एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का......
Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
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दीपावली महालक्ष्मी पूजन का सिद्ध मुहूर्त होता है उस दिन आप विभिन्न प्रकार के पूजन संपन्न कर सकते हैं । आगे की पंक्तियों में एक छोटा सा पूजन प्रस्तुत है जिसे आप श्री यंत्र के ऊपर या लक्ष्मी के सिक्के पर कर सकते हैं ।
आगे 32 प्रकार की लक्ष्मीयों के नाम दिए गए हैं जिनके नाम का उच्चारण करके हर बार नमः बोलने के साथ आप कुमकुम या केसर से सिक्के या श्री यंत्र पर बिंदी लगा सकते हैं या पुष्प और चावल छोड़ सकते हैं ।
इस प्रकार से पूजन करने के बाद आप उस सिक्के या यंत्र को तिजोरी या धन रखने के स्थान पर रख सकते हैं और अगर इच्छा हो तो उसे अपनी जेब में या पर्स में भी रख सकते हैं ।
श्री गुरुवे नमः
ॐ गं गणपतये नमः
ॐ भ्रम भैरवाये नमः
1. ॐ श्रियै नमः।
2. ॐ लक्ष्म्यै नमः।
3. ॐ वरदायै नमः।
4. ॐ विष्णुपत्न्यै नमः।
5. ॐ वसुप्रदायै नमः।
6. ॐ हिरण्यरूपिण्यै नमः।
7. ॐ स्वर्णमालिन्यै नमः।
8. ॐ रजतस्त्रजायै नमः।
9. ॐ स्वर्णगृहायै नमः।
10. ॐ स्वर्णप्राकारायै नमः।
11. ॐ पद्मवासिन्यै नमः।
12. ॐ पद्महस्तायै नमः।
13. ॐ पद्मप्रियायै नमः।
14. ॐ मुक्तालंकारायै नमः।
15. ॐ सूर्यायै नमः।
16. ॐ चंद्रायै नमः।
17. ॐ बिल्वप्रियायै नमः।
18. ॐ ईश्वर्यै नमः।
19. ॐ भुक्त्यै नमः।
20. ॐ प्रभुक्त्यै नमः।
21. ॐ विभूत्यै नमः।
22. ॐ ऋद्धयै नमः।
23. ॐ समृद्ध्यै नमः।
24. ॐ तुष्टयै नमः।
25. ॐ पुष्टयै नमः।
26. ॐ धनदायै नमः।
27. ॐ धनैश्वर्यै नमः।
28. ॐ श्रद्धायै नमः।
29. ॐ भोगिन्यै नमः।
30. ॐ भोगदायै नमः।
31. ॐ धात्र्यै नमः।
32. ॐ विधात्र्यै नमः।
अगर आप चाहें तो उस सिक्के पर रोज, हर बुधवार या हर पूर्णिमा को उपरोक्त प्रकार से पुनः पूजन कर सकते हैं इससे ज्यादा अनुकूलता मिलेगी ।
दीपावली भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण मुहूर्त है. प्रत्येक गृहस्थ को इस अवसर पर देवी महालक्ष्मी का पूजन विधि विधान से संपन्न करना ही चाहिए क्योंकि गृहस्थ जीवन का आधार ही महालक्ष्मी हैं. महालक्ष्मी पूजन विविध प्रकार से किए जा सकते हैं लेकिन देवराज इंद्रकृत सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र अपने आप में अत्यंत ही प्रभावशाली तथा शीघ्र फलप्रदायक है. इस अवसर पर आप चाहें तो महालक्ष्मी के किसी भी मंत्र का जाप कर सकते हैं जिससे आपको अनुकूलता प्राप्त होगी
यह स्तोत्र लक्ष्मी जी के यंत्र चित्र या मूर्ति के सामने करना चाहिए.
क्षमतानुसार 11, 21,51 या 108 बार सहस्राक्षरी स्तोत्र मंत्र का पाठ करेंः-
(हाथ में जल लेकर)विनियोगः-
ऊँ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मंत्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी सहस्राक्षरी सहस्र रूपिणि महाविद्याया श्री इंद्र ऋषिं गायत्रयादि नाना छंदांसि नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थ जपे पाठे विनियोगः । (जल जमीन पर छोड़ दें )
अपने हाथ मे एक पुष्प रखें । एक पाठ पूरा हो जाने पर उसे देवी के चरणों मे चढ़ा दें और उनकी कृपा प्राप्ति की प्रार्थना करें ।.
