16 मार्च 2025

गायत्री मंत्र द्वारा एक सौ आठ देवी देवताओं का पूजन साधना

गायत्री मंत्र द्वारा एक सौ आठ देवी देवताओं का पूजन साधना 



गुरुदेव आचार्य श्रीराम शर्मा के द्वारा स्थापित गायत्री परिवार के माध्यम से संपूर्ण विश्व गायत्री मंत्र की शक्ति और क्षमता से परिचित हो चुका है और गायत्री मंत्र के महत्त्व से  सभी साधक गण अच्छी तरह से परिचित है .

यहाँ पर  मैं अपने गुरु भाई श्री राहुल कुलकर्णी जी के द्वारा प्राप्त हुई पूजन  विधि प्रस्तुत कर रहा हूं जिसके माध्यम से आप 108 देवी देवताओं का पूजन एक साथ सब बंद कर सकते हैं इसमें मुश्किल से आधा या 1 घंटे का समय लगेगा ।  

 इसमें आप मंत्र जाप करते हुए पुष्प अक्षत जल जो आपकी श्रद्धा हो उसे अपने इष्ट के विग्रह शिवलिंग आदि पर समर्पित कर सकते हैं। 

कुछ भी उपलब्ध नही हो तो भी किसी खाली  प्लेट मे एक आचमनी जल छोडते हुये संपन्न कर सकते है । 

प्रयोग के रूप में अगर आप इसे करना चाहे तो जो माला, रुद्राक्ष या रत्न आप पहनते हैं या पहनना चाहते हैं उसके ऊपर इन मंत्रों का जाप करते हुए जल अक्षत कुमकुम आदि चढ़ाकर आप उसे चैतन्य कर सकते हैं । यह आपके लिए रक्षा कवच ऐसा कार्य करेगा । 

इस पूजन में सभी प्रमुख देवी देवताओं के साथ-साथ नवग्रह का पूजन भी सम्मिलित है यही नहीं इसमें सभी दिशाओं के देवताओं का पूजन सम्मिलित होने के कारण वास्तु पूजन भी संपन्न हो जाता है एक प्रकार से यह एक बेहद सरल छोटा और अपने आप में संपूर्ण पूजन है जिसका प्रयोग आप किसी भी विशेष पूजन के अवसर पर या नित्य पूजन में भी कर सकते हैं ।  मंत्रों का उच्चारण करने में शुरू में थोड़ी दिक्कत हो सकती है लेकिन उच्चारण करते करते आप का उच्चारण होता है स्पष्ट होता जाएगा यदि किसी शब्द के उच्चारण में आपको दिक्कत है तो आप मेरे ऑडियो चैनल से इसे सुन सकते हैं जिसका लिंक नीचे दिया हुआ है :-




सर्वप्रथम हाथ जोडकर प्रणाम करे 

ॐ गुं गुरुभ्यो नम: 

ॐ श्री गणेशाय नम: 

ॐ  गायत्र्यै नम: 

अब दाहिने हाथ मे जल लेकर 4 बार आचमन करे 

 ॐ  आत्मतत्वाय स्वाहा 

ॐ विद्यातत्वाय स्वाहा 

ॐ  शिवतत्वाय स्वाहा 

ॐ  सर्वतत्वाय स्वाहा 

फिर गुरु , परम गुरु और पारमेष्ठी गुरु को प्रणाम करे 

ॐ गुरुभ्यो नम: 

ॐ परम गुरुभ्यो नम: 

ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम: 

अब अपने आसन को स्पर्श कर पुष्प अक्षत अर्पण करे 

ॐ आसन देवताभ्यो नम: 

ॐ पृथिव्यै  नम: 

अब एक  कलश मे जल लेकर उसमे कपुर , चंदन , इत्र की कुछ बुंदे , तुलसी पत्र , पुष्प अक्षत डाले और कलश को तिलक करे . 

 ॐ कलश देवताभ्यो नम: 

अब अपने आप को चंदन या कुंकुम का तिलक  लगाये 

फिर दाहिने हाथ मे जल लेकर निम्न संकल्प का उच्चारण कर छोडे

मैं (अपना नाम ), गोत्र ( न मालूम हो तो भारद्वाज या कश्यप गोत्र बोल सकते हैं ), आज इस पुण्य अवसर पर अपनी मनोकामना (मन मे अपनी मनोकामना बोल दें या आध्यात्मिक उन्नती हेतु कहें ) की पूर्ति हेतु श्रद्धापूर्वक सकल देवता की कृपा हेतु अष्टोत्तर देवता गायत्री मंत्र अर्चन संपन्न कर रहा हू .

