- गुरु पूजन करें अनुमति लें.
- १ माला गुरु मंत्र कर लें.
- गणेश पूजन करें
- भैरव पूजन करें
- गुरु पूजन करें
- यदि विधि मालूम हो तो कलश पूजन कर लें.
- दीपक जलाने की इच्छा हो सामर्थ्य हो तो जला लें.पूजन कर लें.
- सामने चौकी या पीढ़े पर देवी का चित्र/यन्त्र/मूर्ती किसी पात्र में रख लें.
- हाथ में जल लेकर अपनी इच्छा बोल दें
- तय कर लें की प्रतिदिन कितनी माला या कितनी देर बैठेंगे , रोज उतना ही बैठें.
- प्रतिदिन संभव हो तो निश्चित समय पर ही बैठें.
विशेष ध्यान देने योग्य बातें :-
- पूरे साधना काल में किसी स्त्री/बालिका/युवती का अपमान न करें. घर में भी किसी को अपमानित न करें.
- व्यर्थ प्रलाप बकवास गप्पबाजी से बचें.
- माथे पर कुमकुम का लाल टिका लगाकर रखें.
- गले में माला पहने रखें.
- चलते फिरते भी मानसिक रूप से मंत्र जाप करते रहें.
- यदि हो सके तो साधन स्थल पर ही भूमि शयन करें.
- महिलाएं हों साधना काल में मासिक आने पर उतने दिन आसन पर बैठ कर जाप न करें, मानसिक रूप से कर सकती हैं, इससे साधन खंडित नहीं माना जाएगा.
दुर्गामंत्र
|| ॐ ह्रीं दूँ दुर्गायै नमः ||
चंडी मन्त्र
|| एँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ||
साम्ब सदाशिव मंत्र :-
|| ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः ||
महाकाली मंत्र :-
|| क्रीं महाकाल्ये नमः ||
महालक्ष्मी मंत्र :-
|| श्रीं श्रीं श्रीं महालक्ष्म्ये नमः ||
साधना में गुरु की आवश्यकता
ॐ मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
ॐ साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
ॐ गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
गुरु के बिना साधना
ॐ स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
ॐ जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
ॐ शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
ॐ गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें, ढिंढोरा ना पीटें, बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y बकवास और प्रलाप न करें.
Y किसी पर गुस्सा न करें.
Y यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न हो, अपमान न करें.
Y जप और साधना का ढोल पीटते न रहें, इसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें , इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशा, आसन, वस्त्र का महत्व
Y साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
माला तथा जप संख्या
Y रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती अगर अलग से निर्देश न हो तो सभी साधनाओं में रुद्राक्ष माला से मन्त्र जाप कर सकते हैं .
Y एक साधना के लिए एक माला का उपयोग करें |
Y सवा लाख मन्त्र जाप का पुरश्चरण होगा |
Y गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
सामान्य हवन विधि
Y जाप पूरा होने के बाद किसी गोल बर्तन, हवनकुंड में हवन अवश्य करें | इससे साधनात्मक रूप से काफी लाभ होता है जो आप स्वयं अनुभव करेंगे |
Y अग्नि जलाने के लिए माचिस का उपयोग कर सकते हैं | इसके साथ घी में डूबी बत्तियां तथा कपूर रखना चाहिए
Y जलाते समय “ॐ अग्नये नमः” मन्त्र का कम से काम 7 बार जाप करें | जलना प्रारंभ होने पर इसी मन्त्र में स्वाहा लगाकर घी की 7 आहुतियाँ देनी चाहिए |
Y बाजार में उपलब्ध हवन सामग्री का उपयोग कर सकते हैं |
Y हवन में 1250 बार या जितना आपने जाप किया है उसका सौवाँ भाग हवन करें | मन्त्र के पीछे “स्वाहा” लगाकर हवन सामग्री को अग्नि में डालें |
भावना का महत्व
Y जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है , जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें , लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |
Y देवी या देवता माता पिता तुल्य होते हैं उनके सामने शिशुवत जाप करेंगे तो किसी प्रकार का दोष नहीं लगेगा |
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