17 सितंबर 2015

लघु गणपति पूजनम

एक नन्हा सा गणपति पूजन प्रस्तुत है । इसे पन्चोपचार पूजन कहते हैं



ऊं गं गणपतये नमः गंधम समर्पयामि --- इत्र आदि चढायें ।


ऊं गं गणपतये नमः पुष्पम समर्पयामि ---  फ़ूल 

ऊं गं गणपतये नमः धूपम समर्पयामि -- अगरबत्ती

ऊं गं गणपतये नमः दीपम समर्पयामि -- दीपक जलायें

ऊं गं गणपतये नमः नैवेद्यम समर्पयामि -- प्रसाद चढायें

इसके बाद आरती कर लें

13 सितंबर 2015

श्री गणेशपुराणे श्री गणेश कवचं

…|| श्री गणेश कवच ||
एषोति चपलो दैत्यान् बाल्येपि नाशयत्यहो ।
अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम ॥ १ ॥

दैत्या नानाविधा दुष्टास्साधु देवद्रुमः खलाः ।
अतोस्य कंठे किंचित्त्यं रक्षां संबद्धुमर्हसि ॥ २ ॥

ध्यायेत् सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहु माद्ये युगे
त्रेतायां तु मयूर वाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् । ई
द्वापरेतु गजाननं युगभुजं रक्तांगरागं विभुम् तुर्ये
तु द्विभुजं सितांगरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ॥ ३ ॥

विनायक श्शिखांपातु परमात्मा परात्परः ।
अतिसुंदर कायस्तु मस्तकं सुमहोत्कटः ॥ ४ ॥

ललाटं कश्यपः पातु भ्रूयुगं तु महोदरः ।
नयने बालचंद्रस्तु गजास्यस्त्योष्ठ पल्लवौ ॥ ५ ॥

जिह्वां पातु गजक्रीडश्चुबुकं गिरिजासुतः ।
वाचं विनायकः पातु दंतान्‌ रक्षतु दुर्मुखः ॥ ६ ॥

श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिंतितार्थदः ।
गणेशस्तु मुखं पातु कंठं पातु गणाधिपः ॥ ७ ॥

स्कंधौ पातु गजस्कंधः स्तने विघ्नविनाशनः ।
हृदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान् ॥ ८ ॥

धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं विघ्नहरश्शुभः ।
लिंगं गुह्यं सदा पातु वक्रतुंडो महाबलः ॥ ९ ॥

गजक्रीडो जानु जंघो ऊरू मंगलकीर्तिमान् ।
एकदंतो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ सदावतु ॥ १० ॥

क्षिप्र प्रसादनो बाहु पाणी आशाप्रपूरकः ।
अंगुलीश्च नखान् पातु पद्महस्तो रिनाशनः ॥ ११ ॥

सर्वांगानि मयूरेशो विश्वव्यापी सदावतु ।
अनुक्तमपि यत् स्थानं धूमकेतुः सदावतु ॥ १२ ॥

आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः पृष्ठतोवतु ।
प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेय्यां सिद्धिदायकः ॥ १३ ॥

दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैऋत्यां तु गणेश्वरः ।
प्रतीच्यां विघ्नहर्ता व्याद्वायव्यां गजकर्णकः ॥ १४ ॥

कौबेर्यां निधिपः पायादीशान्याविशनंदनः ।
दिवाव्यादेकदंत स्तु रात्रौ संध्यासु यःविघ्नहृत् ॥ १५ ॥

राक्षसासुर बेताल ग्रह भूत पिशाचतः ।
पाशांकुशधरः पातु रजस्सत्त्वतमस्स्मृतीः ॥ १६ ॥

ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मी च लज्जां कीर्तिं तथा कुलम् । ई
वपुर्धनं च धान्यं च गृहं दारास्सुतान्सखीन् ॥ १७ ॥

सर्वायुध धरः पौत्रान् मयूरेशो वतात् सदा ।
कपिलो जानुकं पातु गजाश्वान् विकटोवतु ॥ १८ ॥

भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कंठे धारयेत् सुधीः ।
न भयं जायते तस्य यक्ष रक्षः पिशाचतः ॥ १९ ॥

त्रिसंध्यं जपते यस्तु वज्रसार तनुर्भवेत् ।
यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ॥ २० ॥

युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्ध्रुवम् ।
मारणोच्चाटनाकर्ष स्तंभ मोहन कर्मणि ॥ २१ ॥

सप्तवारं जपेदेतद्दनानामेकविंशतिः ।
तत्तत्फलमवाप्नोति साधको नात्र संशयः ॥ २२ ॥

एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः ।
कारागृहगतं सद्यो राज्ञावध्यं च मोचयोत् ॥ २३ ॥

