विद्या प्रदायिनी तारा महाविद्या साधना
तंत्र में दस महाविद्याओं को शक्ति के दस प्रधान स्वरूपों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है. ये दस महाविद्यायें हैं, काली, तारा, षोडशी, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, त्रिपुरभैरवी, मातंगी, धूमावती, भुवनेश्वरी तथा कमला.
इनको दो कुलों में बांटा गया है, पहला काली कुल तथा दूसरा श्री कुल. काली कुल की प्रमुख महाविद्या है तारा. इस साधना से जहां एक ओर आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है वहीं ज्ञान तथा विद्या का विकास भी होता है. इस महाविद्या के साधकों में जहां महर्षि विश्वामित्र जैसे प्राचीन साधक रहे हैं वहीं वामा खेपा जैसे साधक वर्तमान युग में बंगाल प्रांत में हो चुके हैं. विश्वप्रसिद्ध तांत्रिक तथा लेखक गोपीनाथ कविराज के आदरणीय गुरूदेव स्वामी विशुद्धानंद जी तारा साधक थे. इस साधना के बल पर उन्होने अपनी नाभि से कमल की उत्पत्ति करके दिखाया था.
तिब्बत को साधनाओं का गढ माना जाता है. तिब्बती लामाओं या गुरूओं के पास साधनाओं की अतिविशिष्ठ तथा दुर्लभ विधियां आज भी मौजूद हैं. तिब्बती साधनाओं के सर्वश्रेष्ठ होने के पीछे भी उनकी आराध्या देवी मणिपद्मा का ही आशीर्वाद है. मणिपद्मा तारा का ही तिब्बती नाम है. इसी साधना के बल पर वे असामान्य तथा असंभव लगने वाली क्रियाओं को भी करने में सफल हो पाते हैं. तारा महाविद्या साधना सवसे कठोर साधनाओं में से एक है. इस साधना में किसी प्रकार की नियमों में शिथिलता स्वीकार्य नही होती. इस विद्या के तीन रूप माने गये हैं :-
- नील सरस्वती.
- एक जटा.
- उग्रतारा.
नील सरस्वती तारा साधना
तारा के नील सरस्वती स्वरूप की साधना विद्या प्राप्ति तथा ज्ञान की पूर्णता के लिये सर्वश्रेष्ठ है. इस साधना की पूर्णता साधक को जहां ज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय बनाती है वहीं साधक को स्वयं में कवित्व शक्ति भी प्रदान कर देती है, अर्थात वह कविता या लेखन की क्षमता भी प्राप्त कर लेता है.
नील सरस्वती साधना की एक गोपनीय विधि मुझे स्वामी आदित्यानंदजी से प्राप्त हुयी थी जो कि अत्यंत ही प्रभावशाली है. इस साधना से निश्चित रूप से मानसिक क्षमता का विकास होता ही है. यदि इसे नियमित रूप से किया जाये तो विद्यार्थियों के लिये अत्यंत लाभप्रद होता है.
नील सरस्वती बीज मंत्रः-
॥ ऐं ॥
यह बीज मंत्र छोटा है इसलिये करने में आसान होता है. जिस प्रकार एक छोटा सा बीज अपने आप में संपूर्ण वृक्ष समेटे हुये होता है ठीक उसी प्रकार यह छोटा सा बीज मंत्र तारा के पूरे स्वरूप को समेटे हुए है.
साधना विधिः-
- इस मंत्र का जाप अमावस्या से प्रारंभ करके पूर्णिमा तक या नवरात्रि में करना सर्वश्रेष्ठ होता है. अपनी सामर्थ्य के अनुसार १०८ बार कम से कम तथा अधिकतम तीन घंटे तक नित्य करें.
- कांसे की थाली में केसर से उपरोक्त बीजमंत्र को लिखें, अब इस मंत्र के चारों ओर चार चावल के आटे से बने दीपक घी से जलाकर रखें. चारों दीयों की लौ ऐं बीज की तरफ होनी चाहिये. कुंकुम या केसर से चारों दीपकों तथा बीज मंत्र को घेरते हुये एक गोला थाली के अंदर बना लें. यह लिखा हुआ साधना के आखिरी दिन तक काम आयेगा. दीपक रोज नया बनाकर लगाना होगा.
- सर्वप्रथम हाथ जोडकर ध्यान करें :-
नील वर्णाम त्रिनयनाम ब्रह्म शक्ति समन्विताम
कवित्व बुद्धि प्रदायिनीम नील सरस्वतीं प्रणमाम्यहम.
- हाथ मे जल लेकर संकल्प करें कि मां आपको बुद्धि प्रदान करें.
- ऐं बीज को देखते हुये जाप करें. पूरा जाप हो जाने के बाद त्रुटियों के लिये क्षमा मांगें.
- साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें.
- कम से कम बातचीत करें. किसी पर क्रोध न करें.
- किसी स्त्री का अपमान न करें.
- वस्त्र सफेद रंग के धारण करें.
बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की यह तांत्रिक साधना है. पूरे विश्वास तथा श्रद्धा से करने पर तारा निश्चित रूप से अभीष्ठ सिद्धि प्रदान करती है.
प्राचीन विधा का प्रसार होता देख अच्छा लगा। बधाई।
जवाब देंहटाएंthanks for greet information,
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is jaankari ke liye aapka bhut bhut dhanyavad,, aaj kal ke jamane me is tarah ki jaankari bhut kam milti hai,,,
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