हाथ जोड़कर देवी गायत्री के स्वरूप का ध्यान करके प्रणाम कर लें । 

भगवती गायत्री का पंचोपचार पूजन करे 

ॐ भुर्भुव:  स्व: गायत्र्यै नम : गंधं समर्पयामि [कुमकुम चढ़ाएँ ]

ॐ भूर्भुवः स्व:  गायत्र्यै नम: पुष्पं समर्पयामि [फूल चढ़ाएँ ]

ॐ भूर्भुवः स्व:  गायत्र्यै नम: धूपं समर्पयामि [अगरबत्ती दिखाएँ ]

ॐ भूर्भुवः स्व:  गायत्र्यै नम: दीपं  समर्पयामि [दीपक]

ॐ भूर्भुवः स्व:  गायत्र्यै नम: नैवेद्यं  समर्पयामि [प्रसाद ]



अब गायत्री मंत्र का 12 बार उच्चारण करे .

ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात् 

अब विविध देवताओं के गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुये कलश के जल से एक एक आचमनी जल चढ़ाएँ । या कुमकुम, पुष्प, बेलपत्र,चावल जो भी आपकी भावना हो उसे चढ़ा सकते हैं । 

विविध देवताओं के  गायत्री मंत्र 

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1) ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् 

2) ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात् 

3) ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीश: प्रचोदयात् 

4) ॐ अनसुयासुताय विद्महे अत्रिपुत्राय धीमहि तन्नो दत्त: प्रचोदयात् 

5) ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात् 

6) ॐ एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंति प्रचोदयात् 

7) ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसरुढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् 

8) ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै च धीमहि तन्नो वाणी प्रचोदयात् 

9) ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात् 

10) ॐ महालक्ष्म्यै  विद्महे विष्णुप्रियायै   धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् 

11) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् 

12) ॐ कात्यायन्यै च विद्महे कन्याकुमारी च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् 

13) ॐ कृष्णकायाम्बिकाय विद्महे पार्वतीरुपाय च धीमहि तन्नो कालिका प्रचोदयात् 

14) ॐ तारायै विद्महे महोग्रायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

15) ॐ वैरोचन्यै च विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

16) ॐ ऐं त्रिपुरा देव्यै विद्महे क्लीं कामेश्वर्यै धीमहि सौस्तन्न: क्लिन्ने प्रचोदयात् 

17) ॐ त्रिपुरसुंदर्यै च विद्महे कामेश्वर्यै धीमहि तन्नो बाला प्रचोदयात् 

18) ॐ भुवनेश्वर्यै विद्महे रत्नेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

19)  ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

20) ॐ धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात् 

21) ॐ बगलामुख्यै च विद्महे स्तंभिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

22) ॐ मातंग्यै च विद्महे उच्छिष्टचांडाल्यै  च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

23) ॐ महालक्ष्मी विद्महे विष्णुपत्नी धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् 

24) ॐ महिषमर्दिन्यै च विद्महे दुर्गादेव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

25) ॐ तुलसीदेव्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि तन्नो वृंदा प्रचोदयात् 

26) ॐ गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् 

27) ॐ शैलपुत्र्यै च विद्महे काममालायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

28) ॐ ब्रह्मचारिण्यै विद्महे ज्ञानमालायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

29) ॐ चंद्रघण्टायै विद्महे अर्धचंद्राय धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्

30) ॐ कुष्मांडायै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

31) ॐ कुमार्यै  च विद्महे स्कंदमातायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

32) ॐ कात्यायन्यै च विद्महे सिद्धिशक्त्यै च धीमहि तन्नो कात्यायनी प्रचोदयात् 

33) ॐ कालरात्र्यै च विद्महे सर्वभयनाशिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

34) ॐ सिद्धिदात्र्यै च विद्महे सर्वसिद्धिदायिनी च धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् 

35) ॐ महागौर्यै विद्महे शिवप्रियायै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् 