राजदर्शन वेलायां पठेदेतत् त्रिवारतः ।
स राजानं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां जयेत् ॥ २४ ॥

इदं गणेशकवचं कश्यपेन सविरितम् ।
मुद्गलाय च ते नाथ मांडव्याय महर्षये ॥ २५ ॥

मह्यं स प्राह कृपया कवचं सर्व सिद्धिदम् ।
न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ॥ २६ ॥

अनेनास्य कृता रक्षा न बाधास्य भवेत् व्याचित् ।
राक्षसासुर बेताल दैत्य दानव संभवाः ॥ २७ ॥

॥ इति श्री गणेशपुराणे श्री गणेश कवचं संपूर्णम् ॥

4 सितंबर 2015

तंत्र बाधा निवारक : छिन्नमस्ता साधना








॥ श्रीं ह्रीं क्लीं ऎं व ज्र वै रो च नी यै हुं हुं फ़ट स्वाहा ॥ 



नोट:- यह साधना गुरुदीक्षा लेकर गुरु अनुमति से ही करें....



  • यह साधना एक प्रचंड साधना है.
  • इस साधना में मार्गदर्शक गुरु का होना जरूरी है.
  • दीक्षा लेने के बाद ही इस साधना को करें.
  • कमजोर मानसिक स्थिति वाले बच्चे तथा महिलायें इसे ना करें क्योंकि इस साधना के दौरान डरावने अनुभव हो सकते हैं.
  • प्रबल से प्रबल तंत्र बाधा की यह अचूक काट है.
  • हर प्रकार के तांत्रिक प्रयोग को, प्रयोग करने वाले सहित ध्वस्त करने में इस साधना का कोई जवाब नहीं है.

3 सितंबर 2015

कृष्णम् वंदे जगतगुरु

पूरे हिंदू देवी देवताओं मेँ केवल भगवान श्रीकृष्ण को 16 कलाओं से युक्त माना जाता है 16 कलाओं का तात्पर्य पूर्ण पुरुष होता है जो जीवन की प्रत्येक विधा मेँ निपुण होता है ।
फिर चाहे वह  राधा के साथ प्रेम हो
गोपियोँ के संग रास लीला हो!
यशोदा का वात्सल्य हो!
अर्जुन को गीता का ज्ञान देता गुरु  हो !
या फिर युद्ध  मेँ विजय प्राप्त करने के लिए हर आवश्यक मार्ग का अनुसरण करने वाला रणछोड़!
कृष्ण हर स्वरुप मेँ संपूर्ण है!
उनकी पूर्णता अप्रतिम है!
एक चोर से लेकर एक प्रेमी तक!
एक योद्धा से लेकर एक बैरागी तक!
हर कोई उनके अंदर अपना इष्ट खोज लेता है ।  उनकी कही सार्वभौमिक स्वीकार्यता भारत से निकल कर संपूर्ण विश्व मेँ सर्वमान्य देवता के रुप मेँ उनको प्रतिष्ठित कर चुके हैँ । आज वे करोड़ो भारतीयोँ की संस्था का केंद्र तो है ही, साथ ही साथ करोड़ों  विदेशियोँ के आध्यात्मिक संपूर्णता और विकास का ! ज्ञान और भक्ति का ! प्रेम और उल्लास का माध्यम !  पूरी सहजता से बने हुए हैँ ।
ऐसे मेरे परम आराध्य जगतगुरु और पूर्ण पुरुष भगवान श्री कृष्ण की जन्म का उत्सव है जन्माष्टमी ।
इस दिन कृष्ण जन्म उत्सव के साथ साथ महाकाली जयंती भी होती है । इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को निन्नलिखित मंत्र से पूजन और जाप कर के प्रसन्न कर सकते हैँ,और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैँ।

।। क्लीं कृष्णाय नमः।।

21 अगस्त 2015

डोन्गरगढ साधना शिविर 22-23अगस्त 2015

गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी    एवं गुरु माता साधना सिंह के सानिध्य में ॥

 डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ मेँ साधना शिविर का आयोजन किया जा रहा है जानकारी के लिए संपर्क करेँ:-

0755  4269368
0755  4283681
0755  4221116
सर्वश्री:-
फूल सिंग मरावी   - 9098930900
बहुरसिंग राकेश    - 9009757914

मातंगी साधना



॥ ह्रीं क्लीं हुं मातंग्यै फ़ट स्वाहा ॥


  • मातंगी साधना संपूर्ण गृहस्थ सुख प्रदान करती है.
  • यह साधना जीवन में रस प्रदान करती है.

