- काल भैरव भगवान शिव का अत्यन्त ही उग्र तथा तेजस्वी स्वरूप है.
- सभी प्रकार के पूजन/हवन/प्रयोग में रक्षार्थ इनका पुजन होता है.
- ब्रह्मा का पांचवां शीश खंडन भैरव ने ही किया था.
- इन्हे काशी का कोतवाल माना जाता है.
- नीचे लिखे मन्त्र की १०८ माला रात्रि को करें.
- काले रंग का वस्त्र तथा आसन रहेगा.
- दिशा दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें
- इस साधना से भय का विनाश होता है तथा साह्स का संचार होता है.
- यह तन्त्र बाधा, भूत बाधा,तथा दुर्घटना से रक्षा प्रदायक है.
॥ ऊं भ्रं कालभैरवाय फ़ट ॥
भैरव जी के प्रादुर्भाव की कथा -
जवाब देंहटाएंएक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। इसलिए भैरव भगवान शिव के स्वरूप हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को भगवान भैरव का प्रादुर्भाव हुआ। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने महादेव शिव का आपमान व अनादर किया। तब ब्रह्म हत्या के पाप को को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे।
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए काशी अथवा उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है।
जवाब देंहटाएंभगवान भैरव के तीन प्रमुख रूप हैं- बटुक भैरव, महाकाल भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव। इनमें से भक्तगण बटुक भैरव की ही सर्वाधिक पूजा करते हैं। तंत्रशास्त्र में अष्ट भैरव का उल्लेख भी मिलता है- असितांग भैरव, रूद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव और संहार भैरव। भगवान भैरव की साधना में ध्यान का अधिक महत्व है। इसी को ध्यान में रखकर सात्विक, राजसिक व तामसिक स्वरूपों का ध्यान किया जाता है। ध्यान के बाद इस मंत्र का जप करने का विधान है।
जवाब देंहटाएंभगवान भैरव की साधना
जवाब देंहटाएंवशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुंडली में छठा भाव रिपु यानि शत्रु का भाव होता है। लग्न से षष्ठ भाव भी रिपु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु संबंधी कष्ट होना संभव है।
षष्ठस्थ-षष्ठेश संबंधियों को शत्रु बनाता है। यह शत्रुता कई कारणों से हो सकती है। आपकी प्रगति कभी-कभी दूसरों को अच्छी नहीं लगती और वे आपकी प्रगति को प्रभावित करने के लिए तांत्रिक क्रियाओं का सहारा लेकर आपको प्रभावित करते हैं।
तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव से व्यवसाय, धंधे में आशानुरूप प्रगति नहीं होती। दिया हुआ रूपया नहीं लौटता, रोग या विघ्न बाधाओं से पीडा अथवा बेकार की मुकदमेबाजी में धन की बर्बादी हो सकती है। इस प्रकार की शत्रु बाधा निवारण के लिए भैरव साधना फलदायी है।
भगवान बटुक भैरव के सात्विक स्वरूप का ध्यान करने से आयु में वृद्धि और समस्त आधि-व्याधि से मुक्ति मिलती है। इनके राजस स्वरूप का ध्यान करने से विविध अभिलाषाओं की पूर्ति संभव है। इनके तामस स्वरूप का ध्यान करने से शत्रु नाश, सम्मोहन, वशीकरणादि प्रभाव समाप्त होता है। व्याधि से मुक्ति के लिए व भैरव के तामस स्वरूप की साधना करना हितकर है।
शनि या राहु केतु से पीड़ित व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है। भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है।
तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।
गृहस्थों के लिए काल भैरवाष्टक स्तोत्र का नियमित पाठ सर्वोत्तम है, जो अनेक बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।
भैरव जी के प्रिय भोग-
जवाब देंहटाएंभैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगाना लाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है। इसके आलावा सरसों का तेल, काजल सिंदूर और चमेली का तेल आदि इनके श्रृंगार है।
समस्त प्रकार की बाधाओं के संहार में सहायक अति तीव्र भैरव मन्त्र:-
जवाब देंहटाएं॥ऊं भ्रं काल भैरवाय फ़ट॥
।। ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।।
|| ॐ भयहरणं च भैरव: ||
शत्रु बाधा निवारण हेतु -
ऊं ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
thnx "om namah shivaya"
भैरव पूजा में रखी जाने वाली सावधानियाँ
जवाब देंहटाएं१॰ भैरव साधना से नमोकामना पूर्ण होती है, अपनी मनोकामना संकल्प में बोलनी चाहिये ।
२॰ भैरव को नैवेद्य में मदिरा चढ़ानी चाहिए, यह सम्भव नहीं हो, तो मदिरा के स्थान पर दही-गुड़ मिलाकर अर्पित करें ।
३॰ भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें ।
४॰ भैरव मन्त्र का जप रुद्राक्ष माला से किया जा सकता है, इसके अतिरिक्त काले हकीक की माला भी उपयुक्त है ।
५॰ भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिये ।
६॰ भैरव को अर्पित नैवेद्य को पूजा के बाद उसी स्थान पर ग्रहण कर लेना चाहिये ।
७॰ भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य दिनों के अनुसार निर्धारित है । रविवार को खीर, सोमवार को लड्डू, मंगलवार को घी और गुड़ अथवा गुड़ से बनी लापसी, बुधवार को दही-बूरा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने, शनिवार को उड़द के पकौड़े अथवा जलेबी तथा तले हुए पापड़ आदि का भोग लगाया जाता है ।