36) ॐ ब्रह्ममनसायै विद्महे मंत्रअधिष्ठात्र्यै च धीमहि तन्नो मनसा प्रचोदयात् 

37) ॐ सुस्थिरयौवनायै विद्महे सर्वमंगलायै च धीमहि तन्नो मंगलचंडी प्रचोदयात् 

38) ॐ भूवाराह्यै च विद्महे रत्नेश्वर्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 

39) ॐ वराहमुखी विद्महे आंत्रासनी च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्

40) ॐ ज्वालामालिन्यै च विद्महे महाशूलिन्यै च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्

41) ॐ भगवत्यै विद्महे महेश्वर्यै धीमहि  तन्नो अन्नपूर्णा प्रचोदयात्

42) ॐ व्यापिकायै विद्महे नानारुपायै धीमहि तन्नो योगिनी प्रचोदयात् 

43) ॐ सहस्त्रथनाय विद्महे जननीरुपायै च धीमहि तन्नो कामधेनु: प्रचोदयात् 

44) ॐ देवकीनंदनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात् 

45) ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात् 

46) ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात् 

47) ॐ जनकनंदिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि तन्नो सीता प्रचोदयात्

48) ॐ दशरथसुताय विद्महे रामानुजाय धीमहि तन्नो लक्ष्मण: प्रचोदयात् 

49) ॐ अंजनीसुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनुमत प्रचोदयात् 

50) ॐ श्री निलयाय विद्महे व्यंकटेशाय धीमहि तन्नो हरि: प्रचोदयात् 

51) ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात् 

52) ॐ जामदग्नाय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात् 

53) ॐ धन्वंतराय विद्महे अमृतकलशहस्ताय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात् 

54) ॐ सहस्त्रशीर्षाय विद्महे विष्णुतल्पाय धीमहि तन्नो शेष: प्रचोदयात् 

55) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुड: प्रचोदयात् 

56) ॐ पांचजन्याय विद्महे पवमानाय धीमहि तन्नो शंख: प्रचोदयात् 

57) ॐ सुदर्शनाय विद्महे चक्रराजाय धीमहि तन्नो चक्र: प्रचोदयात् 

58) ॐ यंत्रराजाय विद्महे वरप्रदाय धीमहि तन्नो यंत्र: प्रचोदयात् 

59) ॐ पाशुपतये विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो शिव: प्रचोदयात् 

60) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय  धीमहि तन्नो स्कंद: प्रचोदयात् 

61) ॐ तत्पुरुषाय विद्महे चक्रतुंडाय धीमहि तन्नो नंदी: प्रचोदयात् 

62) ॐ आपदुद्धारणाय विद्महे बटुकेश्वराय धीमहि तन्नो वीर:  प्रचोदयात् 

63) ॐ मन्मथेशाय विद्महे कामदेवाय धीमहि तन्नो अनंग: प्रचोदयात् 

64) ॐ कालवर्णाय विद्महे महाकोपाय धीमहि तन्नो वीरभद्र: प्रचोदयात् 

65) ॐ शालुवेषाय विद्महे पक्षिराजाय धीमहि तन्नो शरभ: प्रचोदयात् 

66) ॐ श्वानध्वजाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नो क्षेत्रपाल: प्रचोदयात् 

67) ॐ ओंकाराय विद्महे भवताराय धीमहि तन्नो प्रणव: प्रचोदयात् 

68) ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात् 

69) ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृततत्त्वाय धीमहि तन्नो चंद्र: प्रचोदयात् 

70) ॐ अंगारकाय  विद्महे शक्तिहस्ताय  धीमहि तन्नो  भौम: प्रचोदयात् 

71) ॐ सौम्यरुपाय  विद्महे बाणेशाय  धीमहि तन्नो बुध: प्रचोदयात् 

72) ॐ आंगिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय  धीमहि तन्नो जीव: प्रचोदयात् 

73) ॐ शुक्राचार्याय विद्महे गौरवर्णाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात् 

74) ॐ कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्नो सौरि: प्रचोदयात् 

75) ॐ कृष्णवर्णाय विद्महे रौद्ररुपाय धीमहि तन्न: शनैश्चर: प्रचोदयात् 

76) ॐ शिरोरुपाय  विद्महे अमृतेशाय  धीमहि तन्न: राहु: प्रचोदयात् 

77) ॐ पद्मपुत्राय  विद्महे अमृतेशाय  धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात् 

78) ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्रमूर्त्यै च धीमहि तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात् 

79) ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्नि: प्रचोदयात् 

80) ॐ जलबिंबाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नो अंबु  प्रचोदयात् 

81) ॐ विश्वपुरुषाय विद्महे शिवापत्ये च धीमहि तन्नो पवन: प्रचोदयात् 

82) ॐ सर्वव्यापकाय विद्महे गगनाय च धीमहि तन्नो आकाश: प्रचोदयात् 

83) ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्न: इंद्र: प्रचोदयात् 

84) ॐ वैश्वानराय विद्महे सप्तजिव्हाय धीमहि तन्नो अग्नि: प्रचोदयात् 

85) ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यम: प्रचोदयात् 

86) ॐ ज्वालामुखाय विद्महे उष्ट्रवाहनाय धीमहि निऋति: प्रचोदयात् 

87) ॐ पश्चिमेशाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नो वरुण: प्रचोदयात् 

88) ॐ ध्वजहस्ताय विद्महे प्राणाधिपाय धीमहि तन्नो वायु: प्रचोदयात् 

89) ॐ यक्षराजाय विद्महे पुलस्त्य पुत्राय धीमहि तन्नो कुबेर: प्रचोदयात् 

90) ॐ अर्धदेवाय विद्महे व्यंतरदेवत्रे च धीमहि तन्नो यक्ष: प्रचोदयात् 

91) ॐ गीतवीणायै विद्महे कामरुपिण्यै धीमहि तन्नो गंधर्व: प्रचोदयात् 

92) ॐ कामदेवप्रियायै विद्महे सौंदर्यमूर्तये धीमहि तन्नो अप्सरा प्रचोदयात् 

93) ॐ सहस्त्रफणाय विद्महे वासुकिराजाय धीमहि तन्नो नाग: प्रचोदयात्

94) ॐ पितृवंशाय विद्महे प्रपितामहाय धीमहि तन्नो पितर: प्रचोदयात् 

95) ॐ नागपृष्ठाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नो वास्तु प्रचोदयात् 

96) ॐ पाराशरगोत्राय विद्महे नानापुराणाय धीमहि तन्नो व्यास: प्रचोदयात् 

97) ॐ आदिऋष्यै विद्महे रामायणाय धीमहि तन्नो वाल्मिकि: प्रचोदयात् 

98) ॐ ब्रह्ममानसपुत्राय विद्महे पुराणेतिहासकाराय धीमहि तन्नो वसिष्ठ: प्रचोदयात् 

99) ॐ शक्तिपुत्राय विद्महे पापानिती निवारणाय धीमहि तन्नो पराशर: प्रचोदयात् 

100) ॐ गाधिपुत्राय विद्महे गायत्रीमंत्रप्रवर्तकाय च धीमहि तन्नो विश्वामित्र: प्रचोदयात् 

101) ॐ अक्षुणोत्पत्ताय विद्महे ब्रह्मपुत्राय धीमहि तन्नो अत्रि: प्रचोदयात् 

102) ॐ कर्दमसुतायै विद्महे अत्रिभार्यायै धीमहि तन्नो अनसुया प्रचोदयात् 

103) ॐ सप्तर्षाय विद्महे मानसीसृष्टाय धीमहि तन्नो गौतम: प्रचोदयात् 

104) ॐ मृकुण्डुपुत्राय विद्महे योगज्ञानाय च धीमहि तन्नो मार्कंडेय: प्रचोदयात् 

105 ) ॐ शिवतत्त्वाय विद्महे योगांतराय धीमहि तन्नो पतंजली प्रचोदयात् 

106) ॐ त्रिपथगामिनी विद्महे रुद्रपत्न्यै च धीमहि तन्नो गंगा प्रचोदयात् 

107) ॐ यमुनादेव्यै च विद्महे तीर्थवासिनी च धीमहि तन्नो यमुना प्रचोदयात्

108) ॐ रुद्रदेहायै विद्महे मेकलकन्यकायै धीमहि तन्नो रेवा प्रचोदयात्

अब एक आचमनी जल निम्न मंत्र बोलते हुये अर्पण करे 

अनेन अष्टोत्तर देवता गायत्री मंत्र पूजनेन भगवती  गायत्री सह सकल देवतां प्रीयतां न मम .. 