स्तोत्र मंत्र :-
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं हसौं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं सौः सौः ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं जय जय महालक्ष्मी, जगदाद्ये,विजये सुरासुर त्रिभुवन निदाने दयांकुरे सर्व तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते, विधि वरदे सच्चिदानंदे विष्णु देहावृते महामोहिनी नित्य वरदान तत्परे महासुधाब्धि वासिनी महातेजो धारिणी सर्वाधारे सर्वकारण कारिणे अचिंत्य रूपे इंद्रादि सकल निर्जर सेविते सामगान गायन परिपूर्णोदय कारिणी विजये जयंति अपराजिते सर्व सुंदरि रक्तांशुके सूर्य कोटि संकाशे चंद्र कोटि सुशीतले अग्निकोटि दहनशीले यम कोटि वहनशीले ऊँकार नाद बिंदु रूपिणी निगमागम भाग्यदायिनी त्रिदश राज्य दायिनी सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणी दिव्य देहिनि निर्गुणे सगुणे सदसद रूप धारिणी सुर वरदे भक्त त्राण तत्परे बहु वरदे सहस्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणी अनेक लक्षलक्ष स्वरूपे अनंत कोटि ब्रहमाण्ड नायिके चतुर्विंशति मुनिजन संस्थिते चतुर्दश भुवन भाव विकारिणे गगन वाहिनी नाना मंत्र राज विराजिते सकल सुंदरी गण सेविते चरणारविंद्र महात्रिपुर सुंदरी कामेश दायिते करूणा रस कल्लोलिनी कल्पवृक्षादि स्थिते चिंतामणि द्वय मध्यावस्थिते मणिमंदिरे निवासिनी विष्णु वक्षस्थल कारिणे अजिते अमले अनुपम चरिते मुक्तिक्षेत्राधिष्ठायिनी प्रसीद प्रसीद सर्व मनोरथान पूरय पूरय सर्वारिष्टान छेदय छेदय सर्वग्रह पीडा ज्वराग्र भय विध्वंसय विध्वंसय सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय मोक्ष मार्गाणि दर्शय दर्शय ज्ञानमार्ग प्रकाशय प्रकाशय अज्ञान तमो नाशय नाशय धनधान्यादि वृद्धिं कुरूकुरू सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय माम रक्ष रक्ष सर्वापदभ्यो निस्तारय निस्तारय वज्र शरीरं साधय साधय ह्रीं सहस्राक्षरी सिद्ध लक्ष्मी महाविद्यायै नमः ।
अगर आप चाहें तो इस स्तोत्र का उच्चारण मेरे यूट्यूब चैनल से सुन सकते हैं । लिंक नीचे है ।
पूजन सामग्री :- हल्दी,कुमकुम ,चन्दन ,अष्टगंध ,अक्षत ,इत्र ,कपूर,फुल,फल,मिठाई ,पान,अगरबत्ती,दीपक, कलश आदि । जो सामग्री उपलब्ध हो वह रखें और जो उपलब्ध ना हो पाए उसके लिए चिंता ना करें । प्रयास करें कि सारी सामग्रियां उपलब्ध हो क्योंकि देवी महालक्ष्मी के पूजन में कंजूसी नहीं करनी चाहिए और यथासंभव अपनी क्षमता के अनुसार पूजन संपन्न करना चाहिए । पूजन सामग्री भी अच्छी क्वालिटी का ही रखें । जिस स्थान पर बैठे वह साफ सुथरा हो । आपके कपड़े साफ सुथरे हो । महिलाएं हो तो श्रृंगार कर के बैठे हैं पुरुष हो तो साफ-सुथरे धुले हुए वस्त्र पहन कर बैठे । यदि इत्र या परफ्यूम उपलब्ध हो तो उसे लगाएं । पूजा स्थान में अगरबत्ती या खुशबूदार इत्र का छिड़काव करें ।
यदि गुरु दीक्षा प्राप्त हो तो गुरु का चित्र अवश्य रखें क्योंकि गुरु लक्ष्मी के आने पर उसके दुरुपयोग किए जाने से आपकी रक्षा करता है और आपको सदबुद्धि देता है कि आप उस धन का सदुपयोग करें ।
पूजा स्थान में गुरुचित्र,लक्ष्मी का चित्र / श्री यंत्र / शंख/ महाविद्या यन्त्र या फोटो जो भी उपलब्ध हो वह रखें ।