5 अगस्त 2015

शिव रुद्राष्टक


नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।
त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥

कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्माथारी॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।
न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।
जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥

रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,
ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥

4 अगस्त 2015

श्री नीलकंठ स्तोत्र-मन्त्र

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संकल्प:(विनियोग ):>
ओम अस्य श्री नीलकंठ स्तोत्र-मन्त्रस्य ब्रह्म ऋषि अनुष्टुप छंद :नीलकंठो सदाशिवो देवता ब्रह्म्बीजम पार्वती शक्ति:शिव इति कीलकं मम काय जीव स्वरक्षनार्थे सर्वारिस्ट विनाशार्थेचतुर्विद्या पुरुषार्थ सिद्धिअर्थे भक्ति-मुक्ति
सिद्धिअर्थे श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थे च जपे पाठे विनियोग:
>मंत्र प्रयोग<
ओम नमो नीलकंठाय श्वेत शरीराय नमःसर्पलिंकृत भुषनाय नमः भुजंग परिकराय नाग यग्नोपविताय नमः,अनेक
काल मृत्यु विनाशनाय नमः,युगयुगान्त काल प्रलय प्रचंडाय नमः ज्वलंमुखाय नमः दंष्ट्रा कराल घोर रुपाय नमः
हुं हुं फट स्वाहा,ज्वालामुख मंत्र करालाय नमः,प्रचंडार्क सह्स्त्रान्शु प्रचंडाय नमः कर्पुरामोद परिमलांग सुगंधीताय
नमः इन्द्रनील महानील वज्र वैदूर्यमणि माणिक्य मुकुट भूषणाय नमः श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्रस्य नमः
ओम ह्रां स्फुर स्फुर ओम ह्रीं स्फुर स्फुर ओम ह्रूं स्फुर स्फुर अघोर घोरतरस्य नमः रथ रथ तत्र तत्र चट चट कह कह
मद मदन दहनाय नमः
श्री अघोरास्य मूल मन्त्राय नमः ज्वलन मरणभय क्षयं हूं फट स्वाहा अनंत घोर ज्वर मरण भय कुष्ठ व्याधि विनाशनाय नमः डाकिनी शाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय नमः अपर पारभुत वेताल कुष्मांड सर्वग्रह विनाशनाय नमः यन्त्र कोष्ठ करालाय नमः सर्वापद विच्छेदाय नमः हूं हूं फट स्वाहा आत्म मंत्र सुरक्ष्नाय नमः
ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं नमो भुत डामर ज्वाला वश भूतानां द्वादश भूतानां त्रयोदश भूतानां पंचदश डाकिनीना हन् हन् दह दह
नाशन नाशन एकाहिक द्याहिक चतुराहिक पंच्वाहिक व्यप्ताय नमः
आपादंत सन्निपात वातादि हिक्का कफादी कास्श्वासादिक दह दह छिन्दि छिन्दि श्री महादेव निर्मित स्तम्भन मोहन वश्यआकर्षणों उच्चाटन किलन उद्दासन इति षटकर्म विनाशनाय नमः
अनंत वासुकी तक्षक कर्कोटक शंखपाल विजय पद्म महापद्म एलापत्र नाना नागानां कुलकादी विषं छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि प्रवेशाये शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा
वातज्वर मरणभय छिन्दि छिन्दि हन् हन्:भुतज्वर प्रेतज्वर पिशाचाज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर सन्निपातज्वर ग्रह
ज्वर विषमज्वर कुमारज्वर तापज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर महेशज्वर आवश्यकज्वर कामाग्निविषय ज्वर मरीची- ज्वारादी प्रबल दंडधराय नमः परमेश्वराय नमः
आवेशय आवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा चोर मृत्यु ग्रह व्यघ्रासर्पादी विषभय विनाशनाय नमः मोहन मन्त्राणा
पर विद्या छेदन मन्त्राणा, ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं कुली लीं लीं हूं क्ष कूं कूं हूं हूं फट स्वाहा, नमो नीलकंठाय नमः दक्षाध्वरहराय
नमः श्री नीलकंठाय नमः ओम

पाठ जब शुरू हो उन दिनों में एक कप गाय के दूध में एक चम्मच गाय के घी का सेवन करना ही चाहिए जिससे शारीर में बढ़ने वाली गर्मी पर काबू रख सके वर्ना गुदामार्ग से खून बहार आने की संभावना हो सकती हैं इस मंत्र को शिव मंदिर में जाकर शिव जी का पंचोपचार पूजन करके करना चाहिए,कमसे कम एक और ज्यादा से ज्यादा तीन पाठ करने चाहिए १०८ पाठ करने पर यह सिद्ध हो जाता हैं.