अब क्षमा प्रार्थना करे .

आवाहनं न जानामि , न जानामि विसर्जनं 

पूजां चैव न जानामि , क्षम्यतां परमेश्वरी 

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी 

यत पूजितं मया परिपूर्णं तदस्तु मे 

देव देव गुरुदेव पूजां प्राप्य करोतु यत 

त्राहि त्राहि कृपासिंधु पूजा पूर्णतरां कुरु 

ॐ तत्सत ब्रह्मार्पणं अस्तु


11 मार्च 2025

गुरु शृंखला

  जगद्गुरु भगवान शिव







भगवान वेद व्यास


गौड पादाचार्य [शंकराचार्य जी के गुरु ]


जगद्गुरु आदि शंकराचार्य 



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ब्रह्मानंद सरस्वती



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।                                                                                                 ।
           महेश योगी                                                                     करपात्री महाराज
।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
                                           पूज्यपाद सद्गुरुदेव
                                                                               डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी
[परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी]
[1933-1998]



                                                 
                                              ।
                                              ।
                                               ।
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।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
।                                                                                                 ।
गुरुमाता डॉ . साधना सिंह  जी                                                                       गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी
                                                                                                       
जानकारी स्त्रोत -  साधना सिद्धि विज्ञान जुलाई २००५ पेज ७०

गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी : एक प्रचंड तंत्र साधक

   गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी : एक प्रचंड तंत्र साधक



साधना का क्षेत्र अत्यंत दुरुह तथा जटिल होता है. इसी लिये मार्गदर्शक के रूप में गुरु की अनिवार्यता स्वीकार की गई है.
गुरु दीक्षा प्राप्त शिष्य को गुरु का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है.
बाहरी आडंबर और वस्त्र की डिजाइन से गुरू की क्षमता का आभास करना गलत है.
एक सफ़ेद धोती कुर्ता पहना हुआ सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति भी साधनाओं के क्षेत्र का महामानव हो सकता है यह गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी से मिलकर मैने अनुभव किया.

भैरव साधना से शरभेश्वर साधना तक.......
कामकला काली से लेकर त्रिपुरसुंदरी तक .......
अघोर साधनाओं से लेकर तिब्बती साधना तक....
महाकाल से लेकर महासुदर्शन साधना तक सब कुछ अपने आप में समेटे हुए निखिल तत्व के जाज्वल्यमान पुंज स्वरूप...
गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी
महाविद्या त्रिपुर सुंदरी के सिद्धहस्त साधक हैं.वर्तमान में बहुत कम महाविद्या सिद्ध साधक इतनी सहजता से साधकों के मार्गदर्शन के लिये उपलब्ध हैं.

आप चाहें तो उनसे संपर्क करके मार्गदर्शन ले सकते हैं :-

साधना सिद्धि विज्ञान
जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116

वेबसाइट:-

www.namobaglamaa.org


यूट्यूब चेनल :-

https://www.youtube.com/@MahavidhyaSadhakPariwar




सद्गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी : अवतरण दिवस 11 मार्च


 

9 मार्च 2025

होलिका दहन : रक्षा प्रयोगों का सिद्ध मुहूर्त



होलिका दहन की रात्रि को सभी प्रकार के रक्षा प्रयोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है । 

आप भी इस अवसर पर अपने लिए रक्षा रुद्राक्ष, रक्षा कडा या रक्षा माला बना सकते हैं । 

इसके लिए एक लाल कपड़े मे एक सूखे नारियल के साथ संबंधित वस्तु को आप सामने रख लेंगे और हाथ मे जल लेकर महामाया महाकाली से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हुए अपनी इच्छा बोल देंगे और जल जमीन पर छोड़ देंगे । 

इसके बाद आपको जैसा ज्ञान हो वैसा महाकाली का पूजन कर लेंगे और नीचे लिखे मंत्र का 1008 बार जप कर लेंगे । गिनती के लिए आप कागज पेंसिल, दाना , माला, काउंटिंग मशीन किसी भी चीज का उपयोग कर सकते हैं ।  

।। हुं हुं ह्रीं ह्रीं कालिके घोर दन्ष्ट्रे प्रचन्ड चन्ड नायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हुं फट ।।