गुरु को प्रणाम करें । ॐ गुं गुरुभ्यो नमः
इसके बाद भगवान गणेश को याद करें और उन्हें पूजा में सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करने की प्रार्थना करें । ॐ श्री गणेशाय नमः
भगवान भैरव को याद करें और पूजन की रक्षा करने की प्रार्थना करें । ॐ भ्रम भैरवाय नमः ।
इसके बाद तंत्र के अधिपति भगवान शिव और मां जगदंबा को ज्ञात करें उन्हें प्रणाम करें उनसे आशीर्वाद लें कि आपको पूजन में सफलता प्राप्त हो और भगवती महालक्ष्मी आपकी पूजा को स्वीकार कर अनुकूलता प्रदान करें । ॐ सांब सदाशिवाय नमः
देवी महालक्ष्मी से प्रार्थना करें कि मैं आपका पूजन करने जा रहा हूं और आप मुझे इसके लिए अनुमति प्रदान करें ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः
अब आप 4 बार आचमन करे ( दाए हाथ में पानी लेकर पिए ) श्रीं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा श्रीं विद्या तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा श्रीं शिव तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा श्रीं सर्व तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा
अब आप घंटी बजाएं । घंटे को पुष्प समर्पित करें । अब आप जिस आसन पर बैठे है उस पर पुष्प अक्षत अर्पण करे । पृथ्वी पर हम बैठे हैं इसलिए उसे प्रणाम करें और उनसे भी आशीर्वाद लें कि आपको पूजन में सफलता प्राप्त हो ।
पृथ्वी देव्ये नमः आसन देवताभ्यो नमः
दीपक जलाकर उसका पूजन करे । उन्हें प्रणाम करे और पुष्प अक्षत अर्पण करे । अग्नि का स्वरूप होता है दीपक और उसे शक्ति का प्रतीक माना जाता है इसी भाव के साथ उसे प्रणाम करेंगे । दीप देवताभ्यो नमः ।
तांबे या मिट्टी से बना हुआ कलश लेकर उसमें पानी भर कर आप स्थापित कर सकते हैं यह अमृत का प्रतीक माना जाता है अर्थात जीवन में संपूर्णता प्रदान करने वाला .....
उसे सात बार तिलक करे . त्रिदेवाय नमः । चतुर्वेदाय नमः ।
अब आप अपने आप को तिलक करे । इसके लिए आप महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग कर सकते हैं और यदि आपको ज्ञात नहीं है तो महालक्ष्मी नमः ऐसा बोल कर अपने माथे पर तिलक लगा सकते हैं । तिलक कुमकुम अष्टगंध केसर किसी भी चीज का लगा सकते हैं ।
संकल्प :- संकल्प का तात्पर्य होता है कि आप संबंधित देवी या देवता के साथ एक प्रकार का अनुबंध कर रहे हैं कि मैं आपकी कृपा के प्राप्ति के लिए यह कार्य कर रहा हूं और आप खुश होकर मेरी मनोकामना को पूर्ण करें ।
दाहिने हाथ में जल,पुष्प,अक्षत लेकर संकल्प करे मैं (अपना नाम) आज दीपावली के शुभ मुहूर्त पर अपने ज्ञान और क्षमता के अनुसार जैसा संभव हो उस प्रकार से महालक्ष्मी पूजन कर रहा हूँ । मेरा पूजन ग्रहण करे और मुझपर कृपा दृष्टी रखे तथा मेरी मनोकामना ( आपकी जो इच्छा है उसे यहां पर बोले ) पूर्ण करे ।
अब जल को पूजा स्थान पर छोडे .. अब आप गणेशजी का स्मरण करे
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
प्रत्येक कार्य के लिए महागणपति का पूजन अनिवार्य होता है । वह बुद्धि के अधिपति हैं और साथ ही लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान करते हैं इसलिए हमेशा महालक्ष्मी का पूजन गणपति के साथ ही किया जाना चाहिए ...
श्री महागणपति आवाहयामि मम पूजन स्थाने ऋद्धि सिद्धि सहित शुभ लाभ सहित स्थापयामि नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः गंधाक्षत समर्पयामि कुमकुम और चावल चढ़ाएं
ॐ श्री गणेशाय नमः पुष्पं समर्पयामि फूल चढ़ाएं
ॐ श्री गणेशाय नमः धूपं समर्पयामि अगरबत्ती धूप दिखाएं
ॐ श्री गणेशाय नमः दीपं समर्पयामि दीपक प्रदर्शित करें
ॐ श्री गणेशाय नमः नैवेद्यं समर्पयामि प्रसाद समर्पित करें ।
महालक्ष्मी विष्णु पत्नी है। जहां भगवान विष्णु का पूजन होता है वहाँ लक्ष्मी अपने आप आती है विष्णु ध्यान :- शान्ताकारं भुजंग शयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभांगम लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगीर्भि ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैक नाथम्
ॐ श्री विष्णवे नमः
श्री महाविष्णु आवाहयामि मम पूजा स्थाने स्थापयामि पूजयामि नमः
ॐ श्री विष्णवे नमः गंधाक्षत समर्पयामि कुमकुम चावल समर्पित करें
ॐ श्री विष्णवे नमः पुष्पं समर्पयामि फूल चढ़ाएं
ॐ श्री विष्णवे नमः धूपं समर्पयामि धूप अगरबत्ती दिखाएं
ॐ श्री विष्णवे नमः दीपं समर्पयामि दीपक दिखाएं
ॐ श्री विष्णवे नमः नैवेद्यं समर्पयामि प्रसाद समर्पित करें
भगवान विष्णु का पूजन तथा ध्यान करने से देवी महालक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं इसलिए आप चाहे तो यहाँ पुरुषसूक्त , विष्णुसूक्त का पाठ कर सकते है ..
अब भगवान विष्णु के 24 नामों से तुलसी या पुष्प अर्पण करे ।
महालक्ष्मी ध्यान ------------ या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी गंभीरावर्तनाभिस्तनभारनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया या लक्ष्मी दिव्यरुपै मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः सानित्यं पद्महस्ता मम वसतु गॄहे सर्वमांगल्ययुक्ता
इस प्रकार से महालक्ष्मी का आह्वान करने के बाद ऐसी भावना करें कि वे अपने दिव्य स्वरुप में आपके घर में ! आपके कुल में !! आपके पूजा स्थान में !!! आकर स्थापित हो रही हैं और आपको अपने आशीर्वाद से आप्लावित कर रही हैं ....
श्री महालक्ष्मी आवाहयामि मम गृहे मम कुले मम पूजा स्थाने आवाहयामि स्थापयामि नमः ( पुष्प अक्षत अर्पण करे ) ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आवाहनं समर्पयामि
अब आचमनी मे जल और कुंकुम लेकर महालक्ष्मी गायत्री से अर्घ्य दे . ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात
हाथ जोड़ कर माँ महालक्ष्मी से प्रार्थना करे त्राहि त्राहि महालक्ष्मी त्राहि त्राहि सुरेश्वरी त्राहि त्राहि जगन्माता दरिद्रात त्राही वेगत : त्वमेव जननी लक्ष्मी त्वमेव पिता लक्ष्मी भ्राता त्वं च सखा लक्ष्मी विद्या लक्ष्मी त्वमेव च रक्ष त्वं देव देवेशी देव देवस्य वल्लभे दरिद्रात त्राही मां लक्ष्मी कृपां कुरु ममोपरी
ऐसी भावना करें कि देवी महालक्ष्मी इस पूजन से प्रसन्न होकर आपके घर में आए और आपके घर में आपके कुल में आपके परिवार में आपके गोत्र में और आपके हृदय में सदा विराजमान रहें प्रसन्न रहें और वरदान देती रहें ताकि उनकी कृपा सदैव बनी रहे .....
हाथ में जल और पुष्प लेकर नीचे लिखा हुआ मंत्र पढ़ें और पूजा स्थान में छोड़ दें ।
।। श्री सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानन्द चरणार्पणमस्तु ।।
दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की पूजा में त्रुटि हुई हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थना कर ले और देवी महालक्ष्मी से कृपा की प्रार्थना करके पूजा स्थान से उठ जाएं ।
गृहस्थ के जीवन में लक्ष्मी नही है तो कुछ भी नही है । यह हम सभी जानते हैं ।
सम्पूर्ण ऐश्वर्य और समृद्धि के लिए श्री यंत्र का अनादि काल से उपयोग हों रहा है । आप इसकी विशिष्ठता इसी बात से समझ सकते हैं कि लगभग सभी उच्च कोटि के तंत्र पीठों में इसकी स्थापना अनिवार्यं रूप से की जाती है । श्री यंत्र तांबा,पीतल,सोना,चाँदी,जैसे धातुओं से बनाए जाते हैं ।
पारा भी तंत्र मे अत्यंत विशिष्ट धातु माना गया है । उससे बने विग्रह विशेष लाभदायक भी कहे गए हैं । पारे से बने कुछ छोटे पारद श्री यंत्र अभिमंत्रित करके ₹1008/[एक हजार आठ रुपये ] मे उपलब्ध हैं ।
इस यंत्र को आप अपने पूजा स्थान मे रख सकते हैं । चाहें तो गल्ले तिजोरी या अलमारी मे भी रख सकते हैं । जो पाठक इच्छुक हैं वे मुझे 7000630499 पर संपर्क करके इसे प्राप्त कर सकते हैं ।
यंत्र आपके नाम से सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित जानकारी लगेगी जो आप भेज देंगे :-
भेजे गए शुल्क की रसीद की फोटो । आपका एक ताजा खींचा हुआ फोटो नाम गोत्र (अगर मालूम हो ) जन्मतिथि (अगर मालूम हो ) जन्म का समय (अगर मालूम हो ) जन्म का स्थान (अगर मालूम हो )
पूरा पता , पिन कोड के साथ, जिसमे आपको यंत्र भेजना है । आपका व्हाट्सएप्प नंबर जिसपर आपको मंत्र तथा यंत्र भेजने की सूचना भेजी जाएगी ।
आप पेमेंट के लिए इस QR code का भी प्रयोग कर सकते हैं
भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥
हिन्दी भावार्थ - हे महामाया महालक्ष्मी ! आप कमल फूलो से भरे हुए वन में निवास करनेवाली हो, आपके हाथों में सुंदर कमल है। आपके वस्त्र अत्यन्त उज्ज्वल हैं । आपके दिव्य देह पर अत्यंत मनोहर गन्ध और सुंदर सुंदर मालाएँ डाली हुई हैं । हे भगवान श्री हरी की प्रिया आपका स्वरूप अत्यंत मनमोहक है । आपकी कृपा से त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्राप्त हो सकता है आप मुझपर प्रसन्न होकर कृपा करें ।
ऐसा ध्यान करेंगे ।
इसके बाद अपने पूजा स्थान/दुकान/ एकांत कक्ष मे अपने सामने लक्ष्मी चित्र/ यंत्र/ श्रीयंत्र/ चाँदी सिक्का/ लक्ष्मी मूर्ति (जो आपके पास उपलब्ध हो ) रखकर भगवती लक्ष्मी के 108 नामों का उच्चारण करें और हर बार नम: के साथ फूल /कुमकुम/ चावल/ अष्टगंध चढ़ाएं ।
ॐ श्रीं अदित्यै नमः ।
ॐ श्रीं अनघायै नमः ।
ॐ श्रीं अनुग्रहप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीं अमृतायै नमः ।
ॐ श्रीं अशोकायै नमः ।
ॐ श्रीं आह्लादजनन्यै नमः ।
ॐ श्रीं इन्दिरायै नमः ।
ॐ श्रीं इन्दुशीतलायै नमः ।
ॐ श्रीं उदाराङ्गायै नमः ।
ॐ श्रीं कमलायै नमः ।
ॐ श्रीं करुणायै नमः ।
ॐ श्रीं कान्तायै नमः ।
ॐ श्रीं कामाक्ष्यै नमः ।
ॐ श्रीं क्रोधसम्भवायै नमः ।
ॐ श्रीं चतुर्भुजायै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्ररूपायै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्रवदनायै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्रसहोदर्यै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्रायै नमः ।
ॐ श्रीं जयायै नमः ।
ॐ श्रीं तुष्टयै नमः ।
ॐ श्रीं त्रिकालज्ञानसम्पन्नायै नमः ।
ॐ श्रीं दारिद्र्यध्वंसिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं दारिद्र्यनाशिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं दित्यै नमः ।
ॐ श्रीं दीप्तायै नमः ।
ॐ श्रीं देव्यै नमः ।
ॐ श्रीं धनधान्यकर्यै नमः ।
ॐ श्रीं धन्यायै नमः ।
ॐ श्रीं धर्मनिलयायै नमः ।
ॐ श्रीं नवदुर्गायै नमः ।
ॐ श्रीं नारायणसमाश्रितायै नमः ।
ॐ श्रीं नित्यपुष्टायै नमः ।
ॐ श्रीं नृपवेश्मगतानन्दायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मगन्धिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मनाभप्रियायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मप्रियायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्ममालाधरायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्ममुख्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मसुन्दर्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्महस्तायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्माक्ष्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मालयायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मोद्भवायै नमः ।
ॐ श्रीं परमात्मिकायै नमः ।
ॐ श्रीं पुण्यगन्धायै नमः ।
ॐ श्रीं पुष्टयै नमः ।
ॐ श्रीं प्रकृत्यै नमः ।
ॐ श्रीं प्रभायै नमः ।
ॐ श्रीं प्रसन्नाक्ष्यै नमः ।
ॐ श्रीं प्रसादाभिमुख्यै नमः ।
ॐ श्रीं प्रीतिपुष्करिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं बिल्वनिलयायै नमः ।
ॐ श्रीं बुद्धये नमः ।
ॐ श्रीं ब्रह्माविष्णुशिवात्मिकायै नमः ।
ॐ श्रीं भास्कर्यै नमः ।
ॐ श्रीं भुवनेश्वर्यै नमः ।
ॐ श्रीं मङ्गळा देव्यै नमः ।
ॐ श्रीं महाकाल्यै नमः ।
ॐ श्रीं महादीप्तायै नमः ।
ॐ श्रीं महादेव्यै नमः ।
ॐ श्रीं यशस्विन्यै नमः ।
ॐ श्रीं रमायै नमः ।
ॐ श्रीं लक्ष्म्यै नमः ।
ॐ श्रीं लोकमात्रे नमः ।
ॐ श्रीं लोकशोकविनाशिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं वरलक्ष्म्यै नमः ।
ॐ श्रीं वरारोहायै नमः ।
ॐ श्रीं वसुधायै नमः ।
ॐ श्रीं वसुधारिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं वसुन्धरायै नमः ।
ॐ श्रीं वसुप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीं वाचे नमः ।
ॐ श्रीं विकृत्यै नमः ।
ॐ श्रीं विद्यायै नमः ।
ॐ श्रीं विभावर्यै नमः ।
ॐ श्रीं विभूत्यै नमः ।
ॐ श्रीं विमलायै नमः ।
ॐ श्रीं विश्वजनन्यै नमः ।
ॐ श्रीं विष्णुपत्न्यै नमः ।
ॐ श्रीं विष्णुवक्षस्स्थलस्थितायै नमः ।
ॐ श्रीं शान्तायै नमः ।
ॐ श्रीं शिवकर्यै नमः ।
ॐ श्रीं शिवायै नमः ।
ॐ श्रीं शुक्लमाल्याम्बरायै नमः ।
ॐ श्रीं शुचये नमः ।
ॐ श्रीं शुभप्रदाये नमः ।
ॐ श्रीं शुभायै नमः ।
ॐ श्रीं श्रद्धायै नमः ।
ॐ श्रीं श्रियै नमः ।
ॐ श्रीं सत्यै नमः ।
ॐ श्रीं समुद्रतनयायै नमः ।
ॐ श्रीं सर्वभूतहितप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीं सर्वोपद्रव वारिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं सिद्धये नमः ।
ॐ श्रीं सुधायै नमः ।
ॐ श्रीं सुप्रसन्नायै नमः ।
ॐ श्रीं सुरभ्यै नमः ।
ॐ श्रीं स्त्रैणसौम्यायै नमः ।
ॐ श्रीं स्वधायै नमः ।
ॐ श्रीं स्वाहायै नमः ।
ॐ श्रीं हरिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं हरिवल्लभायै नमः ।
ॐ श्रीं हिरण्मय्यै नमः ।
ॐ श्रीं हिरण्यप्राकारायै नमः ।
ॐ श्रीं हेममालिन्यै नमः ।
अन्त मे हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना कर लें ।
यह पूजन आप रात्री मे कर सकते हैं । अगर ऐसा संभव ना हो तो आप दिन में किसी भी समय इसे कर सकते हैं ।
अगर आपने श्री यंत्र के ऊपर पूजन किया है तो पूजा करने के बाद उस यंत्र को आप पूजा स्थान में या अपने पैसा रखने वाले गल्ले में रख सकते हैं ।