अघोरेश्वर महादेव साधना

नोट -  
  • केवल अघोर पंथ में दीक्षित  साधकों के लिए है.
  • यह साधना अनुभवी साधक की देख रेख में ही करें.
  • गुरु से अनुमति लेकर ही यह साधना करेंगे.





॥ ऊं अघोरेश्वराय महाकालाय नमः ॥
  • १,२५,००० मंत्र का जाप .
  • दिगंबर/नग्न  अवस्था में जाप करें
  • अघोरी साधक श्मशान की चिताभस्म का पूरे शारीर पर लेप करके जाप करते हैं. 
  • लेकिन गृहस्थ साधकों के लिए  चिताभस्म निषिद्ध है. वे इसका उपयोग नहीं  करें. यह गम्भीर  नुकसान कर सकता है.
  • गृहस्थ साधक अपने शरीर पर गोबर के कंडे  की राख से त्रिपुंड बनाएं . यदि सम्भव हो तो पूरे शरीर पर लगाएं.
  • जाप के बाद स्नान करने के बाद सामान्य कार्य कर सकते हैं.
  • जाप से प्रबल ऊर्जा उठेगी, किसी पर क्रोधित होकर या स्त्री सम्बन्ध से यह उर्जा विसर्जित हो जायेगी . इसलिए पूरे साधना काल में क्रोध और काम से बचकर रहें.
  • शिव कृपा होगी.
  • रुद्राक्ष पहने तथा रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
 .
 ---------------------शिव शासनतः--------------------
--------------------------शिव शासनतः------------------------
------------------------------शिव शासनतः----------------------------

---------------------- न गुरोरधिकम --------------------
-------------------------- न गुरोरधिकम ------------------------
------------------------------ न गुरोरधिकम ----------------------------

13 जुलाई 2015

साधना सिद्धि विज्ञान महाकाल विशेषांक

साधना सिद्धि विज्ञान का जुलाई अंक महाकाल विशेषांक के रुप मेँ प्रकाशित हुआ हे
साधना सिद्धि विज्ञान अपनी प्रमाणिकता के लिए पूरे भारतवर्ष मेँ प्रसिद्ध हे इस मेँ अभूतपूर्व मंत्र और साधना पद्धति योग का विवरण दिया जाता हे जो तंत्र क्षेत्र मेँ विभिन्न साधनाएँ और पूजन करने के इच्छुक है उनको इस पत्रिका की सदस्यता अवश्य लेनी चाहिए।

12 जुलाई 2015

महालक्ष्मी कवचम्

|| महालक्ष्मी कवच ||
नारायण उवाच
सर्व सम्पत्प्रदस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः।
ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवी पद्मालया स्वयम्॥१॥
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः।
पुण्यबीजं च महतां कवचं परमाद्भुतम्॥२॥


ॐ ह्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा मे पातु मस्तकम्।
श्रीं मे पातु कपालं च लोचने श्रीं श्रियै नमः॥३॥
ॐ श्रीं श्रियै स्वाहेति च कर्णयुग्मं सदावतु।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा मे पातु नासिकाम्॥४॥
ॐ श्रीं पद्मालयायै च स्वाहा दन्तं सदावतु।
ॐ श्रीं कृष्णप्रियायै च दन्तरन्ध्रं सदावतु॥५॥
ॐ श्रीं नारायणेशायै मम कण्ठं सदावतु।
ॐ श्रीं केशवकान्तायै मम स्कन्धं सदावतु॥६॥
ॐ श्रीं पद्मनिवासिन्यै स्वाहा नाभिं सदावतु।
ॐ ह्रीं श्रीं संसारमात्रे मम वक्षः सदावतु॥७॥
ॐ श्रीं श्रीं कृष्णकान्तायै स्वाहा पृष्ठं सदावतु।
ॐ ह्रीं श्रीं श्रियै स्वाहा मम हस्तौ सदावतु॥८॥
ॐ श्रीं निवासकान्तायै मम पादौ सदावतु।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रियै स्वाहा सर्वांगं मे सदावतु॥९॥
प्राच्यां पातु महालक्ष्मीराग्नेय्यां कमलालया।
पद्मा मां दक्षिणे पातु नैर्ऋत्यां श्रीहरिप्रिया॥१०॥
पद्मालया पश्चिमे मां वायव्यां पातु श्रीः स्वयम्।
उत्तरे कमला पातु ऐशान्यां सिन्धुकन्यका॥११॥
नारायणेशी पातूर्ध्वमधो विष्णुप्रियावतु।
संततं सर्वतः पातु विष्णुप्राणाधिका मम॥१२॥


इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।
सर्वैश्वर्यप्रदं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥१३॥
सुवर्णपर्वतं दत्त्वा मेरुतुल्यं द्विजातये।
यत् फलं लभते धर्मी कवचेन ततोऽधिकम्॥१४॥
गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं धारयेत् तु यः।
कण्ठे वा दक्षिणे वाहौ स श्रीमान् प्रतिजन्मनि॥१५॥
अस्ति लक्ष्मीर्गृहे तस्य निश्चला शतपूरुषम्।
देवेन्द्रैश्चासुरेन्द्रैश्च सोऽत्रध्यो निश्चितं भवेत्॥१६॥
स सर्वपुण्यवान् धीमान् सर्वयज्ञेषु दीक्षितः।
स स्नातः सर्वतीर्थेषु यस्येदं कवचं गले॥१७॥
यस्मै कस्मै न दातव्यं लोभमोहभयैरपि।
गुरुभक्ताय शिष्याय शरणाय प्रकाशयेत्॥१८॥
इदं कवचमज्ञात्वा जपेल्लक्ष्मीं जगत्प्सूम्।
कोटिसंख्यं प्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सोद्धिदायकः॥१९॥

7 जुलाई 2015

कामकला काली बीज मन्त्रम


कामकला काली [ KAMAKALA KALI ] साधना साधनात्मक जगत की सर्वोच्च साधना है. जब साधक का सौभाग्य अत्यंत प्रबल होता है तब उसे इस साधना की दीक्षा तथा अनुमति मिलती है.

यह साधना साधक को एक शक्तिपुंज में बदल देती है.


॥ स्फ़्रें ॥


  • अत्यंत प्रेम तथा मधुरता से जाप करें.
  • जप काल में रुद्राक्ष धारण करें.
  • यदि संभव हो तो गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करें.
  • बैठकर जाप रात्रि काल ११ से ३ में करें.
  • किसी स्त्री का अपमान ना करें.
  • क्रोध ना करें.
  • किसी प्रकार का प्रलाप , श्राप या बुरी बात ना कहें.
  • यदि विवाहित हैं तो अपनी पत्नी के साथ बैठ कर जाप करें.
  • साधना काल में अपनी पत्नी को भगवती का अंश समझकर उसे सम्मान दें, भूलकर भी उसका अपमान ना करें.
  • साधना प्रारंभ करने से पहले किसी समर्थ गुरु से दीक्षा अवश्य ले लें.





4 जुलाई 2015

पंचदशाक्षरी महामृत्युन्जय मन्त्रम



पंचदशाक्षरी महामृत्युन्जय मन्त्रम :-

यदि खुद कर रहे हैं तो:-

॥ ॐ जूं सः  मां  पालय पालय सः जूं ॐ॥

यदि किसी और के लिये [उदाहरण : मान लीजिये "अनिल" के लिये ] कर रहे हैं तो :-
॥ ॐ जूं सः ( अनिल) पालय पालय सः जूं ॐ ॥

  • यदि रोगी जाप करे तो पहला मंत्र करे.
  • यदि रोगी के लिये कोइ और करे तो दूसरा मंत्र करे. नाम के जगह पर रोगी का नाम आयेगा.
  • रुद्राक्ष माला धारण करें.
  • रुद्राक्ष माला से जाप करें.
  • बेल पत्र चढायें.
  • भस्म [अगरबत्ती की राख] से तिलक करें.

3 जुलाई 2015

ब्रह्माण्डमय निखिलेश्वरानंद साधना





परम हंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी

॥ ॐ श्रीं ब्रह्मांड स्वरूपायै निखिलेश्वरायै नमः ॥

...नमो निखिलम...
......नमो निखिलम......
........नमो निखिलम........



  • यह परम तेजस्वी गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का तान्त्रोक्त मन्त्र है.
  • पूर्ण ब्रह्मचर्य / सात्विक आहार/आचार/विचार के साथ जाप करें.
  • पूर्णिमा से प्रारंभ कर अगली पूर्णिमा तक करें.

ब्रह्माण्डमय निखिलेश्वरानंद साधना





परम हंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी

॥ ॐ श्रीं ब्रह्मांड स्वरूपायै निखिलेश्वरायै नमः ॥

...नमो निखिलम...
......नमो निखिलम......
........नमो निखिलम........



  • यह परम तेजस्वी गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का तान्त्रोक्त मन्त्र है.
  • पूर्ण ब्रह्मचर्य / सात्विक आहार/आचार/विचार के साथ जाप करें.
  • पूर्णिमा से प्रारंभ कर अगली पूर्णिमा तक करें.