जाप के बाद माल, अंगूठी, कडा, धागा को धारण कर लेंगे । उस सूखे नारियल को अपने सिर से तीन बार उतारा करके लाल कपड़े मे लपेट कर उसे होली की अग्नि मे डाल देंगे ।  यदि आपके आसपास होली न जल रही हो तो घर मे ही लकड़ी जलाकर उसमे उसे जला देंगे । यह सारा काम आपको होलिका दहन की रात्री मे ही कर लेना है । 

8 मार्च 2025

टेरो कार्ड के द्वारा अपने सवालों के जवाब पाएँ : एस्ट्रो सुमन से

 



ऑनलाइन कार्ड रीडिंग सुविधा उपलब्ध है । 
व्हाट्स एप्प पर अपनी फोटो और बर्थ डिटेल्स फीस के साथ भेजकर एपोइंटमेंट ले सकते हैं । 
फीस = मात्र 501 

 

26 फ़रवरी 2025

अलबेले : भगवान शिव

अलबेले : भगवान शिव




भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है।

जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित

और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,


वहां ठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं,


अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं


और श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं।


उनकी मुद्रा में चिंतन है,


तो निर्विकार भाव भी है!


आनंद भी है और लास्य भी।


भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है।


वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी।


यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं।


वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं ।


वे देवों के भी देव होने के कारण ÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण ÷महाकाल' भी हैं ।


वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं ।


देवताओं में प्रथमाराध्य, विघ्नों के कारक व निवारणकर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं

तो,जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं ।


वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो,कामेश्वर' भी हैं ।


तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं ।


उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः-


असित गिरी समम् स्याद कज्जलं सिन्धु पात्रे , सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्र मुर्वी

लिखती यदि शारदा सर्वकालं ,तदपि तव गुणानाम ईश पारं न याति


अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीसकर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है ।


25 फ़रवरी 2025

सर्वरोग निवारक गोपनीय महामृत्युंजय मंत्र

   ||ॐ त्रयम्बकं यजामहे उर्वा रुकमिव स्तुता वरदा प्रचोदयंताम आयु: प्राणं प्रजां पशुं ब्रह्मवर्चसं मह्यं दत्वा व्रजम ब्रह्मलोकं  ||


  • इस मंत्र के उच्चारण करने या श्रवण करने से समस्त बिमारियों में लाभ होता है .
  • क्षमतानुसार जाप करें.

24 फ़रवरी 2025

दक्षिणामूर्ति शिव

 दक्षिणामूर्ति शिव 

दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है । यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।





॥ऊं ह्रीं दक्षिणामूर्तये नमः ॥

  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • ब्रह्ममुहूर्त यानि सुबह ४ से ६ के बीच जाप करें.
  • सफेद वस्त्र , आसन , होगा.
  • दिशा इशान( उत्तर और पूर्व के बीच ) की तरफ देखकर करें.
  • भस्म से त्रिपुंड लगाए . 
  • रुद्राक्ष की माला पहने .
  • रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
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22 फ़रवरी 2025

रोग निवारण मे सहायक : भगवान शिव के मंत्रों से अभिमंत्रित रुद्राक्ष की माला

  रोग निवारण मे सहायक : भगवान शिव के मंत्रों से अभिमंत्रित रुद्राक्ष की माला


आप किसी भी प्रकार की बीमारी से पीड़ित हो और स्वास्थ्य लाभ के लिए दवाओं के साथ देवीय कृपा भी चाहते हों ।
आप या आपके परिवार के सदस्य अक्सर किसी न किसी बीमारी से पीड़ित रहते हो ।
आपको अनावश्यक रूप से मानसिक तनाव या चिंता आशंका बनी रहती हो, डिप्रेशन होता हो ।

यदि आप उपरोक्त स्थितियों से ग्रसित है तो आपको भगवान शिव के विशिष्ठ मास सावन मे किसी भी दिन यह प्रयोग अवश्य संपन्न करना चाहिए । इससे आपको काफी अनुकूलता मिलेगी ।

आइये जानते हैं कि रुद्राक्ष क्या है ?

यह दो शब्दों से मिलकर बना है रूद्र और अक्ष ।

रुद्र = शिव, अक्ष = आँख

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के आंखों से गिरे हुए आनंद के आंसुओं से रुद्राक्ष के फल की उत्पत्ति हुई थी ।

रुद्राक्ष पर बनी लाइनों को मुख कहा जाता है । रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक पाए जाते हैं । मंत्र जाप के निमित्त सभी साधनाओं में रुद्राक्ष की माला को सर्वसिद्धिदायक मानकर स्वीकार किया जाता है ।

आपको अगर सरल शब्दों मे समझाऊँ तो रुद्राक्ष एक तरह की आध्यात्मिक बैटरी है, जो आपके मंत्र जाप और साधना के द्वारा चार्ज होती रहती है । वह आपके इर्द-गिर्द एक आध्यात्मिक सुरक्षा घेरा बनाकर रखती है । जो आपकी रक्षा तब भी करती है जब आप साधना से उठ जाते हैं । यह रक्षा मंडल आपके चारों तरफ दिनभर बना रहता है । यह नकारात्मक ऊर्जा यानि निगेटिव एनर्जी से आपकी रक्षा करता रहता है ।
रोग निवारक शक्ति भी रुद्राक्ष मे होती है । आपने देखा होगा कि भूतपूर्व प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी भी रुद्राक्ष की माला धारण करती थीं । वर्तमान प्रधान मंत्री मोदी जी तो फिर एक आध्यात्मिक साधक हैं ही..... इसलिए वे कई अवसरों पर रुद्राक्ष की माला धारण किए हुये या उससे जाप करते हुये देखे जा सकते हैं ....

रुद्राक्ष के ऊपर कई प्रकार के शास्त्रोक्त या किसी ग्रंथ से संबन्धित नियम कानून बताए जाते हैं । इसलिए रुद्राक्ष पहनने के मामले में सबसे ज्यादा लोग नियमों की चिंता करते हैं ।
मुझे गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के दिव्य सानिध्य में गुजरे अपने पिछले तीस पैंतीस साल के अनुभव से ऐसा लगता है कि, जैसे भगवान शिव, किसी नियम, किसी सीमा, के अधीन नहीं है, उसी प्रकार से उनका अंश रुद्राक्ष भी परा स्वतंत्र हैं । उनके लिए किसी प्रकार के नियमों की सीमा का बांधा जाना उचित नहीं है....
मेरा व्यक्तिगत विचार है कि कोई भी गृहस्थ व्यक्ति , पुरुष या स्त्री , बालक-बालिका, वृद्ध-वृद्धा रुद्राक्ष की माला धारण कर सकते हैं । अगर एक या अधिक दाना धारण करना चाहे तो भी धारण कर सकते हैं ।
अस्तु....

भगवान् शिव को महामृत्युंजय कहा जाता है अर्थात जिसने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली हो । इसलिए उनके मन्त्रों का अकाल मृत्यु निवारण के लिए अनुष्ठान करने का विधान है । उन्हें वैद्यनाथ भी कहा जाता है अर्थात जो रोग निवारण करने वाले वैद्यों के भी नाथ हैं । इसलिए उनके मंत्र रोग निवारक माने जाते हैं ।


रुद्राक्ष माला प्रयोग विधि :-

एक रुद्राक्ष की माला ले लें जिसमे 33, 54 या 108 दाने हों । वह माला उतनी लंबी होनी चाहिए जिसे आप गले मे पहन सकें ।

माला का चैतन्यीकरण :-

माला को गंगा जल में २४ घंटे के लिए डूबाकर रख लें । बाहर निकालने के बाद उस माला से 111 माला निम्नलिखित मंत्र का जाप किसी शिव मंदिर मे या शिवलिंग या शिव चित्र/यंत्र के सामने बैठकर कर लें । इस प्रकार से वह माला चैतन्य हो जाएगी ।
इसके बाद आप उसे रोगी को दे सकते हैं ।


विशिष्ट महामृत्युंजय मंत्र :-
||ॐ त्रयम्बकं यजामहे उर्वा रुकमिव स्तुता वरदा प्रचोदयंताम आयु: प्राणं प्रजां पशुं ब्रह्मवर्चसं मह्यं दत्वा व्रजम ब्रह्मलोकं ||

॥ om trayambakam yajamahe urva rukamiv stuta varda prachodayantaam ayuh pranam praj am pashum brahmavarchasam mahyam datvaa vrajam brahmalokam ॥

रोगी या माला धारण कर्ता के लिए विधान :-
आप इस रुद्राक्ष की माला से नित्य कम से कम एक माला इसी मंत्र का जाप करें ।
अगर आप बीमार हैं तो बिस्तर पर लेटे लेटे भी इसका जाप कर सकते हैं । इसमे शुद्धि अशुद्धि की चिंता की आवश्यकता नहीं है ।
इसे रोगी को स्वयं करना है । एकदम अवश हो तो परिवार का कोई सदस्य या कोई साधक रोगी के लिए जाप कर सकता है ।
आप अपनी क्षमता के अनुसार एक से ज्यादा मालाएँ भी कर सकते हैं । कम से कम एक माला तो अवश्य करें ।

जाप कर लेने के बाद उस माला को कम से कम एक घंटे पहन लें । आप माला को चौबीस घंटे भी पहन सकते हैं ।

पूरे एक सौ ग्यारह दिनों तक आप नित्य ऐसा करें । उसके बाद उस माला को नदी या तालाब मे विसर्जित करें । यदि ऐसा संभव ना हो तो गंगाजल मे धोकर किसी शिवालय मे छोड़ दें या छुडवा दें और भगवान शिव से रोगी के स्वास्थ्य लाभ की कामना करें ।
ऐसा करने से रोगी की नकारात्मक ऊर्जा विसर्जित होगी ।
माला पानी मे कैसे बहा दूँ ?
क्यों बहा दूँ ?
बहाना जरूरी है क्या ? ऐसा नहीं सोचेंगे ।

इस मंत्र का उच्चारण आप यू ट्यूब तथा प्रतिलिपि एफ़एम पर मेरे चेनल मंत्र उच्चारण by Anil Shekhar सर्च करके सुन सकते हैं

उच्चारण मे होने वाली त्रुटियाँ धीरे धीरे ठीक हो जाती हैं , उसकी चिंता नहीं करेंगे । यथासंभव स्पष्ट उच्चारण करने की कोशिश करेंगे । मन मे यह भाव रखेंगे कि भगवान शिव की कृपा से आप स्वस्थ हों ।

इस मंत्र के उच्चारण करने या श्रवण करने से समस्त बीमारियों में लाभ होता है । यह सद्गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी के द्वारा प्रदत्त विशिष्ट महामृत्युंजय मंत्र है ।

अगर आप चाहें तो सावन माह मे आपके नाम से भगवान शिव के विशेष मंत्रों से अभिमंत्रित करके रुद्राक्ष माला आपको स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजी जा सकती है ।
इसके लिए निर्धारित शुल्क एक हजार एक सौ ग्यारह रुपये [जिसमे रुद्राक्ष की 108 छोटे दानों वाली माला का मूल्य, पूजन सामग्री का व्यय, पूजन शुल्क, पेकेजिंग तथा पोस्टेज व्यय शामिल है ] भेजकर आप इसे प्राप्त कर सकते हैं ।
शुल्क आप फोन पे, पे टी एम, गूगल पे, भीम पे से मेरे मोबाइल नंबर पर भेज सकते हैं :-
मेरा मोबाइल नंबर - 7000630499

इस क्यूआर कोड से भी भेज सकते हैं 





माला प्राप्त करने के लिए मुझे निम्नलिखित चीजें इस नंबर पर व्हाट्सप्प कर देंगे :-

१) निर्धारित शुल्क के ऑनलाइन पेमेंट की रसीद ।
२) आपका नाम , जन्म तिथि,स्थान,समय ।[ यदि मालूम हो ]
३) गोत्र (यदि मालूम हो )
४) अपनी ताजा फोटो जिसमे आपका चेहरा और आँखें स्पष्ट दिखती हों । चश्मा लगाते हों तो बिना चश्मे के फोटो भेजेंगे । यह फोटो आपके प्रतीक रूप में माला के पूजन के समय रखी जाएगी . 
५) आपका पूरा पोस्टल एड्रेस पिन कोड सहित भेजेंगे । साथ मे वह मोबाइल नंबर भी भेजेंगे जिसपर पोस्टमेन आवश्यकता पड़ने पर आपसे पार्सल की डिलिवरी के समय संपर्क कर सके ।