॥


घोरपातक दावाग्निं जन्मकर्म विवर्जितम् ।

कपाल माला भरणं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८३॥


मातङ्ग चर्म वसनं विरदम पवित्र धारकम् ।

विष्णुक्रान्तम अनन्तं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८४॥


यज्ञ कर्म फलाध्यक्षं यज्ञ विघ्न विनाशकम् ।

यज्ञेशं यज्ञभोक्तारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८५॥


कालाधीशं त्रिकालज्ञं दुष्ट निग्रह कारकम् ।

योगि मानस पूज्यं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८६॥


महोन्नत महाकायं महोदर महाभुजम् ।

महावक्त्रं महावृद्धं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥८७॥


सुनेत्रं सुललाटं च सर्वभीम पराक्रमम् ।

महेश्वरं शिवतरं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् II८८॥


समस्त जगदाधारं समस्त गुण सागरम् ।

सत्यं सत्यगुणोपेतं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥ ८९॥


माघ कृष्ण चतुर्दश्यां पूजार्थं च जगद्गुरोः ।

दुर्लभं सर्वदेवानां बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९०॥


तत्रापि दुर्लभं मन्येत् नभोमासेन्दुवासरे ।

प्रदोष काले पूजायां बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९१॥


तडागम धननिक्षेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम् ।

कोटिकन्यामहादानं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९२॥


दर्शनं बिल्व वृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।

अघोर पाप संहारं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् II९३॥


तुलसी बिल्व निर्गुण्डी जम्बीरामलकं तथा ।

पञ्चबिल्वमिति ख्यातं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९४॥


अखण्ड बिल्वपत्रैश्च पूजयेन्नन्दिकेश्वरम् ।

मुच्यते सर्वपापेभ्यः बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९५॥


सालङ्कृता शतावृत्ता कन्याकोटिसहस्रकम् ।

साम्राज्य पृथ्वीदानं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९६॥


अश्व कोटि दानानि अश्वमेधसहस्रकम् ।

सवत्सधेनु दानानि बिल्वपत्रम शिवार्पणम् II९७॥


चतुर्वेद सहस्राणि भारतादिपुराणकम् ।

साम्राज्य पृथ्वीदानं च बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९८॥


सर्वरत्नमयं मेरुं काञ्चनं दिव्यवस्त्रकम् ।

तुलाभागं शतावर्तं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥९९॥


अष्टोत्तरशतं बिल्वं योऽर्चयेल्लिङ्गमस्तके ।

अथर्वोक्तं वदेद्यस्तु बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१००॥


काशीक्षेत्र निवासं च कालभैरव दर्शनम् ।

अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रम शिवार्पणम् ॥१०१॥


अष्टोत्तर शतश्लोकैः स्तोत्राद्यैः पूजयेद्यथा ।

त्रिसन्ध्यं मोक्षमाप्नोति बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०२॥


दन्तिकोटि सहस्राणां भूः हिरण्य सहस्रकम्

सर्वक्रतुमयं पुण्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम्   ॥१०३॥


पुत्र पौत्रादिकं भोगं भुक्त्वा चात्र यथेप्सितम् ।

अन्ते च शिव सायुज्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०४॥


विप्र कोटि सहस्राणां वित्तदानाच्च यत्फलम् ।

तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०५॥


त्वन्नामकीर्तनं तत्त्वं तव पादाम्बु यः पिबेत्

जीवन्मुक्तो भवेन्नित्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०६॥


अनेक दान फलदं अनन्त सुकृतादिकम् ।

तीर्थयात्राखिलं पुण्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०७॥


त्वं मां पालय सर्वत्र पदध्यान कृतं तव ।

भवनं शाङ्करं नित्यं बिल्वपत्रम शिवार्पणम् ॥१०८॥


क्षणे क्षणे कृतम पापम स्मरणेन विनश्यती ।  

पुस्तकम धारयेद देहि आरोग्यम दुख नाशनम ॥





आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं